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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
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मई, मयं मृतम् - ऋ को अ, त को ड, विकल्पाभावे में तकार का लोप तथा अ स्वर को श्रुति । वेडिसो, वेअसो
वेतसः -त को ड और इत्व, विकल्पाभाव पक्ष में का
लोप और अ स्वर शेष ।
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सुकडं, सुकयं सुकृतम् — ककारोत्तर ऋकार को अ, त कोड, विकल्पाभाव में त का लोप, अ स्वर शेष तथा यश्रुति ।
(ङ) त = ण -
अणिउँतयं अतिमुक्तकम् —त के स्थान पर ण, मकार का लोप, शेष उ को अनुनासिक, संयुक्त क का लोप, अन्तिम क का लोप, अ स्वर शेष और यश्रुति । गब्भिणो गर्भितः - संयुक्त रेफ का लोप, भ को द्वित्व, पूर्ववर्ती महाप्राण के स्थान पर अल्पप्राण त कोण विसर्ग को ओत्व ।
(च) त = र
सत्तसप्ततिः - संयुक्त प का लोप, त को द्वित्व और ति के स्थान पर रि
तथा दीर्घ ।
( छ ) त = ल
अलसी अतसी - त के स्थान पर ल ।
सालवाहणो सातवाहनः —त के स्थान पर ल, न को स्व, विसर्ग को ओस्त्र | पलिलं, पलिअं पलितम् —त के स्थान पर विकल्प से ल, विकल्पाभाव पक्ष मेंत का लोप, अ स्वर शेष ।
( ज ) त = व—
आवज्जं, आज्जं आतोद्यम्-त के स्थान पर विकल्प से व और द्य को ज्जा । पीवलं, पीअलं < पीतलम् —त के स्थान पर विकल्प से व, विकल्पाभाव पक्ष मेंत का लोप और अ स्वर शेष ।
( झ ) त = ह -
विहत्थी < वितस्तिः—त के स्थान पर ह और स्ति के स्थान पर थी । काहलो, कायरो कातर: - त के स्थान पर विकल्प से ह माहुलिंगं, माउलिंगं मातुलिङ्गम्-त को विकल्प से ह, त का लोप और उ स्वर शेष ।
का
और रेफ को ल ।
विकल्पाभाव पक्ष में
वसही, वसई वसतिः -त को विकल्प से ह, विकल्पाभाव पक्ष में तकार
लोप और इ स्वर शेष तथा दीर्घ ।
(२१) संस्कृत का थ वर्ण प्राकृत में ढ, ध और ह में परिवर्तित हो जाता है । ( क ) थ = ढ–
पढमो प्रथमः-थ को ढ और अनुस्वार को ओत्व ।