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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
( ९८ ) कौक्षेयक और पौरादिगण के शब्दों में औ के स्थान पर अउ आदेश होता है । यथा
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कक्खेअओ, कुक्खेअओ कौक्षेयकः ।
पउरो <पौर:
परिसं पौरुषम् rests:
उणं मौनम्
कउला कौला:
( ९९ ) अब और अप उपसर्गों के आदि स्वर का आगेवाले सस्वर व्यंजन के साथ विकल्प से ओत् होता है। जैसेअसो, अवआसो
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अवकाशः - अब के स्थान पर ओ और क का लोप,
स्वर शेष |
ओसरइ, अवसरइ < अपसरति - अप के स्थान पर ओ, त का लोप और
स्वर शेष |
ओहणं, अअहणं <अपघनम् — अप के स्थान पर ओ तथा घ के स्थान पर छ । विशेष - निम्न रूपों में यह नियम लागू नहीं होता
करवो कौरव:
अवगअं < अपगतम् - प के स्थान पर च ।
अवसदो < अपसदः
( १०० ) आगेवाले सस्वर व्यञ्जन के साथ उप के आदि स्वर के स्थान में विल्प से तू और ओत् आदेश होते हैं। जैसे
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सउहं सौम्
मउली < मौलि
सउरा दसौरा:
१. उः पौरादौ च ८ । १ । १६२. हे० ।
सौन्दर्यादिगरण के शब्द -
पौरादिगरण के शब्द - पौरपौरुषशैलानि,
ऊहसिअं, ओहसिअं < उपहसितम् - उप के स्थान पर ऊ और ओ हुआ है I ऊआसो, ओआसो उपवासः - उप के स्थान पर ऊ और ओ, व का लोप
और स्वर शेष |
इन सामान्य स्वरविकृति नियमों के पश्चात् व्यञ्जनविकृति के नियमों का निर्देश किया जाता है
( १०१ ) स्वर से पर में रहनेवाले अनादिभूत तथा दूसरे किसी व्यञ्जन से
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सौन्दर्यं शौण्डिको दौवारिकः शौराडोपरिष्टकम् |
कौक्षेयः पौरुषः पौलोमि मौजदौस्याधिकादयः ॥ कल्पलतिका ।
गौडक्षौरितकौरवाः ।
कल मौलिवौचित्यं, पौराकृतिगरणा मता । - कल्पलतिका । २. श्रवापोते ८।१।१७२. हे० ।
३. ऊच्चोपे ८।१।१७३. हे० ।