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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण १३३ (घ ) ह्र = ण्ह जण्हू < जगुः-हू के स्थान पर ग्रह और उकार को दीर्घ । वरही< वह्निः- , , और इकार को दीर्घ । (ङ) ण = बह अवरोहोर अपराह:-4 के स्थान पर व, ह के स्थान पर ण्ह । पुव्वण्हो पूर्वाह्नः-संयुक्त रेफ का लोप, व को द्वित्व और आ को अत्व तथा इ. के स्थान में ग्रह । (च) क्ष्ण = ण्हतिण्हं<तीक्ष्णम्-ती को हस्व, क्ष्ण के स्थान में ह । सण्हं ८ श्लक्षणम्-संयुक्त ल को लोप, मूर्धन्य ५ को दन्त्य स, क्षण के स्थान में पह। क्ष्म = ण्ह - सहं सूक्ष्मम्-सू के स्थान पर स और क्ष्म को ह । ( ५६ ) संस्कृत का संयुक्त वर्ण ह प्राकृत में ल्ह हो जाता है । कल्हारं< कलारम्-ह्र के स्थान में ल्ह । पल्हाओ< प्रह्लादः- , ( ५७ ) संस्कृत का ज्ञ वर्ण प्राकृत में विकल्प से ज होता है, पर पदमध्ध में आने से ज्ज होता है। अहिज्जो, अहिण्णो अभिज्ञः - भ के स्थान पर ह, पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर विकल्प से ज्ज, विकल्पाभाव में ण्ण । अज्जा, आणा< आज्ञा-पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर ज, विकल्पाभाव में णा। अप्पज्जो, अप्पण्णू आत्मज्ञः- आत्म के स्थान पर अप्प, ज्ञ के स्थान पर पदमध्य में रहने से ज, विकल्पाभाव में ण्ण । इंगिअज्जो, इंगिअण्ण <इंगितज्ञ:-पदमध्य में ज्ञ के रहने से विकल्प से ज. विकल्पाभाव में ण्ण। देवज्जो, देवण्णू - दैवज्ञः- ऐकार को एकार, पदमध्य में रहने से ज्ञ के स्थान पर विकल्प से ज्ज, विकल्पाभाव में ण्ण । पज्जा, पण्णा< प्रज्ञा-पदमध्य में ज्ञ के रहने से ज्ञ को विकल्प से ज्ज तथा विकल्पाभाव में ण्ण। पज्जो, पण्णो< प्राज्ञः- ... - मणोज्जं, मणुण्णं < मनोजम्- .... सव्वज्जो, सव्वण्णू सर्वज्ञ:--
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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