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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
केला सो कैलाश : - ऐकार का एकार ।
केढवो कैतव :- ऐकार का एकार और त के स्थान पर ढ ।
वेहव्वं वैधव्यम् — ऐकार का एकार, ध के स्थान पर है, और य लोप तथा व् को द्वित्व |
१
( ९४ ) दैत्यादि गण में ऐ के स्थान में अइ आदेश होता है । यह नियम ए का अपवाद है । ज
जैसे
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दचं दैत्यम् - ऐ के स्थान पर अइ, त्य के स्थान पर च ।
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न्य के स्थान पर oण |
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दइणं दैन्यम्— अइसरिअं ऐश्वर्यम्भइरवो भैरव : - ऐकार का एकार
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दइवअं दैवतम् - ऐकार का एकार, त लोप ओर स्वरशेष । इआलीओ वैतालिक: ऐकार का एकार त लोप, स्वर शेष तथा क लोप और स्वर शेष ।
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व का लोप और र्यम् का रिअं ।
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वइएसो वैदेश : - ऐकार का अइ, द लोप और स्वर शेष । वइएहो < वैदेह—
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99
वइअब्भो वैदर्भ :- ऐकार का अइ, द लोप, स्वर शेष, रेफलोप और भको द्वित्व, पूर्ववर्ती भ को ब ।
इस्सारो < वैश्वानर : - ऐकार का अइ, व लोप, स को द्वित्व, न
कोण ।
कइअवं कैतवम् - ऐकार का अइ, त लोप, स्वर शेष ।
वइसाहो < वैशाख : - ऐकार का अइ, ख के स्थान में ह । वइसालो | वैशाल: - ऐकार का अह ।
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( ९५ ) वैरादिगण में ऐकार के स्थान में विकल्प से अइ आदेश होता है । यथावइरं, वेरं < वैरम् – ऐकार के स्थान पर अइ, विकल्पाभाव में ए । कइलासो, केलासो< कैलाश:कइरवं, केरवं < कैरवम्
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१. श्रइदैत्यादौ च ८ । १ । १५१. हे० । दैत्यादि गरण के शब्द
दैत्यादौ वैश्यवैशाख वैशम्पायनकैतवाः ।
२.
वैरादौ वा ८ । १ । १५२. हे० । वैरादिगरण के शब्द -
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स्वैर वैदेहवै देशक्षेत्र वैषयिका श्रपि ।
दैत्यादिष्वपि विज्ञेयास्तथा वैदेशिकादयः ॥ कल्पलतिका
दैत्यः स्वैरं चैत्यं कैटभवैदेहको च वैशाख ।
वैशिकभैरव वैशम्पायन वैदेशिकाश्च दैत्यादिः ॥ - प्राकृत मंजरी ।