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अभिनव प्राकृत-व्याकरण गाढ-जोव्वणा< गाढयौवना-कल्पलतिका के नियमानुसार सामान्यतः उत्तर'पदस्थ य का भी ज होता है।
अजोग्गो अयोग्यः
अहाजाअं< यथाजातम्-आदि य का लोप हुआ है और अ स्वर शेष है, थ के स्थान पर ह तथा त का लोप और अ स्वर शेष ।
(१२३ ) तीय एवं कृत् प्रत्ययों के यकार के स्थान में द्विरुक्त ज (ज) विकल्प से आदेश होता है। यथादीज्जो, दीओ< द्वितीयः-तीय प्रत्यय के यकार के स्थान पर ज । उत्तरिज्ज, उत्तरीअं< उत्तरीयः-य के स्थान पर ज ।
करणिज्जं, करणीअं< करणीयम् -अनीय प्रत्यय के य के स्थान पर विकल्पाभाव पक्ष में य का लोप और अ स्वर शेष । रमणीज्जं, रमणीअं< रमणीयम्- ,
, विम्हयणिज्जं, विम्हयणीअं< विस्मयनीयम्- , जवणिज्जं, जवणीअं< यवनीयम् - , . , , बिइज्जो, बीओ< द्वितीयः-तीय प्रत्यय के य के स्थान पर ज ।
पेज्जा, पेआर पेया-यत् प्रत्यय के य के स्थान पर विकल्प से ज, विकल्पाभावपक्ष में य का लोप और आ स्वर शेष ।
( १२५ ) युष्मद् शब्द के य के स्थान में त आदेश होता है । जैसे
तुम्हारिसोदयुष्मादृशः–य के स्थान में त तथा म के स्थान में म्ह तथा दृशः के स्थान पर रिसो हुआ है।
( १२५ ) यष्टि शब्द में य के स्थान पर ल आदेश होता है । यथालट्ठी- यष्टिः–य के स्थान पर ल और ष का लोप और ट को द्वित्व तथा ट
को ठ।
जोगव्यष्ट्रि
वेणु-लट्ठी< वेगु-यष्टि उच्छःलट्री ८ इक्षु-यष्टिः-इक्षु के स्थान पर उच्छु तथा शेष पूर्ववत् ।
महु-लट्ठी< मधु-यष्टिः–ध के स्थान पर ह, य को ल और ष का लोप, ट को द्वित्व, उत्तरवर्ती के ट स्थान पर ठ तथा दीर्घ ।
१. वोत्तरीयानीय-तीय-कृद्ये जः ८।१।२४८, हे०।२. युष्मद्यर्थपरे तः ८।१।२४६. हे । ३. यष्ट्या लः ८।१।२४७. । हे० । ...
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