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अभिनव प्राकृत-व्याकरण पुट्ठो< पृष्ठः-पृ में रहनेवाली के स्थान पर उकार और ष्ट के स्थान पर छ, विसर्ग को ओत्व।
कटुं< कष्टम्-ष्ट के स्थान पर छ।
सुरटो< सुराष्ट्र:-रा को हस्व, ष्ट के स्थान पर ट्ट, रेफ का लोप और विसर्ग को ओत्व ।
इटो< इष्ट:-ष्ट को टु, विसर्ग को ओत्व । अणिट्रंद अनिष्टम् -न को ण, ष्ट के स्थान पर ह। उट्टो< उष्ट्रः-ट के ष् का लोप और ट को द्वित्व ।
संदट्टो< संदृष्ट:-दृ में रहनेवाली के स्थान पर अ, ष् का लोप और ट को द्वित्व ।
( १५५) चैत्य शब्द के त्य को छोड़कर अन्य त्य के स्थान में च आदेश होता है।' जैसे
सञ्चं < सत्यम् - त्य के स्थान पर च हुआ है।
पञ्चओर प्रत्ययः-त्य के स्थान पर च और य लोप और अ स्वर शेष. ओत्व।
णिचं, निचं< नित्यम् --न के स्थान पर वैकल्पिक ण और त्य को च । पञ्चच्छं< प्रत्यक्षम्-त्य को च और क्ष के स्थान पर छ । (१५६ ) प्रत्यूष शब्द में त्य को च और ष को विकल्प से ह होता है। जैसे
पञ्चहो, पञ्चूसो< प्रत्यूष:-त्य को च और ष को ह । ( १६७ ) कुछ स्थलों में त्व, थ्व, द्व और ध्व के स्थान में क्रमशः च, छ, ज्ज और ज्झ आदेश होते हैं। यथा
भोच्चा< भुक्त्वा -त्व के स्थान पर च्व और क का लोप। . णच्चा< ज्ञात्वा-त्व के स्थान पर च ।
सोच्चार श्रुत्वारेफ का लोप, तालव्य श को दन्त्य स, उकार को ओत्व और त्व को च ।
पिच्छी< पृथ्वी-थ्व को च्छ हुआ है और पृ की ऋ को इकार । विज< विद्वान् -द्वा के स्थान पर ज और न को अनुस्वार । बुज्झा< बुवा-व के स्थान पर ज्झ हुआ है।
१. त्यो चैत्ये ८।२।१३. हे। .. २. प्रत्यूषे षश्च हो वा ८।२।१४. हे० । ३. त्व थ्व द्व-ध्वां च-छ-ज-झाः क्वचित ८१२।१५. हे ।