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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
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(घ ) ह्र = ण्ह
जण्हू < जगुः-हू के स्थान पर ग्रह और उकार को दीर्घ ।
वरही< वह्निः- , , और इकार को दीर्घ । (ङ) ण = बह
अवरोहोर अपराह:-4 के स्थान पर व, ह के स्थान पर ण्ह ।
पुव्वण्हो पूर्वाह्नः-संयुक्त रेफ का लोप, व को द्वित्व और आ को अत्व तथा इ. के स्थान में ग्रह । (च) क्ष्ण = ण्हतिण्हं<तीक्ष्णम्-ती को हस्व, क्ष्ण के स्थान में ह ।
सण्हं ८ श्लक्षणम्-संयुक्त ल को लोप, मूर्धन्य ५ को दन्त्य स, क्षण के स्थान में पह।
क्ष्म = ण्ह - सहं सूक्ष्मम्-सू के स्थान पर स और क्ष्म को ह । ( ५६ ) संस्कृत का संयुक्त वर्ण ह प्राकृत में ल्ह हो जाता है । कल्हारं< कलारम्-ह्र के स्थान में ल्ह । पल्हाओ< प्रह्लादः- ,
( ५७ ) संस्कृत का ज्ञ वर्ण प्राकृत में विकल्प से ज होता है, पर पदमध्ध में आने से ज्ज होता है।
अहिज्जो, अहिण्णो अभिज्ञः - भ के स्थान पर ह, पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर विकल्प से ज्ज, विकल्पाभाव में ण्ण ।
अज्जा, आणा< आज्ञा-पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर ज, विकल्पाभाव में णा।
अप्पज्जो, अप्पण्णू आत्मज्ञः- आत्म के स्थान पर अप्प, ज्ञ के स्थान पर पदमध्य में रहने से ज, विकल्पाभाव में ण्ण ।
इंगिअज्जो, इंगिअण्ण <इंगितज्ञ:-पदमध्य में ज्ञ के रहने से विकल्प से ज. विकल्पाभाव में ण्ण।
देवज्जो, देवण्णू - दैवज्ञः- ऐकार को एकार, पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर विकल्प से ज्ज, विकल्पाभाव में ण्ण ।
पज्जा, पण्णा< प्रज्ञा-पदमध्य में ज्ञ के रहने से ज्ञ को विकल्प से ज्ज तथा विकल्पाभाव में ण्ण।
पज्जो, पण्णो< प्राज्ञः- ... - मणोज्जं, मणुण्णं < मनोजम्- .... सव्वज्जो, सव्वण्णू सर्वज्ञ:--