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अभिनव प्राकृत व्याकरण
मंडुक्को मंडूकः - अन्त्य व्यञ्जन क को द्वित्व । उज्जू < ऋजु—अन्त्य व्यञ्जन ज को द्वित्व । सोत्तम् स्रोतम् - अन्त्य व्यञ्जन त को द्वित्व । पेम्म प्रेमम् — अन्त्य व्यञ्जन म को द्वित्व । विड्डाव्रीडा - अन्त्य व्यञ्जन ड को द्वित्व । जोव्वणं यौवनम् - अनन्त्यमध्य व्यञ्जन व को द्वित्व । बहुत्तं < बहुत्वम् — अन्त्य व्यञ्जन त को द्वित्व ।
( १४६ ) सेवादिगण के शब्दों में प्राचीन प्राकृत आचार्यों के मतानुसार कहीं अस्य और कहीं अनन्त्य व्यञ्जनों को विकल्प से द्वित्व होता है ।
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उदाहरण
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सेव्वा < सेवा - अन्त्य व्यञ्जन व को द्वित्व |
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विहित्तो, विहिओ विहितः - अन्त्य व्यञ्जन त को विकल्प से द्वित्व | विकल्पाभाव में त लोप और अ स्वर शेष, विसर्ग को ओर ।
कोहलं, को उहलं कौतूहलम् - अन्त्य व्यन्जन ल को द्वित्व |
वाउल्लो, वाउलो < व्याकुल: — संयुक्तान्त्य य का लोप, क का लोप, उ स्वर शेष और विकल्प से ल को द्वित्व ।
ड्डु, नीडं, नेडं नीडम्- — अन्त्य व्यञ्जन ड को विकल्प से द्वित्व । नक्खा, नहा < नखा: - अन्त्य व्यञ्जन ख को विकल्प से द्वित्व |
माउक्कं, माउअं < मृदुकम् — ऋ को आ, द का लोप, शेष ऋ के स्थान पर उत्व और विकल्प से क को द्वित्व |
एक्को, एओ एकः - अन्त्य व्यञ्जन क को द्वित्व, विकल्पाभावपक्ष में क का लोप अ स्वर शेष, विसर्ग को ओत् ।
थुल्लो, थोरो स्थूल :- संयुक्तादि स् का लोप, ल को द्वित्व ।
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हुत्तं - हूअं हुतम्-त को द्वित्व, विकल्पाभाव पक्ष में त का लोप, अ स्वर
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शेष |
१. सेवादौ वा ८२६. हे० । सेवादि गरण में निम्न शब्द परिगणित हैंसेवा कौतूहलं देवं विहितं मखजानुनी । पिवादयः नखा शब्दा एतादाद्या यथार्थंकाः || त्रैलोक्यं करिणकारश्च वेश्या मूर्जं च दुःखितम् । रात्रिविश्वासनिश्वासा मनोऽस्तेश्वररश्मयः ॥ दीर्घे शिवतूष्णीक मित्र पुष्पादिदुर्लभाः । दुष्करोनिष्कृपः कर्मकरेष्वासपरस्परम् । नायकाद्यास्तथा शब्दाः सेवादिगरणसम्मताः ॥ कल्पलतिका ॥