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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
आहरणं< आभरणम्-भ के स्थान पर है।
दुल्लहो<दुर्लभः- रेफ का लोप और ल को द्वित्व तथा भ के स्थान पर ह । विशेष—(क) स्वर से पर में नहीं रहने से
संखो< शङ्खः-यहां ख स्वर से पर नहीं है, बल्कि अनुस्वार व्यञ्जन से परे है। संघो< सङ्कः-, घ , " " कंथा कन्था-, थ ,. " "
खंभो< स्तम्भ:-, भ .. , ( ख ) उपयुक्त वर्णों के असंयुक्त होने पर है आदेश होता है, संयुक्त होने से नहीं । जैसे
अक्खइ< अक्षति–ख के स्थान पर ह नहीं हुआ। अग्घइ< अर्घति-घ के स्थान पर कत्थइ< कथयति—थ के , , बन्धइ बन्धति-ध के ,
लब्भइ < लभते-भ के , (ग) गज्जइ घणो< गर्जयति धनः- प्रादि में रहने से ह नहीं हुआ।
गज्जन्ते खे मेहा< गर्जयन्ते खे मेघाः-ख आदि . , , पखलो< प्रखल:-प्रायः कथन के कारण ह नहीं हुआ। पलंबघणो< प्रलम्बघ्नः- , " अधीरो< अधीर:अधण्णो अधन्य:- , जिणधम्मो< जिनधर्म:- , पणट्ठभओ< प्रनष्टभय:- ,
( १०६ ) स्वर से पर में रहनेवाले असंयुक्त और अनादि ट, ठ और ड के स्थान में क्रमशः ड, ढ और ल आदेश होते हैं ।' उदाहरण
मढो< मठ:-3 के स्थान में ढ हुआ है। सढो< शठः- " " कमढोर कमठ:- , " कुढारो< कुठार:-, णडो< नट:–ट के स्थान में ड हुआ है। भडो< भट:
१. ठो ढः ८।१।१९६; टो डः ८।१।१९५; डो लः ८।१।२०२. हे। .