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अभिनव प्राकृत-व्याकरण विउदं< विवृतम्-व का लोप, के स्थान पर उ और त के स्थान में द। संजादो< संयातः-य के स्थान पर ज और त को द । संपदि ८ संप्रति-प्र के स्थान पर प और त को द।
पडिवही ८ प्रतिपत्तिः-प्रति उपसर्ग की ति के स्थान पर डि, ५ को व और त को द तथा इकार को दीर्घ ।
विशेष-त के स्थान पर द होना शौरसेनी की विशेषता है। साधारण प्राकृत में शब्दरूप निम्न प्रकार बनेंगे।
उऊ <ऋतु:- के स्थान पर उ और त का लोप तथा उ को दीर्घ । रअअं< रजतम्-ज और त का लोप तथा इनके स्थान पर अ, अ स्वर शेष । एअं< एतम्--- त का लोप और उसके स्थान पर अ स्वर शेष ।
गओ< गतः–त का लोप और उसके स्थान पर अ स्वर शेष, विसर्ग का ओत्वा
संपअं< साम्प्रतम् - म् का अनुस्वार, प्र के स्थान पर प और त का लोप, अ स्वर शेष।
जओ< यतः—य का ज और त का लोप, अ स्वर शेष, विसर्ग का ओत्व । तओ< ततः-त का लोप, अ स्वर शेष और ओत्व । कअं<कृतम्-त का लोप, अ स्वर शेष और म् का अनुस्वार । हआसो< हताश:-त का लोप, अ स्वर शेष तथा श का स । ताओ< तात:-त का लोप अ स्वर शेष और विसर्ग का ओत्व ।
( ११२) दंश और दह, प्रदीपि और दीप धातुओं के दकार के स्थान में क्रमश: ड, ल और वैकल्पिक ध आदेश होते हैं। जैसे
डसइ< दशति-द के स्थान पर ड, तालव्य श के स्थान पर दन्त्य स तथा तकार का लोप और इकार स्वर शेष ।
डहइ<दहति-द के स्थान पर ड, त और इ स्वर शेष।
पलीवेइ< प्रदीपयति-द के स्थान पर ल, प का व और य का संप्रसारण इ, गुण तथा त का लोप और इ स्वर शेष ।
पलित्तं< प्रदीप्तम्-द का ल, हस्व, प का लोप और त को द्वित्व ।
धिप्पइ, दिप्पइदीप्यति-द के स्थान पर वैकल्पिक ध, य लोप और प को द्वित्व, त लोप और इ स्वर शेष ।
१. दंश-दहोः ८।१।२१८. हे०। प्रदिपि-दोहदे लः ८११।२२१. हे० । दीपौ धो वा
८।१।२२३. हे० ।