________________
१२५
अभिनब प्राकृत-व्याकरण छेत्तं क्षेत्रम्-क्षको छ। अच्छि < अक्षि-पद के मध्य में क्ष के रहने से क्ष के स्थान पर च्छ । उच्छू र ईक्षुः-इ के स्थान पर उत्व, पद के मध्य में क्ष के होने से उछ । उच्छा < उक्षा-पद के मध्य में होने से क्ष के स्थान में उछ । रिच्छो<ऋक्ष:- के स्थान पर रि और पद के मध्य में होने से क्ष को च्छ । कच्छो ८ कक्षः-पद के मध्य में होने से क्ष के स्थान में छछ । कच्छा कक्षा- , " " कुच्छी <कुक्षि:- "
" " कुच्छेअयं कौक्षेयकम्-औकार को उत्व, पके मध्य में ध के होने से च्छ, य और क का लोप, अ स्वर शेष अन्तिम में य श्रुति ।
दच्छो< दक्षः-पद के मध्य में होने से क्ष को उछ । पच्छीणं< प्रक्षीणम्- , " मच्छिआ< मक्षिका- " " लच्छी< लक्ष्मी:वच्छं < वक्षस्वच्छो-वृक्षःसरिच्छो< सदृक्ष:- ..
सारिच्छंद सादृश्यम्(ग)क्ष = झ
मीण क्षीणं-क्ष के स्थान पर झ ।
झिज्जइ<क्षीयते-क्ष के स्थान पर झ, ईकार को हस्व, य को ज और द्वित्व, विभक्ति चिह्न इ।
पज्झीणं प्रक्षीणम्-पद मध्य में होने से क्ष के स्थान पर ज्झ । ( ३९ ) संस्कृत के संयुक्त वर्ण एक और स्क के स्थान में ख होता है, पर पद के मध्य में आने से क्ख हो जाता है। (क) क = खनिक्खं<निष्कम्-पद के मध्य में ष्क रहने से क्ख । पोक्खरं पुष्करम् - पोक्खरिणी< पुष्करिणी-, " (ख) स्क = क्खअवक्खन्दो< अवस्कन्दः-पद के मध्य में स्क रहने से क्ख । खंदो< स्कन्दः-पद के आदि में स्क रहने से ख आदेश । खंधो-८ स्कन्ध:खंधावारोस्कन्धावार:-...
"