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अभिनव प्राकृत - व्याकरण
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(४६) जीर्ण शब्द में, ईकार और उकार दोनों होते हैं । जुण्णो, जिणोजीर्णः
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(६७) हीन और विद्दीन शब्दों में ईकार और ऊकार होते हैं। जैसेहूणो, हीणहीनः विहूणो, विहीणो विद्दीनः
;
(६८) तीर्थ शब्द के ईकार का ऊकार तब होता है, र्थ ह हो गया हो । यथा
३
यथा
कार ।
तूहं तीर्थम् - र्थ के स्थान में ह हुआ है और ईकार को तित्थं < तीर्थम् —र्थ के स्थान में ह नहीं होने से ऊकार का अभाव है ।
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जब कि उसके आगे का
(६९) पीयूष, आपीड, विभीतक, कीदृश और ईदृश शब्दों में ईकार को एकार होता है। जैसे
ऊसं पीयूषम्
आमेलो <आपीड:- पकार को मकार और ईकार को एकार तथा ड को ल । बहेडओ < विभीतक:रिसो< कीदृश:
रसोईदृश:
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( ७०) नीड और पीठ शब्दों में ईकार को विकल्प से एत्व होता है ।" जैसेडं, नीडं नीडम् पेढं, पीढं पीठम् - (ठ को ढ हुआ है । ( ७१ ) मुकुलादिगण के शब्दों में आदि उकार के स्थान में अकार आदेश होता है। जैसे
१. उजीर्णे ८।१।१०२. जीर्णशब्दे इत उद् भवति । हे० ।
२. ३ ऊर्हीन विहीने वा ८।१।१०३. अनयोरीत ऊत्वं वा भवति । हे० ।
३. तीर्थे हे ८।१।१०४. तीर्थशब्दे हे सति ईत उत्वं भवति । हे० ।
प्राकृत प्रकाश में इसे मुकुटादिगरण कहा है।
मडलं
4 मुकुलम् - क का लोप होकर उकार शेष है ।
गरुइ गुर्वी — व् के स्थान पर उ हुआ है और र तथा इ पृथक् हो गये हैं ।
मउडं मुकुटम् – का का लोप और ट के स्थान पर ड हुआ है ।
K
जह्नुट्ठिलो, जहिट्ठिलो 4 युधिष्ठिर:रः य के स्थान पर ज, इकार के स्थान पर उत्व ।
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४. एपीयूषापीड - विभीतक - कीदृशेदृशे ८।१।१०५. एषु ईत एत्वं भवति । हैं० ।
५. नीड-पीठे वा ८।१।१०६. अनयोरीत एत्वं वा भवति । हे० ।
६. उतो मुकुलादिष्वत् ८।१।१०७, मुकुल इत्येवमादिषु शब्देषु श्रादेरुतोत्वं भवति । ० । मुकुटं मुकुलं गुर्वी सुकुमारो युधिष्ठिरः ।
गुरूपरि शब्दौ च भुकुदादिरयं गरणः । प्राकृतमंजरी ।