________________
अभिनव प्राकृत-व्याकरण (५८) मयूर और मयूख शब्द में 'यू' के सहित आदि वर्णस्थ अकार को विकल्प से मोकार होता है।' उदाहरण
मोरो, मऊरो मयूर:—यू सहित मकारोत्तर अकार को ओकार हुआ है । विकल्पाभाव पक्ष में यकार का लोप होने से मजरो बना है।
मोहो, मऊहो < मयूख:- , (९९) चतुर्थी और चतुर्दशी शब्द में 'तु' के सहित आदि अकार को विकल्प से ओकार होता है। यथा
चोत्थी, चउत्थी < चतुर्थी -तु सहित चकारोत्तर अकार को ओ हुआ है और रेफ का लोप होने से थ को द्वित्व तथा पूर्ववर्ती थ् को त् हुआ है।
चोदसी, चउद्दशी - चतुर्दशी–तु सहित चकारोत्तर अकार को ओ हुआ है और रेफ का लोप होने से द को द्वित्व हुआ है।
(६० ) इक्षु और वृश्चिक शब्द के इकार को उकार होता है। यथा-उच्छू इक्षु:-क्ष के स्थान पर छादेश, छ को द्वित्व, पूर्ववर्ती छ को च किया है तथा इस सूत्र से इकार को उकार हुआ है।
विच्छुओ< वृश्चिक:-ऋकार को इकार, श्व के स्थान पर च्छ और इकार के स्थान पर उकार हुआ है।
(६१) जब इति शब्द किसी वाक्य के आदि में प्रयुक्त होता है, तब तकारवाले इकार का अकार हो जाता है। जैसेइअजं, पिआवसाणे < इति यावत् प्रियावसाने-इति के स्थान पर इअ हुआ है।
इअ विअसिअ-कुसुमसरो< इति विकसितकुसुमशरः- ,,,
इअ उअह अण्णह वअणं< इति पश्यतान्यथा वचनम् ,, , विशेष—इति शब्द के वाक्यादि में प्रयुक्त नहीं रहने पर अत्व नहीं होता । जैसे
पिओत्ति < प्रिय इति–वाक्य के आदि में इति शब्द के न पाने से इअ नहीं हुआ, बल्कि इ का लोप होकर तू को द्वित्व हो गया है। पुरिसोत्ति < पुरुष इति- ,
, ( ६२ ) जहां निर् के रेफ का लोप होता है, वहां नि के इकार का ईकार हो जाता है। जैसे
१. मयूरमयूखयोर्वा वा १८, वर० । २. चतुर्थी चतुर्दशयोस्तुना ११६. वर० । ३. उदिक्षुवृश्चिकयोः १।१५ । वर० । ४. इतौ तो वाक्यादौ ८।१।६१ । हे । ५. लुकि निरः ८।१।६३. निर्, उपसर्गस्य रेफलोपे सति इत ईकारो भवति। हे० ।