Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 19
________________ 11 आध्यात्मिक आलोक देखते-देखते उस वृद्ध का काम पूरा हो गया। यह था श्रीकृष्ण के काम करने का तरीका। जो काम कहके कराया जाता है उसकी अपेक्षा स्वयं करके कराया गया काम अधिक प्रिय होता है। यदि परिवार या दल के प्रमुख अपना कार्य स्वयं प्रारम्भ करें तो अन्य सदस्य उनका अनुकरण सहज ही करेंगे। आज भी संत लोग दूसरों से अपनी सेवा न लेकर अपना काम स्वयं करते हैं। यह स्वाश्रयी वृत्ति का नमूना है। पूर्वकाल के श्रावक स्वयं पौषधशाला में प्रमार्जन करते थे, तब उसका महत्त्व समझा जाता था। आज उपाश्रय का कचरा सेवकों से साफ कराया जाता है। इस प्रकार दूसरों पर असर नहीं पड़ सकता। ज्ञान की आवश्यकता - साधना की सफलता के लिये ज्ञानार्जन की भी बड़ी आवश्यकता है। बिना ज्ञान का जीवन सचमुच में नीवहीन महल की तरह है वास्तविक ज्ञान और विश्वास की भूमिका के बिना मनुष्य ऊंचा नहीं उठ सकता। शास्त्र में कहा है कि जो जीव अजीव को नहीं जानता वह संयम को, पाप-पुण्य को, तथा धर्म-अधर्म को कभी नहीं जानेगा। ऐसा अज्ञानी संयम या साधना क्या करेगा ? जैसा कहा है - जो जीववि न जाणइ, अजीवेऽवि न जाणइ । जीवाजीवे अजाणन्तो, कहं सो नाहीउ संजमं ।। द.अ. ४/१२/ प्रश्न हो सकता है कि ज्ञान-सम्पादन कैसे किया जाये ? बालक के लिये पाठ के रूप में ज्ञान ग्रहण करना कुछ सुगम हो सकता है परन्तु प्रौढ़ों के लिये ऐसा सहज नहीं। उनके मन में चंचलता बनी रहती है अतः आर्थिक सामाजिक विक्षेपों के बीच उनकी ज्ञान साधना कठिन होती है। स्वाध्याय के द्वारा वे प्रौढ़ भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिये एकाग्रता, तन्मयता और दृढ़-संकल्प के साथ अटूट लगन की भी आवश्यकता है । सत्प्रवृत्ति में अनुराग और दुष्प्रवृत्ति के त्याग के लिये ज्ञान का होना अत्यावश्यक है। राम की तरह आचरण करना या रावण की तरह यह ज्ञान के बिना कैसे जाना जा सकता है ? स्वाध्याय और ज्ञान - कुछ लोग कहते हैं कि हमारा धर्म सत्य और दयामय है, इसमें सीखना क्या है ? ठीक है, दया और सत्य पर धर्म का प्रासाद खड़ा है और महामनीषियों ने दया को धर्म का मूल कहा है, किन्तु ज्ञान के बिना दया को जानना और पालना भी तो सम्भव नहीं है। ज्ञान-वृद्धि का प्रमुख साधन स्वाध्याय है; साक्षात् गुरुवाणी

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