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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
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आदेश भी होता है । डित् से यहाँ यह तात्पर्य है कि अन्त के इकार और उकार का लोप हो जाता है ।
१
( १७ ) इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों से पर में आनेवाले शस और डस् के स्थान में विकल्प से णो आदेश होता है ।
२
( १८ ) इकारान्त और उकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले टा - तृतीया एकवचन के स्थान में 'णा' आदेश होता है।
३
( १९ ) उकारान्त चउ < चतुर् शब्द से पर में आनेवाले भिस्, भ्यस् और सुप् विभक्ति को विकल्प से दीर्घ होता है ।"
४
( २० ) हेम के मत में इकारान्त और उकारान्त शब्दों में ङसि और ङस् के के परे रहने में विकल्प से णो आदेश होता है ।"
( २१ ) शेष रूपों की सिद्धि अकारान्त पुल्लिंग शब्दों के समान ही होती है । इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के विभक्तिचिह्न
एकवचन
पढ़मा — प्रत्यय लुक्, दीर्घ
बीआ
तइया
-णा
उत्थी - णो, स
पंचमी - णो, तो, ओ, उ, घट्टी - णो, स्स
सत्तमी - मि, सि
-
"
संबोहण - ई, प्रत्ययलुक्
--
"
एकवचन
व-हरी
बी० - हरिं
-CP
हिंतो
- हरिणा
च० - हरिणो, हरिस्स पं - हरिणों, हरितो, हरीओ, हरी, हरीहितो
बहुवचन
अउ, अओ, णो, ई
oit, &
हि, हिँ,
हिं
ण, Οι
तो, ओ, उ, हिंतो, सुंतों
ण णं
सु, सु
अउ, अओ, गो, ई
इकारान्त हरि शब्द के रूप
बहुबचन
हरउ, हरओ, हरिणो, हरी
हरिणो, हरी
हरीहि, हरीहि, हरीक्षि
हरीण, हरीणं
हरितो, हरीओ, हरीउ, हरीहितो
हरीसंतो
१. पुंसि जसो डउ डग्रो वा ८।३।२० हे० । २. ङसो वा ५। १५ वर० ।
३. टोणा ८ । ३ । २४ हे० ।
४. चतुरो वा ८।३।१७ हे० ।
५. ङसि - ङसो: पुं-क्लीबे वा ८।३।२३ हे ।