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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
सोअमल्लं सौकुमार्यम् - र्य के स्थान पर ल, लकार का द्विस्व, क का लोप और शेष उकार के स्थान पर अ ।
गलोई गुडुची - गकारोत्तरवर्ती उकार के स्थान पर अ, ड के स्थान पर ल, उकार का ओ और च का लोप ।
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विशेष – कहीं-कहीं प्रथम उकार का आकार भी होता है । यथाविद्दाओ विद्रुतः - द्र में से रेफ का लोप और द को द्वित्व तथा उकार को आ हुआ है।
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( ७२ ) यदि गुरु शब्द के आगे स्वार्थ में क प्रत्यय किया गया हो, तो उस गुरु शब्द के आदि उकार को विकल्प से अ आदेश होता है । जैसे
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गरुओ, गुरुओ 4 गुरुक:
स्वार्थिक क के अभाव में गुरुओ (गुरुकः) होता है ।
(७३) भ्रुकुटी शब्द में उकार के स्थान पर इकार होता है। जैसे
भिउडि भ्रुकुटी - भ्रु के रेफ का लोप और उकार के स्थान पर इत्व, क का लोप तथा ट के स्थान पर ड ।
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(७४) पुरुष शब्द में रु के उकार को इस्त्र होता है । जैसे
पुरसो पुरुष:-रु के स्थान पर रि हुआ है
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परिसं पौरुषम् - पौ के स्थान पर प + उ रु के स्थान पर रि ।
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(७५) क्षुत शब्द में आदि के उकार को ईत्व होता है । छीअंतम् - क्षु के स्थान पर छी और त का लोप ।
( ७६ ) सुभग और मुसल शब्दों में उकार को विकल्प से ऊत्व होता है ।" यथासूहओ, सुहओ सुभगः सु के स्थान पर सू, भ के स्थान पर ह और
ग का लोप ।
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यथा
मूसलं, मुसलं
मुसलम् - विकल्पाभाव पक्ष में मुसलं ।
( ७७ ) उत्साह और उच्छन्न शब्दों को छोड़कर इसी प्रकार के अन्य शब्दों
और छके पर में रहने पर पूर्व के आदि उकार का दीर्घ ऊकार होता है। जैसे
१. गुरौ के वा ८।१।१०६. । हैं० ।
२. इभ्रुकुटौ ८।१।११०. । हे० ।
३. पुरुषे रोः ८।१।१११. । हे० ।
४. ई: क्षुते । १ । ११२. । हे० ।
५. ऊत्सुभग-मुसले वा ८।१।११३. । हे० । ६. श्रनुत्साहोत्सन्ने सच्छे ८।१।११४. | ० |