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हो गया है।
अभिनव प्राकृत - व्याकरण
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णीसहो निस्सहः – निर् के र. का लोप होने से नि, णि को दीर्घ
णीसासो निःश्वास: -
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विशेष – रेफ का लोप नहीं होने पर ईकार नहीं होता । जैसेरिओ द निरयः — रेफ का लोप न होने से णि को दीर्घं नहीं हुआ है
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णिस्सहो < निस्सह:( ६३ ) द्विशब्द और नि उपसर्ग के इकार का उ आदेश होता है । कहींकहीं यह नियम लागू भी नहीं होता और कहीं विकल्प से उत्व और ओत्व होता
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है । उदाहरण
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णिवडइ < निपतति-नि उपसर्ग के विषय ( ६४ ) कृ धातु के प्रयोग में द्विधा शब्द के होता है। जैसे
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दुवाई, दुवे - द्वि शब्द में नित्य उत्व हुआ दुवअनं < द्विवचनम् -
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दुअणो, दिउणो द्विगुणः - विकल्प से उत्व होने पर दुअणो और विकल्पाभाव पक्ष में दिउणो ।
दुइओ, दिउओ द्वितीयः - विकल्पाभाव पक्ष में दिउओ बनता है । दिओ <द्विजः - द्विशब्द के विषय में नियम की अप्रवृति । दिरओ द्विरदः
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दोवअणम् [ द्विवचनम् - द्वि शब्द को ओत्व हुआ है। मज्जइनिमज्जति नि उपसर्ग के इकार को उत् । णुमण्णो निमग्नः -
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में नियम की अप्रवृत्ति ।
इकार का ओस्व और उत्व
दोहाकअं द्विधा कृतम् - ओकार हुआ है । दुहाकअं द्विधा कृतम् - उकार हुआ है । दोहा किज्जइद्विधा क्रियते-ओकार हुआ है । दुहा - किज्जइद्विधा क्रियते — उकार हुआ है।
विशेष — कृज् का प्रयोग नहीं रहने से दिहा-गर्म द्विधागतम् में यह नियम लागू नहीं होता । कहीं-कहीं केवल (क्रून् रहित ) द्विधा में भी उत्व पाया जाता है । यथा
१. द्विन्योरुत् ८ १ ४. द्विशब्दे नावुपसर्गे च इत उद् भवति । हे० ।
२.
श्रोच्च द्विधाकृगः ८ २११६७. द्विधाशब्दे कृग्धातोः प्रयोगे इत प्रोत्वं चकारादुत्वं च भवति । हे० ।