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अभिनव प्राकृत-व्याकरण उक्कत्तिओ< उत्कर्तकः–त लोप और क को द्वित्व, रेफ का लोप, ऋ को इकार, त को द्वित्व, क लोप, अ स्वर शेष और ओत्व ।
कत्तरी< कर्तरी-रेफ का लोप । मुत्तीरमूर्तिः–रेफ का लोप और इकार को दीर्घ । मुत्तो< मूर्त:-रेफ का लोप, त को द्वित्व और विसर्ग को ओत्व ।
मुहुत्तोर मुहूर्त:-हू के दीर्घ ऊकार को हस्व, रेफ का लोप, विसर्ग को ओत्व।
( १९९) हस्व से पर में वर्तमान थ्य, श्च, त्स और प्स के स्थान में छ आदेश होता है । पर निश्चल शब्द के श्च को छ आदेश नहीं होता है। उदाहरण
पच्छंदपथ्यम्-थ्य के स्थान पर च्छ हुआ है। पच्छा< पथ्या- , मिच्छा< मिथ्या- ,
"
" रच्छा< रथ्या- , पच्छिमं< पश्चिमम्-श्व के स्थान पर छ आदेश हुआ है। अच्छेरं< आश्चर्यम्उच्छाहो< उत्साहः स के स्थान पर च्छ आदेश हुआ है। मच्छरो मत्सरवच्छो< वत्सःलिच्छइ< लिप्सति- के स्थान पर च्छ आदेश । जुगुच्छइ< जुगुप्सति- , " अच्छरा< अप्सराऊसारिओर उत्सारितः-हस्व से पर में रहने से उक्त नियम नहीं लगा। णिच्चलो< निश्चल:-निश्चल शब्द में भी उक्त नियम नहीं लगता।
तत्थं, तच्चं<तथ्यम्-आर्ष रूप होने से उक्त नियमन ही लगता। ( १६० ) संयुक्त द्य, प्य और र्य के स्थान में ज आदेश होता है। यथा
मज्जं< मद्यम्-द्य के स्थान पर ज । अवज्जं< अवद्यम्- " " वेज्जम् < वेद्यम्- " " विज्ञादविद्या- " "
१. ह्रस्वात् थ्य-श्च-त्स-प्सामनिश्चले ८।२।२१. । हे। २. द्य-य्य य जः ८।२।२४, । हे।