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आध्यात्मिक आलोक
. पारस के संयोग से जैसे लोहा स्वर्ण बन जाता है, वैसे ही षट्कर्म की साधना साधक को पुरुषोत्तम बना देती है और आत्मा परमात्मा बन जाता है ।
आवश्यकता है कि आज हम सब साधना का प्राण हर मानस में फूंकें, इससे समाज ऊंचा उठेगा और संसार का कल्याण होगा।
गृहस्थ को देवभक्ति १ गुरू सेवा २ स्वाध्याय ३ संयम ४ तप ५ और दान ६ इन षट्कर्मों का प्रतिदिन साधन करना चाहिये । शरीर को एक दिन भी खाना नहीं मिले या मलावरोध हो जाये तो क्षीण और बेचैन हो जाता है, तब आत्मिक षटकर्म के अभाव में क्या आत्मा क्षीण एवं अस्वस्थ नहीं होगी ? अवश्या
सैलाना२१-१०-६२