Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंमित श्री केसर विमल विरचित सूक्तावली याने सूक्तमुक्तावली जाषान्तर तथा अंतरगर्जित कथा सहित, जन समुदायने वांचवा जलवा माटे तैयार करावी प्रगट कर्त्ता श्रावक भीमसी माणेकनी वती शा. जाणजी माया. dj मांडवी साक गल्ली घर नं. २२५ - २३१. Jain Educationa International मुंबाइ कोलभाटलेन घर नं. २३ निर्णयसागर मुद्रालयमां बाळकृष्ण रामचंद्र घाणेकरे प्रसिद्ध कर्ताने माटे छापी. @ सवत् १९६७ ना पोस. सन १९११ जानेवारी. For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by B. R. Ghanekar, at the N. 8. Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay, and Published by Bhanji Maya, for Shravak Bhimsi Manek, Mandvi, Saka Lane, No. 225-231, Bombay. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. श्री सर्वज्ञ जाषित धर्ममां जीवनी पांच गति कही बे. तेमां मनुष्य, देवता, तिर्यंच ने नारकी, ए चार गति संसारमां चमरूप : अने पांचमी मोक्षगति ए बरी ठाम बेसवाने अनंतानंत सुखनुं धाम बे. ए पांचमी मोक्ष गतिए जवा माटे चार गतिमांनी फक्त एक मनुष्यगतिज नीसरणीरूप बे. - र्थात् मनुष्यगति सिवाय बीजी त्रण देवता, तीर्यंच ने नारकीनी गतिमांथी मोक्षमां जवातुं नथी; मात्र मनुष्यज मोक्ष मे - लवी शके बे. देवतानी गतिमां अपरंपार सुख साहेबी बे तथापि देवता पण मनुष्यगतिमां याववा इछे छे, केमके ज्यांथी मोहसुख मली शके बे. माटे चार गतिमां उत्तम मनुष्यगति पाम्या पढी पातुं जव मण न थाय ने परम पद एटले मोक्षसुख मले ए सारू मनुष्यनुं शुं करतव्य बे ते अवश्य जाणवुं ऊचित . अने ते जाणीने ते प्रमाणे वर्त्तन करवाथी मनुष्यजवनी सफलता थाय बे. तेटला माटे सर्वज्ञ जिनवचनानुसार बाल जीवोना उपकारार्थे श्री तपागच्छाधिपती श्री विजयप्रनसूरीना पाटे उदयाचल पर्वतने विषे प्रगट यता सूर्य समान श्री विजयरत्न - सूरीना राज्यने विषे श्रयेला श्री कनक विमल नामना सुगुरूना लघु शिष्य केसर विमल नामानिध पंमिते या सूक्तावली याने सूक्तमुक्तावली एटले मनुष्यना कंठनेविषे रहेली मोतीनी माला समान शोजायमान सारी युक्तिवालो या ग्रंथ मनुष्यमात्रनी शोजाने अधिक करवा माटे विक्रम संवत् १७५४नी सालमां रच्योवे. मनुष्यजवनी सार्थकतानुं करतव्य धर्म, अर्थ, काम श्रने मोक्ष, ए चार नागमां समायेलुं बे. ए चारे जागनुं यथाविधि स्वरूप श्र ग्रंथमां लोकनाषा करी पद्यबंध दर्शाववामां श्राव्युं बे. तेना मुख्य विभाग १ तत्त्वज्ञान एटले शुद्ध देव, शुद्ध गुरु, अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) शुद्ध धर्म २ मनुष्यजव पामवानी दुष्करता; ३ सतनपणानो गुण; ४ न्यायमार्ग; ५ प्रतिज्ञा लीधी ते मुकवी नही; ६ क्षमानो संबंध; ७ चित्तनो संबंधः ८ कुलनो संबंध ए विवेकनो संबंध; १० विनय गुण; ११ विद्यानो उपकार; १२ उद्यम; १३ दान; १४ क्रोध न करवो; १५ दया पालवी; १६ संतोष राखत्रों; १७ विषय aihar; १० प्रमाद बांडवो; ११० साधु तथा श्रावकनी घोलखानो अधिकार दृष्टांत साथे ए चार वर्गमां बताव्यो बे. मनुव्यजव पामीने प्रथम शुद्धदेव श्रने शुद्धगुरुनी घोलखाण करी शुद्धधर्म जाणवो अने तेनुं सेवन कर अर्थात् केवली जाषित जैनधर्माराधन करवो; बीजुं न्यायपूर्वक अर्थ एटले धन संपदा उपार्जन करवी; त्रीजुं तेवा न्यायोपार्जित धननो व्यय धर्मनां रूमां काममां करवो; घने चोथं क्षमागुण आदरी अनित्यादि जावा जावीने कर्मनी निर्जरा करी मोक्षपद पामकुं. एनुं शुद्ध स्वरूप या ग्रंथमां विवेचन ने दाखला दलील साथे दर्शावेलुं वे. उपर बतावेला श्रोगणीस अधिकारना वली विशेष स्पष्ट समजाववा माटे पृथक् पृथक् विषय पानी तेनुं विवेचन करी तेने दृढ करवा माटे विशेषे करी तेवा गुणवालानां दृष्टांत पण दर्शाव्यां बे. जेमांना . प्रथम धर्म वर्गमां-१ देवतत्त्व, २ गुरुतत्त्व, ३ धर्मतत्त्व, ४ ज्ञानतत्त्व, ए मनुष्यजन्म, ६ मनुष्यजवनी इर्लजता तथा तेनां दश दृष्टांत, ७ सऊन, गुण, ए न्याय, १० न्यायधर्म, ११ प्रतिज्ञा, १२ उपशम, १३ त्रिकरण शुद्धि, १४ कुल १५ विवेक, १६ विनय, १७ विद्या, १० उपकार, १० उद्यम, २० दान, २१ शील, २२ तप, २३ जावना, २४ क्रोध, २५ मान, २६ माया, लोन, २० दया, २५ सत्य, ३० चोरी, ३१ कुशील, ३२ परिग्रह, ३३ संतोष, ३४ विषय, ३५ इंद्रिय, ३६ प्रमाद, ३० साधुधर्म २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) ३० श्रावकधर्म विषेनुं स्वरूप समजाववामां आवेलुं वे अने ते दरेक विषयने दृढ करवा माटे तेवा तेवा गुणवाला तथा तेथी, विपरीत गुणवाला थयेलानां उदाहरण पण बताव्यां ते. बीजा अर्थवर्गमां - १ अर्थवर्गना प्रकार, २ अर्थ एटले संपदा विषे, ३ हितचिंतन, ४ लक्ष्मी, ५ कृपण, ६ याचना निर्धन, राजसेवा, ए खलता, १० विश्वास, ११ मैत्री, १२ कुव्यसन - (एक द्युत, बीजुं मांस जक्षण, त्रीजुं चोरी, चोथुं मद्य, पांचमुं वेश्यागमन, बहुं खेटक, सातमुं परस्त्रीसंग ), १३ किर्त्ति, १४ प्रधान, १५ कला, १६ मूर्खता, १७ लगा, १० लक्ष्मिरहित विषे दृष्टांतो साथे दर्शावेलुं बे. श्रीजा कामवर्गमां-१ कामथी प्रसाएला, २ काम, ३ कंदर्पना उन्माद, ४ गुणदोषोङ्गावन, ५ पुरुषगुण, ६ पुरुषदोष, ७ स्त्रीना गुण, छ स्त्रीना दोष, ए सुलक्षणी स्त्री, १० संयोग, ११ वियोग, १२ माता, १३ पिता, १४ पुत्र, १५ सुपुत्रनुं यथोचित स्वरूप समजा - वी दृष्टांतवडे दृढ करी थापेलुं छे. चोथा मोकवर्गमां - १ मोक्षार्थ, २ कर्म, ३ क्षमा, ४ संयम, ५ द्वादश भावना - (एक अनित्य, बीजी अशरण, त्रीजी संसार, चोथी एकत्व, पांचमी अन्यत्व, बडी अशूची, सातमी श्राश्रव, मी संवर, नवमी निर्जरा, दशमी लोक, अगी चारमी बोधी, अने बारमी धर्म जावना ), ६ राग, द्वेष, संतोष, विवेक, १० निर्वेद, अने ११ आत्मबोध विषे घणुंज जाणवायोग्य विवेचन दृष्टांतसह करेलुं बे. त्यारपठी धर्म, अर्थ, काम अने मोह, ए चारे वर्गनुं स्वरूप कामां समजावी धर्मना दश नेदः तथा अर्थ उपार्जन विधि; काम एटले विषय गणवामां आवे बे तेने अलग करी कामनो जावार्थ धर्मनां रूमां काम-कार्यों करवामां सारी रीते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) समजाव्या ; अने बेवट मोक्ष मेलववानी रीति अने तेवा परम पद पामनारने धन्यवाद थापेलो डे. हवे आ ग्रंथ नाषामां ने तो तेनुं वली जाषान्तर रुं? एम सहज को प्रश्न उगवे तो तेनुं समाधान ए जे जे, थोमा श्रने विशेष नाघार्थवाला शब्दोनी पदरचनानो घणो गहन अर्थ तेना अपरिचित जन समुदायना समजवामां नाग्येज श्रावी शके तेवो . वली लोकनाषामां घणी जातनी नापाना शब्दो नेलसेल थयेला , तथा मुलके मुलक अने गामे गाममा केटलाक जूदा जूदा शब्दो वपराय ने अने तेनां रुपांतर जूदां जूदां श्रयेला जोवामा श्रावे हे तेथी, तेमज आ ग्रंथमां जे पद्यरचना करवामां आवेली ते मध्ये दरेक बाबतना सिद्धांत माटे जे जे दृष्टांत देखाडवामां श्रावेला बे तेनां फक्त नाम मात्रज बतावेलां बे, तेथी मूलपद्यनो जावार्थ लखी तेमां जणावेला दाखलावाला पुरुषादिना प्रबंधादि अन्य ग्रंथो तथा वृक्षमुखपरंपराधी जाणवामां आव्या मुजब था मूल साथे नाषान्तरना ग्रंथमां विवेचन पूर्वक स्पष्टीकरण साथे दाखल करवामां आवेला बे. जे वांचीने मनन करवाश्री दरेक विषयनी दृढता वेशक थवामां यत्किंचित् शक नथी. विशेष जाणवा योग अने क्वचित सांजलवामां आवेली कथाश्रो घणा विस्तारपूर्वक दाखल करी, श्रने केटलाक वखतो वखत जाणवामां आवेला पुरुषादिना प्रबंध विषयना सिकांत योग दाखल कर्या बे; के जेवांचवाश्री विषय, खरूप तात्कालिक समजी शकाय तेवू . श्रने तेवां कृत्य करनारने तेथी जे लान हानी थने तेतुरत ध्यानमां श्रावतां पोतानुं वर्त्तन लाजदायक कृत करवा तरफ दोराय तेवं बे. अने तेम थवाथी मनुष्य नव पाम्यानुं सुफल मलवाने विलंब न लागे ए निःसंदेह वात डे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ELEHE श्रा ग्रंथना धर्मवर्गमा नमि अने विनमी, केसीकुमार गणधर अने प्रदेशी राजा, विक्रम, अने शालिवाहनादिना मली ४७; तथा अर्थवर्गमां उत्तम कुमारनुं घणुं मनरंजन चरित्र, केवन्ना शेठ, सहस्त्रमल साधु, पुण्यसार कुमार, अने कालिकसूरी कसा विगेराना मली १४, तथा कामवर्गमां नंदीखेणमुनि, नीलडी उपर मोह पामी विषयनी प्रार्थना करनार महादेव, रथनेमी, अवगुणने ढांकनार श्रीकृष्ण, सुदर्शन शेव श्रने अजया राणी विगेरेना मली १३, श्रने मोदवर्गमां खंधकाचार्य तथा तेमना पांचसे शिष्य, दृढप्रहारी, कूरगमु साधु, मेतास्य मुनि, नरत चक्रवर्ति, अनाथी मुनि अने श्रेणिक राजा, नमी राजा, सनतकुमार चक्रवर्ति, वज्रखामी, संप्रति राजा विगेरेना मली १७ प्रबंधो यथावरूप दाखल करवामां आवेला . एकंदर १०२ प्रबंधनो या ग्रंथमा समावेश करवामां श्राव्यो . ___ आ ग्रंथ मनुष्यमात्रने अवश्य वाचवा, जणवा, तथा मनन करवा योग होवा उतां फक्त तेनुं मूलज उपाएबुं हतुं तेथी तेना वांचनार जणनारने तेनो नावार्थ पूरेपूरो नहीं समजावाने लीधे तथा तेमां आपेलां दृष्टांतिक पुरुषादिना प्रबंधो नहीं जाणवामां श्राववाथी तेनी खरी खूबीथी बीन माहितगार रहेq परतुं हतुं ते खोट पूरी पामवा माटे घणा वाचकवर्ग तरफथी अमोने नखामण थवाने लीधे तेनुं नाषान्तर अनुभवी थने वृद्धोक्य शान्ति सुधाकर प्रेसना मालीक मी. सांकलचंद महासुखराम पासे तैयार करावी सजानवर्गनी शोजामा वृद्धि करवा माटे प्रगट करवाने अमे शक्तिवान श्रया बीये. बाशा डे के था ग्रंथनो लाल सर्व श्री संघ स्त्री पुरुष ले अमोने कृतार्थ करशे. प्रसिक कर्त्ता. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका. विषय. पृष्ट. १ श्री जिनेंद्रमूर्त्तिने प्रणाम करवारूप मंगलाचरण क्रमसंग्रह - या ग्रंथमां श्रावेला अधिकारना बोलोनो अनुक्रम १ ॥ धर्म वर्ग ॥ श् २ ३ देवतत्त्व विषे देवतत्त्व उपर नमि ने विन मिनो प्रबंध गुरुतत्त्व विषे .... .... Jain Educationa International .... 4340 .... .... .... गुरुतत्त्व उपर के सिकुमार गणधर अने प्रदेशी राजानो प्रबंध ५ १६ .... धर्मतत्त्व विषे धर्मतत्त्व पर विक्रमराजानी कथा धर्मतत्त्व उपर शालिवाहन राजानी कथा १७ .... .... 1040 ३१ ज्ञानतत्त्व विषे ज्ञाननी एक गाथाना बोध उपर जवराज रुषीनी कथा.... ज्ञानना एक चरणथी यता लाज उपर चिलातीपुत्रनो दृष्टांत ३७ ज्ञान उपर रोहिणीया चोरनी कथा ज्ञान उपर मास ाने तुस नामना बे जाईनी कथा ४१ .... yru ય मनुष्यजन्म विषे शशिन राजानी कथा ५२ ५४ ५४ ६१ ६७ ६ ११ १ .... .... .... .... **** **** .... .... **** दश दृष्टांते दोहिला मनुष्यजव संबंधी श्लोक.... मनुष्यजवनी डूर्लनता उपर पहेलो चुलानो दृष्टांत मनुष्यजवनी डूर्लजता उपर बीजो पासानो दृष्टांत मनुष्यजवनी डूर्लजता उपर त्रीजो धान्यनो दृष्टांत मनुष्यजवनी डूर्लनता उपर चोथो जुवटानो दृष्टांत मनुष्यजवनी डूर्लनता उपर पांचमो रत्ननो दृष्टांत मनुष्यजवनी डूर्लजता उपर बडो स्वप्ननो दृष्टांत For Personal and Private Use Only *** .... .... .... .... **** .... .... .... 0.00 0086 २४ ३१ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप विष मनुष्यनवनी पूर्लनता उपर सातमो चक्रनो दृष्टांत .... । मनुष्यनवनी पूर्बनता उपर बाग्मो कुरमनो दृष्टांत .... मनुष्यजवनी पूर्खनता उपर नवमो धूंसरानो दृष्टांत .... मनुष्यनवनी पूर्लजता उपर दशमो परमाणुनो दृष्टांत .... सजन विषे .... .... .... .... सजनता उपर प्रौपदीनो प्रबंध .... सजनता उपर अंजनानो प्रबंध गुण विषे न्याय विषे. .... अन्याय करी रावणनो त्याग करनार विनीषणनो प्रबंध न्यायधर्म विषे प्रतिज्ञा विषे ..... उपशम विषे .... दमागुण उपर गजसुकमाल मुनिनो प्रबंध त्रिकरण शुधि विषे त्रिकरण शुधि उपर जौपदीनो प्रबंध .... कुल विषे .... .... .... विवेक विषे .... .... .... .... विनय विषे ..... .... .... ...." विनय गुण उपर विक्रम राजानो प्रबंध .... विनय करवा उपर श्रेणिक राजानो प्रबंध .... ... विद्या विषे .... .... .... .... ११५ विद्याथी रीऊववा उपर बाण तथा मयूर पंमितोनो प्रबंध उपकार विषे ..... .... .... .... .... ... उद्यम विषे . .... .... .... .... ११७ उद्यम उपर सुबुद्धि प्रधाननो प्रबंध .... .... .... १९ए . . . . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दान विषे .... .... .... ..." उद्यम उपर बीजो ज्ञानगर्न प्रधाननो प्रबंध बघ .... .... १२० . ... ... .. . ... ... __ दानगुण उपर कर्णराजानो प्रबंध .... शील विषे .... .... .... .... .... शील पालवा उपर सुदर्शन शेउनो प्रबंध ... शीलगुण उपर गांगेयनो टुंक हेवाल .... .... तप विषे तपना प्रनावे लब्धि उपार्जन करनार गौतम खामीनो प्रबंध १२७ तपना प्रनाव उपर नंदीखेण मुनिनो प्रबंध .... .... १३० तपना प्रत्नावे लाख जोजननुरूप करनार विष्णुकुमारनी कथा १३५ नावना विषे.... .... .... .... .... .... .... १३४ नावना जाववा उपर जरत चक्रवर्त्तिनो प्रबंध नावना जाववा उपर एलाचीकुमारनो प्रबंध .... .... १३६ नावना नाववा उपर जीरणशेठनो प्रबंध .... .... नावना नाववा उपर वलकलचीरीनो प्रबंध .... .... नावना उपर बलन मुनि, हरण अने रथकारनो प्रबंध. १४० क्रोध विषे . .... .... .... .... १४१ क्रोध करवा उपर परशुराम अने सुजुम चक्रवर्त्तिनो प्रबंध. १४५ मान विषे .... .... .... .... .... १४७ मान करवाश्री नाश पामनार ड्र्योधननो प्रबंध.... .... १४७ माया विष .... .... .... .... .... .... .... ९० लोन विष .... .... .... .... .... .... .... २४ए लोन करवाथी कष्ट पामनार सुजुम चक्रवर्तिनो प्रबंध..., १५० लोचनो त्याग करवा उपर कपिल ब्राह्मणनो दृष्टांत .... १५१ दया विषे .... .... .... .... .... .... .... १५२ दयाचिंतवीने पारेवाने शरणे राखनार मेघरथ राजानो प्रबंध. १५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य विषे .... .... कूमी साख जरवाथी नरके जनार वसुराजानो प्रबंध चोरी विषे कुशील विषे परिग्रह विषे Jain Educationa International .... .... .... .... .... **** **** ४ 20 .... .... .... .... .... २५ .... परिग्रहनी ममताथी नरके जनार सुजुम चक्रवर्त्तिनो प्रबंध. १६० १६१ १६२ संतोष विषे विषय विषे इंद्रिय विषे प्रमाद विषे साधुधर्म विषे १६३ १६४ १६४ श्रावकधर्म विषे १६५ १६७ कामदेव श्रावको प्रबंध ॥ अर्थ वर्ग ॥ १६ १६ .... १६ .... १७० 1044 .... अर्थ वर्गना प्रकार एटले संपदा विषे संपदाथी सुख पामनार उत्तमकुमारनी कथा sor विना वेश्याए केवन्ना शेठने कहामी मुक्यानो प्रबंध १८७ द्रव्यरहित होवाथी रामचंद्रने वशिष्ठ कृषी ए उवेख्यानो प्रबंध १५० हितचिंतन विषे परहितचिंतन विषे महावीर स्वामी ने चंडकौसिक स १९५० पनो प्रबंध लक्ष्मी विषे कृपण विषे कृपणता उपर मधमाखीनो प्रबंध - दृष्टांत ..... .... 2004 याचन विषे **** **** .... .... .... .... .... .... .... 8064 J... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... 4.0. .... .... .... .... .... .... For Personal and Private Use Only .... .... .... **** .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... 4066 .... ww3. .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... ԱԱ १५५ १५० १५८ .... २०१ ?Uყ १८ २०५ Qug Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्धन विषे राजसेवा विषे खलता विषे .... खलई उपर मगर ने वांदरानो प्रबंध विश्वास विषे QUI Uu २०० २०१ २०३ कागमानो विश्वास करवाथी मृत्यु पामनार कनो प्रबंध २०४ २०६ २०७ २१० २१३ २१३ ...* Jain Educationa International .... .... .... ५ .... .... .... .... **** .... .... .... .... मैत्री विषे मैत्री उपर सहस्रम साधुनो प्रबंध मैत्री उपर बलन अने कृश्ननो प्रबंध .... कुव्यसन विषे पहेला कुव्यसन द्युत विषे जुवटु रमवानो त्याग करवायी सुखी थनार पुण्यसार कु २९४ .... २३० २३३ .... मारनी कथा..... बीजा कुव्यसन मांस जण तथा त्रीजा कुव्यसन चोरी विषेश्२५ मांस मोघुं बे एवं सिद्ध करनार अजयकुमारनो प्रबंध .... २२६ मांसनी लालचथी नरके जनार कालिकसूरी कसाई तथा तेनो त्याग करी धर्म श्राराधन करनार तेना पुत्र सुलसनी कथा १२० त्रीजा चोरीना व्यसन उपर मंमीक चोरनो प्रबंध चोथा कुव्यसन मद्य विषे मदिराना व्यसनथी द्वारिका नगरीनो दाह थया विषे प्रबंध २३८ पांचमा कुव्यसन वेश्यागमन विषे.... विषयनी लालचे वेश्याना वचनथी कांबल लेवाने नेपाल देशमां जनार सिंहगुफावासी साधुनो प्रबंध बघा कुव्यसन खेटक एटले आहेमा व्यसन विषे हेडा व्यसन निवारक संजति राजानो प्रबंध सातमा कुव्यसन परस्त्रीसंग विषे .... २३ .... 0418 .... G .... .... For Personal and Private Use Only .... .... 06 .... .... .... .... 0418 .... **** .... **** **** .... **** .... .... **** .... १३ २४५ २४६ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ՋԱմ २६० २६१ परस्त्रीसंगनां उदाहरणो गनों उदाहरणो .... .... .... .... २४७ कीर्ति विषे .... .... .... .... .... २४ कीर्ति मेलवनार नीमोसा वणीक अने तेनी स्त्रीनो प्रबंध श्वए प्रधान विषे .... .... .... .... २५० प्रधान पद उपर अनयकुमार मंत्रीनो प्रबंध .... .... २५० कला विषे ..... कलावान लोणाचार्य तथा अर्जुन अने निबनो प्रबंध २५५ मूर्खता विषे .... .... .... .... .... ......... २५७ मूर्ख वणिकपुत्रनो प्रबंध .... . .... .... ... २५७ मूर्खता उपर वांदरा अने सुग्रीनो प्रबंध.... . लजा विषे .... ... .... ... लजाये करी दिदा लेनार नावदेव तथा तेना नाई नवदेवनो प्रबंध ...... ............. .... ........... .... २६१ लदमीरहित (वर्ष .... .... .... .... .... .... श्६२ लक्ष्मी विनाना देखी पंथीण रामचंडने पारधी कह्यानो प्रबंधश्६३ ॥ काम वर्ग ॥ .... .... .... .... २६४ कामश्री प्रसाई गणिकाने त्यां रदेनार अने वली तेनो त्याग करनार नंदीखेण मुनिनो प्रबंध..... .... .... २६४ काम विषे .... .... .... .... २६६ नीलमीने देखी विषयनी प्रार्थना करनार महादेवनो प्रबंधश्६० कंदर्पना उन्माद विषे .... .. .... .... २६न दमयंती साधवीने देखी नलराजर्षितुं चित्त चलित थ यानो प्रबंध.... .... .... .... .... .... .... श्६ए राजिमतीने वस्त्ररहित देखी काउसग्ग ध्यानथी चूकी काम __ सेववानी प्रार्थना करनार रथनेमीनो प्रबंध .... .... २६ए गुणदोषोनावन विष .... .... .... .... .... .... घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुषगुण विषे परनो थोमो पण गुण ग्रहण करी अवगुण ढांकनार श्री कृष्णनो प्रबंध पुरुषदोष विषे स्त्रीनगुण विषे स्त्रीना दोष विषे .... Jain Educationa International .... .... .... .... २७४ सुदर्शन शेठने अजया राणीए कलंक चढाव्या संबंधी प्रबंध २७४ यशोधर राजाने मारनार नयनावलीनो प्रबंध ससरानी लाज पाडी फजेत करनार नुपुर पंमिता सोनार - २७६ नो प्रबंध सुलक्षणी स्त्री विषे.... उत्तम सुलक्षणी स्त्रीनां थोडां नाम खेरना धगधगता अंगारा जरेली खाई सीताना शील यानो प्रबंध गुणे पाणी संयोग विषे वियोग विषे माता विषे 2006 D .... .... .... **** 9000 .... माताना कवाथी सीला उपर असण करनार रहन्न कनो प्रबंध पिता विषे सगर चक्रवर्त्तिने तेमना साठ हजार पुत्रनो प्रबंध सिय्यंजव सूरी ने तेमना पुत्र मनको प्रबंध पुत्र विषे सुपुत्र कोण यया ते विषे गंगाना सुपुत्र गांगेय कुमारनो प्रबंध ... For Personal and Private Use Only .... .... २७१ .... **** .... .... .... श्‍ २७३ २७४ श् २०३ २८३ २०४ २०६ श् २७ श् Iun २१ १३ श श २०६ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ मोक्ष वर्ग ॥ मोक्षार्थ विषे कर्म विषे क्षमा विषे .... **** G 1440 क्षमागुण प्रदरनार विषे क्षमागुणे करी मोक्षपद पामनार खंधक सूरीना पांचसें शिष्य ने क्षमा नही धरवाथी दुःखनी परंपरा पामनार खंधक सूरीनो प्रबंध .... Jain Educationa International क्षमा यादरवाथी मोक्षपद पामनार दृढप्रहारीनो प्रबंध मागुणे सिवसुख मेलवनार कूरगमु साधुनो प्रबंध मागुण वडे मेतार्य मुनिए मोह मेलव्यानो प्रबंध संयम विषे चारित्रनी लब्धिए करें | सिंहादिक पशुने बोध पमानार .... .... एकत्त्व जावना उपर नमीराजानो प्रबंध पंचम अन्यत्व जावना विषे .... ... For Personal and Private Use Only बलदेव सुनिनो प्रबंध ३१८ द्वादश जावना - प्रथम अनित्य जावना विषे.... नित्य जावना-संसार स्वरूप उपर जीखारीनो दृष्टांत नित्य जावना कायानी माया तजनार जरत चक्रवर्त्तिनो प्रबंध३१६ द्वितीय अशरण जावना विषे अशरण जावना - धर्मनुं शरण करनार खनायी मुनिनो प्रबंध ३१९ तृतीय संसार जावना विषे मंगु आचार्यनो प्रबंध चतुर्थ ऐकत्व जावना विषे ३२१ ... 08.0 .... **** .... .... .... .... २८ IUG IUU ३०० ३०० .... षष्ट शूचि जावना विषे कायानी शुचिताई जाणी तेनो मोह बांडी चारित्र लेनार सनत्कुमार चक्रवर्त्तिनो प्रबंध .... .... ३०१ ३०४ ३०५ ३०७ ३१२ ३१३ ३१४ ३१५ ३२२ ३२३ ३२४ ३३० ३३० ३३१ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ...... .... ३३४ सप्तमी श्राश्रव नावना विषे...... .... आश्रय दोषे करी नर्कनां पुःख पामनार कुंमरीकनो प्रबंध ३३४ अष्टमी संवर नावना विषे ......... ३३५ क्रोम सोना मोहोर अने रुपवती कन्यानो अनादर करी सं___ वरना सेवणहार श्रीवज्रखामीनो प्रबंध ... .... ३३६ संवरहार आदरनार पुंडरीकनो प्रबंध नवमी निर्जरा लावना विषे .... .... २. ... ......... ... ..... ३३० दशमी लोक नावना विषे .... .... एकादश बोधि श्रने छादश धर्म नावना विषे .... .... ३३॥ धर्म नावनाथी सुख संपदा पामनार संप्रतिराजानो प्रबंध ३३॥ रागविषे हेष विषे ..... .... .... .... .... .... .... संतोष विषे .... विवेक विषे .... निर्वेद विषे .... निर्वेदे करी संयम लेनार नर्तृहरी राजानो प्रबंध ... ३४५ आत्मबोध विषे धर्म, अर्थ, काम अने मोद, ए चारे वर्ग- टुंकामां वर्णन ३४७ धमे वर्ग .... .... .... .... .... .... .... .... २७ धमेना दश नद .... .... .... .... .... .... २०० ३४त अर्थ वगे .... .... .... .... .... .... .... ३०ए काम वग.... .... .... .... .... .... .... .... २४ए मोद वर्ग.... .... ..... .... ......... .... .... .... .... ३५० ग्रंथ समाप्ति विष .... .... .... .... .... .... ३५० प्रशस्ति काव्यो .... प्रशस्ति काव्योनो टुंक नावार्थ .... . ३५० .... ... ३५२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री जिनायनमः ॥ ॥ श्रथ ॥ ॥ श्रीसूक्तमुक्तावली जाषान्तर प्रारभ्यते ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम श्री जितें मूर्त्तिने प्रणाम करवारूप मंगलाचरण ॥ || मालिनी बंद ॥ सकलसुकृतवल्लीचंदजीमूतमालां निजमनसि निधाय श्री जिनेंऽस्य मूर्त्ति ॥ ललितवचनलीलालोकभाषानिबन्धैरिह कतिपयपद्यैः सूक्तमालां तनोमि ॥ १ ॥ अर्थः-सकल नाम समग्र सुकृतरुपिणी वेलनो वृंद अर्थात् समूह ते रूप मोतीनी माला एवी श्रीजिननी मूर्त्तिने मनमां धरीने रुडा वचननी चतुराईवडे लोकजाषायें करी ए सुक्तावली पद्यबंध करूंडं. ॥ अथ क्रमसंग्रह काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडित बंदः ॥ ॥ तत्त्वज्ञान १ मनुष्य २ सनगुणा ३ न्याय ४ प्रतिज्ञा ५ मा ६, चित्ताद्यं च कुलं विवेक ए विनयो १० विद्योपकारो ११ द्यमाः १२ ॥ दान १३ क्रोध १४ 'दया १५ दितोष १६ विषयाः १७ ताज्यप्रमाद १८ स्तथा, साधु श्रावकधर्मवर्गविषये याप्रसंगाह्यमी १९ ॥ २ ॥ ॥ श्रा ग्रंथमां आवेला अधिकारना बोलोनो अनुक्रम ॥ अर्थः- १ तत्त्वज्ञान एटले शुद्धदेव, शुद्धगुरु अने शुद्धधर्म; ‍ पुष्कर मनुष्य जव पामवो; ३ सनपणानो गुण; ४ न्यायमार्ग; ए प्रतिज्ञा लीधी ते न मुकवी; ६ क्षमानो संबंध; ७ चित्तनो संबंध; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली " ८ कुलनो संबंध; ए विवेकनो संबंध; १० विनयनो गुण; ११ विद्यानो उपकार; १२ उद्यम; १३ दान; १४ क्रोध; १५ दया; १६ संतोष १७ विषय बांगवा; १० प्रमाद बांगवा; १७ तथा वली साधु ने श्रावकना वर्गने प्रसंगथी जाणवा. ए प्रकारे या ग्रंrai गणीस अधिकारनुं विस्तारपूर्वक स्वरूप कहेवामां श्रावशे. ॥ अथ धर्मवर्ग प्रारंभः ॥ DY ॥ देवतत्त्व विषे ॥ मालिनी बंदः ॥ सकल करमवारी मोक्षमार्गाधिकारी | त्रिभुवन पगारी केवलज्ञानधारी ॥ जविजन नित सेवो देव ए नक्तिजावे ॥ इदि जिन जंतां सर्व संपत्ति यावे ॥ ३ ॥ अर्थ :- अरिहंत प्रभु ष्ट कर्मनो अंत करवे करीने मोक्षमार्गना अधिकारी बे, त्रिभुवनने उपकारना करणहार केवलज्ञाननाधरणहार बे, एवा प्रजुने हे नव्य जीवो ! तमे नित्य क्तिवे करीने सेवो, एवा जिनेश्वरने जजंतां एटले ए जिनेश्वर जगवाननी सेवना-स्तवनादि करवाथी प्राणी सर्व संपत्ति पामे, अर्थात् आलोकने विषे पुत्रपौत्रादि धनधान्यादि नव निधि पाने परलोकने विषे देवपएं तथा मोक्ष पामे. ३ जीनवरपदसेवा सर्वसंपत्तिदाई ॥ निशिदिन सुखदाई कल्पवल्ली सदाई ॥ नमि विनमि लहीजे सर्व विद्या वडाई ॥ रुषन जिनद सेवा साधतां तेढ़ पाई ॥ ४ ॥ अर्थ :- जिनेश्वर जगवानना चरणकमलनी सेवा सर्व संपत्ति एटले सघली संपदाने श्रापवावाली बे, जेम कल्पवेल रात्रे ने दिवसे वधे बे तेम तीर्थंकर प्रजुनी सेवा थकी थालोक तेमज परलोकने विषे सर्व प्रकारनी सुख संपदा पामीये. जेवी रीते श्रीरु. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mm नाषान्तर सहित. षनदेव जिनेश्वर नगवाननी सेवा करवाथी नमि अने विनमी. सर्व विद्यानी मोटाई पाम्या तेम पामीये. अत्रे या दृष्टांतने दृढ करवा माटे नमि अने विनमीनी कथा कहे: ॥ देवतत्व उपर नमि अने विनमिनो प्रबंध ॥ प्रथम तीर्थंकर श्रीश्रादीश्वरजीना नमि अने विनमि नामना बे पालक पुत्र हता. ज्यारे श्रीआदीश्वरजीए दीदा लेवाने समये पोताना सो पुत्रने पृथक् पृथक राज्य वहेंची श्राप्युं त्यारे आ बे लाई नमि अने विनमी परदेश गया हता. रुपनदेवजीए चारित्र ग्रहण कर्या पली केटलोक वखत वित्याबाद परदेश गयेला था बंने जाई घेर श्राव्या. प्रजुने घर आगल न जोवाथी तेमणे पुब्युं त्यारे लोकोना कहेवाथी तेमना जाणवामां श्राव्यु के, प्रजुए तो दीक्षा लीधी अने सघला पुत्रोने राज्य पण वहेंची थाप्यां. ते वखते आ बंने जाईए पुब्यु के, अमारूं राज्य किहां ? लोकोए कह्यु के, जगवंत तो हवे निःपरिग्रहीत थया थका पृथवितलने विषे विचरे में, अने सो पुत्रने राज्य वहेंची आप्यु ते वखते तमारो नाग जूदो पाडी आपेलो अमारा जाणवामा नथी. तेमज हवे तो प्रजुने “ न करेमी नकारवेमी" ने तेथी ते तो तमने श्रापशे नहीं, मादे तमे हवे तो म्होटा नाई नरत प्रत्ये जईने कहो, तेमनी पासे मांगो. या प्रमाणे लोकोए कह्यु त्यारे ते बंने लाई कहेवा लाग्या के, “ जाचं एटले मायुं तो पिताजी पासे, ते विना अवर पासे न मागवं, प्रजु आपशे तोज लेवु.” आम धारी ते बंने जाई प्रजुजी ज्यां विचरता हता त्यां तेमनी पासे गया. प्रजुने जोई विनयसहित तेमनी पासे राज्य माग्युं, परंतु प्रतु तो मौनपणे रहेला ने तेथी ते तो कांई पण बोल्या नहीं श्रने अन्यत्र विहार करी गया. नमि अने विनमि पण प्रजुनी साथेज गया. पडी प्रनु ज्या ज्यां विहार करे त्यां त्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली मार्गमांथी ते बने नाई कांटा कांकरा प्रमुख वीणीने वेगला कहाडी नाखवा लाग्या, तथा पृथवी पुंजीने जलनो बंटकाव करी फूलनां पगर जरवा लाग्या. वली प्रजुनी बंने बाजु चामर विजे, रस्तामां कोई पण प्रकारनी प्रजुने विहार करतां अमचण न पडे एवीरीते नूमि शोधता श्रागल चालता हता तथा नक्तिसहित सविनय प्रजुपासे राज्य माटे याचना करता हता. या प्रमाणे निरंतर प्रजुनी नक्ति करतां केटलोक काल व्यतित थया पली एकदा प्रस्तावे अजुने वांदवा माटे धरणेज श्राव्या. आ बे बांधवने प्रजुनी सेवा करतां देखीने धरणे तेश्रोने पुज्युं के, " तमे शा कारण माटे नक्ति करो बो ?" तेवारे बंने बांधवो बोल्या जे- "राज्य वास्ते.” धरणेजे जणाव्यु के, “हवे निरागी पासे झुं मांगो डो?” नमिए कयु के, “ एहज आपशे." आवो तेऊनो निश्चय जाणी अने तेनो प्रनुप्रत्येनो क्तिनाव जोई प्रसन्न थई धरणे तेउने अमतालीस हजार विद्यार्ड श्रापी, तथा वैताढ्य पर्वतर्नु राज्य आपी दक्षिण श्रेणीने विषे उंगणपचास अने उत्तरश्रेणीनेविषे उंगणसात नगर वासीयां . धरणे या बंने नाउने उपर जणाव्या प्रमाणे अमतालीस हजार विद्या बापवाथी ते बन्ने नाई विद्याधरपणुं पाम्या, अने तेमना वंशजो विद्याधर कहेवाया. प्रजुनक्तिनुं था प्रत्यद फल नमि अने विनमिने मत्यु. माटे प्रजुनी सेवा सर्व संपत्तिने निःसंदेह श्रापवावाली बे. ॥अथ गुरुतत्त्व विषे ॥ ॥स्वपरसमयजाणे धर्मवाणी वखाणे॥ परम गुरुकह्याथी तत्व निःशंक माणे ॥ नविककज विकाशे नानुज्यूं तेज नासे॥हज गुरु जजो जे शुभमार्ग प्रकाशे ॥५॥ वैतात्य पर्वतानविषे लंगणाच्या प्रमाणे या पाभ्या, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. अर्थ :- खसमय एटले जे जिनेश्वरनां सिद्धांतनां जाए बे, ने पर समय एटले जे मिथ्यात्वना ग्रंथना जाए बे, जे धर्मनी वाणीना वखाण करनार बे, परमगुरु एटले जे उत्तम गुरु तेमना ह्या जे तत्वने श्रात्मा निःशंकपणे जाणे, जे जविक रुपीया कज कदेतां कमल तेने विकवर करनारा डे, अने जानु ज्यूं तेज जासे तां सूर्यनपेठे जे ज्ञानना प्रकाशक बे, छाने वली जे शुद्ध मार्गना बतावनारा बे, एवाज गुरुने जजो एटले स्तवो - मानो. गुरुतत्व हढ करवामाटे गुरुथी कोण कोण जीव तर्या ने ते कहे बे:॥ सुगुरुवचनसंगे निस्तरेजीवरंगे ॥ निरमल नीर याए जेम गंगाप्रसंगे * ॥ सुणिय सुगुरु केशी वाणि राय प्रदेश | ॥ बढि सुरनव वासी जे इसे मोदवासी ॥६॥ अर्थ :- जेम मेलां पाणी होय अने तेज पाणी गंगानां जलमां जयां थकां पवित्र अर्थात् शुद्ध थाय तेम सद्गुरु वचनने संगे करी जीव सुखसमाधे निस्तार कहेतां पार पामे बे. जेम के सिकुमार गणधरनी वाणी सांजलीने प्रदेशीराजा प्रतिबोध पामी देवतानी गती पाम्या ने मोक्ष पण पधारशे तेम बीजा पण प्रतिबोध पामे. ते उपर विवरीने दृष्टांत कढेबे ॥ 5 ॥ गुरुतत्व उपर के सिकुमार गणधर घने प्रदेशी राजानो प्रबंध ॥ जरतत्रने विषे केके नामे देशमां श्वेतांबिका नामनी नगरीमां प्रदेशी राजा राज्य करतो हतो. ए नास्तिक मतवादी, अत्यंत अधff पापनां काम करवाने विषे रातो मातो, जानने पण नहीं * बीजी प्रतमां या ग्रंथना मूलमां श्र चरण नीचे मुजब बे. " निरमल नर था जेम गंगा प्रसंगे” (तेनो अर्थ ) जेम गंगाना जलवमे स्नान करवाथी मनुनी देह स्वच्छ या अर्थात् शरीर उपर लागेला मेलादि धोवाई जवाथी शरीर शुद्ध थाय बे ते सद्गुरुना संगे करी आत्मा निर्मल थाय बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ सूक्तमुक्तावली जाणनारो, अने जेना बन्ने हाथ सदाय ( हमेशां ) लोहीयें करी खरडेला रहे बे, एवो नर्के जवाने तत्पर थई रहेलो हतो. वली ए नास्तिक मतवादीना मगजमां रात्रि दिवस एवं घोलाया करतुं इतुं के, "जीव तो बे ज नहीं, एतो पंचभूते करी पिंक बंधाएलो बे. पृथ्वी १, अप ( पाणी ) २, तेयु ३, वायु ४ अने आकास ५, ए पांच नूतनो बांधेलो था पिंक बे. ए पांचने नासवेकरी सर्वे पुद्गल वेराय बे." यावी तेनी मान्यता होवाथी तेविषे खात्री करवाने तेथे घणी वार चोरने पकड्या ने जूदी जूदी रीते तेनो तपास करी जोयो. ते एवी रीते केः- एक चोरने जीवतो तोली जोयो, पढी तेने मारीने तोल्यो, परंतु बन्ने वखत तेनुं वजन बराबर थयुं; एक चोरने मारी तेना शरीरना खंमोखंड करी ते प्रत्येक खंडमां जीवने खोल्यो पण ते चोरनी कायामां कोईपण स्थले जीव दीवो नही; एक चोरने पकडीने लोढानी कोठीमां घाल्यो अने ते कोठीना मों उपर लोढानुं ढांकणुं देई ते उपर सीसु ढाली एवं तो बंध कर्यु के तेमां कोईपण प्रकारे वा ( पवन ) सरखो पण संचार करी शके नहीं, केटलेक दिवसे या करेला प्रयोगनी तपास करवा माटे कोठीनुं मों उघडावी तेमां जोयुं तो चोर मरी गयेलो मालम पढ्यो, एनो जीव तो गयो, परंतु ते क्यों थईने गयो तेनी तपासमाटे कोठीने चारे बाजु उपर नीचे घणी बारी की थी जोई, तथापि तेमां कोई जगाये बि (काएं ) नदीतुं, ने विशेषमां ए चोरना मृतक देहमां उत्पन्न थयेला जीवता क्रमिया (कीमा ) तेना जोवामां आव्या. चोरनो जीव गयो ने तेना मृत कलेवरमां कीडा याव्या, तेम तां सोयना प्रजाग जेटलं पण कोई स्थले बिद्र पडेलुं मालम यूँ नही तेथी वली तेणे पोताना मनसाथे विशेष खात्री करी के 'जीव' बेज नहीं. एतो पंच नूतने नासे करी नास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. दीसे दे अने पंच नूतने मीलाणे करी मीलाण (जीव) दीसे बे. जीव नथी तेथी पुन्य अने पाप पण नथी, एवो ते नास्तिक थयेलो होवाने लीधे सर्व लोकोने एम कहेतो हतो के अवतार (पंचनूतथी उत्पन्न थयेलो जीव ) पाम्या बो तो खाउँ पीयो, पहेरो श्रोटो, मोज शोख करो, जे कांई सुख जोगव्यु ते आपणुं बे; जे लोको मरजीमुजब मोज शोखादि करवानी मना करे ने ते तो फक्त बालकनी बीवडामणी सरखं बे. आवो अयोग्य-खोटो उपदेश करनारा अधर्मी प्रदेशी राजाने आ प्रमाणे वर्त्ततां केटलोक काल व्यतित थया पड़ी एक वखत तेणे पोताना चित्रसारथी नामना प्रधानने काईक दरबारना कार्य प्रसंगे कोसंबी नामे नगरमां मोकल्यो. __ श्री पार्श्वनाथ जगवानना शिष्य-महापुरुष चार (मति, श्रुत, अवधी, मनःपर्यव ) झानना धरणहार केसीकुमार गणधर श्रा वखते कोसंबी नगरीमा बीराजेला हता. नविक जीवने धर्मनी देशना देवामां अहोनिश तत्पर एवा ए केसीकुमार गणधर महाराज पर्षदा आगल धर्म प्रकाशता हता ते वखत प्रदेशी राजानोप्रधान चित्रसारथी सांजलवा श्राव्यो. गणधर महाराजनी देशना सांजलतांज हलुओकर्मी होवाथी चित्रसारथी प्रतिबोध पाम्यो, पढी तेणे पर्षदामाथी उज्या बाद बे हाथ जोडी विनय सहित गुरुमहाराजने विनती कीधी के, “हे खामी! श्वेताविका नगरीए पधारजो, थापना आगमनथी धर्मना उद्यमनो घणो लाज थशे." गणधर महाराजे तेने जणाव्यु के-"तमारो राजा तो पुष्ट बे.” चित्रसारथीए कह्यु के- " श्रापसाहेबना पधारवाथी कल्याण थशे.” गुरुए जणाव्यु के-“अवसरे जणाशे." या प्रमाणे गुरुमहाराज साथे प्रश्नोत्तर थया पडी चित्रसारथी तेमने वंदनादि करी त्यांची चाली नीकल्यो. कोसंबीनगरीमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली दरबारना जे कार्य माटे श्राव्यो हतो ते कामकाज करीने ते (चित्रसारथी) पोतानी श्वेतांबिकानगरीमां आव्यो भने प्रदेशीराजाने प्रणाम करी पोताने घेर गयो. ___ त्यारपडी तेणे वनपालकने पोताने घेर एकांतमांबोलावीने कह्यु के, उद्यानमां ज्यारे कोई महापुरुष (महात्मा-मुनी) आवे त्यारे एवात राजाने जणावतां पहेला अर्थात् राजा न जाणे तेम तुं मने प्रथम जणावजे राजाने ए वातनी खबर पमवा देश नही. वनपालक, प्रधाननुं वचन मस्तके चढावी अर्थात् मान्य करी पोताने स्थानके गयो. एकदा प्रस्तावे ग्रामानुग्राम विहार करता करता केसीकुमार गणधर महाराज श्वेतांबीका नगरीना मनोरम्य नामना उद्यानमां समोसर्या ( आव्या). वनपालके मंत्रीनी आज्ञानुसार था वात तेने जणावी. राजाने या वातनी खबर पडवा दीधी नहीं, परंतु म्होटा पुरुषतुं श्रागमन नगरने विषे लोकोथी अजाएयुं रघु नहीं. घणा नविक जनो गुरुमहाराजने वांदी तेमना दर्शननो लाज पण लई श्राव्या. चित्रसारथीए राजापासे श्रावी तेमने गुरुमहाराज पधार्यासंबंधी कांईपण न जणावतां, तेमने रयवामी जवानो घणो शोख हतो तेथी तेमनेज रुचिकर रयवामी जवानी विनती करी. आ सांजली राजा खुसी थयो अने तरतज सावधान थई रयवाडी जवा निकट्यो. चित्रसारथी पण तेमनी साथे गयो. गुरुमहाराज ज्या आगल देशना देता हता त्यां आगल पाघरोज ते ( चित्रसारथी) राजाने लेश्ने आव्यो, जेथी तेणे गुरुमहाराजने दीग. गुरु महाराजने जोतांज राजाए मश्करी करवा मांडी थने चित्रसारथी प्रत्ये कहेवा लाग्या के,“अरे चित्र! ए मुंड शुं लवलव करी लोकोने धुती पाखंडमां नाखेडे?" ए कोण ? चित्रे कयुके,"महाराज! हुं नथी जाणतो जे ए कोण बे, जो आपनी छा ते जाणवानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. होय तो आपणे त्यां जईये, एटले जे हशे ते मालम पडशे. चिनुं कहे ठीक लागवार्थी ते मान्य करी राजा चित्रने साथे लेई गुरुमहाराजपा से श्राव्या. तथापि अपदपणे नम्र थका त्यां श्रावी बेवा. या वखते गुरुमहाराजे विशेषता प्रकारे करी राजाने बोलवानो प्रसंगज आवी लागे एम धारी जीवनीज व्याख्या करवा मांगी. जीवनी वात सांजलीने तरतज राजा बोली उठ्यो के, हे स्वामी ! तमे महारा जोला लोकोने जूठे जूठ चलावीने शं नोलवो बो? वली तमे 'जीव' कहो बो, पण जीव तो क्याईए देखतो नथी. पोकारी पोकारीने जीव जीव कह्यां करो बो जेथी जोला लोको चमणामां पडे बे. ते बतावी शकता नयी तेमज ते जोवामां आवतो नथी तो शामाटे जुलावो खवरावो बो ? जीव तो बे ज नहीं. गुरुए कह्युं के - ' ते (जीव ) नजरे नावे, एवं मानतां थकां तो घणुंज विघटशे . ' राजाए कथुंके - ' घणुं शुं विघटशे ?' गुरुए जणाव्यं के- “ तमे तमारुंज विचारो जे, तमारा पोतानी वांसे ( पाबल ) शुं बे ? ते तमोने माल पडे बे किंवा नथी पक्तुं ? राजाए कयुं के, 'वांसो' तो बे. गुरुए कर्तुं के, आपणने यागली ( चक्षु सामेनी ) सर्व वस्तुनी खबर पडे बे, पण साक्षात् चकुए करी वांसानी ख बर नथी पडती, तेनुं शी रीते ? एटले के, वांसो चवडे देखी शकातो नथी, तेम बतां तमे पाउल 'वांसो' बे, एम शाकारणथी कहो बो ? तमे 'जीव' नथी देखातो तेथी ते (जीव ) मानता नथी, तो वांसो बे एवं केम मानो बो ? तमारे तो तमने फावतुं आवे तेज मानवुं, एवं दीसे बे. बेमांथी एके प्रकारे एटले हा के ना कहेवाने तमने परवतुं श्रावशे नहीं. माटे 'जीव' बे ए सत्य करी मानवुं. या प्रकारे कहेली गुरुनी वात उपर राजाने कांईक प्रतिती यई, परंतु पूरेपूरो संदेह नहीं जवाथी तेणे जणाव्युं के - " जी - २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 2/ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली वने जोवा माटे में केटलाक चोरने हण्या, बेदन नेदन कर्या, पण जीव किहांयें न दीगे.” गुरुए कह्यु के, तुं जो, अरणीना काष्टमां अग्नि के नहीं ? तेमां अग्नि . परंतु केटलीक रूपी वस्तुनो स्वनाव तत्काल नहीं देखावानो होवाथी तेमां अग्नि डे एवं तुरत मालम पडतुं नथी, पण जो तेने (अरणीना काष्टने) लोढाना सरिया प्रमुख साथे घसे तो अग्नि प्रगट थाय बे. रूपी पदार्थमां धाम , तो जीव, के जे श्ररूपी , ते केवी रीते दृष्टीए पडे ? वली जो, सांजल अने विचार कर, के 'उधमां घी,' तिलमां तेल,' अने 'फूलमा सुगंध, 'बे के नही ? बे, बतां केम दृष्टीगोचर नथी श्रावतां. ए संबंधे तारे विचार, जोईए के उपर बतावी ए विगेरे केटलीक रूपी वस्तु देखाती नथी, तेनुं कारण तो तेनो मूल स्वत्वावज तेवो ने तेथी ते देखाती नथी, पण बीजा प्रयोग वडे ते देखी शकाय जे. परंतु जीव तो मूलेज अरूपी बे तो ते केम देखी शकाय ? देखी शकाय ज नहीं, ए तारे निःसंदेह जाणवू. त्यारपडी राजा कहेवा लाग्यो के एक वखत में चोरने कोठीमां घाली तेनुं ढांकणुं बंध करीसीसुढाली तेमां जरा पण पवनमात्रनो संचार न थाय तेवो बंदोबस्त को हतो, तथापि ते चोरनो जीव गयो अने वली विशेषमा बीजा केटलाक कीडा तेमां आवेला मालम पड्या, चोरनो जीव क्यां थईने गयो अने कीमाना जीवो क्यां थईने श्राव्या, ते विषे घणी बारीकीथी तजवीज करी परंतु ए कोठीमां कोई पण जगोए सोयना अग्रनाग जेटलुं पण बिज पडेलु जोवामां श्राव्युं नही. खात्रीपूर्वक कही शकुं बुं के तेमां बीलकुल काएं पडेलुं नहोतुं, तेथी हुँ तो एमज मार्नु बु के 'जीव' ने ज नहीं, ए तो पंचनूत थकी उपजे २ अने लय पामे बे. श्रा बाबतना समाधानमां गुरुमहाराजे तेने जणाव्यु के, रूपी वस्तुनां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. काणां नथी पडतां, तो जीव, के जे थरूपी ले तेनां तो काणां पमेज केम ? न ज पडे. राजा बोल्यो के, जो एम ले तो एवं कोई प्रत्य६ प्रमाण श्राप बतावी शकशो? गुरुमहाराजे कयु के, हे राजन् ! सांजल: जमीननी अंदर करेला गुप्तघरमा एटले नोयरामां कोर्शक मनुष्य रह्यो उतो ते नोयरानां कमाड, जाली श्रादि बिउ विगेरे तमाम बंध करीने तेमां ढोल, नगारां, नेरी, तुंगल, सरणार्थ, मादल विगेरे विविध प्रकारनां वाजिन वजाडे तो तेनो घोष जमीन उपर रहेला मनुष्यो सांजले , के नही ? तेमज अमुक अमुक वाजित्रनो श्रा शब्द डे एम पण स्पष्ट समजी शकाय , के नही ? राजाए जणाव्युं के, ए तो सांजली शकाय अने समजी पण शकाय बे. गुरुए जणाव्यु के, ते स्थानके बिज मात्र नहोतुं, बतां पण तेमां थयेला घोषनो शब्द संजलायो अने समजायो, ए उपरथी खात्री करी लेवी के, वाजित्रो तो रूपी तेनो शब्द संजलावामां विजन पड्यु तो अरूपी जीवाव्य सर्वव्यापी ले ते जीवन बिज केम प? न ज पडे. ईत्यादि दृष्टांतो देखाडवाथी राजानी संपूर्ण खात्री थई के 'जीव' . ए वात निःसंदेहपणे तेणे मान्य करी. त्यारपती राजाए गुरुमहाराजने कह्यु के, 'जीव' बे एम मारी खात्री थई, पण तमे पुन्य अने पाप , एम जे कहो हो ए मारा मानवामां आवतुं नथी. ए वातनो मने संदेह , पाप अने पुन्य बेज नहीं. गुरुमहाराजे तेना उत्तरमा जणाव्युं के, पाप अने पुन्य ए बन्ने , तेनां फल प्रत्यद देखाय जे. जो तुं पुन्य पापर्नु फल नथी, एम कहीश तो एक सुखी अने एक छखी; एक हाथी उपर बेसीने जाय , एक पगपालो जाय बे; एक सुखपालमां बेसीने जाय , एक तेने उपामीने चाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ सूक्तमुक्तावली बे; एक गकुर थईने हुकम फरमावे , एक तेना ताबामां रही नोकरी बजावेले; एक राजा महाराजा थईने स्वारी कहाडी एकने आगल दोमावे; ए बधुं शाथी थाय ? पुन्यवान शेठ थाय ने अने अपुनीयो चाकर थाय जे.आथी तहारी खात्री थशे के पुन्य अने पाप ज. प्रत्यक्ष प्रमाण ए तेनां फल बे. श्रा हकीकत सांजली तथा तेवां बीजां पण केटलांक दृष्टांत गुरुए कह्यां ते सदही राजाए 'पुन्य अने पाप' ने ए वात मान्य करी; तथापि तेणे कडं के, जले, ए वात खरी पण तेमां मने एक वातनो विचार ( संदेह ) श्रावे जे; ते ए के-महारी वडीआई हती ते तो तमारो धर्म घणोज मानती हती थने ते प्रमाणे वतति हती, तमाराज धर्मनी रागी हती, तेथी तमारा मते (श्रनिप्राय प्रमाणे) तो ते देवतापणुं पामी हशे. ते वडीबानो महारा उपर घणोज राग हतो अने ते मने घणुंज चाहाती हती, हरेक प्रकारे महारं श्रेय करवा ते मथती हती. ए मरीने देवता थई बतां ते मने कहेवा पण आवी नहीं एनुं शुं कारण ? तेवारे गुरु कहे के, हे राजन् ! हुं तने ए (देवता) संबंधी एक वात कहु ढुं ते ध्यानपूर्वक सांजल-" देवताउने मनुष्यलोकनो गंध श्रावे , ते गंध क्यांसुधी ऊंचो जाय ते विषे गाथा:-चत्तारीपंच जोयण सया॥गंधोत्रमणुअलोगस्स॥ऊ8वचरंजेणं ॥नहूदेवातेणथावंती ॥१॥ अर्थ-'चारसे तथा पांचसे जोजन ऊंचे सुधी मनुष्यलोकनो गंध जाय जे तेथी देवता आलोकमा श्रावता नथी.' वली देवता कांई आपणा श्रोसीयाला नथी जे अहीं आवे. ते विषे एक दृष्टांत तने कहु बु ते सांजली तेनो प्रत्युत्तर प. हे राजन् ! तुं श्रवल रीते नाह्यो होय अने रुमां ऊजला वस्त्र पहेरी देवसेवाने अर्थे जतो होय एवा अवसरने विषे तमारोज रात दीवसनो सेवक कदापी कोई चमाल पोताने माथे उचिष्ट वस्तु उपाडीने ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १३ तो होय तेणे तमने देखीने कथं होय के, हे राजाधिराज ! हुं तमारी बांडी वस्तुनुं जण करनारो बुं माटे महारा मुखनी एक अगोचर वात बे ते तमे यहीं श्रावीने सांजलता जार्ज. ते वखते तमे त्यां ( तेनी पासे ) जार्ज किंवा न जाउं ? अथवा तेनी वात सांजलो अगर न सांजलो ? राजाए उत्तर आपतां कयुं के, स्वामी ! तेनी पासे जाऊं नही, ऊजो पण न रहुं अने वात पण न सांजनुं श्रावुं तेनुं बोलवु सांजली गुरुए जणान्युं के, जेम तमे तेनी वात सांजलवा न जार्ज तेम ए देवता पण एमज जाणीने ही मनुष्यलोकमां यावता नथी. कदापि कोईक देवता यहीं श्रवे वे ते तो वचनना बांध्या थका थावे बे, अने बीजां पण टांक कारणवसात् वे बे ते उपर कहेली गाथा:- पंचसुं जिनकल्ला सुचेव ॥ महरिसीतवाणुंजावा ॥ जम्मंतरनेहणय ॥ श्रागच्छंतिसुराईयं ॥ १ ॥ अर्थ - ' जिननां पांच nearest विषे देवता यावे, तथा माहारुषीना तपने प्रजावे देवता यावे, जन्मांतरने हेते स्नेहेकरीने देवता मनुष्यलोकमां यावे. ' था जणाव्यां तेटलां कारण प्रसंगे देवता मनुsatani वे, अन्यथा श्रावे नहीं. स्वामी ! थापे ए सत्य कहां, एम जणावी वली पण राजा गुरुमहाराजने कड़ेवा लाग्यो के, हजु मारा मनमां एक संदेह बे ते फेको (मटावो). ते ए के:- मारो पिता घणोज अधर्मी महापा पनो करनारो हतो, त्यारे ते तो तमारे मते मरीने नर्के गयो दशे. ते पण मने कहेवा श्राव्यो नहीं तेनुं शुं कारण? तेवारे गुरुए की धुं के - जे नर्कने विषे जई नारकीपणे उपजे बे, तेने परमाधामी देवता महा महा पराजय करे बे, केमके ए नारकी परमाधामीने वश वे एपरमाधामी नारकीजीवने केवी केवी वेदनी उपजावे बे ते हुं तने जावुं हुं ते ध्यान देई सांजल. साते नरकपृथवीने विषेशीता " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ सूक्तमुक्तावली दिक दश प्रकारनी क्षेत्रवेदना बे. श्रन्योअन्य मांहोमांहे प्रहरण विना उपजावेली वेदना ते पण साते नरके बे, मांहोमांहे प्रहरणनी कीधेली वेदना पण पांच नरक सुधी बे, हेवली अने पहेली त्रण नरके परमाधामीनी कीधी वेदना पण , ते वेदना कई कई ले ते सांजलः- शीत वेदना १,ऊष्ण वेदना २, कुधा वेदना ३, तृषा वेदना ४, खरज वेदना ५, परवशपणुं ६, ताव ७, दाघ ज्वर , जय ए, अने शोक १०. ए दश प्रकारनी वेदना नारकीना जीव वेदे .तेमज वली बीजी पण केटलीक वेदना तेउने जोगववी पडे बे. ते वेदनीने लीधे नारकीना जीव अहीं आवी शकता नथी. वली परमाधामीना वशमां पडेला तेथी ते पोते स्वतंत्र नहीं होवाने लीधे पण श्रावी शकता नथी. वली तने एक दृ. ष्टांत कहु बुं ते सांजल अने तेनो उत्तर आप. क्वचित तमारी स्त्री सूरिकांता साथे कोई प्राणी विषयसुख जोगवतो होय श्रने तमे तेने देखीने पकडो, पढी तेने शुं करो? राजा कहे, खामी! तेनी कायाना खंडोखंड करी चारे दिशे बलिदान देऊ. तेवारे गुरुए कह्यु जे-ए विषयीपुरुष तमने आजीजी करी विनवे के, हे राजाजी ! तमे मने मुको तो हुं महारा कुटुंबने मली श्रावू; तो तमे तेने मुकशो के नहीं ? राजा कहे जे-महाराज ! हूं तेने न मुकुं. गुरु कहे, शामाटे ? राजा कहे के- महा श्रपराध कयों माटे न मुकुं, न जावा देऊ.गुरु कहे के, जेम ए माणस मलवाने ना जई शके तेम ते ( नारकीना जीवो ) पण अहीं न श्रावी शके. जेम तमारी रीत ने तेम परमाधामीनी पण एहज रीत जाणजो. ए नारकीना जीवने जवा देताज नथी. एवां घणां दृष्टांत रायपसेणी सूत्र मध्ये घणा विस्तारथी वर्णवेलांबे, अहीं तो संक्षेप मात्र जणाव्यां बे. उपर जणाव्याप्रमाणे केसीकुमार गणधर महाराजे प्रदेशी राजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૫ भाषान्तर सहित. ने प्रतिबोध पमाडवाथी तेनो संशय दूर थयो अनेजैनधर्म उपर तेने संपूर्ण श्रद्धा थई. तेणे श्रावकनां बार व्रत उचर्या. त्यारपबी राजाए राज्यव्यना चार जाग कर्या. एक नाग नंमारनो १, बीजो नाग अंतेजरनो २, त्रीजो नाग दान पुन्यनो ३, अने चोथो जाग लश्करनो ४. श्रा प्रकारे धर्म पामी निश्चय करीने राजा जे चित्रसारथीनी साथे रयवामी जवानिकट्यो हतो ते पडतुं मुकी गुरुमहाराजनी पासेथी पाधरो घेर आव्यो.संसार उपर तेना परिणाम घणा खूखा थया. पोसा, पडिकमणां, सामायिकादि व्रत पञ्चखाण करवामां सावधानपणे रहेवा लाग्यो. गणधर महाराज अन्यत्र स्थानके विहार करी गया. हवे राजा विषय उपरथी पण मुळ उतारी संसारमा रह्या बता विरक्तपणे वर्तवा लाग्यो. पहेलो पोतानी सूरिकांता स्त्री उपर तेने घणो प्यार हतो ते पण मटी गयो. सूरिकांताए पोताना प्रितमनो प्यार तेणीना उपर नथी अने हवे ते तेणीनी विषयवासना पण पूर्ण करवानो नथी एम ज्यारे चोकस जाएयुं त्यारे ते ( सूरिकांता ) अन्य पुरुष साथे बुब्ध थई. एम जाणीने जे, हवे ए जार महारेशा कामनो के. एतो सामी मने थामखील करनारो थई पमवाथी स्वेछाए महाराथी वर्ती शकाशे नहीं, माटे ए नजरथी वेगलो क्यारे थाय ? एवो लाग तपासवा लागी. एक वखत राजाए बह (बे उपवास) को हतो, तेना पारणाना दीवसे ए सूरीकांता राणीए जोजनमा विष नेलव्यु, अने ए विषमिश्रितनोजन राजाने खवराव्युं. राजाना जाणवामां ते आव्यु पण संतोष परिणामे श्रामिक धर्म ओलखी रत्नत्रय धारी संवेग परिणामनी धारामां ते समाधिमां सूई रह्यो. ते वखते सर्व सामंत उमरावादि कुशलता पूबवा माटे श्राव्या, तेथी राणीए विचार्यु जे, रखे कोईना मुख पागल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ सूक्तमुक्तावली राजा विषनी वार्ता कहे!जो ए वात करशे तो महारो पडदो फुटी जतां हुं खराब थईश अने ए बची जवानो संजव . एम विचारीने राणी तरत राजाना बीबगना पासे गई अने स्त्रीचरित्र करती केशपासमुत्कल मुख उपर करी राजाना उपर पडतुं मूकी तेने गले अंगुगे दबावी दीधो. राजा मर्ण पाम्यो. राणी लोकोने पोतानी खोटी पण दीलगीरी बताववा गला विलाप करी पोकार करती बाहार नीकली. राजा काल करी समाधिमर्णना प्रनाव. थी पहेला देवलोके सूर्याजविमानने विषे सूरियाज नामे देव थया. चार पट्योपमनुं श्रायुष पूर्ण करी त्यांथी चवीने महाविदेह क्षेत्रमा मनुष्यनव पामी गुरुनो जोग लही चारित्र आईने कर्म खपावी मोद जशे, अनंता सुखने पामशे. ते माटे ए प्र. देशी राजानो संबंध जुर्ज. जो सद्गुरु मख्या तो धर्म पाम्या अने तेथी देवतानी झछि पाम्या अने मोक्षसुख पण प्राप्त करशे. ॥अथ धर्मतत्व विषे ॥ ॥जलनिधि जलवेला चंथी जेम वाधे॥सकल विनवलीला धर्मथी तेम साधे ॥ मनुअजनमकेरोसारते धर्म जाणी॥नजिनजि नविनावेधर्म तेसौख्य खाणी॥७॥ अर्थः- जेम चंडमाना जोरथी समुखनी वेल वधे, तेम धर्मना जोरथी संसारिक संपदा वधे, मनुष्यजन्मनेविषे धर्म ते सार जाणीने, हे जव्य प्राणी तुं नावे एटले आदर सहित सुखनी खाण जेवो जे धर्म तेने जज जज एटले आराध आराधः ॥७॥ ईद धरम पसाये विक्रमे सत्य साध्यो ॥ इई धरम पसाये शालिनो साक वाध्यो। जस नर गज वाजी मृत्तिकाना जिके॥रणसमय थया ते जीव साचा तिकेईना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली १७ अर्थ :- एहज धर्मना पसायर्थी वीरविक्रमादित्ये पोताने सवेकरी ते प्रामवडे बधुं राज्य मेलव्युं ने वीर संवत्सर का - ढीने पोतानो संवत्सर स्थाप्यो, वली धर्मना प्रजाव थकी शालीवाहननो शक थयो, सघले जसवाद थयो, वली एहज धर्मना प्रजावी हाथी पामे, अश्व पामे, रणमध्ये जयवाद पामी दिविजय करी घरने विषे जित - फतेह करी खावे ए सर्व धर्मनुं फल जानुं ॥ ८ ॥ ॥ धर्म तत्त्व उपर विक्रम राजानी कथा ॥ मालवा देशमां ऊजेपी नामे नगरीने विषे गंधर्वसेन नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने रुपे रंजा समान मुक्तावली नामनी राणी हती. तेनी कुक्षीने विषे वे पुत्ररत्न प्राप्त थया हता. मोटानुं नाम जर्तृहरीने न्हानानुं नाम विक्रम राख़वामां श्राव्यं हतुं. अनुक्रमे ते बन्ने पुत्र यौवनावस्था पाम्या. त्यारपठी गंधर्वसेन राजाए पोतानी वृद्धावस्था जाणीने जर्तृहरीने पोताने पाटे स्थाप्यो, तेथ विक्रमकुमार साईने परदेश चाल्यो गयो. जर्तृहरी राज्य पालतो थको विचरे वे ते वखते ते नगरमां एक दरिद्री ब्राह्मण रहे तो हतो. तेने ब्राह्मणीए कघुं के, धन विना घरवास केम चालशे ? माटे तमे धन ऊपार्जी. पी ते ब्राह्मणे हरसिद्धि देवीने याधी. देवीए प्रगट थईने तेने पुक्युं के तें मने शा माटे - राधी बे ? ब्राह्मणे तेने कीधुं के मने अजरामर फल पो. ब्राह्मणनी मांगणी मुजब देवीए तेने अजरामर फल खाप्युं. ते लेई ब्राह्मणे विचार्यु के, जो या फल नर्तृहरी राजाने श्रपुं तो ते मारा उपर तुष्टमान थई भने घणुं धन आपशे, जेथी करी महारो घरसंसार सुखरूप चालशे पढी तेथे ते अजरामर फल नर्तृहरी राजाने प्राप्यं. ते फल देखीने राजा आश्चर्य पाम्यो अने तेनुं स्वरुप तेणे पुग्युं. ब्राह्मणे फल पाम्यानुं स्वरुप राजाने ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बगडवने श्राप्यु. पावशेष प्रेम थाय राखेला ) ने श्रापरखा बागी २७ नाषान्तर सहित. जणाव्युं. ते सांजली हर्ष पामीने राजाए ब्राह्मणने घणुं धन आप्यु. राजाए ते फल पोतानी प्यारी पटराणीने हर्ष उपजाववानाहेतुथी थाप्यु. राणी ए फल बेईने विचारवा लागी के, ए उत्तम फल मारा पांडव ( राखेला ) ने श्रापुं के जेथी तेनो मारा उपर विशेष प्रेम थाय. श्राम धारी राणीए ते फल पांडवने आप्यु. पांडवे ते फल लेईने विचार्यु के, ए फल मारी वेश्याने श्रापुं तो ठीक, के मारा उपर वधारे स्नेहनाव राखे. पठी पांडवे पोतानी श्रृंगारमंजरी नामनी गणिकाने ते फल आप्यु.श्रृंगारमंजरी विचारवा लागी के जो श्रा फल हुँ राजाने श्रापुं तो ते मारो घणो उपकार मानशे. या प्रकारे आलोचना करी श्रृंगारमंजरी ते फलने एक थालमां मुकी पोताना परिवारने साथे लेई राजसनामां श्रावी, अने अजरामर फल राजाने नेट मुक्यु. राजाए ते फलने उलख्युं तेथी ऊंडा विचारना वम. लमां पडी गयो अने बातो कोई विरुई वात दीसे एम धारीने तेणे गणिकाने पुज्यु के ए फल तुं क्याथी लावी ? गणिकाए साची वात न जणावतां जूठी वात गोठवीने राजाने समजाववा मांड्यो, पण राजा, के जे था फलनी वातथी पूर्ण माहितगार ह. तो तेणे तेनुं कहे, तदन खोटुंडे एम जणावी तेने फरी फरी पुग्युं, तो पण तेणे खरी हकीकत कही नहीं. आवटे तेणीने ताजणे मारवा मांडी त्यारे ते कहे के साची वात जणावं , मने मारशो मां. पड़ी तेणीए जणाव्यु के, तमारा घरमां पांडव नामे सेवक तेणे मने श्राप्युं . राजाए पांडवने बोलावी पुज्युं के ए फल तुं क्याथी लाव्यो? तेणे पाडो उत्तर न दीधो. तेने पण कुमो (खोटो) जाणीने तांजणेकरी कुटवा मांड्यो तो पण ते साचुं न बोल्यो. राजा प्रकारांतरथी था वात मनमां समजीने राणीनुं चरित्र जाणी वस्त्रमा ते फलने ढांकीने राणी पासे गयो भने पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पए सूक्तमुक्तावली ब्यु के, में तने जे अजरामर फल प्राप्यु हतुं ते तें जक्षण कयुं ? राणीए जणाव्युं के ते में नदण कयु . राजा मनमा विचारवा लाग्यो के, था स्त्री पण एज खनावनी जे अर्थात् सारी चालनी नथी. माटे ए असार एवो संसार के एम चिंतवीने वैराग्य पामी राजाए दीक्षा ग्रहण करी. विक्रम परदेश चाल्यो गयो हतो ते फरतो फरतो उजेणी नगरीनी बाहार दीप्रा नदीने कांठे श्रावीने रह्यो हतो. ते वखते त्यां पागल एक लाख पोठीनो साथ उतर्यो हतो. विक्रम कुमार ए पोउनी अंदर चोरी करवाने पेठगे. ए पोउनो स्वामी पोताना एक मित्रनी साथे ए अवसरे सारिपासे रमतो हतो. तेवामा दीप्रा नदीमां पूर आव्यु. ते समये त्यां पागल फरती एक सीयालणी बोली. ते सांजलीने मित्रे शेग्ने पुज्यु के सीयालणी शुं बोली ? शेठे सीयालणीना शब्दोनो हेतु समजीने मित्र प्रत्ये कह्यु जे- ए ( सीयालणी) एम कहे डे के, आ दीप्रा नदीना पूरमा एक स्त्रीनुं शब तणातुं आवे , तेना अंग उपर घणां आनूषणो , तेम तेनी पासे धन पण . जो कोई साहसीक पुरुष होय तो ते नदीमांथी ए शबने काढी लावी तेनी पासेनुं धनादि लेई तेना कलेवरनुं मने लक्षण आपो. आ वात पोग्नी अंदर चोरी करवा आवेता विक्रमकुमारे गुप्तपणे रहेलो होवाथी सांजली, तेथी ते तरत दीप्रा नदीना पूरमां उतरी पड्यो अने तरतां तरतां जई स्त्रीना शबने खेंची लावी तेनी पासेना आजूषणादि लेईने सीयालणीना कहेवा मुजब कलेवर तेने नद करवाने आप्यु. पड़ी गनोमानो अगाऊ ज्यां पोउनो खामी अने तेनो मित्र सारिपासे रमता हता त्यां श्रावी गुप्तपणे ऊनो रह्यो. त्यारपबी वली तेज सीयालणी बोली. मित्रे शेउने ते संबंधी पुज्युं, त्यारे तेणे कयु के-हे मित्र ! ए एम कहे डे के, जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भाषान्तर सहित. मनुष्ये मने जण दीधुं ते पुरुष ऊजेणीनुं राज्य करशे. विक्रमें हकीकत पण सांगली. एटलामां तो वली फरी त्रीजी वार सीयाली बोली. या वखते शेठे गुप्तपणे विक्रम ऊजो रह्योहतो ते प्रत्ये (तेने) दी. देखतांज तेने अंगोअंगे नेटी पड्यो. विक्रमे प्रगट थ शेठना मुखथी त्यां आगल सीयाली जे जे बोली हती ते सर्वे बीना सांजलीने हर्ष पामी शेवने कयुं के, थी तुं मारो मंत्री. त्यारपठी ते मंत्रि ने राजा ( विक्रम ) नगर जणी जवा लाग्या. ते वखते तेमने सर्व उत्तम सुकन थया. सुकन वधावी नगरमा प्रवेश कर्यो तेज तखते कोई एक राज्यपुरुष एक कुंजारने वारानी चीठी थापी तेना पुत्रने लई जतो हतो ते जोवामां व्यं. कुंजार, तथा तेनी स्त्री पोताना पुत्रने लेइ जतो जोई आक्रंद करता इतां. ते देखीने विक्रम बोल्यो के, तमे केम रुदन करो बो ? त्यारे तेमजाव्यं के, श्रमे वृद्धावस्था पाम्या बीये, ए एक बेटा उपर अमारी सर्व श्राशा छे, ते अमारा दीकराने या राज्यपुरुष लेई जाय वे तेथी मे रुदन करीये बोये. ते वखते विक्रमेकस्युं के, तमे रुदन म करो. हुं तमारा पुत्रने स्थानके जईश. पण मने तमे जणावशी के, ए राज्यपुरुषे शी बाबतना वारानी ची - वीतमने थापी अने ते तमारा पुत्रने क्यों लई जवानो बे ? तमे बेफ कर रहो, व्हाय तेवा विकट स्थले जवानुं हशे तो पण त्यां हुं तमारा पुत्रने बदले जईश. विक्रमनां घ्यावां साहसीक वचन सांजली कुंजारने धीरज यावी अने तेणे वारानी चीठी शामादे आवी तेनुं कारण नीचे मुजट जणाव्युं. ८८ आ नगरना जर्तृहरी राजा एक अजरामर फलनां संबंधमां बनेली हकीगतथी वैराग्य पामी दीक्षा लई गया पढी अ हनुं राज्य सुनु पकवाने लीघे ' आागीयोवीर' सर्व प्रजाने हे - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली रान करवा लाग्यो. तेथी तेने दररोज एक माणसनो जद आपवार्नु राज्यवर्गी पुरुषोए प्रजानी संमती मेलवी मुकरर करेढुंबे. ते प्रमाणे दररोज वारा फरती आखा नगरमांथी घर दीठ एक पुरुष तेना नद माटे आपवो पडे . आज नद माटे पुरुष श्रापवानो मारो वारो आव्याथी ते संबंधी मारा उपर वारानी चि. ठी आवी अने मारा पुत्रनो जद आपवा सारु आ राज्यपु. रुष तेने लाई जवा लाग्यो बे. चीठी आववानुं अने मारा पुत्रने लाई जवानुं जे कारण वे ते में आपनी पासे निवेदन कर्यु . हवे आपने जेम योग्य लागे तेम करो." विक्रमे ए कुंजारना नोकराने राज्यपुरुष पासेथी तेना पिताने पाबो सोंपाव्यो, अने लागलो त्यांथी मंत्रीने साथे लेई दरबारमा जई पोते सिंघासन उपर बेठगे. तेने उलखी सर्व लोक हर्ष पाम्या अने सर्व राजकुलि श्रावी तेने नम्या. पनी राजाए विचार्यु के, में कुंजारने तेनो पुत्र सोंपाव्यो, परंतु रात्रे वीरने बली आपवी जोईये माटे तेनो कोईक उपाय करवो उचित . विचारतां विचारतां तेणे बुझि सुजी श्रावतां तुरतज कंदोईने तेमावीने कडं के, तमे आज सर्व जातनी उत्तम प्रकारनी सुखमी करी श्रापो. कंदोईए राजाना हुकम मुजब सुखडी तैयार करी थापी. राजाए ते सुखडी तथा विविध जातनी रसवती नीपजावरावीने तेना उरमा नरी दीधा. घणां पान सोपारी, चूश्रा चंदनादि सर्व खादिम् स्वादिम् अने मुखवासादिनी वस्तु रडाथी खीचो खीच जरी देश तेमां घणा दीवा कराव्या तथा सुगंधमय धुप धुपाव्या. दिवस अस्त थतां सर्व लोक पोत पोताने स्थानके गया. आगीयावीरनी बीकने लीधे कोई पण माणस राजमंदिरमा रहेतुं नहोतुं. आज रात्रे राजा एकलो राजमंदिरमा रह्यो, पलंग उपर शीरख पाथरी काष्टनो पुर (पुरुषाकार)करीने तेना उपर वस्त्र ढांकी विक्रम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. त्यां आगल दीवानी पुंठे हाथमा खड्ग बेई बानो उत्तो रह्यो. मध्य रात्रिने समये श्रागीयोवीर मुखे फूकारा मुकतो, हाथमां ममरु वजावतो, पगे घरा घमकावतो, रातां नेत्र करी धरती कंपावतो, मद्य मांसनो थाहार करनारो आव्यो. श्रावतांज तेणे काष्ट प्रत्ये हथीधारे करीने हण्यो. काष्टना बे खंग थया पण माणस न दीगे त्यारे ते चारे दीशाये जोवा लाग्यो. ते वखते राजा दीवानी पालथी नीकली श्रावी वैताल (वीर) ने नम्यो. वैताले तेने पुज्युं के आ बधुं कोने माटे मुक्यु ले ? राजाए ज. पाव्युं के, तमारे अर्थे, ए सर्व वस्तुनो नोग लेईने रोग टालो. वैताल सर्वनो नोग लेई तृप्त थयो अने संतोष पामी राजानु धैर्य जोई तेना उपर तुष्टमान थई बोल्यो के, हे राजन् ! तुजने में ए राज्य प्राप्युं अने तुं मने आ प्रमाणे हमेशां बली श्रापजे. एम कही त्यांथी अदृश थयो (चाल्यो गयो ). त्यारपठी राजा निश्चिंत थ सैय्या उपर सुई रह्यो. प्रजात थतां राजाए सैय्या थकी उठीने बहु दान दीधुं. प्रजालोक तेने घणो आसिर्वाद देवा लाग्या. सुखे समाधे राज्य करवा लाग्यो, परंतु वैतालने दररोज रात्रिए बली श्रापवो पडतो होवाथी ते तेने घणुं खटकतुं हतुं. ते न आपवो पडे एवी कोईक युक्ति खोली काढवामां तेनुं चित् लागी रह्यं हतुं. एक वखत वीर श्राव्यो त्यारे राजाए तेने पोतानुं आयुष्य केटबुंडे ए विषे पुब्युं ? वीरे कयु के तहार सो वर्षनुं आयुष्य . त्यारे विक्रमे कीg के आंकमां शून्य पड्यो माटे तेमां एक अधिक करो अथवा एक हीन करो. वीर कहे के, एमांथी अधिक के उबु कोश्थी न थाय. या वात सांजलीने ते वखते वीक्रम मौन धारण करी गयो. बीजे दीवसे तेणे मन साथे विचार कीधो के, आयुष्यमां वध घट थई शकती नथी तो ए (वीर) मने शुं करनार ? धीरजनां फल मीगंडे, धैर्य धर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली वाथी सर्व सिक थशे, माटे एने बली पवो नहीं, जोऊ के ते शुं करे ? बीजे दीवसे मध्य रात्रे वीर आव्यो. त्यां तेणे बली न दी एटले ते राजा उपर कोपायमान थयो. राजाए तेने कडं के जो तमे बलवान हो तो आवो श्रापणे बे युद्ध करीये. त्यारे वैताल हसीने बोल्यो के, हे राजा! तुं महा साहसीक सर्व सुनटमांहे वडो , माटे हुँ तारा उपर तुष्टमान थयो बुं, तारी वामां आवे ते वर मारी पासे मांग. राजाए मांगणी करी के, "अहनिशी तमारे मारी संजाल राखवी, समर्या अणसमर्या मारी पासे आवज्यो.” वीरे ते प्रमाणे राजाने वर (कोल) दीधो. आथी राजा कोई पण प्रकारनो लय धरतो नहीं अने स्वैठाये राज्य करतां प्रजाने पोतानी प्रजातूल्य मानतो हतो. ए उजेणी नगरीमा एक घांची रदेतो हतो तेनी पासेथी राजाए पंचडंग साध्या. सुधर्मा इंड विक्रमना गुणे करी वसीनूत थयो थको तेना उपर घणी प्रीती राखतो हतो. तेणे राजाने बेसवा माटे एक सिंहासन मोकल्यु हतुं तेना उपर घांची समीपथी मेलवेला पंचडंडनुं बत्र कर्यु हतुं. ए सिंहासन उपर बेसवाथी राजा घणो शोजतो हतो. वली एणे त्रणसो नानापुरस साध्या. ते सत्वने पसाये करी जगनुं सर्व रण (रुण ) तेणे काप्यु. ए रीते सुखे राज्य पालतो हतो. ___ एकदा समयने विषे ते उजेणी नगरीमा माहाकालना देराने विषे कुमुदचंड नामना आचार्य महाराज विक्रमने प्रतीबोधवाने अर्थे श्रावी उतर्या. ते महादेव (महाकाल)नी पीमी उपर पग मुकीने सुता. पूजारो श्राव्यो त्यारे ते आ विपरीत जोई बोव्यो के, अरे! तुं महादेवनी अवज्ञा केम करे ? श्राचार्ये तेने कांई पण उत्तर न दीधो. पडी पूजाराए श्रा वृत्तांत विक्रम पासे जई निवेदन कर्यो. विक्रमे श्रावेशमां श्रावी जई हुकम कर्यो के, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ भाषान्तर सहित. ए पाखंमीने मारी काढो. ते सांजली राजाना सेवके आवीने तेने पगे पकमी खेंचवा मांड्यो, एटले पग वध्यो-लांबो थयो, हाथ खेंचता ते पण वधवा मांड्यो, मार मारतां ते अंतेउरमां वागवा लाग्यो. पठी ते सेवके राजा पासे श्रावीने कडं के, एने (श्राचार्यने ) उपञ्व करतां तो विघ्न थाय . सर्व बनेली बीनाथी तेणे राजाने वाकेफ कर्यो तेश्री राजा पोते देहेरामां श्राव्यो अने विनय सहित आचार्य ने कहेवा लाग्यो के, हे देव ! श्राशातना केम करो डो? श्राचार्ये जणाव्यु के, हुं देवनी श्राशातना करतो नथी, देव तो अमारा एमांज . राजा कहे के, ए देव तो अमारा तमाराक्यांश्री? अर्थात् तमारा नथी. जो तमारा होय तो प्रगट करो. ते वखते प्राचार्ये कल्याणमंदिर स्तोत्र करी आह्वान करीने जल गट्यु एटले पीमी फोमी मांहीथी अवंति पार्श्वनाथ प्रगट थया. ते वखते विक्रमे आश्चर्य पामी गुरु सिझसेनाचार्यने नमन कयु. पनी शुद्ध देव गुरु धर्मने उलखीने तेणे सम्यक्त सहित श्रावकनां बार व्रत उचाँ. एणे अरिहंतना धर्मने पसाये करीने पोताना सत्व थकी सुवर्ण पुरुषना साहाज्यथी जगतमाहे सर्वनां रण कापीने ते वखते चालतो वीरनो शक काढीने पोतानो शक प्रवर्त्तव्यो. जगवंत वीर मोद गया पठी चारसें सीतेर वर्षे वीर विक्रमनो संवत्सर प्रवयो. पनी विक्रमे पोतानी आझा त्रण खंडमां वर्तावी. अरिहंतनी नक्ति करतां पोतानुं सो वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करीने देवलोक प्रत्ये गयो. विक्रमनी विस्तार कथा जाणवाना जीझासुए ते विक्रम चरित्रथी जाणी लेवी. अहीं तो प्रयोजन मात्र कही बे. ॥धर्म तत्व उपर शालिवाहननी कथा ॥ दक्षिण महाराष्ट्रमा प्रतिष्ठान नामना नगरमां शालिवाहन नामे राजा राज्य करतो हतो. एक वखत ते नगरनी नागोले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. वहेती क्षिप्रा नदीने किनारे फरवा गयेला शालिवाहन राजाए जलतरंगथी अथडातुं एक मल नदीना आरापर श्रावीने ह. सतुं दी. राजा महने हसतुं देखी दोन पाम्यो. कारण के, मक कदी हशे नहीं परंतु तेनी खानाविक प्रकृतिमां था विकृति थई, ते मोटो उत्पात कहेवाय. या प्रमाणे शोक करतो . राजा नगरमां आव्यो अने सघला विद्वानोने बोलावी तेनुं कारण पुब्युं, परंतु कोई तेना मननुं समाधान करी शक्यो नहीं. बेवटे छानसागर नामना जैन मुनीने मब केम हस्युं ? एम पुवाथी तेजेए ज्ञानना अतिशय प्रजावथी तेना पूर्व जन्मनुं चरित्र जाणीने जणाव्युं जेः-हे राजन् ! पूर्व जन्ममां तुं था ज नगरमा निर्वंश एवो लाकडानो जारो वेचनार कठीयारो हतो. हमेशां काष्ठ वेची तेना जे पैसा उत्पन्न थाय तेनो साथु लावी क्षिप्रा नदीमां पडेली शिलापर ते साथुङ मुकी तेमां नदीनुं पाणी नेलवी तेना पिंड बनावी तुं नोजन करतो ह. तो. एक दिवस कोई जैन मुनि एक मासना उपवासने पारणे गोचरीए जता तें दीग. श्रधा उत्पन्न थवाथी तें मुनीने बोलावी साथवानो पिंड वोहोराव्यो. सुपात्रने दान आपवाथी तेना प्रनाववडे त्यांथी देह मुक्त थतां आ जन्ममां तुं शालिवाहन राजा थयो बु. मुनी कालधर्म पामी देवता थया जे. ते देव, पूर्वे काष्ठ वहन करनार जीवनी आ जन्ममां राजानी पदवीने पोहों. चेली तारी स्थिति जोई प्रेमे करी मलना शरीरमा प्रवेश करी हस्या , माटे तारे ए संबंधी कोई शोच करवा जेवू नथी. उहापोह करतां शालिवाहनने जाति स्मरणशानथी पोताना पूर्व जन्मनुं वृत्तांत अनुनववामां आवतां मुनीनुं कहेवू बरोबर सत्य जास्यु. जैन धर्म उपर तेनी घणी श्रका थई. ते दिवसथी दान धर्मने विशेषपणे श्राराधन करवा लाग्यो. धर्मनां कार्य करवामां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ सूक्तमुक्तावली सदा तत्पर रहेतो. दक्षिण हिंमुस्तानमा दान गुणने लीधे एनो शक चालु थयो . अद्यापी टीपणानी अंदर शालिवाहननो ज शक चाले . विक्रम राजानी साथे तेने युद्ध थयुं हतुं ते संबंधी वृत्तांत नीचे मुजब डे. __ सुप्रतिष्ठान नगरमा एक कुंभारने त्यां त्रण यात्रानुए प्रवास करतां श्रावी उतारो को हतो, तेमां बे नाई अने एक तेमनी तरतनी विधवा भएली बहेन हती. ए उर्वशीने पण हरावे एवी खूबसुरत हती. ते गोदावरीनदीना पूर्व किनारे नागड्दनी समीप लगजग संध्यासमये पाणी जरवा आवी.प्रदोषसमय थवाथी गोदावरीपरनी मनुष्यनी नीम तदन वेराई गई हती. तेणीना सिवाय त्यां बीजु कोई नहोतुं. गागर विंबली निर्मल जलनी अ. पेक्षाए नागहदमां लंड पाणीमां प्रवेश करवाने पललवाना जयथी तेणीए पगर्नु वस्त्र उंचं लीधुं, ते समये विधवा होवाथी तेणे काई अलंकार पहेरेला नहोता तथापि तेनी अलौकिक सौंदर्यताने लीधे जेम सूर्योदय थवाथी थारसना पाहाडउपरथी गलेलो वरफ खसी पडवाथी दीपी उठे तेम व तेनी बेट ऊंघाउँ चलकी उठी. ढींचण बरोबर जलमा प्रवेश करी वांकी वली हाथवती जल नरवाने गागर अंदर नमावी, ते वखते वसंतना वायुथी तेना माथानुं वस्त्र खसी गयु. माथाना केसनी सुंदर लटरो बन्ने खजाना नाग उपर थई वांकमी वली खीलेला स्तन शिखरोपर जेम पहाडनां शिखर फोडी नागणी बाहार नीकले तेम फुकी रहेली जोई, अपूर्व नागकन्या मने वरवा श्रावे , ते जरोंसाथी चकित थएलो नागराज अकस्मात् इदमांथी बहार आव्यो. जेम वीजली थवाथी नेत्र मींचाइ जाय तेम ते विधवानुं मुखकमल जोवाथी वारे वारे ते नागराजनां नेत्र तेजथी पुराई जतां हतां. बल करी ते पोताना नेत्रने फाडी जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. श् वा लाग्यो. जलमा उनेलो बे, सायंकालनो ठंडो पवन पुष्पाने थकाई तेना शरीर उपर मंद मंद पडे बे, तथापि उचितो नागराजना शरीरमाथी एवो कामानि उत्पन्न थयो के जेने जीरववाने पोतानुं मन हृद बोडीने तुर्त कुच करी गयुं. विधवागमननो दोष जाण्या व्रतां स्वरूपमां मोहित थलो नागराज सामान्य पुरुषनी पेठे ते ( विधवा )नी प्रत्ये विनयथी प्रार्थना क रवा लाग्यो के, इत्जाग्यवालो हुं याज तारा प्रसादने पात्र थवा इछा करुं बुं. मने आशा बे के, तुं मारुं कदी नहीं यएतुं श्रातीथ्य अंगीकार करीश ? एम कही अंगस्पर्शथी पोताना कामाग्निनी वेदना घटामवाना हेतुथी तेणीगम धस्यो निर्विकार वि धवाए तेनुं घटित साहस जोइ, मानुषी बतां तेनी दुष्ट वाarat aur तिरस्कार कर्यो. परंतु बेवढे देवनी सत्ता धरावनार ते नागराजना असाधारण बलात्कारथी नेत्र मींची ते घटिताचरण सहन करी रही. नागराजे पोतानुं अमोघ श्वर्य होवा - थी विधवाने कयुं के, "तुं फीकर करीश नहीं, ज्यारे ज्यारे तने दुःख उत्पन्न याय त्यारे त्यारे तुं मने संजारीश तो हुं तने ए असह्य दुःखमांथी दूर करीश. " आ प्रमाणे प्रतिज्ञा कही नागराज त्यांथी गयो. जल जरीने शोकयुक्त विधवा कुंजारना मंदिरप्रत्ये पोताना उतारामां श्रावी. अमोघ ऐश्वर्यनुं तेज श्रारोपण थवार्थ वैधव्यधर्मनो नाश थयो, एम पोतानी बेहेनानी चिकित्साश्री गर्जनुं स्वरूप तेना बन्ने जाईना समजवामां श्रव्यं, तेथी तेनो तिरस्कार करी क्लेशयुक्त बेड जाई तेने कुंजारना घरमां मुकी चाया गया. प्रारब्धउपर नरोंसो राखी सग विधवा कुंजारना घरमा रही तेनी सेवा करवा लागी पूर्ण मासे तेने पुत्रनो प्रसव थयो. देवरूप नागराजना प्रजावथी ते बालक महा तेजस्वी ने प्रतापी उत्पन्न थयो. कुंजारने घेर उबयों · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली माटे लोको तेने कुंजारनो पुत्र , एम कहेवा लाग्या. ते कुंजारना घरमा रही, तेना रोजगारमा घणो निपुण थयो. माटीना घोडा, हाथी, मनुष्य विगेरे तरेहवार जातनां रमकडां बनाववा लाग्यो. तेनुं नाम 'शातवाहन ' पड्यु. ते वखते उजेणी नगरीमा विक्रमार्क राजा राज्य करतो हतो. ते पोतानी वृक्षावस्थामां एक वखत विचार करवा लाग्यो के, महारुं राज्य हरण करे एवो महारा पठी कोई पुरुष उत्पन्न थशे ? आवी चिंतामां पमवाथी तेणे होशीयार ज्योतिर्विद ब्राह्मणोने बोलावी पुज्यु. महाराजो, महारी पाउल था चक्रवर्ति राज्यने खुंची ले एवो कोई पुरुष पृथ्विमां शुं ? विद्वानो मांदोमांहि विचार करवा लाग्या. एक वृद्ध अने ज्योतिर्विद्यामां घणो कुशल ब्राह्मण निर्नयताथी उतावलो घांटो काढी विक्रम प्रत्ये बोल्यो-" राजाधिराज ! प्रतिष्ठान नामना नगरमां कुंनारने घेर तेवो पुत्र बे, ते उजेणीनी गादीनो लोक्ता थाय एवो संचव बे.” श्रा वातने बधा विछाने टेको आप्यो. विक्रमने घणी चिंता थई. पड़ी एकदम सैन्य तैयार करी पोते दक्षिणमहाराष्ट्रप्रत्ये प्रतिष्ठान नगरमा गयो अने कुनारनुं घर घेरी लेई तेने बलात्कारथी मारवानो उद्योग को. पोताना पुत्रनुं मृत्यु थशे, एवा जयथी विधवाए नागराजनुं वचन संजारी तेनुं स्मरण कयु. तत्काल प्रकट थर ते नागे एक अमृतनो कुंन अने मोटी शक्ति ते कुमार(शातवाहन)ने श्रापी. तेनी मददथी तेणे अगाउ जे पोताने हाथे माटीवमे बनावेला हाथी, घोडा, उंट, खच्चर, मनुष्य विगेरे हतां तेने अमृत बांटी सजीवन करी तेनुं सैन्य बनाव्यु, अने शक्तिनी सहायताथी ते सैन्य लई विक्रमनी सामे थयो. युद्धमा विक्रमनुं घणुं सैन्य मायुं गयुं अने ते नागे, तेनी पुंठे पनी हगवतो हगवतो तापी नदीना उत्तरकिनारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सदित. शए सुधी तेने लाव्यो. विक्रमे विचार्यु जे, महारं घणुं सैन्य मरायुं , तेथी युक करवामां वखते हार थाय तो बेली अवस्थामां मेलवेली नामनाने कांख लागे, माटे संधि करवो ते ठीक . श्राम विचारी तेणे सलाह करी उराव्यु के, तापीना उत्तरना जागमा विक्रमनुं राज्य प्रवर्ते अने दक्षिण नागमां शालिवाहननु राज्य प्रवत्र्ते, या प्रमाणे कोल करार करी विक्रम उजेणी गयो भने शातवाहने प्रतिष्ठान नगरमां आवी पोतानी गादी स्थापी. त्यारथी ते शालिवाहनना नामथी जगतमां प्रसिद्ध थयो. राज्यवैजव जोगवतां ते चंद्रलेखा नामनी राज्यकन्याने परण्यो हतो. ते महा स्वरूपवान पद्मिनी हती. मायासुर नामनो दैत्य, तामसी देवीने श्राराधन करी, तेने प्रसन्न करी जगतनां समस्त सुख फक्त तेने एकलानेज प्राप्त थाय एवी आशाए ते वाममार्गी हतो तेथी तेवा ग्रन्थोना अनिप्रायप्रमाणे मंत्रसिद्धिनी अपेदाए पद्मिनी चंबलेखाने हरण करी लई गयो हतो. शूपक नामना कोटवाले तेनो पत्तो मेलवी मायासुरने मारी चंडलेखाने राजमंदिरे प्राणी हती. वली नागार्जुन नामना पादलिताचार्यना शिष्ये कोटीवेधी रस उत्पन्न करवामाटे शुरू पारानु, महा प्रतापवाली श्रीपार्श्वनाथजी महाराजनी प्रतिमानी दृष्टिसमीप खलमां मर्दन करवा माटे ए पद्मिनी चंउलेखानुं केटलाक दिवस सुधी रात्रे हरण करी लावी तेनी पासे (पारातुं) मर्दन कराव्युं हतुं. एक दिवस रात्रे स्त्रीने शय्यामां नहीं जोवाथी शालिवाहनने तेनाप्रत्ये शक. आववाने कारणे, नागार्जुने सख्त ताकीद करेली हती तथापि चंडलेखाने ते वात कहेवानी फरज पमी हती अने तेथी राजा तथा तेना बे पुत्रो साथे चंद्रलेखाने, शेढी नदीनी समीप पारानुं मर्दन कराववा नागार्जुने मुकाम राख्यो हतो त्यां आवq पड्युं हतुं. घणी आजीजी करीने ना कामंदिर शाणावधी रस जी महाराजा चं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० सूक्तमुक्तावली गार्जुनने शांत करी पोताना वे पुत्रोने तेनी सेवामां मुकी राजा राणी पोताना नगरमां श्राव्या. कोटीवेधी रसना बे कुपा तैयार थया हता ते राजकुमारोथी बुपा राखवामाटे संतामवाने नागार्जुन रात्रे गया. त्यां कुमारोए तेनी पाउल गुप्त रीते जश्ने तेने गर को. संताडेला बे कुपा लेई राजकुमारो स्वदेश तरफ चाल्या, पण कोटीवेधीरसनो उपनोग करवाने ते पात्र नथी, एम तेना अधिष्ठायक देवताए जाणी, बन्ने राजकुमारोना जीव देहथी विखुटा करी सिझ करेला रसना कुपा लई चालता थया. नागार्जुने शेढीनदीने कांठे प्रतापि पार्श्वनाथजीनी जे प्रतिमा कान्तिपुरमाथी अमर उपाडी लावी कोटीवेधी रस सिद्ध करवा तेनी दृष्टिसमीप पारानुं स्तंनन कराव्युं हतुं ते जगा आज स्तंजनपूर (खंजात) नामथी उलखाय . ए खंनातमां नवांगिवृत्ति करनार श्री अजयदेव सूरीमहाराजे ए महा प्रतापी श्रीपार्श्वनाथ नगवाननी प्रतिमान स्थापन करेलुंडे. ते प्रतिमा स्तंजना पार्श्वनाथना नामथी शोलखाय बे. पादलिप्ताचार्य, नागार्जुन विगेरे केटलाक महा विद्यावान अने जेमनां चरित्रो घणा जाणवा योग बे, एवा पुरुषो शालिवाहनना समयमां थएला बे, परंतु ग्रंथगौरवताना जये तेमज श्रा विषय संबधमां अहीं तेनुं विशेष प्रयोजन नहीं होवाथी ते दा. खल करवामां आव्यां नथी. जिज्ञासुए प्रबंधचिंतामणी विगेरे ग्रंथोथी ते जाणी लेवू. श्रा कथामां सार ए ग्रहण करवानो ने के, धर्मउपर दृढता लावी पूर्वनवमां मुनीने दान देवाथी शालिवाहन, विक्रम जेवा महान राजाने पण हंफावे तेवो राजा थयो भने दक्षिणमां शक प्रवर्त्ताव्यो, जे अद्यापिपर्यंत चाले . माटे धर्ममां दृढता राखी वर्तवू के जेथी था जव अने परजव बन्ने सुधरे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषन्तर सहित. ॥ अथ ज्ञान तत्व विषे ॥ ॥ तन धन ठकुराई सर्व ए जीवने बे ॥ पण ईक दिलूं ज्ञान संसारमां बे || नवजलनिधि तारे सर्व जे दुःख वारे ॥ निजपरदित देते ज्ञान ते कां न धारे ॥ ९ ॥ अर्थ:- सुंदर काया पामीये, धन पामीये, ठकुराई पामीये, ए सर्वपामनुं ते तो सोहिलं बे पण एक दोहितुं तो या संसारमां जीवने ज्ञान पाम ए ज बे, संसाररूपी समुद्रमांथी ते तारनार सर्व दुःखनो नाश करनार बे, पोतानुं ने परनुं हित करनार जे ज्ञान बेतेने तुं केम धारण करतो नथी ? जे ज्ञाने करी ज्ञानीये त्रण वनना जाव प्रकाश्या बे माटे ज्ञान सर्वथी श्रेष्ठ बे तेथी ज्ञानने याराधनुं ॥ ए ॥ ३१ ॥ यवरुषि ईक गाथा बोधथी जय निवार्यो ॥ ईक पदथि चिलातीपुत्र संसार वार्यो ॥ श्रुतथि - य हाथे रोहिण्यो चोर नावे ॥ श्रुतनात सुज्ञानी मासतुसाद यावे ॥ १० ॥ अर्थः- जव नामा रुषीनो एक गाथाना बोधवडे जय नाश पाम्यो, एक पदथकी चिलातीपुत्रे संसार परिभ्रमण करवो वा अर्थात् संसारनो फेरो टाल्यो, श्रुतथी ( ज्ञानवडे ) जय कुमारने हाथे रोहणीयो चोर पार पाम्यो अर्थात् हाथमां श्राव्यो नहीं, छाने श्रुतज्ञान जणवाथी मासतुसादि सारा ज्ञानी थथा - पार पाम्या. || ज्ञाननी एक गाथाना बोध उपर जवराजरुषीनी कथा || वसंतपुर नामे नगरमा जव नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने गर्धनील नामे एक पुत्र ने अनुंलीका नामनी एक पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ सूक्तमुक्तावली त्री हती. दीर्घपृष्ठ नामे तेनो मंत्रि हतो. संसारथी विरक्त थई जव राजाए वृक्षावस्थाये चारित्र ग्रहण कयु. ते लणेला नहोता, तेथी बीजा साधुउने नणता देखी तेमने जणवानी घणी ईछा थई परंतु काई श्रावड्युं नहीं तेथी सोच करवा लाग्या. गुरुए कह्यु के, महानुनाव ! सोचना करे शुं थाय ? तमे चारित्रव्रत सावधान थई पालो, तपसंजमने विषे तत्पर रहो. पड़ी ते तेमज करवा लाग्या. एक वखत ते जवराजरुषीश्वरने एवी श्छा थई के, संसारी ने वंदावा माटे जालं. एम विचारी गुरु पासे आज्ञा मांगी. तेवारे गुरुए कहूं के जवा श्छो बो पण संसारी ने शो उपदेश देशो ? जवराजरुषी बोल्या के उपदेश देवानी तो मारामां शक्ति नथी, महारं मन तो मलवान थयुं जे. ते वारे गुरुए जवानी आज्ञा श्रापी. पनी जवराजरुषी त्यांथी चाली निकल्या. मार्गमों श्रावतां पोताना मनमा विचार करवा लाग्या के, जाउं बुं तो खरो! पण पुत्र प्रमुख वांदवा श्रावशे ते वखते कदेशे जे, स्वामी, श्रमप्रत्ये कांईक उपदेश द्यो. एवी विचारणाए साधु चाल्या जाय बे एवामां फट्यु फुट्युं जवनुं एक क्षेत्र आव्यु. ते क्षेत्रमध्ये तेनो धणी चारे बाजु फरतो चोकी करतो हतो. ते वखते त्यां पागल एक गर्दन (गधेमो) ते जव नक्षण करवामाटे फरतो हतो ते पेला क्षेत्रधणीना जोवामां आव्यो. गर्दनने जव खावा आवतो जोई ते एक गाथा गर्दजप्रत्ये बोल्यो. ( गाथा फांगटीयो ) उहावसीपोहावसी ॥ ममंचे निरखसी ॥ जाणीयो मेंतुह अतिप्पा ॥ जवंप्पेउसी गकहा ॥ १॥ अर्थ- “हे गधेमा तुं श्राघो पाठो फरे , हुं तुजने जोड डं, में तहारो अभिप्राय जाएयो, तुं ए जवमा पेसवानुं करे बे." या प्रमाणे देत्रवालाए ए फांगटीयो गधेमाने घणी वखत कह्यो ते जवरुषीए सांजव्यो. तेने वारंवार याद करवाथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. तेमने मोढे चढी गयु. ते सिवाय बीजं काई तेमने श्रावमतुं नहोतुं. त्यारपठी मार्गे चालतां पण ते तेज गाथा संजारता संनारता अने मनमां धारण करता करता विदारनूमि उलंगी केटलेक दीवसे धारेला मुकामे वसंतपुरनगरनी नागोले आव्या. त्यां पागल केटलाक बोलको एका थई मोई दंडे रमता हता. साधु ते स्थले उना रह्या एटलामा एक बालके उबालीने मोश नाखी, ते केटलेक घर एक वाड्य हती तेमां पमी. पडी ते बालको मोई खोलवा लाग्या पण ते क्याई जमी नही. ते वखते एक बालके फांगटियुं कत्यु- ( गाथा) मेंव गई तो गई ॥ जोई जंती न दीसई ॥ तुमे न दीठी अमे न दीठी ॥ अगडे बूहा अणुं लविया ॥१॥ अर्थ- “ ए मोई उ गई ए गई, जोई पण दिसती नथी, अमे पण न दीठी तुमे पण न दीजी, कुयामां अथवा खाड्यमां पडी माटे बीजी व्यो.” एक बालकनुं बोलवू श्रा प्रमाणे सांजली बीजी मोई लेश्ने बालको रमवा लाग्या. साधुए ध्यानपूर्वक बालके कहेलुं फांगटियुं सांजलवाथी ते याद करतां करतां तेमने मोंढे चढी गयुं अर्थात् श्रावड्यु. आ रीते जवराजरुषीश्वरने बे फांगटीयां श्रावड्यां. वसंतपुरमा जवराजाए दीक्षा लीधा पड़ी तेमनो पुत्र गर्दजील राज्य करतो हतो. तेनी बहेन एटले जवराजनी पुत्री जे अनुलिका हती ते यौवनावस्थाए श्रावतां महारूपवंत होवाश्री तेने जोई तेमनो प्रधान दीर्घपीठ तेना उपर मोहित थयो हतो. तेणे लाग मलवाथी तेणीने अपहीने पोताना घरमध्ये जोयरामां राखी हती. गर्दनील राजाए पोतानी बहेननुं हरण थयेवू जाणी तेनी घणी घणी शोध करावी परंतु तेनी नाल कोई पण स्थलेथी मली आवी नहीं, तेथी ते घणो चिंताग्रस्त थएलो इतो. जवराजरुषीश्वर आवा अवसरे नगरमां पधार्या अने कुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ सूक्तमुक्तावली जारनी शालामां नतर्या. ए कुंजारे नवां वासण तैयार करेलां ह. तां तेने बंदर करकोलता हता तेथी ते उंदरने समजाववा माटे कुंजार एक गाथा बोल्यो. (गाथा) अश्सुकुमालय कोमलय जद्द लया ॥ तुमें राण हीमण सीलणया ॥ अम्म पसा नथी जयं ॥ दीहपीग तुम जयं ॥१॥ अर्थ-“हे बंदर तमे अति सुकुमाल कोमल बो, वली नोला गे, तमने रात्रे चालवानो शीलाचरण बे, श्रामारो तमने कशो जय नथी, पण तमने दीदपीठ एटले सर्पनो नय ." था फांगटियो पण साधुए शीखी लीधो. श्रावडेली त्रणे गाथा साधु वारंवार गणी वाले ने, अर्थात् जुली न जवाय माटे मुखपाठ करी जाय बे. दीर्घपीठ प्रधाने जवराजरुषीश्वरनुं नगरमध्ये आगमन सांजव्यु, तेथी तेना मनमां जय उत्पन्न थयो के, जो ए साधु ज्ञानी हशे तो महार जे गुह्य चरित्र ले ते प्रगट करी देशे, माटे हुंज आगलथी कपट केलवी राजानुं मन फेरवी नाखुं के ते साधु पासे जवानुं दीलज न करे, बलके तेने उत्ना पण न रहेवा दे. पोताना मनमां श्रा प्रमाणे घाट गोठवी प्रधान तुरत राजा पासे गयो. विनय सहित प्रणाम करी तेणे राजाने कीg के-हे महाराजाधिराज ! तमारा पिता ( साधु ) अहीं श्राव्या बे. राजाए कह्यु के-लले आव्या, तेमने जश्ने वांदीशु, मननी वात पुढीगुं. एवं सांजली प्रधान मनमां चिंतववा लाग्यो जे, खरेखात ए जशे अने पुनशे त्यारे साधु महारी सर्व करणी प्रकाशसे, माटे ए साधुने आ तेना पुत्र पासे हणावं तो वचमांथी खडबड मटे. एम विचारी प्रधान राजा प्रत्ये कहेवा लाग्यो के, हे राजन्! हे स्वामिन् ! ए पतितने वांदे शुं ? अने पुढे शुं ? ! ए वातनी तमने खबर नथी, एनी तो मने मालम . ब महीना आगमच एनां चरित्रनी मने खवर पडी . ए कपटपणे तमारं राज्य सेवा श्राव्या . राजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३५ कहे सुखे ले. जो एमनी एमज मरजी हशे तो था राज्य एमनुं ज हतुं अने हाल पण तेमनी लेवानी श्छा होय तो ते मालीक . प्रधाने आ वखते राजाने आमां अवलां घणां गं देईने राजानुं मन फेरवी नाख्यु तेथी ते पोताना पिता ( साधु) ने मारवाने तत्पर थयो. प्रधान पोतानी प्रपंचजालमा फाव्यो तेथी ते मनमा फुलावा लाग्यो. त्यारपडी राजा कालो कांबलो उढी हाथमां खड्ग लेई कालीरात्रे कालुं काम करवाने (पोताना पिताने मारवाने) निकट्यो. आवतां श्रावतां मनमां विचारवा लाग्यो जे,जो ज्ञानवंत साधु हशे ने मारा मननी वात कहेशे, तो महारे मारीने शुं काम ? अर्थात् मारा मननो अभिप्राय जाणी जशे तेथी धारेलु काम पार पमशे नहीं अने उलटो फजेत थईश माटे तेथी सयुं. गुप्तपणे रही तेमनी चर्चा जोडं तो समजवामां आवे. एम धारी ते एकांत स्थले कोई न देखी शके तेम उत्तो रह्यो. ते वखते साधु जे पूर्व क्षेत्रवालानी गाथा सांजली हती ते संनारीने बोल्या ( गोखवा लाग्या ). ते सांजली राजा पोताना मनमां समज्यो के, ‘मने श्रावतो थको जाण्यो' माटे ए ज्ञानवंत जणाय ने एमां तो संदेह जेवू नथी; पण हवे ए महारी बहेनसंबंधी बीना मारा मननो अभिप्राय जाणीने कहे तो पूर्ण खात्री थाय. राजा था प्रमाणे विचारमा हतो एटलामां साधु, बालके कहेली मोई संबंधीनी गाथा गोखवा लाग्या. ते सांजली राजा एम समज्यो के ज्ञानी तो खरा! केमके, था गा. थाना जावार्थथी एम जणाय बे के 'महारी बहेन नगरने विषे जोयरामां ने.' पण ' कोने घेर ' एटवू हवे जणावे तो घणुं सारं. श्रा वखते साधु त्रीजी गाथा जे तेमणे कुंजारने मोंढेथी सांजली हती ते याद करी बोल्या. तेनो नावार्थ राजा एवो समज्यो के, “ श्रम थकी तुजने कशो जय नथी तने दीर्घपीनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली जय बे." आवा गूढार्थ वाली गाथा ज्यारे राजाए सांजली त्यारे ते पोताना मनसाथे विचारवा लाग्यो के, महारो दीर्घपीठ नामनो प्रधान ने तेनो मने जय दीसे बे. गुरुनी वाणीनो बुद्धिवान राजाए पोतानी मेसेज धारणा धारी निश्चय कर्यो. कुंजारनी गाथामां 'दीहपी' शद्ध ने तेनो अर्थ कुंनारे कहेला - ष्टांतमां तेना नावने अनुसरतो 'सर्प' थाय , पण राजा पोतानी धारणाना नाव प्रमाणे 'दीर्घपी प्रधान' समज्यो, तेथी तत्काल प्रगट थई गुरुने पगे लाग्यो. गुरु कहे के तमे कोण ? राजाए कीधुं के, हे स्वामी ! हुं तमारो कुपुत्र ! गुरुए कह्यु के, कुपुत्र शामाटे ? राजाए पोतानो सघलो वृत्तांत मांगीने कह्यो. गुरु ते सांजली मौन रह्या. त्यारे राजाए कह्यु के, स्वामी! धन्य तमारा झानने, के जेथी महारा मनमांजे संदेह हतो ते दूर थयो, पली गुरुमहाराजने खमावीने राजा पोताने आवासे गयो. प्रनाते राजाए प्रधानना घरनी ऊडती देवरावी एटले जोयरामांथी तेनी बहेन मली श्रावी. आवा प्रधानना अपकृत्यथी राजाए तेनुं घर बुंटावी दीधुं, तेनी सघली मीटकत जप्त करी दरबारखाते दाखल करी अने तेने गर मारवानो हुकम कस्यो. गुरुमहाराजे श्रा वात जाणी तेने हणतां बचावी जीवतो मावी मुकाव्यो. साधुए त्यांथी विहार को. मार्गमां वारंवार बनेला बनावनुं चिंतवन करता करता केटलाक दिवसे गुरु पासे श्रावी तेमने वांद्या. गुरुए कह्यु,-कां देवाणुपीया ! संसारीपाउँने वंदावी श्राव्या? साधुए कह्यु-स्वामी तुम पसाय थकी. गुरु कहे के, शो उपदेश दीधो ? साधुए कह्यु के, त्रण फांगटियां संचलाव्यां, के जे डं महारा मन थकी गणतो (संचारतो) हतो अने जेनो परमार्थ पण हुं समजतो नहोतो, ते कयां. गुरुए कह्यु के, महानुनाव! जो एवां फांगटीयांथी उपकार थयो तो तत्वज्ञानथी केम उपकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३० न थाय ? थायज. कां जे- (गाथा) अटमटसीखीजजा॥ श्रटमटन निरर्थकं ॥ अटमटं प्रसादेन ॥ जीवीयं जव रीखीयं ॥ अर्थ- “ कांई काई पण शिखवू, ते ते वस्तु सीखी निरर्थक (नकामी) न थाय, फांगटियाना प्रसादथकी, ए जवरुषी जीवता रह्या" ॥ ते माटे हे महानुनाव! एवां फांगटियाथी तमे उगर्या अने परने पण उपकार थयो तो विशेष नणवाथी आत्माने घणोज गुण निपजे एमां यत्किंचित् शक नथी. साधु शिष्ये (जवरुषीये) कह्यु के, आपनु वचन प्रमाण दे साहेब ! त्यारपडी जवराजरुषी चारित्र पाली, आयु दय थये कालधर्म पामी वैमानवासीपणुं(देवलोक)पाम्या आजवरुषीनी कथा उपरथी ए सार ग्रहण करवानो डे के, फांगटियां, के जेमां तत्त्वज्ञान समायतुं नथी तेवां काम श्राव्यां, तो जे प्राणीने विशेष ज्ञान होय तेनी खुबीनी वातज शी करवी? ते तो आनवने विषे पण सुखी अने परनवने विषे पण सुखी जाणवो. ॥ ज्ञानना एक चरणथी यता लान उपर चिलातीपुत्रनो दृष्टांत ॥ चिलातीपुत्र पाबले नवे एक ब्राह्मणनो विद्वान, महा अहंकारी अने जातिमदवालो पुत्र हतो. तेणे एवी प्रतिज्ञा लीधी हती के वाद करवामांजे कोई मने जीते तेनो हुँ चेलो थालं. केटलेक काले कोश्क साधुना चेलाए तेने वादमा हराव्यो तेथी तेणे तेमनी पासे दीक्षा लीधी. ते जातिनो ब्राह्मण होवाने लीधे तेनाथी मल परिसह सहेवाय नहीं एटले उगंडा करे, मनमां विचार करे के आ धर्मने विषे नाहावु नही, धोवू पण नहीं. ए शुं? एम करतां चारित्र पाली अंते पापप्रमुख आलोई काल करी देवता थयो. देवपणुं जोगवी त्यांथी चवीने कांईक पाबला जवर्नु उगंगपणानुं कर्म बाकी रह्यु हतुं तेथी राजगृह नगरे धनावह शेठना घरमां चिलाती नामे दासी रहेती हती तेनी कुखे पुत्रपणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ सूक्तमुक्तावली उत्पन्न थयो. तेनुं नाम चिलाती पुत्र पामवामां श्राव्यु. चिलातीपुत्रना पाबला ब्राह्मणना नवमां तेनी जे स्त्री हती तेणे पोताना पतिने वश करवा माटे अनेक उपाय कर्या हता, बेवट ते मर्ण पाम्यो एम तेना जाणवामां श्राव्युं त्यारे तेणीए वैराग्य पामीने दीदा लीधी हती. दीदा पाली मरीने देवता थई त्यांथी चवीने चिलातीना शेठ धनावहनी स्त्रीनी कुखे श्रावी अवतरी.चिला दासीनो चिलातीपुत्र ए बालिकाने तेडतो तथा रमाडतो हतो. अनुक्रमे पूर्वनवना संबंधने लीधे ते कन्याउपर तेने घणो राग थयो अने मोटी थतां तेनी साथे कुचेष्टा करवा लाग्यो. ते वात शेग्शेगणीए जाणी तेथी तेने (चिलातीपुत्रने) घरमांथी काढी मुक्यो. त्यांथी नीकलीने ते चोरनी पालमां आव्यो अने चोरो साथे मली जई चोरीनो धंधो करवा लाग्यो. केटलोक काल वीत्या पली तेने महा साहसिक तथा धैर्यवान जाणीने धामपाडुए पोतानो नायक बनाव्यो. __एकदा प्रस्तावे नायक बनेलो चिलातीपुत्र चोरनी धामने कहेवा लाग्यो के, “ राजगृह नगरमां धनावह शेठ घणो धनाढ्य , तेने सुसुमा नामे एक कन्या बे. तेने त्यां धासु पामी चोरी करवाथी घणो माल मलशे. जे माल मात्र मले ते बधो तमारो अने सुसुमा कन्याने उपामी लाववी ते महारी." श्रा प्रमाणे वर्तवा तमे कबुल हो, तो हुँ तमने तेने त्यां धाम पामवानी तदबीर बताएं. धामपामु चोरोए ए वात कबुल करवाथी तेमने लईने नायक चिलातीपुत्रे धनावह शेग्ने घेर श्रावी घणो माल काढ्यो भने तेनां गांठमा बांधी चोरो ते उपाडीने अने नायक सुसुमा कन्याने उगवीने नागे, त्यां घणो सोर बकोर थवाथी कोटवाल आव्यो. चोरो नासी गयेला मालम पमवाथी ते तथा शेष अने शेउना चार पुत्रो पण सवार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३ए थई तेमने पकमवा माटे दोड्या. नासतां नासतां नजीकमां वाहार श्रावती चोरोना दीगमा आवी तेथी मालनी गांसडी रस्तामां फेंकी देई चोरो जेनाथी जेम नसाय तेम जीव लईने नाग. चिलातीपुत्र मार्ग मुकी उबट मार्गे नागे. पूर्गपाल (कोटवाल) रस्तामाथी माल मल्यो ते कबज करी त्यांथी पाबो वढ्यो, परंतु शेठ तथा तेमना चारे पुत्रोए तेमनी केम मुकी नही अने पुरपाट घोडा दोमावी मुक्या. चिलातीपुत्रे जाएयु जे, शेठे सुसुमा कन्यामाटे केड करी अने महारे तो ए जीवनप्राण ले माटे मुकतां पण पूरवतुं नथी अने थोमीवारमां ते मने पकमी पाडशे. एम विचारी खड्ग काढी सुसुमागें शीर बेदी हाथमां पकमी लेई तेनुं धड पडतुं मुकीने नागे. कुमरीने मुई देखीने शेष तथा तेमना पुत्रो पाग वदया. चिलातीपुत्र सुसुमानुं मस्तक लेईने जतो तो त्यां रस्तामां एक कामनी नीचे एक साधुने काउसग्गमा रहेला तेणे जोया. आ वखते तेना एक हाथमां लोहीथी टपकतुं कन्यानुं मस्तक अने बीजा हाथमां नग्न तरवार हती. आवा आचरणे प्रवत्यो हतो बतां साधुने देखवाथी परीणामनी धारा बदलावाने लीधे तेणे साधुने कां के, अहोमुनी! मुजने धर्म बताव ? साधु, आ कोई उत्तम योग्य जीव जणाय ने माटे तेना आत्माना उपकारार्थे धर्मोंपदेश दे तो तेनो उद्धार थशे एम विचारी बोल्या के, “ उपशम, विवेक ने संवर.” आटलो उपदेश देई साधु आकासे उतपत्या अर्थात् अकाश मार्गे चाल्या गया. आबु देखी ए घणो चमत्कार पाम्यो अने मनमां विचारवा लाग्यो के, था तो महा महा विद्यापात्र देखाय डे, केम के बीजा जीव पृथवीतले चाले डे अने एतो अर्ध्व मार्गे चाल्या. पण ए मने शुं कही गया ते मारे विचार जोईये? एम आत्माने विषे धारणा धारतां धार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० सूक्तमुक्तावली तां 'उपशम एटले 'क्रोधने समाववो' एम तेना समजवामां श्राव्युं. त्यारे मन साथे पस्तावो करवा लाग्यो के, जो मारामां ए क्रोध न होत तो था स्त्री हत्यानुं पातिक न थात. माटे हवे महारे क्रोधने तजवो घटमान ( योग्य ) . उपशमना गुणनो ए अर्थ जाणवो. वली बीजु जे विवेक ते पण मुजमां नथी अने विवेक विनाना जे जीव ते तो पशु समान जाणवा, माटे हुँ पण पशु समान थयो. ए मुजने घटे नहीं. ए कारण माटे धर्म पुगवानुं ए निमीत्तज . हवे संवर ते शुं ? एम विचारतां तेना समजवामां आव्यु के " श्रावधारनो रोध करवो” तेने संवर कहीये. माटे ज्यांसुधी महारामां संवरपणुं नथी त्यांसुधी सर्व वृथा बे. आ प्रमाणे विचार करी हाथमां कालेबु सुसुमा कन्यानुं मस्तक तथा लोहीवडे खरमायेचु खड्ग मों श्रागल मुकी हृदयमा धारणा धारी के, “ज्यारे ए पापकर्म विसरशे त्यारे काउसग्ग पारवो.” एम मन साथे निश्चय करी जे जगोए मुनी काउसग्गे रह्या हता तेज पगला उपर पग मुकीने काउसग्ग को. साधुए बतावेला एक पदमांना त्रणे शब्दनो परमार्थ धारीने चिलातीपुत्र कानसग्ग ध्याने रह्या. ते वखत तेमनुं शरीर लोहीथी खरमाएबुं हतुं तेनी गंधने योगे करी घीमेल कीडीए श्रावी तेमनी काया चालणी समान करी. ते संबंधी जणावेली गाथा ॥ देहो पीखी लियाई ॥ चिलाई पुत्तस्स चालणी वकलो ॥ तणंश्रो विमण खोसे ॥ नचलीया तेण ताण वरिं ॥१॥ अर्थ-" चिलातीपुत्रनुं देह (शरीर) कीमीए चालणी समान कीधुं, तोहे पण लगार विह्वल थया नही ( मन मामाडोल न थयुं ), अने ध्यानथकी पण न चल्यो." काउसग्गमांज आयु क्ष्य थतां काल करी देवगति पाम्यो. आ चिलातीपुत्रना दृष्टांतथी सार ए लेवानो बे के, ॥ तणंथो वि पास कीमीज वरि ॥१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ४१ थोडं पण तत्वज्ञान पामवार्थी शुद्ध श्रद्धा थतां ते प्रमाणे वर्तवानी धारणा याय बे, अने तेम वर्तवामां आवतां देवतानी गती मले ने मोक्ष पण नजीक बे अर्थात् मोक्ष पण मले बे. माटे ज्ञान जवानो उद्यम करी जेम वधारे तत्वज्ञान याय तेम करी श्रात्माने तारवो. || ज्ञानउपर रोहिणीया चोरनी कथा || या जरतत्रने विषे राजगृही नगरमां श्रेणीक राजा राज्य करता हता. तेमने पोतानोज पुत्र महा बुद्धिनिधान अजयकु मार नामे मंत्रि हतो. ए नगरमां कुलपरंपराथी चोरी करनार एक कोलीने रोहिणीयो नामे पुत्र हतो. तेनो जन्म थतां तेना मावित्रे नीमी त्तियाने पुक्युं जे श्रा पुत्र केवो यशे ? तेणे कयुं के, ए पुत्र साधुधर्म पालनारो संसारनो त्यागी थशे. एवं सांजलीने तेना मातापिताए विचार कर्यों के, एवो पुत्र आपणे शा कामनो? आपणे तो आपला चोरकुलना श्राचार-मार्गप्रमाणे वर्ती चोरी करी गोत्र पोषण करे ते सुपुत्र जाणवो. या विचारीने तेर्जए न्हानी वयमांथी एने एवं शिक्षण श्राप्यं के:-"जो कोइ पण ठेकाणे साधु जोवामां आवे तो त्यांथी वेगला नाशी जनुं, त्यां उमा रहेवुं नही, कारण के ए (साधु) लोकोनां बाanta रमावीने लेइ जाय बे, माटे हे पुत्र ! एमनी संगे उजो न रहीश " रोहिणीये मावित्रनी शिखामण अंगीकार करी ते प्रमाणे वर्तवा मांड्यं ने नगरमा फरवा लाग्यो. एकदा समयने विषे श्रीमहावीरखामी चौद हजार मुनी अने हजार साधवीर्जना परिवारे परवर्या थका राजगृह नगरे समोसर्या ते वखते चार निकायना देवताए जमीनथी अढी गाउ उंचुं समोवसरण निपजाव्यं. ते मध्ये क्रोमो देवता विमेरे यावी धर्मोपदेश सांजलवा बेठा बे. बारे पर्षदा श्रगल प्र ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ सूक्तमुक्तावली जुजी धर्म देशना प्रकाशता "देवतानो अधिकार” वर्णवता हता. ते गाथा ॥“श्रण मिसनयणा मणकऊसाहणा ॥ पुप्फ दामअमिलणा ॥ चनरंगूलेणनोमी ॥ नबिवंतिसूराजिणाविति ॥१॥" अर्थ-" (जे ए देवता केवा ? ) नेत्र मीचाय नही, मन चिंतव्यां कामने करनार, फूलनी माला करमाय नही, अने पृथ्वीथकी चार अंगुल ऊंचा रहे, नूमीये अडे पण नही, मनुष्यथकी पण अधिका." था प्रमाणे जगवंत देशना देता हता ते समये को स्थलेथी चोरी करी श्रावतां रोहिणीयो समोवसरणनेतलें निकल्यो. त्यां तेणे साधुने दीग. ते वखते तेने पोतानां मावित्रे आपेली शिखामणनां वचन याद श्राव्यां तेथी ते बन्ने कानमां बांगलीयो घाली दोमवा लाग्यो, नासतां नासतां आगल जतां जावी योगे तेना पगमां कांटो लाग्यो तेथी दोमी न शकावाने लीधे हेगे बेसी पगमांथी कांटो काढवा माटे कानमांधी आंगलीकाढी. तेज वखते उपर जणाव्या प्रमाणेनी देवताना अधिकारनी प्रजु देशना देता हता ते वाणी तेना कानमां पडी अर्थात् प्रजुनी वाणी तेना सांजलवामां आवी. गाथा सांजलतांज ते तेना हृदयमां वसी अर्थात् तेने आवडी गश्. कारण के उत्तम पुरुषमा बत्रीस लक्षण होय ने अने चोरमां तेथी चार वधारे एटले बत्रीस लक्षण होय ! माटे ए उत्रीसो होवाथी तेने ए गाथा आवमतां वार लागी नहीं. ए गाथा विसारी देवा एणे मनसाथे घणो प्रयत्न कर्यो परंतु जेम जेम विसारवा मांडी तेम तेम ते (गाथा) खरी थती गइ. अर्थात् मनमां उसी ग. त्यांची ते पोताने घेर श्राव्यो अने मावित्रने मन्यो. दीवसे दीवसे ते मावित्रनी संगते पाको चोर थयो. दहाडे सारां वस्त्र पहेरी चौटामां जाय, दरबारमा जाय, सारा सारा लोकोथी मेलाप राखे अने 'रोहिसा' नामथी उसखावा लाग्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ४३ " श्रेणीक राजा सुध पण तेने सारो माणस जाणता ने या नामर्थ। उलखता हता. रात्रे नगरमां मोटी मोटी चोरी करतो हतो. ते एटली बधी चोरी करी के तमाम नगरनां लोक वाह वाह करतां तेनाथी वाज खावी गयां. घणी घणी तपास राखतां ने शोध करतां पण ज्यारे ते पकडायो नही ने चो रीट तो चालु रही त्यारे बेवटे महाजने मली दरबारमां जई राजाने विनती करी कथं के, चोरनो निग्रह करो, के थमने वसवानी बीजी जगा थापो, अगर या श्रमारी कुंची याप स्वाधीनमां ल्यो ने अमने श्राज्ञा करो तेम करीए. राजाए चोरने पकवा माटे बीडुं फेरव्युं. परंतु कोई सामंते तेमज उमरावे तेना सामुं पण न जोयुं अर्थात् कोईनी पण चोरने पकडी पवानी हिम्मत चाली नहीं. आाखरे अजयकुमारे बीरुं बब्युं, पण सात दिवसनी अवधी करी. प्रजाजन पोतपोताने घेर जई कामे वलग्या. अजयकुमार महा विचक्षण, चार बुद्धि तथा चौद विद्यागुणजाण, बोहोतेर कलामां प्रवीण छाने साहसिक तेमज महा धैfara धर्मिष्ट . ए बुद्धि निधानना जेवी बुद्धि मलवाने अद्यापि पण सर्व मनुष्य मागणी करे बे. हवे अजयकुमार त्रवटे (त्रण रस्ता ज्यां मलता हता त्यां), चोवटे ( चार रस्ता ज्यां मलता हता त्यां ), तथा तस्करने जराई रहेवा योग्य सर्व स्थले फरीफरीने जोवा लाग्या. चोर पकडवाने अजयकुमारे बीकुं बब्युं ने ए वातनी रोहिणीयाने खबर पडतां तेणे अजयकुमारउपर एक कागल लखी जणान्युं के :- " तमे चतुर्बुद्धि निधान बो तो हुं पंचबुद्धिनिधान तुं माटे तमारो बेतर्यो नहीं बेतराजं, मारी बुद्धि पण तमे जु. सातमे दहाडे तमारी पासे मुजरे खातुं तो मुजरो बे, अने तमारे हाथ न था तो हुं चोर खरो. " हावो थायातुं वेलो कागल सेवके थाप्यो ते वांची अजयकुमार चमत्कार - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ सूक्तमुक्तावली (आश्चर्य) पाम्या अने कहेवा लाग्या के, ए महारा माथानो खरो, जे महारो अनिप्राय एणे जाण्यो. माटे एनी बुछिने पण धन्य बे. दिवस सुधी अनयकुमारे बहु बहु तपास करी पण चोरनो पत्तो लाग्यो नहीं. सातमे दिवसे अजयकुमारे विचार्यु जे चोरे कागल लखी मोकल्यो रे तेथी ते महारी पासे आव्या विना नहीं रहे. एम धारी पोसो करवाना उपकरण लेईने पोसह करवानी शालामां श्राव्या अने त्यां माच पाथरी पोसह जचारी सीफायध्यान करवा बेग. बेसतां पहेला सेवकने कही मुक्युं हतुं के जो कोई पण माणस महारं नाम देतो आवे तो तेने महारी पासे श्राववा देज्यो. रोहिणीयो पण सातमा दिवसनी राह जोई रह्यो हतो. ते दहाडे तेणे उत्तम वस्त्रो परिधान काँ अने अजयकुमारनी पासे जवा नीकल्यो. दरबारमा सघले स्थले तपास को पण अजयकुमारने न दीग तेथी मनमा खेद करवा लाग्यो के, आज ते मने नहीं मले तो में करेली प्रतिज्ञानो जंग थशे, माटे हरेक प्रकारे तेमने खोली काढी मलq तो खरंज ! पड़ी तेणे सेवकने पुब्यु के, प्रधान क्या ? सेवके जणाव्यु के, ए तो पोषधशालामा , आत्मधर्म साधे . रोहिणीयो पोषध शालाए श्रावीने मुजरो करी जुहार आदि कहेवा योग्य विनय साचवी अजयकुमारनी पासे बेगे. अजयकुमार मन साथे चिंतववा लाग्या के श्रा चोर होवो जोईए, कारण के पोताना वचननी प्रतिज्ञा पालवा श्राव्यो होय एम जणाय , ते सिवाय एने अहीं मारी पासे आववानुं विशेष प्रयोजन जणातुंनथी.अगाउ ए घणी वखत दरबारमा आवतो हतो तेथी तेने शाह तरीके उलखता हता माटे कांश पण मुद्दा वगर तेने चोर कही बाली पडवाश्री ए कोई चोर सिक थई शके नहीं, ! तेमज तेनी पेढीयो चिंतववा लाग्या परंतु ते पण बंध बेसती न जणाई का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ४५ रण के ए चोर न पगो ने अर्थात् ते हमेशां एवा मोलमां फरतो हतो के तेने कोई चोर कली शके नहीं, तो पण श्रा अवसरे आववाथी अजयकुमारना मनमां तो खात्री थई पण या वखते कही शकाय तेवू नहोतुं. पढी रोहिणीयो थोडी वार थई एटले जुहार करीने उव्यो त्यारे कुमारे तेने कडं के, प्रनाते आपणे घेर देवसेवा करवा माटे श्रावजो. चोरे घणी खुसाली बतावतां उत्तर आप्यो के, वारु खामी. प्रनाते पोसह पारी अजयकुमार पोताने घेर आव्या. __ चोरने आमंत्रण करेवू ने तेथी ते श्रावशे माटे तेने मुखेथी ज ते चोर डे एम कबुल कराववानी युक्ति अनयकुमारे तुरतज करी. वखत थतां कबुल कर्या प्रमाणे रोहिणीयो आव्यो. कु. मारे दहींना बे वाडका जरावी तेमांना एकमां चंद्रहास मदिरा नखावी मुकी हती. रीतसर जुहारादि करीने कुमारे रोहिणीयाने पोतानी पासे जमवा बेसाड्यो. चंद्रहास मदिरा नाखेलो दहीनो वामको रोहिणीयाने आप्यो अने पोते चोखा दहीनो वाडको लीधो. जमी रह्या पली थोमीक वारे मदिर चढवाथी रोहिणीयो विकल थयो एटले देवतासंबंधीयुं पोताने सुवानुं जे ठेकाणुं हतुं त्यां घणी स्वरूपान देवांगना जेवी चार कन्या ने दिव्य वस्त्र पहेरावी चामर विजणा सहित उनी राखी हती त्यां उपाडी लावीने सुवाड्यो. घणो वखत थयो त्यारे मदिरानी गक ( नीशो ) उतरवाथी रोहिणीयो सावध थयो अने आंख उघामीने जोयुं तो मुक्ताफलना चं वा अमूल्य रत्ना दिए जडेला तेना जोवामां आव्या. ते वखते संकेत करी राख्यामुजब त्यां चामरादि लेई उनी रहेली चारे कन्या समकाले बोलवा लागी के, " जय जय नंदा, जय जय नहा, हे खामी ! तमे एवी शी पुन्याई करी के देवता थया ? ” अजयकुमार पण त्यां आगल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ सूक्तमुक्तावली गुप्तपणे रहेला हता ते पण कान मांगीने कन्याए करेला प्र ननो उत्तर सांजलवा श्रातुर थइ रह्या हता, केमके तेमनी धारणा एवी हत्ती के, मदिरानी बाक उतरतां देवलोक संबंधी सुख जो ने देवांगना ( वेषधारी कन्या ) नां वचन सांजली ते पोतानां जे चरित्र हशे ते बकी उठशे अर्थात् ममां पत जे साधुं दशे ते तेना मुखमांथी नीकलीजशे. हवे रोहिणीयो सुतेलुं वन तथा देवांगनाना बोलो सांजली पोते देवता थयो एम मनमां विचार लावी बोलवा जाय बे, एटलामां तेने प्रभुजीए कहेली गाथा सांजरी यावी तेथी ते विषे निर्णय करवा लाग्यो, त्यारे तेने जणायुं के, जगवंते तो देवता जमीनथी चार गल उंचा अधर रहे एम कहेतुं हतुं श्रने या स्त्रीउए तो पावमी परेली जमीनने घडती देखाय बे, देवता मन चिंतव्युं काम करे तेमांनुं पण कां थ‍ शके एम जगातुं नथी, देवताए कंठने विषे धारण करेली फूलनी माला करमाय नहीं या तो करमाय बे, वली देवतानां नेत्र मींचाय नही मेखोमेख रहे तो मींचाय बे, माटे रखेने मुजने बेतरी पकडवानो या उपाय तो नथी कर्यो ? मने तो एमज लागे बे, कारण के प्रभुजीए तो ए चार लक्षण देवतानां कां ढतां अने मांनुं तो एके मालम पक्तुं नथी. एम निर्धार करी पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो के, अजयकुमार धारे बे के एने ठगीने वात कढा पण हुं तेनो प्रपंच पामी गयो ढुं, ए बत्रीसो ने तो ढुं त्रीसो ढुं, माटे एने गोथां खवरावं तोज हुं खरो ! याम निश्चय करीने ते बोल्यो के, “में घणां दान कर्यां, घणां पुन्य कर्या, शीयल पाल्यां, संघ काढ्या, साहमी वत्सल कर्या, घणा पोसा पडिकमणां जिनपूजा व महोत्सव घणा कर्या, ए धर्मना प्रजावथकी, ते पुन्यना प्रजावथकी, हुं अहीं देवता थयो ढुं." Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ४७ अजयकुमारे तेनां आवां वचन सोनटयां तेथी मन साथे निश्चय कों के मारां चरित्र (मारी करेली युक्ति) ते समजी गयो अने हाथ पण न आव्यो अर्थात् एने चोर कही शकुं एवं बोलवानुं कां पण साधन मली व्युं नही. वट अजयकुमार रोहिणीयाने उत्तरासण करी पगे लाग्या. त्यारे रोहिणीयाए कडं के स्वामी! तुमप्रत्ये कोनी बीक ने के मने पगे लागो डो? प्रधाने कयु के- राजानी बीक . रोहिणीयो कहेवा लाग्यो के, स्वामी! तमेज ज्यारे बीहीशो त्यारे मारी शी वलेह? ते वखते प्रधाने वचन श्राप्यु. पठी तेने तेडीने प्रधान राजा पासे श्राव्या. राजा बोल्यो के, ए रोहिसाने केम लाव्या डो? अजयकुमारे कयु के-महाराजाधिराज! तमे हुकम को हतो तेने हुं तेमी श्राव्यो बुं, ए तमारा मुजराने अर्थे श्राव्या डे माटे एमनो मुजरो यो अने मुजरो आपो तथा साबासी द्यो; केमके तमारी नगरी थने तमारा सरीखा सिंह समान राजा बतां तमारा मुखमांथी जक्षण लश् जाय डे अने ते ज पोते वली तमारे चरणे हालीचालीने आव्या , आप पराक्रमे करी पण आपणे पराक्रमे नहीं, ते माटे मुजरा योग्य . राजाए कह्यु जे साबास ले तुजने ! ते वखते रोहिणीयो उठीने प्रणाम करी बोल्यो के, हे महाराजाधिराज ! हुं तो तमारो खिजमतगार बुं, खानाजात , माटे जे हुकम करो ते मस्तके चढाववा हाजर बु. राजाए कडं के, तमने तो अमे शाह जाणता हता पण तमे तो मोटा पराक्रमवंत दीसो बो ! एम हसीने राजाए कडं जे, जार्ज अजयकुमार! तमे तमारे मांहोमांहे समजो. पड़ी ते बन्ने (अजयकुमार अने रोहिणीयो) त्यांथी उठी ए. कांते बेग. त्यां रोहिणीयाए पोतानो मूलथी मांडीने सर्व पराक्रमनो वृत्तांत कह्यो. त्यारे प्रधाने पुब्युं के, तमे देवतानां लक्षण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली केम जाण्यां ? उत्तरमा रोहिणीयाए कांटो भने कानना संयोगे जगवाननी देशना संबंधी अगाउ बनी हती ते बीना अथ इति जणावी अने विशेषमां कडं के, नगवाने कहेली गाथानो परमार्थ समजवामां थावेलो होवाश्री तमने मलवानी मने उत्कंठा थ तेथी तमने पत्र लेख्यो अने हुं तमने मल्यो, जेथी हुँ हवे महारे कसी वातनी उणीम रही नथी एम मार्नु बु. क्यां प्रनुनी वाणीनो जोग अने क्यां तमारो जोग, एटले सोनु अने सुगंध ए बेनो जोग मल्यो तो शा माटे खोटी थावं. वली खामी! तमे पण मने पकडवानुं कारण मेलव्युं पण तमारी पु. न्याश्ये बेतरायो नहीं. एवे समये जगवाननी वाणी दोहिली पण काम आवी. अनयकुमारे पुब्यु के-हे ना! ए गाथा तुं नावे करीने शिख्यो के कुलावे करीने शिख्यो ? रोहिणीये कह्यु के-स्वामी! में नासतां नासतां काने सांनट्यु. ते सांजलवानो तेमज याद राखवानो मारो नाव नहोतो पण कारणयोगे नावी प्रबलताने लीधे ते मने श्रावमी गश्. अजयकुमारे कडं के, था प्रमाणे सांजलेली गाथा काम श्रावी तो नावसहित शिखे ते तो न्याहाल थाय. रोहिणीयो कहे के, एमां शुं कहे ? श्रर्थात् एमज थाय. 'उत्तमनी संगते सुबुझि थावे अने कुबुद्धि जाय' ए कहेवतने अनुसरीने रोहिणीयो चोर हतो तेम बतां अजयकुमारनी संगत थवाथी तेनी कुबुद्धिनाश पामी अने सुबुद्धि उपजतां तेणे अजयकुमारने कडं के, में चोरी करीने जे जे अव्य मेलवेलुं ते ते नगरमध्ये जेनुं जेनुं होय तेने तेने उलखावीने स्वाधीन करी द्यो, के जेथी ते लोकोना जीवने श्रानंद थाय. त्यारपठी अजयकु. मारे सर्व वृत्तांत पोताना पिता (राजा)ने जणाव्यो. श्रेणीक राजाए नगरमां ढंढेरो फेरव्यो के “जे कां जेनी वस्तु गश् होय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ४ए ते पोतपोतानी उलखीने ले जा." आ ढंढेरो सांजली नगरजनो घणा राजी थया अने सर्वे पोतपोतानो माल उलखीने ले गया. नगरमा जे चोरनो उपजव हतो ते शांत थयो. अनयकुमारनी संगतने लीधे ते शुक श्रावक थयो भने बार व्रत ऊचरी उत्तम धर्मनां काम करी श्रायु पूर्ण थये काल करी स्वर्गनां सुख पाम्यो. __ श्रा कथा उपरथी सार ए ग्रहण करवानो ने के, जाव रहित पणे पण प्रजुनी वाणीनी फक्त एकज गाथा कुलहीन कोली जेवी हलकी वर्णना अने हमेशां चोरीनो धंधो करनाराए सांजली हती तो मात्र एटलाज ज्ञानथी रोहिणीयो चोरीमा पकमातां बच्यो अने उत्तम पुरुषनी सोबत थई, श्रावक थयो भने स्वर्गे गयो, तो शुद्ध नावथी ज्ञान प्राप्त कर्यु होय तो तेना लाननी तो वातज शी करवी ? तेथी तो था लोकमां सुख संपदा मलवा उपरांत परलोकमां स्वर्ग अने मोदनुं सुख मले. माटे ज्ञान नणवानो उद्यम करवो अने तेमां जणाव्या प्रमाणे वर्तन करवू. ॥ ज्ञान उपर मास अने तुस नामना बे नाईनी कथा ॥ मास अने तुस नामना बे नाई हता. तेए वृद्धावस्थाये दीक्षा ग्रहण करी. परंतु तेउने जणतां आवड्यु नहीं अर्थात् जणवानी महेनत लेवा बतां शिखी शक्या नहीं तेथी मनमां खेद करवा लाग्या, जे आपणने एके पद जणतां नथी श्रावस्तुं तो आपणने ज्ञान विना शो गुण थशे? अने लोकमां पण कोण आदर करशे ? श्रा प्रमाणे सोच करता चिंतातुर बेठेला ए बन्ने साधुने गुरुमहाराजे दीवा. ते वखते गुरुए तेउने पुज्युं के, तमे शी चिंता करोगे ? बन्ने साधुए जे परमारथ हतो ते कह्यो अर्थात् नणतां एक पद पण मुखपाठ यतुं नथी, ए खरी हकीकत गुरुमहाराजने तेउए निवेदन करी. गुरुए कह्यु के, ए वातनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग तमारे खेद करवो नहीं. जवानो उद्यम करवा बतां न श्रावड्यु मां तमे शुं करो! तमारो कांई दोष नही, सोच करे कांई - वडवानुं नयी, उद्यम जारी राखवो. तमारी बुद्धि विशेष जणवामां पहोंची शकती नथी तो हुं तमने थोडुं बतावुं तेटलुंज जो, एटलुं जणवार्थी पण तमारुं कल्याण थशे. " मा रुस अनेमा तुस. " ए पद शिखो अने तेनो रहस्य घटमां दृढावो. या न्हानुं सरखं बे शब्दनुं पद पण तेने जपतां गोखतां थकां पण कोई जवांतरनां ज्ञान विराध्याना कारणथी चावड्युं नहीं, तोपण तेमणे ते वारंवार गोखवानुं शरु राख्युं. ज्यां ज्यां तेd जता त्यां त्यां रस्ता सुधामां पण ए पद गोखता गोखता जता हता, तेथी मार्गमां चालतां बोकरां सुधानां मोंढे ए शब्दो थई गया, परंतु ते साधुउने वरोबर श्रावड्या नहीं. वखतो व खत एनुं एज बोलता हता तेथी लोकोमां तेमनुं ए नाम पर्की गयुं. बालको तेमने जतां श्रावतां वारंवार एनामथी (ए शब्दो बोली ) पोकारी पोकारी मश्करी करवा लाग्या. एम ए पद सांजलतां सांजलतां अने गोखतां गोखतां बन्ने साधुने ते यावड्यं. त्यारपढी बन्ने साधु नगरमां गोचरीए फरता हता ते वखते गृहस्थनां बालको तेमने देखीने केडे पडे, उ जाय ! ठे जाय ! मास तुसीधा साधु !! एम कही, केटलाक बालको घो ताणे, कोईक मुहुपतिताणे, कोईक कपको ताणे, कोईक कांबली ताणे, कोईक दांडो ताणे. या प्रमाणे बालको तेमने पजवता हता परंतु कोईना उपर लेश मात्र खेद नहीं लावतां गुरुए बतावेलुं पद याद लावी ते समता परिणाम रसे वर्त्ततां क्रोधने उल्हवी शुक्ल ध्यान ध्यातां थकां रूपक श्रेणी प्रत्ये मांगीने केवल ज्ञान पाम्या ने मोक्ष सिधाव्या. या कथाथी एटलो सार लेवानो बे के, फक्त " मा रुस मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. तुस” एटले राग द्वेष न कर. मात्र एटलाज शब्द- पद शिखवाथी मास अने तुस साधु अदय सुख पाम्या, तो विशेष ज्ञान जण्या होय तो ते केम पार न पामे? पार पामेज. माटे ज्ञान न. णवानो त्रिकरण योगे उद्यम करवो तथा ए प्रमाणे वर्तन करवू, जेथी लोकमां अने परलोकमां सुख संपति मलवा उपरांत अक्षय मोद सुखनी प्राप्ति पण पुर्खन नथी. १० ॥अथ मनुष्यजन्म विषे ॥ ॥जवजलधीनमंतां कोई वेला विशेषे॥मणुअजनम लाधो उल्लदो रत्न लेखे ॥ सफल कर सुधर्मा जन्म ते धर्मयोगे॥ परनवसुख जेथी मोदालक्ष्मी प्रनोगे॥११॥ अर्थः- नवरुपीया समुनमा फरतां फरतां कोईक समयने योगें रत्न समान पुर्खन था मनुष्य जन्म मच्यो, ते जन्म (म. नुष्य जन्म) जे सुधर्मी प्राणी २ ते धर्मने योगे करीने सफल करे, धर्मथकी या नवे सुख अने परजवे मोदने पामे एटले धर्मने पसाये करीने मोद रुप लक्ष्मीनो जोक्ता थाय. ११ मनुजजनम पामी आलसे जे गमे ॥ शशिनृपतिपरे ते शोचनाथी जमे ॥ उलद दश कथा ज्यूं मानुखोजन्म ए ॥ जिनधरम विशेषे जोडतां सार्थ ते ॥१ ॥ अर्थः-मनुष्यजन्म पाम्या उतां जेप्राणी आलसे कहेतांप्रमाद वडे तेने गुमावी देने ते प्राणी शशिप्रज राजानी पेठे सोचनाथी नमे डे एटले पश्चाताप पामीने संसाराटवीमां रखडे बे, वली ए मनुष्यजन्म दश दृष्टांते करीने प्राणीने पामवो दोहिलो (कु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ԱՅ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग कर) बे, पण अरिहंतनो प्ररूपेलो धर्म (जैनधर्म) विशेषे जोडतां एटले जाणीने ते प्रमाणे वर्त्तन करतां ते सार्थ कहेतां सथवारा रुप बे (जव टवी लंगवाने सार्थवाह तुल्य जैन धर्म बे ). १२ ॥ शशिन राजानी कथा ॥ ॥ सावत्थि नगरीमां सुरप्रन नामे राजा राज्य करतो दतो, ने शशिप्र नामनो तेनो जाई युवराज पदे हतो. एकदा समये ते नगरीना उद्यानमां धर्मघोष सूरी पधार्या वनपाल के ज्ञानी गुरुमहाराज पधार्यानी वधामणी राजाने याप्याथी तेने घणुं द्रव्यपी सुरज श्रने शशिन बे बांधवो राज रुद्धि सहित मोटा आडंबर श्री गुरु समीप श्राव्या. वंदनादि करी योग्य स्थानके बेसी धर्मदेशना सांजलतां सुरप्रन राजा प्रतिबोध पायो. त्यांथी घेर आवी तेणे पोताना जाई शशिप्रजने कयुंके, हवे तो महारे राज्यनो खप नथी. शशिप्रज ते सांजली कदेवा लाग्यो के, शा माटे ? राजाए कयुं के, ए राज्यने ते नर्क पामीये, माटे सर्वथा मारे राज्यनो खप नथी, हूं तो जवनिस्तारणी दीक्षा ग्रहण करीश. शशिप्राने ते वखते जणान्युं के, अरे जाई ! मनुष्यजव पामीने एले कां खुर्द बो ? ए सर्व बालक बीवरामणी करी मुकी बे. माटे महारुं कहेतुं मानीने राज्यसुख जोगवो. उतावला थईने तमे संसार तो मुकशो पण पढी पश्चाताप करवोपडशे. वली तमे कदेशो जे, जाईए मने कांईये कथं नहीं. जो तमारी एमज ईछा होय तो हाल तमो संसारिक सुख जोगवी पछी धर्म आदरज्यो. सुरप्रने जणाव्युं के, छारे जाई ! एतुं शु बोल्यो ? कयुं बेके, “ धर्मस्यत्वरितागति ” एटले धर्म तकाल करवो. माटे ए राज्य तमे ग्रहण करो, हुं तो हालज चारित्र लेश. पडी बलात्कारे शशिप्रजने राज्य सोंपीने सुरप्रन राजाए गुरु पासे ज‍ दीक्षा लीधी, संयम सतर प्रकारे धारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. धतां तप जप करी, अंते अणशण श्रादरी समाधियें करी कालधर्म पामी सुरप्रनमुनी पांचमे देवलोके देवतापणे उपज्या. शशिप्रज राजा थयो. धर्म उपर तेनी श्रझा नहोती. ते राज्यसुख जोगववामां काल क्रमण करतां साते वसन सेवी अंते मरीने त्रीजी नर्के नारकीपणे उपज्यो. सुरप्रजराजा जे संयम पाली देवलोकमां गया हता तेमणे झाने करीने जोयुं के महारूं कहेण मान्यु नहीं अने धर्म विरुरू वर्तन करवाथी बेवटे मर्ण पामी महारो बांधव नर्के गयो. मोहवशे करी ते देवता नरकावासमां श्राव्यो अने पोताना नाईने काढवा मांड्यो. घणी वार तेने जगव्यो पण ते पारानी माफक वेराई जवाथी अतिशय दुःख पास्यो. सुख करवा जतां तेथी उलटुं विशेष फुःख थतुं देखीने देवता तेने कदेवा लाग्यो के, जूंडा ! में तने घj घणुं कडं हतुं पण तें महारूं कहे गणकार्य नहीं तेनां था प्रत्यद फल नोगवे बे. हवे तुं शुं करीश ? नारकी कहे के, हवे हुं हुं करूं? धर्मज्रष्ट थवाथी मेलवेढुं तेना विपाकनुं फल जोगवेज बुटको बे. पली सुरमन देवता परमाधामीने नलामण देईने पालो देवलोकमां गयो. शशिप्रन घणो पश्चाताप पाम्यो. श्रा कथामां सार ए ग्रहण करवानो ने जे- शुरप्रनराजा धर्म पामवाथी देवतानी झछि पाम्यो अने शशिप्रन राजा ध. मंथी विमुख रहेवाने लीधे नर्कावासनां पुःख नोगवतो थयो. माटे हे जव्य जीवो तमे पण धर्म करी देवगति अने बेवटे मोदसुख मेलववाने उद्यमवंत था. मनुष्यजन्म पामी धर्म विना तेने एले गुमावी देई नरकादिनां मुःख पमतां पश्चात्ताप करवो ते मूर्ख मनुष्यनुं काम . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग हवे मनुष्य जव दश दृष्टांते दोहिलो वे ते संबंधे कहेलो श्लोक. ॥ चुल्लग ( १ ) पासंग (२) धन्ने ( ३ ), जुये ( ४ रयणे (५) सुमीणे ( ६ ) चक्के (१) ॥ चम्म ( ८ ) जुगे (९) परमाणु (१०) ए, दश दिवंता मणुलने ॥ १ ॥ अर्थ- चुलानो दृष्टांत १, पासानो दृष्टांत २, धान्यनो दृष्टांत ३, जुवटानो दृष्टांत ४, रत्ननो दृष्टांत ५, खप्ननो दृष्टांत ६, चक्रनो दृष्टांत ७, चर्मनो दृष्टांत, धुंसरानो दृष्टांत ए, परमाणुनो दृष्टांत १०, ए दश दृष्टांते मनुष्य जव पामवो दुर्लन बे ॥ ( या दश दृष्टांतनो विस्तार बीजा ग्रंथोमां घणो बे परंतु ग्रंथ गौरवताना कारणे अयां किंचित् मात्र दर्शाव्यो बे ) मनुष्यजवनी डुर्लजता उपर पहेलो चुलानो दृष्टांत. कंपीलपुर नगरमां ब्रह्म राजा राज्य करतो हतो. तेने चूलणी नामे रंजा समान महा स्वरुपवान राणी हती. तेनी कुक्षीने विषे चौद स्वप्न सुचित ब्रह्मदत्त नामनो चक्रवर्त्ति पुत्र पेदा थयो हतो. ब्रह्मदत्त कुमारनी बाल्यावस्थामां तेना पिता ब्रह्मराजा परलोक सिधाव्या पछी ब्रह्मराजाना चार मित्र राजाउए वाराफरती कंपीलपुरमा रही ब्रह्मदत्त कुमार योग्य उमरनो थाय त्यांसुधीराज्यनी सार संजाल करवानुं कबुल करी, प्रथम दीर्घ राजाने राज्य सोंपी ऋण मित्रो पोताने नगरे गया. दीर्घराजा राज्य वहीवट चलाववा लाग्यो. केटलोक वखत वित्या बाद अंतेर सुधी जाव याव करतां चूली राणी खुबसुरत तेमज लघु वयनी हो दीर्घराजानी दृष्टीए पडतां ते तेना उपर मोहित थयो. प्रथम तेर्जनो नेत्र मेलाप थयो. त्यारपठी वचनालाप थयो बेवट कायानो संबंध पण थयो. खीर नीर परे तेर्जने पर - स्पर प्रीतिनी गांठ एवी तो बंधाई गई के एक कण मात्र एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ए बीजानो विरह खमी शकतां नहीं. पाप हमकायुं बे, चोरी चार महीना अने बीनालु बेवट ब महीना क्वचित ढांक्युं रहे, पण अंते उघाडं पड्या विना रहेतुं नथी, तेमज आ दीर्घराजा अने चूलणी राणीना अयोग्य आचरणनी वात सघले विस्तरी. त्रण मित्र राजाए पण आ वात सांजली तेथी घणा दीलगीर थया. परंतु दीर्घराजानो पग ए राज्यमा कामी गयेलो अने कुमार बालक होवाथी नीरुपाये ए पुष्टने त्यांथी खसेडी शक्या नही. दीर्घराजा निशंकपणे चूलणीराणीनी साथे आडो व्यवहार चलावतो राज्यनो स्वतंत्र मालीक होय तेम धणी धोरी थई सुख जोगववा लाग्यो. वरधनु नामे ए राज्यनो असली गरढो प्रधान हतो तेणे पण दीर्घना उष्टकर्मनी वात जाणी तेथी तेणे पोताना धनु नामना पुत्रने ए हकीकतथी वाकेफ करी कडं के, तहारा दीलोजान दोस्त ब्रह्मदत्त कुमारने दीर्घनी कुचेष्टानी सघली बीनाथी माहितगार. करजे. धनुए पितानी आज्ञा प्रमाणे ब्रह्मदत्तने सघलो नेद कह्यो तेथी ते रोषातुर थयो. एकदा प्रस्तावे एक हंसीने वायस साथे जोई ते बन्नेने दरबार कचेरीमा लई जई ब्रह्मदत्त कुमारे कयु के, जुट ! श्रा उत्तम हंसी मध्यम वायस साथे संजोग करावे ले तेनुंफल. एम कही दीर्घराजाना देखता वायसने हएयो, अने जणाव्युं के महारा राज्यमां एवो जे अन्याय (श्रयुक्तकार्य ) करशे तेने हुँ वायसनी पेठे हणीश. श्रावा शब्दो सांजली दीर्घ बीहीन्यो अने ते हकीकत तेणे चूलणीने जणावी. चूलणी क्रोधायमान थई मनमा विचार करवा लागी के, ए पुत्र आपणे कामनो नहीं. दीर्घ कयु के, हवे श्रापणे एटलेथी सर्यु, केमके तहारा पुत्रे आपणी वात जाणी, माटे कोईक दीवस ते तने अगर मने, के आपण बन्नेने हणशे. चूलणीए कडं के, खामी ! ए बालकनी वात मननां न लावीये ? एना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग का सामुं न जोईये ? शामाटे जे कदापि ए पक्षीनुं चरित्र दे - खीने एणे एवं कथं दशे ? बालचेष्टा थकी बांधेजारे बोलवाथी तमेशा माटे बीहो वो ? एनो शो श्रशरो बे ? अने एनो शो चार बे ? एम करतां कदापि एवं हशे तो आपणे एनो कोई उपाय करीशुं ! एवां राणीनां वचन सांजलीने पाठो वली दीर्घ कुकर्म सेववाने सावधान थयो. त्यारपढी वली एकदा प्रस्तावे कोई कोयलने काग पासे पूर्वनी परे कार्य करावती देखी तेने पण प्रथमनी पेठे कचेरीमां लावी दीर्घना सन्मुख पूर्वे कथं हतुं तेमज वचनोच्चार करी कागने मार्यो. ब्रह्मदत्तनुं श्रा बीजी वखतनुं कहेतुं ने कागनुं हएवं जोई दीर्घ अतिशय गजराटमां पड्यो. या वात पण ते चूली राणीने जपावी ने कह्युं के, हवे तो ए सुखथी सर्यु ! तहारो छाने महारो संबंध हवे घाटलेथीज पूरो थयो ! राणी कड़ेवा लागी के, स्वामी ! हुं तमने जवा देनार नथी. दीर्घे जणान्युं के, तहारा पुत्रने तुं हणे तो हुं रहुं, नहीं तो कोई उपाये हुं रहेनार नथी. विषयनी वाही राणीए पोताना पुत्ररत्नने दण्वानुं कबुल करी दीर्घने राजी कर्यो ने हमेशानी माफक दीर्घनी साथै विषयसुख जोगववा लागी. # पुत्रने मारवानी योजनामां चूलणीए कायरदत्त राजानी कुमरी साथे ब्रह्मदत्त कुमारनो विवाह संबंध कर्यो, अने लाखनुं घर बनावरावी कुमारने जपाव्यं के, श्रापणा कुलनो एवो आचार बे जे प्रथम पाणीग्रहण करीने लाखना घरमा सुबुं राजकुमारे ते वात कबुल करी. वरधनु प्रधाने ते वात सांजली विचायुं जे, हुं गरढो थयो ने महारा मोहोंमा श्रागल राज्यनी केटलीक पेढी थई गई परंतु कोई पण वखत लाखनुं घर जाएयं के सांजल्युं पण नथी. श्रा तो कांईक कौतकनी वात! यामां राणीनुं कांईक काविधुं खरं ! डाह्या प्रधाने श्रावो निर्धार करी कायर राजाने गुप्त रीते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. देवरावी मोकल्युं के लग्न कर्या पढी तमारी पुत्रीने ब्रह्मदत्त कुमारनी साथे मोकलशो नहीं. कदापि मोकल्या विना चाले तेम न होय तो पुत्रीनो स्वांग पढेरावी कोईक दासीने मोकलज्यो. जुले चूके तमारी पुत्रीने मोकलशो नहीं. कणयर राजाए मंत्रिनुं कहे मान्य करी तेमज करवा निश्चय कर्यो. वली वरधनु प्रधाने पोताना पुत्र धनुने कयुं के, राणीए लाखनुं घर बनवरावी राजकुमारने प्रथम पाणीग्रहण करीने तेमां सुवानुं सुचवन कर्यु बे, एमां मने तो राणीनो पूरेपूरो प्रपंच मालम पडे बे. माटे तेनाथी सावध रहेवानी श्रति श्रावश्यकता बे. तुं ब्रह्मदत्तनो संग न मुकीश, रात्र अने दहाडो तेनी पासेनो पासे रहेजे. परणीने यावे अने घरमा सुई रहे त्यारे त्यां पण तुं तेनी पासेज रहेजे. कदापि ते तने तहारे घेर जवानुं कहे, तो तुं क हेजे जे, स्वामी! हुं तो तमारो सेवक बुं, श्रहो निश श्रापनी हजूरमां रहे ए ज महारो धर्म बे, विगेरे समयने अनुसरतुं कही तुं तेनी पासेनो पासे रहेजे, पण तुं एनुं पासुं न मुकीश. त्यापी प्रधाने दीर्घराजा पासे श्रावी, तीर्थयात्रा जवानी आज्ञा मागी. राजाए विचार्य जे, ए बाहार जशे तो कांईक उपाधि करशे माटे तेने जवानी ना पामी अने कह्युं के, तमे अहीं रहने दान पुन्य करो. प्रधान गंगाने तटे दानशाला मंमावी त्यां मुकाम करी रह्यो. त्यांथी लाक्षागृह सुधी गुप्तपणे प्रधाने सुरंग खोदावी ने पोताना पुत्र धनुने जपाव्यं के, ब्रह्मदत्त ए घरमा सुवा जाय ते वखते में तने सूचना करी बे ते प्रमाणे तारे एनी पासे रहे धने त्यां यागल जो कांई प्रतिकुल उपसर्ग याय तो अमुक जगोए ब्रह्मदत्त पासे लात मरावजे एटले सुरंगनु मुख मालम पडशे, त्यांथी तमो बन्ने नीकली ने दानशाला पासे यावी त्यां तैयार राखेला अश्वो पर स्वार थई ८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4G सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग चाल्या जज्यो. ब्रह्मदत्तनी वहु थई श्रावेली स्त्रीने बाहार काढवा माटे खोटी थई तमारो वखत गुमावशो नहीं. पाणीग्रहण करी ब्रह्मदत्त स्त्रीसहित पोताना नगरमां थाव्यो. चूली राणीए तेने लाक्षागृहमां सूवा मोकल्यो. प्रधानपुत्र धनु तेनी साथे शयनगृहमां गयो. ब्रह्मदत्ते तेने घेर जवा माटे घणो आग्रह कर्यो; त्यारे तेणे कयुं के, हुं तमारो खीज - मतगार सेवक तूं माटे तमारा पांगेठ देठे सुई रहीश, पण थापने वीला मुकी क्षण मात्र पण दूर नहीं जाउं श्र प्रमाणे क ही धनु तेनी पासे त्यांज रह्यो. कणयर राजाए, प्रधाननी सूचना मुजब पोतानी पुत्रीने बदले तेनो स्वांग पहेरावी दासीने मोकली हती, ते स्त्री सूवा माटे आवासमां घ्यावी. ब्रह्मदत्त अने धनु वार्तालाप करवा लाग्या ने स्त्री निद्रावश थई म - ध्य रात्रि थया पढी चूतणी सर्व लोकने निद्राधीन थयेला जोई अवसर साधी एकली लाखना मंदिरे यावी ने पोताने हा मुक्यो. जरा सलग्युं एटले त्यांथी नासती नासती पोकार करवा लागी के, अरे ! धायो रे धायो !! महारो ब्रह्मदत्त पुत्रलाखना मंदिरमां सुवा गयो हतो, ए घर तो सलगतुं देखाय बे ! मारा पुत्रनुं शुं ययुं ? महारो रत्न सरिखो पुत्र अग्निमां बले वे तेने तमे काढो, एम लोकोप्रत्ये कहेवा लागी. लाक्षागृह बलवा मांड्यं, अग्नि चारे बाजु फेलायो ने जडका क्षणवारमां दावानलनी माफक एटला तो वध गया के त्यां आगल जवानी कोईनी पण हाम चाली नहीं. ए मंदिरमां नि सलगतां तुरत धुणी गोटावाथी तथा नमनड जडका यता जोवाथी ब्रह्मदत्त एकदम पोताना मित्र धनुने कहेवा लाग्यो के, आशो अकस्मात् ? धनुए कह्युं के, महाराज ! ए वात महारा समजवामां बे. ब्रह्मदत्त कहे, हवे शुं करवुं ? धनुए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. यूए क- स्वामी ! चिंता म करो. या ठेकाणे आप डाबा पगनी लात मारो. ए स्थानके सुरंग बे, ते मध्ये आपणे जवानो मार्ग बे. ब्रह्मदत्ते लात मारीने सुरंगनुं द्वार खुलं कर्यु ने जती वखते स्त्रीने लई सेवा माटे धनुने कयुं. त्यारे तेणे जणाव्यं के, तमे सलामत बो, तो वली स्त्रीयो घणी मलशे वखत गुमावव योग्य या अवसर नथी. पबी तुरत त्यांथी बन्ने जण सुरंग मार्गे नीकली, तेना द्वार समीप श्रावी धनुना पिताए वे श्वरत्न तैयार करी उमा राख्या दता तेना उपर चढीने नाग, पालुं वालीने जोया वगर पूरपाट जेम नसाय तेम नासतां ज्यारे सो योजन गया त्यारे बन्ने घोडा फाटी पड्या. पढी पग पालाये चाल्या. एम दीर्घराजाना जयश्री नासतां नासतां केटलोक वखत वित्याबाद बन्ने जण विखूटा पड्या. अहीं घणो संबंध बे अर्थात् सो वर्ष सुधी ते फर्याठे ने घणी घणी मुशीबतो तेमने वेठवी पडी तथा घणी कन्याश्रो साधे पाणीग्रहण करी सुख जोगव्यं बे परंतु ग्रंथगौरवता तथा श्र चुलाना दृष्टांतना संबंधमां ए हकीकतनुं प्रयोजन नहीं होवाथी अहीं ए लांबी ढकीकत दाखल करी नथी. जाणवाना जीज्ञासुओए ब्रह्मदत्त चरि ते वात जाणी लेवी बन्ने मित्रो जूदा पंड्या पछी ब्रह्मदत्त एकलो नासतां नासतां अमतालीस गाउनी अटवी पासे श्राव्यो. तेश्रोलघवी सहा विषम वे. ते स्थानके एकलाथी जई शकातुं नहोतुं तेथी कोई सार्थनी वाट जोई रह्यो हतो तेवामां एक ब्राह्म ■ मल्यो, तेनी साथे ब्रह्मदत्त घटवी थोलंगतो चाल्यो. चालतां ज्यारे बपोर - खरा मध्यान्ह यया एटले ब्राह्मणे पोतानी पासे साधुधो हतो ते पलालीने एकलाए खाधो. ब्रह्मदत्तने लगार मात्र न च्याप्यो ब्रह्मदत्ते पण न माग्यो . एम करतां त्रण दि वसे श्रटवी लंघी. पढी ब्राह्मणे कयुं, रे बालक ! हवे तुं त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग हारी मेले ा दिशे जा, वस्ती श्रावशे एटले तुं सुखी थईश. एम कही ब्राह्मण जवा लाग्यो एटले ब्रह्मदत्ते कडं के, तमारो गुण नहीं विसरे तेवो , माटे तमे, ज्यारे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति थयानुं सांजलो त्यारे तुरत मारी पासे आवजो ! महारो कोल ! जो क्षत्रीपुत्र बुं तो तमारी ईछा पूरीश. श्रावां वचन सांजली ब्राह्मणे विचार्यु जे, एवा कंगाल घणाए फरे ! पण ठीक ! सीधो जवाब देवामां कोई जतुं नथी. पडी ब्रह्मदत्त प्रत्ये कह्यु के, वारु माहराज ! तमारी ईछा अस्तु हो. एम सीर्वाद देई ब्राह्मण चालतो थयो. ब्रह्मदत्त पण त्यांथी ब्राह्मणे बतावेला मार्गे चाली नीकल्यो. त्यारपडी गाम, नगर, पुर, पाटण विगेरे स्थलोए फरतां फरतां सो वर्ष वीती गयां, तेमां राजा तथा विद्याधरा दिनी एक लाख बाणु हजार कन्या परएयो; अने उ खंग पृथ्वीनुं राज्य संपादन करी चक्रवर्ति पद पाम्यो. बन्नु क्रोड गाम, बोहोत्तेर हजार मोटां नगर, अमतालीस हजार पाटण, केटलांएक खेडा, केटलाएक करबट, मंमप, प्रोण प्रमुख नवनिधान, चौदे रत्न मेलवी, उन्नु क्रोम पायदल, चोरासी लाख हाथी, चोरासी लाख घोडा, चोरासी लाख रथ, तथा एक लाख बाणु हजार स्त्रीउना परिवारे परवों थको पचीश हजार देवता जेनी सेवामा रहे बे एवो ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति कंपीलपुर नगरे श्राव्यो. दीर्घराजाने लांबी जंघमांहे नाख्यो अर्थात् कालधर्म पमाड्यो. चूलणीए नयने लीधे नासी जई दिदा लीधी श्रने शुद्ध संयम पाली कर्म खपावी तेज नवने विषे मोदपद पामी. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति सुखरुप राज्य वैनव जोगवे . धनु, प्रधानपदवी जोगवतो राज्य वहीवट चलावे . तेउनी बाण मात्र कोई लोपतुं नथी. हवे जे ब्राह्मण साथे ब्रह्मदत्ते अडतालीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. गाउनी अटवी लंगी जेने वचन श्राप्यु हतुं, तेणे ब्रह्मदत्त च. क्रवर्ति थयानुं जाण्यु; तेथी ते कंपीलपुरमां आव्यो अने पोतानुं नाम नीशान बतावी चक्रवर्त्तिने मल्यो. चक्रवर्तिए तेने उलख्यो. पढ़ी कह्यु के, थरे नट्ट महाराज ! हुँ तमारा उपर त्रुगे बुं, माटे तमारे जे श्छा होय ते मागो-मागो. ब्राह्मणे कयु के, महाराजाधिराज ! हुँ महारी स्त्रीने पुढी आवी श्छानुसार मागीश. चक्रवर्तिए तेने पुढी आववानी आझा आपतां ते पोताने मुकामे श्राव्यो अने हर्षनेर ब्राह्मणीने कहेवा लाग्यो के, अहो माहा रांडनी! तुं कांई जाणे ठे? श्राखी पृथ्वीनो स्वामी,श्रापणा उपर तुष्टमान थयो बे. तेणे कडं ने जे, मोहे मांगे ते आपुं, तेथी हुँ तने पुढवा सारं श्राव्यो , माटे तुं कहे ते तेमनी पासे जश्न मागुं. ब्राह्मण- बोलवू सांजली ब्राह्मणीए मनमां वीचार्यु जे, एने घणुं धन मलशे तो मान ( अहंकार ) मां श्रावी नवी स्त्रीनुं पाणीग्रहण करशे, तो हुं फुःखी थश. माटे साध्यमां रहे श्रने आपणुं काम थाय एवं मागवु उचित . एम धारीने ब्राह्मणीए पोताना खामीने कडं के, आपणाथी राज्यनार जपामी शकाय नहीं, तेमज घणुं धन होय तो तेने संजालवानी चिंता रात्रि दिवस करवी पडे, माटे तेवी कोई चिंता करवी न पडे अने श्रापणे सुख चेनमा रहीये, ए, तो महारी नजरमां ए मागवानुं श्रावे ने के, " चक्रवर्तिना राज्यमा सघले घरोघर हमेशां आपणने ईचानोजन करावे अने उपर एक सोनश्यो दररोज ददाणा आपे, एवं मागो. ब्राह्मणे कडं के, ए मने गम्यु, तहारी मती घणी सारी पहोंची. पडी ब्राह्मणे चक्रवर्ति पासे जश्ने तेज प्रमाणे माग्यु. चक्रवर्त्तिए जरा ठपको देतां कह्यु के, अरे तुंमा! हुं तुष्टमान थयो उतां तुं हजी नीख मागे डे. माटे हजु पण विचार करी बीजुं कांई राज्य पाट धन दोलतादि माग, के जेथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग तुं संपूर्ण सुखी या. ब्राह्मण बोल्यो के, महाराज ! श्रमने तमे एटलुं पावो, मारे बीजुं कांई जोईतुं नथी. चक्रवर्त्तिए तेना माग्या मुजब " सघला पोताना राज्य ( बए खंड ) मां वाराफरती दररोज एमने ईछानुसार जोजन जमाडे ने उपर एक सोना महोर दक्षणा आपे,” एवो परवानो करी थाप्यो. ब्रा ह्मण ए प्रमाणे दररोज जमवा लाग्यो, पण ज्यां एक वखत जम्यो त्यां बीजी वखत जमवानो वारो श्राव्यो नहीं; केमके चक्रवर्त्तिनी एक लाख बाणु हजार स्त्रीउना तेटलाज जूदा जूदा चला बे, पछी बोहोतेर हजार नगर, अमतालीस हजार पाटण, वली वीजा खेडा, कर्बट, मंगप, द्रोण विगेरेना अनेक चूला बे. एटले ठेकाणे वारे वारे जमतां कदापि पार न आवे, तो फरीने बीजी वार चक्रवर्त्तिने चूले जमवानो वारो तो क्यांथीज वे ? न जावे. तेमज मनुष्यजव पामी घालसे करी खुए तो फरीने ते जव पामवो दुर्लन जावो. वली ते काले उत्कृष्ट सात वर्षनुं श्रजखानुं प्रमाण हतुं तेना बे लाख बावन हजार दीवस या तेथी पण स्पष्ट समजाय बे के जे घेर जम्यो ते घेर फरीथी जमवानो वारो आवे ज नहीं, तेम बतां कदापि कोई देवताने जोगे तेनी साहाज्ये करी ब्राह्मण घणा रूप करे तेथ ते पण कदाच (देवानुयोगे) पामे अर्थात् फरीथी जमवानो वारो आवे ! परंतु मनुष्यजव पामी धर्म साधन कर्या विना एटले अवतार गुमायो तो फरी मनुष्य जव पामवो अति दुर्लन बे. माटे धर्म सेवन करी मनुष्यजव सफल करवो. ब्राह्मण मेलवेला परवाना प्रमाणे जम्यो ए चूले फरी जमवानो वारो वे नहीं एम मनुष्यजव गुमावी दीधो ते फरी मलवो पुष्कर बे. ॥ मनुष्यजवनी दुर्लनता उपर बीजो पासानो दृष्टांत ॥ या जरतक्षेत्रने विषे गोलक देशमां चणीक नामे गाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ६३ हतुं. तेमां एक चीक नामे ब्राह्मण रहेतो हतो. तेने चणेश्वरी नामनी जार्या हती. ए बन्ने स्त्रीजर्तार जैनधर्मी इतां. चणेश्वरीने पेटे दांत सहित पुत्र पेदा थवाथी तेना दांत घसी नाख्या. एक वखत तेने घेर साधु याव्या. तेमनी पासे पोताने दांत सहित पुत्रनो प्रसव थया संबंधीनो वृत्तांत चणेश्वरीए कह्यो. ते वात सांजली साधुए जणाव्युं के, ए राज्य पामशे. पढी मातापिताए कयुं के, स्वामी ! अमे तेना दांत घसी नाख्याते ! साधुए जणाव्युं के, बिंबांतरित राज्य जोगवशे श्रर्थात् कोई योg बेसारीने राज्य करशे ( प्रधान यशे). साधुनां यावां वचन सांजली बन्ने मातापिता हर्ष पाम्यां वालकनुं नाम चाणाक्य पाड्युं. ए सर्व शास्त्र जणी कला विकलानो जाण थयो. महा जैनधर्मी थयो. मावित्रे तेने परणाव्यो. एकदा चाणाक्यनी नार्या तेना नाईने घेर विवाद होवाथी तेने पियेर गई छाने ते स्त्रीनी बहेन चाणाक्यनी साली पण ए अवसर उपर त्यां गई हती. ए श्रीमान् ने जाग्यवान् हती, तेथी चाणक्यनी स्त्री करतां तेनो आदर सत्कार तेलीना जाई जो जाईए विशेष कर्यो. सासरवासो पण न्यूनाधिक कर्यो. बन्ने सगी बनो हती पण सामान्यपणाने लीधे चाणाक्यनी स्त्रीने जेवुं तेवुं मान दधुं तथाप्रकारनो आदर न दीघो. विवाहनी समाप्ती या पी ते पोताने घेर यावी. जर्ता आगल जाईना अपमाननी वार्ता कही. ते सांजली पोतानी स्त्रीना मनोरथ पूर्ण करवा सारु चाणाक्य लक्ष्मी उपार्जन करवा माटे देशांतर जवा नीकल्यो. मार्गमां जतां जतां ते पोताना मनमां एवो विचार करवा लाग्यो के, लक्ष्मी लेई वुं अने स्त्रीनी दोंस पूरी पारुं तोज जीव्युं प्रमाण बे. एटलामां एक ब्राह्मण मल्यो, तेने पुब्धुं के तमे क्यांथी वो बो? ब्राह्मणे कयुं जे, हुं पाड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग सीपुर नगरमां नंदराजा वर्षों वर्ष दक्षणा आपे बे ते लेवा माटे गयो हतो, पण ते राजा अंतेउर गयो ने तेथी हुँ पाडगे महारे घेर जाउं बुं. था वात सांजली चाणाक्य पाडलीपुरमा श्राव्यो अने नंदराजानुं सिंहासन खाली देखी ते उपर चढी बेगे. ते वखते नंदराजानी दासीए श्रावीने तेने कयु के, ए सिंहासन मुकीने बीजे सिंहासने बेसो. चाणाक्ये कयु के, बतावो. दासीए तेनी पासे बीजुं सिंहासन हतुं ते बताव्युं, एटले चाणाक्ये तेना उपर पोतार्नु कममल मुक्यु. दासीए त्रीजु सिंहासन बताव्यु, चाणाक्ये ते उपर पवित्री मुकी. ए. टले चोथु बताव्यु, ते उपर दंड मुक्यो. एम जे जे सिंहासन देखाड्यां ते ते चाणाक्यने कबज करतो देखी दासीने क्रोध चढ्यो तेथी तेणीए तेने उगमी मुक्यो. उठतां थकां ते बोल्यो जे, हुँ चाणाक्य तो त्यारेज खरो-के ज्यारे तहारा नंदराजानुं राज्य ले! दासीए का जे, जा रे जा चरडा ! तुज सरिखा तो श्रहीश्रा घणाए जरडा आवे जे. त्यारपडी पूर्वे साधुए कयु हतुं जे, चाणाक्य राज्यनो कारनारी थशे. ए वचन मनमा धारी त्यांथी ते (चाणाक्य) कोई राज्य करवाने योग पुरुषने खोली काढवा माटे चाली नीकल्यो. मयुरपाल नामे राजाना गाममां श्रावीने तापसनो वेष धारण करी ते नीदा मागवा लाग्यो. मयुरपाल राजानी राणीने गर्जना प्रजावधी सोल कला संपूर्ण चंद्र पीवानो मो. हलो उत्पन्न थयो हतो, परंतु ते कोई रीते पूर्ण करी नहीं शकवाथी राणी दीवसे दीवसे मुबली थती हती. राजाए उबली थवानुं कारण राणीने पुरवाथी तेणीए मोहला संबंधी जे खरी हकीकत हती ते जणावी अने विशेष कयु के, ए डोहलो पुराय तो हुँ जीवं. ते सांजली मयूरपाल विचारना वमलमां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ६५ पड्यो, के हवे शुं कर? तेवखते चाणाक्य कापमीने वेषे जिक्षाने अर्थे तेना बारणा श्रागत श्रावीने उजो रह्यो हतो. तेने देखी मयूरपाल पगे लाग्यो. चाणाक्ये पुन्युं - आवडुं तमने चिंतानुं कारण शुं बे ? राजाए डोहला संबंधी सघली हकीकत कही. ते सांजलीने चाणाक्य बोल्यो-जो डोहलो पुराय नहीं, तो वे जीवनी हाणी याय. राजाए कयुं - खामी ! ते तो खरं, पण ए जीव उगरे तेवो कांई उपाय वे ? चाणाक्ये कां- उपाय तो बे, पण महारे शुं ? राजाए कयुं - हे स्वामी ! जे तमे कहो ते हुं सांनलुं. चाणाक्ये कयुं - जो गर्जनो बालक तुं मुजने आपे तो हुं ए बालक तथा तेनी माता, ए बन्नेने जीवाडुं मयूरपाले मुश्राथी तो जीवता सारा, एम विचार करी चाणाक्यना कहेवा प्र माणे तेने बालक आपवानुं कबुल कर्यु. चाणाक्ये पंचनी साखे ते बाबतनुं लखत करावी लीधुं. दवे राणीनो डोहलो पूर्ण करवा माटे चाणाक्ये तृणनुं एक कुटीर ( कुंपडुं ) कराव्यं. तेना उपर गुप्तबीड मुकाव्युं, अने नीचे कुट रिमां एक रुपाना थालमां दुध जरावी मुक्युं पूर्णीमानो सोल कला संपूर्ण चंद्रमा उग्यो त्यारे ते कुटीरमां राणीने सुवाडी. राणी निद्रावश थई त्यारपठी कुटीर उपर गुप्त मुकेलुं ठी उघाडी ते वाटे श्रावता चंद्रना प्रतिबिंबने स्थले दूध जरेलो रुपानो थाल हतो ते मुक्यो. पढी मयूरपाले राणीने जगामीने कयुं जे- तमारा जाग्यने योगे चंद्रमा श्राव्यो बे माटे तमे पीयो एम कही थाल पासे पीने बोलावी बेसामी. राणीए पोताना मोहला - नुसार चंद्रमा जोयो तेथी ते पीवा लागी. ते जेम जेम पीए तेम तेम कुटीर उपर माणस बेसाड्यो हतो ते चाणाक्ये करेली सुचना प्रमाणे थो थोकुं बिद्र ढांकतो हतो. दुध पूरु थवानी साथे बिज संपूर्ण ढंकायुं ने चंद्रनुं प्रतिबिंब नाबुद ९ Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग थयु तेथी राणीनी संपूर्ण खात्री थई के हुँ चंउमा पीगई. ए प्रमाणे बुद्धिवसे करी चाणाक्ये मयूरपाल राजानी राणीनो मोहलो पूर्ण कर्यो. अनुक्रमे गर्न वधतां पूरेमासे बालकनो जन्म थयो. माता पिताए ते बालकनुं नाम मोहलाने अनुसार, 'चंअगुप्त' राख्युं. चाणाक्य, राणीनो डोहलो पूर्ण कर्या पठी ते गामथी नीकली पृथवी पर्यटन करतो गामे गाम जोतो फरेने. परदेशमां ते सोनासिफि सीख्यो. पली मयूरपाल राजा पासे तेने गाम पागे श्राव्यो. त्यां घणा बालकोने एका करी चंद्रगुप्तबालकने क्रीडा करतो दीगे. पोते चंडगुप्त राजा थयो, एकने प्रधान को बे, एकने कोटवाल बनाव्यो , कोईने नगर आपेने, कोईने गाम बक्षीस करे, कोईनो न्याय चुकावे बे. ए प्रकारे राज्यनी रमत करता बालकोने देखी चाणाक्ये कोईकने पुग्युं जे- ए कोनो बालक ? लोकोए कडं जे-कोईक तापसे डोहलो पूस्यो माटे तापसनो ए पुत्र बे. एवं सांजली ते घणो खुशी थयो. ए वखते त्यां पागल गायनुं धण (समुदाय-टोबुं) श्रावतुं हतुं. तेजोश् चाणाक्ये चंडगुप्तने कडं जे-महाराज ! ए सर्वने तमे गाम पुर नगरादि आपोडो, तो हुँ पण तमारो ब्राह्मण हुँ, माटे मने पण काईक आपो. चंजगुप्ते कडं जे- तमने ए गायनुं धण आप्यु. चाणाक्ये कह्यु के-महाराज! ए गायोनुं धण कोनुं ? चंगुप्ते जणाव्यु जे-वीर नोग्या वसुंधरा. एबुं सांजलीने चाणाक्ये चंद्रगुप्तने कयु के-तुं महा। साथे चाल, हुँ तने राज्य अपा. एम कहीने ते चंगुप्तने पोतानी साथे खेईने त्यांथी चाली नीकट्यो. चंजगुप्तने बालराजा उरावी धातुरादे धन उपार्जन करीने लश्कर राखी चाणाक्य पामलीपुरे श्राव्यो.नंदराजा तेनी सामे श्राव्यो. लमाई थतां नंदे कुट्यो, लश्करमां नंगाण पड्युं एटले चाणाक्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नान्तर सहित. ลุง चंद्रगुप्तने लेईने नागे. नंदराजाना स्वार तेनी पछवाडे दण्वाने माटे आव्या पण बुद्धिबले करी चाणाक्ये तेमने वार कर्या. चंगुप्तने गुप्त स्थानके राखी चाणाक्य फरी तापसनो वेष लेई जीख मागवा गयो. ( या वखते यावो वेश धारण करी तेनो जवानो मतलब ए हतो के पोते नंदराजाथी हार खाई नागे हतो, ते संबंधे नगर चर्चा शुं चाले बे तेनी खबर पडे तेमज हवे केवा प्रकारनी गोठवणथी नंदराजा उपर चढाई लेई जवाथी फावी शकाय तेनी तजवीज करवा माटे एवा वेषे गयो हतो. ) फरतां फरता एक डोसीना घर आगल गयो. त्यां डोसीनां त्र बोकरां खावा बेठां हतां, तेने मोसीए खावा सारु उन्ही उन्ही घेंस प्रीसी. बालके वचमां हाथ घाल्यो एटले ते दायो तेथी रोवा लाग्यो. ते वखत डोसीए कर्तुं जे - चाणाक्यनी परे मूर्ख कां तुं थाय बे ? वेषधारी चाणाक्ये डोसीने पुब्धुं जे - हे माता ! ते चाणाक्य मूर्ख केम थयो ? डोसीए कह्युं के- पहेला ज पाडली पुरे श्रावी याथड्यो तो तेथे मार खाधो ने पाठो नावो. ए बोकरां पण एम करे बे तेथी दाने बे. वेंस प्रीसी त्यारे एम न जाएयुं जे कोरे कोरेथी लेई खाउं. उतावलो थई वचमां शुं करवा हाथ घाट्यो ? एम करे तो बले ज तो ! जो कोरेथी खात तो शाने दाऊत ! चाणाक्ये पण तेमज कर्यु. आगल पाउलनां न्हानां गामो विगेरे शर कर्या सिवाय एकदम पाटनगर उपर चढी याववार्थी चारे बाजुनो मार पड्यो. घेंस खावी अने राज्य लेवं, ए बेनी एक ज रीत बे. डोसीनां यावां वचन सांजली त्यांथी चाणाक्ये पर्वत राजा पासे जई तेने पोतानी संफमां मेलवी लीधो. पर्वतराजा तथा चंद्रगुप्तने लेईने घणां लश्कर साथे चाणाक्ये पाडलीपुरनी यसपासनो घणो मुलक जीती लीधो. त्यारपवी पामलीपुरे आवी नंदराजा साथे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग युद्ध कर्यु; तेमां जय मेलवी नंदनुं राज्य लीधुं खने नंदने काट्यो. धर्म द्वार थप्यो अर्थात् तेने ( नंदने ) चाल्यो ज वानी परवानगी यापी. चंद्रगुप्त ने पर्वतराजा ए वेनुं साथे नगरमा पेस ने नंदनुं नीकलवं, ए वखते नंदराजानी पुत्री ने जोई चंद्रगुप्त व्यामोह पाम्यो. ते कन्याने नंदे रथथी उतारी मुकी एटले ते ( कन्या ) चंद्रगुप्तना रथमांहे पेठी. न गरम वी बन्ने सिंहासन उपर बेसी राज्य जोगववा लाग्या. त्यापठी राजमहलमां बेठेली एक कन्या तेमना जोवामां यावी. चाणाक्ये तेने चिकित्साथी विषकन्या जाणी. ते कन्या पर्वतराजाने परणावी. तेना हाथना फरसबी पर्वतराजाने फेर चढ्यं. चंद्रगुप्ते चाणाक्य कह्युं जे - पिताजी ! उसड करो, मित्र मरे बे! चाणाक्ये कनुं जे- बोल मां, जावव जाय वे ते जावादे ! त्यारपी पर्वत मर्ण पाम्यो. निकंटक राज्य थयुं. हवे चंद्रगुप्त सुखे समाधे राज्य जोगवे बे पढी चाणाक्ये बुद्धिबले सर्व लोकने विकल करी घरं सरवस्खपणुं कर्यु. त्यार तेणे पढी देवताने समरी (आराधी ) पासा मंगाव्या. ( या देवताई पासामां एवो चमत्कार हतो के ते चाणाक्यनी मरजी मुजब ज दाव आपता हता. ) त्यारपढी चाणाक्ये रत्ननो थाल जरी नगरजनो वच्चे मुकीने जणावयुं के जे जीते ते या रत्ननो नरेलो थाल लेई जाय ने हारे ते एक रत्न मुकी जाय. लोकोए यावी वात सांजली विचायुं जे- ए व्यापार सारो, जो जीतीये तो बधो थाल यावे ने हारीये तो मात्र एक रत्न याप. या प्रकारे राव करी (हा जणी ) रमवा लाग्या. जे हारे ते रत्न मुकता जाय, एम सर्वे नगरनां लोक हारी गया. कोई पण चाणाक्यने जीती शक्युं नहीं. एम करतां करतां राजानो भंडार जर्यो थ र्थात् एक एक रने करी संपूर्ण जंकार रत्न वडे पासाना प्रतापे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ६ए जर्यो, एक पण वखत दाव खाली गयो नहीं, एवा ते पासा हता. तेम आ मनुष्यनव रुपी रत्न,धर्म विना एले गुमाव्यो ते, जेम पासाए करी पाडलीपुर वासीउए रत्न गुमाव्यां ते पाबां मली शके नहीं, तेम आ मनुष्यनव मलवो महा उर्लन ने. कदापि बीजो कोई देवनी सहाज्ये करी चाणाक्ये जीती लीधेलां रत्नो पासा वडे तेने हरावी पाबां वाले, परंतु उपर जणाव्या प्रमाणे धर्म विना मनुष्यजव जे खोयो ते फरी फरीने पामवो पुर्लज. माटे हे नव्य जीवो! धर्मने विषे उद्यम करवो. ए पासानो बीजो दृष्टांत जाणवो. ॥ मनुष्यनवनी उर्लजता उपर त्रीजो धान्यनो दृष्टांत ॥ जेम कोई राजाये जरतक्षेत्रमा चोवीसे जातना धान्यने ए. कां करी तेनो अंबार ( ढगलो) को. पठी पराक्रमहीण, जेना शरीरनां संधाण सथल वथल थयां बे, उठवा जाय तो जमर ( चक्कर ) आवे, शरीर थरथर कंपे, आंखे फांकांफुफां देखे, हाथ पगमां पराक्रम नहीं, आंख चूए, मुखे लाल गले, काने बहेरी, केम थकी बेवडी वली गयेली, वली लाकडीनोज जेने आधार बे, एवी सो वर्षनी डोसीने कयु के- या चोवीस जातिनां धान्यनो जे ढगलो तेमांथी सर्वे जातनां धान्य जूदा जूदा काढ. ते मोसीधी ए करणी थई शकशे के केम ? एम प्रश्न करवाथी समजुए कह्यु के-ए कार्य मोसीथी पार पमी शके नहीं. तेम धर्म विना खोयो जे मनुष्यनव ते फरीने पामवो उकर . ॥ मनुष्यनवनी पुर्लनता उपर चोथो जुवटानो दृष्टांत ॥ जीतारी राजाने घणा बेटा हता. ते सुखरुप राज्य लीला नोगवता हता. ते राजाने बेसवानी राज्यसनानुं मकान घj मोहोटुं हतुं. ते मकानमा एकसो ने आठ थांजलाहता, अनेते एक एक थांजलाने एकसो ने आठ आठ हांसो हती. एक वखत राजाना वमा पुत्रे विचार कयों के हुँ गरढो थवा आव्यो तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग पण महारो पिता मर्ण पाम्यो नहीं अने मने राज्यगादी मली नहीं, माटे कोई पण उपाये तेमने कालधर्म पमा. श्रावो विचार करी तेणे पोताना पिताने मारवानी पेरवी करवा मांमी. श्रा वातनी प्रधानने खबर पमवाथी तेणे ते राजाने जणावीने कह्यु के- राज्यनो मालीक ए थवानो ने बतां तेने हाल माठी बुषि उपजी डे तेथी विनाश थवानो संजव बे. माटे युक्तिपूर्वक बुझिबले करी कोई एवो उपाय योजो के तमे तथा तमारो कुमार बन्ने जीवता रहो अने राज्यसुख जेम नोगवो बो तेम नोगवो. प्रधाननु कहेवू सांजली राजाये वडा पुत्रने तेमाव्यो अने कह्यु के- अरे नाई ! हुं तने एक वात कडं ते सांजल. हवे महारी वृद्धावस्था थई डे अने राज काज पण बरोबर करी शकातुं नथी, तेमज ते करवानी मारी ईला पण नथी, तेथी महारे तने राज्याभिषेक करी राज्यनो खतंत्र मालीक करवो बे; परंतु आपणा कुलमां एवी रीत के-आपणी राज्यसनामां जे एकसो आठ थांजला डे अने ते दरेक थांचलाने एकसो आउ आउ हांसो ले ते प्रत्येक हांस दीठ आपणे जुवटु रमी पासा खेलवा. एक साथे लागट एकसो आठ वार पाधरो दाव पडे तो एक थांजलो जीत्यो गणाय, परंतु वच्चमां कोई दाव अवलो पमे तो ते जीतेला दाव रद गणाय अने फरीथी एकसो श्राप लागट जीतवा पडे, ए प्रमाणे एकसो आठ थांजला जीततां तुरत तने राज्याभिषेक करी हुँ निवर्त था एवी महारी श्छा . आ प्रमाणे जीतीने राज्य मेलवी शकाय नहीं. कदापि कोई देवतानी साहाय्य वझे दाव पाधरा पाडी एकसो ने आठे थांबला जीतीने राज्य मेलवे, परंतु मनुष्यनव धर्म विना एले गुमावे ते फरीने पामवो महा दुर्लन बे. माटे जव्य जीवे धर्मने विषे उद्यम करवो पण लगार मात्र प्रमाद न करवो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ॥ मनुष्यनवनी उर्लनता उपर पांचमो रत्ननो दृष्टांत ॥ वसंतपुर नगरमा घणा धननो स्वामी धन नामे व्यवहारी रहेतो हतो. तेने पांच पुत्र हता. रत्नपरिक्षा ग्रंथनी तेणे घणी सारी माहिती मेलवी हती,तेथी ते रत्ननी परिक्षामां घणो निपुण गणातो हतो. धनशेठ पासे घणुं अव्य हतुं. ते अव्यने साटे तेणे घणां रत्न लीधा हतां तेथी लोकमां तेनुं रत्नसार शेठ नाम पड्यु हतुं. जे जे रत्न तेना जोवामां आवे ते ते, तेलीधा विना रहेतो नहीं, तेथी तेना पांचे पुत्रो तथा तेनी नार्या सुधां तेने घणुं खीजता,पण कोईयूँ कहेवं ते मानतो नहोतो. एम करतां घणा दीवस थया. सघलां रत्नो तेणे एक ओरडीमा जाँ हता, त्यां ते सुतो, बेसतो. कोईनो विश्वास करतो नहोतो. ओरडी सुनी मुकतो नहीं. तेमज तेमां कोईने पेसवा पण देतो नहीं. एकदा प्रस्तावे घj श्रगत्यनुं खरे खलं काम पडवाथी उरडीए तालुं वासीने शेठ बाहार गया पण तेनुं मन तो रत्नना थोरडामांज फरतुं हतुं. शेठ गया के तुरत ज पुत्रे तालुं नागीने श्रोरमी उघाडी व्यापारी ने तेडावी सघलां रत्नो वेची नाख्यां. परदेशी व्यापारीश्रो रत्नो लेई दिसो दिसे चाल्या गया. शेठ घेर आव्या, जुए तो श्रोरडी उपामी दीठी, तेमां एके रत्न न मले. पुत्रने पुढ्यु के-रत्न क्यां गयां? स्त्रीए कडं जे-तमारे पुत्रे वेच्या. ते सांजली शेठे घणो पश्चाताप कर्यो. पण दिसो दिस जे वेराई गयां अर्थात् जूदे जूदे अनेक स्थले बुटा पडी गयेलां रत्नो पाबां एकगं न मले. न मलवानो संचव बतां कदापि ते कोई देवतानी साहाय्ये करी एकां करे; परंतु धर्म विना जे मनुष्यनव खोयो ते फरी न पामीये. माटे धर्मने विषे उद्यम करवो. ॥ मनुष्यनवनी पुर्लनता उपर बहो स्वप्ननो दृष्टांत ॥ अवंती देशमां उजेणी नामे नगरीने विषे मूलदेव नामनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग राजकुमार रहे तो हतो. पुरुषनी बोहोतेर कलानो जाए हतो. लोको तेने घणुं चढ़ाता हता. ते नगरमां देवदत्ता नामे एक गणीका रहेती हती. तेना उपर मोहित थई मूलदेव राजकुमार तेना पासमां पडी रात्रि दिवस तेने घेर रहेतो हतो. एक वखत अचल नामे व्यवहारीयो ते गणीकाने घेर थाव्यो. ते बन्नेने मांहोमांदे विवाद थयो. त्यारपठी मूलदेव जुगारी थयो तेथे तेने मावि घरमाथी काढी मुक्यो. कापडीनो वेष धारण करी ते देशांतर जवा चाली नीकट्यो. फरतां फरतां त्रण दीवस थया त्यारे एक गामनी जागोले तलावनी पाल नजीक सन्यासीनो म हतो त्या रात्रे सुई रह्यो पढी कांईक जागतां अनेकांईक बंधतां तेणे सोल कलाएं संपूर्ण चंद्रमा पीधो, एवं स्वप्न दीतुं तेनी पासे एक घोसाईनो चेलो सुतो हतो ते पण तेज प्रकारे चंद्र पीधो, एवं स्वप्न दीव्रं. सवारे चेलाए गुरुने स्वप्ननी हकीकत जणावी तेनुं फल पुब्धुं गुरुए कयुं के आज तने घीए चोपडेलो घहुंनो रोटो गोल सुधांत मलशे. मूलदेव त्यां श्रगल बेठेलो हतो तेणे पोताना मनमां गुरुए चेलाने स्वप्ननुं जे फल कयुं ते सांजली विचार्य जे स्वप्ननुं ए फल महारे नहीं अर्थात् एवं फल एनेज हज्यो. त्यारपढी घोसाईनो चेलो जीक्षा मागवा माटे गाममां गयो. त्यां कोई स्त्रीए पोताने बोकरां जीवतां नहोतां तेथ कोई टुचको बताव्यो हतो ते प्रमाणे तेणीए घहुंनो रोटलो करी घीए चोपडी तेना उपर गोल मुकी जीझुकने पवा तैयार करी मुकेलो हतो. जावी योगे पेलो घोसाईनो चेलो तेने घेरज गयो. त्यां ते स्त्रीए तेने रोटलो प्यो. चेलो स्वमनुं फल गुरुए जणाव्युं हतुं ते मुजब मलवाथी घणो खुसी यतो गुरु पासे व्यो ने प्रत्यक्ष मलेलुं फल बतावी गुरुना ज्ञाननी प्रसंसा करवा लाग्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ७३ मूलदेवी संन्यासीना मग्मांश्री नीकली एक मालीनी वामीमां गयो. तेनी सेवा उगवी तेथी तेणे ( मालीए) प्रसन्न थई फल फूल आप्यां. ते फल फूल लेईने मूलदेवे निमीत्तियाने घेर जई तेवडे तेनी पूजा करी पोताने आवेला स्वप्ननुं फल पुब्यु. निमीत्तियाये स्वप्नफलमा जणाव्यु जे – “ श्राज थकी सातमे दिवसे तुं राज्य पामीश.” मूलदेव एवं सांजली हर्ष पाम्यो. त्यारपती ते त्रण दीवसनो नूख्यो होवाथी गाममां जीख मागवा गयो. त्यां तेने कोईके अडदना बाकला थाप्या. ते लेई तलावनी पाल उपर आवीने नोजन करवा बेसतो हतो तेवामां नाग्य योगे मासखमणने पारणे गोचरी करवा सारुनीकलेला मुनीमहाराज श्राव्या. तेमना सामो जई विनती करीने बोलावी लावी घणा सन्मान साथे उलट आणी बाकला वहोराव्या. साधुए ते वडे मासखमणनुं पारणुं कर्यु. मूलदेवे पण त्रण दीवसनुं पारणुं कर्यु अने मनमा घणी अनुमोदना करवा लाग्यो जे-ढं आज धन कृतारथ थयो. पड़ी ते वननी देवीए प्रत्यद थई मुलदेवने कयु के- साधुने ते दान आप्युं तेना महिमाये करी हुं तहारा उपर तुष्टमान थई बुं माटे मनईलित वर मांग. मूलदेवे कह्यु के-हे देवता! जो तमे त्रुग बो, तो मने राज्य थापो. देवीए कह्यु जे-में तने राज्य प्राप्यु. सात दीवस थतां ते नगरनो अपुत्रीयो राजा मर्ण पामवाथी प्रधाने पंचदिव्य रच्यां. हाथी १, घोडो २, उन ३, चामर ४, अने कलस ५, ए पांच दिव्य प्रगट करी वाजते गाजते हाथणीने फेरवी. बधुं नगर फरी वली ज्यां मूलदेव सूतो हतो त्यां आवीने मूलदेवना मस्तक उपर हाथणीए कलस ढोल्यो. एटले जय जय शब्द थयो. राजमंदीरे लावी मूलदेवने सिंहासनारुढ करी तेनी अखंडित आण प्रवर्तावी. पड़ी मूलदेव राजाये पेला घोसाश्ना चेलाने बो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग सावरावी कह्यु के-जे वखते तें स्वप्न दी हतुं ते वखते में पण तेवाज प्रकार, खप्न दीतुं हतुं. ते स्वप्नना प्रनावथी हुँ राज्य पाम्यो अने तूं रोटो पाम्यो. जोगीना चेलाये कयु के-महारा अने तमारा एकज जातना स्वप्ननुं फल जुएं केम ? मूलदेव राजाये जणाव्युं जे- गुरुमां फेर, तेम एनां फलमां पण फेर. जेवो गुरु तेवं ज्ञान अने जेवी नक्ति तेवू फल जाणवं. ते वखते चेलाए विचार्यु जे-फरीने सुई रहुं अने जो ते स्वप्न देखुं तो तेनुं फल निमीत्तयाने पुर्बु, के जेथी हुँ पण राज्य पामुं. ते माटे वारंवार घणुंए सुश्रे पण ए स्वप्न फरीने क्यांथी पामे ? कदापि देवतानी साहाज्ये करी ते पण पामे, परंतु मनुष्यनो जे नव खोयो ते फरीने पामवो दोहिलो . ते माटे धर्मने विषे उद्यम करवो अने मनुष्यनव एले गुमावी देवो नहीं. ॥ मनुष्य जवनी उर्लनता उपर सातमो चक्रनो दृष्टांत ॥ इंजपुर नामना नगरने विषे इंजदत्त राजा राज्य करतो हतो. तेने बावीस बेटा हता. एकदा समये राजाना जोवामां मंत्रिसरनी पुत्री श्रावी. ते घणी रूपवंत होवाथी राजा तेना उपर मोहित थयो. प्रधानने तेमावी मागणी करीने राजाए तेनी साथे लग्न कर्यु. कर्मयोगे परण्या पडी तरतज राजाए तेने परिहरी. तेने दीठी पण गमे नही तेथी ते पोताना पिताने घेर रहेती हती. एक वखत ते स्त्री ऋतुस्नान करी गोखमां बेठेली राजाए दीठी. पली सेवकने पुरवाथी तेणे राजाने कयु के-महाराज ! था तो प्रधानपुत्री आपनी नार्या . राजा रात्रे प्रधानने घेर रह्यो. तुदानने योगे करी ते समये कोईक पुन्यवंत जीव आवी गर्जने विषे उत्पन्न थयो. प्रजाते राजा घेर गयो. स्त्रीए पोतानी मा आगल रात्रिनी हकीकत कही. माताये प्रधानने कयु. प्रधाने दीवस तारीख वार चोकस नीशानी सहित सर्व कागल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सदित. उपर नोंधी राख्यु. नव मसवा ते स्त्रीए पुत्र प्रसव्यो. तेनुं सुरेंजदत्त नाम राख्युं. ते कुमार बीजना चंजनी परे वध्यो. प्रधाने तेने कलाचार्य पासे जणवा मुक्या. कलाचार्य खाते करी चूंपशुंजणाववा लाग्यो. राजाना बीजा जे बावीस पुत्रो इता ते पण तेज कलाचार्य पासे जणवा आवता हता. बेदरकारनी पेठे ते बावीसे लणता नही अने चपलाई करता हता. कलाचार्य तेने मारे त्यारे ते सामा थता. कंटालीने कलाचार्ये ते ना श्रावे तो सारा, एम विचारीने तेश्रोनी उपरथी ममता उतारी नाखी. सुरेंजदत्तने सर्व विद्यानो पारगामी को. राधावेधनी कला पण शिखवी. प्रधाने अध्यापकने घणुं धन आपी संतोष्यो. मथुरा नगरीमा जितशत्रु राजानी चोसठ कलानिधान नृतईसेना नामे कन्या हती. एकदा तेनी माताये शंगार सजावी तेने राजा पासे मोकली. राजाये स्वयंवरामंडप योग्य तेने थ. येली जोई पुज्यु के-हे वत्स ! मन मान्यो वर वरश्यो, के अमारी छानो वर वरश्यो. कन्याये कद्यु-जे राधावेध साधशे तेने वरीश. त्यारपडी शुज दीवस जोवरावी राजाये ते कन्याने सपरिवारे इंसपुरे मोकली दीधी. इंदत्त राजाये तेने घणा श्रादर साथे सात नूमी आवास प्रत्ये उतारो आप्यो. कन्याना अर्थात् जितशत्रुराजाना प्रधाने अदत्त राजाने कह्यु के-तमारे घणा बेटा बे एवं अमे सांजवेळ . श्रा कन्यानो एवो निश्चय ने के, जेराधावेध साधे तेने वर. माटे ए विषे परिदा करी आपना योग्य पुत्ररत्नने श्रा कन्या परणाववा सारु अमे श्रहीं श्राव्या बीये. ईअदत्त राजाये नगर शिणगारी स्वयंवरा मंगप रचाव्यो. राधावेध माटे तेना मध्यमां एक यंन उनो कराव्यो. तेना उपर चार सवलां अने चार अवलां, एम श्राप चक्र गोठव्या. वली तेना उपर मध्यत्नागे राधा नामे पुतली माबी आंखे कांणी बीजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग श्राप चक्रसहित एवी रीते मुकावी के चक्रना मध्यनागे थईनेज त्यां बाण जई शके; हेवल तेल नर्यो लोह कढाह मुकाव्यो. राजकन्या पांचवर्णा फूलनी माला वेश्ने ते मंडपनी एक बाजुए सखीयो सहवर्तमान आवीने उनी रही. राजाना बावीसे पुत्रो हाथमां धनुष्य बाण लेश्ने राधानो वेध करवा माटे श्राव्या. राजा तथा राजवर्गादि पुरजनो स्वयंवर मंडपमा योग्य आसनपर श्रावीने बेग. राधावेध साधवानी शरुआत थई. तेमा केटलाक कुमारनां बाण एक चक्रने, कोईकनां बे चक्रने, कोईकनां त्रण चक्रने, कोईकनां चार चक्रने, कोकनां पांच चक्रने अने कोईकनां न चक्रने (बाण) नेदी गया. पण सोले चक्र सरखां श्रावतां कोई पण बाण साधी शक्युं नहीं तेथी सर्वे विलखा थया. पूर्वे साध्या नथी तेमज एवा नाग्यवंत नथी तेथी बावीसे निफल थवाने लीधे राजा इंदत्त पण विमासणमां पमी विचार करवा लाग्यो के, महारा पुत्रनी प्रसंशा सांजली ए कन्या अहीं श्रावी. पण राधावेध सधायो नही, तेथी आवेली कन्या जशे श्रने पुनीयामां हांसी थशे ते तो जूदी! एम विलखो थई राजा विचारशून्य जेवो बेगो हतो तेने जोई प्रधाने कर्वा के, महाराजा ! शी फीकर करो डो? हजी तमारो एक पुत्र , ते राधावेध साधशे एवी मारी खात्री बे. राजाये कह्यु-ते कीयो ? प्रधाने पोताने घेर राजा रह्यो हतो ते वात कहीने राखेली नोंधनो कागल वंचाव्यो. राजानी शंका मटी गई. तरतज सुरेंजदत्तने बोलाव्यो. सुरेंजदत्ते धनुष्य बाण सहित राजानी पासे आवी सविनय नमस्कारादि करी आज्ञा मलतां राधावेध साधवाने बाण ताक्युं नीचे मुकेली तेलथी जरेली कढाश्मां अधो मुख करी तेमां पडता थंन उपर मुकेली राधा नामनी पुतलीना प्रतिबिंबने नीहाली उपर फरता उलटा सुलटा श्राडा अवला सोले चक्र सरखां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. งง यावतां तेना बेद मार्गे बाणने बोडी (पार करी) राधा पुतलीनी डाबी खने वींधी नांखी. प्रतिज्ञाप्रमाणे राधावेध साधनार सुरेंद्रदत्त राजकुमारना कंठमां कन्याए वरमाला आरोपी. जयजयारव शब्द थयो. पाणी ग्रहण कर्यु. पठी राजाये घणो दायजो थाप्यो प्रधान पोताने घेर गयो. सुरेंद्रदत्त राज्यनो धणी थयो. बावीसे कुमारो विद्या जया नही अने चक्रनी गति समजी शक्या नहीं तथा राज्य पाम्या नही तेथी घणो पस्तावो करवा लाग्या कदापि कोई देवतानी साहाज्यथी चक्रनो भ्रमण काल समजी राधावेध साधी कन्या छाने राज्य प्राप्त करी शके, परंतु जे कोई मनुष्यजव पामी एले करी खूप, ते गयो फरी पामवो दुर्लन बे. माटे धर्मने विषे उद्यम करवो एज श्रेयस्कर बे. ॥ मनुष्यजवनी दुर्लनता उपर आठमो कुरमनो दृष्टांत ॥ कोई एक लक्ष योजन प्रमाणनो द्रह बे. ते प्रहमां एक म्होटो araar रहे बे. एकदा प्रस्तावे वायराना जोग थकी पाणी उपरनुं सेवाल उघड्यं. ते वखते काचबे आकाश सामुं जोयुं तो सोई पुनमनो चंद्र दीठो. ते तमासो जोईने काचबे विचार्य जे - महारां सगांने तेडी लावी ए तमासो देखाडुं. पढी ते पोताना परिवारने तेवा गयो. त्यांथी तेडीने पाठो थावे बे तेलामां तो सेवाल पाठो मली गयो. तेथ। पोते, तेमज तेडी लावेलो परिवार कांई पण नीहाली शक्या नहीं. ते ए घणुंए जोर कर्यं पण ते टाणानो जोग पाठो न मल्यो. तेम जे धर्म विना एले खोयो मनुष्यजव ते फरी पामवो दुर्लन जावो. माटे धर्मने विषे उद्यम राखवो पण क्षण मात्र प्रमाद न करवो. ॥ मनुष्यजवनी दुर्लजता उपर नवमो घूंसरानो दृष्टांत ॥ तिलोकमां लवण सुमद्र विगेरे गए बमणा श्रसंख्याता द्वीप समुद्र बे. तेमां बेल्लो स्वयंभूरमण समुद्र अर्थ राज प्रमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग णनो बे. तेणे एटली वधी पृथवी रुंधी ने. ते समुधनी पूर्व दिशाने बेडे धुंसरु नाखे अने पश्चिम दिशाने बेडे समेल नाखे, तो ते समेल ते धुंसरानो जे बेद तेमां केम पेसे ? न पेसी शके. कदापि कोई देवतानी साहाज्यना योगे पेसे, पण धर्म विना मनुष्यनो जव खोयो ते फरी पामवो दोहिलो बे.माटे धर्म करवाने क्षणमात्र पण प्रमाद न करवो एज मनुष्य नव पाम्यानुं सार्थक जे. ॥ मनुष्य नवनी पुर्खजता उपर दशमो परमाणुनो दृष्टांत ॥ __ कोश्क देवता म्होटा पथरना थंजने नागीने तेनुं एवं तो की' चूरण करे के ते अांखमां श्रांजवाथी लगार पण खटके नहीं. ते चूरणने वांसनी लूंगलीमां नरी मेरुपर्वतनी चूलीका उपर चढीने फूंके. ते परमाणुश्रा दशो दिशे वेराई गया ते पाग एकग करी शकाय नहीं. कदापि देवानुयोगे नेगा थई श्रावे, पण मनुष्यनो नव जे खोयो ते फरीने न पामीये. माटे हे नवि जीवो मनुष्यनो नव पामीने धर्मने विषे उद्यम करवामां बेश मात्र प्रमाद न करवो. मनुष्यनव मलवो अति पुर्खन डे अने एज मोहनी नीसरणी . हाथ आवेली नीसरणी बूटी गईतो नवरुपी समुषमा गोथां खावां पमशे. माटे महा पुन्यानुयोगे पामेलो मनुष्यनव धर्म करी सफल करो अने मोद सुख मेलवो. ॥ अथ सजन विषे॥ ॥ सदयमन सदाई दुःखीयां जे सदाई, परहित मतिदाई जास वाणी मीठगई ॥गुणकरि गहराई मेरुज्यूं धीरताई,सुजनजन सदाईतेह आणंददाई॥१३ नावार्थ- सदाये मनमां दया आणवी, पुःखीयां प्राणीनो सखाई तथा परहित करवानुं जेनुं मन रहे, तेने सजान प्राणी कहीये; जेनी वाणीमां मीगस डे, गुणे करीने जे.गिरुथा, मेरुनी परे जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. धीर बे, ते सऊन प्राणी सदाय कहेतां निरंतर आणंदना देणहार एटले आपनारा बे. १३. ॥ जइ डुंरजन लोके दृढव्या दोष देई, मनमलिन न थाए सना तेह तैई ॥ डुपदजनक पुत्री अंजना कष्टयोगे, कनकजिम कशोटी ते तिसी शील जोगे ॥ १४॥ भावार्थ - जगतने विषे दूरजन लोके माथे दोष आपीने डूहव्या बतां पण सननुं मन मेलुं यतुं नथी; जेम डुपदराजानी पुत्री द्रौपदी तथा अंजनाने कष्ट पड्युं पण सोनु जेम कसोटीये कसाय तेम सीलना प्रजावेकरी ते नष्ट थयुं पण तेमनुं मन मलिनन थयुं. ॥ सनता उपर द्रौपदीनो प्रबंध ॥ हस्ती नागपुरे पांगु राजाने युधिष्ठीर ( धर्म ), जीम, अर्जुन, नकुल ने सहदेव नामे पांच पुत्रो हता. ते पांचेनी द्रौपदी नामे एक जार्या हती. वको पुत्र युधिष्ठीर राज्यगादी उपर हतो. पांकुराजानो म्होटो जाई धृतराष्ट्र हतो. तेने डूर्योधन वि गेरे सो पुत्र हता. ते कौरव नामयी उलखाता हता. ते पुष्ट खजावी, कपटी ने कुबुद्धिना कोथला हता. पांकुराजाना पांच पुत्रो पांगवना उपनामथी उलखाता हता. ते सरल स्वभावी अने नक परिणामी हता. एक वखत कपटजावे इर्योधने पांवो जुवटे रमवानुं कयुं. जडक पांडव तेनो मर्म समज्या नही अने हा पाडी जुगार रमवा बेठा. पहेली वारना दावमां दुष्ट सूर्योधने कपटकला केलवी तेमने हरावी सघली राजा रिद्धि जीती लीधी. अनुक्रमे ते आभूषण धन प्रमुख दार्या ने ते पोतानी प्राणवचना प्रौपदीने पण हारी गया. कौरवोए पांडवने राज्य तजी जवाने क. युधिष्ठिर पोताना चारे नाई सहित वनवास जवाने तैयार थई घेरथी नीकल्या त्यारे तेर्जनी साथे जवाने द्रौपदी पण नीकली. ते वखते दूर्योधने पोताना जाई डुषासनने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G0 सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग कह्यु के- पांगव, प्रौपदीने हारी जवाथी ते आपणी थई चूकी ने माटे तेने पकमो. उषासने तेने पकडीने कयु के-तने अमे जीती लीधेली बे तो तुं क्यां जाय ? तने नहीं जवा देईये. एम कही तेने घसडीने राज्यसनामां ज्यां पूर्योधन बेगे हतो तेना सन्मुख लावीने उनी राखी. पूर्योधने तेने पोताना खोलामां आवीने बेसवा कडं. प्रौपदी दीगमूढ उनी थई रही. ते वखते उषासने तेनुं चीर खेंच्युं एटले ते महासतीना सीलना महिमाये करी देवताये बीजुंचीर श्राप्यु. उषासने बीजं खेंची ली, के तत्काल त्रीजु आप्यु, एम अनुक्रमे जेटलां चीर खेंची लीधां तेटलां देवताए पुर्या. अर्थात् ते जेम जेम खेंचमो गयो तेम तेम नवां चीर ते सतीना अंग उपर प्रगट थतां गयां. श्रावो चमत्कारश्राश्चर्य कारक बनाव जोई लोकमां जौपदीनो महीमा घणो वध्यो. लोकोये पूर्योधनने समजावी प्रौपदीने मुकावी. पड़ी ते पोताना पति पांडवोनी साथे वनमा गई.ए प्रौपदीना प्रजावथी पांडवनो जस महिमा विस्तारवंत थयो, पोताना अंग उपरनुं वस्त्र खेंची लेवा सुधीनुं महाकष्ट पड्युं पण प्रौपदीए सजनता न मुकी, तेमज पोतानुं मन मलीन करी पूर्योधन उपर कोप को नही. तेम स. जान माणस जे जे ते पोतानुं मन मलिन करता नथी. ॥सजनता उपर अंजनानो प्रबंध ॥ नरत क्षेत्रमा समुनी पासे आवेला दंती नामना पर्वत जपर महेंजनगरना विद्याधर राजा माहेंजनी स्त्री सुंदरीने पेटे सो पुत्र उपर एक अंजनासुंदरी नामे पुत्री जन्मी हती. ते ज्यारे वराववा योग्य थ त्यारे तेने लायक वर पसंद करवा तेना पिताए घणा विद्याधर राजकुमारोनी तसबीरो मंगावी हती. तेमां हिरणान्य नामना राजानी स्त्री सुमतीने पेटे पेदा थएला विद्युतप्रजनी तथा वैताढ्य पर्वत उपर आवेला श्रादित्यपुर नामना नगरना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. राजा प्रल्हादनी स्त्री केतुमतीने पेटे पेदा थयेला पवनंजय कुमारनी तसबीरोश्रावी हती. ते उपरथी श्रा बन्ने रुपवंत, कुलवंत, विद्यावंत, धनवंत तथा बीजा पण अनेक गुण संपन्न जणाया. माहेंजराजाए श्रा बेमांथी कन्याने योग्य वर कोण ले ? एम प्रधानोने पुनवाथी तेए जणाव्यु के, विद्युतप्रन अढार वर्ष जीवीने मोदे जशे अने पवनंजय दीर्घायुषी ने एम ज्योतिषीओए निर्माण करेढुंबे,माटे पवनंजयने कन्या आपवी जोईये. श्रा वात अंजनासुंदरीना सांजलवामां आवतां तेणीए मनमां विचार कर्यो के, " दूध तणो टबको जलो, शुं कीजे ते बास; अवर वस्तु शा कामनी, जेथी चित्त उदाश." एटले थोडा वर्षनुं जीवित तो खलं, पण ए नबुं, केमके चरमशरीरी एवा गुणीनो संग क्याथी होय ? कदापि घणुं जीव्या ने कुसंगति होय तो ते शा कामनी ? श्रावी अंजनासुंदरीना मननी धारणा समज्या विना, माहेंजराजाए पवनंजय साथे अंजनासुंदरीनुं लग्न करवानुं पोताना मनमा नक्की कयु. प्रल्हादराजाए अंजनासुंदरीना रुप गुणनी प्रशंसा सांजली हती तेथी पोताना पुत्र पवनंजय माटे ते कन्या- मागु कयु. बनेने मलतावशेक श्राववाथी लग्नदीवस मुकरर कर्यो. पवनंजये पोताना मित्र प्रहसितने पुब्युं के, महारं लग्न अंजनासुंदरी साथे थवानुं तेने तमे जोई , ? ते केवी ? प्रहसिते कह्यु के-ते रंनादिक अप्सराश्रोथी पण अधिक रुपाली , एना रुपनुं तादृश वर्णन करवा महान् पंमित पण समर्थ थाय एम नथी. मित्रना मुखथी तेना रूप गुणनीप्रशंसा सांजली पवनंजये जणाव्यु जे, लग्मनो दिवस तो दूर , थने तेणीने निहालवानी मने घणी ईला ते पूर्ण थाय तो घणुं सारं. पठी बन्ने मित्र अंजनासुंदरीने घेर ज्यां ते सातमे मजले रहेती हती त्यां राते गुप्तपणे जई तेना छार श्रागल अंधारामां उजारही एक बिज वाटे अं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग दर जोवा लाग्या. ते वखते अंजनासुंदरीनी वसंततिलका नामे दासी कहती हती के, हे स्वामीनी ! तने पवनंजय पतिनी प्राप्ति थई, माटे तुं धन्य बे. एटलामां मीश्रकेसी नामनी सखी बोली के, चरमशरीरी जे विद्युतप्रजराजा, तेने मुकीने तुं कया वरनी स्तुति करे बे? तुं तो जोली बे ! तने कांई पण खबर नथी. ! जो के विद्युतप्रन राजा थोडा श्रायुषवालो बे, तथापि ते आपणी स्वामीनीने योग्य बे. तेने मुकीने बीजानी तारीफ करे बे माटे तुं मूर्ख बे. कधुं बे के “ अमृत थोडं पीव्रं ते सुखकारक बे ने र घणुं पीवाथी दुःख थाय छे. " एवी रीतनुं बन्ने सखीश्रोतुं बोलवु सांजलीने पवनंजये विचार्यु के, मीश्रकेसीनुं बोलवं अंजना सांजली रही तेथी एम मालम पडेबे के, ते वात तेने प्रिय हशे ! नहीं तो ते तेनो तिरस्कारयुक्त निषेध कर्या वगर रहेत नहीं. पढी ते क्रोधावेशे खड्ग खुली करी कहेवा लाग्यो के, जेना मनमां विद्युतप्रन वर वरवानुं सारं लाग्यं बे, तेनां माथां धमथी हूं अलगां करीश. एम बोली ते तरफ जवा लाग्यो, त्यारे प्रहसिते तेनो हाथ कालीने रोक्यो अने प्रतिबोध कर्यो के, विचार कर्या वगर सहसा कार्य करवुं योग्य नथी. वली स्त्री अपराधी बतां गायनी पेठे तेने मारवी नहीं, ए शुं तुं जाणतो नयी ? था तो बिचारी निरपराधी बे. एनो मनोभाव संपूर्ण समज्या शिवाय कांईपण करवुं ते शुं योग्य कड़ेवाशे ? एवी रीते पवनंजयने समजावी शान्त पानी बन्ने जण त्यांथी पाढा पोताने मुकामे श्राव्या. पवनंजये पाणी ग्रहण कर्या विना त्यांथी पाढा जवानो पोतानो विचार प्रहसितने जणाव्यो, पण तेणे घणी युक्तिथी समजावी नीर्धारेला शुनदी वसे अंजनासुंदरी साथे तेनुंलग्न कराव्युं. महेंद्रराजाए तेर्जनो घणो सत्कार कर्यो. सर्व कार्य थई रह्या पढी वर वहुने लेईने परिवार सहित प्रल्हाद राजा पोताना नगरमां श्राव्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ नाषान्तर सहित. अंजनाने रहेवा सारु तेणे सात मजलानो रमणिय महेल श्राप्यो. पवनंजये घेर श्राव्या पड़ी अंजनाना सामुं पण जोयुं नहीं. तेने परिहरीने बीलकुल बोलावे पण नहीं, वात पण नहीं आने कोई पण प्रकारनो संबंध पण नहीं. अंजना महा शोकसागरमां पनी जई विचारवा लागी के, जवांतरनां जे कर्म ते मुजने श्रा समये श्रावीने नड्यां जणाय जे. एम मन साथे घणी विमासण करती पोतानुं सीलव्रत साचवती दीवस कहाडवा लागी... एक वखत रावणे पोताना शत्रु पाताललंकानाखामी वरुणराजाने जीतवा सारु प्रल्हादराजाने कहेवगाव्यु के सैन्य देईने श्रावज्यो. रावणनी श्राज्ञापालक प्रल्हादराजाए जवानी तैयारी करवा मांमी, त्यारे पवनंजये कह्यु के, पिताजी! ए कार्य करवानी मने आज्ञा आपो. हुं रावणनी साह्य करवा माटे जश्ने वरुणने जीती टुंक समयमा पाडो श्रावीश. प्रल्हादराजाए पवनंजयने योग्य जाणी रावणनी मददे जवानी आज्ञा आपी. सर्व सैन्य सजा करी, जवानी वखते पवनंजय पोतानी माताने पगे लागवा माटे घेर श्राव्यो. पोतानो पति परदेश लडाई उपर जवानो डे एवं सांजलीने तत्काल अंजनासुंदरी, जे माल उपर हती त्यांथी नीचे उत्तरी श्रावीने पुतलीनी माफक बारणाना थांजलाने अंग टेकीने उनी रही, एवा इरादाथी के आज तो ए मने जरुर बोलावशे. पवनंजय तो पोतानी माताने नमस्कारादि करी, अंजनाने बोलाववानुं तो बाजु पर रह्यं परंतु तेना सामे तिरस्कार युक्त दृष्टीए निहाली चालवा लाग्यो. ते वखते अंजना तेनी पासे श्रावी, तेना पगमां मस्तक मुकी, बे हाथ जोमी विनती करवा लागी के, हे प्राणनाथ ! श्राप सर्व लोकनी साथे बोल्या तथा मख्या, तथापि महारा साथे लगार पण न बोलवानुं कारण शुंने ? हुँ नीरपराधी बु. महारी एक अर्जध्यानमांखेशो? ते ए के, मने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग कोई पण वखत जुली जशो नहीं, तेमज कार्य सिक करी जलदी पाला पधारजो. तमारु कल्याण था, एवो हुँ आर्शिवाद देउ बु. श्रावां महा दिनता नरेलां वचनो बोलनारी विचारी अंजनाने कांई पण प्रत्युत्तर न देतां तेनो अनादर करीने पवनंजय चालतो थयो. अंजना पोताना कर्मनो दोष जाणी पतिवियोग पुःखथी शोकातुर थई पोताना महेलमां श्रावी. पवनंजये त्यांथी निकलीने संध्या समये मानसरोवर उपर जई मुकाम को. त्यां तेणे एक चकवीने धणीना वियोगथी पीडाती दीठी. जे पोताना आणेला कमलतंतु खाती नथी, थमीमां जेने गरमी लागी रही , चंजमा जेने जमका जेवो जोवामां आवे , अने करुणामय उंचा खरे रुदन करी रही . वली चकवो श्रा कांठे आवे जे त्यारे चकवी पेले कांठे जाय . एवी ते चकवीनी पुर्दशा जोईने पवनंजय मनमा विचार करवा लाग्यो के, श्रा चकवी आखो दाहामो तेना धणी (चकवा )नी साथे कीमा करे डे, फक्त एक रातनो वियोग थयो ते तेनाथी खमातो नथी; तो महारी स्त्रीने में परणवाना दीवसथी तजी दई बीलकुल बोलावी नथी, तेमज आज नीकलती वखते ते महारी पासे श्रावी तो पण में तेनो अनादर कर्यो तेथी ते बिचारीनी श। वले हशे ? वली महारा कुःखरूपी अँगर तले दबाई रहेली अंजना उपर वियोगरूपी या बीजो पर्वत में मुक्यो, एटबुं बधुं दुःख ते शी रीते खमी शकशे ? ए प्रमाणे पोताना मनमा पस्तावो करतां तेणे पोताना मित्र प्रहसितने ते वात जणावी. प्रहसिते कडं के, हे मित्र ! पंखीथी पण तुं नपावट , तेने परणे बावीस वर्ष थयां तो पण बोल्या व्यवहार नथी परंतु आजना बनाव जपरथी हुं धारं दुं के ए निरपराधी अबला जरुर मृत्यु पामशे. हे मित्र ! हजी पण तेनुं श्राश्वासन करवाने तुं योग्य . त्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. जई तेनी साथे मधुर नाषण करीने पड़ी पोताना काम · सारु जq जोईये. पोताना मनमां हतुं तेवुज मित्रे कदेवाथी तेने साथे लेईने पवनंजय कोई ना जाणे तेम रात्रे अंजनाने महेले श्राव्यो. त्यां तेने तरफमती जोईने तेनुं आश्वासन करी रुतुदान देई पाडो जवा लाग्यो त्यारे अंजनाए तेनी पासेथी तेना हाथनी नामांकित मुछिका मागी लीधी अने पोतानी माताने मलीने जवा जणाव्यु. पवनंजय, थोमा दीवसमां श्रावीश एवो दीलासो देश त्यांथी पाडो लश्करनो पमाव जे मानसरोवर जपर हतो त्या प्रजात थतां पहेला श्रावी पहोंच्यो. अंजनाने ते दीवसथी गर्न रह्यो, ते दीवसे दिवसे वधतो देखी तेनां सासु ससरा दिए विचार्यु जे एना जरिनो एने बावीस वर्ष थयां मेलो थयो नथी उतां ए शुं ? अरे ए असती ! पड़ी अंजनाने पुव्युं. त्यारे तेणीए पोतानो पति लडाई माटे चाली नीकल्यो तेज रात्रिए पोताने मेहेले आवी गयो हतो अने तेनी निशानी तरीके पोताना हाथनी नामांकित मुखिका श्रापी हती, ते सर्वने बतावी. या वात कोईए मानी नहीं अने तेणीने निबंडीने घरमांथी काढी मुकी. अंजना पोताना पिताने घेर गई त्यांथी पण कलंकित लेखवीने हांकी काढी. पठी ते वनमां जईने रही. त्यां पर्वतनी गुफामां पुत्र प्रसव्यो. ए मार्गे थई अंजनानो मामो विमानमां बेसीने जतो हतो, तेणे गुफामां रहेलो बालक रुदन करतो हतोते सांजल्यु. विमान थोजावीने रुदनानुसार तेनी तपास करवा ते नीचे उतर्यो, त्यां तेणे पोतानी नाणेजीने पुत्र सहित जोई. तेनी सर्व हकीकतथी वाकेफ थई ते बन्नेने पोताना विमानमां बेसामी त्यांथी चाली नीकल्यो. मार्गमा जतां अंजनासुंदरीना खोलामां बालक हतो ते विमानतुं फुमणुं लटकतुं देखी लेवाने उबल्यो, तेथी नीचे शीला उपर ढली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग पड्यो. तेथी जाणे वन पड्यो होय तेम शीला चकचूर थई. अंजनानो मामो बालकने पमतो देखी गानरो बनी वीमानयी नीचे उतरी तेने लेवा गयो तो जेमनोतेम वाग्या वगरनो पमेलो दीगे अने पथ्थरना ककडे ककमा थई गयेला तेना जोवामां श्राव्या. त्यांथी बालकने उचकी लेईने विमानमां श्रावी अंजनासुंदरीने श्रापी तेने रमती नी राखी. पळी ते बालक सहित अंजनाने लेईने पोताना इनुपुर नामना नगरमा श्राव्यो. जन्म्या पठी तरतज ए बालक हनुपुरमां आव्यो तेथी तेनी माताए एनुं नाम हनुमान पाड्यु. तथा विमानमांथी पमतां शैलने तोड्यो तेथी तेनुं बीजुं नाम श्रीशैल राख्यु. एनी हकीकत घणी लांबी ले ते जाणवाना जीज्ञासुए रामचरित्र याने जैनरामायण श्रादि ग्रंथोथी सवीस्तर जाणी लेवी. अहीं विषयने अनुसरती संक्षेप मात्र दाखल करवामां श्रावी . अंजनासुंदरी हनुमान- पालण पोषण पोताना मामाने त्यां हनुपुरमा रही करे ने अने पोताना पतिना वियोगे करी पुःखी बतां पण मामा मामीना आदर सत्कार वडे सुखरुप दीवसो गुजारती सासूए मूकेलो दोष क्यारे निवारण थशे, एवो विचार करती पोताना पतिनी राह जोई रही . पवनंजय जे रावणनी मददे गयो हतो ते वरुण साथे सलाह करी पालो पोताना आदित्यपुर नगरमां आव्यो. त्यां तेणे अंजनाने दीठी नहीं. लोकोने पूबतां तेना जाणवामां आव्युं के, गर्भधारण करेलो होवाने लीधे तेनी माताए कलंक दे तेणीने काढी मुकी बे. एवं सांजलतांज ते तेनी शोध करवा नीकली पड्यो. वन, वामी, आराम, पर्वत तथा नगरादि घणां जोई वल्यो पण तेनो पत्तो लाग्यो नहीं तेथी तेना वियोगने लीधे पवनंजये चितामां प्रवेश करवानो निर्धार कयों. अंजनानी शोध सारु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. मोकलेला विद्याधरोथी पवनंजये चितामां प्रवेश करवानो निश्चय कर्यानुं अंजनाए जाएयुं. तेथी वलोपात करती पोताना मामा प्रतिसूर्यने साथ लेई वीमानमां बेसी एकदम ज्यां पवनंजय चितामां प्रवेश करवाने तत्पर थई रहेलो बे त्यां श्रावी. पवनंजय, प्रल्हाद, प्रतिसूर्य विगेरे मध्या छाने दनुपुरमां गया. सर्वनो संदेह टल गयो. शाता थई. अंजना सती जगत्मां प्रसिद्धिने पामी. सासू ससराए पण पोते करेला अघटित कार्यनी क्षमा मागी सतीने संतोषी. दुर्जन प्राणी एवा गुणीने पण दोष चढावे बे पण जेना उत्तम गुण होय ते नष्ट यतां नथी. जेम कसोटीए सोनु कसीए तेम जे गुणी होय बे ते निर्मल सीलना प्रजावे कर खोटा कलंक तथा दुःखथी कसोटीए चढी मुक्त थाय बे. ॥ अथ गुण विषे ॥ || गुणगदि गुण जेमां ते बहू मान पावे, नर सुरनिगुणे ज्यूं फुल शीशे चढावे ॥ गुणकरि बहु माने लोक ज्यूं चंद्रमाने, प्रति कृश जिम माने पूर्णने त्युं न माने ॥ १५ ॥ जावार्थ-जेम सुगंधने सीधे फूलने मनुष्यो पोताना मस्तके चढावे बे, तेम जे मनुष्यमां बीजाना गुण ग्रहण करवानो गुण बे, अर्थात जे गुणग्राहक बे, ते बहुमान पामे बे; वली जेम बीजने दीवसे चंद्रमा कृश बतां तेमां कलंक न होवाने लीधे सर्व लोक तेने बहु माने बे ने पूनमने दीवसे ते संपूर्ण होa Hai कलंक सहित होवाने लीधे तेने कोई मानतुं नथी ( तेम गुण ग्राहक जो दुर्बल होय तो पण तेने सौ माने बे, मातो होवा बतां जो निर्गुण होय तो तेने कोई मानतुं नथी माटे गुणग्राही वुं ). १५ Jain Educationa International 69 For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GG सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥ मलयगिरि कडे जे जंबुलिंबादि सोई, मलयजतरु संगे चंदना तेद दोई॥ ईम लदिय वमाश्युं कीजिये संग रंगे, गजशिरचडि बेठी ज्यूं अजा सिंहसंगे॥१६॥ नावार्थ- मलयाचल पर्वतने कांठे ( तेनी पासे-तेना उपर) जे जांबु अने लींबडा विगेरेनां वृदो बे, तेमां मलयतरु एटले चंदनना वृदना संगने लीधे सुगंधपणुं थाय जे; वली जेम बकरी सिंहनी संगतथी हाथीना मस्तक उपर चढी बेठी तेम उत्तमनी संगते उत्तमता प्राप्त थाय, माटे रंगे एटखे आदर पूर्वक उत्तमनी सोबत करवी. (कडं बे के, " सोबते असर" अर्थात् जेवो संग तेवो रंग बेसे बे. माटे नीच, हलकट, निर्गुणीनी संगत करवी नही अने उत्तम गुणग्राहीनी संगत करवी, के जेथीकरीने बहुमान पामीये.) ॥अथ न्याय विषे॥ जग सुजस सुवासे न्यायलबि उपासे, व्यसन उरित नासे न्यायथी लोक वासे ॥ ईम हृदय विमासी न्याय अंगी करीजे, अनयः अपदरिजे विश्वने वश्य करीजे ॥१७॥ नावार्थ-जगतने विषे न्यायथी लोकवासे अर्थात् लोकोमा सुजस कदेतां सारो जस पामे तथा लदिम उपार्जन करे अने व्यसने करी जला-रुडां जे मनुष्य ते वेगला नासे, लो कमां जसवाद न पामे; एम हृदयमां विचारीने न्यायनो मार्ग अंगीकार करवो भने अन्याय (अनर्थ) नो मार्ग बमीने विश्वने वश कर. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. पशु पण तस सेवे न्याययी जे न चूके, नयपथ चले जे नाइ ते तास मूके ॥ कपिकुल मिलि से - व्यो रामने सीस नामी, अनयकरि तज्यो ज्यूं नाइस लंकस्वामी ॥ १८ ॥ जावार्थ - जे मनुष्य न्यायथी चूकता नथी तेने पशु सरखा तीच पण सेवे र्थात् पशु पण न्यायवंतनो पक्ष करे बे; अने जे अन्यायमार्गे चाले बे तेने पोतानो जाई पण तजी देबे; जेम कपिकुल कक्षेतां वानरवंशे रामचंद्रजी प्रत्ये मस्तक नमावीने तेमनी सेवा करी ने लंकाना राजा रावणनो अन्याये करी तेना जाइ विभीषणे त्याग कर्यो. १८ 림 ॥ अन्याये करी रावणनो त्याग करनार विभीषणनो प्रबंध || योध्या नगरमा दशरथ राजा राज्य करतो हतो. तेने कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी विगेरे राणीश्रो हती. राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुन नामे चार पुत्रो हता. कैकेयीए पोताना स्वयंवरोत्सवमां दशरथराजाने हरिवाहनादिक राजाश्रोनी साथे युद्ध युं हतुं त्यारे तेनुं सारथी पणुं करी शेलाणीनी पेठे पोतानुं कलाचातुर्य शत्रुश्रोना रथनी सामे एवी रीते बताव्युं हतुं के, जाणे तेर्जना रथोनी सामे केक रथ जो कय होयनी! श्रावी तेनी चालाकी श्रने सामर्थ्य जोईने दशरथ राजाए शत्रुखोने जीती तेनी साथे पाणीग्रहण कर्यं ते वखते पोतानी पासे वर मागी लेवानुं कयुं. कैकेयीए " ज्यारे मने जरुर पडशे त्यारे मागी लेईश, "एम कही ए वर अनामत राख्यो हतो. दशरथराजाए रामने ज्यारे राज्यानिषेक करी गादीनसीन करवानुं मुकरर कर्यु त्यारे कैकेयी ए पोताना पुत्र जरतने राज्यगादी अपाववा माटे तेमनी पासे अनामत राखेलो वर माग्यो दशरथराजाए पोताने दीक्षा लेवाना निषेध १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ყვ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग सिवाय जे मरजीमां श्रावे ते मागवानुं कड़ेतां कैकेयीए पो ताना पुत्र जरतने राज्य श्राप ने राम लक्ष्मण वनमां जाय एवी पोतानी ईछा दर्शावी. दशरथराजा श्र वचन सांजली घणो खेदातुर थयो, पण पोते वर श्रापेलो हतो तेथी जरतने राज्य श्राप्युं. राम, लक्ष्मण अने पोतानी प्रिया सीता सहित वनवास गया. वनमां वसतां एक वखत रावणनी बहेन सुर्पनखानो शंबुक नामे पुत्र सूर्यहास खड्गनी विद्या साधतो हतो, तेने ब मास थवाथी खड्ग प्रगट थयुं दतु एवामां फरतो फरतो लदमण ते स्थले श्राव्यो. तेथे ते पूर्व खड्ग लेई तेनी धार तपासवा माटे वंशजाल कापी, तेथी तेमां बंधे मस्तके रहेला विव्यासाधक शंबुकनुं मस्तक बेदाई गयुं. ते देखी लक्ष्मण अति शोक करतो निरपराधी अने हथी आररहितने हवाथी पोताना ए साइस कर्मने धिक्कारतो खङ्ग लेई त्यांथी चाली नीकल्यो. एटलामां शंबुकनी माता सुर्पनखा पोताना पुत्रने माटे खगनी पूजानी तथा पारणं कराववानी सामग्री लेने त्यां श्रागल श्रावी. तेणीए पुत्रनुं मस्तक बेदाएलुं दीतुं, तेथी शत्रुनी शोध करवा लागी. तेवामां नजीकज लक्ष्मणने जोयो. तेना उपर मोहित थवाथी शत्रुवटने कोराणे मुकी काम जोगनी ईछाए तेनी प्रार्थना करवा लागी. लक्ष्मणे तेली ने राम पासे मोकली. रामे शुद्ध सीलवंत ने न्यायी होवाथी तेना प्रति तिरस्कार कर्यो क्रोधातुर थई सूर्पनखाए त्यांथी चाली नीकली पोताना पति खरदुषण पासे श्रावी पुत्रमरणनी वात जणावी तेनुं वैर लेवाने क. खरदुषण, रामचंद्र साथे युद्ध करवा आव्यो. ते वखते लक्ष्मण सिंहनाद करवानो संकेत करी रामचंद्रने सीता पासे रहेवा देई युद्ध करखा गयो. खरदुषण ने लक्ष्मण बच्चे युनो श्रारंभ थयो. सुर्पनखा पतिने युद्ध करवा मोकलीने बेसी रही नही, पण वली ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एए नाषान्तर सहित. पोताना नाई रावणने मली अने तेने सीतानी अति सौंदर्यतानी वात कहीने एटलेसुधी तेनुं मन भ्रमित कर्यु के तत्काल ते ( रावण ) सीतार्नु हरण करवा आव्यो. रामना तेजने लीधे सीतार्नु हरण करईं तो वेगवँ रह्यं पण तेमना आश्रम नजीक पण ते आवी शक्यो नहीं. रावणे अवलोकनी विद्यानुं स्मरण करवाथी रामने ते स्थलेथी खसेडवानी तेणे युक्ति बतावी. रावणे जे जगाए लक्ष्मण युद्ध करवा गयो हतो त्यां जई बराबर ल. दमणना जेवो सिंहनाद कर्यो. संकेत प्रमाणे थयेलो सिंहनाद सांजलवाथी आग्रह करी सीताए रामचंडने लदमणनी साह्य सारु मोकल्या. सीता एकली पमवाथी रावणे तेनुं हरण कयु. लक्ष्मण पासे जतां सिंहनाद कोईए कपटथी कर्यो जे एम रामना जाणवामां श्रावतां ते बन्नेना पेटमा फाल पमी. पर्णकुटीए पाबा श्रावी रामे जोयुं तो सीताने दीठी नहीं. लक्ष्मण शत्रुने जीती तेमने मल्यो भने सीतानी शोध करवा लाग्या. सीतार्नु हरण करी बेई जतां रस्तामां जटायुपक्षीए रावणने अटकाव्यो. तेनी पांखो कापी नाखी विमानने वेगवडे चलावी रावणे सीताने पोतानी लंकानगरीमा लावी देवरमण उद्यानमा राखी. रावणे सीतानी घणी प्रार्थना करी, पोते तेनो दास थईरहेवा सुधांनुंजणाव्युं परंतु सीताए न्यायमार्ग न मूक्यो. पोतानुं सीयल साचवी मास पर्यंत कुःख सहन करतां राम, रटण करती सीता रावणना ताबामां रही. राम अने लक्ष्मण सीतानी शोध करता अनुक्रमे किस्किंधा नगरीए श्राव्या. त्यां सुग्रीवादिक सर्व वानर न्यायमार्गश्री तेमने प्रणाम करी सेवामां तत्पर रह्या. हनुमान लंकामां जई सीतानी शोध लाव्यो. राम अने लदमण वानरादिकना अथाग सैन्य सहित रावण साथे युरू करी सीताने डो. डावी लाववा लंकाए गया. रावण ते सांजली कोपायमान थयो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ते वखते तेना लघुजाई विजीषणे अन्याय मार्ग तजी सीताने तेना पतिने स्वाधीन करवानुं समजावतां रावणने कह्युं के, ज्यारे सीतानुं हरण करी लाव्या हता त्यारे पण में तमने कह्युं दतुं के, या काम कर्याथी आपणा कुलने कलंक लाग्यं. वली ते महा बलवान ने न्याई बे माटे ज्यांसुधी ते आपणा उपर चढाई लेईने श्रावे नहीं त्यांसुधीमां सीताने लेई जईने पाठी आपवाथी आपणुं सारुं थशे. जो तेम करवामां नहीं थावे तो सीताना योगे आपणा कुलनो दय थशे एवां जे ज्ञानीनां वचनो बे ते तारा या कृत्यथी खरां थशे. थवानुं बे ते श्रवश्य थाय बे तथापि हुं तने प्रार्थना करुं हुं के कुलनो घात करनारी जे या सीता, तेने तुं पाठी मुकी घ्याव. तमे ते वखते पोताना पराक्रमनी परिसीमा जणावी कयुं हतुं के, अलबत में सीतानुं हरण कयुं बे, ते महारी स्त्री थशे. बचारा गरीब राम लक्ष्मण जो यहीं श्रावशे तो तेने तेज वखते मारी नाखीश घ्यावां गर्व रेलवे सांजली निरुपाये हुं मौन धारण करी रह्यो हतो. परंतु हाल असंख्य सैन्य लेई राम लक्ष्मण युद्ध करवा श्राव्या बे. ते महा बलवान ने न्यार्यमार्गे वर्तनारा बे. तमे अन्याय करेलो बे. महीना सुधी कोई पण न करे तेवी रीते तमे सीतानी प्रार्थना करी पण तेणीए तमारा सन्मुख पण जोयुं नथी, एटलुंज नहीं पण घणी वखत तमारो तिरस्कार पण थयेलो बे, माटे सीता कोई पण प्रकारे तमारे वश थवानी नयी अने ज्ञानीनां वचन आपणा कुलनो दय थतां सिद्ध यशे एम निश्चय संजवे a. दजु पण कांई बगड्युं नथी. सीताने तेउने स्वाधिन करो एटले तेमने समजावी पाठा काढीशुं. ए न्यायवंत बे तेथी जरुर मानशे. ते वखते रावणनो पुत्र इंद्रजित, जे ते वात सांजलतो हतो तेथे विजीषणने कत्युं के, काका! तुं जन्मनो बीकण बे. . 말 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तरसहित. ए३ इंजराजा विगेरे अनेक राजा राणाने जीतवावालो तथा सर्व संपतिनो नायक जे महारो पिता, तेने तुं मारवा मागे ! सैन्य लाई सन्मुख आवेला शत्रुप्रत्ये नमावी महारा पितानी मेलवेली कीर्तिने तुं कलंकित करवा छे , माटे तुं अमारी मसलतमां कांई पण कामनो नथी. विनीषणे तेने कडं के, हुं शत्रुनो ल. गारे पक्षपाती नथी. कुलनाश करनारो पुत्ररूपे तुं शत्रु उत्पन्न थयो बु. ए विगेरे घणी रीते तेने कयु. पठी वली विनीषणे रावणने कह्यु के, पुत्रनी शिखामण तथा तहारा पोताना चरित्रोथी तुं थोडाज दिवसमां नाश पामीश, तेथी मात्र मने पुःख थवानुं देखाय . एवं सांजलीने अतिक्रोधमां श्रावी हाथमां खड़ग लेई रावण मारवा उव्यो. तेने कुंजकर्ण तथा इंसजिते वचमां पमी मुकाव्यो. त्यारपडी रावण बोल्यो के, तुं महारी नगरीथी बाहार नीकल, तुं श्रमिनी पेठे सर्व खानारो वं. नाई बतां पण अन्याई रावणनो त्याग करी विनीषण श्रगीबार श्रदोहिणी राक्षसने लेई न्यायवंत रामने मल्यो, अनुक्रमे राम अने रावण वच्चे युद्ध थयु. न्याये करी रामनो जय थयो अने अन्याय थकी रावण मरण पाम्यो. ए संबंधी विशेष हकी. कत जैनरामायणथी जिज्ञासुए जाणी लेवी. ॥श्रथ न्यायधर्मविषे॥ ॥ हय गय न सदाई यु: कीर्ती सदाई, रिपुविजय वधाई न्याय ते धर्मदाई॥ धरमनय धरे जेते सुखे वैरि जीपे, धरमनय विहूणा तेहने वैरि कोपे ॥१॥ नावार्थ- युझनेविषे हमेशा कीर्ती मेलववामां हाथी अने घोडा साह्यकारी थता नथी पण शत्रुने जीती जय मेलववानी वधामणी तो न्यायधर्मथी मले बे; न्यायधर्मना रागी होय डे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग ते सुखे करी वैरीने जीते जे अने धर्मनयथी जे विद्रणा एटले वेगला होय जे तेने वैरी पराजव करे . १ए. ॥ धरमनय पसाये पांडवा पंच तेई, करि युझे जय पाम्या राज्यलीला लदेई॥धरमनय विहूणा कौरवा गर्व माता, रणसमय विगूता पांडवा तेद जीत्या २० जावार्थ- धर्मनय (न्यायधर्म ) नाप्रतापे करी पांच पांमवोए युद्धने विषे जय मेलवीने राज्यसुख जोगव्यु; श्रने धर्मनय वगरना कौरवो, जो के महागर्विष्ट हता तो पण रणसमय कहेतां युद्धनेविषे वगोवाया अर्थात् हास्या (नाश पाम्या ) अने पांडवो जीत्या. २० ॥अथ प्रतिज्ञा विषे ॥ ॥ शुन्न अशुन जिकांइ आदमु जे निवाहे, रवि पण तस जोवा व्योम जाणी वगादे ॥ करिगदन निवाहे तास निस्संत आपे, मलिन तनु पखाले सिंधुमां सूर आपे॥१॥ जावार्थ- शुज अथवा अशुन जे काई श्रादर्यु एटले प्रतिज्ञा सीधी तेनो निर्वाह (निनाव ) करे (प्राण जतां पण ते प्रतिझा नंग न थाय), सूर्य पण तेने व्योम जाणीने जोवाने ईले बे; जंडी अर्थात् विषम, पालवाने घणी कठण थई पडे तेवी प्र. तिझानो निर्वाह करे तेने निश्चेकरी समुसमा मलिन शरीरने धोई निर्मल करवानी माफक देवता साह्यकारी थाय. (जे जेम अंगीकार कर्यु होय तेम तेनो निर्वाह करे डे अने जे प्रतिज्ञावंत ने तेने समुसमांदे तथा अटवीमाहे पड्या थकां पण दे. वता सादाज्य करे )२१. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सदित. ए५ ॥ पुरुषरयण मोटा जे गणीजे धराये, जिण जिम पडिवज्यूं ते न गंडे पराये ॥ गिरिश विष धर्यो जे तेन अद्यापि नाख्यो, उरगति नर खेई विक्रमादित्य राख्यो॥२२॥ जवार्थ-जेणे जेवी रीते पडिवज्यूं कहेतां अंगीकार कर्यु ते प्राये गंडता नथी अर्थात् ते प्रमाणे पाले तेने पृथ्वीनेविषे मोटा रत्नसमान पुरुष गणवा; जेमके, महादेवे समुजनुं मथन करवाथी विष मेलव्युं हतुं तेने कंचनेविषे राख्युं पण हजु सुधी तेनो त्याग कर्यो नथी, वली विक्रमादित्ये (वचनमात्रथी पर्वत नामे कोश्क) पूर्गत पुरुषने विशेष हीत करीने पोतानी समीपे राख्यो हतो. (माटे जे प्रमाणे अंगीकृत कर्यु होय ते प्रमाणे पालनार पुरुष पृथ्वीने विषे रत्नसमान समजवा). २२ ॥श्रथ उपशमविषे॥ उपशम हितकारी सर्वदा लोकमांदी, उपशम धर प्राणी ए समो सौख्य नांदी॥ तप जप सुर सेवा सर्व जे आदरे , नपशमविण जे ते वारि मंथा करे ॥२३॥ जावार्थ- लोकमांही एटले जगत्ने विषे हमेशां उपशम एटले क्षमा हितनी करनारी , ते माटे हे प्राणी! क्षमा धर अर्थात् समता धारण कर के जेना सर बीजुं कोई सुख नश्री; वली तप जप अने देवतानी सेवा ( स्मरण ) विगेरे सर्व जे करवामां आवे ते क्षमा विना पाणी वलोव्यानी पेठे करे अर्थात् जेम पाणी वलोव्याथी माखणनीप्राप्ती थती नथी तेम ते फलदायी थतुं * विक्रमादित्य श्रने पर्वतनो संबंध अन्यदर्शनीना ग्रंथनो ले. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग नथी. ( उपशम विना जे चारित्रनुं पालq ते पण पाणी वलोव्यानी परे जाणवू. श्राखा जन्मपर्यंत चारित्र पादयु होय श्रने एक वार क्रोध करे तो ए चारित्रादिक बली नस्म थाय, तो गृहस्थाश्रमीने तो क्षमागुणना लेश विना शा फलनी प्राप्ती थशे? अने केवी गति थशे? ते ज्ञानी विना कोई बतावी शके तेवू नथी. माटे दरेक मनुष्ये क्षमागुण आदरवो श्रेयस्कर जे.) २३ उपशम रस लीला जास चित्ते विराजी, किम नर जव केरी रिधिमां तेह राजी॥ गज मुनिवर जेहा धन्य ते ज्ञान गेदा, तपकरि कृश देहा शांति पीयूष मेदा ॥२४॥ जावार्थ-जेना चित्तमां उपशमरूप लीला विराजी अर्थात् जे. नामां क्षमागुण प्रगव्योडे ते संसारिक रिधिमां कहेतां सुख जोगमां केम राजी थाय ? ( राजी थायज नही); गजसुकमाल मुनिवर के जे ज्ञानगुणना मंदिर हता श्रने जेमणे तप करीने काया शोशवी वर्षादनी धारानी माफक शांत गुण श्रादर्यो तेमने धन्य बे. ॥दमागुण उपर गजसुकमाल मुनीनो प्रबंध ॥ वसुदेवनी स्त्री देवकीने पेटे थयेला व पुत्रोने तेना जाई कंसे जन्म मात्र मारी नाख्यान ते बन्ने स्त्री नार विगेरे जाणता हता. पण देवताए तेश्रोने चरमशरीरी होवाथी पूर्व पुन्यानुयोगे सुलसा नामा श्राविकाने घेर लावी सोंप्या हता. त्यां ते. श्रोनुं पुत्र प्रमाणे पालण पोषण करी सुलसाए योवनावस्थाये तेश्रोने परणाव्या हता. संसारिक सुख लोगवतां एकदा ते नगरना उद्यानां श्री नेमनाथ नगवंत समोसर्या, देवताए समवसरणनी रचना करी. त्यां बेसी चतुःमुखे बार पर्षदा सन्मुख प्रजु देशना देवा लाग्या. ते सांजली देवकीजीना गए पुत्र प्रति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. [ug बोध पाया. स्त्री यदि सर्व बांडीने सुलसानी सम्मती लेई ते बज श्री नेमनाथजी पासे चारित्र लीधुं जगवाननी साथे गामानुगाम विचरता तेयो एक वखत द्वारिका नगरीयें श्राव्या. पुत्र पढी सातमा श्री कृष्ण देवकीजीने उदरे आव्या. ते कंसनी बीके गोकुल गाममां नंदने घेर म्होटा थया. जरासंधना जयने लीधे समुद्र विजयादि दसे दशारण ( वसुदेव सुधां तेमना दश जाईओ) नी साथे नासी चावीने श्रीकृष्ण, देवताएवसावी यापेली द्वारावतीमां ते वखते राज्य करता हता. श्री नेमेश्वर जगवान् श्राव्यानी वधामणी मलतां श्रीकृष्ण घणा हर्ष वडे चतुरंगी सेना लई नगरना सर्व लोक संहित तेमने वांदी गया. पढी प्रभुजीनी श्राज्ञा मागी व साधुमांना बे बे साधुना प्रण संघामा नगरप्रत्ये वोहोरवा माटे नीकल्या. एक संघाडे नीकलेला वे साधु देवकीजीने घेर घ्याव्या, तेमने जाव साथे बहुमान करी देवकीजीए सिंहकेसरीया मोदक वोहोराव्या. ते साधु गया. एटले बीजा बे साधु देवकीजीने घेर वोहोरवा याव्या. राणी (देवकीजी) यें पोताना मनमां विचार कर्यो के या साधु बीजी वार आव्या तेथी आहारनो घणो खप होय एम जपाय बे; एम धारी बीजी वखत पण सिंहकेसरीया मोदक वोहोराव्या. ते वोहोरीने गया एटले वली त्रीजा संघाडाना ने साधु वोहोरवा श्राव्या. देवकीजी त्रीजी वार तेना ते ज साधुने वोहोरवा वेला समजी पोताना मनमां विचार करवा लाग्यां के, साधुने खप होय तो एक वार यावे, तेथी विशेष जरूर होय तो कदी बीजी वार यावे, पण ए त्रीजी वार तो घ्यावेज नहीं, ने या साधु केम याव्या ? द्वारावती नगरीमां श्रावक तो घणा जावीक बे, शढेर पण मोटुं बे, तेम बतां श्रत्रीजी वार १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग आव्या, ए शुं ? एवं विमासी तेमना सामुंजोई रह्या. ते वखते साधु बोल्या जे- महानुनाव ! तमे शा विचारना वमलमा पड्यां बो ? राणीए जणाव्युं जे- स्वामी ! तमे वैराग्य पामी प्रनु पासे दीदा लीधी बतां एकज घेर त्रीजी वार आव्याथी महारा मनमां ते संबंधी विमासण करुं बुं. साधुए कह्यु के, अमेत्रण संघाडे बे बे साधु जूदा जूदा वोहोरवा श्राव्या बीये. तेनातेज फरीथी आव्या एवो लेशमात्र संशय तमारा मनमां न लावशो. श्रा वाक्य सांजलतांज देवकीजीने पुत्र जपर जेवो प्यार आवे तेवोज मोह उपज्यो, थाने पानो श्राव्यो. पठी साधुने वोहोराव्युं एटले ते गया. त्यारपडी तरतज पोताना मननो संशय पूर करवा अर्थात् ते गए साधु उपर पुत्रवत् प्रेम शाथी उत्पन्न थयो तेनो निर्धार करवा माटे देवकीजी प्रत्तु पासे आव्या. प्रजुने त्रण प्रदक्षिणा देई वंदन नमस्कारादि करी योग्य स्थानके बेसी विनय सहित देवकीजीए पुज्यु. जगवंते कयु के, महानुनाव ! तमारा ब पुत्र कंसनी बीके देवताये हरीने सुलसाने त्यां मुक्या हता, ते ए . ए वात सांजली देवकी घेर आवी आर्तध्यान ध्यावामां पड्यां, जे ए उ पुत्र सुलसाने घेर म्होटा थया श्रने सातमो कृष्ण आहीरने घेर वाध्यो. में तो एके पुत्रने हुलराव्यो नहीं, धवराव्यो नहीं, रमाड्यो नहीं, महारो तो जन्मारो निष्फल गयो. एवी चिंता करतां थकां बेठेलां देवकीजीने कृष्णे उदासी देखी पुज्यु के, माताजी ! आज एवडी तमने शी चिंता उपनी ? अने शांखमांश्रीश्रांसुनाखोडो तेनुं कारण शुं ? जे काई आपने उदासी थवानुं कारण होय ते मने महेरबानी करीने कहो, महारा सरिखा पुत्रने नहीं कहो तो केने कहेशो ? देवकीजीए नीसासो नाखी ने कह्यु के- महारी कुखे सात पुत्र श्रया पण एकेने में रमाड्यो नहीं, तेनी मने चिंता . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ते वखते कृष्णे माताने दीलासो श्रापी अमनो तप करी हरणगमेषी देवताने वाराध्यो. तेथे तत्काल प्रवीने आराधवानुं कारण पुढतां कृष्णे पोतानी माताने पुत्रप्राप्ती विषे पुब्युं. देवताक के - पुत्र यशे पण वहेलो संसार मुकशे अर्थात् लघुवयमांज चारित्र ग्रहण करशे. एवं सांजलीने कृष्णे देवकी - जीने जपाव्यं जे- हे माताजी ! तमारुं चित प्रसन्न थशे, म नोरथ सिद्ध थशे. देवकीए कयुं- एमज था . त्यारपढी कोईक पुन्यवंत जीव देवकीनी कुखे उपन्यो, तेना प्रजावश्री रात्रिने विषे माताये स्वप्नमां गज दीठो. अनुक्रमे गर्न वाधतां पूर्णमासे पुत्र प्रसव्यो. तेनुं नाम स्वप्नानुसारे "गजसुकमाल” राख्युं. घणो कर्यो, ज्यारे ते आठ वर्षनो थयो त्यारे ते नगरना रहे - नार सोमील नामना ब्राह्मणनी पुत्री साथे तेनुं लग्न कर्यु. ए. वखते श्रीनेमनाथ जगवान त्यां समोसर्या. कृष्ण, देवकीजी विगेरे सर्व वांदवा गयां तेमनी साथे गजसुकमाल पण प्रजुने वांदवा गयो. देवरचित समवसरणमां बेसी प्रभु देशना देता हता, सांजली गजसुकमाल वैराग्य पाम्यो. संसारने असार जाणी तेथे सर्वने समजावी अनुमती लेई संजम लीधुं. तेज रात्रे प्रजुनी याज्ञा मागी ते (गजसुकमाल) मसानू मिकाए जई काउसग्ग ध्याने उजा रह्या. एवामां फरतो फरतो तेमनो ससरो सोमील ते स्थले घ्याव्यो. गजसुकमालने साधुवेषे निहाली हृदयमां द्वेष श्राणी मुखथी कदेवा लाग्यो के - अरे पापिष्ट ! तें महारी पुत्रीनो जन्मारो वगाड्यो - खुवार कर्यो ! तेनुं फल तने प्रत्यक्ष बतावुं बुं. एम बोली तत्काल तेनी नजीक तलाव हतुं त्यांथी लीली माटी लावीने गजसुकमालना मस्तकने विषे पाल बांधी. पठी ठीब जरी मसाणमां बलता खेरना धगधगता अंगारा लावीने तेमां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ( माथा उपर ) समाया तेटला जर्या, अने रात्रे ते पण मसामां पासेज रह्यो. समताना जंडार गजसुकमाल मुनी बलता अग्निए करी तडतम नसो तुटतां पण सोमील ससराना उपर लेशमात्र द्वेष नही लावतां ते करेला अपकारने बदले तेनो मनने विषे उपकार मानता विचार करवा लाग्या के, या जव चमणनो ऊट निस्तार लाववामां ए महारो खरेखरो सखाई थयो बे. वली निश्चल मने करी स्थिर थई जीवदया माटे चिंतवन करवा लाग्या के, र खेने अंगारो मात्र मूंई पडे ! रखेने कोई जीवनी विराधना थाय ! एवी रीते समतामय श्रपक श्रेणीए शुद्ध अध्यवसाये करी शुक्ल ध्यान ध्यातां थकां ते अंतगम केवली थईने मोक्षपद पाया. 4 गजसुकमाले दीक्षा लीधा पढी कृष्ण वासुदेव रात्रे पोताना मनमा चितवन करवा लाग्या के, महारो जाई संजमेकरी वमील पण ते वयमां न्हानो बे, तेनाथी संजम केम पलशे ? तेमाटे सवारे प्रभु पासे जई ते विषे योग्य तजवीज करीश. समय यतां कृष्ण वासुदेव प्रजुने वांदवा श्राव्या. प्रभुने वांदी सघला साधुने वंदना करी, तेमां गजसुकमालने न दीवा. ते वखते प्रजुने पुढवा लाग्या के - हे जगवन् ! हे स्वामी ! श्रमारा जाई गजसुकमालजी क्यां बेठा बे ? प्रभुजीए जणाव्युं जे-ते तो अनंत सुखना जोगी थई बेठा, एटले नजरे क्यांची यावे ? अनंता सुख आवासमां पेठा, माटे हवे ते स्वरुपे तो तेमनां दर्शन दुर्लभ बे. दे कृष्ण ! ए सिद्धिपद पाम्या माटे ईहां थकी नमस्कार करवा योग्य थया. एवं सांजली श्रीकृष्णे पुब्युं के - हे स्वामी ! एम तत्काल सिद्धगतीने केम पाम्या ? जगवंते कह्युं के, तेमने साहाज्यनो करणदार मल्यो. कारण जोगनो मेलवनार मढ्यो एटले ते कारणने जोगे करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. २०१ तेमना कारजनी सिद्धि यई गई. ते अंतगड केवली थई मोक्षपद पाया. अनंत सुखविलासी थया. ते वखते वली कृष्णे जगवंतने पुयं के, हे स्वामी! ते कोण तेमने साहाज्यकारी मल्यो ? प्रजुए कीधुं के, जेम काले तमे पेला मोसाने ईंटनुं साहाज्य कर्युतेः एटले के ज्यारे तमे हाथी थी देवे उतरीने एक ईंट हाथमां लीघी, त्यारे तमारा सोल हजार मुगटबंधे उपामी ( ईंट लीधी ) डोसाने मारतांवांत तत्काल ते डोसानुं काम थयुं. तेम तमारा जानुं पण एज रीते ययुं. परंतु कारजमां फेर. तेहज कारणे काम करी श्रप्यं कृष्णे पुठ्यं के, हे स्वामी! ते प्राणी कीयो? जगवंते जपान्युं जे-तमने देखीने जेनुं हृदय फाटशे, ते जाणजो पढी गवान् नमस्कार करी कृष्ण वासुदेव पोताने घेर जवा नीकल्या. मार्गमां महापापी रुषी हत्यानो करणहार सोमील मसाएमांथी नीकली श्रावतां सामो मध्यो. श्रीकृष्णजीनी खारी यावती देखी ते पोताना मनमां विचारखा लाग्यो के, कदापि में ना जाने हो बे ते वात एना जाणवामां श्रावी हशे तो ए मने मारशे, माटे उपरले मार्गे जाउं एम विचारीने ए मार्गे गयो एटले त्यांज श्रीकृष्ण जोवामां आवतां तरतज तेना हृदयना फाटीने बे जाग थया कृषीहत्याना पातिकथी ते मरीने नर्के गयो. · कथामांसार ए ग्रहण करवानो ने के, गजसुकुमाल मुनीश्वरना मस्तक उपर खेरना अंगारा जर्या. जेथी सहन न थई शके एव वेदना थई, तम तक नामी त्रुटी, पण लेशमात्र द्वेष नहीं लावतां क्षमा गुण लावी, ते सहन करी तेना अपकारने बदले मनमां उपकार मानी कर्म खपावी दीघां अने तत्काल मोक्षपद पाम्या. माटे अमृतमय श्रने शान्तिगुणमय एवीक्षमा जाणीने त्रिकरण शुद्धे ते (क्षमा) धारण करवी, के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग जेथी था लोक अने परलोकमां सुख संपत्ति प्राप्त थवा उपरांत मोदसुख मलतां कांई पण वार लागनार नथी. २४ ॥अथ त्रिकरण शुद्धि विषे ॥ जग जन सुखदाई चित्त एवं सदाई, मुखे अति मधुराई साच वाचा सुहाई ॥ वपु परहित देते त्रय ए शुभ जेने, तप जपव्रत सेवा तीर्थ ते सर्व तेने ॥२५॥ लावार्थ-जगतना जीवने सुख थाय एबुं हमेशां जेनुं मन बे; मुखे घणीज मीठी अर्थात् अमृत सरखी, शोजनीक अने साची वाणी बोले; वली आ काया ले ते परने उपकार करवाने कामनी ने अने ते प्रमाणे जे करे, एम त्रणे (मन वचन काया) जेनां शुकने अर्थात् ए त्रिकरण शुद्धि जेने विषे, तेने तप, जप, व्रत, सेवा, तीर्थयात्रा, ए सर्व लेखे श्रावे. २५ मण वचतनुत्राये गंगज्यूंशु जेने, निज घर निवसंतां निर्जरा धर्म तेने ॥ जिम त्रिकरण शुझे औपदी अंब वाव्यो, घर सफल फलंतो शील धर्मे सुहाव्यो॥२६॥ जावार्थ-मनजोग, वचनजोग अने कायजोग, ए त्रणे गंगानां पाणी जेवां जेनां निर्मल बे; तेने पोताना घरमां रदेवा बतां पण निर्जरा धर्म ले (अर्थात् तेनां मनोवांडित सफल थतां ते निजरा करी अदय सुख पण प्राप्त करी शके डे); जेवी रीते पांमवनी स्त्री जौपदीए त्रिकरण (मन, वचन अने कायानी ) शुहताये करी आंबो वाव्यो तो ते फल्यो अर्थात् तेने अकाले फल लाग्यां अने तेना सीलन महात्म्य फलकी नीकल्युं, एटले तेनी धारणा पार पमी अने वाह वाह कहेवाई. १ौपदीए आंबो वाव्यो अने तेनां फल वझे तापसोने जमाड्या ए वात अन्य दर्शनी ( मिथ्यात्वी) मां कहेली . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ॥ त्रिकरण शुद्धि उपर द्रौपदीनो प्रबंध ॥ एक वखत पांच पांडव सजामां बेठा हता त्यां व्यासी ह जर तापस आव्यानुं तेमणे सांजल्युं तेथी तेउने जमवानुं नोतरुं दीधुं. ते वखते ताप घणो सख्त पकतो दतो तेनी गरमी शान्त पारुवा माटे तापसोने बाना फले पारणं करवानी इछा थवाथी तेमणे पांवाने कयुंके, जो तमे केरीना रसे अमने पार करावो तो करीये. एवं सांजलीने पांवाने चिंता उत्पन्न घई के अमारो मनोर्थ पूरो केम पकशे ? अकाले थाम्रफल क्यांथी मले ? के तापसने जमाडी शकाय ? जो जमानी शकाय नहीं, तो मे करेलुं आमंत्रण वृथा तां मारी हांसी थाय ! या प्रमाणे पांडवो सोचमां पड्या हता. ते अवसरे त्यां नारद रुषीश्वर श्राव्या. पांवाने चिंतातुर देखी नारदजीए तेनुं कारण पुढतां पांडवोए जणाव्यं के, स्वामी ! - व्यासी हजार तापसोने जमवा नोहोर्या बे, तेज॑ने अकाले बाना रसनुं पार करवानुं मन थयुं वे ते संबंधी फीकरमां पड्या बीये. नारदश्षीए जणाव्युं जे- एमां शी फीकर करो ठो ? तमारी चिंता दूर थाय तेवो उपाय बतावुं ते सांजलो. पांडवोए कंके - स्वामी ! थाप बतावो ते प्रमाणे अमे करवा तैयार बीये. हरकोई प्रकारे यांबाना रसवडे तापसोने जमाडी शकीये तेवो उपाय दर्शाववा कृपा करो. नारदजीए कं के, आम्रवृक्षनं सुकुं कुंकुं ववरावो, ते नवपल्लव थाय, ते खांबे मोहोर यावे, तेने फल बेसे, ते म्होटां याय अने ते फल ज्यारे पाके त्यारे ठ्यासी हजार तापस पारएं करे. ए सिवाय बीजो कोई उपाय नथी. या रुतुमां बीजे कोई स्थले केरी मली शके तेम नथी. पांडवो आ हकीकत सांजली विचारना वमलमां गोयां खावा लाग्या के, या काम सुलन नथी. महा कठिन बे. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only १०३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग वृदनुं सुकुं वं शी रीते नवपल्लव थाय अने फल आवे ? कोई उपाय न जड्यो त्यारे आवटे मान मुकी ते नारदजी प्रत्ये कहेवा लाग्या के, आ वात बनाववीअने अमारी लाज शरम राखवी ए तमारा हाथ . तमे जाग्याना नीरु बो, माटे अमारं आ कार्य आप पार पाडो. पांमवोनां आवां मुखवचन सांजली नारदे कह्यु जे- तमारी स्त्री प्रौपदीने सर्व हकीकत कहुं अने पुढे, ते जो साचुं बोले तो हुं ते प्रकारनो उद्यम करूं. एम कही पांडव पा. सेथी उठीने नारदजी ज्यां सौपदी हतां त्यां तेनी पासे गया, अने सर्व हकीकत निवेदन करीने पुq हतुं ते पुज्यु. प्रौपदीए कडं जे- हे रुषीजी ! हुं तमारी आगल साचुं बोलीश, जर्तारनी प्रतिज्ञा पूरवाने समर्थ बुं, सती ढुं, ते काममां केम चूकीश. पबी नारदे जौपदी पासे आम्रवृदान सुकु वंवं ववराव्यु- रोप्यु, आमी परिचय ( पाल ) बंधावीने नारदे प्रौपदी प्रत्ये पुज्युं जे, तमा जे शील ते केवु बे ? ते वखते झोपदी बोल्यां, सांजलो नारदजी ! राजाऊना स्वरूप जोहार एवा पांच पांडव जेवा माहारे जार ले तो मन बहा उपर शुं ध्याय, श्छे, के प्रवत्ते ले ? अर्थात् त्रिकरण योगे पांच पांमव सिवाय स्वप्नमां पण हुं कोईने ईती नथी. वली पांचमां पण जेनो वारो होय तेनेज श्छु बु. एवं जो महारुं शील होय तो महारा पतिनी प्रतिज्ञा पूर्ण थजो. श्रा प्रकारे झोपदीए कयु, एटले तत्काल जे सुकुं कुंवं हतुं ते नवपद्धव थयुं, मोहोर आव्यो, फल बेगं, म्होटां थयां अने पाक्यां. तेवडे एटले ए आंबानी केरीना रसवमे अठ्यासी हजार तापसोने पारणां कराव्यां. शीलधर्म एवो उत्तम जे. एनुं महात्म्य वध्यु. त्रिकरण योगे जौपदीनुं शील साचुं हतुं तेनुं प्रत्यक्ष फल मब्यु.२६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. कुलविषे ॥ ॥ ॥ सहज गुण वसे ज्यूं शंखमां श्वेतताई, अमृत मधुरताई चंद्रमां शीतलाई ॥ कुवलय सुरसाई इकुमां ज्यं मिठाई, कुल मणुजढकेरी सजावे जलाई ॥२७॥ जावार्थ जेम शंखमां उजलाशपणुं, अमृतमां मधुरपएं एटले मीठास साथै स्वादिष्टपणुं, चंद्रमामां शीतलपणुं, कमलमां नरमाशपणुं श्रने शेलडीमां मीठासपएं, ए तेना सहज गुणे करी अर्थात् तेना मूल खनावेज होय बे, तेम उत्तम कुलना माणसोमां स्वावेज जलमणसाईपणं होय बे, एटले कुलवान माएसो जला - सारा गुणवान होय बे ॥ २७ ॥ जिए घर वर विद्या जो हुवे तो न शद्धि, जिए घर य लाने तो न सौजन्य वृद्धि ॥ सुकुल जनम योगे ते त्रणे जो लहीजे, अजय कुमर ज्यूं तो जन्म साफल्य कीजे २० जावार्थ - जेने घणी विद्या होय तो तेने घेर लक्ष्मी न हाय, जेना घरने विषे विद्या अने लक्ष्मी ए बने होय तो तेने घेर कुटुंब परिवारनी वृद्धि न होय, सारा कुलना योगे ए त्रणे ( विद्या, लक्ष्मी ने कुटुंब परिवार ) जो मले तो अजयकु मारनीपेठे जन्म सफल थाय. एटले ए सघला योग अजयकुमारने मया ने एमना जन्मनुं सार्थक ययुं, तेम जे माणसने एत्रणे जोग उत्तम कुलसहित मले तो जन्मनी सफलता थाय. २० ॥ विवेकविषे ॥ श् हृदय घर विवेके प्राणि जो दीप वासे, सकल जव तपो तो मोद अंधार नाशे ॥ परम धरम वस्तु तत्व प्रत्यक्ष नासे, करम नरम पतंगा स्वांग तेता विध्वंसे ॥ २९ ॥ १४ Jain Educationa International १०५ For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग नावार्थ-हृदय कहेतां हैयारुपीया घरमांहे विवेकरुपीयो दीवो प्रगट थाय, त्यारे सघला नवनो जे मोह तद्पीयो जे अंधकार ते प्राणीनो नासे, त्यारे परम कहेतां उत्कृष्टो धर्म, जे वस्तुनुं वस्तु पणुं एटले जाणपणुं थयुं, तेवारे ते तत्वनी वार्ता जाणे, अने वस्तुने पोतानो अखय खजानो दीगे त्यारे शुं श्रयुं ? कर्मरूप जे पतंगीया ते दीपकमांहि पड्या अर्थात् क्षय थाय, ए शा माटे जे-जेना घरमांहिं विवेकरूप दीवो प्रगट्यो त्यारे तेना घटमांथी अविवेकपणुं मटे अने तत्वनी वात जाणे. ॥ ए॥ विकल नरकहीजे जे विवेके विदीना, सकल गुण नया ते जे विवेके विलीना ॥ जिम सुमति पुरोधा नमि गेदे वसंते, जगति जुगति कीधी जे विवेके जगते ॥३०॥ जावार्थ-जे प्राणीमा विवेकनो गुण नथी तेने विकल कहेतां गमार जाणवो, अने जेनामां विवेकपणुंडे ते प्राणी सर्व गुण संपन्न उत्तम काममां लीन ने, विवेक ते शुं? सत्य असत्यनुजाणवू अने उलखवं. ते न जाणे ते माटे तेने अविवेकी ने विकल कहीये, एज लक्षण जाणवू. सुमती नामना प्रधानने राजाये नूमी घर (जोयरा )मा राख्यो हतो, तो पण त्यां तेणे विवेकाईना गुणे करी सर्व प्रकारनी युक्ति जुक्ति करी. आ सुमती प्रधाननो प्रबंध ग्रंथांतरथी जाणी लेवो ॥३॥ ॥अथ विनयविषे ॥ निशिविण शशि सोदे ज्यूंन शोले कलाई, विनयविण नसोदे त्यूंन विद्या वडाई॥ विनयवदि सदाई जेद विद्या सदाई, विनयविण न कांई लोकमां उच्चताई ॥३१॥ नावार्थ-सोले कलाये सहित उतां पण जेम रात्रि विना चंजमा शोना प्रत्ये पामतो नश्री, तेम विनय विना विद्यानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषन्तर सहित. १०७ वडाई कदेतां मोटाईपणुं, ए पण शोजतुं नथी, जेने विद्यानी साह्यता ले ते निरंतर विनयथी वर्तनारा २ अर्थात् विद्यानी वमाई ते विनयगुण जाणवो, विनय गुण ते सर्व थकी श्रेष्ठ , शा माटे जे विनयगुण विना लोकमां उंचपणुं न पामे, एटले यश प्रतिष्ठा पामे नहीं ॥३१॥ विनय गुण वहीजे जेदथी श्री वरीजे, सुर नर पति लीला जेद देला लहीजे॥पर तणय शरीरे पेसवा जे सुविद्या, विनय गुणथि लाधी विक्रमे तेह विद्या ३२ नावार्थ- विनयगुण करवो के जेथीकरीने लदमी पामीये, देवता अने मनुष्यो तथा राजाऊना सुखनी लीला पण जेणे करी तत्काल पामीये, जेम पारका शरीरमा पेसवानी जे सारी (परकायप्रवेश) विद्या, ते विनयगुणवडे विक्रमे मेलवी. ॥ ३ ॥ ॥ विनयगुण उपर विक्रमराजानो प्रबंध ॥ साकेत नामा नगरमां विक्रम राजा राज्य करतो हतो. ते एक वखत पोताना कर्मनी परीक्षा करवा निमित्ते मंत्रीने राज्य जलावी (सोंपी) परदेश चाल्यो गयो. जता जतां घणेक दी. वसे एक पर्वत पासे श्राव्यो. ते पर्वतमा एक जोगी रहेतो हतो. तेने जोई नक्तिए करी नमस्कार करवापूर्वक विनयादि साचवीने राजा तेनी सन्मुख बेगे. जोगीए तेने पुढ्यु के, तुं कोण ने ? राजा विक्रमे कडं जे- स्वामी! हुँ दात्रीपुत्र ढुं. जोगीए पुब्यु-तुं क्यां जईश ? राजाए जणाव्युं जे- खामी ! श्रापनीज सेवा करीश, महारे अन्य स्थले शुं प्रयोजन ? गुरुसेवा थकी गुणज नीपजे. एम कही ते योगी समीपे रह्यो. योगीनो बहु प्रकारे विनय करतो थको ते त्यां रहे . तेनी साथे वली ते योगीनी पासे एक विप्र रहेतो हतो, ते बाह्यथी योगीनो विनय करतो हतो. जक्तिनावे नहीं पण विद्या लेवाना प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग योजने ते सेवा करतो हतो. ए प्रकारे ते बने ( राजा ने विप्र ) ने योगीनी सेवा करतां घणां वर्षो वित्या पठी एकदा राजा विक्रमने योगीए कह्युं के, हे वत्स ! तने सेवा करतां बहु वर्ष थयां, तुं घणो दक्ष, विनयी अने योग्य तुं, माटे हवे तुं जा ने अपर शरीरमा पेसवानी विद्या ले. एम कही ने योगए विक्रमराजाने परकाय प्रवेशनी विद्या श्रापी. ते वखत राजाए कह्युं के - स्वामी ! मने विद्या श्रापी, परंतु या विप्र तो महारा करतां पण आगल अपनी पासे थावेलो बे, माटे तेने पण विद्या पवी जोईये. योगीए कह्युं के - ए अयोग्य बे, एने विद्या न देवाय राजाए कह्युं के - महारा उपर प्रसन्न थईने एने विद्या आपो. योगीए कह्युं के - अरे ! तुं उपकारबुद्धिए करी ने विद्या पावे बे, पण ते तने पीकाकारी थशे. राजाए कयुं के - हे स्वामी ! महारा कर्ममां पीडा लखी दशे तो एनो शो वांक ? माटे उपकार तो करवो. राजानुं श्रा प्रमाणे युक्तियुक्त बोल सांजली योगीए विप्रने पण विद्या श्रापी. पी ते बन्ने जपा योगीने पगे लागी पोताना देश जणी चाव्या. मार्ग उलंघता उलंघता साकेत नगरे श्रावीने बन्ने जणे बाहार मुकाम कर्यो. एवखते राजानो पटहस्ती मरण पाम्यो हतो तेथी नगरना सर्व लोक खेद पामेला हता. तेवुं जोई राजाए ब्राह्मणने कीधुं के, "श्रा महारुं शरीर जालवजे, या हाथी मरण पा म्याथी ए महारुं नगर खेदातुर बे तेने सजीवन करी हर्ष पमाहुं. " एम कही राजाये हाथीना शरीरमां पेसीने तेने सज कर्यो तेथी सर्व लोक हर्ष पाम्या. ब्राह्मणे ते वखते पोताना म मां विचार्य जे, ए राजा दीसे बे, तो हुं एना शरीरमां पेसीने राजा थई सुख जोगवुं. एम चिंतवी ते विप्र राजाना शरीरमां पेतो. पढ़ी तेणे मंत्री प्रमुखने जणान्युं तेथी राजा विद्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सदित. १०० शीखी श्राव्या एम जाए। तेने महोत्सवे करी नगरप्रवेश कराव्यो, सिंहासने बेसाड्यो. त्यारपठी ते मेहेलमां गयो त्यां तेजरमां श्र जाण्या सरिखो तो देखीने श्रीकांता राणीने शंका उत्पन्न थई जे - राजानुं शरीर तो एज बे, पण ए राजा विक्रम तो नहीं ! ए कोई तेना सरखं रूप करी श्राव्यो जणाय बे ! पठी प्रधानने बोलावी राणीए ए हकीकत जणावी. बन्ने जणे सलाह करी हाल तुरत तेने मेहेले श्राववानो निषेध कर्यो. दाथीना शरीरमां राजाए प्रवेश कर्यो हतो तेथे विप्रनुं स्वरूप जाएयुं तेथी ते हाथी वनमां चाल्यो गयो. त्यां हस्तीनुं पुल तजीने सुडाना पुलमां पेसी उडीने राणी पासे श्राव्यो. राणीने अ त्यंत प्रेम लगामी तेनी पासे रह्यो त्यारपटी एक वखत सुडाना पुलमांथी नीकलीने ते गरोलीना पुफलमां पेटो एटले सुडो मरण पाम्यो, सुडाउपर राणीनी एटली बधी प्रीति थई गई हती के दवार पण तेनो विरह वेठवाने ते समर्थ थई शकी नहीं, तेी घणो विलाप करी मरवा तैयार थई. ते वखते राजा बनेला ब्राह्मणे राणीने कयुं के - तुं श्याने मरे बे ? हुं ए सुडाने जीवतो करुं ! राणीए जणाव्युं जे-ए जीवतो थाय तो हुं जीवुं. पठी ते ब्राह्मण एकांते शरीर मुकीने सुमाना पुलमां पेगे. सुमाने जीवतो जोई राणी हर्ष पामी. ते अवसर योग्य जाणीने राजा घरोलीना शरीरमांथी नीकली, पोतानुं शरीर, के जेमांथी नीकली ब्राह्मण शुडाना शरीरमां पेसी एकांते मुकी गयो हता ते पोताना शरीरमा पेठो, पढी दरबारमां गयो. ते पूर्वनी परें राज्य पालतो साक्षात् विक्रम जाणी राणी श्रीकांता हर्ष पामी. पठी ते ब्राह्मणनी देह बाली दीधी. ते ब्राह्मण तिर्यंच रूपे रह्या. या प्रबंधमां सार ग्रहण करवानो ए वे के, विक्रमे विनये करी पोते विद्या मेलव्या उपरांत जे जावसहित विनय करतो न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग होतो तेने पण विद्या अपावी. माटे पुनीयामां विनय ए वडो ने अने विनयथी सर्व काम सिक करी शकाय ने माटे वि. नय गुण करवो. वली श्री उपदेशमालामां कडं के श्रेणीक राजाये चंमालनो विनय को तो विद्या श्रावमी, " चंडालने सिंहासन उपर बेसाडी राजा हाथ जोडी तेना सन्मुख उन्नो रह्यो.” ए प्रकारे बीजा प्राणी ए पण विनय करवो. ते उपर श्रेणीकनो संबंध कहे . ॥ विनय करवा उपर श्रेणीक राजानो प्रबंध ॥ राजगृह नगरमां श्रेणीक राजा राज्य करता हता. तेमने महा बुधि निधान अजयकुमार नामे पोतानो पुत्र मंत्रिनी पदवी पर हतो. ए नगरमां एक चंडाल रहेतो हतो तेनी नार्याने गर्जना महिमाये करी अकाले आंबानां फल खावानो मोहोलो जपजवाथी ते दिवसे दिवसे पुर्बल थवा लागी.ते जोई चंमाले तेनुं कारण पुरवाथी स्त्रीए पोताना मननो परमार्थ कह्यो. ते सांजली चंमाले मनमां विचार्यु के, आ तो घणी मुश्कल वात , कारण के, श्राज वगर ऋतुए अकाले आंबानां फल जोईये! जो ते न मले तो स्त्री सुकाती सुकाती मरण पामे. माटे ते फल मेलववां अने तेणीनो मनोरथ पूर्ण करवो. एम चिंतातुर थयो थको बेगे जे तेवामां तेने याद श्राव्यु के श्रेणीक राजानो चेलणा राणीना रहेवाना मेहेलनो एक थंजीयो आवास ते वाडीमां ए फल ले. हालमां बीजे कोई स्थले ए फल मली शके तेम नश्री. परंतु ते वामी अने ते श्रावास देवता, निपजावेलु तेथी त्यां ए शतुनां फल फूल बेसे , माटे त्यां जईने ते फल लावू. एम विचारीने ज्यां वामी हती त्यां ते आव्यो. वृद जोयां, फलनी धारणा धारी, तेणे विचार्यु जे ए फल कांई सेहेजे हाथमा श्रावे एम नथी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. १११ बेवट तेनी पासे बे विद्यार्ड हती तेना प्रनावे देवानो विचार कस्यो. एक विद्यामां एवी शक्ति पराक्रम गुण हतो के “जे जंची माल होय ते नीची नमे " अने बीजी विद्याथी “ जे माल नीची नमी होय ते पाळी उंची जाय.” ए बे प्रकारना जूदा जूदा गुण बे विद्यामां हता. पली रात्रे ते (चंमाल ) चेलणा राणीना एक थंना आवासे आव्यो. त्या सर्वे चोकीदार जं. घेला दीग एटले तेणे एक मंत्र गण्यो तेथी आम्रवृदनी डाल नीची आवी, ते उपरथी फल लीधां. पनी बीजो मंत्र गण्यो एटले डाल प्रथम हती तेम उंची गई. फल लावीने स्त्रीने श्राप्यां, ते तेणीए खाधां अने डोहोलो पूर्ण कर्यो. परंतु ते खादिष्ट लागवाथी स्त्रीए एवां फल निरंतर लावी श्रापवानुं कहेवाथी मोहवशे चंकाल चेलणा राणीनी वाडीमां हमेशां जईने ते फल लाववा लाग्यो. एम करतां आखी माल खाली थई गई. एक वखत एक थंजीया मेहेले चढी वाडीनी शोजा निदालतां निहालतां श्रेणीक राजानी दृष्टी ते आंबानी माल उपर पडी. तदन फल विनानी माल जोई ते मन साणे विचारवा लाग्या के, श्रा डाल आकाशे अडी , ए माल उपर कोई चडी शके ते, नथी, चारे दिशाए चोकी पण बे, कोथी पोहोंची शकाय नहीं एवी , उतां एनां फल केम गयां ? आश्चर्यकारक बनाव केम बन्यो? ए वातनो निर्णय पोते करी शक्या नही तेथी अजयकुमार मंत्रीने तेमावी कडं के, आपणी वाडीमांथी आंबानी आकाशसुधी उंची डाल उतां ते उपरनां बधां फल गयां, ए शुं? तहारा जेवो विचक्षण प्रधान बतां ए चोरी करनार केम फाव्यो ? ते समजी शकातुं नथी? माटे ए चोरने पकडवो जोईए अने तेणे केवी रीते फल लीधां ते पण जाणवू जोईए ? राजानो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग हुकम सांजली अजयकुमारे चौटामां श्रावीने साद पडावी लोकोने मेला करी नीचेनी वात कही. "धनश्री नामे उपवर ( परणवा योग्य उम्मरनी ) थपली एक कन्या पोताने योग्य वरनी प्राप्ती थवा माटे प्रछन्नपणे एक मालीनी वाडी मां यदना मंदीरे दररोज यावती ने तेनी पूजा करवा सारु ते वाकीमांथी फूल वीपी लेती हती. हमेशां फूल बां वार्थी माली तेनी तपास करतो हतो. एवामां एक वखत ते धनश्रीने फूल वीणतां तेणे दीठी; तेथी पकदीने पुछतां तेणीए जणाव्युं के उत्तम जर्तार पामवानी आशाये हुं यक्षनी सेवा करवा फूल लेजं तुं माटे मने मुकी द्यो. आज पनी हुं फूल नहीं लेई जाउं या कन्याने खूबसुरत जोई मालीए तेना उपर मोहित थ क के, जो तुं परणीने प्रथम महारी पासे वे तो हुं तने बोकुं. धनश्री निरुपाय होवाथी तेनुं कहेतुं क - बुल राखीने समसगरा करी पोताने घेर यावी. केटलेक दिवसे ते कन्यानुं लग्न ययुं त्यारे ते पोताने सासरे आवी शयनगृहमां गई, ते वखते तेणे पोताना पतिने माली साथे जे वात बनी हती तेथ इति कही. पतिए तेनी प्रतिज्ञा पूरी करी श्रववानी खाज्ञा खापी. पटी ते शोल शृंगार सजी माली पासे तेनी वाडीए जबा सारु एका किपणे चाली नीकली. मार्गमां यावतां चोर मल्या. ते तेने लुटवा लाग्या त्यारे पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवा माटे मालीनी पासे जवा संबंधीनी सर्वे हकीकत तेथे चोरोना मुख गल कहीने जीजी करी जणाव्युं के, माली पासे जई प्रतिज्ञा पूर्ण करी पाठी फरतां हुं या वाटे श्रावीश, त्यारे तमारे लुटवी होय तो लुटज्यो. तेनां वचन सांजली चोरे तेनुं वचन लेई त्यांथी जवा दीधी. श्रगल चालतां रस्तामां अतिसे विकाल घणा दिवसनो मुख्यो एक राक्षस मल्यो. अकस्मात् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ११३ तेना उपर दोट मुर्की खाई जवा आवता ए राक्षसने धनश्रीए घा कालावाला साथे माली ने तेना बच्चे बनेली सर्वे हकीकत निवेदन करी, पोताना पतिए पण ते प्रतिज्ञा पूर्ण करवा जवामाटे श्राज्ञा श्राप्यानं जणावी, माली पासे जईने या मार्गेज श्राववानुं कडेवाथी राक्षसे तेनुं वचन लेई जवानी रजा थपी. सर्वे अने ते साबासी तेमालीनी वाडीमां यावी. माली पण तेनी वाट जोई रह्यो हतो. तेणे धनश्रीने श्रावतां श्रावकार देई पुयं के, तहारा रथी बानी के प्रगटपणे यावी हुं? स्त्रीए तेना उत्तरमा जणाव्यंवाकेफ करतां तेमणे प्रतिज्ञा पूर्ण करवा माटे श्राज्ञा श्रपवार्थी हुं तमारीपासे खावी . ते वचन सांजली मालीए मनमा विचार कर्यो के धन्य बे ! ए स्त्रीने ! ने धन्य बे ! एना जर्तारिने ! यावी सत्य प्रतिक्षा पालनार स्त्री पूर्ण करवानी सम्मती श्रापनार तेना स्वामीने जेटली पीए तेटली बी वे ! माटे महारे पण ए स्त्रीने वताववी ( तेनुं सील खंकन कर ) घटे नहीं. एम विचारी मालीए ते स्त्रीने पोतानी बहेननी परे लेखवीने सासरवासो करी वोलावी, अर्थात् तेने वस्त्राभूषण यापी पोताने घेर पाठी मोकली दीधी. रस्तामां आवतां ते प्रथम राक्षसने मली. राक्षसे तेने सत्य प्रतिज्ञा पालनार जाणी माली साथे बनेली बीना तेना मुखी सांजलीने साबासी श्रापी वीदाय कीधी. त्यांथी चोर पासे यावी. चोरे पण तेमज सत्यवती ने सीलवती जाणी साबासी थापी यानूषणादि बक्षीस करी तेने घेर जवानी रजा, आपी. त्यांथी ते पोताना जर्त्तार पासे यावी ने मालीने त्यां तथा रस्तामां जतां यावतां जे जे बनाव बन्यो हतो ते सर्वे कही लाव्या. ते वात सांजली जर्तारे तेने घणीज सन्मानी. अजयकुमारे लोक यागल उपर प्रमाणे वात कही ने पुब्धुं के, " 35 ماه Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग कहो जाईयो ! एमां डुक्कर काम करनारो कोण ? ते वखते केटलाक के जेर्ज विषयवंत अधीरा जीव हता तेमणे तर वखायो. केटलाक विषयी प्राणी हता तेमणे मालीने वखायो. केटला ए बन्ने एटले माली ने जर्तारने वखाएया, के रात्रिने विषे स्वामीए प्रथम समागमे स्त्रीने माली पासे मोकलीने मालीए रूपवती ने जोबनवती पोतानी पासे था. वेली स्त्रीने बहेनपणे लेखवी, माटे ए बन्ने जणे डुक्कर काम कर्यु. तेथी माली ने जर्तार ए बन्नेने साबासी घटे बे. वली केटलाक जीव मांसना लालची दता तेणे राक्षसने वखारयो ने जेणे यांधानां फल सीधां इतां ते एकलाए चोरने वखायो. अजयकुमारे सेवक पासे ते चोरने पकडाव्यो. लोकोए अजयकुमारनी बुद्धि माटे तेनां घणां वखाण कर्या. पठी सर्वे पोतपोताने घेर चाया गया. अजयकुमारे ते चोरने काठगे ( केद ) कर्यो एटले तेणे आम्रफल लीधानी वात कबुल करी. एटली बधी उंची डाल उपरथी फल केवी रीते लीधां ? एम ज्यारे पुत्र्यं, त्यारे चोरे जणाव्यं के, "नीम्नीनी घने उम्नीनी” ए वे विद्या महारी पासे बे, तेथे करी में लीधां. पठी ते चोरने राजा श्रेणीकनी पासे लाव्या. राजाए कह्युं के अमारी वामीमां चोर चोकी बतां तेमने सुता वेचीने आकाश जेटली उंची डाल उपरथी तुं फल केम लेई शक्यो ? श्रमारा आगल साचे साधुं कहे ? चोर थरथर धुजवा लाग्यो. राजाए तेने खरची (शिक्षा) करवानुं कहेतां अजयकुमारे कां के, महाराज! एनी पासे विद्या बे माटे एम न थाय. एनी पासे विद्या बे ते तमे यो ? क्यां तमने ते ना पाडे बे ? राजाए कह्युं के, ए विद्या मुज प्रत्ये कहे. चोरे मंत्रोच्चार कर्यो, पण मरणानी बीकथी ते बोल्यो तेथी राजाने मोठे चढ्यो नहीं. त्यारे श्रजयकुमारे कयुं के, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. ११५ हे राजान् ! एने सिंहासने बेसारो अने तमे तेना सन्मुख हाथ जोमी हेग बेसो. राजाए तेमज कीधुं, अर्थात् चोरने सिंहासन उपर बेसारी पोते तेना सन्मुख हाथ जोमी जना रह्या. चोरे (चंमाले) मंत्र कह्यो. राजाने तत्काल श्रावड्यो. अनयकुमारे राजाने कह्यु के, ए चोर अने नीचकुलनो डे परंतु तेनी पासे विद्या डे माटे ए पूजवा योग्य . गुरुने सरपाव आपवो जोईए. कह्यु केः-"एक कर फल दातारं ॥ योगुरु नैव मन्यते ॥ श्वानजोनी सतं गत्वा । चंडालेष्वपि जायते ॥१॥ अर्थ-एक अक्षर शिखवनारने जो गुरुबुझिये न माने तो सो जव कुतराना अने हजार नव चंमालना करे." माटे ए तो गुरु थयो तेथी एने जी. वतदान द्यो. चंडाल(चोर)ने गेडी मुकी राजाश्रेणीके तेने पोताने घेर बोलावी लाख पसाय को. आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो ने के, विनय ए वडो डे. श्रेणीक राजाए विनय को त्यारेज तेने विद्या श्रावमी. विनयथी थोडं जएयुं पण घणुं विस्तार पामे , माटे सर्वे मनुष्ये विनय करवो. ३२ ॥अथ विद्या विषे॥ अगम मति प्रयुंज्ये विद्ययें कोन गंजे, रिपु दल बल नंजे विद्ययें विश्व रंजे ॥धनथि अखय विद्या सीख एणे तमासे,गुरुमुख नणि विद्यादीपका जेम नासे॥३३॥ नावार्थः-विद्यावान होय ते पागल बुधि प्रयोग विचारे श्रने तेने कोई गांजी (उगी) शके नही, विद्यावान शत्रुना दल कहेतां लश्करना बलने नागी नाखे अर्थात् तेने कोई जीती शके नही अने विद्याथी था जगत रंजे कहेतां खुशी थाय, धन करतां पण विद्या अक्षय खजानो डे, केमके धन खरचतां खूटी जाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग बे पण विद्या खूटती नथी, ए तो वावरतां वधती जाय बे अने वली एज तमासो जुर्ज, जे धननुं कारण ते पण विद्या ने अर्थात् विद्यावान अखूट धनप्रत्ये पामे, गुरुना मुखश्री जे विद्या जणी (शीखी) होय ते दीवानी पेठे प्रकाश करे, माटे विद्यानो अभ्यास करवो. ३३ सुर नर सुप्रसंसे विद्यये वैरि नासे, जग सुजस सुवासे जेद विद्या नपासे ॥ जिणकरि नृप रंज्यो नोज बाणे मयूरे, जिणकरि कुमरिंदो रीजव्यो देम सूरे॥३॥ जावार्थः-देवता श्रने मनुष्य सघलाये विद्यावंतने वखाणे अने विद्यावंत थकी वैरी नाश पामे, जे विद्याने उपासे एटले तेनी उपासना करे-जणे तेनो जगत्मां सुजस विस्तरे अने सौजाग्य श्रापे, जेणे करी अर्थात् विद्याथी बाण अने मयूर पंडितोए नोजराजाने रीजव्यो, तेमज हेमचंदाचार्ये कुमारपालराजाने पण विद्यावडे रीजव्या-प्रतिबोध पमाड्या. तेम बीजाने पण थाय, माटे विद्या नणवी. ३४ ॥ विद्याथी रीजववा उपर बाण तथा मयूर पंमितोनो प्रबंध ॥ उजेणि नगरीमां नोजराजा राज्य करतो हतो. तेना दरबारमां बाण तथा मयूर नामना बे ससरो जमाई पंडित हता. वि. द्याना मदथी मांहोमांहे ते विवाद करता हता. एक बीजानी सरसाई सहन करी शकता नहीं. “यतः-नसहं तिश्कमिक, नविणाचितिश्कमीकेण ॥ रासजवसहतुरंगा, जूश्रारिपीमीआर्मिना ॥१॥ जावार्थ- तमाम बालकोने एकलां गमे नहीं, अने नेला ( एकग) थाय त्यारे वढे .” तेम ए बे पंडित ससरो जमाई बतां नित्य दरबारमा विवाद करता हता. राजाए तेने का के- तमे काश्मीरमा जाउँ. जेने सरस्वती वखाणे ते घणो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. १२७ पंमित अने न वखाणे ते उठो पंमित मुकरर थशे. एवं सांचलीने बन्ने पंडित काश्मीर जवा नीकट्या. रस्तामा उकारनी टीकाना दोढ हजार पोठीया मल्या. तेमां शुं नयु ? एम पुलवाथी पोठीवाले कडं जे- कारनी वृत्तिना पोठी . ए सांजलतां ते बन्नेना जरपूर मद हता ते लगारेक ( कांईक उतरीने) नरम पड्या. त्यांथी आगल जतां रात्रि पडवाथी सुई रह्या. त्यां आकाशनेविषे सरस्वतीये प्रश्न पुब्युं, एटले बाण पंमित तकाल बोलतां, विचारे ने जे ए सारदायें शुं कर्तुं ? जे– “सतचंगननस्थलं.” पठी समस्या पुरतां ते बाल्यो के- दामोदरकराघात, विधुलीकृतचेतसां ॥ दृष्ट्वाचाणूरमश्रेण, सतचंजननस्थलं ॥१॥ एवं वचन सांजलीने मयूरे बीजी वार हुंकारो कह्यो जे ए देवीये डूंकडं ? पठी एणे पण कडं. त्यारे सरस्वतीये कडं जेजेणे हुंकारो न दीधो ते पूरो पंडित अने जेणे हुंकारो कह्यो अने ते बोलीने समस्या कही ए सामान्य पंडित जाणवो. ए रीते सरस्वतीये विवाद चुकव्यो. पडी ते उजेणिए श्रावी नोजराजाने पोतानी विद्यावडे खुसी करता रह्या. ३४ ॥अथ उपकार विषे ॥ ॥ तन धन तरुणाई आयु ए चंचला , परदित करि लेजे ताहरोए समे ॥जब जनम जरा जां लागशे कंठ साई, कदिनी तिण समे तो कोण थाशे सहाई॥३५॥ नावार्थः- काया (शरीर), अव्य, युवानी अने श्रायुष्य, ए सर्वे चंचल एटले अनित्य- नाशवंत बे, माटे या तहारो समय अर्थात् वखत होवाथी पारकानुं हित करजे, अने ज्यारे तने गलु पकडीने जरा श्रावी लागशे ( वृद्धावस्था थशे) एटले शरीरनुं प्राक्रम गलशे-जतुं रहेशे, इंजिन सीथल थतां कोई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग काम करी शकाशे नहीं, त्यारे हे नाई ! तुं पोतेज कहे, के तहारो सखाई एटले सहाय करनारो कोण थशे ? एक धर्म सखाई थशे माटे परतुं हित करवू. ( उपकार करवो ). ३५ ॥ नदि तरू फल खावे ना नदि नीर पीवे,जसधनपरमार्थ सो नले जीव जीवे ॥नल करण नरिंदा विक्रमा राम जेवा, परदित करवा जे उद्यमी ददं तेवा ॥३६ ॥ नावार्थ- काडने जे फल थाय ने ते काम पोते खातुं नथी तेम नदीनुं पाणी नदी पीती नथी, एतो पारकाने काम आवे ने. अर्थात् काडनां फल अने नदीनुं पाणी बीजा जीवो खाय अने पीए . ते प्रमाणे जेनुं धन परमार्थमां वपराय डे, अर्थात् बीजाना काममां श्रावे ते प्राणी जले जीवे, एटवे तेवा माणसनुं जीवq सार्थक बे, ते दीर्घायुषी था. एवो उपकार करनार कोण थया ने ? नलराजा के जेणे कुवामां पडेला सर्पने चारे बाजु अनि सलगतो हतो तेम उतां पण तेमांथी काढ्यो, तथा करणराजाए जगत्ने विषे दीन दुःखीयाउने उद्धा, वली विक्रमादित्ये पोताना अव्यनो पर उपकारमा व्यय को अने रामचंअजीए परहितनां कार्य कर्या, एवा उद्यमी, समर्थ अने डाह्या हता. एवी रीते मनुष्ये बीजाने उपकार करवो ए तात्पर्यार्थ बे. ३६ ॥अथ उद्यम विषे ॥ रयण निहितरीने उद्यमे लचि आणे,गुरु जगति करीने उद्यमे शास्त्र जाणे ॥ उख समय सहाई उद्यमे जलाई, अति अलस तजीने उद्यमे लाग नाई॥३७॥ जावार्थः-समुज तरवाना उद्यमे करी लक्ष्मी लावे, गुरुनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. नक्ति-सेवा चाकरी करवाना उद्यमथी शास्त्रनो पार पामीये, मुःखनी वखते उद्यम साह्य करनारो अने उद्यमथी जलाश्नो गुण नीपजे , ते माटे अत्यंत आलस बांडीने हे जाई ! तुं उद्यमसर था-उद्यम कर. ३७. वली उद्यमथी \ \ नीपजे ने ते कहे बेःनृपशिर निपतंती वीज जात्कारकारी, उद्यम करि सुबुद्धि मंत्रिए ते निवारी॥ तिम निज सुतकेरी आवती उर्दशाने, उद्यम करि निवारी झानगर्न प्रधाने ॥ ३० ॥ नावार्थः-राजाने माथे जे जाज्वल्यमान वीजली पडवानी हती ते उद्यम वडे सुबुधि नामा प्रधाने निवारी कहेतां अटकावी घर करी, तेमज झानगर्न कदेतां बुद्धिवंत प्रधाने उद्यमे करी पोताना दीकराथी आवनारी उर्दशानो नाश कर्यो. ३७ ॥ उद्यम उपर सुबुद्धि प्रधाननो प्रबंध ॥ श्री शान्तिनाथ चरित्रमा जणावेला विजयराजा एक वखत राजसज्जामां बेठा हता. त्यां एक निमित्ति श्राव्यो. राजाए तेने पुव्युं के, जो तमो शानबले करी अगम निगमनी वात जाणी शकता हो, तो हालमां कांश नवीन बनाव बनवानो होय ते बतावो ? निमित्तियाए कत्यु के, हुं सर्व जाणी शकुं बुं. आजथी सातमे दीवसे पोतनपुर नगरना राजाने मस्तके वीजली पडशे.या वात सांजलीने सर्व सजाजनो दलगीर थया. राजाये विचार्यु जे संबंध हशे ते बनशे ! ते वखत माह्या माह्या प्रधानो नेगा थई ए विघ्न विलय (नाश) थवानो उपाय योजवा लाग्या. एक प्रधाने कह्यु के-नवो राजा स्थापीये, एटले ते राजाने माथे वीजली पडशे. राजाए ते सांजलीने जणाव्यु केमहारा प्राण उगारवा सारु बीजाने कुःख देवु ए घj अयोग्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग बे, माटे तेम कर नही. पठी बीजाए अनि प्राय आप्यो केअथाग (घणाऊंडा) पाणीमां वहाण राखी तेमां राजाने राखीये तो बचे, केमके तेवा वहाणमां वीजली पडती नथी. एवं सांजली एक प्रधान बोल्यो जे - ए वात पण कामनी नहीं, क्वचित ए वहाण मुबे तो एनुं एज, अर्थात् एक नही तो बीजुं पण विघ्न यावी पडवानो संभव बे. बेवट सुबुद्धि प्रधाने कर्तुं जे - महाराज ! एक महारुं वचन कबुल करो. ते ए के, "आजथी सात दीवस सुधी जिनराजनी सेवा जक्ति करो, तेने विषे तमारा चेतनने शुभ जावमां प्रवर्त्तावो, दान पुन्य करो, धर्मकाममां सावधान रहो, अने सिंहासन उपर आप ( राजा ) ने बदले काष्टमय यनी मूर्ति स्थापन करो . " या योजना सर्व प्रधान तथा राजाए मान्य करीने ते प्रमाणे सघलो जोग कर्यो. पछी निमित्तियाना जणाव्या प्रमाणे सातमे दीवसे वीजली काष्टनी मूर्ति उपर पडी तेथी तेनो नाश थयो राजा बची गयो. सर्वत्र श्रानंद फेलायो. जय जय शब्द थयो. निमित्तियाने घणुं द्रव्य थापी तेनुं दलीप मटायें. सर्व लोक खुशी यता पोतपोताने उद्यमे वलग्या. आ वातमां सार ए ग्रहण करवानो बे के, बुद्धिबले करी, उद्यम कर्यो तेथी मरण कष्ट नष्ट ययुं. माटे उद्यम करवो. · ॥ उद्यम उपर बीजो ज्ञानगर्ज प्रधाननो प्रबंध ॥ एकदा राजा दरबारमां बेठो हतो, तेवामां एक निमित्तियो श्राव्यो. राजा पुब्धुं के, तद्दारा निमित्तशास्त्र उपरथी जोईने कड़े के थोडा समयमां कांई जाणवा जोग बनाव बनशे ? तेथे कयुंके, महाराज ! पंदर दीवसमां प्रधानने मत कष्ट पडशे. ते वात प्रधाने पण सांगली तेथी ते दरबारमाथी निमित्तियाने पातानी साथ लेईने घेर श्रव्यो नक्ति जुक्ति करी तेथे कष्ट पडवानुं कारण- निमित्त पुब्धुं निमित्तियो तेना वा पुत्रर्थी · Jain Educationa International · For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. कष्ट ने एम जणावी त्यांथी गयो. पली प्रधाने पुरुष प्रमाणे प. टारो करावी तेमां खावा पीवानो सर्व सामान पंदर दिवस पोहोंचे तेटलो जरावीने पोताना वडा पुत्रने बोलावी सघली बीनाथी वाकेफ करी ते पटारामां पेसवानुं कडं. पुत्र विनीत होवाथी पितानुं वचन प्रमाण करी पटारामां पेगे. प्रधाने तालां देने ते पटारो सेवक पासे उपनावी दरबारमाराजापासे जई कीg के,महारे माथे आपदा आवी तो संपदाने शुं करुं?आ महारी संपदा आपने त्यांमुकवा आव्यो बुं, ते हुकम करो त्यां मुकुं. राजानी श्राझाथीप्रधाने ते पटारो अंतेउरमां मुकावी तेनी कुंची राजाने सोंपीने कडं के, पंदर दिवस पनी उघाडजो. पठी जिनमंदिरे जई तेणे वीतरागना गुणनी स्तुति करवा मांडी. एम नित्यप्रत्ये प्रजुना गुणग्राम करतां पंदर दिवस थया त्यारे अंतेउरमां मुकेला पटारामांथी गेवी अवाज थवाने लीधे पटराणीनी वेणी प्रधानना पुत्रना हाथमां एवो सोर बकोर संनलायो. राजाये ते वात सांजली तेथी क्रोधारुण नयण करी सेवकने हुकम कर्यो के, प्रधानने पकडी लावो अने गरदन मारो. राजाना श्रादेशथी सेवको प्रधानने घेर गया. त्यां ते नही मलवाथी बेवट वीतरागने देहेरे जई प्रधानने पकडी राजा पासे लेई गया. राजा उपरागे थई (आईं जोईने ) बेगे. प्रधाने कह्यु के-महाराज ! पटारो मंगावो श्रने तालु उघाडीने जुओ- तेमां शुं ? राजाए पटारो मंगावीने तालु उघामी माहे जोयु तो तेमां प्रधानना वमा पुत्रने दीगे. तेना एक हाथमां वेणीपास अने बीजा हाथमां खड्ग तेमना जोवामां आव्युं. राजा विस्मय थयो. क्रोध चढ्यो हतो ते सम्यो. आ चर्चा श्राखा नगरमा फेलाई अने था कौतकरूप कार्य केम बन्युं ? ते विषे कांई निर्णय करी शक्या नहीं. केटलेक दिवसे त्यां एक ज्ञानी श्राव्या. तेमने ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग विषे खुलासो पुबतां तेमणे जणाव्यु के-"पाउले नवे प्रधाननी जे स्त्री हती ते मरण पामीने व्यंतरी थई , तेणीए प्रधानने कष्ट देवा माटे ए कयु हतुं. पण प्रधानना लाग्ये उद्यम करवाथी कष्ट विलय गयुं (नाश पाम्युं ), सुख थयु. माटे उद्यमने मुख्य जाणवो. ३७ ॥अथ दान विषे ॥ थिर नदि धन राख्यो तेम नाख्यो नजाए, इणि पर धन जोतां एव गत्या जणाए॥श्ह सुगुरुं सुपात्रे जेद दे नक्ति नावें, निधि जिम धन आगे साथ तेहीज आवे ॥३॥ नावार्थः- अव्य स्थिरतापणे न रहे, राखवाने अर्थे घणा उपाय करे तोपण अव्य अथिर होवाथी रहेतुं नथी, तेम अव्यने काश्नाखी देवाय नही, लक्ष्मीनी गति त्रण प्रकारनी बे. दान, नोग, के नाश. दान अने जोग, एतो पुन्यवंतने होय. ए बे प्रकार जो न होय तो अंते नाश थाय. माटे उत्तम जीव जे नक्तिनावथी सद्गुरु अने सुपात्रने विषे दान देवा विगेरेमा पोतानुं अव्य खर्चे ने ते आगे कहेतां परनवनेविषे निधाननीपेठे साथेश्रावे जे. ३ए ( हवे दानना अधिकारी कोण कोण थया ने ते बतावे )नल बल हरिचंदा नोज जे जे गवाए, प्रढ समय सदा ते दानकेरे पसाए॥श्म हृदय विमासी सर्वदा दान दीजे, धन सफल करीजे जन्मनो लाहु लीजे॥४०॥ नावार्थः- नलराजा, बलिराजा, हरिश्चंजराजा अने जोजराजा विगेरे जेनी जेनी हमेशां पोफाटतां सवारमा स्तुति गवाय बे, ते दानगुणतुं महात्म्य बे, माटे ए वात हृदयनेविषे विचा* बीजी प्रतमां 'सुगुरू' ने बदले 'सुगुण'. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २२३ रीने हमेशां ( यथाशक्ति) दान देवू, अने दान देवावडे धनने सफल करीने मनुष्यनवनो लाहो लेवो.४० . ॥ दानगुण उपर कर्णराजानो प्रबंध ॥ कर्णराजा घणा दानेश्वरी हता. कोई कारणवशात् ते बंदीखानामां पड्या हता. ते वखत तेमनी पासे कोई पण अव्यादि नहोतुं. एवी अवस्थामां होवा बतां दानगुणतुं पारखं जोवा माटे एक याचक स्तुति बोलतो बोलतो तेमनी पासे गयो. ते सांजली कर्णराजाए कह्यु के, था वेलायें तुं हुं आव्यो ? परंतु तुं नीराश जाय ते पण सारं नहीं ! एम विचार करी नजीकमा पत्थर पड्यो हतो ते मंगाव्यो. याचके ते लावी थाप्यो. तेवडे पोताना दांतमध्ये सोनानी रेख हती ते याचकने काढी पी. ॥अथ शील विषे ॥ ॥अशुन्न करम गाले शील शोना दिखाले, गुणगण अजुआले आपदा सर्व टाले ॥ जस नर बहु जीवी रूप लावण्य देई, परनव शिव होई शील पाले जिके ईधर जावार्थः- शील- खोटां कर्मने गाले डे, शोना देखाडे , गुणना समुदायने अजवाले ने अने सघलां संकटने दूर करे , तेमज वली जे कोई प्राणी शील पाले ले ते आ नवनेविषे जसवादी तथा दीर्घायुषी थाय ने अने रूप लावण्यपणुं पामेडे तथा परलवमां मोक्षप्रत्ये पामे . ४१ इण जग जिनदास श्रेष्ठि शीले सुहायो, तिम निरमल शीले शील गंगेव गायो॥ कलि करण नरिंदा ए समा बे जिकोई, परनव शिव पामे शील पाले तिकोई ॥४॥ . नावार्थः- आ जगतमां जिनदास शेठ सीलगुणे करी शोजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग पाम्यो, तेमज निर्मल शीलगुणे करी गंगेव कढेतां जीष्मपितानुं शील वखणायुं, वली कलिकालमां पण करण अने तेना जेवा बीजा जे कोई शील पालनार थया वे अने थशे ते परनवे मोक्ष पामशे. ( शीलनो महिमा म्होटो वे, तेथी संग्राम सोनीनी परें या जवमां जस प्रतिष्ठा पामे, वचन पण प्रमाण थाय. माटे शील पालं . ) ५२ ॥ शील पालवा उपर सुदर्शनशेग्नो दृष्टांत ॥ सुदर्शन शेवने या राणीए तेना उपर मोहित थवाथी कपटकला केलवी पोताने महेले एकांतमां तेडाव्यो, घणा हावजावसहित तेनुं शील खंडवाना उपाय कर्या परंतु ते ( सुदर्शन शेठ) चल्यो नही. बेवढे बलात्कारे पूरेपुरुं कष्ट पाकवानी ध मी पीने जोगविलास करवानुं कथं त्यारे पोते पुरुषातनमां नयी एम कही बुटी नीकल्यो. पण शील खंडन कर्यु नहीं. त्यारपठी केटलोक समय वीत्याबाद नगरमां महोत्सव हतो. लोकनां वृंद शृंगार सजी उद्यानने विषे जता हता. अजयाराणी पोतानी सखि साथे गोखमां बेटी हती. ते रस्ते थई समान रूपवाला व युवान थोमी अस्वारी सहित जता तेना जोवामां याव्या. अजयाराणीए तेमने नहीं उलखती होवाथी सखि प्रत्ये पुj के ए कोना पुत्र बे ? सखिए कयुं के, ए तो मनोरमा स्त्रीनी कुखने विषे उत्पन्न थयेला सुदर्शनशेठना पुत्र बे. राणीए कयुंके, छारे मी ! ए तो पुरुषातनमां नयी अने तुं ए शुं बोली ? सखिए कीधुं के, हे बहेन ! एणे तने वंची (बेतरी ) ! खरेखर एनाज ए पुत्र बे. ए वातमां तुं कांई पण संदेह राखीश नहीं. हुं तेमने सारी पेठे पीठानुं कुं. राणी श्रावात सांजली stain a ra विचारका लागी के, ए मने बेतरीने चाल्यो गयो बे, तो हुंज खरी ! के, एने विपत पाहुं ने कालधर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १२५ ( मरण ) पमाकुं. पठी ते त्रुटी खाटली उपर मस्तकना केश बुंटा मुकी पोताने हाथे दील वलुरी नाखीने चिंतातुर चढेरे आलोटती पमी. थोमी वारे राजा त्यां श्राव्या, तेमणे राणीने श्रमणडुमणी घालोटती देखीने पुक्युं के, याज याम केम सुती बुं ? राणी बोली के, कांई कहेवाय एवं नथी. राजाए आग्रह करी समसगरा देई पुग्यं. त्यारे कयुं के, हे स्वामी ! हवे या नगरमां रहेवाय एवं नथी. राजा कहे के, एवकुं शुं बे ? तेनुं कारण तो मने कहे ? जे दुःख यतुं होय ते अगर तने कोईए नवी होय तो ते पण कहे ? बात कह्या विना उपाय न थाय, माटे जे होय ते जलदी कहे ? तेनो उपाय करी तहारुं दुःख दूर करूं. पठी राणीएक के, " महाराज ! याप ज्यारे रयवाडी ये पधार्या, त्यारे सुदर्शनशेठे महेलमां श्रावीने महारी शीलनी वामी viगवाने घणो प्रयत्न कर्यो. घणाज बलात्कारे करीने पण में महारो याचार राख्यो. परंतु ते वखतनी महारी काया कंपे बे, हवे हीं रहेवाने पण महारुं मन मानतुं नथी. राजाए ते सांजलीने तुरतज सुदर्शनशेठने पकडी लाववा ध्वंस अर्थात् लश्करी तुकडी मोकली. तेने पकमी लाव्या एटले पाधरो स्मशाननेविषे शूलीए चडाववा मोकली दीघो. लोकमध्ये दादाकार थयो. शेवने शूलीए चढावतां तेना अखं शीलगुणे करी शासननुं रखोपुं करनार शासना देवीए घ्यावीने तेनो महिमा aaraar सारु शूली जांगीने सिंहासन कर्यु. ते अधरनुं धर देवतानुं विमान थ रहे तेम रधुं वली शेठना उपर फूलनी वृष्टी थई. देवतानी आकाशने विषे वाणी यई के, शुद्ध शीलना धरणहार सुदर्शनशेवने श्रावो उपद्रव्य कस्यो बे, तेने हुं शिक्षा देईश. याकाशमां थतो यावो घोष सांजलीने राजा सहित नगरना लोको जयजांत थया थका तेनी पासे यावी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग विनयसहित पगे लागीने तेने हाथी उपर बेसाडी वाजतेगाजते म्होटे मंडाणे नगरमां लेई आव्या. तेना गुणग्राम करवा लाग्या. माटे शीलनो प्रजाव वर्णवी न शकाय तेवो बे. एना गुणनो पार नथी. माटे शुद्ध शील पालवं. ४२ ॥शीलगुण उपर गांगेयनो टुंक हेवाल ॥ शांतनुराजानी गंगा नामनी राणीनी कुदीने विषे उत्पन्न थयेला गांगेयकुमारे पोताना पितानी श्छा पूर्ण करवा माटे माजी पासे मागणी करी कन्या आपवानुं कडं. मालीए तेने राज्य करवायोग्य पाटवी कुमर ते पोते होवानुं कारण जणावी मागणीनो अनादर कर्यो. गांगेये राज्य न ले, अने पोताने प्र. जा पण न थाय तेटलामाटे ब्रह्मचर्य पालवानुं पण, पण लीधुं. पितानो मनोरथ पूर्ण कर्यो. पोते नीष्मकर्म कर्यु तेथी लोकमां "जीष्मपिता” कदेवाया. बालपणथी ब्रह्मचर्य पालनार ए अतुल्य बली पांमव कौरवना युद्धमां घायल थया पनी दीदा अंगीकार करी देवगति पाम्या बे. माटे शीलवत पालवू के जेथी मनकामना सिफ थतां बेवट मोदसुख मलवाने मुश्केल पडतुं नथी. ४५ ॥ अथ तपविषे॥ तरणि किरणथी ज्यू सर्व अंधार जाए, तपकरि तपथी त्यूं उख ते दूर थाए ॥ वलि मलिन थयूं जे कर्मचंडाल तीरे, तिम तनुते पखाले ते तपस्वर्ण नीरे४३ नावार्थः-जेम सूर्यना किरणथी अंधकार नाश पामे श्रने उद्योत थाय, तेम ए तपथी जे कुःख होय ते नाश पामे, वली कर्मरुपीया चंडालनी परें मेला थयां जे कर्म, तेने पखालवाने, सोनावाणी जेम कायाने पखालवाने के एटले जलमध्ये सोनु नाखीने अबोखो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. २२७ नाखवाथी जेमकायानी श्रानडबेट टले तेम तपरुपी सोनावाणीथी अर्थात् तपकरवाथी कर्मर्नु अपवित्राईपणुं मटे माटेतप करवो. तपविण नवि थाए नाश कर्म केरो, तपविण न टले ते जन्म संसार फेरो॥ तप बल लदि लब्धी गोतमे नंदिखेणे, तप बल वपु की, विष्णु वैक्रीय जेणे ॥४॥ जावार्थः-तप विना मागं कर्मनो नाश न थाय, तप विना जे जन्म जरा मरण तेनो फेरो न मटे, तपना प्रजावथी गौतमखामी तथा नंदीखेण मुनिने लब्धी उपनी, अने विष्णुकुमारे तपना प्रजावथी वैक्रीय ( लाख जोजनy) रूप कयु. ४४ ॥ तपना प्रजावे लब्धी उपार्जन करनार गौतमखामीनो प्रबंध ॥ श्री महावीरखामी लगवाने एक वखत देशना समये का जे-पोतानी लब्धियें करी अष्टापद तीर्थे जेजात्रा करे ते सिकिने पामे. ते वखत श्री गौतमस्वामी, जगवंतनी आज्ञा लेई जात्रा करवा माटे गया. ज्यारे अष्टापद पर्वतनी नजीक श्राव्या त्यारे त्यां पागल पडाव नाखी रहेला पंदरसे त्रण तापस तेमने जोर मांदोमांहे विचार करवा लाग्या के तप करवाथी थापणुं शरीर कृश थयेनुं ने तोपण आपणे था श्रष्टापद पर्वत उपर चढीने जात्रा करी शकता नथी, तो था हाथी जेवी कायावाला शी रीते चढी शकशे ? गौतमस्वामी सूर्यना किरण अवलंबीने चढ्या. ते जोई तापसे धार्यु के, खरेखर लब्धिवंत जणाय नेमाटे ए ज्यारे उतरीने हेग श्रावशे त्यारे श्रापणे तेना चेला थश्शुं तो आपणुं काम थशे. गौतमस्वामीए, जरत महाराजाए जरावेला सुवर्णना चतारि श्रह दश दोय ए अनुक्रमे बीराजमान करेला चोवीसे तीर्थकरना बिंबने जुहारी-दर्शन करीने जावस्तव चैत्यवंदन कयु. जगचिंतामणीनी आखी स्तुति करीने पनी प्रासादनी बाहिर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग श्रावीने बेग. एवामांवयरस्वामीना जीव जे तिर्यक जंजक देवता हतो ते त्यां श्राव्या. तेने प्रतिबोध पमाडीने गौतमस्वामी नीचे श्राव्या. सघला तापसे आवीने तेमने पगे लाग्या. पड़ी ते तापसोने साथे लेई चाल्या जाय डे एवामां मार्गनेविषे एक गाम आव्युं. त्यां बागल गौतमस्वामीये तापसाने पुब्युं के, तमारे नोजन करवानी शी श्वा डे ? तेर्जए कहूं के, स्वामी ! पंचामृत नोजननी श्छा . ते तापसनी श्छा जाणीने पोते वोहोरवा गया. ए वखते ए गाममा एक गृहस्थने घेर खीर नीपजावेली हती, तेनेज घेर श्राव्या. गृहस्थे पण नाव सहित खीर वोहोरावी. पडघो जरीने खीर लाव्या. तापस विचार करवा लाग्या के, थाटला एक पम्घे तो सौने कपाले चांदलो करशे तोए पण पूरो नहीं थाय! तो श्रापणीनूख केम नागशे ? गौतमस्वामीये कडं के, हे महानुनावो! कोगला करो. पडी त्रपणी पाणीये सर्वने कोगला कराव्या. त्यारपली पारणाने अर्थे वेसवार्नु कहेवाथी पांचसेंएक पांचसेंएकनी त्रण पंक्ति करी बेठा.गौतमस्वामीये "अखीणमाणसीलधी ” ए मंत्र जणी खीरना पडघाम अंगुगे मुकी सर्वने खीर प्रीसवा मांडी. सर्वे तापसोए आहार करवा मांड्यो. लब्धिना प्रनावथी सर्वने खीर पूरी पमी. सारी पेठे पारणां कां. वली पुज्यु के, काई जोईये ? सौए ना पाडी एटले अंगुठो काढी लीधो. पनी जेटली खीर रही हती तेटलीन पोते पारणुं कयु. श्राहार करतां शुज नावना नावतां थकां एक पंक्तिमां बेठेला पांचसे ने एक तापसने केवलज्ञान उपन्युं. त्यांथी वली पागल चालतां तापसे पुब्युं के, स्वामी ! तमे क्यां पधारशो ? गौतमस्वामीये कयु के, अमारा गुरु पासे जश्शुं. तापस कदे के, स्वामी! तमारा ते गुरु केवा ? ते वखते गौतमस्वामीये पोताना जेवा गुरुना गुण सत्तामांहे जे तेवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परंतु तेमणे समावसरणमा पालन जो तो वे नाषान्तर सदित. १शए ज तेमना मों आगल कहेवा मांड्या. अशोक वृक्ष पाठ महाप्रातिहारज तद्रूप जे बाह्यलक्ष्मीवंत , वली देवता सेवामां हाजरना हाजर , अणहुते पण कोडिगमे देव सेवा करे , त्रण जुवनना नायक , चामर बत्र सिंहासनादिके विराजीत बे. एवा वर्णव सांजलतां वांत पांचसे ने एक तापसने केवलज्ञान उपन्यु. त्यारपती आगल जतां समोवसरण दी. ते वखते तापसे पुब्युं के, स्वामी ! आ शुंडे ? गौतमस्वामीए कह्यु के, एतो अमारा गुरुर्नु समोवसरण बे. ते सांजलीने बाकी रहेला पांचवें ने एक तापसने केवलज्ञान उत्पन्न थयु. एवी रीते सर्वे तापसो केवली थया. पनी गौतमखामी कहे के, जे रीते हुँ गुरुने वांडं तेज प्रमाणे तमे पण वांदजो. तापसोए कह्यु के, वारु स्वामी ! परंतु तेमणे पोताने केवलज्ञान उत्पन्न थयार्नु जणाव्युं नहीं. हवे प्रजुना समोवसरणमां गया त्यारे गौतम स्वामीये प्रजुने प्रदक्षिणा देई वांद्या अने पाउल जोयुं तो एक पण तापसने दीगे नही. पड़ी केवलीनी संप्रदायमां तेमने बे. ठेला जोई कदेवा लाग्या के, हे महानुनाव ! तमने में नहोतुं कां? जे हुं वांडं तेम तमे पण प्रजुने वांदजो ! तमे त्यां केम जई बेग ? ते वखते जगवंते कह्यु के, हे गोतम ! केवलीनी आशातना म करो. ए सघला केवली . त्यारे गौतमस्वामीये जगवंतने पुब्युं के मने केवलज्ञान उपजशे के नही ? प्रजुए जणाव्युं के तने डे ( थोमी उम्मर बाकी रहेतां) उपजशे, एटले तुं अने हुं बरोबर थश्शुं. ते सांजलीने गोतमस्वामी हर्षवंत थया. आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो डे के, गौतमस्वामीने तपस्या करवाथी घणी लब्धि उपजी अने तेवडे मनमानी जात्रा करी शक्या. तथा तापसोने जमाड्या शक्या. माटे तप करवो के जेथी लब्धि उपजे अने मागं कर्म पण त्रुटे. ४४ ...... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥ तपना प्रनाव उपर बीजो नंदीखेण मुनिनो प्रबंध ॥ राजगृही नगरीमां श्रेणिक राजाने नंदीखेण नामे पुत्र हतो. तेने पाली पोषी म्होटो करी यौवनावस्था श्रावतां पांचसो कन्याउँ साथे पाणिग्रहण कराव्युं हतुं. एक वखत राजगृही नगरीना उद्यानने विषे वीरप्रनु श्रावी समोसर्या. तेमनुं आगमन सांजली श्रेणिकराजा सपरिवार वांदवा श्राव्या. वांदीने देशना सांजलवा बेग, तेमां नंदीखेण प्रतिबोध पाम्या. घेर थावीने नंदीखेणे मावित्र पासे दीक्षा लेवानी आज्ञा मागी. मावित्रे घरमा राखवा माटे घणा दृष्टांत कही समजाव्यो, पण तेमनुं कहेण नहीं मानतां उपरवट थई तेणे वीर प्रनु पासे श्रावीने चारित्र आपवानी विनती करी. ते वखते आकाशे वाणी थई के, हजी एने नोगनो उदय बे. जगवंते पण एमज कडं. ते नहीं मानतां तेणे विचार्यु जे मुजने नोगकर्म शुं करशे ? बता नोगने गर्नु , तो ए शुं करनार ने ? एम धारीने उजमाल थई तेणे प्रजु पासे दीक्षा लीधी. पठी अरसविरस खुखो सुको आहार लेवा लाग्यो अने तप पण विशेष करवा मांड्यो. तेम उतां काम प्र. दीप्त थतो गयो. तेथी तेमणे (नंदीखेणे ) ऊंपापात करवा मांड्यो, त्यारे देवताए तेनुं निवारण कर्यु. ऊंपापात करवा दीधो नही. बेवट म्होटी म्होटी तपस्या करतां शरीर महा रांकडं (शुष्क ) थयु. एकदा प्रस्तावे राजगृही नगरीमा निदार्थ अ जाणतां गणिकाने घेर जई चढ्या. त्यां धर्मलान देश उन्ना रह्या. गणीका कहे पधारो, अहीं रांकडीया शरीरवंत तुमथी शो उघाम ? अहीं तो अर्थनोज लान जोईये! एवं तेनुं वचन सांजली मनमां अमख ( अहंकार ) आणी त्यां पागल पडेढुं डाननुं तरणुं लेईने ते मुनि बोल्या के- “महारा तपनी शक्तिनो प्रजाव होय तो सोनईयानो ढगलो थजो-" श्राम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तरसहित. १३१ कहेतां तत्काल तेमना शरीरप्रमाणे उंचो साडा बार कोड सोनश्यानो ढगलो थयो. पूर्वे (प्रथम ) गणीकाए वचन कह्यां सीला, पडी मुनिये करी देखाड्या पीला. ते देखीने गणीका चमत्कार पामी. मुनि त्यांथी पाला वलवा लाग्या एटले फट जश्ने गणीका श्राडी उनी रही अने बेडो पकडीने बोली के-अरे स्वामी! अम अबला उपर रीस धरीने केम जाउँ हो ? तमारे जq होय तो तमारो ए माल दे जाउँ, के अम साथे रही जोगवो. एहवे ( तेवेला) आकाशे वाणी थई जे- तमारे एनीज साये बार वर्ष जोगनो उदय जे ते नहीं मिटे! एवं सांजली नंदीखेण उघो मुहपत्ति उंचे वलगामीने त्यां (वेश्याना घरमां) रह्या. परंतु आत्माने विषे शुद्ध दर्शन खरेखलं .अत्यंतरना गुण निर्मल बे. जेनी शुद्ध दशा ले ते ए बाह्यकारण निमीत्तकारण अनुनव्या विना आत्माने निर्मल न थाय ( न करी शके ) एवी जावदिशा श्राणीने नंदीबेणे प्रतिज्ञा करी के, नित्य नित्य दश प्राणीने प्रतिबोध पमाडवा. एवी रीते बार वर्षसुधी गणीकाना घरमां तेनी साथे लोग जोगवता रह्या उतां प्रतिज्ञा प्रमाणे बेतालीस हजारने प्रतिबोध देई प्रनु तथा थिवीर पासे मोकली दीदा लेवरावी. एम करतां बारे वर्षे जोगकर्म पूरां थयां त्यारे नव जणने प्रतिबोध्या बाद दशमो एक सोनी मल्यो. ते कहे के, तमे सर्वने प्रतिबोध यो बोअने पोते तो कामक्रीडा करोगे! तमे केम प्रतिबोध पामता नथी ? तेवा समयनेविषे रसोई तैयार थयेली होवाथी गणीका वाट जोई रही हती के हमणां आवशे. एम वाट जोतां जोतां घणी वार थई तेथी रसोई टाढी थई गई. एटले गणीका तेमनी पासे श्रावी अने नोजनार्थ पधारवानी विनती करी. नंदीखेणे कयु के, श्रावीये बीये! गणीका पानी गई.नवी रसोई तैयार करी.जमवाने काजे श्राकली थतीगणीकाए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग बेत्रण वखत माणसने तेडवा सारु मोकल्या तो पण ते श्राव्या नही त्यारे वली पोते श्रावीने कयु जे-स्वामी उठगे. मुजने नूख घणी लागी बे. असुर घj थयुं वे. नंदीखेणे कयु के- आ दशमो प्रतिबोध पाम्यो नथी माटे केम उठगय? गणीकाये कांश्क थाक्रोश अने कांईक शांत गुण एटले मध्यस्थ वचने करी कडं जे- ए कामी पुरुष न समज्यो तो चाट्युं ! हवे एने ठेकाणे तुमेज दशमा, एमज करी जाणज्यो; माटे उठगे, लोजन करीये. एवं वचन सांजलतां तुरतज ते उव्या अने साप जेम कांचलीने तजे तेम वेश्याने तजीदेई उघो मुहपत्ति लेई वीरप्रजुनी पासे श्रावीने फरी चारित्र लीधुं. आत्मार्थ साध्यो.थहीं कहेवानुं तात्पर्य एटलुं ने जे- एक तृण मात्र ताणवाथी सोनश्यानो ढगलो थयो ते तप, महात्म्य जाणवू. माटे आदर सहित तपश्चर्या करवी. ॥तपना प्रजावे लाख जोजननुरूप करनार विष्णुकुमारनी कथा॥ उजेणी नगरीमां धर्म नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने नमुंचि नामे मिथ्यादृष्टि प्रधान हतो. एकदा प्रस्तावे सुवृताचार्य पांचसे मुनीना परिवारे उजेणी नगरीए पधार्या, सर्व नगरीना लोकसहित राजा तेमने वांदवा गयो. नमुंचि पण त्यां श्राव्यो. उद्धतपणे तेणे गुरुने पोतानी साथे वाद करवानुं कयु. वादमां एक तुझके तेने जीती सीधो. ते वखते शासन देवताए तेने थंजाव्यो. प्रजाते लोको तेने देखीने निउवा लाग्या. एटले लजा पामी त्यांथी नीकलीने ते हस्तीनागपुरे गयो. त्यां पद्मोत्तर राजा राज्य करे जे. तेने एक ज्वाला नामे समकिती अने बीजी लक्ष्मी नामे मिथ्यात्वी, एम बे राणी हती. ज्वाला राणीने वि. ष्णुकुमार श्रने महापद्मकुमार नामना बे पुत्र हता. एक वखत ज्वालादेवीए जिननो रथ अने लक्ष्मीदेवीये ब्रह्मानो रथ कराव्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. १३३ ते बन्नेना स्थ गाममा फेरवतां सामा सामी मल्या त्यारे तेमने मांहोमांहे विवाद थयो. पठी राजाये जे दीशाथी रथ लाव्या हता तेज दीशाए पागा वाल्या. ते देखीने महापद्मकुमार रीसाईने परदेश चाल्यो गयो. देश विदेश फरतां घणी राजझद्धि मेलवी वटे चक्रवर्तिपणुं पामी ते पालो पोतानी नगरीये श्राव्यो. नमुंचि पण हस्तीनागपुरमां आव्या पनी त्यां केटलोक वखत रही परदेश गयो हतो, ते फरतो फरतो फरी त्यां आवीने महापद्मकुमारने मढ्यो. तेणे नमुंचिने पोतानो प्रधान बनाव्यो. पद्मोत्तर राजाये विष्णुकुमारसहित राज्य बांडीने सुवृताचार्य समीपे चारित्र अंगीकार कयु. महापद्मचक्रवर्तिए पोतानी मातानो,जे रथ फेरववानो मनोरथ हतो ते पूर्ण कर्यो. विष्णुकुमार मुनी घणी तपस्या करवा लाग्या. आकरा तपने प्रनावे ते मेरुपर्वत उपर जई कायोत्सर्गे रहेताहता. एम तप करतां न हजार वर्ष थयां. एहवे एकदा सुवृताचार्य साधुना परिवार सहित हस्तीनागपुरेचो. मासु रहेवा माटे श्राव्या. ते सांजलीने नमुंचिये विचार्यु जे-एणे (सुवृताचार्ये)मने ब्रष्ट कर्यो हतो माटे एने हणुं. पड़ी तेणे चक्रवर्ती पासे पूर्वे तेने श्रापेलो वर मारे राख्यो हतो तेनी याचना करी. चक्रवर्तीए तेवर पूर्ण करवायूँ कहेतां नमुंचिए त्रण दीवसनुं राज्य माग्यु. ते राज्य देई राजा मोहोले गयो.नमुंचि राजा थयो. एटले शेठ शाहुकारादि प्रजावर्ग तेमज सर्व दर्शनी (बीजा बधा धर्माचार्यो ) तेमने मलवा आव्या, पण सुवृताचार्य आव्या नही. राजाए कहेवराव्यु के, " तमे अमने मलवा न श्राव्या माटे त्रण दीवसमां अमारी सर्व पृथ्वी मुकीने चाव्याजज्यो.महारा राज्यनी हदमा रहेशो तो तमने मारीश.” एवं सांजलीने आचार्ये संघने मुखे कदेवराव्युं जे-" साधु मलवा न आवे, अने साधुथी चोमासामां न जवाय." परंतु कोनुं वचन तेणे ( नमुंचिए ) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग मान्युं नही. पी आचार्यमहाराजे विष्णुकुमारने मेरुपर्वत उपरथी तेमाव्या. तेमणे यावीने गुरुने वांद्या. गुरुए नमुचिनी वात कही संजलावी. विष्णुकुमारे महापद्म पासे जईने कं जे, या साधुने उपसर्ग केम करो हो ? तेणे कीधुं के, हूं वचननो बांध्यो तुं. पठी नमुचि पासे जईने तेने घणो घणो समजाव्यो पण ते न समज्यो अर्थात् पोतानो हुकम नहीं फेरवतां साधुने त्यांथी चाव्या नही जशे तो मारी नाखवामां आवशे एम ज्यारे श्राग्रहपूर्वक कयुं त्यारे विष्णुकुमारे कयुं के, " कांई पण रहेवाने भूमी दे बे ? तेवारे त्रण पगलां भूमी दीधी. विष्णुकुमारे तपनी शक्तिवडे लाख जोजननुं रूप करीने एक पग पूर्वे ने एक पग पश्चिमे मुकीने नमुं चिप्रत्येकयुं जे - हे नमुचि ! त्रीजा पगनी अर्थात् त्रीजु पगलुं मुकवाने जमीन आप ? नहींतर तुं सुई रहे. नमुचि बीजी कांई जमीन नहीं होवाथी नाईलाजे सुतो एटले तेनी पीठ उपर त्रीजो पग मुक्यो जेथी ते पृथ्वीमां पेसी गयो. एरीते विष्णुकुमारे सर्व उपसर्ग समाव्यो. तपना प्रजावी लब्धि पाम्या तेथी लाख जोजननुं रूप करी शक्या श्रने साधुनो उपसर्ग टाल्यो, माटे तप म्होटो बे. तपथी घणा तस्या ने तर माटे तप करवो ए घणुंज उत्तम बे. ॥ अथ जावनाविषे ॥ मनविण मिलवो ज्यूं चाववो दंतदीणे, गुरुविण जावो ज्यूं जीमवो ज्यूं लूणे ॥ जसविण बहु जीवी जीव ते ज्यू न सोदे, तिम धरम न सोदे जावना जो न दोहे ॥४८॥ जावार्थ : - जेनी साथे मन जांग्युं तेनी साथे मल्या ते शा कामनुं ? कांई कामनुं नही. वली दांत तो पमी गया अने चाववानो स्वाद करवा जाय ते पण नकामुं जाणवुं, गुरु विनानुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. १३५ जे ज्ञान नण, ते पण नकामुं जाणवू, वली मीग वगरनुं जोजन जमतां खाद न पामीये, तेम नाव विना जे क्रिया अनुष्ठान करवू, ते पण निष्फल जाणवू. तेनुं फल मले नही. वली जस (कीर्ति) वगर बहु जीवनारो माणस जेम शोना न पामे तेम नाव विनानो जे धर्म करवो ते पण न शोने. माटे नावना जे गली जाववी ते सर्वथा प्रकारे कांईपण काम नावे. एटला सारु शुरु नावना सहितज धर्म कह्यो बे. जरत नृप ईलाची जीरणश्रेष्ठि नावे, वली वलकल चोरी केवल ज्ञान पावे ॥ बलनद हरिणो पंचमे स्वर्ग जाये, इदज गुण पसाये तास निस्तार थाए ॥४५॥ नावार्थः-नावे करीने अर्थात् नावना जावतां जरत चक्रवर्ती तथा ईलाची कुमार केवलज्ञान पाम्या तथा जीरणशेठ देवलोकनां सुख पाम्या, वली वलकलचीरी पण केवल ज्ञान पाम्या अने बलजमुनी तथा हरण पांचमे देवलोके देवपणे उत्पन्न थया. अने एज गुण वडे अर्थात् नावना नाववाथी तेमनो निस्तार थयो अने थशे अर्थात् मोद गया अने जशे. ॥नावना नाववा उपर जरत चक्रवर्तीनो प्रबंध ॥ जरत चक्रवर्ती ब खंम पृथ्वी साधी दिगविजय करीने घेर आवीने राज्यलीला नोगवता थका एकदा श्रारीसानुवन (काचना मेहेलमां) बेठा हता. ते वखते मात्र तेमना हाथनी एक अनामिका ( टचली) अांगलीमां बाजरण ( वींटी) नहीं पहेरे होवाथी ते देखीने विचारवा लाग्या जे याांगली सिवाय बधुं शरीर शोजायमान लागे,तेनुं कारण तेमां आचरण पहेरेलु नथी एज जणाय . तथापि बानूषण विना तमाम काया केवी देखाय डे ए जोवू जोईये ! एम विचारी अंग उपरनां सघलां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग भूषण उतार्यां, तो शरीरनी शोना तदन जोवामां श्रावी नही, अर्थात् आभूषण विनानुं अंग सारुं देखायुं नही. ते वखत ए - नित्य जावनामा चढ्या, रूपक श्रेणी मांनी घाती कर्म खपावीने केवल ज्ञान पाम्या. एटले शासन देवताये साधुनो वेश थाप्यो. त्यां विहार कर्यो त्यारे तेमनी साथे दस हजार मुगटबंध राजा नीकल्या. घणा दीवस पृथ्वी पावन करी, घणा जीवने प्र तिबोध पमामी ष्टापद तीर्थने विषे अघातीयां कर्म खपावीने अनंतचतुष्टय थया अर्थात् जरत चक्रवर्त्ती मोक्षप्रत्ये पाम्या. ए अनित्य जावनानुं फल जानुं. ॥ जावना जाववा उपर बीजो एलाचीकुमारनो प्रबंध ॥ एलावर्धनपुर नामना नगरने विषे ईन्य नामे व्यवहारियानो पुत्र एलाचीकुमार नामनो हतो. अनुक्रमे म्होटो यतां ए एलाचीकुमार बोहोतेर कलामां प्रवीण थयो. मातापिताने ते अति वादालो हतो. एकदा ए नगरमां नाटकीया श्राव्या. तेनी पुत्री प्रत्ये जोईने एलाचीकुमार व्यामोह पाम्यो. तेथे नाटकीयाने कधुं जे- तहारी पुत्री मने परणाव. नाटकीयो कहे के, मारी न्यातिविना पाणीग्रहण न करीये अर्थात् न्याति सिवाय बीजाने मे कन्या थापता नथी. पठी नाटकीयाने ध न घणी लालच दीधी त्यारे बेटे तेणे कधुं के, "परणं होय तो मारा जेला यावो, अमारी ( नाचवानी ) कला शीखोने कोईक राजाने रीऊवी धन लावो, तो तमने कन्या परणावीये." पढी एलाचीकुमारे पोताना मातापिताने क जे - हुं तो ए नाटकीयामां रहीश ने एनो वेश यादरीश. माटे मने आज्ञा श्रापो, के जेथी हुं तेनी पुत्री परशुं मातापि - ताये क के, हे पुत्र ! एनाथी पण अधिक स्वरूपर्वत कन्या तने परणावीशुं. पण एलाची कुमारे तेमनुं कहेतुं न मान्युं श्रने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १३७ नाटकीया साथे चाली नीकट्यो. तेमना नेगो रही नाचवानी स a कला शीख्यो. पठी ते नाचवामाटे जवा लाग्यो. एम करतां करतां एक वखत बेनातट नगरने विषे तेज गया. त्यांना राजाने मल्या. राजाए नाटक करवानी श्राज्ञा श्रापी. राजासहित सर्व पुरजन जोवा श्राव्या. एलाचीकुमारे वांस रोपीने नाटक करवा मांड्यो. नाटकणी ढोल वगामवा लागी राजा तेनी खूबसुरती जोई मोड़ पामी मनसाथे विचारवा लाग्यो के, जो या नाटकी यो वांस उपरथी पडे छाने मरण पामे तो हुं ए नाटकणीने परशुं डुरध्यानमां राजा कृष्णलेश्याना घरमां पड्यो. एलाचीकुमारे वांस उपर अधर नाची सर्व लोकनां मन रीऊव्यां. सर्व खुसी थया ने हर्ष पाम्या थका कड़ेवा लाग्या के, घणांए नाटक जोय, पण या नाटकना समान पृथ्वीमां बीजो आपणे दीगे नथी. एलाचीकुमारे नाटक करी वांस उपरथी देवे उतरी राजाने मुजरो कर्यो. त्यारे राजाए कयुं जे- हजी उत्जो शुं थई रह्यो बे ? घणी वेला थाय बे, श्रमे खोटी थईये बीये, वांस उपर केम चढतो नी ? तेवारे वली ढीगां ढीगांग, एम ढोल वाह्यो, छाने जे बीजा राजार्जए दान आपेलां दतां तेमनां गुणानुवाद गातां ते बीजी वार वंशाग्रे चढ्यो. लोक सर्व आश्चर्य पाम्या. पण राजा तो, ए क्यारे पडीने मरण पामे, एवीज राह जोई बेठो हतो. वली बीजी वार वांस उपरथी उतरीने राजाने मुजरो करी सन्मुख उजो रह्यो. त्यारे पण राजाए तेहज जवाब दीघो. तेथी एलाची कुमारादि नाटकणी प्रमुख सर्व लोक चमक्याने मनमां विचारखा लाग्या के, राजानी द्यानत बगडी दीसे बे. वली राजाना श्रादेशे ते त्रीजी वार वांस उपर चढ्यो . ते वखत नाटकणी पोताना मनसाथे विचार करवा लागी के, जू तो खरा ! ए राजा साहुकार वख्तावर कदेवाय १८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग बे, तेम बतां तेनी धारणा खोटी मालम पडे बे. महारो स्वामी महारे माटे एटलुं बधुं दुःख सहे बे माटे परमेश्वर करे ने ए महारा जतरनी आशा पूरी पडे तो घणुं सारुं ! एवामां वांस उपर चढ्या थका एलाचीकुमारनी नजर नगर मध्ये एक व्यव - हारीयाना घरमां तेनी स्त्री सिंहकेसरीया मोदकनो थाल जरी साधु ने वोहोरावती हती तेना उपर पडी. घणो आग्रह करीने ते स्त्री साधुने मोदक लेवानुं कहती हती. पण साधु ते वोहोरता नथी. एवं जोईने एलाचीकुमार अनित्य जावनाये चढ्यो. ते जावना जावत जावतां घातिकर्मनो दाय करी ते केवलज्ञान पाम्या. देवताए तेनो छव कर्यो. राजा उठीने पगे लाग्यो. नाटकणीये चारित्र लीधुं. एलाची कुमार मो गया. माटे शुन नाव प्रगट थाय तो नावनामांज लान घणो जावो. जाव रुमो बे, मुख्य जावना विना कांई उद्धार न थाय. ए एलाचीकुमारनो संबंध संक्षेपमात्र को. आागल तो घणो संबंध बे ते बीजा ग्रंथोथी जाणी लेवो. ॥ जावना जाववा उपर त्रीजो जीरणशेग्नो प्रबंध | श्वेतांका नगरीने विषे बद्मस्थावस्थाये श्री महावीर स्वामी चोमासी तपे रह्या हता. त्यां जीरणशेठ नित्य नित्य सवारे ज इने प्रभुजीने वांदीने विनती करतो हतो के स्वामी ! महारे घेर पधारो, जात पाणीनो लाज देज्योजी. प्रभुजी प्रत्युत्तर देता नहोता, तेथी उपवास हशे एम धारी जीरणशेठ पोताने घेर जतो. चोमासी तप पूर्ण थतां पारणाने दिवसे ज्यारे शेठे जगवंतने वांदीने विनती करी त्यारे वर्त्तमान जोग कद्देवाथी ते आज तो नक्की आवशे एम धारीने घेर गयो. पढी पोताना घरनी खडकीए जो रही वाट जोवा लाग्यो, जे हमणां प्रभुजी पधारशे. एम उजो जो जावना जावे बे. निरमोही प्रभुजी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. १३ए तो अभिनव शेठने घेर गया, के जेने धर्म उपर तेवी रुची नहोती. तेणे नीखारी जाणीने घोमाने वास्ते निपजावेला अडदना बाकला प्रजुजीने अपाव्या. ते प्रजुजीये वोहोर्या, एटले आकाशे देवउंछनिनो शद्ध थयो. जीरणशेठे ते सांजत्यो अने जाणवामां आव्यु के, प्रजुजीए थनिनव शेउने घेर पारj कयु. ते वखत नावनी वृद्धि हती ते खंमाणी. पूर्वे प्रजुनी वाट जोई नावना नावतां बारमा देवलोक सुधी रुपक श्रेणीये चढ्या हता. एवं जो अंतर्मुहुर्त ध्यान अर्थात् नावनाथोमो समय वधारे रही होत तो मोद पामत. परंतु देवउंछनि सांजलीने ते ना. वना तुटीगई तेथी नावनी वृझिनो बंध पड्या मुजब जीरणशेठ बारमे देवलोक गया.माटे नावना ए सर्वथी प्रधान एटले म्होटी ने. ॥ नावना लाववा उपर चोथो वलकलचीरीनो प्रबंध ॥ पोतनपुर नगरमां प्रसन्नचंड राजा राज्य करतो हतो. तेनो नाई घोडेखार थई क्रीडा करवामाटे उद्यानमा जतां आडे मार्गे चढी जवाथी वनमां घणोज पूर नीकली गयो. ते घेर न श्राव्यो तेथी राजाये तेनी घणी शोध करावी पण कोई नाल मली नहीं. राज्यकुमार जतां जतां तापसने आश्रमे गयो. ए तापसने श्रा कुमारना पिता साथे संसारी अवस्थामां संबंधपणुं हतुं तेथी तेणे घणां वानां करी तेने ( राज्यकुमारने) पोतानी पासे राख्यो. एनुं नाम वलकलचीरी पड्यु. एक वखत ते तापसना श्राश्रममां बेगे थको सेहेजे सेहेजे तापसना वासण जोतो हतो. ते जोतां जोतां धर्म क्रियाना उपकरण तेना दीगमां ओव्यां. पली पूजq अने प्रमार्जq एवं करतां देखी मनमां ईहापो करतां तेने जातिस्मरण शान थयु. एटले तेणे पोताना पाउला जवतुं स्वरूप दी९. तेथी पाउले नवे साधुपणुं पाल्युं हतुं एम तेना समजवामां आव्यु. हवे ते शुज जावना लावतां दपक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ___ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग श्रेणीये चढ्या. तेना प्रनावथी केवल ज्ञान उपन्युं अने मोद गया. माटे धर्मनी जावना नाववी ए श्रेष्ठ बे.. ॥ जावना उपर पांचमो बलना, हरण अने रथकारनो प्रबंध ॥ छारिका नगरीमा कृष्ण वासुदेव तथा तेमना नाई बलजफ (बलदेव ) राज्य करता हता. एकदा तेमना पुत्रो सांब प्रद्युम्नादिक वनमा जश्ने छीपायन ऋषीने पत्थरादि मारी पाबा नगरीमां श्राव्या. तेथी छीपायने द्वारिकानो दाह करवानुं नीयाj कयु. ते मरण पामी अग्निकुमार देवता थयो. तेणे द्वारिका नगरीये आवीने नगरमा रहेनारा उपन कुल कोटी अने नगरनी बाहार रहेनारा बोहोतेर कुल कोटी जादवो सहित सर्व नगरवासीउने, कृष्ण अने बलदेव ए बे सिवाय बाली नस्म कर्या. पठी कृष्ण अने बलन बन्ने नाश्यो त्यांथी नीकलीने वनमां गया. त्यां कृष्ण तृषातुर थया. तेने माटे बलजज जल लेवा गया. कृष्ण पग उपर पग चढावी सुई रह्या. तेवामां जराकुंवर नामे तेमनो नाई कृष्णनुं मरण तेना हाथथी थवानुं बे एम जाणीने पोताने हाथे एम बनवा न पामे माटे एकाकी वनमा रहेतो हतो तेणे कृष्णना पगमां वेगलेथी पद्म देखी मृगनी ब्रान्तिये बाण मायु. ते बाणे करी कृष्णनो पग वींधाणो. समीप आवीने जोयुं तो मृगने वदले कृष्णने देखीने ते घणो खेद पाम्यो. बलदेव श्रावशे तो एने मारशे एम चितवी कृष्णे तेने विदाय को. पड़ी कृष्णे प्राण त्याग कर्या. बलदेव जल लेने आव्या. नाईने सुतो देखी तेने जगामवा लाग्या, पण जवाब न दीधो. घणा कालावाला करी कडं, परंतु मृतक देह होवाथी कांश उत्तर न मल्यो तोपण प्रीतिने लीधे पोताथी रीसाईने ए ( कृष्ण ) बोलता नथी एम पोताना मनमां निश्चय करी तेने उपामीने मास सुधी फर्या. बेवटे काया विषसती देखी देवताए दृष्टांत कही बतावीने सबने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. २४२ अग्नि संस्कार कराव्यो. पनी वैराग्य पामी बलदेवे चारित्र ग्रहण कयु. वनमांदे तप करतां एक वखत पारणाने अर्थे गाममां श्राव्या. त्यां नगरनी स्त्री बलजनुं रूप देखी कूप उपर रही थकी घटने गमे पुत्रने गले गालो घालीने फांसवा लागी. एवं देखीने बलन मुनी "हवेथी नगरमां न पेस. वनमांज सुजतो थाहार लेई त्यां रहीश,” एवो नियम लेई वनमां गया. त्यां धर्मनो उपदेश करता हता तेथी घणां पशु धर्म पाम्या. तेमां एक मृगलो (हरण ) शुरू श्रावक, जाणे मुनीनो शिष्यज न होय ! तेम मुनीने आहारने अर्थे जोतो रहे . एक वखत एक रथकार ( सुथार ) काष्ट कापवा माटे वनमां श्राव्यो. तेने देखीने मृगलो मुनीने तेमी आव्यो. रथकारे मुनीने जावसहित शुद्ध आहार वडे पडीलाच्या. तेवारे मृगलो पण नावना नाववा लाग्यो जे, हुं माणस होत तो भावी रीते मुनीने दान देत. वली रथकार मनमां चिंतवतो हतो के, हुं धन्य बुं, के आज में आवा मुनीने पडीलान्या. साधु पण पोतानी नावनामां लीन ने. एवा अवसरनेविषे अमधी कापेली वृदनी माल त्रुटी पमी. तेथी मुनी, मृगलो अने रथकार, ए त्रणे मरण पामी पांचमे देवलोके देवपणे उपन्या. ए पण नावनुं कारण जाणवू. बलजजीनी कथा घणी म्होटी ने ते बीजा ग्रंथोथी जाणी लेवी. अहीं तो नावना नाववा उपर संदेप मात्र कही. ॥अथ क्रोध विषे ॥ तृण दहन दहंतो वस्तु ज्यूं सर्व बाले, गुण रयणं नरी त्यूं क्रोध काया प्रजाले, प्रसम जलद धारा वहिने क्रोध वारे, मणुअनव समारे सुगुरु सीख धारे॥४७॥ x बीजी प्रतमा ‘रयण' ने बदले 'करण' ने. *मणुअ नव समारे सुगुरु सीख धारे,' आचरणने ठेकणे वीजी प्रतमां तप जप व्रत सेवा' प्रीति वही वधारो. एवु चरण के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग जावार्थ:- घासनो अग्नि पण बालतो बालतो जेम सर्व वस्तुने बाली नाखे, तेम गुणरूपीया रत्ने जरी जे काया, तेने क्रोध बाली नावे बे. ए क्रोधरूपी या चंगालनं जोर क्यारे मटे ? - के ज्यारे प्रसम कड़ेतां उपसमरूपीयो जलधर एटले मेघ वर्षे त्यारे क्रोधरूपी निमटे, अर्थात् घटने विषे उपशम समता प्रगट थाय त्यारे क्रोध नाश पामे ने उत्तम गुरुनी शिखामण मनमां धारण करे तो पामेलो मनुष्यजव सफल थाय. माटे सुगुरुनी शि. खामण मानीने उपशम श्रादरी क्रोधने दूर करवो. 89 धरणि परशुरामे क्रोधे निक्षत्रि कीधी, धरणि सुनुमचक्रे क्रोधे निःब्रह्म साधी ॥ नरकगति सदायी क्रोध ए दुःख दाई, वरज वरज जाई प्रीति दे जे वधाई ॥ ४८ ॥ जावार्थ:- क्रोध की परशुरामे पृथ्वी निःक्षत्री कीधी अर्थात् तेना जाणवामां जेटला क्षत्री श्राव्या ते सघलाने मारी नाख्या, सुजुम चक्रवर्तीए ब्राह्मण विनानी पृथ्वी करीत को क सघला ब्राह्मणोने मारी नाखीने पृथ्वी पोताने कबजे करी, माटे नर्कगतिना सखाई एटले आपवावाला ए दुःखदाई कोधने हे नाई ! तुंबांग ! बांड ! वली क्रोध ए प्रीतने पण नसामना रोठे. ॥ क्रोध करवा उपर परशुराम ने सुजुम चक्रवर्त्तीनो प्रबंध ॥ - प्रथम देवलोके एक मिथ्यात्वी ने एक जैन, एवा वे देवताने मांदोमांदे धर्मनो विवाद थयो नित्यप्रत्ये ते परस्पर विवाद करता एकेकनो धर्म वखाणवा लाग्या. बेवट ते तेनी ( धर्मनी ) परीक्षा करवा माटे मृत्युलोकमां श्राव्या. ए वखत मिथुला नगरीना राजा पोतानी मेले लोच करीने ( दीक्षा श्रंगीकार करीने) तत्काल विहार करी जता हता. तेमने जोई मिथ्यात्वी देवताप्रत्ये जैन देवता कहेवा लाग्यो के, आप एक शेरमीए अर्थात् रस्ते जवाना एक मार्गे की मी यो विकुर्विये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. २४३ बीजे मार्गे तीखी अणीवाली सूलो विकुर्वि मुनीनी परिक्षा करीये ? मिथ्यात्वी देवताए ए प्रमाणे करवानी दा कहेवाथी एक मार्गे क्रोडो कीमी अने बीजे मार्गे तीखी नाला जेवी अनेक सूलो विकुर्वी. मुनीराजे विहार करतां एक मार्गे कीमी अने बीजे मार्गे सूलो. दीठी.तेथी विचार्यु जे-यात्म विराधना रुडी पण जीवनी विराधना अति दुःखदाई माठी गति देवावाली ते माटे संयमविराधना टालवी. एम धारी कीमीवालो मार्ग तजीने सूलोवाला मार्गे चाली नीकल्या. पग लोही लूहाण थया. रुधिरनी धारा चाली, पण लगार मात्र मनमां हवाणा नही. जैन दे. वता ए जोई साधुने पगे लागी मिथ्यात्वी देवताप्रत्येकदेवा लाग्यो के, केम ? जोयुं ? जैननो तो एवो पराक्रम महिमा बे. त्यारपडी बन्ने देवता एक अटवीमां श्राव्या. त्यां जमदग्नि नामे तापस तपस्या करतो हतो के, खेडेली नूमीये पग न मुकवो अने फल फूल पडेलां खावां. वली तापस जूटा जूट मलिन बे, एनो माननारो जे देवता, तेणे जैन देवताने कयु के,आपणे एनुं पारखं जोईये. पठी ते देवताये चडकला चडकली (चकलो अने चकली) नुं रूप करीने ते तापसनी लांबी म्होटी वधी गयेली दाढीमां मालो करी बेसाड्यु. पडी चकले चकलीने कह्यु के, तुं अहीं रहेजे, हुं काम डे ते करी आवं. चकलीए कडं के, हुं तमने नहीं जावा दे. चकलो कहे शा माटे ? चकली कहे के, मने तमारो विश्वास नथी आवतो माटे ! चकले कडं के, तेनुं कारण तो कहे ? चकलीए जणाव्यु के, कदापि तमे मुज सरखी श्रवर कोई स्त्री मले अने ते तमने श्राववा न दे त्यारे तमे नावो माटे ! वली तमे तेणीना उपर मोह पामीने रहो तो महारी शी वले ? हुँ शुं करूं ? पठी चकले चार हत्या प्रमुखना घणा सम खाधा तो पण चकलीए मान्युं नहीं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग अने कह्यु के, जो तमे था तापसना सम खाउँ तो जावा दे, नहींतर नहीं जावा देजं. चकले कयु के-"जो हुँ पालो ना आवं तो था तापसनुं पाप महारे माथे. ए पाप लेवा जेवू नथी, परंतु ते हुँ तहारे वास्ते लेलं दूं."चकला, आई वचन सांजलतां तापसने क्रोध चढ्यो. तेणे एक हाथे चकलो अने बीजे हाथे चकलीने पकडी पुब्यु जे-कहो रे कहो!तमे मने पापीकेम कह्यो? में एवं शुं पाप कर्यु ,के तमे मने पापी उराव्यो ? चकलारुपे देवताए तापसने कह्यु के, त्यारे तमे शो धर्म करो बोते तो कहो ? अमे तो तमारा गुणने उलख्या; पण तमे तमारा जे साधुना गुण तेने ज्यारे नथी उलखता त्यारे तमे शुं धर्म करता हशो ? तापस कहे जे-तमे जनावर ज्यारे जाणोगे त्यारे तुमथकी अमे कोई जश्शुं ? अमे श्रमारो धर्म जाणताज होश्शुं अर्थात् जाणीये जबीये. पदीए कह्यु के, जो जाणो जो तो कहो ? तापसे कह्यु के, तुं तो कहे ? तहारुं हुं डहापण तो जो ? चकलीए कह्यु के, त्यारे तुं काईए जाणतो नथी, माटेज तहारा सम खवराववा पडे डे तो ! तापस कहे के, रे रांड ! एवं शुंने ? ते वखते पदी बोदयां के, तमारा धर्मशास्त्रमा कडं जे-"अपुत्रस्यगति स्ति, खर्गोनैव च नैवच ॥ तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, स्वर्गेगतिमानवा ॥१॥ अर्थ-अपुत्रीयानी सारी गति थती नथी अने तेने स्वर्ग मलतुं नथी, ज्यारे पुत्रनुं मों जुवे अर्थात् जेने पुत्र होय तेज माणस खर्गे जाय .” माटे खुट्वज देखाय के, तमे तो मांग (फोकट ) खोटी था बो. पंखीनां श्रावां वचन सांजली तापस ध्यानश्री चुक्यो, अने विचारवा लाग्यो के, ए वात तो खरी ! जुर्म-जनावर सरखां पण महारी वात जाणे ! एना जेटली पण महारामां समजण नथी. एवं मनमां चिंतवी त्यांथी नजीक एक नगर हतुं त्यां श्रावी राजसनामां गयो. राजा तापसने देखी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २४५ जयत्रांत थई उठीने सामो श्राव्यो, अने प्रणाम करी कर्वा के, श्राप, श्रागमन केम थयुं ले ? मारा योग्य जे कांई काम काज होय ते फरमावो. हुं ते शीरने जोरे ( शीर साटे) करीश. तापसे कह्यु के, तहारे सात पुत्री के तेमांथी एक मने परणाव, नहींतर बालीने जस्म करीश. ए वचन सांजली राजा बीहीन्यो, जे रखे ए तापस कांई करे ! अर्थात् राजाने तापसनो घणो नय लाग्यो तेथी तेणे कयु के, स्वामी ! मदारी सात पुत्रीउमाथी तमने जे चाहे, तेने तमे सुखे वरो. एवं सांजलीने ज्यां राजकन्या हती त्यां ते गयो. तेनुं मलीन शरीर देखीने उ कन्याउँ नाशी गई. पण एक न्हानी धूलमां रमती हती ते तेमज रही. एटले तापसे तेने एक बीजोरु थापवा पोतानो हस्त तेनी सामेलं. बाव्यो, तेथी ते लेवा माटे बालिका, के जेनुं नाम रेणुका हती तेणीए पोतानो हाथ सामो कर्यो. अर्थात् हाथ धों. तापस तरत ते कन्याने उपामी राजा पासे लाव्यो, अने कह्यु के, श्रा कन्या मने चाहे . राजाए ते कन्या तापसने परणावी. करमोचन वेलाए घणुं धन धान्य ढोर विगेरे राजाए आप्युं ते सघj सेक्ने राजकन्या सहित तापस वनमा ज्यां पोतानो श्राश्रम हतो त्यां आव्यो. अनुक्रमे जमदग्नि तापसने त्यां रहेतां रेणुका युवावस्था पामी. एक वखत तेणीए तापस (पोताना पति) ने कह्यु के, स्वामी ! बे चरु मंत्री श्रापो. तापसे पुज्यु के, बे चरुने शुं करशो ? रेणुकाए जणाव्युं के, एक महारी बहेनने थापीश ने एक हुं खाश. तापसे पुब्युं के, ए तहारी बहेन क्यां बे ? रेणुकाए जणाव्युं जे-हस्तीनागपुरमां अनंतवीर्य राजाने घेर , तेने माटे मंत्री श्रापो. पली तापसे एक ब्राह्मपनो श्रने एक क्षत्रीनो, एम बे चरु मंत्री थाप्या. रेणुकाए एक चरु पोतानी बहेनने मोकल्यो अने एक पोते खाधो. श्र १९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग नुक्रमे बन्ने बहेनोए गर्भधारण कर्यो, अने पूर्ण मासे पुत्रो प्र. सव्या. ते म्होटा थया. त्यारपती रेणुका पोतानी बहेनने मलवा सारु हस्तीनागपुरे गई. त्यां तेनुं रूप जोई अनंतवीर्यराजा तेना पर मोहीत थयो थको तेनी साथे जोग नोगववा लाग्यो तेथी तेणीने गर्न रह्यो. जमदग्निए ए वात जाणी तेथी हस्तीनागपुर जई रेणुकाने तेडी लाग्यो. रेणुकानो पुत्र, के जेनुं नाम परशुराम राखवामां थाव्युं हतुं ते तापसी विद्या सीख्यो हतो. तेणे पोतानी मातानुं कुष्चरित्र जाणी तेणीने कालधर्म पमामी, अर्थात् मारी नाखी. त्यारपळी तेणे हस्तीनागपुर जईने अनंतवीर्यराजाने पण मार्यो. अनंतवीर्यना पुत्र कृत्यवीर्ये जमदग्निने मरण पमाड्यो. एम करता बन्ने वच्चे विषवाद वधतो गयो. परशुराम क्रोधे करी एकवीस वार नदात्री पृथ्वी करी, अर्थात् सघला दत्रीउने मारी नाख्या. क्षत्री, एक बालक सरखं पण जीवतुं रदेवा दी, नहीं. कृत्यवीर्यने पण मार्यो, तेवखत तेनी सगर्जा स्त्री नासीने वनमा जती रही. त्यां तेणीने एक तापसे नूमीग्रह (जोयरा) मां बानी राखी. तेणीए त्यां पुत्र प्रसव्यो. ते नूमीगृहे उपन्यो माटे तेनुं नाम 'सुजुम' पाड्यु. अनुक्रमे ते म्होटो थयो. तापसे तेने जणाव्यो. ते सर्व कला सीख्यो. एकदा समये सुजुमे पोतानी माताने पुज्युं जे- 'पृथवी एटलीज ? ' माताए जणाव्यु के- 'पृथवी तो घणी , पण श्रापणे तो बीके करी अहीं रह्या बीये.' सुजुमे पुज्युं- कोनी बीक ने ? माताए जणाव्युं जे- 'परशुराम तहारा पिताने तथा पिताना पिताने मारी आपणुं राज्य लेईने सघला दत्रीउने हण्या बे.' एवं सांजली सुजुमकुमारने क्रोध चढ्यो, तेथी तत्काल नोयरामांथी नीकलीने पृथवीने जोवालाग्यो. त्यांथी तेणे फरतो फरतो हस्तीनागपुरे श्रावीने चक्रवडे परशुरामने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. २४७ मार्यो.पनी चक्रवर्तीपणुं पामीने एकवीस वार निःब्राह्मणी पृथ्वी करी तेमणे हेषे करी संबंधी बतां एक बीजाने हण्या अने तेने लीधे बीजानो पण घाण वाली नाख्यो माटे क्रोध महा माठी गति आपवावालो तेने त्यजवो. क्रोधे करी क्रोडपूर्व- संयमफल पण नाश पामे . वली नर्कनो सखई एटले नर्कमां लेईजनारो पण क्रोध बे. माटे क्रोधने बमवो अर्थात् कोई उपर क्रोध करवो नही. ४७ ॥ अथ मान विषे ॥ ॥ विनय वनतणी जे मूल शाखा विमोडे, सुगुण कनककेरी शृंखलाबंध तोडे ॥ जनमद करि दोडे मान ते मत्त हाथी, निजवश करि ले जे अन्यथा दूरएथी॥४॥ नावार्थ:- जे विनयरूपीया वननी मूल शाखाने मरमी नाखे अर्थात् विनयनो समूलो नाश करे, वली जे उत्तमगुणरुपी सोनानी सांकल ने तोमी नाखे, एवो मानरूपीयो मस्त हाथी अहंपदे मगरुरीथी दोमा दोड करे अर्थात् विनय अने उत्तम गुणोनुं नाश करवावाझुंज मान , तेने तुंपोताने खाधिन करी खेजे, कारणके एने (मानने) वश कर्या विना एके गुण निपजे नहीं,अर्थात् ज्यांसुधी मान (अहंपद) ने त्यांसुधी सर्व गुण विनयादि दूर रहे . अहीं बाहुबलनो दृष्टांत जाणवो. ज्यारे एमणे मान मुक्युं त्यारेज केवलज्ञान उपन्यु. ए वार्ता प्रसिद्ध होवाथी अहीं लखी नथी. ४ए ॥विषद विष समो ए मान ते सर्प जाणो, मनुज विकल होवे एण डंके जडाणो॥ इद न परिदस्यो जोमान र्योधने तो, निज कुल विणसाड्योमानने जे वदंतो ५० नावार्थः- आकरा ( हलाहल ) विष तथा सर्पना जेवं मानने जाणवू, ए मानना जोगे करी मनुष्य विकल थाय-गजराय, श्रर्थात् ए मनरूपी सर्पने डंके करी चेतन जड श्रयो तेने जे दुर्योधने तो रा ( हलाहलय विकल थाय ने जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग परिहरे एटले तेनो जे त्याग करे तेने धन्य , र्योधन राजाए मान परिहयुं नही अने अहंपद (मान) राख्युं तेथी तेना सर्व कुटुंबनो विनाश थयो. ५० ॥ मान करवाथी नाश पामनार पुर्योधननो प्रबंध ॥ पूर्वे पांच पांमव अने फुर्योधनादिक कुरु देशनुं राज्य करता हता. कपट करी जुवटामा हरावि र्योधने पांमवोने वनवास दीधो. ते वनवासनी प्रतिज्ञा पूर्ण करी पांमवो द्वारिकाये श्राव्या. कृष्णे तेमने श्रादर देई राख्या. पली कृष्णे फुर्योधनप्रत्ये कहेवराव्युं के, पांमवो प्रतिज्ञा पूर्ण करीने आव्या ने माटे तेमने जाग श्रापो. नहीं तो युद्ध करवाने सज था. फुर्योधने कुतने जणाव्युं जे-ए पांव ते कोण मात्र! अर्थात् ते शा लेखामां ? जो तेमने नाग लेवो होय तो कहेजे के युद्ध करवाने सज थई आवज्यो. इते छारिकामा श्रावी ते हकीकत निवेदन करतां तत्काल कृष्णने सायेलेई पांडवो हस्तीनापुरे गया. उर्योधन माने जर्यो थको पोताना नाई प्रमुख सैन्य खेई सामो आव्यो. मांदोमांहे दारूण युद्ध थयु. पांडवोए तेना जा सहित छर्योधनने हणी जय करी पोतार्नु राज्य लीधुं. श्रा प्रबंधथी सार ए ग्रहण करवानो ने जे-र्योधने मान कर्यु तो पोताना कुलनो नाश कर्यो. तेमज मानी (अनिमानी) पुरूष काई विचारता नथी अने अनिमानना पूरमां तणाई मरजी माफक आचरण करे ने तेथी पारकुं अने पोतानुं सर्वेनो विणसामनारो थाय . माटे सर्वे मनुष्ये माननो त्याग करवो. ५० ॥ अथ माया विषे ॥ नितुरपणु निवारी दीयडे देज धारी, परिदर बल माया जे असंतोषकारी ॥मयुर मधुर बोले तोदि विश्वास नाणे, अदिगलण प्रमाणे मायिने लोक जाणे ॥५१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. २४ए नावार्थः-जे मायानो धणी एटले जे मायावी मनुष्य होय ते नितुर अर्थात् मनमां कपट नाव राखी मुखे उपर उपरथी सारू लगाडनारो होय तथा तेना हैयामां हेज कहेतां दयानाव होय नहीं, मायावी उलमां ने बलमां रहे अने असंतोषी होय, वली मायावी मीतुं मीतुं बोले पण ते मधुर-मीतुं बोलनार मो. रनी माफक विश्वास राखवा लायक न होय ! केमके मोर मधुर बोले पण सर्पने आखो ने श्राखो गली जाय , तेवोज मायावीने अविश्वासपात्र जाणवो. माटे माया लुंडी , तेनो त्याग करवो जुङ महिनाथ खामीए माया करीने तपनी वृद्धि करी हती, बीजुं कांई मा काम तो कर्यु नहोतुं, तो पण एटलीज मायाथी स्त्रीवेद बांध्यो. माटे मायाने परहरवी ए उत्तम मनुष्यनुं कर्तव्य . मकर मकर माया दंन दोष गया, नरय तिरिय केरा जन्म दे जेद माया॥ बलि नृप बलवाने विष्णु माया वहंतां, बहुयपण लघु जे वामनारूप लेतां ॥५॥ नावार्थः- माया ए दोषरूप विषतुं काम , तथा ए नर्क अने तीर्यचनी गति आपनारी बे, माटे तुं ते ( माया ) न करनकर. वली बलिराजाने बलवा (बेतरवा ) ने माटे श्री कृष्णे माया थकी वामन रूप कर्यु तेथी लघुताई पाम्या. माटे माया ( कपट ) न करवं. मायावी जे होय ते कुम काविठे करीबागट्याना पेटमा पेसी जाय, दंनपणुं धरी मायावीपणुं करी श्रागट्यानु कालगँ काढतां वार न करे, माटे मायावीने बांमवो. ५५ अथ लोन विषे॥ सुणी वयण सयाणे चित्तमां लोन नाणे, सकल व्यसनकेरो मार्ग ए लोन जाणे ॥॥इक खिण पण एने संग रंगे म लागे, जव जव उःख दे ए खोजने दूर त्यागे५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग लावार्थः- उत्तम रुडां वचन सांजलीने मनमां लोन करीश नहीं, कारण के व्यसनादिक मागं कृत्य करवानी जे ईछा थाय ने ते सर्वे कष्टनुं मूल मंडाण ए लोजने जाणवो अर्थात् लोलज बे, वली एक कणवार पण लोजनो संग करवाथी अर्थात् लोजने विषे रातो मातो थवाथी ए नवोचव सुःख देवावालो बे, माटे लोजनो त्याग करवो. ५३ ॥ लोज करवाथी कष्ट पामनार सुजुमचक्रवर्तीनो प्रबंध ॥ सुजुम चक्रवर्तीए आ जरतदेवना बए खंड साध्या तो पण लोज न गयो, तेथी तेणे धातकीखमनाउ खंग सावधाने वास्ते लवण समुजमा चर्मरत्न मुकीने तेना उपर पोतानुं सर्व सैन्य चढाव्युं. ते चर्मरत्नने हजार देवता अवलंबीने चाले बे. तेमांथी एक देवताए विचायु जे, जरतना उ खंड साधतां घणां वर्ष वीत्यां अने हवे आगल कोईए पण नही साधेला धातकीना खंग साधवा जवानुं प्रयाण कर्यु ले तेथी केटलां वर्ष वही जशे तेनो अनुमान थई शके तेवू नथी; माटे देवांगनाने मली आईं तेटलो वखत हुँ नही अवलंबु तो एशुं नही चाले ? एम विचारीने तेणे चर्मरत्न मुकी दीg. एम अनुक्रमे हजारे देवताना मनमां एवो विचार श्राववाथी समकाले सर्वे देवताए चर्मरत्न मुकी दीg. एटले पापना उदयेकरी ते चर्मरत्न चक्रवर्तीना सैन्य सहित समुरुमां मुबी गयु. ते सघलानो नाश थयो. लोचनो थोज न रदेवाथी देवता जेनी सेवामां हता तेवा चक्रवर्तीनो पण नाश थयो, तो बीजानो थाय तेमां तो नवाईजशानी ? माटे लोन अति दुःखदाई बे तेथी तेनो त्याग करवो. कनकगिरि कराया लोनथी नंदराये, निज अरथ न आया ते दर्या देवताये ॥ सकल निधि खही जे स्वाय ते विश्व कीजे, मन तेहथी न रीके लोन तृष्णान बीजे॥५४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. १५१ जावार्थः-नव नंद राजाये सोनानी डुंगरी करावी पण ते तेमना पोताना काममां श्रावी नही-देवताये हरी लीधी, ते तो अतृप्ताज गया, सघली निधि तेमज वली बधी पृथवी पोताने वश होय तो पण लोनतृष्णा नही बीपवाथी मन कदी संतोष पामतुं नथी. ५४ ॥ लोचनो त्याग करवा उपर कपिल ब्राह्मणनो दृष्टांत ॥ एक नगरमां राजाए प्रजाते उठी ब्राह्मणोने बे मासा सोनानुं दान देवानुं नक्की कर्यु हतुं. त्यां कपिल नामनो ब्राह्मण र. देतो हतो. ते बे मासा सोनु लेवानी जंखणामां रात्रे सुई रह्यो, तेथी रात्रिनी खबर न पमवाने लीधे मध्यरात्रे उठीने दरबारगढ तरफ चाली नीकल्यो. रस्तामां पोरेदारे चोर जाणी तेने पकमीने चोकीमा बेसाड्यो. प्रजाते तेने राजा पासे लेई श्राव्या. तपास करतां ए चोर नथी एम राजानी खात्री थई त्यारे पुज्युं के तुं कोण बुं ? कपिले कयु के दासी (लक्ष्मी)नो प्रेयों हुं श्राव्यो बु, अर्थात् तेणे बे मासा सोनानी जंखणा संबंधी सघलो वृत्तांत जणाव्यो. ते सांजली राजाये विचार्यु जे महारा नगरमां श्रावा पण दलिखी वसे छे. एवी दयाये करी ब्राह्मणने राजाये कह्यु के, " तुं जे मागीश ते हुँ आपीश, माटे बालोच करीव." पठी ते कपिल ब्राह्मण एकांते जई विचार करवा लाग्यो जे-राजा कने हुँ सो रूपैया मांगु के बसें चारसे, के हजार वे हजार, के लाख बे लाख, के चार लाख दश लाख, के वीस लाख, एम क्रोड सुधी चढ्यो, परंतु मननो परिणाम एटला अव्य उपर पण स्थिर न रह्यो. वली तेथी पण वधारे वधारे मन श्रागल दोडवा लाग्युं. राज्य सेवा सुधीनी मागणी करवा उत्सुक थयो तोपण न धरायो. एम करता करतां बेवट एवा विचार उपर श्राव्यो के मन तो धरातुंज नथी. ए श्रथिर पदार्थ जे.एमने डोमशे, के हुँ एने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग बोडीश. एवीशुनदशाजागवाथी नवनीजे नावठ ते जागी. एटले संयमथी लय लागी, त्यारे विचार्यु जेः-"जाहा लाहो तहा लोहो, लाहो लोहोए वढई ॥ दो मासा कयं कां, कोडीए नव निहिए ॥१॥" एवं विचारीने तेज वेलाये पंचमूष्टी लोच करीने राजा पासे श्राव्यो अने धर्मलान दे उनो रह्यो. राजाये पुंज्यु के-ए\ कीधुं ? कपिल कहे-चारित्र लीधुं. तमे कह्यु हतुं के बालोची श्रावो, ते था ( मस्तक ) लोची श्राव्यो. जे विचार हतुं ते विचारीने श्राव्यो. राजा उठीने पगे लाग्यो. मुनीए त्यांथी वि. हार कर्यो, मार्गमां जतां पांचवें चोर मच्या तेने प्रतिबोध पमामीने ते निर्मल अप्रतिपाती केवल ज्ञान पामी मोदे पहोंच्या. एम जे लोन मुके ते सुखीया थाय अने लोन करे ते खुधार श्रया के अने थशे. माटे लोचनो त्याग करवो. ५४ ॥अथ दया विषे ॥ सुकृत कलप वेली लजि विद्या सदेली, विरतीरमण केली शांति राजा महेली॥ सकल गुण नलेरी जे दया जीव केरी, निज हृदय धरी ते साधिए मुक्ति सेरी ॥५॥ जावार्थः- दया केवी ने ? उत्तम करणीरूप कल्पवृदानी वेल समान बे, लक्ष्मीनी सखाई बे, ज्ञान गुणनी सहचारी , वली विरती रूप जे राणी तेह दया ने, अने ए दया शांति राजानुं सदन , सघला नला- सारा गुण अने जे जीवदयार्नु मूल ने, एवी दयाने हृदयनेविषे धारण करीने झुं साधीए ? मुक्ति रुपीणी शेरी, अर्थात् दया थकी मुक्ति पामीये. माटे अहो जव्य प्राणी ! ए जे जीवदया ने तेमां घणाज गुण जर्या अने तेथी घणा जीव पार पाम्या . जे जे तीर्थंकर थया तेमणे पण एनुं एज वचन प्रकाशेलु . ते ए जेः- सवे पाणां, सवे जूश्रा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. १५३ सवे सत्ता, सत्वे जीवा न हंतवा ॥ आ प्रमाणे अनंता थया ले अने थशे ए सघला तीर्थंकरोनी एवीज वाणी होवाथी ते मान्य करवी अर्थात् जीव दया पालवी. ५५ निज सरण परेवो शेनथी जेणराख्यो, षट दशम जिने ते ए दया धर्म दाख्यो॥ तिह हृदय धरीने जो दया धर्म कीजे, नवजलधि तरीजे जुःख दूरे करोजे ॥५६॥ नावार्थः- सोलमा तीर्थकर श्री शान्तिनाथ नगवाने पोताना पाबला दशमा मेघरथ राजाना नवमां सींचाणाना जयथी आवेला पारेवाने बचावी दयाधर्म दर्शाव्यो, तेवी रीते जो बीजा पण पोताना हृदयने विषे दया लावीने वर्त्तशे तो तेना प्रनावथी नव रूपी समुज तरीने पुःखने वेगलां करशे अर्थात् मोदसुख मेलवशे. माटे दयाधर्म पालवो. दया एम होटी बे.५६ ॥दया चिंतवीने पारेवाने शरणे राखनार मेघरथराजानो प्रबंध॥ पूर्वे श्री शांतीनाथनो जीव दशमा जवने विषे मेघरथ नामे राजा हतो. एकदा ते पोताना दरबारमा बेग हता त्यां ध्रुजतो ध्रुजतो एक पारेवो तेमने शरणे आवीने पेठो. तेनी पाउल तेने मारवाने उत्सुक थई श्रावेलो सींचाणो ते वखते मनुष्यलाषाये बोल्यो जे- “ एकने तुं उपकार करे अने एकने मारे, ए \ तने घटार्थ डे ? आज त्रण दिवस थयां हुं नूख्यो बुं. माटे तुं एने मुकी दे. शुं तने एटली पण दया नथी श्रावती ? महारु पेदा करेलु अर्थात् शोधी कहाडेबुं जद तहारी पासे आव्युं बे, ते तुं मने आप अने सुखी कर. हुं महाकुःखी था बु. नूखनुं दुःख हवे महाराश्री वेठी शकातुं नथी, माटे महारुंजक मनेापो के जेथी महारी नूख जांगे. हुं तमने आशीश देश.” राजाये .२० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग कडं के “ तुं जे कहे ते तने मगावी आपु. ” सींचाणो कहे के- “ ते काम आवे ? हुं तो मांसनुं नक्षण करनारो बु, माटे महारु जे नक्षले ते आपो. ए विना बीजी वधी वस्तु महारे नकामी बे.' राजाये विचार्यु जे, जेने जे आहार तेने ते वहादुं. माटे एने तो एज जोश्ये. परंतु आपणी पासे आव्यो तेने आपणे केम आपीये ? कदापि आपीये तो आपणुं बीरुद जाय. माटे हवे तो ' अर्थ साधयामि के देहं पोतायामि.' एम विचारीने तोला (त्राजुडी)मंगावी, तेमां एक पासे पारेवो मुक्या अने बीजे पासे राजाये पोतानी जांग प्रत्ये बेदीने मांस मुक्यु. पारेवाना प्रमाण करतां पण वधारे मांस मुक्युं तो पण ए त्राजवं उचुं ने उचुं रहूं. राजा पोतानी देह कापतो जाय अने मांस मुकतो जाय, परंतु देवमायाये करी पारेवानी बरोबर ना थाय. ए वखते प्रधान तथा बीजो बधो परिवार तेमज राणीयो वीगेरे सर्व मलीने राजाने कहेवा लाग्यां के, हे स्वामी ! ' ए कायाने शुं घात करोडो ? एक पंखी तीर्यच जीव माटे आपनो अमूल्य देह का विनाशो को ? ' या प्रमाणे सजान वर्गे कह्यु, तेने न गणकारतां महा धैर्यवंत मेरु शिखरनी परे निश्चल मनवाला राजाये, थोडे थोडे मांसे ए पूरु यतुं नथी, माटे आ ( महारी) वधी काया एजीवना उपर खूरबान ! एम विचारीने पोतानुं शरीर संकल्पीने पल्लामा चढी वेगा. जीवदया उपर मेघरथ राजानुं पोतानो देह अर्पण करवा सुधीनुं धैर्य- साहस जोई देवता तुष्टमान थई तेमने पगे लागी चलत् कुंमलाचरण थई सौधर्म देवलोकप्रत्ये गयो. राजानी काया पूर्वे जेवी हती तेवी सोना सरखी थई. माटे दृढ मनथी जीवदया पालवी. ५६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १५५ ॥ अथ सत्य विषे ॥ गरल अमृत वाणी साचथी अग्नि पाणी, सुज सम अहिराणी साच विश्वास खाणी, सुपसन सुर कीजे साचथी तेतरीजे, तिण अलिक तजीजे साचवाणी वदीजे॥५॥ नावार्थः-सत्य थकी सर्प- जे गरल होय ते पण अमृत थाय अने सत्य थकी अग्नि पण पाणी थाय, सत्य थकी रूमो जस कीर्ति पामे, सत्य थकी सर्व जगत्र विश्वास थाणे अर्थात् सत्य ए विश्वासनी खाण , सत्य थकी देवता पण प्रसन्न थाय, ए सर्व सत्यपणाथी पामीये, ते माटे मृषावाद बांमीने सत्य वाणी बोलीये. ५७ जग अपजश वाधे कूमवाणी वदंतां, वसु नृपति कुगत्यें साख कूडी नरंतां ॥ असत वचन वारी साचने चित्त धारी, वद वचन विचारी जे सदा सौख्यकारी ॥ ७ ॥ जावार्थः-जूग बोला थवाथी अर्थात् जूळ बोलवाथी जगत्नेविषे अपजशनो पमहो वागे, ( जुड) वसुराजा खोटी शाख जरवाथी नर्के गयो, माटे असत एटले जूतु वचन गंडीने सत्यवाणी बोलवी. वली जे वचन बोलq ते विचार करीने बोलवू, के जे हमेशां सुखकर थाय. ५७ ॥ कूडी साख नरवायी नर्के जनार वसुराजानो प्रबंध ॥ खीरकदंबक नामना अध्यापकनी पासे तेनो पुत्र पर्वत, वसुराजा तथा नारद, ए त्रण जण साथे लण्या हता. ते अध्यापके काल को एटले पर्वत अध्यापक थयो. एकदा फरता फरता नारद, पर्वतने त्यां श्राव्या. ते वखत "श्रज होतव्यं” एवो पाठ ते पोताना शिष्योने जणावतो हता. तेणे तेनो अर्थ क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग रतां जणाव्युं के “ यज्ञमां अज एटले बोकमानो होम करवो.” नारदे ते सांजलीने कधुं के - आपणा गुरु तहारा पिताये तो ज्यारे हुं, तुं श्रने वसुराजा जगता हता त्यारे ' ज ' शब्दनो अर्थ बोकको नहीं, पण 'त्रण वर्षनां वृद्धी' कह्यां वे ? तेम वतां तुं श्रवलो खोटो अर्थ केम करे बे ? पर्वते जणाव्यं के, तमारूं कहे खोटं बे. गुरूमहाराजे तो ' ज ' शब्दनो अर्थ ' वोकडो ' ज बतावेलो बे. ते प्रमाणे हुं शीखतुं कुं. नारदे तेनुं कहेतुं तदन खोटुं वे एम वारंवार कदेवार्थी ते बन्ने बच्चे घणो विवाद थयो. बेवट पर्वते जणाव्युं जे-वसुराजा आपणी साथे जला बे माटे तेमनी पासे जईने खरूं शं बे ? तेनो निर्णय करीये. या वात नारदे कबुल करी बीजे दीवसे राजा पासे जवानुं वराव्यं. पर्वतनी माता, नारद ने पर्वत वच्चे अज शब्दना अर्थ माटे विवाद तो हतो ते सांजलती हती. तेणीये नारदना गया पछी पोताना पुत्र पर्वतने कथं के, तहारा पिताए 'अ' शब्दनो अर्थ ' त्रण वर्षनां वृही ' बतावेलो बे, ते हूं पण जाएं बुं. तें नारद साथे खोटी जीकर करीने वसुराजा पासे जइ निर्णय करवानुं वराव्यं बे. ए सत्यवादी राजा बे तेथी जुलुं बोलशे नहीं थी तुं खोटो पमीश. पर्वते. पोतानी मातानां श्रावां वचन सांजली तेणीने वसुराजा पासे जई पोते जणावेलो अर्थ खरो बे एम कहेवाने जलामण करवा मोकली. तेणी वसुराजा पासे गई. गुरुपत्नी जाणी राजाये तेनो आदर सत्कार कर्यों ने श्रागमननुं कारण पुब्धुं ? तेणीये पुत्रजीका माटे श्रावी हुं, एम जणायुं. राजाये तेनो वाल कोण वांको करनार बे ? ए महारोजाई बे ! एना सामुं जोनार कोण बे ? ते मने बतावो ? एम ज्यारे कयुं; त्यारे गोराणीये पर्वत ने नारदनी वच्चमां जे विवाद थयो हतो ते जणाव्यो, धने विशेषमां कथं के, पर्वतनो पक्ष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साचो तुरावा लाग्यो के उपर बेसुं नाषान्तर सहित. १५७ करी तमारे तेने साचो ठराववो योग्य बे. गुरूपत्नीनां श्रावां वचन सांजली वसुराजा विचारवा लाग्यो के महाराथी असत्य केम बोलाय ? हुँ या स्फाटिकरत्नना सिंहासन उपर बेसुंबं ते महारा सत्य वडे अंतरिद रहे एम जे सर्व लोको कहे डे ते महारूं वीरूद हमहडतुं जुलु बोलवाथी केम रहेशे ? था तो 'वाघ नदीनो जोग मिल्यो,. पत्री वसुराजाये जूतुं नहीं बोलाय एम कडं. त्यारे मेवटे ब्राह्मणीये जणाव्युं के, जो तुं महारा गेकरानो पद नहीं करे तो तेनुं मोत थशे अने हुँ पण तने महारी हत्या आपीश. वसुराजा आथी शरमींदो थई गयो अने तेणीने विदाय करतां जणाव्युं के तमारा पुत्रनो पद करीश. तेणीये राजानो कोल लेई पोताने घेर पाठी आवीने पर्वतने तेवात जणावी. पठी ठराव प्रमाणे बीजे दीवसे नारद तथा पर्वत वसुराजा पासे गया. अजाण थई आगमननुं कारण वसुराजाये पुग्वाथी, अध्यापके 'अज' शब्दनो अर्थ 'त्रण वर्षनां वृही' बताव्यो हतो एवं नारदे, अने 'बोकडो' बताव्यो हतो एवं पर्वते जणावीने ते बेमांनो खरो अर्थ कयो , तेनो निर्णय करवा माटे तमारी पासे श्राव्या बीये एम जाणव्यु. एटले वसुराजा मनमां विचार करी कहेतो होय एवो डोल करी बोल्यो के, 'अज' एटले ' बोकमो ' कह्यो . ते वखत-हे वसुराजा ! तमे एनो अर्थ खोटो केम करो बो ? एवं नारद बोल्या, के तत्काल देवताये सिंहासन उपरथी उगलीने वसुराजाने हेगे नाख्यो. ते मरीने नर्के गयो. एक शब्द मात्रनो अर्थ जूगेकरवाथी वसुराजानी नर्क गति थई तो पठी वारंवार असत्य बोलनार तो एवा केटला नव लटकशे तेनी गणत्री थई शकवी मुश्कल .माटे असत्य अलीक वचन जमीने सत्य वाणी बोलवी.५७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥अथ चोरी विषे॥ परधन अपहारे स्वार्थपं चोर दारे, कुल अजस वधारे बंध घातादि धारे ॥ परधन तिण देते सर्प ज्यूं दूर वारी, जगजन हितकारी दोय संतोषकारी॥ ॥ नावार्थः- कुलनी मर्यादा मुकीने जे स्वार्थी चोर पारकुं अव्य चोरे ते जगत्मां अपजशने वधारे, बंधीखाने पडे तथा घातनी वेदना पामे अर्थात् जीवथी पण जाय, वली जेम सर्पथी लोक वेगला जाय तेम ए चोरथी पण लोक वेगला नासे, ते माटे ए चोरपणुं मुकीने जगत्ना जीवने हितनुं करवावायूँ संतोषपणुं श्रादरवू. ५५ निशिदिन नर पामे जेदथी छुःख कोडी, तज तज धन चोरी कष्टनी जेह उरी॥पर विनव दरंतो रोहिणी चोर रंगे, इद अन्नयकुमारे ते ग्रह्यो बुद्धि संगे ॥६॥ जावार्थः- चोरी थकी मनुष्य रात्रि अने दिवस दुःखनी कोडी पामे अर्थात् बेसुमार दुःख पामे, ते माटे हे नाई ! एने (चोरीने ) तुंगम, बांड ! शा माटे जे ए चोरी ते चालती फुःखनी उरडी समान , वली पारकी संपदा हरतां कोरडी एटले नकरी वेदना जोगवती वेला कोई आमो आवे नही, जुन ! रोहिणीया चोरने जेम अनयकुमारे बुझिना जोगे गृह्यो एटले पकड्यो, ते माटे चोरीप्रत्ये बांडवी. ६० ॥अथ कुशील विषे ॥ अयश पडद वागे लोकमां लोद नागे, सुरजन बहु जागे जे कुले लाज लागे ॥ सजन पण विरागे मां रमे एण रागे, परतिय रस रागे दोषनी कोडि जागे॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ए नाषान्तर सदित. नावार्थः- परस्त्रीनी संगतथी जगतने विषे अपजसनो पमह वागे तथा लोकमांथी नार वकर जाय, लजा पामे, दोषी कुश्मन जागे, कुलमां पण कलंक लागे अने सजान माणस तेनाश्री विरागे एटले पूर रहेवा श्छ, माटे तुं एनो संग करीश नहीं, केमके परस्त्रीना रसने रागे करीअवगुणनी कोडि जागे अर्थात् परस्त्रीनो प्रसंग करवाथी अनेक अवगुण थाय . ६१ परतिय रसरागे नाश लंकेश पायो, परतिय रस त्यागे शील गंगेव गायो॥ पद जनक पुत्री विश्व विश्व विदीती, सुर नर मिलि सेवी शीलने जे धरती॥६॥ नावार्थः- परस्त्रीना रसने रागे करी लंकापति रावण नाश पाम्यो अर्थात् रामचंनी स्त्री सीता उपर मोहीत थई तेनुं हरण करी जवाथी रावणनां दस मस्तक रणने विषे रमवड्यां, अने परस्त्रीना विरमणथी गंगाना पुत्र गांगेयकुमारे ( नीष्मपिता ) के जेमणे बाल्यावस्थामांथीज शील पाव्यु तेथी जगत्नेविषे गवराणा एटले जशवाद पाम्या, वली सुपद राजानी पुत्री ते पांमवनी नार्या ौपदी तथा जनक राजानी पुत्री ते रामचंनी पनि सीता त्रण जगतने विषे प्रसिकिने पामी अने एवा शीलवंत प्राणीउनी देवता तथा मनुष्य सेवा करे . शीलगुणनुं म्होटुं महात्म्य . माटे परस्त्रीनो त्याग करवो अने शील पालवू. ६२ ॥अथ परिग्रह विषे ॥ शशिउदय वधे ज्यूं सिंधु वेला नलेरी, धनकरि मन साए तेम वाधे घणेरी॥ उरित नगर सेरी तूं करे ए परेरी, ममकर अधिकरी प्रीति ए अर्थकेरी ॥६३ ॥ नावार्थः- चंजमाना उदयथी जेम समुजना प्राणीनी वेल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग वधे, तेम मूर्गए परिग्रहनी ममता वधे, वली ए परिग्रहनी ममता ते नर्क गतिनी शेरी कहेतां वाट डे अर्थात् ए नर्के लेई जनारी बे, माटे ए परिग्रहनी अधिक प्रीति तुं न कर. ६३ मणुअ जनम दारे फुःखनी कोमि धारे, परिग्रद ममता ए स्वर्गनां सौख्य वारे ॥ अधिक धरणी लेवा धातकी खंड केररी, सुन्नुम कुगति पामी चक्रिराये घणेरी॥६४ ॥ जावार्थः- ए परिग्रह थकी पोतानो मनुष्यनव हारी जाय अने कोडी गमे पुःखनी परंपराने पामे, वली ए परिग्रहनी ममताथी देवलोकनां सुख पण खोई बेसे, कोनी परे ? तो केजेम सुजुम चक्रवर्तिये सुख खोयां अने कुगति पाम्यो तेनी पेठे थाय. माटे परिग्रहनो ममत्व करवो नही. ६३ । ॥ परिग्रहनी ममताथी नर्के जनार सुजुम चक्रवर्तिनो प्रबंध ॥ सुजुम चक्रवर्तिए उ खंड साध्या. पनी बीजा कोई चक्रवर्ति साधता नथी एवा धातकी खंडमांहेला उ खंम साधु तो हुं खरो ! एवी परिग्रह उपर ममता थवाथी तेणे धातकी खंडमां जवा माटे बे लाख जोजनना लवण समअमां चरमरत्न मूक्यु. तेमां सैन्यादि सर्व परिवार बेगे. ए वेला चरमरत्नना हजार देवता सेवक बे तेमांना एके विचार्यु जे आ ब खंम साधतां केटलांएक वर्ष वही गयां तो वली श्रा बीजा उ साधतां तो केटलाए वर्ष वीती जशे ? माटे गानोमानो हुं महारी देवीने मली आवं. एम धारीने एक देवता गयो. एम बीजो, एम त्रीजो. एवी रीते हजारे देवता. चरमरत्न मुकीने हीडता थया - चाल्या गया. एटले चरमरत्न ड्यु. हाथी घोमा सहित सर्व लश्करनो नाश थयो भने सुन्नुम चक्रवर्ति मरीने सातमी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तरसहित. २६१ नर्के गयो. माटे परिग्रहनी ममता वडे चेतन दुःख पामे तेथी तेनी मूळ टालवी. अर्थात् परिग्रह उपर ममत्वजाव करवो नहीं. ॥अथ संतोष विषे॥ सकल सुख नराए विश्व ते वश्य थाए, नवजलधि तराए फुःख दूरे पलाए ॥ निज जनम सुधारे आपदा दूर वारे, नितु धरम वधारे जेद संतोष धारे ॥६५॥ . नावार्थः- संतोषथी सर्व (घणां) सुख पामे अने बधी पृथवी वश थाय, संतोषयी संसाररुपी समुत्रने तरे अने फुःख वेगलां जाय, ए संतोष थकी पोतानो जन्मारो पण सुधरे तथा थापदा जे कष्ट ते पण पूरे जाय, जे प्राणी संतोषने श्रादरे ते नित्यप्रत्ये धर्ममां वधारो करे अर्थात् रुमो धर्म पामे. ६५ सकल सुखतणो ते सार संतोष जाणे, कनक रमणिकेरी जेद श्वान आणे ॥रजनि कपिल बांध्यो स्वर्णनी लोलताए, नमर कमल बांध्यो ते असंतोषताए॥६६॥ - जावार्थः-ज्यारे सघला सुखनुं मूलमंडाण जोश्ये त्यारे तो ए संतोष जाणवो, अर्थात् सर्व सुखनुं मूल संतोष , कनक श्रने कामिनी अर्थात् धन अने स्त्री ए बन्नेनीजे श्छा न करे तेने संतोषी जाणीये. जुर्ज-फक्त बे मासा सोनानी लोलुप्ताये करी रात्रिने विषे कपिल नामनो ब्राह्मण बंधाणो अने नमरो पण कमलमां बेगे थको वासना लेवामां लीन थवाने लीधे अर्थात् वासनाना असंतोषपणाने लीधे सूर्यास्तनी वेला पण जाणी शक्यो नही, तेथी कमल बीमाएं तेमां बंधाणो ते फरी नीकलवा समर्थ न थाय. माटे हरेक बाबतमां संतोष राखवो. ६६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥ अथ विषय विषे ॥ शिवपद यदि वांबे जेद यानंद दाई, विषसम विषया तो बांड दे इःखदाई ॥ मधुर अमृत धारा दूधनी जो लहीजे, प्रति विरस सदा तो कांजिका स्युं ग्रहीजे ॥ ६७ ॥ नावार्थ:- जो ए आत्माने आनंदने यापवावाला मोक्षपदने पामवानी ईवा होय तो विष (केर ) समान दुःख देवावाला विषयने तजी दे, जो मीठी अमृत जेवी दूधनी धारा मली तो अत्यंत विरस - स्वाद विनानी कांजी होय तेने कोण ग्रहण करे, अर्थात् दूधनी धारा समान मोक्षपद पामवानी ईछावालो कांजी समान विरस या मद, ( १ पोतानी जातिनो मद, १ पोतानो बहु धननो लान मद, ३ पोताना कुलनो मद, ४ पोतानी लक्ष्मीनो मद, ५ पोताना बलनो मद, ६ पोताना रूपनो मंद, ७ पोताना तपनो मद, पोताना ज्ञाननो मद) केम करे ? न ज करे. ६७ विषय विकल ताण कीचके जीम जार्या, दशमुख - पहारी जानकी रामनार्या ॥ रति धरि रहनेमी देखी श्री ने मिजार्या, जिण विषय न वर्ज्या तेद जाणो अनार्या ॥ ६८ जावार्थ:- विषयना विकलपणाये करीने एटले विषयनां वाह्या थकां वेराट राजाना सो साला मध्येना वमा कीचके जीमनी जार्या एटले पांडवोनी पत्नी द्रौपदीने ताणी - खेंची, वली विषय की दशमूख एटले रावणे रामनी स्त्री जानकी ( जनकराजानी पुत्री सीता) नुंदर कयुं, (तेथे सोए किचक थाने रावण मर्ण पाम्या) वली कंदर्पना धरणहार रहनेमीए पोताना सरखी चारित्रवंत श्रीनेमनाथनी जार्या राजेमतीने वस्त्र रहित महाखरूपवान देखीने तेना प्रत्ये विषयी प्रार्थना करी, परंतु सती साध्वी राजेमतीए अगंधन जातिनानागादिना दृष्टांतादि देखामी तेने मार्गमां श्राण्या अर्थात् मन १६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. २६३ विहल थयुं ते संबंधी प्रायश्चित नगवान पासे तेमने मोकली लेवराव्युं, माटे जे प्राणीये विषयनो त्याग नथी को ते प्राणीने अनार्यपणे एटले धर्मरहित जाणवो. ६७ ॥अथ इंडिय विषे॥ गज मगर पतंगा जेद मूंगा कुरंगा, इक इक विषयार्थे ते लदे उःख चंगा॥जस परवश पांचे तेदन शं कहीजे, इम हृदय विमासीईडि पांचे दमीजे॥६॥ नावार्थः- हाथी, मगर, पतंग, जमरो, अने हरण, ए पांचे जीव एक एक इंजिना विषयने लीधे अर्थात् एक एक इंडिमोकली मुकवाथी महा पुःख पामे जे; तो बीजा जे जीवनी पांचे इंजि परवश होय अर्थात् जे जीव पांचे इंजि मोकली मूके त्यारे तो ते अति दुःखी थाय एमां ते शुं कहे ? खचीत ए तो पुःखी थायज, एम हृदयमा विचारीने पांचे इंजिने दमवी एटले वश करवी. ६ए विषय वन चरंतां इंडिजे जंटमाए, निज वश नवि राखे तेह देउःखडाए ॥ अवश करण मृत्यु ज्यूं अगुप्तेजि पामे, स्ववश सुख लह्यां ज्यूं कुर्म गुप्तींजिनामे ॥ ७ ॥ नावार्थः- ऊंट जेम वनने विषे चरतां ज्यां त्यां अर्थात् सघले ठेकाणे मों घालेले तेम विषयरूपीया वनने विषे इंडिने ज्यां त्यां चटकवा दे अने पोताने वश न राखे ते प्राणी पुःखप्रत्ये पामे, वली जे अगुप्तेजिडे अर्थात् जेणे इंजियो मोकली मूकी ने ते निश्चय मृत्युने पामे बे, अने जेणे इंजियोने पोताने वश राखी ते इंडियोने वश राखनार कुर्मनी पेठे सुख पामे बे. ७० १ बीजी प्रतमां "स्ववश सुख लह्यां ज्यूं कुर्म गुप्तीजि नामे" ए चरणने ठेकाणे “ निज वश करि ईजि ज्यूं सदा सौख्य पामे" एवं चरण जे. तेनो अर्थजेणे इंजियो वश करी ते निरंतर सुख पामे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ॥ श्रथ प्रमाद विषे॥ सद् मन सुख वांले जुःखने को न वांबे, नदि धरम विना ते सौख्य ए संपजे ॥ इह सुधरम पामी का प्रमादे गमीजे, अति अलस तजीने उद्यमे धर्म कीजे ॥११॥ जावार्थः- सघलां प्राणी सुखने ई डे पण पुःखने कोई चतुं नथी, परंतु धर्म विना ते सुख मलतुं नथी, वली आवो उत्तम धर्म मख्या बतां प्रमाद करीने तुं तेने केम गमावी दे ? ए तने युक्त नथी, माटे आलस प्रमाद बमीने धर्मने विषे उद्यम कर, के जेथी सुख मले. ७१ इह दिवस गया जे तेह पाग न आवे, धरम समय आले कां प्रमादे गमावे ॥धरम नविकरे जे आयु आले वहावे, शशि नृपतिपरे त्यूं सोचना अंत पावे ॥२॥ नावार्थः-श्रा जे दीवसो गया ते फरी पाना आवता नथी, माटे प्रमादने वश पड्यो थको धर्मनो समय फोकट केम गमावे ? जे धर्म नथी करतो ते पोतानुं आयुष्य फोकट हारी जाय ,अने ते शशिराजानी पेठे आवटे सोचना पामे जे. ७५ ॥अथ साधुधर्म विषे ॥ शार्दूल विक्रीमित बंद.॥ जे पंच व्रत मेरु नार निवदे, निःसंग रंगे रदे ॥ पंचाचार धरे प्रमाद न करे, जे परिस्सासदे॥पांचे इंडि तुरंगमा वश करे, मोदार्थने संग्रहे ॥ एवो कर साधु धर्म धन ते, जे ज्यूं ग्रहे त्यूं वदे ॥ ३ ॥ जावार्थः- साधु केवा ? तो के-जे मेरुपर्वतना पुःखे करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सदित. १६५ उपाडवा जेबा जार समान १ प्राणातिपात, १ मृषावद, ३ - दत्तादान, ४ मैथुन, अने ५ परिग्रह, ए पांच महाव्रतने वहन करे बे ( पाले बे ); जे निःसंगी बे अर्थात् कोश्नो संग करता नथी; जे ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार ने विर्याचार, ए पांच यचारना धरनारा अर्थात् पालक बे, प्रमाद करता नथी; जे दुःखना परिसाने सहन करे बे; वली जे पांचे इंडि रूप घोडाने वश करे बे ने मोक्षार्थ एटले मोक्षना साधनोनो संग्रह करे बे; एवो दुष्कर साधुनो धर्म बे, ते जेवी रीते ग्रहण करे तेवी रीते तेनो निर्वाह करे तेवा साधुने धन्य ते तेने मुनी जाएवा. ७३ ( मालीनी बंद) मयण शिर विमोडी कामिनी संग बोडी, तजिय कनक कोडी मुक्तिसूं प्रीति जोमी ॥ जव जव जय वामी शुद्ध चारित्र पामी, इद जग शिवगामी ते नमो जंबुस्वामी ॥ ७४ ॥ जावार्थ:- कंदर्पना विकारने दली नाखी जेणे स्त्रीनो संग छोड्यो, जेणे कनकनी कोडी अर्थात् कोडो सोना मोहोरोनो त्याग करीने मुक्तिरूपी स्त्रीनी साथै स्नेह बांध्यो एटले मोक्षमार्ग जेने वाहालो लाग्यो ने जेणे शुद्ध चारित्र पामी (पाली) ने जवजवनो जय दूर कर्यो, एवा या जगत्ने विषे मोक्षप्रत्ये पाम्या ते श्री जंबुस्वामीने नमस्कार करो - हुं नमस्कार करूं हुँ. ७४ ॥ श्रथ श्रावकधर्म विषे ॥ शाईल विक्रीमित बंद. जे सम्यक्त वही सदा व्रत धरे, सर्वज्ञ सेवा करे ॥ संध्यावश्यक च्यादरे गुरु नजे, दानादि धर्माचरे ॥ नित्ये सद्गुरु सेवना मन धरे, एहवो जिना धरारे ॥ जाख्यो श्रावकधर्म दोय दशधा, जे च्यादरे ते तरे ॥ ७५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 7 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग नावार्थः- श्रावक केवो होय ? तो के-जे समकित पामीने हमेशां व्रत करे तथा सर्वज्ञ प्रजुनी सेवा (पूजा) करे, जे उजय टंक ( सवार सांऊ ) आवश्यक (प्रतिक्रमण ) करे अने आदर सहित गुरुने जजे; तथा जे दान, शीयल, तप, अने नाव, ए चार प्रकारनो धर्म आचरे, वली जे हरहमेश उत्तम गुरुनी सेवना मननेविष धारण करे अर्थात् सुसाधुनी नक्ति करे; एवो श्री जिनेश्वर लगवाने बार पर्षदानी आगल १ प्राणातिपात, २ मृषावाद, ३ अदत्तादान, ४ मैथुन, ५ परिग्रह, ए पांच अणुव्रत तथा ६ दीशी विरमण व्रत, लोगोपजोग विरमण व्रत अने अनर्थदंड विरमण व्रत, ए त्रण गुणव्रत तथा ए सामायक, १० देशावकासिक, ११ पौषध अने १५ अतिथी सं विनाग,ए चार शिदावत मलीने बार नेदे श्रावकनोधर्म प्रकाश्यो बे, श्रावकनां ए बार व्रत जे श्रादरे एटले पाले ते प्राणी तरे अर्थात् तेवो श्रावक लवरूपी समुख तरीने मोक्षसुख पामे. ७५ (मालिनी बंद) निशिदिन जिनकेरी जे करे शु सेवा, अणुव्रत धरि जे ते काम आनंद देवा ॥ चरम जिन वरिंदे जे सुधर्मे सुवास्या, समकित सतवंता श्रावका ते प्रसंस्या ॥६॥ जावार्थः- जे प्राणी प्रजुनी शुरू मने रात्रि अने दिन सेवा करे तथा अणु कहेतां मुनीथी पातला श्रावकनां व्रत ले ते धारण करे अर्थात् अहनिश जिनेश्वर नगवाननी सेवा करनारा तथा बार व्रत पालनारा श्रावक होय. एवा कोण थया ? तो के-श्रानंद अने कामदेव, के जेनुं समकित अने सत्यवादीपणुं श्री वीर लगवाने स्वमुखे वखाएयु ने अने ते प्रथम सौधर्म देवलोकने विषे गया . ७६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ नाषान्तर सहित. ॥ कामदेव श्रावकनो प्रबंध ॥ चंपानगरीमा कामदेव श्रावके एक वखत रात्रिनेविषे कानसग्ग को हतो. ते वखत बत्रीस लाख विमानना स्वामी प्रथम देवलोकना इंछे तेमनां वखाण काँ. ते सांजलीने एक मिथ्यादृष्टी देवताये कह्यु के- ए तो समज्या ! हवणां हुँ जईने चला, एना शा नार ? एम कही ते ज्यां कामदेव हता त्यां आव्यो. तेणे हाथीनुं स्वरूप करी कामदेवने हेगे नाखी गुंद्यो तो पण ते वाज न आव्या अर्थात् जरामात्र ध्यानथी चूक्या नहीं. पडी देवता मूसल जेव९ जाडं काला वर्णनुं सर्पनुं रूप करी फू फूंकार करतो डसवा लाग्यो तो पण ते चट्या नही. पली अट्टहास करता राक्षसनुं रुप विकुव्र्यु, तेणे परिसह कर्यामां कांई मणा न राखी. रात्रिना चारे पहोर महा कदर्थना पीमा नीपजावी परंतु कामदेव ध्यानथी लेश मात्र चव्या नहीं. देवताये अवधीझान वडे पोते करेला उपसर्गनी अतुव्य देवनानोप्रजाव जोयो तो मेरुना शिखरनी परे तेने (कामदेवने) निश्चल दीठा तेथी ते पगे लाग्यो भने पोतानो अपराध खमावीने वस्थानके चाल्यो गयो. ए विषे उपदेश मालामां कडं ने ते गाथाः"जेदेवेहिं कामदेवो, गिहीवीन विचाली ॥ तवगुणेहिंमत्तगयंदनुयंगम, रखसघोरट्टहासेहि ॥१॥” पली प्रजाते कामदेव काउसग्ग पारी श्रीवीर नगवानने वांदवा गया. ते वखत जगवाने बार पर्षदानी आगल कह्यु के, साधु थका तो नियम पाले, पण जु ! श्रा श्रावक थके केवो नियम पाल्यो ? पनी रात्रिने विषे बनेली देवताना उपसर्गनी सर्व हकीकत जणावीने ए समकितवंता शुरू श्रावकनी जलीपरें पसंस्या करी. ७६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग श्म अरथ रसाला ( विशाला) जे रची सूक्तमाला, धरमनृपति बाला मालिनी बंद शाला (माला)॥धरम मति (नय)धरंतांजे शहां पुन्य बांध्यो (ए इहां पुण्य वाध्यो),प्रथम धरम केरोसार ए वर्ग (धर्म) साध्यो॥ . नावार्थः-ग्रंथकार कहे जे के, एवी रीते बोहोला अने रसाल अर्थ जेमां बे, एवी आ धर्मराजानी पुत्री समान सूक्तमालानी रचना विशेष मालिनी बंदमां करी , अहींया धर्मबुझि धारतां प्राणी पुन्यनी रासी बांधे , एवो था चार वर्ग मांदेलो पहेलो धर्म वर्ग कह्यो. ७७ ॥ इति श्रीसूक्तमुक्तावली ग्रंथेप्रथम धर्म वर्ग समाप्तम्॥१६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ॥ अथ अर्थ वर्ग प्रारभ्यते ॥ ॥ तत्र - अर्थवर्गना प्रकार | उपेंद्रावज्रानंद. यथार्थवर्गे दितचिंतनं श्री, मितं पदार्थख महीशसेवा ॥ खलादिमैत्री व्यसनादि चैव, मिदावधार्याः कतिचित्प्रसंगा॥॥१॥ जावार्थ:-श्रा वीजा अर्थ वर्गने वीपे १ संपदा, २ हित करवुं, ३ लक्ष्मी उपार्जवी, ४ द्रव्य पदार्थ, ५ नरेशने सेववो, ६ खलादिनी मैत्री न करवी अने 9 व्यसननो संबंध, एरीते सात प्रकारनो संबंध कहेवाशे. १ " ॥ अथ अर्थ एटले संपदा विषे ॥ मालिनी बंद ॥ र रजि जेणे स्वायते विश्व दोवे, जिण विण गुण विद्या रूपने को जोवे ॥ अभिनव सुखकेरो सार ए अर्थ जाण, सकल धरम एयी साधिए चित्त आणी ॥ २ ॥ जावार्थ:- जो संपदा पासे होय तो विश्व कहेतां बधी - थवी पोताने हाथ थाय; एना ( संपदा ) विना गुण, विद्या अने रूपने कोई जोतुं नथी, अर्थात् जेनी पासे धन न होय ते गुणवान होय, विद्यावान होय अने रूपवान होय तोपण ते शोजाने पामतो नथी-धन विनानो होय तेने कोई लेवामां गणतुं नथी, माटे गुणनुं घर ते द्रव्य जावुं; वली - जिनव सुखनुं मूल ए अर्थने जाणवो, एटले धन पासे होय तो हरेक प्रकारनं सुख प्राप्त थाय छे; अने तेना वडे बधा धर्म पण साधी शकाय बे तथा चित्त वामनुं कारण पण द्रव्य बे. अर्थात् जो धन पासे होय तो चित्त पण स्थिर रहे. ते उपर उत्तम कुमारनुं चरित्र उपयोगी होवाथी अहीं बतावीये बीए. २ २२ Jain Educationa International १६ए For Personal and Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥ संपदाथी सुख पामनार उत्तम कुमारनी कथा ॥ वणारसी नगरीमा मकरध्वज राजानी शीलगुणे करी विराजमान लक्ष्मीवती राणीनो पुत्र दयालु, सत्यवादी, न्यायधमैने विषे कुशल, माह्यो, परस्त्रीविरत, संतोषी, देव गुरुत्नक्तिकारक, धर्मनो रागी, परउपकारी, बहोत्तेर कलानो पारगामी, विनई, ईत्यादि अनेक गुण संपन्न “ उत्तमकुमार " नामे हतो. एक वखत घरमां बेठा थका, परदेश जई जाग्यनुं पारखं जोवानो विचार करी ते चाली नीकट्यो. गाम, नगर, शहेर, पुर, पाटणादिना मंडाण जोतो जोतो ते चित्रकुट पर्वतने विषे गयो. त्यांना महसेनराजाना ताबामां मेवाड, मालवो, बाणुंलद मारवाम, सौराष्ट्र, कर्णाटक विगेरे घणो मुलक हतो. तेने पुत्र के पुत्री कांई नहोतुं. तेथी ते वैराग्यनी वासनामां लीन थई राज्यना वारस माटे चिंता करतो कोईक गुणवंत मलीआवे तो तेने पोताना पुत्र तरीके राखवा शोध करतो हतो. एकदा ते राजा नवा वबेरा उपर बेसीने नगर बाहार फरवा गयो हतो. ते वरानी मंदगति जोईने राजाए प्रधानप्रत्ये तेनुं कारण शुं ? एम पुज्यु. ते वखत त्यां पागल उत्तमकुमार श्रावेलो हतो तेणे ते प्रश्न सांजलीने कडं के, ए घोडे ( वळेरे ) नेसनुं दूध पीधुं तेथी एनो वेग मंद . केमके नेसतुं दूध वायडं डे तेणे करी ते दोडी शकतो नथी. एवं सांजली राजाये पुज्युं जे-वत्स ! तें ए केम जाएयु? उत्तमकुमारे तेना उत्तरमा जणाव्यु के-हुँ घोडानी परिदा (अश्वविद्या) जाणुं बुं. राजाये कडं-तहारूं कहे, साचं . ए घोमानीमा मरी गई हती तेथी एने नेसनुं दूध पायु बे. पडी राजाये पुब्युं के, तुं कोण ले ? उत्तमकुमारे यथायोग्यतायै जणाव्यु. राजाए आ कोईक राजपुत्र तो खरो ! एम विचारी कडं केः-तुं महारूं राज्य ग्रहण कर, केमके महारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २०१ श्रा संसार मुकीने परमेश्वरनो मार्ग आदरवो बे. उत्तमकुमारे कह्यु के-हे पिताजी ! महारे आगल जq , माटे आवतां जे कहेशो ते करीश. एम कही ते त्यांथी पागल चाख्यो. अनुक्रमे जरूच आव्यो. त्यां नगरनो तमासो जोतो जोतो श्री मुनीसु. व्रत स्वामीना प्रासाद पासे आव्यो. देहेरामां जई घणी नक्ति सहित परमेश्वरने नमस्कार को. त्यांथी नीकलतां तेने खबर मली के आ शहेर ( जरूच ) नो कुबेरदत्त नामे वहाणनो व्यापारी अढारसें जोजन उपर मुग्ध नामे दीप डे त्यां जवा माटे वहाण जरीने तैयार थयो . उत्तमकुमार तेनी पासे गयो अने पृथवीनुं कौतक जोवा माटे जाउँ ठरावी ते वहाणमां बेठगे. जरूच बंदरथी वहाण नीकली दरीयामार्गे जतां केटलेक दीवसे वहाणमांजरी राखेढुं मीतुं पाणी खूट्यं लोक चिंतातुर थया. पनी अन्य छीपे जई पाणी नरी लीधुं. त्यां नमरकेतुराजा घणा राक्षसनो परिवार लेईने श्राव्यो. तेणे केटलाक माणसोने पोतानी कदामां घाल्या, केटलाकने हाथमां काख्या, अने केटलाकने पग नीचे चाप्या. केटलाक लोक त्यांथी नाग अने केटलाक वहाणमां पाई रह्या. लोकोनी एवी उरदशा जोईने सत्यवान्, पराक्रमी, वीर अने धैर्यवंत एवा उत्तमकुमारे राक्षसना राजाने पोतानी सामे बोलावी युद्ध करवा मांड्यु. ल. ढता लढतां ए घणे पूर नीकली गया. उत्तमकुमारनो मार सहन नही थवाथी मरकेतु नाशी गयो. पनी ते समुफ कीनारे आव्यो तो मालम पड्यु के वहाण चाली गयां. तेथी मनमां चितवन करवा लाग्यो के, जु ! में ए सर्वने जीवता मुकाव्या अने ए मने मुकीने चाल्या गया. माटे संसारमां कोई केहy नथी. अथवा वली ते लोक पण शें करे ? कर्यां कर्म तहारे जोगववांज जोश्ये. वली तुं एकलो , तहारूं कोई नथी, तहारो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.७२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग धर्म एक बे, एवे समये कोईने दोष देवो घंटे नही, महारां जवांतरनां कर्या जे कर्म ते जोगववांज जोइये. एवं विचारीने त्यां श्रागल जाग्या वहाणना जेवुं चिन्ह करीने रह्यो फल फूलेकरी प्राण धारणा करे बे. एवामां साक्षात् कंदर्पावतार समान था उतमकुमारनुं रूप देखीने ए डीपनी देवी व्यामोहप्रत्ये पामी. हाव जाव रूप शृंगारादिक जे स्त्रीयोना सोले सामंत तेने तैयार करीने उत्तमकुमारना कंदर्पराजाने जीतवा काजे ते देवीए प्रथम नेत्ररूपी सामंत मार्फत चमर रूपीया बाण नाखवा मांड्यां. पठी जीव्हायें वचन रूपीया बाण नाखवा मांड्यां. पढी स्तन रूपी या शीखर देखावा लागी. शामाटे जे ? कंदर्पराजानी स्वारीनी वेलायें जाणे ए हृदय रूपीया पर्वत उपर निशानज चढाव्यां होयनी शुं ! एम जाणे ए स्तन रूपीयां नगारां नहोय शुं ? अर्थात् कंदर्पने जीतवा माटे मोहराजानी फोजनां स्तनरूपी नीशान डंका देखाडीने उत्तमकुमारने ललचाववा मांड्यो. एवा घणा प्रकार करी करीने थाकी पण मेरूपर्वतना शीखरनी परे उत्तमकुमारने निश्चल जाणीने देवी दर्ष पामी, तेथी तेणे साढा बार क्रोम सुवर्णनी वृष्टि करी ने कुंबरनी स्तुति करी ते पोताने स्थानके चाली गई. त्यारपठी त्यां श्रगल समुद्रदत्त वहाणवटीनां बहा श्राव्यां. तेणे उत्तमकुमारने पोताना वहाणमा बेसार्या. ए वहाण चालतां केटलोक वखत यतां तेमां पण पाणी खुटवाथी लोको तरसे व्याकुल व्याकुल थवा लाग्या. एवखत मालमे ( निर्यामके ) शास्त्र जोईने कथं के, जाईयो ! वेलनां पाणी जलकांत रत्ने करी फरश्यां वे माटे यहीं पर्वतने विषे श्रगाध कुर्ज तेथी पाणी महा मुश्केलीये पामीये एवं बे. वहीं मरकेतु राक्षस रहे बे ते लोकनो संहार करे बे एवी बात में परंपराए सांजली बे. परंतु नजीकमां बीजे पाणी मले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १७३ ते नथी, माटे ही वहाण राखीने पाणी जरी ब्यो. एम कही तेणे नांगर नाखीने वहाण थंजाव्या. पाणीनी घणी अगत्य हती पण राक्षसना जये करी वहाणथी नीचे उतरवानी कोईनी हाम चाली नहीं. अर्थात् कोई पण माणस उतर्यु नही. पी करुणारसना जंडार उत्तमकुमारे वहाणमांथी उतरीने पाणी ना स्थानके जई दोर बांधी लोकोने कयुंके, यावो, यावो. हुं जो बुं, बतां जो के राक्षस तमने शुं करे बे ? एटले महारी हाजरी होवाथी राक्षस तमने कांई करी शकनार नथी माटे सुखेथी वो. एम कही कुमार राक्षसनी पासे जईने वेगे. पी लोक निर्जय थथा थका उतरीने जलने वास्ते जाजन लेई कुवा थागल गया. तेमणे दोर बांधीने वासण कुयामां फांस्यां पण चलुं करे एटलुंए पाणी श्रव्यं नही. अने कोईनी तरस पण बीपी नही. ते जोई उत्तमकुमारे विचार्य जे आटला बधा लोक पाणी विना मरो कुवामां पाणी देखाय बे परंतु ते वास मां श्रावतुं नथी. माटे कोई पण प्रकारनुं कारण खरूं ! वली लोकनां वृंद पण कूप मध्ये आडुं श्रवलुं जुए के अने मनमां रा सनी बीक पण धरे वे के, रखेने राक्षस श्रवशे तो आपण सर्वने जक्षण करी जशे. ए वखत वहाणनो अधिकारी बोल्यो जे - जाईयो ! एवो कोई पुरूष बे ? के जे कुवामां उतरी जल मोकलुं करे ? राक्षसनी बीके करी कोईये हा जणी नही तेथी सर्व चिंतातुर था. पढी परोपकारी उत्तमकुमारे, हुं हाजर तां उपकार न करूं तो महारुं साहसी कपणानुं वीरूद जाय, एम विचारी कुवामां उतरवानी तैयारी करी. बीजा व्यवहारीया ते वखत कहेवा लाग्या के तमे उतरशो नही. परंतु उपकार करवाने जेनुं मन तलपापड घई रधुं बे एवो उत्तमकुमार तरतज रजु ( दोर साथे मांची ) बंधावीने कुवामां उतर्यो. ते पाणी · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग श्रावतां अटक्यो अने जोयुं तो नीचे सोनानी जाली हती तेना बीजोमाथी थोडं थोडं जल आवतुं मालम पड्यं. तेथी ते विचार करवा लाग्यो के, एमां कांई पण कारण ले खलं! एवी सुवर्णनी कंबा (जाली)तो किहांये दीठी नथी, तेम सांजली पण नथी. पठी उत्तमकुमारे जोर करी जालीने श्राडी अवली हलावी एटले पाणीनो प्रवाह चाल्यो. कुत्रा उपर रहेला लोक हर्षवंत या थका कुमारनी स्तुति करवा लाग्या. लोकोए पाणी पीधुं अने नाजन नरी लीधां. हवे आएं अवडं तपासतां उत्तमकुमारे कुवानी नीते उंचे एक जाली दीठी. त्यां कांखीने जोतां मांहे मणीरत्नमय पावडीयां दीगं. पठी मनमा विचार कर्यों के अहीं पण नाग्यनी परिदा करवा जेवू दीसे ने ! एम धारीने ते जाली खसेडी अंदर पेगे ने पगथीयां उतर्यो, एटले एक मार्ग तेनी नजरे पड्यो. त्यांथी पागल चालतां एक अनुपम महेल तेना जोवामां श्राव्यो. तेनी नजीक जतां एक वृद्ध स्त्री त्यां बेठेली हती ते बोली के, हे हीन पुन्याश्ना धणी ! तुं कोण ले ? शुं तुं चमर राक्षसने उलखतो नथी ? जे तुं अहीं श्राव्यो ? तेवारे कुमार बोल्यो के, हुँ तेने जाणुं बु, हुँ ए मरकेतु राक्षसने जीतनार बुं. माटे ए प्रासाद कोनो ने अने तुं कोण बे ? ए मने कहे. वृक्षा स्त्री एवं सांजलीने कहे जे जे- हे सत्ववंत ! हे धीरजवंत ! सांजल. अहींथी ढुंकमो रादस हीप , त्यां लंका नगरी बे. तेनो स्वामी चमर नामे रावस . तेने महालसा नामे चोस कला निपुण अति रूपवान एक पुत्री . एकदा जमरकेतुए निमित्तियाने तेनो नर्तार कोण थशे ? एवं पुलवाथी ज्ञानबले तेणे का के-नूचर क्षत्रीय उत्तमकुमार एनो जार थशे. ए राजाधिराज थशे तथा घणा विद्याधर एने सेवशे. ते सांजली चमरकेतु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. १०५ खेद पाम्यो जे, हुं राक्षस उतां महारी पुत्री नूचर दात्रीय परणशे, ए कशा कामनुं नही. एवं विचारीने तेणे आ कुवामां मार्ग करीने या प्रासाद तैयार करावी तेमां पोतानी पुत्रीने राखी बे. वली ए राक्षसे पुत्रीना रागे करी तेणीने पांच दीव्य मनोहर रत्न आप्यां बे. एक वखत दासीनी साथे तेणीए कांक वस्तु मगावी ते दासी लेईने आवतां थकां कुवामां पडी. तेथी ए रादसे कुवामां सोनानी जाती जमावी बे. त्यारपती वली रादसे निमित्तियाने पुब्युं जे- आ पुत्रीनो नर्तार कोण थई श्रावशे. त्यारे पण तेणे की, के-जूचर क्षत्रीय थशे. राक्षसे कडं के, एर्नु कांई एधाण कहे ? निमित्तियाए जणाव्यु के- समुत्रमार्गे वहाणमां बेसी आवनारा लोकने तहारो जय , ते तेहज मटावशे. तहारी साथे युक करीने ए तने जीतशे. एवं सांजली शून्य चित्त थयो थको ते (राक्षस) छीप माहे फरे बे. त्यारपडी आगल जे कांई थयुं होय ते, ए जाणे. महारा मोहो आगल जे कांई थयु डे अने में सांजलेढुं बे ते सर्वे बीना तमोने कही. ए वात सांजली कुमार चिंतववा लाग्यो के, चमरकेतु राक्षसने तो में जीत्यो बे, ए महारो शत्रु ने अने तेनेज घेर हुँ श्रावी चढ्यो बुं, माटे हवे काईक माया करूं ! एटलामां तो महालसा कन्या त्यां आवी. तेनी तथा उत्तमकुमारनी दृष्टी मली, तेथी ते व्यामोह पामी. तेवारे वृक्षा स्त्रीए ते बे जणने गांधर्व लग्न करी परणाव्यां. पड़ी महालसाए दासी पासे रत्ननो करंडी मगाव्यो. ते लेई बन्ने जणा (उत्तमकुमार तथा महालसा) कुवानी मेखलाये श्राव्या. ए अवसरने विषे कोईक वहाणना लोक पाणीने वास्ते कुवा उपर श्रावेला हता ते ए कुमारने अंदर दीगो. एमणे दोर मुकी दासी सहित बन्नेने बाहार काढ्यां. तेमने जोर्श, श्रा ते कोई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JE सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग देवता संबंधी के शुं ? एम ते विचार करवा लाग्या. पठी ते बन्नेने वहाणमा बेसारीने ते त्यांथी चाली नीकल्या. वहाण चाल्यां जाय बे एवामां वली तेमां पण केटलेक दीवसे पाणी खूट्युं. तेणेकरी सर्व लोक चिंतातूर थया. ते वेलाये महालसा बोलीहे स्वामी ! महारी पासे करंडी यामध्ये रन वे तेनो घणघणो महिमा को बे, ते सांजलो. १ पृथवी नामे रल बे. तेने पूज्युं थकुं मणी कनक रत्नमय जाजन प्रगट थाय एवो ए मणीरत्ननो प्रजाव बे. बीजुं - जलरत्न बे. ते पूज्या थका व्योमघृतवांबित जल वृष्टि याय, ए रत्नना जोगथी श्रकाले मेघ वरसे. त्रीजुंवह्नि रत्न बे. तेनाथी अनि विना सूर्यपाक रसवति निपजे. चोथुं - वायु रत्न बे. तेनाथी तापनी व्यथा समे, मनमान्यो वायरो वाय. छाने पांचमा रत्नथी देवडुष्य वस्त्रनी प्राप्ती थाय. एवां महिमावंत पांच रन बे. माटे हे स्वामी ! तमे दुखीया लोकने उधरो, उपकार करो. एवं नारीनुं वचन सांजलीने हर्षवंत थया थका कुमारे जलरत्नने पूजीने वढाएना कुवास्थंने बांध्j. तत्काल वरसात वरश्यो लोकोए पाणीवडे पात्र जय, जल पीधुं ने आनंद पाम्या. त्यारपठी केटलेक समये अन्न खूट्युं. त्यारे पृथ्वी नामा रत्नने पूजी धूपीने धान्यने स्थानके मूक्युं . एटले खूट धान्य ययुं. लोकनी नूख जागी. श्रावो अथाह उपकार करनार कुमारनी सघला लोक सेवा करे. पण ते बहानो उपरी ( मालीक ) समुद्रदत्त रंजा समान स्त्री रत्नो देखीने ललचायो. तेणे परलोकनी पण बीक न राखतां लाग जोई उत्तमकुमार ने समुद्रमां नाख्यो. लोकमां हालकलोल थयो. घणा लोको रोवा लाग्या. महालसा एवात सांजली मरवाने उजमाल थई. ते वखत दासीए कनुं जे- बालमर्णे शुं थाय ? जिनेश्वरना शासनमां बालमनी ना कही बे. माटे जेम तेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सदित. २०७ करी समुदत्तने जोलवीने शील राखो. वली रत्नना प्रजावधी श्रापणे अनिष्ट तटे जईशं. त्यां जाग्य योगे समुखथी श्रावेल तमारा स्वामी पण मलशे, एम हुं धारूंबुं. तेम बतां जो ए नही मले तो आपणे दीक्षा लेवी. सखीनां वचन सांजली महालसाए ते प्रमाणे वर्त्तवा निर्धार को. __ उत्तमकुमार समुजमा पड्या पड़ी तेने एक म्होटा मगरमछे गल्यो. ते मल तटनेविषे श्राव्यो एटले मागीए जालमा पकडी तेने विदार्यो, तेमांथी उत्तमकुमार नीकल्यो. धीवरे तेने उपचार करी सावध कर्यो. मदालसाए अनिष्ट छीप संजार्यो एटले वायुरनना जोगश्री तेना साहाज्ये करी ते वहाण बे दीवसमां पसी नामना बंदरने कांठे श्राव्या. त्यां जैनधर्मी नरवर्म राजा राज्य करे . तेनी पासे घणां रत्ननुं नेटणुं तथा मदालसाने साये लेई समुदत्त आव्यो. राजानी सन्मुख नेटणुं मुकी उनो रह्यो एटले राजाये कुशल वार्ता पुबीने कडं जे-अहो जहाजना वे. पारी ! तमे कोण देश, कोण छीप, कोण नगर अने कोण बंदरथी श्राव्या. वाणीये कह्यु के, हुं चंबडीपथी श्राव्यो. मार्गे श्रावतां थकां एक स्त्री जडी डे माटे हुकम आपो तो आपनी साखे हुं तेणीने स्त्री करी रा. ते सांजलीने मदालसाए की, के, हे स्वामी ! ए वणीक महा धूत्त जे. एणे. महारा स्वामीने समुखमां ढोली नाख्यो . ए महा पापीष्ट , महा चंमाल बे. माटे ए इष्टर्नु मुख पण जोवू घटीत नश्री. ए पापीनुं मों जोवाश्री पाप लागे. स्त्रीनां आवां वेण सांजलता राजा वणीकना उपर कोधायमान थयो अने तेनां पांचसो वहाण हतां ते जप्त करी तेने बंधीखानामां नाख्यो. मदालसाने पोतानी पुत्री सहस राजाये राखी. पडी तेणीये रत्नना प्रजाव वडे धन धान्यादि मेलवी अढलकदान देवा मांड्युं जैनधर्मनेविषेषणी सावधान रहेवा लागी. २३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 290 सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग वली जिननी पूजा करे, जीवने उपकार करे, ईत्यादि धर्म कार्यमां ते अहर्निश तत्पर रहेती. तेणीये काया बलवंत थाय तेवी वस्तु वापरवानो निषेध कर्यो. पृथ्वी उपर सयन करवुं स्नान न कखुं, रूमां वस्त्राजरण न पदेवां, सुगंधिक विलेपन न करवां, तंबूल न खावां, लविंगादिकनो त्याग, सर्व शाकनो नियम, दही दुध पकवानादिक तथा गोल खां साकर प्रमुख सर्वनो नियम कर्यो. निरस आहार लेवो, एकास कर, कोई म्होटा काम विना बाहिर न नीकलकुं, गोखे पण न बेसवुं, लोकना विवाद पण न जोवा, सखी साधे पण शृंगारादिकनी वात न करवी, वैरागनी ज वातो करवी, वली चाकर नफर साथे पण वात न करवी, एवा एवा अनेक नियम धारीने ते रहे. } उत्तमकुमारने साथ लेई कांईक कारणसर माबी पल्लीवालाकुले श्राव्यो. ए वखत नरवर्मराजा पोतानी पुत्री सारू सातनूमी श्रावास करावता दता तेना उपर ऊंचा उजारही नगरनी चर्चा जोता हता. उत्तमकुमार पण उपर गयो. त्यां जे कमीच्या सुथार मजुर काम करता हता तेनी पासे जईने तेने तेने वास्तुकशास्त्र प्रमुखनी समजुती यापी सहुए ते सांगली चमत्कार पाम्या ने जे कारीगर हता तेमणे ए विश्वकर्मा ने एवं धारीने तेने पोतानी पासे राख्यो. तेनी साथे जे माठी याव्यो हतो तेनी नात जुदी पडी एटले उत्तम मध्यम जातना जिन्नपणानी परिक्षा करी पी. पी आवास संपूर्ण थवाथी राजा प्रमुख ते जोवा सारू श्राव्या. त्यां उत्तमकुमारनुं रूप सुंदर - पणुं जोईने राजा विचारखा लाग्यो के, याकारनी चेष्टायेकरी ए कोईक उत्तम जाति जगाय बे. उत्तम कुल वंश विना एवं स्वरूप न होय ! माटे उत्तम वंशनो खरो ! एम मन साथे निश्चय करी निमित्तियाना वचने राजाये पोतानी त्रिलोचना नामे पुत्रीने तेनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सदित. १ ल साथै परावी निश्चिंत थवानो विचार कर्यो. पठी शुभ मूहूर्त्ते पाणीग्रहण कराव्यं. अने रहेवा माटे एज सातमालनो व्यावास थाप्यो. उत्तमकुमार ते धावासमां सुखे रहे. एक वखत महालसा पोतानी दासीने कड़ेवा लागी के, दजीसुधी महारा जर्तारनी खबर कोई न पमी, तेथी हुं एम धारूं बुं के ते समुद्रमां म पाम्या हशे . माटे हवे जीवीने शुं करवुं बे ? आपणे तो ए रलना महिमाथी वितरागदेवनां प्रासाद कराव्या, स्वामीवत्सल कर्या, ज्ञान लखाव्यां, दान दीघां विगेरे धर्मनो लाहो लीधो वे. माटे हवे धन संपदा त्रीलोचनाने यापीने संसारसमुद्र तरवा माटे दीक्षा ग्रहण करीशुं. ते वखत दासीये कयुं के-स्वामीनी ! एम एवको विषवाद म करो. एवं सांजलवामां आवे छेके, राजकन्या त्रीलोचना रूपलावण्य सर्व गुणना नाजन एवा एक परदेशीने वरी बे. शुं जाणीये जे एहज तहारो जर्तार हशे ! जो तमे रजा आपो ता हुं त्यां जईने जोई आ. स्वामीनीनो श्रादेश पामी दासी त्रिलोचना पासे गई. त्यां तेणे उत्तमकुमारने जोयो, पण कांईक चान्ति रही. पठी त्रिलोचना साथे वातचित करी पोताना मुकामे यावीने महालसा आगल परदेशीना रूप लावएयनी हकीकत कहीने जणाव्युं के ए श्रापणा स्वामी जेवो बे, परंतु ते विषे हुं संपूर्ण खात्री करी शकी नथी. ते सांजली महालसा बोली जे - धिक्कार पमो मने, के जे में काने परपुरूषनुं नाम सांजल्युं. ए परपुरुष उपर राग यायो ते पाप लाग्यं. एम विचारीने वली पाठी धर्मने विषे सावधानपणे थई, दासीना गया पबी कुमारे त्रिलोचना प्रत्ये पुग्धुं जे, हमणां तहारी साथे वात करी गई ते वृद्धा स्त्री कोण हती ? स्त्री कहे दे खामी ! हे प्राऐश ! महालसा नामे परदेशी स्त्री, के जेने में बेहेन कही बे, तेनी ए दासी यावी हती. ते सांजलीने उत्तमकुमार मन साथे ་ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग विचार करवा लाग्यो के, शुं ए महारी जारजा तो न होय ! वली विचार्य जे, ए ते में शुं चिंतव्युं ? ए में दुर्ध्यान शुं ध्यायुं ? एवं चिंतवी विरक्तपणे पोतानी निंद्या करवा लाग्यो. पी एक दीवस मध्यान समये ते पोताना घरनी नजीक देरासर हतुं त्यां पूजा करवा गया. त्यां पूजा भक्ति करतां थकां घणी वेला यई घरे नाव्या तेथी त्रिलोचनाए तेमनी खबर काढवा दासीने मोकली. दासी त्यां वी सघले जोया पण किहांये न दीवा तेथी ते पाठी गई, ने त्रिलोचनाने ते वात जणावी. ते सांजली त्रिलोचना चिंता करवा लागी. १८० · तेवा समयने विषे ए नगरमां महेसरदत्त नामे व्यवहारी रहे तो हतो. तेनी पासे उपन क्रोम द्रव्य हतुं तेणे वहाण वटना व्यापार माटे पांचसें वहाण तथा थलवटना व्यापारार्थे अधोवाईनां जेवां पांच गामां राख्यां हता. ते पांच घर, पांचसें हाट, पांच वखारो, पांचसें गोकुल, पांचसें हाथी, पांचसें घोमा तथा पांच लाख सेवकनो स्वामी दतो. एटली बधी संपदा तां तेने एके पुत्र नहोतो. ईछा धरतां धरतां एक पुत्री थई हती तेने श्रध्यापक पासे जणावी बे. ते कोईक पुन्यानुयोगे करी चोसठ कला निधान थई बे. शेठ संसार उपर वैराग्यवंत थयो बे, पण पुत्री योवनवंत थई जाणीने तेना पाणीग्रहणनी चितामां पड्यो बे जे, कोईक गुणवंत वर मले तो तेने कन्या आपीने या असार संसारनो त्याग करी चारित्र लेउ पठी तेथे एक निमित्तियाने पोतानी पुत्रीनो जर्तार कोण थशे ? ए विषे पुब्धुं निमित्तियाए कयुं जे- आजथी एक महिने - मुक तारीख वारे वर मलशे. ए राजाधिराज एकत्रनो नोक्ता थशे. शेठे निमित्तियाना कड़ेवा उपर पूर्ण नरोंसो राखी बतावेला दीवसे पोतानी पुत्रीनुं लग्न करवानो निर्धार करी सर्व · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १८१ सामग्री तैयार करी बे. म्होटा मांडवा बंधाव्या बे. वामोवाम तोरण बंधाव्या वे, धवल मंगल पण गवाय बे. कर मुकावणी वेलाये वरने पवा माटे हाथी, घोमा, रथ, सुखपाल, वस्त्राजर प्रमुख सर्व तैयार करी राख्यां वे ए वार्ता श्रखा नगमां विस्तरी बे. ते सांजली लोको विस्मय पाम्या के, वर विना विवाहनी सामग्री शेठे करी राखी बे एना जेवुं बीजं शुं नवाई जेवुं होय ! नगरनो राजा पण ते वात सांगली आश्चर्य चकित थयो, तथा महेश्वरदत्त संसार बोमी दीक्षा लेवाने उजमाल यो बे तेथी ने धन्यवाद देवा लाग्यो. ने पोते पण वैराग्य पामी विचार करवा लाग्यो के, त्रिलोचनाना जर्तारनी शुद्धि मी नथी तेने खोली कहाडीने राज्यगादीए बेसाडी महारे पण चारित्र ग्रहण कर एज श्रेय बे पढी ते महेश्वरदत्तने मल्यो अने बन्ने जणे मली नगरमां पकड़ो वजकाव्यो के, "जे कोइ त्रिलोचनाना जतरनी खबर धने महालसानी मूल वार्ता कहेशे, तेने राज्य श्रापवा साथे व्यवहारियानी सहस्रकला कन्या परपावशे. " या पकड़ो एक मास पूर्ण थवा श्रावतां एक शुके ( पोपटे ) बब्यो अने ते राजपुरुषोप्रत्ये कहेवा लाग्यो के, हुं पहा प्रमाणे बने बाबत बतावीश तेथी मने कन्या परणावशे तथा राज्य श्रापशेने ? अरे जु जु राजसेवको ! महारुं पण जाग्य जाग्युं बे. शुकनुं आश्चर्यकारक वचन सांजलीने सेवको तेने राजा पासे लेई गया. तेथे राजाने कयुं के, हुं त्रिकालनी वात जाएं तुं. महालसाने तथा त्रिलोचनाने अहीं बोलावी परि ( पदा) ने श्रांतरे राखो. एटले अतित, अनागत अने वर्तमान, ए त्रणे कालनी सघली बात कहूं. राजाए तेना कहेवा प्रमाणे बन्ने ने बोलावी राखी पढी पोपटे विचार्यु जे महारे राज्यने शुं कर बे ? तो पण महालसानो संबंध कहुं ते तमे सांजलो: " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग " वाणारसी नगरीना राजानो पुत्र उत्तमकुमार वहाणमां बेगे. ते समुद्रने विषे जलकांत पर्वतमां एक कुवो बे तेमां उतर्यो. त्यां पातालघरमा लंकाना स्वामी चमरकेतु राक्षसनी पुत्री महालसाने परएयो. पठी कुयामांधी नीकली समुद्रदत्तना वहाणमां बेगे. वहाना लोकोने पंचरत्नना प्रजावथी जल, धान्य, वस्त्रादि पूरा पाडीने सुखी कर्या. पठी समुद्रदत्ते धन तथा स्त्रीना लोकरी तेने ( उत्तमकुमारने ) समुद्रमां नाख्यो. तेने मगरे गल्यो. माठीए मगरने विदार्यो. तेमांथी ते नीकल्यो. पठी माठीनी साथै श्र नगरमां आव्यो. निमित्तियाने वचने करी राजाये तेने पोतानी पुत्री त्रिलोचना परणावी. ते सुखरुप यहीं रह्यो. एकदा मध्यानसमये ते वितरागदेवनी पूजाने अर्थ गयो. त्यां फूल पगर चढावतां तांबोली यासर्पे कस्यो. एटले ते उत्तमकुमार ईयल समान थयो बे. सर्पे तेने फूलना ढगलामां नाख्यो. " प्रमाणे महालसा तथा उत्तमकुमारनो संबंध कही पोपट कहेवा लाग्यो के, हे राजन् ! में तमारा आगल सघली वात कही, माटे मने राज्य यापो तथा कन्या परावो हवे तमे तमारुं वचन पालो. राजा विचारमां पड्यो के, ए पंखीने राज्य केम अपाय ? तेवारे शुक मौन करी रह्यो फरी वली ते बोल्यो के, ढे राजन् ! राज्य आपो के ते हुं जोगवुं राजा विचारमां पमी शून्य चित्त जेवो थयो एटले शुक कहे जे महारे शुं ? गमे तो राज्य आपो ! नही यापो तो तमारुं वचन वृथा थशे. महारे तो वन सलामत जोईये ! के ज्यां नवी नवी जातनां फुल फलादिक खाईने सुखे जीवीश. क्यां महारे तहारा राज्यनी तमा बे. में तो तहारी परिक्षा करी. वली सांजलः - कथं ब्रे के - " जे माणस वचनथी चूक्यो ते जीवता पण मुख्या समान जावो. " एवं सांजलीने ते शुकने पोताना हाथमां लेई राजा तेना शरीर या - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १८३ उपर हाथ फेरaar लाग्यो, अनेकथं के- हे सुकमाल शुकबाल ! हे शिरोमणी ! हे कीर ! हे धीर ! तुजने राज्य श्रापीशुं. ए वातनी तुं चिंता म करीश. पण हवे तुं खागल वात कहे, जे ए उत्तमकुमार जीवे बे के केम डे ? शुके कं जे- ' एणे तले तेल एटलुंज बे ! हवे कहे शुं ? ते तो पाणी मुलतान गयां ! तो पण राजन् ! हुं तुज सरिखो नथी यतो ! जो ! सांजल ! त्यारपढी जे वात थई, ते हुं तहारा आगल कहुं हुं. " उत्तमकुमारने सर्प डस्या पढ़ी कोईक काम प्रसंगे एकाकी गणिका त्यां घ्यावी चढी. तेणीए कुमारनी महारूपवान कांति देखीने तेना उपर मोह पाम्याथी तेनी पासे विषापहार मणीरत्नजडीत मुडिका हती तेने पाणी मां उली ( धोइ) ने केटक पाणी तेने पायुं ने केटलुंक तेना उपर बांट्युं. एटले तेज वेलाये विष उतरी गयुं ने ए जो थयो . पी गणिका तेने पोताने घेर तेडी गइ ने पोताना वासना चोथे मजले चिशालीमा राख्यो बे. ते त्यां तेनी साथे संसारिक रंगजोग विलसे बे. ते माटे हे राजन् ! एने शरीरे स्वस्ति एटले सुख बे. तेम तने पण स्वस्ति हो. हवे तुं मने मुकी दे, जेम हुं कुशले जाउं छाने फल फूल खाउं वली हुं याशीष वचन कहुं हुं के, तहारा राज्यने पण स्वस्ति हो. महारे राज्यनो खप नथी. वली ते सत्यवादी मनुष्यने पण मंगलीक हो. एम कहीं ने वली बोल्यो के, एज वैद्य जलो, के जे रोगीयानो रोग टाले ने इव्यनी यश करीने उस पे ते मूर्ख. माटे हे राजन्! हुं पण पक्षी जात मूर्ख ढुं. केमके सघली वात कहीने हवे हुं राज्यपदवीनी श्राशा करुं तूं. राजा ते सांजलीने कड़ेवा लाग्यो जे, तमे 'गुमडुं फाट्युं वैद्य वैरी' वैद्यवालो उखाणो कह्यो ते तो खरुं ! पण ए वातना मेल पूरो थया विना राज्य ते केम देवाय ? त्यारे शुके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग कडं जे, तमे गणिकाने घेर जा. राजाए सेवक पासे गणिकानां सघलां घर जोवराव्या. पण कुमारने किहांयें न दीगे, तेथी ते पाठा याव्या. राजाए कह्यु-हे शुकराज ! ए शुं ? ना ! तुं श्रमने पण नोलवे ? तें बोकरां दीगं? हे नुमा! एम ठगे चालशे के ? ते वखत शुक कहे जे जे- स्वामी सजिलो, जे गणिकाये अमृत गंटीने उत्तमकुमारने जीवाडी सज को तेणीये पोताना मनमा विचार्यु के, ए राजानो जमा बे, माटे राजा एने महारे घेर रहेवा नहीं ये. तेथी एणे मंत्र मंत्रीने दोरो बांध्यो. तेज वखत ए (उत्तमकुमार) शुकरूप थयो. जोग वेलाए ते दोरो बोडे बे अने वली पाडो बांधे जे तथा पंजरमा राखे जे. "ते वखत में हृदयमा विचार को के, एवं शुं पूर्वे पाप में कर्यु हशे के नर फीटी पंखी थयो ? वली राक्षसनी पुत्री मदालसाने तेना बापथी बानी परण्यो ए विगेरे अत्यारसुधीमा में थोडां पण करेलां अघटीत आचरणथी आफुःख मने पड्युं , ए तो श्रा नवनेविषे फूल बेठां अने परनवे नर्कने विषे एनां फल थशे. एवं विचारतां विचारतां एक मास सुधी अनंगसेना वे. श्याना घरने विषे हुं त्यां रह्यो. आज केटलेक दीवसे पांजरू बाहार मुकीने ते गणिका किहांयेक गई. ते वखते ए पमहो वाजतो सांजलीने त्यांथी नमी श्रावी में ते फरस्यो. ए उत्तमकु. मार ते हुं बुं.” एबुं सांजली तरतज राजाए शुकना पगथकी दोरो डोमी नाख्यो. तेवारे दीव्य रूपनो धणी जेवो हतो तेवो मूलरूपे (उत्तमकुमार ) थयो. राज्यवर्ग सहित राजा तथा नगरलोक हर्षवंत थया. ते वखत महेश्वरदत्ते निमित्तियाए बतावेली तारीख वार विगेरे बराबर मलतुं श्राववाथी पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवा माटे पोतानी पुत्री तेने परणावीने घणुं अव्यादि आप्युं. पड़ी ते त्रणे (महालसा,त्रिलोचना तथा सहस्रकला) स्त्री साथे जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २७ गनोगवतो थको सुखमां काल निर्गमन करे . त्यारपती राजाये अनंगसेना गणिकाने तेमावी ताडना करीने फूल पगरथी अमृत बांट्यांसंबंधी सघली वात पुडी.एटले तेणीए जणाव्यु के-समुदत्त व्यवहारिये उत्तमकुमारने मारवा माटे पांचसे सोनश्यानी लालच आपीने ए फूलमां महारी पासे सर्प नखाव्यो हतो. लोनांध थईने में ए म्होटुं पाप कर्यु. ते वात सांजली राजा कोपे चढ्यो. तेणे समुदत्त थता गणिकाने गरदन मारवा आझाापी. उत्तमकुमारे दया लावी ते बन्नेने जीवतां मुकाव्यां. राजाये तेमनी सर्व माल मिलकत बुटावी देई देशवाहार काढी मुक्यां. राजा पूर्वनो अर्थात् अगाउथी वैराग्यवंत थयेलो हतो. तेणे जमाई मल्या, पुत्रीने सुख थयुं,अने पोताने पुत्र नहोतो तेश्री पोतानुं सर्व समुन सुधीनुं राज्य उत्तमकुमारने आप्यु. पठी चारित्र लीधुं. तेनी साथे केटलाक व्यवहारियाए पण दीक्षा लीधी. नरवर्मराजाने पाटे उत्तमकुमार राजा थया. ते न्यायधर्मे राज काज चलावता त्रणे स्त्रीउनी साथे संसारीक सुख जोग नोगवता थका ते नगरमा रहे जे. ___ एक वखत चमरकेतु रादसे निमित्तियाने पुज्युं के, महारो वैरी उत्तमकुमार हालमां क्या डे ? तेणे कडं के, तहारी पुत्री महालसाने परणीने सारजुत पांच रत्न लेश हमणां हवे ते पल्ली नामे वेलाकुले राज्य नोगवे . ते सांजलीने क्रोधातुर थ तेणे उत्तमकुमार उपर चढाइ ले जवा माटे पोताना साठ लाख रादसने एक गमे बोलाव्या. परंतु अगाउथीज निमित्तियाए कहेलुं हतुं के नूचरदात्री तहारी कुमरीने परणशे. ए वात याद श्रावतां तेनो विचार बदला गयो अने मन साथे विचारवा लाग्यो के- धन्य निमित्तियाना ज्ञानने ! अने वली धन्य ते कुमारने ! के जेणे साहसीकपणे एकले कुवामां उतरीने त्यां २४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग सुना श्रावासमां जइ कन्या साधे पाणीग्रहणकर्यु तथा मूल्य पांच रत्न पण ले गयो. वली एकतो ए जमा थयो, जंकारे वध्यो, तथा कटकदले पण वध्यो. एवो विचार करतां तेनो क्रोध समी गयो. पढी ते उत्तमकुमारनी पासे तेना नगरमा आयो ने वैर विरोधनो त्यागकर । तेने पगे लाग्यो. कुशल समाचार पुढी श्राज्ञा मागीने ते पाढो पोताने गमे गयो. एकदा उत्तमकुमार राजा सजाने विषे बेठा बे, त्यां एक इत आव्यो. तेणे राजाने कागल थाप्यो. ते लेइ वांचतां तेमां नीचे लख्या मुजबनो मचकुर मालम पड्यो. " स्वस्ति श्री वाणारसी नगरीय ली. राजा मकरध्वज स्वपुत्र उत्तमकुमार प्रत्ये निर्जर आलिंगने देम कुशल इछे बे. हे पुत्र ! तमे घेरथी नीकल्या पी मे नगर, गाम, पहाड, पर्वतादि, गमो वाम तमारी खबर जोवरावी पण कं शुद्धि मली नही; तेथी दीलगीर दता. हालमां तमारा समाचार ज्यारे जाण्या त्यारे तमने वाने मे पीय मोकल्यो बे, माटे शीघ्रपणे जेम वाय तेम वहेला वहेला यावज्यो. दवे श्रमारी वृद्धावस्था बहु थइ बे, तेणेकरी अमाराथी राज्यधुरानी चिंता थइ शकती नथी. वली तमारा विरहे श्रात्म व्याकुल थाय बे. पल्लिवेलाकुल नगरनुं म्होढुं राज्य तमे पाया तेथी मे खुशी थया बीये. पण ए सुख वैजवमां गरक थ त्यां नहीं रहेतां शीघ्रताये श्राव. " कागलमां लखेल समाचार जाणीने तत्काल राजाये प्रधानने राज्य जलावी स्त्रीयोने साथे लेइ वाणारसी नगरीये जवा माटे प्रयाण कर्यु. रस्तामां चित्रकूट पर्वत श्राव्यो. त्यांनो महसेन राजा वैराग्यवंत थवाथी चारित्र लेवाने तत्पर थयेलो हतो. पण पुत्र परिवार न होवाथी राज्य कोने सोंप एनी चिंतामां हतो. राजाये कुलदेवीनी जक्ति करीने राधवाथी देवीये तुष्टमान थइ तेने कह्युं हतुं के, प्रातः Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. ចទ समये राज्यधुराधारी उत्तमकुमार श्रावशे, तेने तमे राज्य आपीने तमारा श्रात्मानो अर्थ साधज्यो. (दीदालेज्यो) देवीना कहेवा प्रमाणे उत्तमकुमार श्राव्या. एटले घणा आदर सहित महसेनराजाये चित्रकूटनुं राज्य तेमने आप्यु अने पोते श्री चंद्रशेखर सुरीश्वर पासे चारित्र लेश नवाब्धि तर्या. उत्तमकुमारे पोतानी आण प्रवत्ता: केटलाक दीवस त्यां रहीने घणा देश साध्या. पली सिंधुसोवीर नगरना राजाने पोतानी आण मनाववा माटे पुतमुखे कहेवराव्यु. तेणे ते कबुल नही करवाथी प्रधानने राज्य सोंपीने चार अदोहिणी कटक लेई ते ( उत्तमकुमार राजा ) तेने जीतवा सारू गया. त्यां रणसंग्राम करतां ते फतेह पाम्या. पली ते सिंधुसोवीर नगरना वीरसेन राजाये उत्तमकुमारने पोतार्नु राज्य आपी एक हजार पुरूष साथे चारित्र लीधुं. त्यारपती अनुक्रमे चालतां उत्तमराजा वाणारसी नगरीये श्राव्या. तेमना पिताये सामा आवी म्होटा मंमाणे नगरप्रवेश महोत्सव कर्यो. तेज दीवसे उत्तमराजाने तेमना पिताये राज्याभिषेक करी पो. तानुं राज्य सोंपीने दीक्षा लीधी. बधां मलीने उत्तमकुमार चालीस कोटी ग्रामना धणी थया. चालीस लाख गज, चालीस लाख अश्व, चालीश लाख रथ अने चालीश लाख पाला, एवी चतुरंगी सेना सहित राज्यशद्धि नोगवतां थकां उत्तमकुमारे गमो गम वितरागदेवना प्रासाद कराव्या. वर्षों वर्ष रथजात्रा करावता हता. गामो गाम दानशाला मंमावी. जीवदया मूल धर्म अंतःकरण पूर्वक पालता हता. वली ए दीन पुःखीयानो उझार करवामां सदा तत्पर रहेता हता. एकदा उद्यानने विषे केवली महाराज पधार्या. वनपालके वधामणी थापी. तेने घणुं धन आपीने उत्तम राजा प्रमुख वांदवा गया. देशना सांजल्या पली उत्तमकुमारे पुब्युं के,हेनगवान! शा कर्मे करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग हूं एवडी ऋद्धि पाम्यो ? शा कर्मेकरी हुं समुद्रमां पड्यो ? शा कर्मे करी शुकपणुं युं ? छाने अंगनसेना गणिकाने एवडुं शा कर्मे करवुं पड्युं ? ते कृपा करी कदेशो. केवलीमहाराज वोब्या के, हे राजन् ! सांजल:- " पूर्वे तुं हीमाचलनी चूलीकाने - विषे सुदत्त गाममां धनो नामे कवी दतो. तुं चार स्त्री परयो हतो. प्रथम धन धान्येकरी तुं सुखी दतो. परंतु पूर्वकृत कोईक कर्मना जोगे करी तने दारिद्रपणुं प्राप्त थयुं हतुं. एवामां रस्तामां यावतां वस्त्र पात्र लूटी लीवेला चार साधु ए गामने विषे श्राव्या. तेमने तें जकपणे फासु घटमान वस्त्र पात्र वहोराव्यां, तारी चारे स्त्रीए अनुमोदना करी. तेना प्रजाव थकी तुं राजा थयो बे. चारे स्थानकनुं राज्य पाम्यो. चार नारी परयो. वली पांच रत्न पाम्यो, तथा बीजी सार सार वस्तु मली. ए बधु साधुने श्रायानुं महात्म्य जाणवुं. एकदा पूर्वजवे तें साधुनी डुगंबा करी जे, या साधु मल परसेवे करी मछ जेवा गंधाय बे. ए कर्मेकरी तने मगरमछे गल्यो. वली पूर्व जवनेविषे तें शुकने पंजरमां घाली राख्यो हतो. ते कर्मना योगे या जवे तुं शुकपणुं पाम्यो. अनंग सेनाए पूर्व नवे सोक्यनुं धणुं रूप जोईने हास्यमां तेने गणिका कही हती तेथी ते गणिका थई. " एवां केवली जगवाननां वचन सांजलीने वैराग्य पामी उत्तमकुमारे घेर श्रावी पुत्रने राज्यनो जार सोंपीने एज केवली पासे दीक्षा लीधी. ए उग्र तप करी या पूर्ण थये थके काल करी देवता थया. त्यांथी चवीने महावदेह क्षेत्रने विषे अवतरी कर्म खपावीने मोद जशे. अनंतु सुख पामशे. तेमज बीजा पण जे जीव उत्तम करणी करशे ते तरशे. जुर्ज ! उत्तमकुमारना जीवे पूर्व जवमां पोतानी पासे अर्थ एटले द्रव्य नहोतुं तोपण साधुने सुपात्रे वस्त्र पात्रनुं दान दीधुं तेथी घणी राज कृद्धि अने रमणीर्ड पाम्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. एनए माटे अव्यनो सद् उपयोग करवो. वली नीराशापणे करवायी जेम उत्तमकुमार सुख वैलव पाम्या, तेम जे प्राणी नीराशाए करे ते सुख सौजाग्य पामे. माटे जे करवं ते नीराशापणे करवू. ए बी. जाकाव्यनो परमार्थ कह्यो. २ अरथ विण कवन्नो जेह वेश्याइ नाख्यो, अरथ विण वसिष्टे राम जातो नवेख्यो ॥ सुकृत सुजस कारी अर्थ ते ए उपार्जो, कुवणज नपजतो अर्थ ते दूर व| ॥३॥ नावार्थः- केवन्ना शेउनी पासे अव्य खूटवाथी वेश्याए तेने कहाडी मुक्यो, रामचंद्र जेवाने पण अव्यरहित जाणी वसिष्ट ऋषीये श्रादर न दीधो, माटे अर्थ ए जगतमा घणी वात बे, ते थकी सुकृतनो नंमार नराय, उत्तम जस पामे, अर्थवालाने गमे तेवू काम होय अथवा मातुं काम होय तोपण ते समुं थाय. माटे परिग्रह ए घणी वात बु. ३ ॥ अव्य विना वेश्याए केवन्ना शेठने कहाडी मुक्यानो प्रबंध ॥ बार वर्ष सुधी वेश्याने घेर रही तेणीने सोल क्रोम अव्य थापनार केवन्ना शेउना मावाप मर्ण पामवाथी तेनी स्त्री धन रहित थई त्यारे तेणीए पोतानां घरेणां मोकल्यां. वृक्ष वेश्याये घरेणां देखीने विचार्यु जे एने घेर हवे धन खूट्यु. माटे ए थापणे घेर कामनो नहि. पठी तेणीए पोतानी पुत्रीने कडं के, हे पुत्री ! ए निर्धन थयो मालम पडे डेमाटे एनो संग मूको. पुत्रीये कडं के, कोडो रुपीयाएना खाधा.वली एना सिवाय बीजानो संग पण में कों नथी अने सर्व वाते ए लायक , माटे एनो संग केम मूकाय ? ते वखत अक्काये क्रोध करीने केवन्नाने पोताना घर थकी हांकी कहाड्यो. ज्यां लगण एनी पासे अव्य हतुं त्यां लगण राख्यो. व्यहीण थयो त्यारे एक दीवस पण न राख्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग माटे उव्य ए जगतमां मोटी वात . व्यथी सर्व काम थई शके ने तथा मान पण मले . ३ ॥अव्य रहीत होवाथी रामचंछने वसिष्टषीये नवेख्यानो प्रबंध॥ रामचंदजीने ज्यारे तेमना पिताये वनवास आप्यो त्यारे तेमणे विचार्यु जे गुरुने पगे लागी तेमनी आशीष लेईने जQ, ए उत्तम बे. पडी ते वसिष्ट गुरुने वंदना करवा माटे गया. तेमने श्रावता देखीने एक शिष्ये गुरुने कडं के, रामचंजजी आवे . वसिष्ट झषीये पुब्युं जे, एमनी साथे कोण ले ? शिष्ये जणाव्यु जे, ए एकला . ते सांजलीने गुरु घरमां पेग. पठी रामचंजी श्राव्या. तेमणे पुज्यु के, गुरु क्या ? चेलाये कह्यु के, गुरु ध्यानमां ने. आवो उत्तर मलतां, लक्ष्मी विना सर्वे खोटुं बे, एम विचारी रामचंद्रजी त्यांथी पाग वदया. वसिष्टझषीये रामचंजजीने शधिरहित जाणीने उवेख्या अर्थात् बीलकुल श्रादर न दीधो. माटे लक्ष्मी ए जगतमां सर्व स्थले मान अपावनारी बे. लक्ष्मी रहितने कोई लेखामां पण गणतुं नथी. ३ ॥अथ हित चिंतन विषे ॥ परहित करवा जे चित्त उबाह धारे, परकृत हितहीये जे न कांई विसारे ॥प्रति दित परथी ते जे न वांडे कदाई, पुरुष रयण सोश्वादए सो सदा॥४॥ नावार्थ:- जे प्राणी परने हित करवानुं मन राखे, अने जे पुरुषे परनो कोश्क दीवसे कोईक वेलाये जे गुण को होय ते विसारे नही अर्थात् कोश्नो करेलो गुण जूली जाय नही, वली एवं पण न धारे जे में एनो गुण को डे, माटे ए मुजने काईक श्रापे, ए प्रमाणे कदी पण श्छता नथी ते पुरुष रत्न समान अने हमेशां नमवा योग्य जाणवा.४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. निज ऽख न गणीने पारकू छुःख वारे, तिहतणि बलिः दारे जाइये कोडि वारे ॥ जिम विषनर जेणे मंक पीडा सहीने, विषधर जिन वीरे बूकव्यो ते वहीने ॥५॥ नावार्थः- जे प्राणी पोतानुं पुःख खातरमा गणे नही अने पारका फुःखने वारे अर्थात् पारकुं सुःख दूर करे, ते प्राणीनी कोम वार बलिहारी जईये, जेम श्री महावीरस्वामीये चंडकौसिक नामे सर्प पोताने डंक मार्यों तेनी वेदना सहन करीने पण तेने प्रतिबोध पमाड्यो तेथी ते आठमा देवलोकनेविषे गयो. एवी रीते जे माणस पोते दुःख वेठीने पारकानुं हित चिंतवे डे तेनी कोड कोम वार बलीहारी जईये. ५ ॥परहित चिंतन विषे महावीरस्वामी अने चंडकौसिक सर्पनो प्रबंध॥ __चमकौसिक नामे सर्प पूर्वनवमां साधु हतो. ते एक न्हाना चेलाने पोतानी साथे लेई वोहोरवा गयो. चेलो पळवाडे श्रने साधु आगल, एम रस्तामा जतां साधुना पग तले एक देमकी चंपाणी. ते चेलाये दीगी. तेणे गुरुने कह्यु के, स्वामी! श्रापना पग हेतु देडकी चंपाईने मृत्यु पामी . माटे रियावही पमिकमो त्यारे ते लोवज्यो. गुरुये कह्यु के, महारा पग हेठे नथी चंपाणी. पठी आहार पाणी लेश्ने मुकामे आव्या, एटले गमणागमण बालोवतां थकां चेलाये देमकीनी वात गुरुने संनारी आपी. गुरुए कह्यु जे, अमे नथी मारी. चेलाये विचार्यु जे, सांजे पडिकमीने आलोवशे. पठी ज्यारे सांजना पमिकमणे पडिकमती वेलाये साधुये अथथी मांडीने इति सुधी पडिकमणानी विधि करी पण पेली देमकी बालोवी नही; तेथी चेलाये पोताना मनमां विचार कयों के, गुरुने माथे पंचेंजि हत्यानो नार रहे अने संयममां खंडना लागे तेथी आत्मानो अर्थ ब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०‍ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग गडे, ए ठीक नही. गुरुनी वृद्धावस्था होवाथी ते चूकी गया दशे. माटे महारे ते संजारी आपी एमने दोष मुक्त करवा जोईये. एम धारीने तेणे देमकी विषे कयुं. ते सांजलतांज गुरू क्रोधाय - मान थने घो लेई चेलाने मारवा दोड्या. जुर्ज ! जीवने उगारवानुं उपकरण जे घो, तेने या वखत जीवहींसा रूप करी हाथमां लेईने गुरू पोताना हितचिंतक चेलाने मारवा धाया. चेलो अवसर विचारी त्यांथी पलायन करी गयो. गुरू तेनी पठवाडे मारवाने दोड्या. ते वखत वचमां अंधाराने लीधे यांजलो न देखवाथी ते गुरूना मर्मस्थानके कपालने विषे वाग्यो. तेने जोगे करी साधु मरीने ज्योतषी देवतामां जई उपन्या. त्यांथी चवीने ते चंडकोसीयो तापस थयो. त्यां तेणे फल फूलनी वाडी वावी हती. ते वाडीने विषे यावीने घणा राजार्जुना कुमार फल फूल चूंटी जता हता. केटलीक वार ते मना कर्या बतां पण राजकुमारो चूंटी जता बंध थया नही, तेथी तेर्जना उपर रीसे 7 राई एक वखत हाथमां फरसी लेई तेमने ( राजकुमारोने ) मारवा माटे तापस दोड्यो, तेवामां कईक कर्मना योगे करी वचमां खाड हती तेमां पडता वैतज तेने पोतानी फरसी पोताना पेटमां वागी. तेना योगयो मर्ण पामीने ते चंडकौसिक सर्पपणे उपन्यो. ए महा विषधर थयो. एना विषनी ज्वाला एवी तो तीत्र हती, के जे लोक तेनी दृष्टीए पकता ते तत्काल बलीने जस्म यता. एवो ते दृष्टी विष सर्प हतो, तेथी तेनो राफको हतो ते मार्ग बांडी ने लोको बीजे मार्गे घई याव जाव करता हता. एवा समयने विषे श्री महावीरस्वामी जगवान स्थावस्थाये विहार करता करता त्यां पधार्या. चंडकोसीयानो राफडो हतो एज मार्गे ज्यारे जगवान जवा लाग्या त्यारे लोकोये तेमने वार्या जे, स्वामी ए मार्गे न जशो, परंतु सर्पने प्रतिबोधवा माटे वीर जगवान ए मार्गे जईने ज्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २५३ चंडकोसिया सर्पनुं बील हतुं त्यां काउसग्ग करी रह्या. एटले चंडकोसीये बीसमांथी नीकलीने प्रजुना सामुं जोई ज्वाला मुकी. पण ते प्रजुने न लागी. बीजी वार तेणे प्रजुने डस्या. ते वखत प्रजुना शरीर थकी धनी धारा बूटी. सर्प विचारमा पड्यो के, ए शुं ? बीजाने डसु ढुं त्यारे तो तेमांथी लोही नीकले डे अने एहुने तो दूध नीकट्युं ! ए ते शुं अचरीज ? एवं ते विचारतो हतो एटले प्रजुजीये कडं के, हे चंडकोसिया ! बुझ ! बुऊ !! अरे लुंडा ! ए क्रोधनां फल मागं बे, ए क्रोध थकीज तुं ए अवतार पाम्यो ९. माटे सुंडा ! संसार तरीने उत्तम पदने पाम. जेम संसार रऊलवो न पडे.प्रजुना मुखथी आवां वचन सांजली (जातिस्मर्ण ज्ञान थवाथी) चमकोसिक दरमाथी बाहार नीकलीने प्रजुने पाखले त्रण बांटा (प्रदक्षिणा ) देई, त्रण वार फण नीची नमावी पगे लागीने प्रजुना सन्मुख फण उनी राखीने बोल्यो के, हे स्वामी! हे शरणागत वत्सल ! हवे मुजने तुं तार ! तार ! हे अनंता कालनी नावग्ना टालणहार ! तमे संसारसमुजमां पडता प्राणीने उधरवा समर्थ डगे, अने महारा नाग्यना योगे पधार्या डो; ते माटे मुजने अणसण करावो. प्रजुये तेने पंदर दीवसनुं अणसण कराव्यु. ते अणसण करीने पनी तेणे पोतानी काया वोसरावी जे, हवे ए काया साथे ममत्व न राखवो. ए शरीर अनित्य जे. एम विचारीने तेणे पोतानुं मुख बीलमांहे घालीने बाहिर बधुं शरीर प्रग्व्यु. पली कोई जीवने पराभव करतो नहोतो. एम जाणीने लोक कहेवा लाग्या जे, हवे तो नागदेवता आपणा उपर तुष्टमान थया, माटे श्रापणे एमने पूजीये. पडी लोको नागदेवताने पूजवा लाग्या. आहीर लोक जे आवे ते कोईक घी, दूध, मांखण, तेना शरीर उपर चढावे.तेना योगे करी कीमी घीमेल श्रावीने तेने करमवालागी. तेनुं २५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग शरीर चालणी सरिखं कर्यु. पण ते चमकौसिक सर्प समता परिणाममा रह्यो. तेथी मर्ण पामीने आठमा देवलोकमां देवपणे उपन्यो. __ आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो के, नगवान श्री महावीर स्वामीये सर्पनो उझार करवा माटे पोते वेदना सहन करी. तेम जे प्राणी वीजाने उपकार करवाने तत्पर रहे अने पोतानुं कुःख गणकारता नथी तेवा परहितचिंतक प्राणीनी कोड कोड वार बलीहारी जईये. माटे परहित चिंतक थq. वली चंडकोसियानी पेठे जे कोई प्राणी समता श्रादरशे ते सुखी थशे. माटे श्रावी पडेलु फुःख समताजावे सहन करवू. ५ सुखी थशामा ॥अथ लदर्भ। शिवतनय कु हरि सुत रति रंगे जे रमे रात सारी, शिवतनय कुमारो ब्रह्म पुत्री कुमारी ॥ हितकरि गलीला जेहने लनि जोवे, सकल सुख लहे सो सोहि विख्यात होवेद नावार्थः- हरिसुत कहेतां ईजनो पुत्र जयंत लक्ष्मी आपीने रती राणीनी साथे आखी रात रंगे रमण करतो हतो, शिवतनय एटले महादेवनो पुत्र जे गणपति ते ब्रह्मानी पुत्रीनो संगम पाम्यो ते पण लक्ष्मी वडेज, अर्थात् ए बे कुमर कुमरी पण लमीना जोगथी संगने पाम्या, वली जे पुरुषने लदमी दृष्टीना वीलासे करीने जोवे ते सकल सुखने पामे तथा ते लदमी थकी जगत्रने विषे विख्यातपणुं पामे, अर्थात् लक्ष्मीवाननी ख्याती सर्व स्थले थाय बे. लदमीना विलास उपर मिथ्यात्विना ग्रंथमां घणां संबंध कह्या बे.माटे लदमी जे संपदा ते जगत्रने विषे घणी वात जे.६ लखमि बल यशोदा नंदने विश्व मोदे, लखमि विण विरूपी शंन्न निक्षु न सोहे ॥ लखमि लदिय रांके जे शिलादित्यनज्यो,लखमि लदिय शाके विक्रमे विश्वरंज्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ नाषान्तर सहित. नावार्थः- लक्ष्मी मली अने ते सदा सहचारी हती अर्थात् लदमीबल हतुं तेश्री यशोदानंद एटले श्रीकृष्णे श्राखी पृथवी वश करी, अने लक्ष्मी विना विरूपी एटले कपो शंनू ( महादेव ) नीखारीनी परे शोच्यो अर्थात् नीखारीनी पेठे लक्ष्मी वगरनो महादेव शोजा पाम्यो नही, अने लदमी पाम्याथी रांके पण म्होटा शिलादित्य जेवा राजाने जांज्यो एटले नाश पमाड्यो, वली लदमी पाम्याथी विक्रमराजाये वधुं जगत् रिऊवीने पोतानो शक प्रवर्ताव्यो. एवा संबंध मिथ्यात्मा घणा . ७ ॥श्रथ कृपण विषे॥ कण कण जिम संचे कीटिका धान्यकेरो, मधुकर मधु संचे नोगवे को अनेरो॥तिम धन कृपणनो नोपकारे दिवाये, इमहि विलय जाए अन्यथा अन्य खाए ॥७॥ जावार्थः-कृपण केवा ? तो के-जेम कीडी एकेको दाणो वीणी वीणीने दरमा लावी एको करे, ते पोते पण न खाय अने कोई बीजाने पण न खावाये, वली मधमाखी मध नीपजावे (नेगु करे ) पण तेनो लोक्ता कोई बीजो थाय अर्थात् पोते उत्पन्न करेलुं मद मधमाखी खाय नही पण ते बीजो कोई खाय, तेम कृपणे एकतुं करेलु धन ते खाई शके नही, तेमज खरची पण शके नही, परोपकारमां पण देवाय नही, परंतु ते कोईक बीजो खाई जाय अथवा तो ते धन लेई कोई नाशी जाय, के कोई यद लेई जाय, ए प्रकारे करपीनुं धन नाश पामे . पण तेनो उपयोग ते न करी शके. ७ ॥ कृपणता उपर मधमाखीनो दृष्टांत ॥ एक दातारे ज्ञानीने पुज्युं जे, हे खामी ! कृपणने मधमाखी जेवा केम कहो हो ? ज्ञानीए जणाव्युं जे, कृपणने मधमाखीनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग उपमा श्रापवानुं कारण ए जे जे-माखी ज्यां त्यांथी उद्यम करीने रस लावी एकठो करेजे. एटले जेना रसमध्ये मीठास बे ते रसरूप लक्ष्मी ते माखीने बे. ते एक पुडो बनावी तेनी नीचे कोक करीने तेमध्ये मधनो संचय करे . जेम अव्य नरवानी कोथली होय तेमध्ये अव्य लावी लावीने सींचे (जरे) तेम एणे पण रस सींचीने एकठो कों . ते पोते पण न खाई शके अने बीजाने पण खावा न ये. एवामां पारधी आवीने नीचे धुमाडो करी माखीने उमाडी मुकी तेणे नीपजावेदूं मध लेई जाय. पठी ते स्थानके माखी श्रावीने जुए तो पोतानो सींचेलो रस रूप अव्य (मध) न देखे; तेथी ते पोताना बे हाथ एकठा करी घसवा लागे. तेम कृपणे पण जे धन एकतुं कर्यु होय ते पोते खाई न शके तेमज खरची पण न शके. कदापि कोई जीव ते धन खाई जाय अथवा कोई लेईने नाशी जाय त्यारे ते कृपण माखीनी पेठे हाथ घसवा लागे. माटे कृपणने मधमाखीनी उपमा आपीने ते वास्तविक बे. 5 ॥ कृपण पणुं धरतां जे नवे नंद राया, कनक गिरिकराया ते तिहां अर्थ नाया॥श्म मनत करंता (इमजमति धरंतां) पुःख वासे वसीजे, कृपण पणुं तजीजे मेघज्यूं दान दीजे॥ए॥ नावार्थः-जे कृपण कडं ते कोनी परे ? तो के-जे नव नंद राजा थया तेणे जुदी जुदी नव मुंगरीयो सोनानी करावी, ते डुंगरीयो मुकीने हीमता श्रया, पण ते तेमने काम न आवी, एवी रीते जे करे ले ते फुःख पामे , माटे कृपणपणुं बांडीने जेम मेघ (वर्षात) दान आपे तेम दान देवु. । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ए ॥अथ याचन विषे॥ निरमल गुण राजी त्यां लगे लोक राजी, तब लग कहि जीजी त्यां लगे प्रीति काफी ॥ सुजन जन सनेही त्यां लगे मित्र तेही, मुख थकि न कहीजे ज्यां लगे देदिदेहिए। . नावार्थः-ज्यांसुधी निर्मल गुणनी श्रेणी होय त्यांसुधी लोक घणा राजी रहे, अने ज्यांसुधी (सदा) जीजी कहे त्यांसुधी प्रीती पण वधे, वली सजन वाहालां सगां संबंधी अने मित्र पण त्यांसुधी जाणवां, के ज्यांसुधी श्राप आप करे, कदापि कोईक वार कोई दीवस न अपाय तो तेनी साथे मलवं, मलतुं श्रने मेलाप तेमज कोई दीवसर्नु उलखाण पण जाणे बेज नही. माटे जे कांई श्रापq ते योग जाणीने आपQ. १० । जई वडपण वांडे मांगजे तो न कांई, सह पण जिण दोवे केम कीजे तिकाइ॥ जिम लघु थइ सोमे वीरथी दान लीवू, हरि बल नृप आगे वामना रूप कीचूं॥२१॥ नावार्थः- हे नाई! जो तुं म्होटाईपणुं वांछतो (ईबतो ) होय तो कांई पण मागीश नही, केमके जेनाथी लघुपj पमाय डे ते केम करीये ? मागणहार हलुआथी पण हलु जाणवो. ते कोनी पेठे ? तो के- जेम सोमिल ब्राह्मणे हलु थईने श्रीवीर पासेथी दान लीधुं अने हरिकहेतां श्रीकृष्णे बलिराजाना मों पागल वामण- रुप कयु. ते माटे जगत्ने विषे मागवु ते हलकामां हलकुं . ११ ॥अथ निर्धन विषे॥ धनविण निज बंधू तेदने दूर बगंडे, धनविण गृह जार्या नर्त्त सेवा न मंडे ॥ निरजल सरजेवो देह निर्जीव जेवो, निरधन तृण जेवो, लोकमें तें गणेवो ॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रएन सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग नावार्थः- अव्य विना सगोजाई पण ( पोताना नाईने ) न माने-दूर तजी दे, अने अव्य विना पोतानी परणत स्त्री पण जत्रनी सेवा न करे, अर्थात् निर्धन जारने पोतानी नार्या लाज मर्यादा मुकीने एवां वचन बोले के, जा जा रे हाल, तने शुं करुं ? तुं तो हमेशां एवोने एवो रह्यो ! एम पासे रहे. नारा पांच पामोसी अथवा अर्धी सेरी जाणे जे श्राज फलाणाने घरे फलाणी स्त्री वढे डे, वली निपट निर्लजपणे सदाय निरंतर स्वामी साये बंगालीने बोले बोले जे-॥ दोहा ॥ एक न पूरी होवत सूरी, नवी पहोंचाडे आस ॥ श्म उठे जूंकी कहे सुखी (शंखणी), शो तुऊशुं घरवास ॥१॥ जुर्ड! पोतानी नारी, ते पण अव्यरहित खामीने नि बे. वली पाणी विनानुं खाली सरोवर जेम न शोने तथा जीव वगरनो देह अर्थात् जीव नीकली गये थके काया जेम न शोने तेम निर्धन- अव्यरहित प्राणी शोना पामे नही, लोकनेविषे एने तरखला बरोबर गणे . १५ सरवर जिम सोहे नीर पूरे जरायो, धन करि नर सोदे तेम ते जे उपायो ॥ धनकरिय सुदंतो माघ जे जाण इतो, धनविण पग सूजी तेद दीगे मरंतो ॥१३॥ जावार्थः-जेम सरोवर पूरेपूरुं पाणीथी नरायुं होय तो शोने, तेम जे मनुष्ये धन उपार्जन कयु होय, अर्थात् जेनी पासे धन होय, ते मनुष्य शोजा पामे बे. जुर्म! धनवडे शोना मले में एवं जाणनारो माघ जेवो महान पंडित ते पण धन विना दरिखी थई पग सूजवाथी मर्ण पामेलो दीगे. अर्थात् मर्ण पाम्यो माटे धन ए घणी वात बे. १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तरसहित. रएए ॥ श्रथ राजसेवा विषे ॥ सुजनसुंदित कीजे उर्जना सीख दीजे, जग जन वश कीजे चित्त वांग वरीजे॥निज गुण प्रगटीजे विश्वना कार्य कीजे, प्रनु सम विचरीजे जो प्रनूसेव कीजे ॥१४॥ नावार्थः-जे सजान माणस होय तेनो विनय करे अने पुर्जन एटले लंठ, लाठीया, उच्चका, जे होय तेजने सीखामण दे, तथा जगत्वासी लोकने वश करे अने चित्तने विषे ( पोताना मनमां) काई पण वांछा (ईछा ) न राखे, वली कुनीयानां एटले सर्व लोकनां काम करे तथा जो प्रजुनी सेवा करे तो पोताना गुण प्रगट थाय अने प्रजुनी परे विचरे अर्थात् प्रजुता पामे एटले जे माणस उपर जणाव्या प्रमाणे वर्तन करे ने ते माणस प्रनु समान थाय (पूजाय ) . १४ जगतिकरिवडानी सेव कीजे जिकाई, अधिक फल न आपे कर्मथीते तिकाई॥ जलधि तरिय लंका सीतसंदेस लावे, हनुमत करमे तेराम कबोट पावे ॥१५॥ जावार्थः-श्रापणाधी जे वडा एटले म्होटा होय तेनी नक्ति (नाव) सहित सेवा करीये, पण कर्ममां जेटलुं लख्युं होय तेटलुं फल आपे ( मले), जुर्म-समुद्र तरीने लंकामां जई हनुमान सीतानो संदेशो लाग्यो, तेने रामचंछे ज्यारे नावामां बेग त्यारे सीतानी वधामणीमां कडोटी (लंगोट ) आपी. माटे कर्म प्रमाणे फल मले, परंतु वमानी जक्ती करवी. १५ * बीजी प्रतमां " विश्वमा कार्य सीके" एवं पद ने तेनो अर्थ " लोकमां पण काम थाय" एवो श्राय बे. * “तिकाई" शब्दने ठेकाणे बीजी प्रतमां " नकाई" शब्द . तेनो अर्थ पण एज थायले. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥ अथ खलता विषे ॥ रस विरस नजे ज्यूं अंब निंब प्रसंगे, खल मिलण हुवे त्यूं अंतरंग प्रसंगे ॥ सु सु ससनेही जाणि से रीति जेदी, खल जन निसनेदी तेदशुं प्रीति केही ॥ १६ ॥ 900 जावार्थ:- खल लोक केवा बे ? तो के- जेवी रीते श्रांबानं ने ली मानुं काड जोडे होवाथी श्रांबानो रस विरस थाय बे एटले थांबानी के उनो खरो मीठासनो खाद फरी जई लींबडानी कमवासनी असर तेमां थाय बे, अर्थात् लींबडानी कुसंगते यो बगडे बे, तेवी रीते सऊन मनुष्य खलनी संगतेकरी ख्वार थाय छे, ते माटे हे ससनेही वाल्हा ! सांजल ! सांजल ! निःसनेही एवा जे खल मनुष्य तेनी साथै प्रीति न करवी, अर्थात् खलनी संगत टालवी. १६ - मगर जल वसंतो ते कपीराय दीठो, मधुर फल चखावी ते करो मित्र मीठो ॥ कपि कलिज जखेवा मत्स खेली खलाई, जलमहिं कपि बुद्धि बांडि दे ते जलाई ॥ १७ ॥ जावार्थ:- पाणीमां रहेनारा मगरने मीगं फल खवरावीने वांदराये तेने पोतानो मित्र कर्यो, त्यारे वांदरानुंज कालजु खावानी खलाई तेणे ( मगरे ) करी, परंतु वांदरो पोतानी बुद्धिये करी जलमणसाईनो त्याग करी मगरने पाणीमां मुकी पोते बाहार नीकली थाव्यो. माटे नीचनी सोबत करवी नही, कार के कोईक दीवस पण ए खत्ता खवरावे. क्वचीत एवो जोग बनी गयो होय तो वांदरानी पेठे विचार करीने तेवा खलनो तत्काल त्याग करवो. ११ स्पष्ट समजवा माटे श्र नीचे मगर ने वांदरानो प्रबंध लखीये बीये. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सहित. ॥ खलई उपर मगर ने वांदरानो प्रबंध ॥ समुद्रना पाणी मां रहेनारा एक मगरमछने वांदराए दीवो. तेनी साथे मोहोबत करी पारस जांबु विगेरे उत्तम फलो वांदराए तेने खवराव्यां स्वाद लागवाथी ते दररोज कांठा उपर यावी बेसतो हतो, ते वखत वांदरो तेने मीष्ट फल लावी या पतो हतो. एक वखत खातां खातां केटलांक फल वध्यां ते लेई जई मगरे पोतानी मगरीने छाप्यां. मगरीए फल खाधां ते ari स्वादिष्ट लागवाथी तेलीये मगरने पुयं के, श्रावां उत्तम फल क्यांथी लाव्या ? मगरे जणाव्यं के, एक महारो मित्र बे, तेणे यां. ते वखत मगरी कड़ेवा लागी के, स्वामी! जे प्राणी व उत्तम फल हमेशां खातो दशे तेनुं कालजुं तो जेने बीजी उपमा अपाय नहीं तेवुं अमृततुल्य मीष्ट हशे ! माटे तेनुं कालजुं मने लावी यापो. ते खावानी महारी ईवा बे; ते पूर्ण करो ! वली मने गर्जनुं कारण पण ते अर्थात् हुं गर्भवती ढुं ने ए खावानी मने ईशा थई के माटे हरकोई पण प्रकारे ( बल जेद प्रपंच कुरु कपट का वित्रं खल खंचपणे ) एने जो. लवीने तेमज एनी खीजमत करीने पासमां नाखी महारी पासे लावो. पठी हुं तेना कालजानुं जक्षण करी महारी ईछा पूर्ण करीश मगरे विचार्य जे, ए काम कांई सरल नथी, परंतु गर्भवती मगरीनी ईवा पूर्ण करवा माटे एने जेम तेम समजावी बने तेलुं खलप करीने पण मगरी पासे लाववो जोश्ये पर्छ । ते कांग उपर व्यो. त्यां तेने हमेशनी माफक फल लेई यावी वांद मध्यो मगरे तेने कयुं के, अरे जाई ! आज तो या तहारां लावेलां मिष्ट फल खावानी मने वीलकुल ईछा यती नथी. केमके महारुं मन घणुं व्यय थयेलुं बे. वांदराए २६ · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only २०१ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग पुज्युं जे, एम थवानुं कारण शुंने ? मगरे का के, आज महारे मगरी साथे राड थई बे. में तेने घणुंए समजावी पण ए महारूं कहेवं मानती नथी अने महारी साथे बोलती पण नथी, तेथी घणो दीलगीर थयो बु. अहीं श्राववा जेवो समय पण नहोतो परंतु तमारा स्नेहने लीधे तमारो श्राववानो वखत थयो बे एम जाणी फक्त तमारा दर्शन माटे ज हुँ आव्योढुं. ज्यांसुधी अमो स्त्री नार वच्चे थयेली राड जागशे नहीं त्यांसुधी महारा जीवने निरांत थशे नहीं, तेमज खावू पीवू पण नावशे नहीं. हुं धारूं बु के, तमारा सीवाय महारूं ए फुःख दूर करनार बीजो कोई नथी. तमे महारा दीलोजान दोस्त बो, माटे महारी साये आवीने तमारी जानीने मनावी अमारी राड जागी आपो. वांदराए मगरनां वचन सांजली विचार्यु जे, कोई जीव पुःख न पामे अने कोईनी राम मटे, एम करवु ए उत्तम प्राणीनुं लक्षण दे. पडी तेणे मगरप्रत्ये कह्यु के, महारा बनता प्रयत्ने हुं तमारी राड जागी आपीश, तमे चिंता न करो. परंतु महाराथी तमारे त्यां पाणीमां शी रीते आवी शकाय ? मगरे कडं के, तेनी फीर करशो नहीं. तमे महारा वांसा (पीठ ) उपर बेसो, हुं तमने सुखरूप लेडी जश. वांदरो मगरना कहेवा मुजब तेना वांसा उपर बेगे. एटले ते पाणीमां तरतो चाल्यो. केटलेक र नीकली गया पठी वात चीत करतां मगरे वांदराने का के, हे जाई ! महारी स्त्रीने तदारूं कालगँ जोईये बीये. ते सांजली वांदरो पोताना मनमां विचारवा लाग्यो के, आतो महारो उपाय करवा मांड्यो दीसे डे अर्थात् मने मारवो धार्यो बे. माटे हवे हुं बुद्धि केलQ तोज उगरीश. पबी तेणे मगरने कह्यु के, अरे लाई ! अरे तुंमा ! ए वात तें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३०३ मने अत्यारे केम कही ? अमे शुं ते ( कालजें ) श्रमारी साथे साथे लेईने फरीये जीये ? अरे ! एतो अमे काम उपर मुकीये बीये ! जो पाला जईये तो लेई श्रावीये. वली जो ए लीधा विना जईशुं तो तहारी स्त्री मनाशे नहीं. माटे पाग कांग उपर चालो. काड उपरथी ते लेईने वगर विलंबे तहारी स्त्री पासे जई तेने मनावी तहारी राम नागी श्रापीश. मगर तरत पागे वलीने कांग उपर आव्यो. तेनी पीठ उपरथी कुदको मारी वांदरो काम उपर चढी बेठो. मगर तेना सामुं जोईने जलदी आववानो इसारो करवा लाग्यो, एटले वांदराए कडं के, तहारे महारे किआ दिवसनी असनाई (मित्राई ) ! तुं जलवासी अने हुँ थलवासी. तेम बतां वली में तहारी साथे स्नेह बांधी तने मीष्ट फल खवराव्यां, त्यारे तुं महारूं कालगँ खवराववा तैयार थयो. माटे चाल्यो जा. ए वखत वही गयो. तहारूं खलपणुं हवे कांई पण काम आवनार नथी. पनी मगर निरास थईने चाल्यो गयो. श्रा वातथी ए सार लेवानो डे के, मगर जेवा खल प्राणीनी सोबत न करवी, केमके कोश्क दीवस ए खत्ता खवरावे अने सुख टाले तथा कष्टमां नाखे. माटे तेवाथी दूर रहे. १७ ॥थथ विश्वास विषे ॥ उपजाति बंद ॥ विश्वासिसाये न ले रमीजे, न वैरि विश्वास कदापि कीजे॥जो चित्त ए धीर गुणे धरीजे, तो लचिलीला जगमां वरीजे ॥ १७॥ नावार्थः-जे मनुष्य विश्वास राखतो होय तेनी साथे बल (कपट ) नी वात न करवी, अने वैरी एटले शत्रुनो कोई पण वखत विश्वास करवो नही, वली ए ( शत्रु) श्रावीने मित्रनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग माफक मली जायाने तेथी एम जणाय के हवे कसी फीकर चिंता लेश मात्र नथी तो पण ते इश्मननो विश्वास न करवो, जो चित्तनेविषे ए धैर्यतानो गुण धारण करीये अर्थात् विश्वासी साथे कपट न करें, दुश्मननो विश्वास न राखे, धीरपणुं धरे अने कायरपणुं न करे तो जगत्ने विषे लीला एटले सातेकमां लक्ष्मी पामीये. १८ ( इंडवजा बंद ) ॥ चाणाय के ज्यं निज काज साखो, जे राज जागी नृपतेह मारयो || जो घुडे काक विश्वास कीधो, तो वायसे घूकने दाद दीधो ॥ १९ ॥ जावार्थ:-- जुन ! - विश्वास पमाडीने चाणाक्ये पोतानो मित्र पर्वतराजा, के जे राज्यनो जागीदार हतो तेने मारीने पोतानुं काम साधी लीधुं ने घूाडे कागडानो विश्वास कर्यो तो ते ( घूड ) मृत्यु पाम्यो. ए घुमाने कागमानो संबंध स्पष्ट समजवा माटे नीचे लख्यो वे. १७ " ॥ कागमानो विश्वास करवायी मृत्यु पामनार घूडनो प्रबंध ॥ एक धूम दररोज राते कागडाउने विपत पाडतो हतो. तेथी सर्व कागडाए जेला घई विचार कर्यों के, थमनी साथे बाकरी बांधवार्थी आपलं दुःख दूर थशे नहीं, पण जो थापणे एनी साथे मली जईने विश्वास पानीये तो आपणुं धार्य करी शकी; र्थात् आप एने जे कर हशे ते करीशुं. श्रा पणा उपर विश्वास बेठा सिवाय एने कांई पण करी शकी ये ते नथी, माटे ए एम जाणे के यतो श्रापणा ज ठे, लेशमात्र * या चाणाक्य अने पर्वत राजाना संबंधी संपूर्ण हकीकत पुस्तकना ६२ मा पृष्टमां मनुष्यजवनी डुलता उपर वीजा दृष्टांतमां श्रावेली नेत्यां जोई लेवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. Jou जीन्ननाव एना अने आपणा वच्चे नथी, एवो श्रापणा उपर एनो संपूर्ण विश्वास बेसाडवो. आ वात वधाने पसंद पडी तेथी ते घूअडराजा पासे श्राव्या. विनय सहित नमस्कार करीने बेग पठी एक वडेरो कागडो बोल्यो जे-हे पंखीराज ! तमे तो अमारा राजा बो. अमे सघला तमारा सेवक बीये. खरा बपोरनी चाकरीमां हमेशां हाजर ठीये. माटे मनमां कसी वातनी बीक न लावशो, श्रम बेठे थके तमारूं नाम लेनार कोण ठे ? तमारे माटे अमारा प्राण पण थापवा पानी पेनी करीये तेवा नथी. पण महाराजा ! तमारी अमारा उपर कृपा दृष्टी जोईये ! अमारे तो तमारोज आधार जे. अमारा उपर महेरबानी करी तमे अमने चूंथशो मां. एटले अमे एम जाणी\ जे, तमे अमने जीवतदान प्राप्यु. कागमानी आवी नम्र वाणी सांगली घूथडे कडं के, तमो महारी लेशमात्र धास्ती राखशो नही. जार्ज, महारी चोकी करो. कागडाए तेम करवानें कबुल कयु. पली घूथड ते दहाडे पर्वतनी गुफामा रह्यो अने कागडा गुफाने बारणे चोकी करवा रह्या. हवे कागडाए विचार्यु जे श्रावो अवसर अने श्रावो लाग फरी फरी नहीं आवे. पठी तेमणे (कागमाए) आस्ते श्रास्ते त्यांथी वारा फरती एके एके उडीने पोतानी चांचमां दातणनी चीरी सलेखमां विगेरे लावीने ते गुफान बारणुं बुलुं. त्यारपठी मसाणमांथी अधबद्युं लाकडं लावीने तेमां मुकी दीधुं. एटले चीरी वीगेरे सलगी उग्यु, तेथी तेनी अंदर रहेलो घूअर मर्ण पाम्यो; तेमज त्यां पागल जालां कांखरामां नराई रहेला जेटलां घूथड हतां ते सघलां बलीने जस्म थयां. पठी तेनुं स्नान करी कागमा पोताने गमे जतां मांहो. माहे कहेवा लाग्या के, केवी नावठ कहामी ? विश्वास पाड्या सिवाय एनो नाश कदी थवानो नहोतो. आ वातथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ सार ए लेवानो वे के, श्वास कर्यो तेथी प्राण काले पण न करवो. सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग घूथडे पोताना दुश्मन कागमानो वि खोया. माटे खलनो विश्वास कदापि ॥ अथ मैत्री विषे ॥ मालिनी छंद ॥ करि कनक सरीसी साधु मैत्री सदाई, घसिकसि तप वेधे जास वाणी सवाई ॥ प्रदव करदि मैत्री चंश्मा सिंधु जेही, घट घट वध वाधे सारखा वे सनेही ॥ २० ॥ " जावार्थ:- सदाय सोना सरखी साधु ( उत्तम जला पुरुष ) नी मित्राई करवी. केमके सोनाने कसोटी उपर घसे बे त्यारे तेनी कीमत थाय बे घने ज्यारे एने अग्निमां नाखे बे त्यारे तेनी सवाई कीमत थाय बे, अर्थात् जेम जेम सोनाने ताप देवामां आवे छे तेम तेम तेनी कींमत वधती जाय वे ए पोतानो ( निज ) गुण पालटतो नथी, तेम खरो मित्र होय ते णीनी वखते यावीने उजो रहे, एनेज खरो मित्र जाणवो. पण पीतल सरखो जे मित्र होय ते कशाये कामनो नही, जे काम पड्ये मों संताडे ते पीतल समान मित्र जाणवो. जेम शुद्ध - शुद्धपणानं सोनानुं ने पीतलं पारखं अग्निकरी पे बे, तेम परीक्षा करीने सोना समान मित्र करवो. वली कयुं बे केः- “ सजन तब लग जातीयें, जब लग पड्यो न काम; हेम हुतासन परखियें, पीतल निकसे श्याम ॥ १ ॥ ते माटे मित्राई ते उत्तम साधुजननी जली. साधुनी मित्राईथी सुखज थाय, पण दुःख न थाय. वली कधुं बे- ॥ यक्तं ॥ साधु मले सुख उपजे, जल मले मल जाय; साहमाने पावन करे, पोते पावन थाय. " "" घट घट वध बाधे सारखा वे सनेही ए चरणने बदले बीजी प्रतमां " घटी घटी बुधी वाधे जास द्योति सुद्योती ". Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ១០ ។ ॥१॥ ते माटे साधुनी संगत ते सोना जेवी जाणवी. सोनु जेम रंग न पालटे साहामो रंग वधे, तेम साधुजनने काई परानव करीये तोपण तेने क्रोध न चढे, साहामी संजमगुणनी वृद्धि थाय जे, मुजने साहाज्यकारी मल्यो. एम अपकारीनो गुण ले ले अने परिसहना करनारनुं साहाज्य माने बे; माटे साधुजननी मित्राई करवी. वली जेम पूर्णमासीना चंप्रमाना जोगथी समुनी वेल वधे ने अने चंछनी ज्योत्स्ना एटले कांति अने जलजोग मलवाथी ते बन्नेनी एटले चंनी अने पाणीनी अधिक अधिक शोना वधे डे तेवी मित्राई करवी. अर्थात् दीवसे दीवसे अधिक देत थाय एवा सोना सरखा साधुजननी मित्राई करवी ए नावार्थ . २० आ वात दृढ करवा माटे अत्रे सहस्रमन्ब साधुनो वृत्तांत कहीये बीये. ॥ मैत्री उपर सहस्रमन्त्र साधुनो प्रबंध ॥ अवंती देशना जितशत्रु राजानी पासे वीरसेन नामे दात्री चाकरी करवा श्राव्यो. तेने घणा दीवस थया, एवामां कालसंदिप नामे राजानो एक वयरी हतो ते महा अनाडी अने अनिमानी होवाथी तेना सामो थई नमतो नहोतो. राजाये तेने पकडी लाववा माटे सत्नामध्ये वीडं फेरव्यु. कोई पण राजकुलीये तेना सामुं सर पण न जोयु. सर्व नीचां मों करी बेसी रह्या. एवं जोईने वीरसेन दत्रीये तत्काल उठीने राजाने प्रणाम करी बी लेईने कह्यु के, हूं एकलोज जश्ने एने बांधी लावीश. राजाये तेने आशा आपी. एटले हुकम प्रमाण करी ते त्यांची चाली नीकट्यो. केटलेक दीवसे कालसंदिपने नगरे जई बल बल करी तेने पकडी लाव्यो. राजा एना उपर घणो खुशी थयो; तेथी एने एक देश ( प्रांत ) नुं राज्य थापीने एनुं सहस्रमस नाम स्थाप्यु. एना उपर पूर्व राजानो राग हतो तेना करतां पण अधिक राग वध्यो. राजाए कालसंदिपने रखा. एवं जो सरखू पण न वाई फेरव्यु होतो. राजाये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग पोतानी आण मनावी सरपाव आपीने तेने नगरे मोकल्यो. रा. जानी अति घणी महेरबानी थवाश्री सहस्रम खेठाये फरवा लाग्यो. कोश्ने खात्रमा गणतो नथी. एकदा त्यां आगल चार झानना धारक श्रुतसार सूरी श्राव्या. तेमनुं आगमन सांजलीने राजादिक वांदवा आव्या. सहस्रम पण पोतानो परिवार लेई वांदवा श्राव्यो. सर्वे सूरीमहाराजने वंदन नमस्कारादि करी उचित स्थानके बेठा. आचार्यनगवाने नवीक जीवने उद्देशीने देशना दीधी केः_ " यतः-नरणेनीरणेनीरजतेसूरो ॥ दातानोक्तानयप्रद ॥ नचाकपटुत्वेन तत्वंवेत्तिसपंमितः॥१॥अर्थ-सूरो कोई नथी, दातार पण कोई नथी, वाचाल पण कोई नथी, अने पंडित पण कोई नथी.” गुरुना मुखथी एवां वचन सांजलीने सहस्रमा बोल्यो के, “ गुरुजी महाराज ! तमारा मुख पागले हुँ हाजर दूं. कहो हो ? साहिबनो सेवक सूरो ते श्रा हुँ बेगे ! एकलो हुँ कालसंदिपने बांधी लाव्यो. महारा समान कोण बलीयो डे ? " तेवारे गुरू बोट्या- ॥ गाथा ॥" जेअप्पाचेवदमेअव्वो, अप्पाइखवु दमो; अप्पादतोसुईहोई, असंलोएपरत्यय ॥१॥श्रर्थअप्पा कहेतां आपणो जे जीव तेने श्रात्म कहीए ते यात्माने जे दमे ते नलो, एवं गुरूए कडं त्यारे सहस्रमझे विचार्यु जे, “ कोई जीवने दमे शुं थाय ? पोताना आत्माने ज दमवो.” पड़ी ते (सहस्रम ) गुरू समीप चारित्र ग्रहण करीने कालसंदिपकने नगरे जई त्यां कासग्गे रह्यो. एवामा रयवामीथी पाना आवतां कालसंदिपके एने काउसग्गध्यानमा रहेलो दीगे. तेने उलखीने ते पोताना मनमा विचार करवा लाग्यो के, आतो मने बांधीने महारा वैरी कने लई गयो हतो ते महारो श्मन बे. वली कोश्क प्रयोजनार्थे श्रावो वेश धारण करीने आव्यो लागे . के, " गुरुजी महालनो सेवक सूरो त समान कोण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १० माटे हवे एने जत्रा देवो नही. पढी तेणे सेवकोने कयुं जे, एने गरदन मारो हुकम मलतां तरतज सेवकोए सहस्रमल साधुने लाकमीयो, बंडुकनी मोहरीयो, अने तरवारनी मुगे वडे मारवा मांड्यो; तथा धूलनी पोटलीन, ढेफां ने देखा ले करी सदन न थ शके एवो उपसर्ग कर्यो. साधु वे तो घणायें बलवंत ! जो ए पूर्वनी परें पराक्रम करे तो राजाना सघला सेवको नूरस्वाननी पेठे नाशी जाय. परंतु एटली शक्ति बतां पण ते फोरवता नथी तेनुं कारण ए वे जे, चारित्रना घरमां रखेने निजगुणमां खामी लागे, एम विचारीने समतावंत थयावे. जेटला पराजव थया तेटला तेमणे सहन कर्या. लेशमात्र क्रोध कर्यो नहीं. एम समता परिणामनी सेढीये चढतां चढतां सहस्रमल साधु अंतगम केवली थईने मोदी पधार्या कन्युं वे के, एवा साधुजीने व कायना जीव साथे मित्राई बे. माटे साधु जननी साथे मित्राई करवी. २० इह सहज सनेदे जे लढे मित्रताई, रवि परि न चले ते कंजज्यं बंधुताई ॥ दरि हलधर मैत्री कृश्नने जे मासे, दलधर निज खंधे से फिस्यो जीव यासे ॥ २१ ॥ जावार्थ: जेम सूर्य चलवानो नही ( चलायमानयतो नथ ) तेम सहज वजावीनी साथे जे मित्राई होय बे ते मव्या पी विडे नही; अर्थात् मित्राई न बांडे, ते कोनी परे ? तो के - कृश्नाने वलनी परे, एटले जेम बलभद्र व मास सुधी कृश्न जीवता वे एव श्राशाए तेमना सबने पोताना खन्ना उपर लेईने फर्या, खरी मित्राई राखी, तेवी रीते सर्व मनुष्ये मित्राई राखावी. कंजज्यूं ” ने + बीजी प्रतमां " लहे " ने बदले " बधे " अने बदले " काजज्यूं ” शब्द बे. २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ** 66 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥ मैत्रि उपर बलन अने कृश्ननो प्रबंध॥ हारिकानगरीनो दाह थयो त्यारे कृश्न अने बलजा ( बे बांधव ) त्यांथी नीकलीने चालता चालता एक अटवीमां गया. त्यां कृश्नने पाणीनी घणी भाकरी तृषा लागी. तेमणे बलना पासे पाणी माग्युं, एटले श्रीकृश्नने मुकीने ते पाणी लेवा गया. तेमने रस्ते जतां सामा वैरी मट्या. तेनी साथे युद्ध करवामां ते रोकाया. अहीं अटवीमा एक कामनी नीचे पग उपर पग चढावीने श्रीकृश्न सुई रह्या. तेमना पगनेविषे पद्म हतुं तेनो ऊलकाट पूरथी देखातो हतो. एवामां जराकुमार नामे तेमनो लघु बांधव, के जे पोताने हा कृश्ननुं मृत्यु थशे एवी ज्ञानीनी वाणी सांजलीने तेम न थाय तेटला सारू एकाकी वनमा रहेतो हतो, तेणे केटलेक दूरथी कृश्नना पगमा रहेला पद्मने फलकतुं दी तथा पगने योगे करी त्यां पडेलां सुकां पानडां खरखमतां सांनदयां, तेथी त्यां कोई सावज बेतुं तेनी आंख ऊलके डे एम धारीने तेना उपर ताकीने बाण मुक्यु. ते बाण कृश्नने पग बच्चे वाग्युं. तेवारे श्रीकृश्ने, अरे ! एवो उच्चार कर्यो. जराकुमार पोतानुं बाण शीकार उपर सचोट लाग्युं छे एम विचारी ते जोवा माटे श्राव्यो, तो तेणे पोताना प्रिय बांधव श्रीकृश्नने दीठा. कृश्ने पण एने उलख्यो. घणो दीलगीर थतो जराकुमार ते वखते श्रीकृश्नप्रत्ये सविनय हाथ जोमीने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! तमने में न जाएया ! सावजनी संझाने जरूसे अजाणते में ए काम की! बे. माटे महारो अपराध खमशो ! एम कही पगे लागीने श्रीकृश्नने खमाव्या. कृश्ने कडं के, तुं अहींधी चाल्योजा. केमके आ वखते जो बलना आवशे तो तने मारशे. जानुं वचन प्रमाण करी जराकुमार त्यांश्री चाली नीकट्यो. पड़ी कृश्नने पोताना पगमां वागेवू बाण खेंची कहाडतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ११ घणीज सहन न थई शके तेवी वेदना थई, तेथी जराकुमारने जवा दीधो ते माटे सोच करता अने तेने मारवाने उत्सुक थता कृश्नपोतानुं श्राउ संपूर्ण थवाथीपूरध्याने मरीने नर्कने विषे पधार्या. त्यारपडी बलना आव्या. ते कहे के, हे नाई ! हुँ पाणी लाव्यो . उगे, जल पी ! एम घणीवार कां पण कोण उठे ? तेवारे बलनझे चिंतव्यु जे-मने पाणी लावतां बहु वार लागी तेथी बंधव बोलता नथी. एम जाणीने वली घणुंए कही कहीने बोलावे, पगे लागे, पण ते बोले नहीं. त्यारे विचार्यु जे, मूलतो ए रीसाल के तेश्री रीसने लीधे अगर घणी नीया श्रावी तेथी नथी बोलता. एम करतां घणो वखत वीतीगयो. पण स्नेहने लीधे समज न पमी के था तो शब . पनी ते ( बलजा) पोतानी खांध उपर कृश्नने उपाडी त्यांची आगल चाल्या. फरतां फरतां मास थया त्यांसुधी खन्ना उपर मडं फेरव्यु. पण मुक्युं नहीं.अहीं कोई एवी शंका करे के, मथु बगड्यु नहीं होय ? तेने जणाववायूँ के, एवा उत्तम ( शलाका ) पुरुषतुं शरीर मास सुधी बगमतुं नथी. बलजल पोताना नाई श्रीकृश्ननुं सब खन्ने लेई फरे , तेनो संस्कार करता नथी, एम जाणीने तेने समजाववाने वास्ते देवताए मनुष्यरूपे घाणी मामीने तेमां वेलु पीलवा मांमी. ते जोई बलनझे तेने पुज्युं जे, तमे वेलु केम पीलो बो ? तल तो पीलता जाएया , केमके तेमांथी तेल नीकले . परंतु वेल्लुमाथी शुं नीकलवानुं बे ? के तमे ते पीलवा बेग बो ? मनुष्यरूप देवताए कह्यु के, तेल नीकलशे तेल ! बलना कहे जे, एमांश्री तो धूल नीकलशे ! वली एवं ते क्याई साजदयु , के वेबुमाथी तेल नीकले ? अमथो खाली प्रयास शुं करवाने करोगे ? तमे कोई वमा ( महा) मूर्ख दीसो बो ! जे देखी पेखीने कोई धूलने पीलतुं हशे ? देवता बोल्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग जे-मुर्ख ते तुं के अमे ? जे तुं महीना थया ए माणसना ममदाने फेरवे . ते जो जीवतो थशे तो एमांथी तेल पण नीकलशे. ते माटे पीलीए बीये. बलन तेने मूर्खना शीरदार गे, एम कही त्यांथी आगल चाल्या. देवताए ए रस्तामा एक पत्थरनी शीला उपर पोयणी-कमल वाववा मांड्यु. बलन ते देखीने पुग्युं के, तमे श्रा शुं करो जो ? देवताए कह्यु के, पोयणीकमल वावीये लीये. बलजल बोल्या के, अरे ! तमे पण पेला तेलीनी माफक मूर्ख जणा बो ! शुं का पत्थर उपर पोयणी जगी जाणीवे ? एतो म्होटां सरोवर, के ज्यां जल नाँ होय त्यां निपजे. देवताए कहूं के, आपण बेहुमांहे कोईक तो मूर्ख हशे ? कोण जाणे जे ते तुं के ढुं. बलन कहे के, तुजयी ते कोण वधारे मूर्ख हशे ? जुर्ज नवांधुज था पार ! देवताए कडं के, तुज समान हूं तो वीजा कोईने मूर्ख देखतो नथी; केमके आउ मास थयां तु खन्ने उपामीने ममं फेरवे ! ते जो जीवतुं थाय, तो ए पत्थर उपर पोयणी केम न उगे? एवं सांजलीने बलनजी विचारवा लाग्या के, श्रा \ खरी वात कहे ने ? ए वखते अवध पण पूरी थई एटले शरीर पण बगमतुं जाएयुं तेश्री कृश्न मरी गया एम बलनभनी खात्री थई. पनी देवताए कृश्ननुं शरीर खीरसमुअमां वहेवराव्यु. बलजऽ ते जपरथी मोह मीने चारित्र लेई आत्मार्थ साधवा लाग्या. एवी रीते उत्तम पुरुष प्रीत पाले. चारित्र लीधा परीनी बलजनजीनी केटलीक कथा आ पुस्तकमां अगाउ आवी गयेली ठे त्यांथी जाणी लेवी, अने तेश्री पण विशेष जाणवाना जीज्ञासुए अन्य ग्रंथोश्री जाणी लेवी. अहीं तो मैत्रीनावनो जावार्थ हतो तेटलोज मात्र जणाव्यो बे. २१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. १३ ॥ अथ कुव्यसन विषे॥ नलिन मलिन शोना सांऊथी जेम थाए, इह कुवसनथी त्यूं संपदा कीर्ति जाए ॥कुविसन तिण देते सर्वथा दूर कीजे, जनम सफल कीजे कीर्ति कांता वरीजे २२ लावार्थः- कमलवन, के, जे दहाडे शोजावंत दीसे वे पण ते ( कमल ) सांजनी वेलाये जांखां थाय बे, तेम माग व्यसनथी प्राणीनी संपदा (पैसा टका ) कीर्ति ( जस ). ते पण जाय, ते माटे हे प्राणीयो ! कुव्यसन गंडो. अने जनम जे अवतार तेने सफल करीने कीर्तिरुपी स्त्रीने वरो, एटले जस प्रतिष्ठा मेलवो. ( वली मोदनां सुख प्रत्ये पामो ). २२ ॥ अथ द्युत विषे ॥ उतविलंबित बंद ॥ सुगुरु देव जिहां नवि लेखवे, धन विनास हुए जिण खेलवे ॥ नव नवे नमवू जिण जवटें, कहिनि कोण रमे तिण जूवटे ॥१३॥ नावार्थः- जुवटाना व्यसनीने एटले जुगारीने शुरू देव, शुद्ध गुरु अने शुरू धर्म, ए त्रणे तत्व न गमे; अर्थात् ते (जुगारी) सन्मार्गथी वेगलो होय, वली जुगार रमवाथी धननो नाश थाय अने जेश्रीकरी नवोजव नमवू पडे, माटे हे जाई ! तुं कहेने ! के एवा जुवटे कयो पुरुष रमे ? अर्थात् डाह्यो प्राणी होय ते तो जुवटे न रमे. जुन, जुवटुं रमवाथी नलराजा बधुं राज्य हारी गया अने दमयंती जेवी सती स्त्रीने लेई वनवास जवु पड्यु, वली पांच पांमव सीता जेवी महासतीने पण राज्य उपरांत कौरवो साथे जुवटे रमवाथी हास्या, सीताने पोतानी सन्मुख कौरवे करेलो परानव सहन करवो पड्यो, राज्यलक्ष्मी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग " खोई बेटा ने तेर वर्ष सुधी वनवासनी पीमा जोगववी पडी. जुबटुं रम ए महा हानीकारक बे तेथी तेनो त्याग करवो. वली जेणे ए जुवटुं महेल्युं अर्थात् जुवटुं रमवानो त्याग कर्यो ते पुण्यसारकुमारनी पेठे सुखीया थया. तेनो संबंध कहीये ठीये. २३ ॥ जुवटुंरमवानो त्याग करवायी सुखीथनार पुण्यसारकुमारनी कथा॥ जरत क्षेत्रमध्ये गोपाल नामे नगरमां धने करी धनद सरखो तथा सर्व लोकने मानवा योग्य तेमज जेने राजादि प्रधान पुरुष पुढीने कामकाज करे बे एवो पुरंदर नामनो शेव रहे तो हतो. तेने शीलगुणे करी शोजायमान पुन्यसीरी नामे जार्या हती. पण पुत्र परिवार कोइ न होवाथी शेठ शेवाणी घणां चिंतातुर रहेतां हतां. एक वार तेमनां समां संबंधीउए मलीने कथं के, तमे गोत्रदेवीने याराधो. ए तमारी इछा पुरी पाडशे. शेठे तेमनुं कहेतुं मान्य करीने कुलदेवीनं श्राराधन करवा मांड्यं तेनी पूजा जक्ति विशेष प्रकारे करवा लाग्या. एम जक्ति करतां करतां एक दीवस तुष्टमान थथकी कुलदेवी प्रत्यक्ष ने बोली के, माग माग, जे जोईये ते माग, महारुं वचन बे. शेठे पुत्रनो वर माग्यो देवीए कयुं, तथास्तु. श्रर्थात् मागवा प्रमाणे तहारे पुत्र यशे. एम कहीने देवी दृश्य इ. पी कोइक पुन्यवंत जीव पुण्यसीरीनी कुखे गर्नपणे आवीने उपन्यो. तेना प्रजावथी पुण्यसीरीए रुडं स्वप्न दी. ते वात शेवाणीए शेवने कही. शेठे जणाव्यं के, आपणे घणो रुमो पुत्र यशे. त्रीजे मासे शेठाणीने साहामीवत्सल, संघपूजा, जिनजक्ति इत्यादिक साते क्षेत्रे वित्त वावरीये एवा उत्तम डोहला उपन्या. ते सर्वे शेठे पूर्या. एम करतां नव मसवामा पूर्ण थये पुत्र प्रसव्यो. मा वित्रे घणो जंव महोत्सव करी पुत्रनुं नामा" की र्त्ति " ने बदले वीजी प्रतमां " मुक्ति ” बे. * Jain Educationa International · For Personal and Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तरसहित. २१५ निधान 'पुण्यसार' स्थाप्यु अनुक्रमे वृद्धिपामतां नणवा योग्य उम्मरे निशालगरणानोउठव करी अध्यापक पासे जणवा मुक्यो.तेणे सर्व शास्त्र शीखी पुरुषनी बोहोतेरे कलानो संपूर्ण अभ्यास कर्यो. ___ हवे ए गोपाल नगरमा रत्नसार नामे शेठ वसे . तेने 'रत्नवती' नामे पुत्री . तेने पण एज अध्यापकनी निशाले जणवा मुकेली हती. त्यां ते पण चोंप राखीने जणती हती. एक वखत तेने अने पुण्यसारने लणतांनणतां विवाद थयो.माहोमांहे हुँकारे तूंकारे आव्या. बीजा निशालीयाए वार्या पण कोश्नु कहेवू न मान्युं. त्यारे पुन्यसार बोल्यो जे, “हे रत्नवती ! तुं टक टक शुं करे ने ? जो, हुँ तोज खरो, के तुजने परणीने दासी करी राखुं ! अने महारूं नाम पुन्यसार पण त्यारेज खरूं ! ते वचन सांजलीने रत्नवती बोली, जे-“तुज सरखा कंगालने हुँ नही वरं ! तुज सरीखा तो महारे पोताने घेर पाणीना नरनारा बे. माटे जो हुं परणीश तो कोश्क पुन्यवंत पुरूषने वरीश. पण तुज सरीखा अनागीयाने नहीं परj. ए वातनी तुं खातरजमा राखजे.” पुन्यसारे ते वखत कत्यु के, परणीश तो हुँ ज परणीश ! तुंए पण ए वातनी खातरजमे राखजे. पठी ते अध्यापके ते बन्नेने बोलतां बंध करी एकेकने जुदा कर्या. त्यारपठी ते बे जण हसे नही, बोले पण नही, साथे जणे, पण एक बीजाना सामुं सरखं पण न जूए. __पनी पुन्यसार पोताने घेर आव्यो. त्यां पण आमण मण थयो थको को साथे बोले नही, वात नही तेम विचार पण नही. मनमा फक्त एज विचारे जे जे, ए रत्नवतीने हुँ क्यारे परj ! एनो एज विचार तेना चित्तमांथी खसतो नथी. वली रत्नवतीए कहेला वचनना मंकनो काटको तेने अंगुठेथी ते माथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग सुधी लागेलो ते परण्या सिवाय रूकाय तेम नहोतो. पण परहस्ते विधात्राने हाथ ए वात होवाश्री ते गमगीनीमां पमी एकांतमां गयो. एवामां तेना पिता पुरंदर शेठ घरे श्राव्या. जमवानी वेला थई एटले पिताये पुत्रने जोवराव्यो. ते मालुम न पड्यो एटले पोते तेने खोलवा लाग्या. तेने खोलतां खोलतां एकांत स्थानके अलायधी जगामा कोश्ने मालम न पडे त्यां तूटीशी ढोलणी उपर सूतो दीगे. एटले ढंढोलीने उगडी कर्वा के चालो, जमवानी वेला थई ले माटे नोजन करवा बेसीये. पुण्यसारे कडं के, पिताजी ! तमे जमो, हुं तो हमणां नहीं जमुं. पिताये पुज्युं जे, शा माटे ? पुत्रे जणाव्युं जे, " में महारा मनथी एवी प्रतिज्ञा करी ने जे, रत्नवती कन्याने परण्या विना जमवू नही, माटे नही जमुं. प्रतिज्ञा पूर्ण थया विना केम जमाय ? श्रा महारो पंड पड़ी जाय तो बहेतर! पण प्रतिज्ञा पूर्ण थये ज जमीश.” ते सांजली शेउ बोल्या जे, हे पुत्र ! हमणां तो नणवानो समय , माटे जणो. वखत थये तमे कहेशो तेनी साथे पाणीग्रहण करावीशु. चालो-जगे, आपणे जमीये. पुत्र कहे जे, परणुं त्यारेज जमुं. शेठ कहे के, ह. मणां ए वातनो हठ न करो. तुं कहीश शुं अने अमे परणावगुं शुं ? तने परणाववानो तो अमने घणो मनोरथ बे. पुन्यसार कहे के, ते तो बेज. पण रत्नवतीने परण्या विना हुँ जल अन्न लेवानो नथी. वट पिताए कह्यु जे, हमणां तो तुं जमीले, पठी हुँ जश्ने ए कामनी तजवीज करीश. एवं सांजली पुन्यसार जमवाने उठ्यो. पिता पुत्र जमी जव्या. पनी पुन्यसारे पिताने कडं जे, हवे तमे जा. पुरंदर शेठ परिवार वेश्ने रत्नसारने घेर गया. रत्नसार उठीने सामा व्या, आदर सत्कार सहित आसन बेसण आपीने पुब्युं जे, स्वामी ! केम पधारवा कृपा क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सदित. १७ री ? जे कारज होय ते कहो ? पुरंदर शेठे की, के, अमारो पुत्र अने तमारी पुत्रीनो विवाह मेलवो तो रूटुं. रत्नसारे हा कही. ते वखत रत्नावली पासे बेठी हती तेणीये ते वात सांनली तेथी त्रटकीने बोली जे, ए पुन्यसारने हुं नहिं परj. बी. जाने परणवानी हा, पण एनी साथे ना. अथवा परण्या विना रहु. पण सर्वथा प्रकारे करी एने तो ढुं नही परj. कन्या-बोलवं सांजलीने पुरंदर शेठ बोल्या जे, ए पुत्री अत्यारथी एम करे तो आगल ए शो उघाड करशे ? रत्नसार शेठे तेमने कडं के, शेजी ! आप घरे पधारो. ए बालीका जोली ने, काई समजती नश्री, माटे एनां कदेण मनमां न लावशो ! अर्थात् एना बोल्या सामुं न जोशो. हुं ए पुत्रीने समजावी हा जणावं बुं. एम दीलासो दे शेग्ने शेरी सुधी वोलावी आव्या. पुरंदर शेठे घेर आवी त्यां बनेली सघली हकीकत पुत्रने कही संजलावी. पुन्यसार पोताना मनमां समज्यो के, ए मने परणशे नही. माटे हवे तो एने परणी शकाय एवो कांक उपाय करवो जोश्ये. पठी तेणे पोताना बापने कुलदेवीनुं आराधन करवाथी तेणीये प्रसन्न थई पुत्र प्राप्यो हतो एवं लोक वाक्ये सांजलेढुं होवाथी विचार्यु जे, हुं ए मातानो आपेलो दीकरो बुं, माटे माता पुत्रनी सार करशे. तेथी तेनुं आराधन करूं तो महारूं कार्य निःसंदेह सिद्ध थशे. एम धारीने धूप दीपादिकनी सामग्री मेलवीने तेणे देवीनुं श्राराधन कर्यु. देवीए प्रत्यद थ पुब्युं के, हे पुत्र ! शुं कहे ? मने केम आराधी डे ? पुन्यसारे जणाव्युं जे, हे माता ! तमे मुजप्रत्ये रत्नवतीने परणावो. देवीए कह्यु के, जा, तुं एने परणीश, पुन्यसार कहे के, जोज्यो मा, वचनमां खामी न पडे ! देवीए कह्यु के, जा, ए कन्या में तुजने आपी. ते वचन लेई पुन्यसार उठ्यो. पालो २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग मन देईने जणवानो उद्यम मांड्यो. त्यारपठी तेने जुगारीनी साबत थई. एक वखत राजाए पुरंदर शेठने लाख अव्यनुं घराणु सोंपीने कडं के तमारे त्यां या अनामत राखी मुकजो.ज्यारे अमारे जरूर हशे त्यारे मगावी लेश्शुं. शेठे ते घराणुं पूर्ण चोकसीथी अलायधुं मुक्यु. पुन्यसारे ते मुकतां दी. पठी बुपी रीते घराणुं काढ। लेई ते जुवटे रम्यो. तेमां बधुं हास्यो. त्यारपती केटलेक दीवसे राजाए शेठ पासे घराणु माग्युं. शेव ते लेवा सारू घेर श्राव्या. जोयु तो एक वालनी वींटी जेटवू पण न दीवं. एटले पुत्रने पुब्युं जे, तमे आ ठेकाणेथी आनूषण लीधां बे ? ए घराणुं तो राजानु . माटे साचे साचं कहो ? पुन्यसारे उत्तर वाल्यो जे, हा, में ली, ने. शेवे कह्यु के, जाउँ, घराणुं लेईने घेर आवजो. एम कही पुन्यसारने तेना पिताए समीसांजनी वेलाये घर थकी बाहिर काढी मुक्यो. श्रामण उमणो थयो थको ते घरथी नीकली नागोले आव्यो. तेणे विचार्यु जे हवे हुँ रात्रिने विषे क्यां जावं ? एम चिंतवीने ते एक वमना कोटरमां पेगे. शेगणीए रात्रि पमी पण पुत्रने न दीगे तेथी शेग्ने पुब्युं जे पुन्यसार क्यां गयो ? शेठे कां के, में राजानुं घराणुं लेई गया माटे तेने सीखामण वलवा वास्ते घर थकी काढी मुक्यो . शेगणी बोली जे, आ रात्रिनी वेलाये पुत्रने काढी मुकीने तमे घरमां नचिंत बेग हो, ए शुं ? जाउँ, एने ज्यां होय त्यांथी घेर तेडी लावो. स्त्रीनुं वचन सांजली पुन्यसारने जोवा सारू शेठ घर थकी नीकट्या. बधु नगर जोई वख्या पण क्याई न दीगे, रात्रिना चारे पहोर एमना एम फर्या पण पत्तो न लाग्यो; त्यारे शेठे विचायु जे, उघडते दरवाजे रखेने ए क्यांई जतो न रहे ! एवं चिंतवीने प्रजातमां नगरना बाहार श्रावी तेने जोवा लाग्या. हवे पुन्यसार जे वडना कोटरमां पेगे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३१५ हतो ते वमना उपर बे स्त्री आवीने बेठी. तेमांनी एके वीजीने कडं के, हे बहेन ! चालो, आपणे आज कांई तमासो जोवा जईये. बीजीये कह्यु के, क्यां जईशुं ? प्रथमनीए की, के, "अहींथी चारसे कोस उपर वसनीपुर नामे नगर . त्यां धनप्रवर नामनो शेठ वसे . तेने सात पुत्री . ते परणाववा योग्य जम्मरनी थवाथी तेउने माटे वरनी चिंता करतां शेठे लंबोदरनुं श्राराधन कयु. ते देवताये प्रत्यदा थईने कह्यु के के, अमुक दीवसे पहोर रात्रि जतां था नगरना दरवाजामां बे स्त्रीउनी पाउल एक पुरूष आवशे, ते तहारी पुत्रीयोने योग्य वर बे. तेने तुं तहारी कन्या परणावजे. ते सारू विवाहनी सर्व सामग्री तैयार कर. देवताना कहेवा प्रमाणे शेठे महोटो मंडप रची विवाहनो आदर मांड्यो . आश्रीकरीने एटले वर- कांई ठाम ठेकाणुं नथी तेम उतां शेठे विवाहनो समारंज कों ने तेथी ते नगरमध्ये तमासो थई रह्यो . देवताए बतावेलो दीवस आज दे. माटे त्यां शुं थाय डे ते जोवा सारु थापणे आ जामने मंत्रवडे मंत्रीने उडामी त्यां जईये तो ठीक ! एम हुं धारुं बुं." वीजी स्त्रीए ए वातने अनुमोदन प्रापवाथी बडना जामने मंत्र्यं. एटले ते आकाशे उड्यु. पुन्यसार ए जाडना कोटरमा रह्यो थको चितवे ठेके, जो शहीथी पहुं तो महारी शी वले थाय? हवे ते काड सायतवारमा वल्बनीपुरने परिसरे श्रावीने तयु. ते बे स्त्रीयो जाड उपरथी उतरीने चाली. तेनी केडे कोटरमाथी नीकलीने पुन्यसार पण चाट्यो. दरवाजा समीप शेठना सुनट राह जोई बेग हता तेमणे देवताना जणाव्या प्रमाणे बे स्त्रीओनी पाउल दरवाजामां पेसता पुन्यसारने दीगे. ते तेने सन्मानी शेउनी पासे तेमी गया. शेठे घणो श्रादर दीधो. पुन्यसार विचार करवा लाग्यो जे, महारे अने एमने शुं ? जे मु. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग जने एटलो आदर करे बे. शेठे कां के, महारी सात पुत्रीउने परणो. पुन्यसार ते सांजलीने मनमा खुशाल थयो. शेठे तेने जलां वस्त्र तथा उत्तम आजूषण पहेराव्यां. वरघोडो चढ्यो. साते कन्याउँनां पाणीग्रहण कर्या. करमोचन वेलाये शेठे घj धन थाप्यु. पठी सुवा सारु सात मजलानो आवास आप्यो. सातमे माल स्त्री सहित पुन्यसार गया. त्यां कला विकलानी वात, बहिर्ला पिका अंतापिका, काव्य, चतुर संगीत सरस वचन चतुराश्नी वात स्त्री करे , पण पुन्यसारने ते काई गमतुं नथी. कारण के, आ वखत तेना मनमां एवो विचार उत्पन्न थयो डे के, में राजानुं श्रानूषण बगाड्यु बे अर्थात् राजानुं घराणुं जुगारमा हुँ हारी आव्यो बुं; तेथी रखेने ! राजा महारा बापने मा ( शिदा ) करे. वली काड उपर श्रावेली बे स्त्री जाती रहे तो हुं हुं करीश ? एवं बाहट दोहट चिंतवे . स्त्री वारंवार बोलावे पण बोले नही. चिंताग्रस्त थई, सून्य मुन्य बेसी रह्यो बे. तेवारे स्त्रीउए पुग्युं जे, शुं स्वामी ! आपने कांई नूख लागी ने ? तेणे ना कही. त्यारे शें ने ? केम बोलता नथी ? एम स्त्रीए सवाल को. एटले तेणे जणाव्युं जे, देहशंका टालवी . तत्काल सातमी गुणसुंदरी नामे स्त्री घणी चतुर हती ते कारीमा जल लेश्ने तेनी साथे थई. उठतां उठतां पुन्यसारे विचार कयों के, हुं या स्त्रीने मुकी जश, ने ते महारुं नाम नीशान जाणती नथी; तेथी एमनी शी गति थहो ? माटे काश्क जणावं तो ठीक. एम धारीने खडीना कटका वडे नावार्थ जणाववा माटे नारवटे लखतो थको नीचे उतो. तेमां लख्युं जे- यतः ॥ किहां गोवालय वलही, किहां लंबोदर देव; आव्यो बेटो वहि वसण, गयो सत्ते परणेव. १॥ पली बाहिरली नूमीकाये श्रावीने साथे श्रावेली स्त्री प्रत्ये कडं जे, तुं वेगली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सदित. रहे. स्त्री तेना विश्वासे वेगली जोती उनी रही. पुन्यसार तेनी नजर चुकावी जेम बनी तेम ऊडपथी वडना काड पासे आवी तेना कोटरमा पेठो. त्यारपती नगरचर्चा जोई पेली बे स्त्री आवीने फाड उपर बेठी. एटले ते उड्यु. कणेकवारमांते गोपाल. पुरे आवीने जे स्थानके पूर्वे हतुं त्यां रद्यु. पेली बे स्त्री जाड उपरथी उतरीने पोताने घेर गश्यो. पठी पुन्यसारे कोटरमाथी नीकलीने नगर नणी हीडवा मांड्युं. एटलामां तेनी शोध करवा आवेला तेना पिता मल्या. ते हर्षवंत थया थका पोताना पुत्रने घेर तेडी लाव्या. पनी सघली वात तेणे पुढी. पुन्यसारे जुगारी पासेथी राजानुं घराणुं लावी आप्युं. शेठे ते राजाने पाईं सोप्यु. हवे वसनीपुरमा वेगली उजी रहेली गुणसुंदरी देहशंका टालवा गयेला पतिने घणी वार थई पण श्राव्या नही तेथी चारे बाजु निहाली निहालीने जोवा लागी. पण किहांये दीग नही. तेथी सातमे माल पाबी वीने पोतानी सकल बहेनोने जणाव्यु. ते सांजलीने सर्वे चिंतामां पमीयो. अने बोली के, अरे नूमी ! तुं तो महा डाही , तेम उतां तने ठेतरी ! ए शुं ? एम विचार करतां ज्यारे प्रनात थयो त्यारे नारवटे लखेलो श्लोक तेमना जोवामां आव्यो. ते वांची जोतां मालम पड्यु के, “ ए व्यसनी डे अने परणीने गोपाल पूरे गयो. " पड़ी ते स्त्रीना पितादिके ए बात जाणी. गुणसुंदरीए तेना पिताने कडं के, मने नरनो वेष आपो. हुं महारा जरिने खोली काढुं. तेना पिता धनप्रवर शेठे घणो साथ मेलवी सजाई करी मालनां गाडां, पोठी तथा जंट नरी थापी पुरुषवेशे पोतानी पुत्री गुणसुंदरीने तेना पतिनी शोध करवा सारु वीदाय कीधी. तेणे पोता- 'गुणसुंदर' नाम राख्यु. ते केटलेक दीवसे गोपालपुरने परिसरे आवी उतर्या. पनी राज्य योग्य नेटj Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग लेईने ते राजाने मढ्यो. राजाए तेनो सारो सत्कार करी उतरवाने माटे आवास प्रमुख आप्या. त्यां रही सुखरुप व्यापार करवा मांड्यो. तेने घेर घणा लोक माल लेवा माटे श्राववा लाग्या. तेमां पुन्यसार पण श्रावतो हतो. अणसारे तेने उलखवाथी पुरती तपास करी तेथी गुणसुंदर ( स्त्री )नी खात्री थई के तेने परणनार पति एज डे. पड़ी तेनी साथे प्रीति बांधी. एटले ते निरंतर श्राववा लाग्यो. दीवसे दीवसे गुणसुंदरनी ख्याती घणी थई. रत्नवतीये ए वात जाणी तेथी तेणीये पो. ताना पिताने कर्वा के, हुं गुणसुंदरने परणीश. अवरने नही परएं. पुत्रीनी प्रतिज्ञा सांजली तेनो पिता रत्नसार शेठ पोताना परिवार साथे गुणसुंदर पासे आव्या, अने पोतानी रत्नवती कन्यानुं तेनीसाथे पाणीग्रहण करवानी ईचा जणावी. गुणसुंदर विचारमा पमी गयो, पण ना कहेतां न पूरव्यु. त्यारे महारी वले ते एनी वले, एम विचारीने हा कही, रत्नवती साथे पाणीग्रहण कयु. पुन्यसारे ए वात जाणी कुलदेवी पासे जईने विनती करी कडं जे, देवतानां जे वचन ते पण खोटा पड्यां ! देवी कहे जे अमारां वचन खोटां न थाय ! पुन्यसारे कीg के, ए परस्त्री थई एटले महारे शा कामनी ? ए महारे खप नावे. देवी कहे-धणुं बोट्युं ते शा कामर्नु ? जा, ए में तुजने आपी. ए सांजली पुन्यसार देवी पासेथी उठीने पोताना कार्यमा खबडदार थयो, अर्थात् काम काजे वलग्यो. ते हमेशां गुणसुंदर पासे श्रावतो जतो तेथी, अने एक वीजाना स्वप्नाव मलता आववाथी, तेमने नखमांसनी परे प्रीति थई. एक वीजा वगर घमी पण चेन परतुं नहीं. परंतु पति पत्निपणानो पडदो खुसो थयो नहोतो. एकदा गुणसुंदरीए विचार्यु जे,-" निःसंदेह ए महारो खामी , तेम उतां फुःख शा सारू जोगवq.? वली हुँ, जो मने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. २२३ ब मासनी अंदर जर्तार न मले तो अग्निमां प्रवेश करवानी प्रतिज्ञा करी यावी तुं, ते अवध पण पुरी थवा घ्यावी ठे, माटे हवे तो पतिने प्रकट करवो. " पछी तेणे काष्टनी चिता खडकावी तेमां पोते बली मरवा तैयार थई. बधा नगरमां वात विस्तारी जे, गुणसुंदर सार्थवाह बली मरे बे. राजा, प्रधान, नगरशेव पुरंदरशेठ, रत्नसार शेठ, पुण्यसार शेठ विगेरे पण ए वात सांगली. ते सर्वे एकटा घई मांहोमांदे विचार करवा लाग्या जे, शुं हशे ? ए सार्थवाह बली मरवा केम तत्पर थयो ? पण तेनो नेद समजायो नही. राजाये विचार्य जे-महारा नगर ने मने खामी लागशे जे-फलाणा राजाना फलाणा नगरमां फलाणो व्यवहारीयो बली मुर्ज वली गुणसुंदर जेवा सुने माथे एवीशी आपदा यावी हशे के ते बली मु. एव वात थतां खचीत राज्यनी खामी कडेवाशे. माटे तेम न थवा देवं. एम धारीने राजा पोते गुणसुंदर पासे श्राव्यो. तेने घणं aj oj पण कांई जवाब न दीघो. तेवारे कोईएक पुरूपे कं जे, एने पुण्यसार साथे घणी मित्राई बे. माटे तेनी पासे कड़े - वरावो. ए तेनुं कहेतुं मानशे. पबी राजाए पुन्यसारने कयुंके, ए तमारो मित्र शा माटे मरेठे? तमे तेने केम वारता नथी ? कहेता नयी ? तेनुं शुं कारण ? राजानां वचन सांजली पुन्यसारे गुणसुंदर पासे जईने पुब्धुं जे - हे मित्र ! योवन वयमां तमे मरण पामवाने साहसीक धरो बो ते शा माटे ? शा कारणे एम कखुं पडे बे ? तेनुं जे कारण होय ते मुजप्रत्ये कहो ? लौकी कमां पण कंठे के ॥ यतः ॥ प्रीत तिहां पमदो नहीं, पडदो तिहां शी प्रीत; प्रीत बचे पडदो करे, एह वमी विपरीत १ ॥ एवं सांजली गुणसुंदर नीसासो नाखी बोल्यो जे- हे मित्र ! तुज - प्रत्ये हुं शुं कहुं ? जो कोई महारा दुःखनो जाए ( जागनार ) " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होय तो तेना मुखव होय ते शहरे का के १४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग होय तो तेना मुख आगल वात कहीये ते प्रमाण. पुन्यसारे कडं के, तमारे जे दुःख होय ते अमने कहो. कह्या विना शी खबर पडे कोने कोना मननी ? गुणसुंदरे कह्यु के-लारवटे श्लोक तमे लख्यो तो खरो ? पुन्यसारे जणाव्युं जे-ए वात तो खरी. पली तेणे बधी वातनो नेद कह्यो. ते सांजली. पुन्यसारे पोताना घर थकी स्त्रीनो वेष मगावी आप्यो. सघली वातनी खवर पमी तेथी राजादिक सर्वे विस्मय पाम्या अने खुशी थया. तेबारे रत्नसार शेठे राजाने विनती करी जे, हवे महारी पुत्रीनी शी वहे. राजाए जणाव्युं के, ए पण पुन्यसारनी स्त्री थई. एवो न्याय थवाथी रत्नवती पण पुन्यसारनी नार्या थई. पुन्यसारे तेने सन्मानीने घणो मान मर्तबो वधार्यो. ते पूर्वनी वार्ता जाणे जूली गयां होय तेम लेश मात्र पण संचारता नहोता. पली गुणसुंदरीने पति प्राप्त थयानी वार्ता वसनीपुरे गई. त्यां रहेली तेनी बए बहेनो पुन्यसारने त्यां ावी. ते मली आठे स्त्रीउनी साथे दोगंदक देवतानी परें पुन्यसार सुख जोगवे बे. श्राखा नगरमां तेमज आसपासना मुलकमां पुन्यसारनो जस घणो विस्तारवंत थयो. एवे अवसरे चार ज्ञानना धरणहार शीलंधराचार्य श्रावीने ए नगरना उद्यानने विषे समोसर्या. वनपालके वधामणी कही. तेने राजाए घणुं अव्य श्रापीने खुशी कर्यो. पठी सर्व परिवार लेई राजा गुरुने वांदवा आव्यो. राजा, पुरंदर शेठ, पुण्यसार आदि सर्वे विधिपूर्वक गुरुने वांदीने यथोचित स्थानके बेग. गुरुए धर्मदेशना दीधी. तेमां एम जणाव्यु जे – “ यतः ॥ अपारे संसारे, कथमपीसमासाद्यनृनवं ॥ नधर्मयत् कुर्यात्, विफलजन्म निगमयतिवं ॥१॥ देशना सांजलीने पुरंदरशेठे गुरु महाराजने प्रब्युं जे- स्वामी ! पुन्यसारने पामतां एवडी विमासण केम थई ? गुरु कहे के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. " देवाणु पीया ! ए पुन्यसार पूर्व नवे चारित्र पालतां कायानी गुप्ति साहसिकपणे पाली शक्या नही. सात प्रवचन माता सुखे पालवाथी आ नवे सात स्त्री सुखरुप पाम्या. अने श्राउमी स्त्री मलतां एवमी वार लागी; तेनुं कारण एक श्रामी कायगुप्ति संबंधी जाणवू.” गुरुमुखे पुन्यसारना पाबला नवनी हकीकत सांजली वैराग्यवंत थया थका पुरंदर शेठे चारित्र ग्रहण कयु. ते शुद्ध मुनीनो धर्म आराधी वर्ग प्रत्ये पधार्या. पुण्यसार नगरशेठ थया. ते पण न्याय धर्म सम्यक् प्रकारे पाली पुत्रने घरनो नार श्रापी आठ स्त्रीनी साथे संयम आराधी देवलोक पाम्या, था पुन्यसार शेठनी कथाथी सार मात्र ए ग्रहण करवानो ने जे, प्रथम ते जुवटीया थया तेथी चोरी जेवो म्होटो गुन्हो को. राजानुं घराणुं सीधुं ते हारी बेग. पिताए घरमांथी कहामी मुक्या. संताई पेस, पड्यु, अने पोताने लीधे पितानी अवदशा थशे एवो मनमां नय उत्पन्न थवाथी प्रथम समागमे स्त्री साथे एक शब्द पण उच्चार करी शक्या नही. वली परणेत स्त्रीने मुकीने नाशी श्रावq पड्यु. ए विगेरे फुःखो फक्त जुगार रमवाश्रीज उत्पन्न थयां. अने ज्यारे ए व्यसन गेड्यु अर्थात् जुगार रमवो बंध को त्यारे सुखी थया. यश कीर्ति वधी अने वटे आत्म हितार्थ संयम पालीने देवगतिनां सुख पाम्या. माटे कोईए जुगार रमवो नहीं. ए सात व्यसन मध्येनुं पहेलुं व्यसन निषेध करवानो अधिकार कह्यो. २३ ॥ अथ मांस जक्षण तथा चोरी विषे ॥ उपजाति बंद ॥ ॥जे मांस बुब्धा नर ते न दोये, ते रादसा मानुष रुप सोदे ॥ जे लोकमां नर्ग नीवास ओरी, निवारीये ते पर भव्य चोरी ॥२४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग. नावार्थः-जे मनुष्य मांसना लालची थाय ते मानवी नही पण माणसरुपे राक्षस जाणवा, वली तेवा (मांस नदण करनारा) मनुष्यने लोकमां नर्कना वसनारा कहीये, अर्थात नर्कवासी जेवा तेमने जाणवा, माटे मांस, व्यसन टालतुं अने परव्य पण न लेवु. एटले चोरी न करवी. (मांसना जदकने मने तो ते सांघु पण जे प्राणीनो वध करी मांस नखे अर्थात् खाय तेने एटले ते प्राणीने मने तोमोधू .पोत पोताना जीव सौने वाहाला .माटे मांस जहणना त्याग करवो. ते उपर दृष्टांत कहे .)२४ ॥ मांस मोंधू डे ए सिह करनार अजयकुमारनो प्रबंध ॥ मगध देशमा राजगृही नगरीनेविषे श्रेणीकराजा राज्य करता हता. तेमने अजयकुमार नामे प्रधान हतो. एकदा राजसना मतीने बेठी डे त्यां वात विचार करतां मांसना लालची हता ते बोल्या जे, “ आजकाल मांस सोंधु मले बे.” अजयकुमारे ते सांजली पोताना मनमां विचार कर्यो के, जेने मारीने ते मांस नक्षण करता हशे तेने मने तो मोंधू ; माटे ा जे उमरावो मांस सांघु कहे जे तेमने प्रतिबोध देवो योग्य जे. एम धारी ते वखते मौन रह्या. थोडीवारे दरबार विसज्यो. राजा महेलमां गया. उमरावो पातपाताने घेर गया. सांज पडी एटले अनयकुमार, जे उमरावे दरबारमा मांसनी वात कहानी हती तेने घेर गया. तेणे आदर दीधो अने बोल्यो जे, हे महाराज! केम पधार्या ? धणी कृपा करी, जे कारज होय ते कहो. अजयकुमारे कडं जे- हे नाई! राजाने शरीरे अकस्मात् रोग उत्पन्न भयो डे अने त्यां वैद्य आव्या . तेणे कडं के- कालजानुं सवाटांक मांस आवे तो करार थाय. तमे कहेता हता जे मांस सोंधू ने, माटे हुँ ते लेवा सारु तमारी पासे श्राव्यो ढुं. तमे राजाना मानीता बो, माटे ते श्रापो. उमराव विचारमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित, २२७ पडी गयो. पढी बोल्यो जे, महाराज ! ए काम केम थाय ? कहो तो द्रव्य पुं. ते द्रव्य यापीने वीजा पासेथी ल्यो. अजयकुमारे धुंके, मांसनुं काम ठे वली ते तमारा कदेवा प्रमाणे सोंधुं बे तो आपवामां शी हानी बे ? उमराव लाचारी करी बोल्यो के, साहेब ! लाख बे लाख द्रव्य ब्यो, पण मांस तो बीजानुं लेवा महेरबानी करो. अजयकुमार तेनी पासेश्री द्रव्य लेईने तेनी वानो हाजीयो पुरनार बीजा उमरावने त्यां गया. तेनी पासे सवा टांक मांस माग्युं. ते पण मांस श्रापवानी ना कहीने द्रव्य याप्यं तेनुं द्रव्य लइने वली त्रीजा पासे गया. ते पण द्रव्य खाप्युं. एम जे जे उमरावादि मांस सोंधुं मलवानुं कहता हता तेने त्यां श्राखी रात्रि सुधीमां फर्या. कोईये पण मांस प्राप्यं नही. लाचारी जणावी सघलाए द्रव्य आयु. एम लाखो गमे द्रव्य नेगुं करीने प्रजाते अजयकुमार दरबारमा व्या. सघला सामंत उमरावो यावी राजाने कुशल खेम पुढवा लाग्या. राजा विस्मय थया. एमणे अजयकुमार सामुं जोयुं. अजयकुमार बे हाथ जोडी बोल्यो जे, - महाराज ! गई काले राजसज्जामां आपना उमरावो कहता हता जे, (( आज काल मांस सोंधुं मले बे. " तेनी खात्री करवा माटे गई रात्रे मांस लेवाने अर्थे हुं गयो हतो. सघला सामंत उमरावे मुजने द्रव्य श्राप्यं, पण कोईए तमने सुख करवा माटे फक्त कालजानुं सवा टांक मांस माग्युं ते पण न आप्यु. माटे कहो महाराज ! " ए ते मांस सोंधुं ययुं के मोंघुं ययुं ? जो सोंधुं होय तो सवा टांक माटे कोई लाख वे लाख द्रव्य आपे ? " अजयकुमारनां एवां वचन सांजली त्यां श्रावेला सर्वे सामंत उमरावो नीचुं घाली रह्या. पण कोई कांई प्रत्युत्तर देई शक्या नही. सघला वचमां वंधाणा अर्थात् सांकडे श्राव्या; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग तेणेकरी नीचं जोरह्या पण उचुं जोई न शक्या ! पठी सघलाए मांस खावानां पञ्चखाण कर्या. ते माटे मांस वस्तु ए सर्व जीवने वाहाली जे. केमके, सर्व जीव जीव, वांछे बे. पण कोई मरतुं न वांछे. माटे मांसनो सर्वथा प्रकारे त्याग करवो. ए बीजें व्यसन तजवं. २४ __ हवे तेनो वली पाडो उपनय कही देखाडे ने जे, जुन-वली जे जीव मांसना लालची जे ते जीव महामहा पुःखी थाय ने अने मरीने नर्के जाय . ते कोण गया ? तो जुर्म-कालिकसुरीश्रानी पेठे घणा गया बे. ॥मांसनी लालचथी नर्के जनार कालिकसुरीतथा तेनो त्याग करी॥ ॥ धर्म आराधन करनार तेना पुत्र सुलसनी कथा ॥ राजगृही नगरीने विष कालिकसुरी कसाई रहेतो हतो. ते मांसनी लालचे करी नित्ये पांचसे लेंसा (पामा) नो वध करतो हतो. तेनो आखो जन्मारो एम वध करता करतां गयो. ज्यारे तेने कालधर्मनो समय श्राव्यो अर्थात् तेनुं मर्ण नजीक आव्युं त्यारे ते महा महा पुःख पामवा लाग्यो. तेनो पुत्र सुलस पोताना बापना सुखने वास्ते जे जे उपाय करे तथा जे जे वस्तुथी तेने समाधि थाय ते ते वस्तु तेना वपरास माटे लावे ते ते सघलाथी सुख थवाने बदले तेने पापना उदयथी घj कुःख थतुं जाय. तेवारे सुलस अजयकुमार प्रधान पासे आव्यो, अने पोताना पिताने सुखने वास्ते जे जे कारण करीये बीये ते ते उखरूप थाय बे; एनुं शुं कारण हशे ? ते माटे श्राप कहो ते करूं, एम पुब्युं. अनयकुमारे विचार्यु जे, ए जीव महा पापना जोग थकी नियमा नर्कगामी . माटे एने सुंथाली सुखसैय्या न जोश्ये, शीतल पाणी तथा बावनाचंदन प्रमुखनां विलेपन पण एने न जोईये. जेम खर, उष्ट्र, श्रज, वायस, सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सदित. शए श्रर विगेरेने चूंमी वस्तुनो चाह होय तेम एने पण एवां कारण जोईये ! एथी ए शाता पामशे. एम मतिकल्पनानी बुछिएकरी तेना पुत्रप्रत्ये अजयकुमारे कडं जे,-हे सुलस! जमीन उपर कांटा पाथरीने ते उपर तहारा बापने सुवाड. तेथी तेना जीवने सुख उप जशे. वली टाढा पाणीने बदले तुं तेने तडतडतुंपाणी पाजे. अने एना शरीर उपर विष्टानुं विलेपन करो. ते सांजलीने घेर श्रावी सुलसे सर्वे अनयकुमारना कह्या प्रमाणे करणी करी. एथी कालिकसुरीश्राने शाता थई. तेवारे ते कहेवा लाग्यो जे, हे दीकरा ! एटला दीवस एवी सुहाली सेज क्यां घाली मुकी हती ? वली तें थाज मने आई शीतल पाणी पायुं तथा विलेपन पण घणुंज रूहुं कर्यु. एम ते मागने सारूं मानतो श्रायुना क्षयथी मरीने सातमी नर्के गयो. तेनां लोकीक कारज कर्या पठी सर्व तेनां सगां संबंधी मली सुलसनी पासे श्रावीने कहेवा लाग्या के, हे सुलस ! ते तहारा बापर्नु काम तुं ले. ए सर्व कुटुंबनी वृत्ति तुं हवे चलाव. सुलस बोल्यो जे-हुँ लेखें तो खरो ! पण में महारा बापनी अवस्था दीठी बे, तेथीकरी महाराथी तो ए काम न लेवाय. सघलां सगांए कह्यु के, तहारे जे पाप श्रावशे ते अमे सर्व कुटुंब वहेंची लेश्शु. तेवारे नजीकमां फरसी पमी हती ते लेश्ने सुलसे पोताना पग उपर नाखी. एटले वेदना उपनी. सुलस कहे जे, अरे नाश्यो ! अरे नाईयो ! अरे बाई ! अरे बाई ! अरे बहेन ! था अत्यंत महा मुजने उख अने वेदना जे थाय ने ते मुजश्री खमी नथी जाती. माटे जूंमो! तमे थोमीथोडीये पण वहेंची ल्यो, तो ते तेटली वेदना तो मुजने उडी थाय ! संबंधी बोल्या जे, तें तहारे हाथे करी जेम पेट चोलीने शूल पेदा करे तेम वेदना पेदा ( उत्ती) करी. ते पठी तुं श्रमने कहे जे जे हवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग तमे वेदना या.' ते यम थकी केम लीधी जाय ? सुलस कहे जे, वेदना तुमची लीधी नयी जाती त्यारे तमे पाप ते शी प्रकारे करी बढेंची लेशो? जो तमाराथी या थाटली वेदना न लेवाय तो तमे पापना संविजागीया केम था ? ते माटे आ जवे ने परजवे सुख ने दुःख ते पोते ( पोतानो ) श्रात्माज जोगवे. सुख दुखनो वेत्ता ते एहज जीव ठे. माटे जे जेवां कर्म करे ते तेवां ते प्राणी जोगवे. ए वात सांजलीने सगां विचारखा लाग्यां के एक बे ते पण खरुं छे. शाथी जे, ए कडे वे जे तमे आटला कुटुंब परिवार मध्या थका पण तमाराथी ज्यारे कां लेवातुं नथी त्यारे मर्ण पाम्या पढी कोई कोईने एकठो न थाय, त्यां एवढ़ेंची लेवाने कोण यावे ? जेम पंखी सांज वेलाये एकां याय ने प्रजाते सर्व जमीने दी सोदी से जता रहे, तेम आपणो मेलो पण एमज जाणवो. जेम ते पंखी पाठां एकठां न मले तेम, आपण कुटुंबनो पण मेलो फरी न मले. सुलसे उपर प्रमाणे सर्व स्वरूप कनुं, ते तेनां सर्व समां सांजलीने एवा निश्चय उपर श्राव्यां के, ए सर्वथा प्रकारे करी पाप नहीं करे, केमके ए धर्म पाम्यो बे. त्यारपठी सुलस अजयकुमार पासे गयो. तेमने पुढीने धर्म प्रत्ये पाम्यो पढी ते दृढ मने करी धर्माराधन करवा लाग्यो. वायु दय थये मर्ण पामीने धर्मना प्रजावी ते ( सुलस) देवता थयो. यहीं कहेवानुं प्रयोजन ए वे जे, मांसनो लालची थयो ते कालकसुरि सातमी नर्के गयो सुलस के जेणे मांसनां पञ्चखाण कर्या ते देवलोके गयो. ए बीजुं व्यसन जाणवुं. २४वे परद्रव्य न लेवुं ते उपर दृष्टांत कहे बे. ॥ श्रीजा चोरीना व्यसन उपर मंमीक चोरनो प्रबंध ॥ बेना नदीना तटने विषे मसाण भूमीकाए मंगीक नामे चोर पु- पाताल घर बांधीने रह्यो हतो. तेने एक बहेन हती. ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सदित. २३१ वने सलाह संपथी रहेतां हृतां मंमीके पोताना घरमा एक कुवो बनाव्यो हतो. ते ज्यारे चोरी करीने माणसनी पासे माल उपaral लावतो त्यारे तेनी बढेन ते श्रवनार पुरुषने पग धोवाने बाहाने कुवा उपर लइ ज‍ तेमां ढोली पाडती हती. पढी ते कुयामांथी नीकली न शके एवं तेणे करी मुक्युं हतुं. मंडीक हमेशां राजदरवारनी पोले पगे पाटो बांधीने तुनवाने काजे बेसतो. ते लोकोनां वस्त्र तुनी यापवाने लेतो, अने तुनीने तेने घेर श्रापवा जतो. त्यां तेने घेर दृष्टचर्या जोइ घ्यावी लाग मले ते घरमाथी चोरी करतो हतो. एम करतां करतां घणो वखत वही गयो . श्राखुं नगर तेणे लुटी लीधुं लोकोए तेमज कोटवाला दिए घणी तपास करी पण ते पकमायो नही. बेवट सर्व पुरजन गा थइने ए नगरना राजा मूलदेव पासे फरिश्रादे गया. फरियाद सांजलीने राजाए चोरने पकडवा माटे बीडं फेरव्यं. ते कोइए न लीधुं त्यारे राजाए पोते बीडुं बब्युं. निरंतर चोरने पकडवा माटे राजा संका पकतां सर्व स्थले फरवा लाग्यो. नवा नवा वेष बदलीने राजा रात्रि दीवस चोरनी शोध करतो हतो. एक वखत सामान्य वेष धरी रात्रे तापसने श्रमे वी खड्ग संतामीने राजा सुतो हतो. त्यां मजुरने माटे मंडीक चोर श्राव्यो. तेथे सामान्य वेषे सुतेला राजाने जगाड्यो. मजुरी परवीने चोरी लावेलो माल तेनी पासे उपडावी तेने लेइ पोताना पाताल घरमां श्राव्यो. माल तेनी पासेथी लेइने मंडी के पोतानी बढेनने बोलावी कयुंके, तमे एना पग धुश्रो बढेन एने कुछ कांठे बेसाडी पग धोवा लागी पगनां तलांए हाथ फरसतां ते तेने घणा सुकमाल जलाया. तेना मनमां श्राव्युं जे, या महारो ना हमेश मजुर लावे वे तेना पगमां ने श्रा पुरुषना पगमां तो घणो फेर जाय बे. माटे एने मारवो नही. एवं राजानी पुन्याइये 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग करी ते चोरनी बहेनना मनमां श्राव्यु. तेवारे तेणीये समस्यामां जणाव्युंजे, तहाराथी नसाय तेम नाश. ते समजीने राजा नागे. एटले चोरनी बहेन पोकार पाडती उठी. हे नाई! हे नाई! नारवाह हतो ते नागे. पड़ी मंडीके केडे धा, धा, कालो, कालो, पकडो, पकडो, एम पोकार पाडी तेनी पुंठ पकडी. राजा जपाटाबंध दोडीने पोताना आवासे श्रावी सुतो. चोरे पाउल दोमतां श्रावी राजछार आगल पत्थरनो पुरुषाकारे थांजो हतो ते ज्रान्तिये करी बेद्यो अने जाएयु जे में नागे ते पुरुषने हण्यो. एम विचारी चोर पोताने गमे आव्यो, पढी प्रनाते मंमीक हमेशनी माफक पगे पाटो बांधीने राजपोले बेसी तुनवा लाग्यो. मूलराजाए पोतानो चाकर मोकली तेने तेडाव्यो. तेथी ते च. मक्यो ! पढी राजा पासे आव्यो. राजाए तेने पोतानी पासे वेसाड्यो. विश्वास पमाड्यो. पळी कडं जे - तहारी बहेनने महारी साथे परणाव. चोरे पोतानी बहेनने परणावी. पड़ी स्त्री जारनी रंग वार्तामां राजाए स्त्रीने पुढीने मंमीकनुं सघg धन लीधुं. पठी कांई न दीतुं अर्थात् कांई न रह्यं त्यारे मंमीक चोरने राजाए कदर्थना पमाडीने कालधर्म पमाड्यो. ते मरीने नर्के गयो. ए वातथी सार ए ग्रहण करवानो डे के, मंमीक घणो वखत चोरी करी हजारनुं धन लूटी लाव्यो पण ते तेना जोग पड्यु नही. मरजी नही उतां बहेनने परणाववी पडी. ए. कलो थयो. श्राखरे सघj नेगुं करी राखेबुं धन गयुं अने वीटंबना पामी मरीने नर्कावास पुःखनी परंपरा पाम्यो. तेना जीवने उझारनो दीवस नाव्यो, एम जाणीने अरे नव्य प्राणीयो ! ए चोरीनुं व्यसन बांडो, जेथी मोदनां सुख पामो. ए त्रीमुं चोरीनुं व्यसन जाणवू. २४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. २३३ ॥ अथ मद्य विषे ॥ नुयंगप्रयात बंद ॥ सुरापानथी चित्त संत्रांत थाये, गले लाज गंभीरता शील जाये॥ जिहां ज्ञान विज्ञान सूके न बूके, ईशू मद्य जाणी न पीजे न दीजे ॥ २५॥ जावार्थः- मदिरा पीवाथी जीव परवश थाय , लाज घटे ने तथा गंजीरता अने शील पण जाय , वली जेणे करी ज्ञान के विज्ञान कांई सुजतुं नश्री श्रने समजातुं नथी, एवो मदिरा जाणीने ते पीवो नही, तेमज कोईने पावो पण नही. २५. ॥ मदिरानुं व्यसन सेवनार जीतशत्रु राजानो प्रबंध ॥ वसंत नगरनो जीतशत्रु राजा तथा तेनी सुकमालीका राणी निरंतर मद्यपान करे . बन्ने स्त्री जर्तार मद्यमां मस्त थई रहे बे. राज्यनी पण चिंता करता नथी. एवं जाणीने तेना पुत्र तथा प्रधाने विचार्यु जे, व्यसन विजुको था राजा श्रापणा कामथी गयो. तेथी तेए राजाराणीने एक दहामो चंडहास्य मदिरा पाईने परवश करी सैय्या उपर सुवाडीने तेमां खरची मुकी ते (सैय्या) मनुष्य पासे उपडावी एक अटवीमा मुकावी. त्रीजे दीवसे ज्यारे मदिरानीडाक उतरी त्यारे तेमणे आंख उघाडीनेजोयु तो जंगल नूमीका अने स्वापदादि घणां जीव तेमना जोवामां श्राव्यां. एटले नयत्रांत थकां उठ्यां. पडी पोतानी सैय्या संनालतां थकां तेमांजोयुं तो संबल दीगमां आव्यु तेथी ते घणोज हर्ष पाम्यां. राजा विचारवा लाग्यो जे, मद्यपानथी मने धर कर्यो, हुँ उखीयो थयो. पण नळ थज्यो ए प्रधाननुं अने पुत्रनु, जे मुजने मार्यों नहीं. माटे हवे महारे ए ( मद्यपान-) व्यसन न सेवQ. एवो एटले मद्यना व्यसननो मन साथे परित्याग करी राजा राणी सहित त्यांथी चाली नीकट्यो. रस्तामा राणीने तरस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग लागी. तेणीए का जे-स्वामी! पाणी विना महारो जीव जाय . राजाए पाणी माटे घणी खोल करी पण किहांये न मट्यु. त्यारे तेणे अलगो जई पांदडांनो दडीयो करी तेमां पोतानी जांग कापीने लोही वडे ते दडीयो जरीस्त्री पासे श्रावीने कडं जे, श्रा पाणी लाव्यो बुं, एना उपर घणां पांदमां पडेलां ने माटे ए जोवानी जरुर नथी. तुं आंख मीचीने पीजा. स्त्रीए ते पीधुं. वली आगल जतां स्त्रीने नूख लागी; एटले तेणे राजा पासे खावानुं माग्युं, राजाए पोतानी जांग कापीने तेनां न्हानां खंड करी करीने मांस आप्यु. ते राणीए नक्षण कयु. आगल जतां कंचनपुर नगरे आव्या. त्यां घर नाडे खेश्ने ते रह्यां. राजाए विचार्यु जे खातां थकां तो कुत्रा पण खाली थाय. तेथी ते हाटवाडामां ( चौटामां) हाट मांडी व्यापार करवा लाग्यो. राणीए कह्यु के, घरमां मने एकलां गमतुं नथी. राजाए विचार्यु जे, ए स्त्री कहेडे ते पण खरु बे. केमके, ए घणी दासी साथे (एकठी) रहेली . तेथी एने एकलां रहेg गोठे नही ए वास्तविक बे. पठी तेणे स्त्रीने कडं के, तहारी पासे रहेवाने योग्य माणस खोली लावी राखीशु. एवामां एक वखत तेना हाट पासे बेसीने एक पांगलो गायन करतो हतो. तेनो स्वर सारो हतो. राजाए तेने का जेहे पांगु ! तुं महारा घरने विपे स्त्री ले तेनी पासे रही तेने तहालं गायन संजलावजे तथा तेनी साथे वात चीत करी तेनुं मन रंजन करजे अने त्यां बेसी रहेजे. अमे तहारं उदर नरण करीशं. वली वस्त्रादिक पण आपीशु. ते पंगुने पण एटर्बुज जोतुं हतुं, तेथी तेणे तेने त्यां रहेवाने हा जणी. एटले तेने ते पोताने घेर तेडी लाग्यो; अने स्त्रीने कां के, तहारी पासे रदेवा माटे आ पंगुने लाव्यो वं. तेनी साथे वार्तालाप करी तथा तेनुं गायन सांजली सुखरुप दीवस निर्गमन करज्यो. हवे ते पंगु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २३५ निरंतर त्यां रहे . राणीने गीत ज्ञान गाईने संनलावे . वात विचार करे . राजा श्राखो दहामो पोताना व्यापारार्थ हाटे (पुकाने ) रहे . पंगु अने राणी सिवाय त्रीजुं कोई घरमा न होवाथी ते बेनो एक बीजा उपर राग वधतो गयो. राणी पंगु साथे बुब्ध थई. तेनी साथे घणोज स्नेहराग बन्यो. तेना स्वरे मोही थकी कहे जे-हे वजन! हे प्रीय ! तुं मुंजने जोगव्य, एवं वचन स्त्रीए विषयनी लालचे पंगुपत्ये कह्यु. ते सांजलीने पंगु स्त्रीप्रत्ये कहेवा लाग्यो जे-तहारा नारथी हुँ बिहु बु. तेवारे स्त्री बोली जे-तेमनी तुं चिंता न करीश. पठी तेनी साथे विषयसुख जोगवतां केटलाक दीवस वित्या. एहवे ते नगरे गंगानदीनो उदव श्राव्यो. त्यां घणा लोकनां वृंद मल्यां बे. राजा राणी पण ते उव्वस्थानके आव्यां. राणीए राजाप्रत्ये कडं के, ज्यां कोई न देखे त्यां सर्व लोकश्री अलगा आपणे जईये तो सारु. राजा सरलपणे तेनुं कहे मान्य करी स्त्रीने साथे लेई घणी वेगली नूमीकाये गया. त्यां चिडंदिशे जोतां कोई दीगमां ना श्राव्युं एटले स्त्रीए पोताना नर्तार (राजा). ने प्रहमां नाख्यो. राजाने तरतां आवडतुं होवाथी ते कोईक तटनेविषे तरीने बाहार नीकट्यो. तेवा समये ए नगरनो अपुत्रीयो राजा मर्ण पाम्यो हतो. तेथी प्रधानादि पंचदीव्य मेलवी वाजित्र वागते थके फरता फरता नगर बाहिर ज्यां ते राजा ने त्यां श्राव्या. हाथणीए राजा उपर कलस ढाल्यो. घोडे पण मंगलीकना हेषारव शब्दना शुकन आप्या. सेवके माथे त्र धर्यु, चामर विकावा लाग्या. पली हाथणीए पोतानी सुंढे करी मस्तक उपर बेसार्या. त्यांधी नगरमां आवी सिंहासन उपर बेसार्या. श्रोडब कयों, ते राजानुं 'पुन्याढ्य' नाम स्थाप्यु. त्यां ते राज्य विलास जोगवे बे.... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग पेली स्त्री ( राणी ) राजाने अहमां नाखीने घरे श्रावी लोकोने कहेवा लागी के, कोण जाणे जे महारो स्वामी क्यां गयो ? गंगातटे उठवमां अमे बन्ने गयां हता. त्यां मने मुकीने कांईक कौतुक जोवा ते गया, त्यांथी पाबा आव्याज नहीं में तेमनो घणो तपास कर्यो भने कराव्यो पण मने मल्या नहीं; तेथी थाकीने श्राखरे हुँघेर श्रावी. महारा उपर कृपा करी, कोई महारा स्वामीनो पत्तो मेलवी श्रापशे तेनो उपकार मानवा साथे सारी बदीस श्रापी तेनुं मन हुं राजी करीश. आ प्रमाणे लोकोने कही दलगीरी देखामती ते घरमां गई. पठी पंगुने बुपीरीते जणाव्यु जे में था प्रकार करीने काशल काढी . हवे आपणने कोनी बीक नथी. एम कही मन मानती मोज मारवा लागी. बन्ने जण सुखे लोग जोगवे बे. खाय बे, पीए ३. एम करता करतांजे अव्य हतुं ते खुटाड्यु. किसीए वस्तु मात्र न रही. एटले बन्ने जण वि. चारवा लाग्यां जे हवे आपणे शुं करीशुं? पांगलो बोल्यो जेमुजमांहे गायानी सामर्थाई बे, पण पग नथी. तेवारे राणी शुकमालीका बोली जे-हुं तुजने खन्ने बेसारीने फेरवीश, पनी पांगलाने खन्ने बेसाडीने शुकमालिका नगरमां फरवा (जीदावृत्ति करवा ) नीकली. पांगलो खने बेठो बेगे गाय बे. ते सांजलीने श्राखा नगरनां लोकोनां वृंद जोवा माटे मध्यां. केटलाक लोक पांगलाना स्वरथी मोह पामी तेनी पुंठे पुंठे फरवा लाग्या. केटलाक पुरुष स्त्रीना रुप उपर मोह्या थका तेनी पाउल पाबल फरे बे. केटलाक एम कहे जे जे, श्रा पांगलो, अने एने श्रावी श्रत कन्या न जोईये ? एम जे जेना चितमां श्रावे ते कहे बे. पली लोको आपे तेमां ते नरण पोषण करवा लाग्यां. एवी रीते दररोज पांगलाने खन्ना उपर उपाडी ते स्त्रीने त्रवटे, चोवटे, चाचरे फरतां फरतां घणा दीवस थया-पबी वली नगरने बा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. २३७ " दार पखो गामडे पण फरवा मांड्यं. “पांगलो गाय, यांधलो दले ने कुतरुं खाय. " एवं देखीने लोक जोवा मले. वली लोक स्त्रीनी प्रशंसा करे जे पांगला जर्तारिने तो एहज सेवे. एम प्रशंसा यतां यतां तेनंं " पतिव्रता" नाम पड्युं त्यारपठी थोडे थोडे दूर गामकांमां फरतां फरतां ते पुन्याढ्य राजाना मुलकमां श्राव्यां वाम ठाम तेनो जस विस्तार पाम्यो. ते वात दरबार सुधी गई. एक सेवके पुन्याढ्य राजाने कहां के " महाराज ! एक स्त्री महा रुपयंत बे, तेनो जत्तर पांगलो वे, तोपण ते तेनी घणा रुडा प्रकारे चाकरी करे बे. पोताना खजा उपर बेसारी फेरवे बे. पांगलो गायन घणुं सारुं करे बे. लोकमां ते स्त्रीनी पतीव्रता रुपे ख्याति फेलाई बे. ए बन्ने फरतां फरतां यहीं यावेलां वे " राजाय ते सांजलीने पोताना मनमां तोल बांध्युं जे मूल तो श्रापणावाली श्राशामी ने पंगु पण तेज हशे ! होय ते खरुं ! जोईये ! कोण बे ? पी राजा सेवक साथे ते बन्नेने तेमाव्यां तेज खुशी थयां जे श्रापणने जोई तथा पंगुनो स्वर सांजलीने राजा जरुर नीवाजशे. पीते बन्ने जण दरबारमां श्राव्यां वेगलां उनां रह्यां. तेमणे राजाना तेजे करी तेने उलख्यो नहीं. पण राजाए तो तेने जंलख्यां. राजा बोल्यो जे - ॥ यतः ॥ वाप्यो रुधीरमापीतं, जकीतं मांसमुरुजं ॥ नागीरथ्यां पतिक्षीत, साधू साधूपतीव्रते ॥ १ ॥ ते श्लोक सांजलीने समजी ते स्त्री वीलखी थई. पी राजा ते स्त्री ने पंगु बन्नेने पोताना देश बाहार कर्या. देशवट्टो दधो. राजाने ते स्त्रीनां एवां मागं लक्षण देखी संसार उपर वैराग्य उपन्यो . श्रा संसारने असार जाणी राजाए चारित्र लीधुं. पाताना आत्मानुं कारज समारीने सुखीयो थयो . ते क्यारे सुखीयो थयो ? ज्यारे एणे मदीरा बांडी त्यारे ते सुखने पाम्यो. एम जाणीने बीजा प्राणीए पण ए मदीरानुं व्यसन टालवं. मदी ✔ Jain Educationa International -- For Personal and Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग रानुं व्यसन महा माजाणवू. वली एहज उपर बीजो वृत्तांतकहेले. ॥ मदीराना व्यसनथी हारीका नगरीनो दाह थया विषे प्रबंध ॥ एकदा श्रीकृश्ने श्री नेमीनाथजीनी देशना सांजल्या पली एवं पुज्युं जे-स्वामी ! ए छारीका नगरीनो विनाश क्यारे थवानो ने ? लगवाने कयु के-"तहारा पुत्र साम्ब अने प्रद्युम्न मद्यपान करी दीपायन तापसने संतापशे. तेणे करी तापस नीयाj करीने छारीकानो दाह करशे.” एवं सांजली श्रीकृश्ने मदीरानां नाम मात्र उपडावी वनमां मुकाव्यां. नगरमध्ये पडहो वजडावी सर्वने मदीरापान करवानी मना करी. थोमोक समय गया पली साम्ब अने प्रद्युम्न कुमारादि रमतां रमतां ते वनमां श्राव्या. त्यां तेमने मद्यनो गंध आव्यो. एटले ते पीवानी होंस थई. त्यां श्रावेला सर्वे जादवे ते मद्य पीधो. सर्वे पीने बक्या. मदोन्मत थया. त्यां नजीकमा दीपायनरुषी तप तपतो हतो. तेने देखीने ते संतापवा लाग्या. वली तेने कुट्यो. बीजा कोईए जेम तेम समजावीने तापसने मुकाव्यो. पठी ते तापसे क्रोधवंत थईने नीया' बांध्यु. ते मरीने अग्निकुमार देवता थयो. पडी ते पूर्वजवनुं वैर संजारी छारीकाने दाद देवा तत्पर थयो. परंतु हारीका नगरी मध्ये तेनी बीके करी लोकोए घर घरने विषे आंबीलनो तप करवा मांड्यो . ते तपना प्रत्नाव थकी बार वर्ष सुधी ते देवता- कांईये न चाट्यु. बार वर्षे कोईने पण तप करवानुं मन न थयु. अर्थात् नगर मध्ये कोईए थांबील न कयु. जेम सुजुम चक्रवर्तीनुं चरमरत्न समकाले मुकी देवानुं देवतामन थयुं ने ते मुकी दीg; तेम श्रहीं पण समकाले सर्वेए तप करवो मुकीदीधो. ते वखते ते देवताए समय उलखीने हारीका नगरी उपर अग्नि वुकुर्वि. तेना प्रजावथी छारीका नगरी प्रज्वलीत थ. पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २३ए तेणे एटवं विशेष कर्यु जे-जे दीदा खेईने नीकल्या तेने जीवता मुक्या. साधु तथा श्रीकृश्न अने बलजजी सिवाय बीजा सर्वे लोकने तथा श्राखा नगरनां मकानादि सघली वस्तुने वाली नस्म करी दीधी. ए शा कारणथी थयुं ? तो के-मदीराना व्यसनथी थयु. केमके मदीरा पीवाथी जीव परवश थाय . तेनाथी सहेजमां पण अकार्य बनी जाय . गमे तेवो माह्यो होय, पण ए नीच वस्तु ( मदीरा) ना संसर्गेकरी नीच माणस कहेवाय. गमे तेवो उत्तम होय, पण ते मध्यम कहेवाय. माटे ए मध्यम वस्तु जे मदीरा तेनुं व्यसन तजवू. ए तजे थकेज जीव सुखीयो थाय; माटे मद्यपान न करवू. ए चोधुं मदीरानुं व्यसन कह्यु. २५ ॥ अथ वेस्या गमन व्यसन विषे ॥ ॥ कहो कुण वेस्या तणो अंग सेवे, जिणे अर्थनी लाजनी हाणि होवे ॥ जिणे कोश सिंही गुफाये निवासी, बल्यो साधनेपालग्यो कंबलासी ॥२६॥ नावार्थः-अरे नाई ! कहो, के जे गणिकाथकी अर्थ परिग्रह अनेकुलनी लाज मर्यादा जाय एवी वेश्याना अंगनुं सेवन कोण करे ? जे प्राणी मूर्ख होय ते गणीकार्नु गमन करे. जुर्ज, कोश्या(वेश्या)नी संगते शूलिन जीना सिंह गुफावासी गुरुनाई चोमासाना कालमा विषयनी लालचे करी वेश्याना वचनथी कांबल लेवानी आशाये नेपाल देशमां गया. तेनो संबंध लखीये बीये. २६ ॥विषयनी लालचे वेश्यानां वचनथी कांबल लेवाने॥ ॥ नेपाल देशमा जनार सिंहगुफावासी साधुनो प्रबंध ॥ पामलीपुर नगरना पति नंदराजाना प्रधान सकमालना पुत्र स्थुखिनः कोशा नामनी वेश्याने त्यां बार वर्ष सुधी रह्या. तेने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग सामा बार क्रोम अव्य खवराव्यु. एवा अवसरने विषे एक वररुची ब्राह्मणना योगे सकमाल मंत्री, मरण निपज्युं; त्यारे नंदराजाए प्रधानपदवी श्रापवा माटे गणिकाने त्यांची स्थुलिनजने तेडाव्या. गणिकाए त्यां जवा माटे ना पामी. तेने समजावीने नंदराजाने मली तरत पाग आववानो कोल आपी स्थुविना राजा पासे जवा नीकल्या. रस्तामा तेमने तेमवा आवनार पोताना नाई सरैयाथी पिताना मर्णनो सघलो संबंध तेमणे जाणी लीधो. राजा पासे आवी विनय सहित पोताने तेडवानुं कारण पुब्यु. राजाए तेमना पितानी प्रधान पदवी लेवा कह्यु. स्थुलिन थालोची आववानुं जणावी त्यांश्री अशोक वनमां श्राव्या. त्यां संसारनी असारता चिंतवी समतत्व विचारीने तेमणे स्वहस्ते मस्तकनो लोच को. अने रत्नकंबल जे पोतानी पासे हतुं तेनो उघो करी राजसनामां आवी धर्मलान दीधो. त्यांथी संजुती विजयाचार्यनी पासे आवी दीक्षा लीधी. ___ वर्षाऋतु श्रावतां चोमासु रहेवा माटे संजुती विजयाचार्ये पोताना चार चेलामांथी स्थुलिन जीने ते जे कोशा वेश्याने त्यां रहेला हता तेनेज त्यां चारमास रही संयमाराधन करवानी श्राझा श्रापी. वीजा एक चेलाने सिंहनी गुफाए चारमासना उपवास करी रदेवानी आझा आपी. जीजा शिष्यने कूवाना नारवटै उपर चर्तुमास रहेवानी आज्ञा आपी. अने चोथा शिष्यने सपना बील उपर चार मास रहेवानी आशा आपी. चारे शिष्य गुरु आज्ञानुसार गया. स्थुलिनजी राजाने त्यां जईने आववानुं कही गया हता त्यारथी वेश्या तेमनी राह जोई रही हती. ते ज्यारे चोमासा उपर स्थुलिनजी तेने घेर आव्या त्यारे घ___ * क्याना मों जपर वच्चो वच्च एक जामु लाकमु नांखवामां आवे ने तेने कूवानो नारवट कहेवाय जे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २४१ णोज हर्ष पामी अने सत्कार सहित तेमने रहेवा माटे चित्रशाला श्रापी. वली स्थुलिनअजीनो साधु वेष जोई ते मुकवा माटे घणुं समजाव्यु. घणा हाव नाव कर्या. जोग विलास माटे प्रार्थना करी. स्थुलिनजी पोताथी सामा त्रण हाथ अलगी एटले घर रहीने दील चाहे ते (चेन चालादि) करवानुं वेश्या पासे कबुल करावी चोमासु रह्या. वेश्याए खटरस नोजन कराव्या. बत्रीसबक नाटक कां. वली कामराग उत्पन्न थाय तेवी औषधी पण नोजनने विषे श्रापवामां वेश्याए मणा राखी नहीं. परंतु मेरु पर्वतनी परे निश्चल चित्तवाला, के जेणे कामदेव- मूल सील संयमरुपी कुहाडे करी बेदी नाख्युं ले एवा स्थुलिनजी लेशमात्र मग्या नही. चित्रशालाने विषे आलेखेलां चोरासी नोगासन हतां ते उपरलेश पण लक्ष दी, नही. वली पूर्वे जे रंगनोगनी शालानेवीषे विषयसुख जोगवेलां ने तेज रंगशाला जे अने तेनी तेज वेश्या , तेमज ते पोताना उपर पूर्ण रागवती ने तोपण तेने निठी; अर्थात् तेना सामुं सरवू पण जोयुं नही; एटर्बुज नही परंतु एवा दृढ चित्तवाला सीयल सुरंगी साधु श्रीस्थुलिजजीए संसारनी असारता तथा तेनुं स्वरूप बतावीने ए कोशा वेश्याने प्रतिबोध पमामीश्रावकनां बार व्रत उचराव्यां. शुक श्रावीका करी. चोमासु उतरे स्थुलिनजी वेश्यानी आज्ञा मागी गुरु समीप श्राव्या. गुरुए सामा जई त्रण वार कर उक्कर, फुक्करकार कही बोलाव्या. एटलामां सिंहगुफावासी चार मासना उपवासी बीजा शिष्य श्राव्या, तेमने गुरुए एकज वार उक्करकार कह्या. तेमज कूवाना लारवट उपर चतुर्मास रहेला शिष्य आव्या, तेमने पण एक वार गुरुए मुक्करकार कही बोलाव्या. वली तेवीज रीते सर्पना बील उपर रहेला चोमासी शिष्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग आव्या, तेमने पण गुरुए एकज वार कुकरकार कहीने बोलाव्या. ए चारे गुरुनाई एकग थया. तेमां सिंहगुफावासी साधुना मनमा खेद उपन्यो. के, जु ! हजी मूल खन्नाव तो नथी मुक्यो एवो जे सकडालमंत्रीश्वरनो बेटो स्थुलिजा दीले (शरीरे ) रातो मातो , तेम बतां तेने गुरुए त्रणवार उक्कर पुक्कर कुकरकार कहीने बोलाव्यो ! गुरुए तेना मननो आशय (नाव ) जाणीने कयु के, हे महानुनाव ! तमारे खेद करवानुं काई कारण नश्री. में जे कडं बे, ते योग्यज कडं . तमे त्रणे जणे जे काम कर्यु ले ते काम एकला ए स्थुलिन कर्यु बे. सांजलो- १, कूआनो नारवट तजुप तो चित्रशाली जाणवी.के. मके जे जे दिशाए जूए ते ते दिशाए चोरासी जोगासनने जोवां तेम बतां पण ते देखीने चट्या नही. माटे ए तो कूआनो जारवट जाणवो. २, दृष्टिविषरुप ते साप एटले गणिकानी जे नजर ते साप सरखी जाणवी. तेना पण गंज्या न गया. माटे ए सर्पनो बील जाणवो. अने ३, सिंह ते खटरस सरस आहार कर्या अने ते जीरव्या. माटे सिंहगुफा समजवी. ते माटे त्रणे जणानुं काम एकला स्थुलिन कयुं तेथी एने अमे त्रण वार मुक्कर मुक्कर कुकरकार कह्या. ए रीते त्रणे शिष्यने समजाववा सारु गुरुए कहीने जणाव्यु के, तमे ए उपर खेद न करो. तो पण सिंहगुफावासी साधुने स्थु लिलाजी उपर खेद आव्यो जे, एमां ते शें उक्कर बे? एवं तो ल्योने अमे पण ते गणिकानी जे बहेन उपकोशा जे तेने घेर चोमासुं करीशु. श्रा प्रमाणे वात थया पली कार्तिक अने फाल्गुन चोमासु विततां आषाढ चोमासु आव्युं त्यारे ए सिंहगुफावासी साधुए गुरुनी पासे वेश्याने त्यां चोमासु जवानी आज्ञा मागी. गुरु अणबोट्या रह्या. हा के ना, कांई पण गुरुए कह्यु नही. एटले फरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २४३ गुरुने पुठ्या विना ए सिंहगुफावासी साधु उपकोशाने घेर जवा नीकल्या. ते वखत ए गोखमां बेठी हती. तेणे साधुने श्रावता देखीने एना चहेरा उपरथी अनुमान कर्यु के, स्थुलिननी होम करीने आव्या दीसे बे. माटे हुं पण त्यारेज खरी के एनी परीदा जोउं ! साधुए तेने मंदिरे आवी घरना बारणा आगल गाढे स्वरे धर्मलान कह्यो. जपकोश्या कहे- अहीं धर्मलान श्यो ? श्हां तो अर्थलान होय तो आवो. एवं वचन सांजलीने साधुए ते गणिकाना सामु जायुं. तेनुं मुख निहालतांज तेनुं चित्त डामामोल थयुं अने बोल्यो जे- तमारे शो अर्थलाज जोईये ? उपकोशा कहे के, रत्नकंबल जोश्ये. ते वस्तु क्यां मलशे ? एवं साधुए पुबतां गणिकाये जणाव्युं जे-ते तो नेपाल देशमा मले बे. त्यांनो राजा सवालाख अव्यनुं एक अ. मुलीक रत्नकंबल तमारा जेवो वेषवालो जे नीदु जाय तेने आपे . तमारे पण ए वस्तुनो नाव होय अने विषयसुख नोगववानी वांछा होय तो त्यां जश्ने ते लेई आवो. एवं सांजलीने साधु चोमासु बतां पण नेपाल देशे गया. राजा पासे जईने श्राशीर्वाद देई वधाव्या. राजाये पोताना नियम प्रमाणे साधुने सवालद, रत्नकंबल आप्युं. ते लेईने पागे वल्यो. मार्गे श्रावतां चोरपली श्रावी. तेमां चोर हमेशां बुपाई रहेता हता. तेए एक पालेला सूमानुं पांजरुं जाडे लटकावी राख्युं हतुं. ते सूडो, जे कोई ए मार्गे थई माल अथवा रोकड अव्य लेईने जतुं होय तेना परिणाम सहित बोलीने पालमां संताई रहेला चोरोने जाण करे डे जे, आटलो अव्य जाय . ते सांजलीने चोर लुटवाने तत्पर थई लोकोनो माल पडावी लेता हता. साधु ए मार्गे नीकल्या. एटले सूडो बोल्यो के-धा धा रे नाश्यो ! सवालदनो माल लेने जाय . ते सांजलीने बुपाई बेठेला चोरे श्रावीने साधु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ सूक्तमुक्तावलीअर्थवर्ग पासेथी रत्नकंबल पमावी लीधुं. रत्नकंबल विना वेश्याने त्यां जई शुं मोहोडुं देखाडु ? माटे फरी लेई आवं. एम विचारीने साधु त्यांथी पागे वली नेपाल देशना राजा पासे जई श्राशीष वचन देई उन्नो रह्यो. राजाये तेने उलख्यो. बीजी वार श्राववानुं कारण पुज्यु. मुनीए लुटी लीधानी हकीकत निवेदन करी. राजाये रत्नकंबल वांसनी लाकडीमां घाली आप्युं. ते बेई पागे चोरपती नजीक श्राव्यो; एटले सूमाए लदव्य जाय ! लक्षाऽव्य जाय ने ! एवी बूम मारी. चोरे श्रावीने साधुने पकड्या, पण तेनी पासे काई दीगमां आव्युं नही. तेथी का जे-“श्रमारो ए सूडो कदीए जूगे नथी पड्यो, अने ए आज जुठो पडे बे. माटे तमारी पासे जे काई होय ते अमे तमने बदीये बीये. अमारु आ वचन जे. माटे साचुं बोलो, के तमारी पासे झुंने ? अने ते क्यां ने ? " साधुए चोरना बोलवा उपर विश्वास आणीने कडं जे-आ वांसनी लाकडीमां जे. चोरे ते जोयु. चोरे एवी रीते सूमार्नु वचन प्रमाण करावी साधुने ते लेई जवानी रजा श्रापी. त्यांथी चाली चोमासाना अंते साधु गणिकाने घेर आव्या. गणिकाए पुज्युं के, लेई आव्या ? साधु कहे, हा, लाव्यो. गणिका कहे, लावो. साधुए तेणीने रत्नकंबल आप्यु. पठी गणिकाए स्नान करी पोतानुं आ शरीर ते रत्नकंबल वडे लूसीने खालनी कुंडीमां नाख्यु. ते देखीने पोताना घरनी स्त्रीने जेम उबको ये, तेम ते गणिकाने उबको देतां साधु बोल्या के-अरे रांड ! फट्य रे अन्नागिणी ? ए तें शुं कर्यु ? हुं महा महा कुःखी थई कचरो कादव खुंदतो वे वार नेपाल गयो, त्यारेज ए लावी शक्यो बुं. अने तें तो दील लूसीने अशुची स्थानकमां फेंकी दीधुं. एथी वली वधारे मूर्ख ते कोण हशे ? खचीत तुं अनागिणीज दीसे ३. गणिका साधुनां वचन सांजलीने बोली के, अनागिणी ते हुँ ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ नाषान्तर सहित. के अनागियो ते तुं ? जे तुं स्थुखिजाजीनी होड करवाने श्राव्यो हतो, ते तहारी होड क्यां गई ? क्यां सिंह अने क्यां सीआल ? माटे जृमा ! तुं मूर्ख थई एनी तमोवड (सरखाई) करवा आव्यो वे. पण ते कोठ नही, जे वाए पडे. वली तहारी नजरे तो ए रत्नकंबल लाख अव्यनु आव्युं. पण पंच महाव्रत तद्रूप जे चिंतामणी रत्न ते तें कचरामांहे नाखी दीy.श्रा चोमासाना चार मासमध्ये समुर्बिम जीवनी हिंसा करी. वली काय जीव विराधी तें पापर्नु पोटर्बु बाध्यु. हवे अनागिणी ते हुँ ? के अनागियो ते तुं ? एवां पाप करवावडेकरी तहाराथी अधिक अन्नागियो ते कोण हशे ? महारा धारवा प्रमाणे तो तुज समान बीजो कोई अनागियो हशेज नहीं ! उपकोशाना एवां वचन सांजलीने साधु प्रतिबोध पाम्या. पड़ी तेमणे स्थुलिननी पासे आवी अपराध खमावी फरीथी चरित्रवत आराध्यां. श्रा कथाश्री सार ए ग्रहण करवानो बे जे-वेश्यानो संग करवानी अनिलाषा थई तेथी सिंहगुफावासी साधु चिंतामणी रत्न सरखां पांच महाव्रतने बोडी चोमासाना कालमा नेपाल के जे घणो धर देश ने त्यां काय जीवनी विराधना करता कचरो कादव खुंदता गया, फुःखी थया. वली लुटाया. फरी कुःख वेठी गया. नीदा मागी लाव्या, तथापि वेश्याए निबंबना करी. माटे वेश्यानो संग करवानी पण अनिलाषा मात्र डाह्या पुरुषे करवी नहीं. तो वली वेश्या गमन तो करवुज नहीं; एमां ते शुं समजवानुं अने शुं समजाववानुं ले ? गणिकाना संगे प्राण। खूआर थाय अने वेश्यानो त्याग करवाथी स्थुलिजउनी पेठे सुखी थाय. माटे गणिकानो संग न करवो. ए पांचमुं वेश्या गमन व्यसन कयु. २६ ॥ अथ खेटक ( बाहेमा ) व्यसन विषे ॥ बंद ॥ मृगयाने तज जीव घात जे, सघले जीव दया सदा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग नजे॥ मृगयाथी उख जे लह्यां नवां, दरि रामादि नरेंड जे हवा ॥१७॥ नावार्थः- जीवनो घात करनार जे मृगया एटले शीकार (आहेडी कर्म ) के तेने तुं तजी घे, अने सर्व स्थले हमेशा जीवना उपर दया नाव लाव, अर्थात् जीवदया कर. मृगया कहेतां आहेमाना व्यसनथी केई जीव हरी राम वीगरे राजानी पेठे महा मुखीया थया. अने मृगया करवानो निषेध एटले त्याग करवाथी संजतिराज जेवा सुखीया थया. माटे खेटक व्यसन निवारबुं ॥७॥ आ संजतिराजानो संबंध श्री उत्तराध्ययन सूत्रना अढारमाअध्ययनने विषेने त्यांथी विशेष वा जाणवाना जीज्ञासुएजोई लेवी.अहीं तो आहेडा व्यसन संबंधे लेश मात्र लखीये बये. ॥ आहेडा व्यसन निवारक संजति राजानो प्रबंध ॥ संजति नामे राजाने आहेमानुं ( शीकार करवानुं ) घj व्यसन इतुं. ते हमेशां आहेडे जतो हतो. एक वखत ते मृगया माटे गयो तेने देखी मृगलां वनना गवरमा नागं. तेमांथी एक मृगलो नासीने त्यां आगल गर्दनादिनामे मुनी काउसग्गध्याने उन्ना हता तेमना चरण बच्चे पेगे. एवामा राजाये बाण नाख्यु, ते मुनी पासे जई पड्यु. राजा घोडीने त्यां श्राव्यो, तो साधु दीग. तेथी मुनी श्राप देशे एवो जय पामीने ते मुनीने नमस्कार करी तेणे कडं के, महाराज ! अनय दान आपो. हुं जेवो तेवो ( साधारण ) नथी. संजति नामे नगरनो राजा बु. महारा पाउल घणा प्रवर्ने बे. मुनीये कयु जे-तने तहारो जीव वहालो बे, तेम सौने जाणजे. माटे तुं पण अजयदान आप. तने पण ए वाते अनय . एवं सांजलीने राजाये कायने अजयदान प्राप्यु, अने चारित्र लेई विहार कॉ. मार्गे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * नाषान्तर सहित. २४७ जतां बीजा दात्रीय साधु मल्या. संजति राजरुषीये पुज्युं जे, तमो कोण ? दत्रीय साधु बोल्या जे, तमे एम न जाणशो के, शासनमां तमे अमेज थया बीये. पूर्वे केई के महा पुरुष थया बे. ते उपर नरत चक्रवर्ति, सनतकुमार, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, दशानन विगेरे घणाना संबंध कही देखाड्या. ते सांजलीने संजति साधु दृढ थया. संयम पाराधी मुक्तीपद प्रत्ये पाम्या. संजति राजाये आहेमानुं व्यसन मुक्युं तो परमपद मेलव्यु. माटे बाहेमानुं व्यसन तजवं. ए बहुं आहेमार्नु व्यसन कह्यु. ७ ॥ अथ परस्त्री संग विषे ॥ चौपाई बंद ॥ स्वर्ग सौख्यन्नणि जो मन आशा, गंडे तो परनारि विलासा ॥ जेण एण निज जन्म फुःखए, सर्वथा न परलोक सुखए ॥२॥ नावार्थ:- जो स्वर्गनां सुखनी मनमां श्राशा होय तो परनारिना विलासने गंमो; जेणे करीने एटले परस्त्रीना संगे करीने (प्राणी) आ जन्मने विषे कुःख पामे, अने वली निश्चे करीने परलोकमां सुख न मले. २७ ते कोनी परे ? तो के- परस्त्रीनो अर्थी जे रावण ते सीतार्नु हरण करी लाव्यो तेथी तेनां दस मस्तक रणने विषे रमवड्यां. राज्य खोयुं अने मरीने चोथी नर्के गयो. ए सातमुं व्यसन कह्यु. ॥ अथ ए विषयोनां उदाहरणो॥ शार्दूलविक्रीमित बंद ॥ जूवा खेलण पांडवा वननम्या, मद्ये बलीद्वारिका ॥ * “बांडे तो परनारि विलासा" ए चरणने वदले बीजी प्रतमां "बोमतो अपरनारि तु विलासा" अने + सर्वथा न परलोक सुखए" ए चरणने बदले बीजी प्रतमा “ सर्वलोक विरुयां तजे सुख जे" एवां चरण के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग मांसे श्रेणिक नारकी मुख लह्यां,बांध्या नरे चोरिका॥ आखेट दशरथपुत्र विरही, केवन्न वेश्या घरे ॥लंकास्वामि परत्रिया रस रमे, जे ए तजे ते तरे॥॥ जावार्थः- जूवटुं रम्याथी पांचे पांडवोने वनने विषे बार वर्ष सुधी ब्रमण करवू पड्यु, मदिरापान कर्याश्री छारिका नगरीनो मनुष्यो समेत दाह थयो; मांस नदण थकी श्रेणिकराजा नर्कना फुःख प्रत्ये पाम्यो, चोरीना व्यसन थकी रोहिणी चोर पकमायो; आहेडाना व्यसने करी दशरथ राजाना पुत्र जे रामचंजी ते सीताना वियोग प्रत्ये पाम्या, वेश्याना व्यसन थकी केवन्नो साधन रहित मुखीयो थयो; अने परस्त्रीना रसनो लीधो रावण नर्क गति पाम्यो, एवी रीते साते व्यसने करी ए प्राणी मुख प्रत्ये पाम्या, माटे ए व्यसनने जे बांडे ते तरे अर्थात् ए साते व्यसन तज्या थकी संसारसमुद्र तरीये.ए ॥अथ कीर्ति विषे ॥ मालिनी बंद ॥ दिशिदिशि पसरती चंडमा ज्योति जैसी, श्रवण सुणत लागे जाण मीठी सुधासी॥निशिदिन जन गाये रामराजिंद जेवी, ईणि कलि बह पुण्ये पामियें कीर्ति एवी३० नावार्थः- दीशोदिशे एटले सर्व दिशाए चंडमाना जेवी उजली तेजस्वी, श्रने सांजलतां कानने विषे अमृत सरखी मीठी लागे, तथा रातदिवस मनुष्यो रामचंउजीना जेवी गाय एटले बोले, एवी कीर्ति श्रा कलिकालने विष घणा पुन्येकरीने पामीये. ३० तेवी कीर्ति नीमोसा वणिक अने तेनी स्त्रीनी थई तेनी कथा नीचे प्रमाणे : + ' नरे' ने बदले बीजी प्रतमां — नर्के' शब्द के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. २४९‍ ॥ कीर्त्ति मेलवनार जीमोसा वणिक ने तेनी स्त्रीनो प्रबंध || जीमोसा नामे वणिक घणुं दान पुन्य करे बे. जाट जोजक विगरे जे कोई जाचे तेने मों मायुं पे बे. एम करतां केटले क दीवसे त्यां एक चारण श्राव्यो. सेवके तेने कयुं के, शेव तो उघराणी गया बे. ते सांजलीने चारण दीलगीर थयो. पण मनमां विचार्य जे, जोऊ तो खरो ! जे एना घरनी स्त्री केवी ठे? एम चिंतवी जीमोसाने नामे आशिर्वाद देतो देतो यावीने श्रांगणामां उनो रह्यो. स्त्रीए तेने वासन यापी बेसाड्यो. घोमीने खादा प्राप्यं पठी तेने सुंदर रीते जमामीने शेठगीएकयुंजे, शेठ तो घरे नथी. सीखतो शेठ घरे आवशे त्यारे श्राप ने हमणां तो हुं तमने पाननुं वीरुं यापुं ते तमे व्यो. चारण बोल्यो जे, माता लक्ष्मी ! एमज हो. एटले यापनी मरजी माफक आपो. शेठगणीये पोताना काननी चोटी पानना वामां मुकीने ते गढवीने आयुं. चारण ते लेईने याशीष देतो सीख मागी त्यांथी चाली नीकल्यो. पण पानना बीडामां घणो जार लाग्यो तेथी ते जकेलीने जोयुं तो अंधारे अजवालुं थयुं. अर्थात् अमूल्य काननी त्रोटी तेणे दीवी. तेथी पाठो फरी थाशीष देतो देतो शेठगणी पासे श्राव्यो. धने बोल्यो जे - ॥ गाहो ॥ जे पण सुवन्नह रयण की चुन्नह, मांहे मेट्यो फोफल वन्न ॥ वरराय जो माएं सोलद, तोहि न पोहोंचे निम तंबोलह ॥ १ ॥ एवं कड़ी चारणे प्रतीत कीधी जे, जीमोसा विना कोई प्रागल हाथ न मांगवो. एवा उत्तम जीवनी कीर्त्ति अने जस विस्तार पामे बे. माटे सर्व प्राणीये पोतानी कीर्ति विस्तार पामे एवं कार्य कर. ३० ३२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥अथ प्रधान विषे॥ ॥ सकल व्यसन वारे स्वामितूं नक्तिधारे, स्वपरदित वधारे राज्यना काज सारे ॥ अनय नय विचारे क्षुता दूर वारे, निजसुत जिम धारे राज्य लक्ष्मीवधारे.३१ जावार्थः-प्रधान केवो होय ? तो के-जे सघलां व्यसनथी वेगलो रहे तथा पोताना स्वामी (राजा) नी जक्ति करे, वली पोतानुं तेमज परनुं हित वधारे अर्थात् जेम बन्नेनुं परस्पर हित वधे एवं कार्य करे अने राज्य- जे काम होय ते साधीले, अन्याय करतां विचारे, अर्थात् अन्याय न करे, अने कुप्रताने पूर वारे एटले खोटुं काम करवाथी वेगलो रहे, अने पोताना पुत्रना जेम धारीने राज्यलक्ष्मीनो वधारो करे. अर्थात् पिता जेम रात दीवस व्यापारादिक करी पोताना पुत्रने लदमीनो वधारो करी आपे तेम प्रधान अहोनिश राजकाजमां सावधान रही राज्यलमीनो वधारो करी आपे. वली जे पारकुं ध्यान पोताना चित्तमां धारीने प्रजानुं रखोपुं करे तेने प्रधान कहीये. ३१॥ एवा कोण थया ? तो के-अजय कुमारादिक थया ले ते अत्रे जाणवा माटे अजयकुमारनो संक्षिप्त प्रबंध लखीये बीये. ॥ प्रधान पद उपर अनयकुमार मंत्रीनो प्रबंध ॥ राजगृहि नगरने विषे राजकर्ता प्रसेनजित राजाए पोताना सो बेटामांथी राज्य करवाने योग्य कोण ? तेनी परिक्षा करी श्रेणिकने योग्य जाणीने तेनी कोई ईर्ष्या करी तेने पराजव न करे माटे तेने देशवट्टो देई पोताना राज्यनी हद बाहार रदेवानो हुकम कयों. श्रेणिक पितानी श्राझा मस्तके चढावी राजगृहीथी नीकली केटलेक दीवसे सोशंगाममां श्रावी धनावह नामे श्रेष्ठिना हाट आगल बेठो. एवामां धनावह शेठे श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. वीने दुकानमांथी कचरो काढी नाखवा मांड्यो. ते जोईने श्रेणिके विचायु जे-ए शुं करे ने ? आते काई एने घेला थई डे के शुं ? जे था " तेजमतुरी” सरखी वस्तु काढी नाखे . पड़ी तेणे शेग्ने ते काढी नाखतो वार्यों. अर्थात् तेजमतुरी र. खावी. धनावह शेठ तेने योग्य पुरूष जाणीने पोताने मोहोले तेमी गया. 'गोपालक ' एवं नाम धारण करी श्रेणिक धनावह शेग्ने त्यां रह्या. केटलोक वखत गया पली शेठे श्रेणिकने पोतानी पुत्री परणावी. ते त्यां सुखरूप रहे ने अने शेउनी कु. काननो वहिवट चलावे . त्यारपडी केटलेक समये एक वणकारो वसाणांनी सवा लाख पोठी लेईने ते गामे आव्यो. तेने तेजमतुरीनो खप हतो. तेनी खोल करावी पण श्राखा नगरमां ते जमी नही. पडी वणकारो नेटणुं लेई राजा पासे गयो. प्र. णाम करी बेग पनी राजाये तेने सुखवार्ता पुडी. क्याथी श्राव्या ? कोण देश? कोण नगर ? शुं नाम अने शुं काम ? एवं राजाये कडं. ते सांजली वणकारे सर्वे हकीकत कही थने ते. जमतुरी जोश्ये बीये एम जणाव्युं. राजाये ते माटे गाममां पडहो फेरव्यो. पण कोश्ना हाटमां ते न होवाथी कोईये ते पमहो बब्यो नही. बेवट श्रेणिकना कहेवाथी धनावह शेठे पडहो उब्यो. वणकारा पासेथी संघलां वसाणां वेई तेने साटे श्रेणिके धनावह शेग्नी पुकानमांथी ते शेउ जे प्रथम कचरो जाणी काढी नाखतो हतो ते तेजमतुरी आपी. शेठ घणो खुसी थयो. वणकारो गामो गाम पोठी लेईने फरनारो हतो तेथी तेणे गोपालक नाम धारण करी रहेलो प्रसेनजित राजानो पुत्र श्रेणिक बे, एम तेने ज्यारे ते पोताना पिताने त्यां हतो त्यारे जोयेलो तेथी अणसारे उलख्यो. तेजमतुरी लेई वणजारो त्यांथी चाली नीकल्यो. ते केटलेक दहाने राजगृह नगरने विष गयो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दान देवानो कपोतानी स्वीकलुक नेटणं नजित सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग त्यां प्रसेनजित राजा पोताना पुत्र श्रेणिकनी शोधमां पडेलो दीगे. वणकारे राजाने श्रेणिकना समाचार कह्या. __ अहीं सोगाममां वणजाराना गया पली धनावहशेउनी पुत्री श्रेणिकनी स्त्री गर्भवती हती तेने “ अजयदान देवानो मोहोलो उत्पन्न थयो. राजाने केटबुंक नेटणुं श्रापी तेनी साह्यताये करीश्रेणिके पोतानी स्त्रीनो डोहोलो पूर्ण कर्यो. त्यारपडी प्रसेनजित राजाए सोरंगाममां श्रेणिक उपर पोतानी वृद्धावस्थाथवाथीताकीदेशाववाने हलकारो मोकल्याथी ते पोतानी गर्नवतीस्त्रीने त्यां (तेना बापने घेर) मुकीने तेना वस्त्रने डे “मगधदेशने विषे राजगृह नगरनो वासी हुँ” एवं लखीने पिता पासे श्राव्यो. प्रसेनजितराजाये श्रेणिकने राज्यानिषेक करी पोतानी गादीए बेसार्यो. त्यां ते राज्यलीला नोगवे बे. पण तेने स्त्री विना सघलो संसार सूनो नासे बे. श्रेणिकना गया पळी तेनी स्त्रीने पूर्ण मासे पुत्र प्रसव्यो. मोहोलानुसारे तेनुं नाम अजयकुमार पाड्यु. तेना मातामहे तेने जणाव्यो. ज्यारे ते बार वर्षनो थयो त्यारे तेणे पोतानी माताने पुब्यु के, महारा पितानुं नाम शुं ? अने ते थाटला वर्षथी क्यां गया ? में तो तेमनुं मों सर पण जोयुं नथी. माटे ते तुं मने बताव. माताए तेना पितानी सघली वात कही. ते सांजलीने मातामहनी आज्ञा लेई पोतानी माताने तेडीने ते ( अजयकुमार ) राजगृह नगरे श्राव्यो. श्रा वखत पोताना राज्यने परिपूर्ण योग्य प्रधान राखवा सारु श्रेणिक राजाये तेनी परीक्षा करवा माटे एक खाली (पाणी विनाना ) कूआमां मुखिका नाखीने बधा नगरमां कहेवराव्यु हतुं के, जे कोई कूधामध्ये मुछिका पमीने ते कूयाने कांठे रही तेमांधी कहाढीने पहेरे तेने प्रधानपदवी श्रापवामां आवशे. एवं सांजलीने ते मुखिका काढवा सारु केई केई बुद्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २५३ वान श्रावी गया. पण कोई कूयामांथी मुद्रिका काढी शक्यु नही. ए वात देश परदेश विस्तरी. तेथी घणा विद्वान श्राववालाग्या. हवे अजयकुमार पोतानी माताने उद्यानमां मुकी नगरचर्चा जोवाने अर्थे आव्यो. त्यां तेणे कूयाने कांठे मलेला लोकोनुं टोबुं दी. अजयकुमार त्यां आव्यो. त्यां श्रावेला सर्व विहान कूमामां पडेली मुद्रिका नीचुं मुख करीने नीहाली नीहालीने पाबा फर्या, पण कोश्नी बुद्धि कांवे उना रहीने केम कहाढी शकाय ए विषे पोहोंची नहीं तेथी विलखा थई पाग फरवा लाग्या. बुझिनिधान अनयकुमारे कू जोयो. पठी सेवकने बोलावी कूत्रामध्ये पडेली मुजिका उपर गणनो पोदलो नखाव्यो. तेना उपर ताप (देवता) नखाव्यो. ते तापना जोगथी बाण सुकायु. त्यारपडी ते कूआमां कांग सुधी पाणी जराव्यु. सुकाएला गणनो पोदलो ते पाणी उपर तरतो कांग आगल आव्यो. ते लेने तेमां चोटी गयेली मुखिका कहाढीने अन्नयकुमारे पोताना हस्तमा पहेरी राजा श्रेणिकने नमस्कार कर्यो. राजाए तेनुं नाम गम पुज्यु. अनयकुमारे सकल वृत्तांत मांडीने ( मूलथी ) कह्यो. राजाये घणा सत्कार साथे पोतानी स्त्रीने बोलावी लेई अजयकुमारने प्रधानवटी आपी. ते राज्यनो कारनार सुखे समाधे चलावे . राजा पण पोतानी राणीयो सहित सुख वैजव नोगवे . अजयकुमार महा बुद्धि निधान सर्व कामकाज करवामां महा कुशल होवाथी राजाने कोई पण वातनी फीकर रही नथी. राज्यनो सघलो नार अन्नयकुमार प्रधान पोताने मस्तके लेई चलावे . प्रजाने कोई पण प्रकारनी पीडा उपजती नश्री. राजा तथा प्रजाने एकसरखो सुखरुप वहिवट चलावनार अजयकुमार जेवो प्रधान कोई थयो नथी अने थशे नही; एवी तेनी दिसोदिस ख्याति फेलाई गई . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग एवा अवसरने विषे राजगृही नगरना उद्यानमां वीर जगवान श्रावीने समोसर्या. देवे समोवसरण रच्यु.ते उपर बेसी प्रजु देशना ये . वनपालके प्रनु पधार्यानी वधामणी आपवाथी अजयकुमार सहित सपरिवारे श्रेणिक राजा वांदवाने गया.प्रजुनी देशना सांजलीने अजयकुमारना मनमां वैराग्यनी वासना थई श्रावी. तेथी तेणे चारित्र लेवानी श्राशा मागी. राजाये कह्यु, के हुँ ज्यारे तने 'जा' कहुं त्यारे तुं जाजे. त्यारपली वली केटलेक दीवसे फरीने श्री वीरप्रनु चौद सहस्र मुनिना परिवारे समोसर्या. तेमध्येथी एक साधु नदीने कांठे काउसग्ग करी उन्ना रह्या बे. महा महीनानी घणी सख्त टाढ पडे जे. एवामां रात्रिने समये चेलणाराणीनो हाथ सोम बाहार रही गयेलो; ते राणीए जागी उठीने जोयो तो टाढे करी ठरी गयेलो जणायो. ए वेला पोते ते दीवसे श्री वीरप्रजुने वांदीने पाळा वय्यां त्यारे नदीकाठे साधुने दीग हता ते याद श्राव्या तेथी मुखोच्चार कर्यो के “ पेलो श्रा समयने विषे शुं करतो हशे ? ” राजाने श्रा वचन सांजली तेनी (चेलणाराणी) उपर वेष उपन्यो जे-ए स्त्री कोश्क अन्य पुरुष साथे व्यनिचार सेवती दीसे बे. माटे तेने ते श्रा समये सांजरी आव्यो लागे . ए सिवाय बीजुं कांई कारण समजातुं नथी. एम थाहट दोहट करतां राजाये बाकी रहेली तमाम रात्रि गमावी. प्रजाते अनयकुमारने बोलावी कडं जे-तुं जश्ने अंतेनर प्रजालजे. अनयकुमारे विचार्यु जे राजाये हरकोई पण आवेशने लीधे अंतेउर प्रजालवानुं कडं. लागे . खरं कारण कोई जणातुं नथी. परंतु हुकम पालवो अने महोटी हानी न थाय एम करवू योग्य दीसे . पठी अंतेउरे श्रावी सर्व राणीने बादार काढीने ते (अंतेउर ) प्रजलाव्यु. अनयकुमारने हुकम आपीने श्रेणिकराजाश्रीवीर परमात्माने वांदवा गया. त्या प्रजुने वांदी यथा योग्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ՅԱՍ स्थानके बेसी प्रजुने पुब्धुं जे स्वामी ! महारी स्त्रीयो सती बे के असती बे ? वीरजगवाने जणाव्युं जे - हे श्रेणिक ! ए चेमाराजानी साते पुत्रीयो महासती सीलवंती बे. ते सांजलतां तरतज प्रजुने वंदना करी जयकुमारने पेलो हुकम रद करवा माटे उतावला नगरमध्ये याव्या. अजयकुमार हुकम बजावीने श्रावतां तेमने सामा मल्या. राजाये कथं के, “ पेलुं करशो मां. " जयकुमार कहे जे - हे राजाजी ! तमारी ज्ञानो लोपी केम थाऊं ! एवं सांजली राजा क्रोधवंत थई रीस चढावी बोल्या जे - " अंतेर प्रजालीने मुख देखामतां लाजतोए नथी ? माटे हुं कहुं हुं, ' जा ' तहारं मों लईने. राजाये यातुं वचन कयुं त्यारे अजयकुमारने पूर्वलुं वचन याद श्राव्युं; तेथी तेमणे महा श्रानंदीत यई राजाने प्रणाम करी कयुं जे हे तातजी ! एटलीज वाट जोतो हतो, जे क्यारे पिताजी आज्ञा थापे. ते वाट जोतां जोतां आज तमारी आज्ञा मली. आज महारो मनोर्थ फल्यो. एम कही ने पिताने प्रणाम करी श्राज्ञा पामी जतां जतां जणाव्यं जे, अमारी माताउने कल्याण बे. कुशल बे. ए वातनो धोखो न गणशो. ते सांजली राजाये श्रजयकुमारने रहेवा माटे घणुंए कयुं; पण पाखरेला सिंहने वकार्यो होय ते जेम काव्यो न रहे तेम ते रह्या नही. पी श्री वीरप्रभु पासे जईने अजयकुमारे चारित्र ग्रहण करी आत्मसाधन कर्यु. अंत समये शुभ परिणामना योगथी पांचमा अनुत्तर विमाने उपन्या. त्यांची चवीने माहाविदेहे मोक्षपद पामशे. प्रधानपदने योग्य एवा पुरुष जाणवा. ३१ ॥ अथ कलाविषे ॥ चतुर कर कलानो संग्रदो सौख्यकारी, इण गुण जिए लाधी शैण संपत्ति सारी ॥ त्रिपुर विजय कर्त्ता जे कलाने प्रसंगे, दिमकर मनरंगे से धरयो उत्तमांगे ॥ ३२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग नावार्थः-हे चतुर प्राणी! सुखकारी एवो कलानो संग्रह कर, ( अथवा चतुराई करी कलानो संग्रह करे ते प्राणी सकल संपदानो नोक्ता याय), ए गुणथी एटले कलानो संग्रह करवाथी प्रोणाचार्यने सारी संपत्ति मली, वली सहदेवे उत्तमांग एटले मस्तकने विपे हिम कहेतां ताढ तेनो कर्ता जे पाणी तेने कर्तुं त्यां धरी राख्युं तेथी एटले ते कलाने प्रसंगे त्रिपुरनो जय को. आ संबंध मिथ्यात्वना ग्रंथथी जाणवो. ३२ ॥ कलावान प्रोणाचार्य तथा अर्जुन अने जिल्बनो प्रबंध ॥ प्रोणाचार्ये अर्जुनने बाणावलीनी संपूर्ण कला सीखवी. पड़ी अर्जुने पोतानी बराबर कोने पण ते कला न सीखववा माटे गुरू पासे आखडी करावी. थोमोक वखत गया पली एक निल्स प्रोणाचार्य पासे बाणावलीनी कला सीखवा आव्यो. झोणाचार्ये ते सीखववानी ना पडी. तेथी निल्ले पर्वतमा प्रोणाचार्यनी माटीनी मुर्ति स्थापीने फूल प्रमुखथी सेवा करी तेनी पागल बे हाथ जोगी नमन करीने कां के, तमे मने बाणावलीनी कला सीखवो. तमारा प्रसादश्री ते मने सिद्ध थशे. एम कही धनुष्य बाण लेश्ने आंबलीना काडतले जई ते कला साधवा लाग्यो. एम दररोज प्रोणाचार्यनी मुर्तिने फूल चढावी नमस्कार करी कला साधतां साधतांबर महीने ते संपूर्ण कला सीख्यो. श्रांबलीनां जेटलां पानडां हतां ते सर्व विंध्या. एवामां एकदा समये अर्जुन एज थांबलीनी तले थईने जतो हतो. ते आंबली सामुं जंचुं जोयुं तो तेणे आंबलीन एके पानj सानुं ( आ ) न दी. तेथी प्रोणाचार्य आ कला सीखवी हशे एवं अर्जुन विचारवा लाग्यो. एटलामां तो पेलो जिल्ब त्यां श्रागल आव्यो. तेने अर्जुने पुब्युं जे-केनी साहाज्य अने कोण उस्ताद ? ए विद्याना गुरू कोण ? निबे कयु के-महारा प्रो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. णाचार्य गुरूना साहाज्यथी अने तेना प्रजावधीः पड़ी ते निबने पोतानी साथे तेमी लावीने अर्जुने स्रोणाचार्यनी पासे थावीने कां के, था जिसने तमे कला सीखवी ? प्रोणाचार्य कहे के, अमे तो ए निबने जाणता नथी अने उलखता पण नथी. ए कोण अने अमे कोण ? नथी जाणता जे ए क्यां रहे . ते सांजली अर्जुने निबने कह्यु के, तुं साचे साचं बोल, जे ए कला क्यांथी सीख्यो ? निब बोल्यो जे प्रोणाचार्यथीः एटले अर्जुने प्रोणाचार्य ने कह्यु के, जोयुं ! श्रा शुं कहे ? तमारूं नाम ये दे. पजी निलने उद्देशी प्रोणाचार्ये कह्यु के-अरे लुंडा! खोटुं शुं बोले ? निम्न बोल्यो जे-श्रावो, हुं तमने प्रोणाचार्य देखाडु. पठी ते जिन्स बन्ने जणने पर्वतमा ज्यां माटीनी मूर्ति बनावी मुकी हती त्यां तेमी गयो. अने कह्यु के, जुर्ड, आ रह्या प्रोणाचार्य. ते जोई बन्नेए (प्रोणाचार्य अने अर्जुने ) विचार्यु जे एणे खरे नावे करी सादात् एज स्वरुप डे एम जाणी नक्ति करी तेथी ते फलीनूत थई. एने साचीनक्ति फली. विद्या पाम्यो. कहो के, एमां प्रोणाचार्य शुं करे ? एतो पोताना अंतःकरणना नावथी एवी जक्तिए करी फल पाम्यो. एवी धारणा करीने ते पोताने स्थानके गया. सुखीया थया. माटे साचा जावथी कला सीखे तेने सर्व संपत्ती आवी मले बे. ३१ ॥अथ मूर्खता विषे ॥ वचन रस न नेदे मूर्ख वार्ता न वेदे, तस कुवचन खेदे तेदने सीख जे दे॥ नृपशिर रज नाखी जेण मूर्ख वदीने, दित कहत हणीज्यूं वानरे सुग्रहीने ॥ ३३ ॥ जावार्थः-जे प्राणी मूर्ख ते चतुराईनां वचनमां न नेदे, अर्थात् वचननो रहस्य समजे नही तथा सारी वातमां ध्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग थापे नही, वली तेने नली सीखामण देतां थकां ते मंडी लागे; ते कोनी परे ? तो के- जे मूर्ख हतो तेणे राजाने माथे धूल नाखी, वली सुग्रीए वांदराने तेना हितनो ललो उपदेश दीधो त्यारे तेणे ते सुग्रीने मारी. मूर्ख होय ते एवां काम करे बे. ३३ ते उपर एक मूर्ख वणिकपुत्रनो दृष्टांत कहे . ॥ मूर्ख वणिकपुत्रनो प्रबंध ॥ कोइएक वणिकपुत्र जन्मश्री मूर्ख हतो. ते कोईनुं कहेवू मानतो नही. वली ते सार असार कांई समजतो नहोतो. कोई वखत मनमां आवे तो कहेला वचनने वलगी रहेतो. एकवार तेनी माए कडं के, दीकरा ! ज्यां जश्ये त्यां सोरबकोर करता जश्ये. केमके कोई जेम तेम बेलु उठ्युं होय ते चेते. श्रा वात ध्यानमा राखी ते एक वनमां पारधी घणा वनचरने घेरी बु. पाई बेग हता त्यां सोरबकोर करतो करतो याव्यो. तेनो घोंघाट सांजलीने घेराएला जीव सघला नाशी गया. पारधीए ते मूर्खने काली कुट्यो. आजीजी करी बुट्यो त्यारे पारधीए तेने कडं जे घेला! ज्यां जईये त्यां बानामाना बपी (बुपा३) रहीये. ए वात मनमां धारी त्यांची एक सरोवर पासे जई पी रह्यो. त्यां एक धोबी धोतो हतो तेनां लुगडां कोईक चोर नित्यप्रत्ये लेई जतो हतो. धोबी तेनी तपास करतो हतो, पण चोर हाथ आवतो नहोतो. तेणे आज आ मूर्खने उपी रहेलो दीगे. तेथी हमेशां एज बुगडां लेई जतो हो एम धारीने तेने कुट्यो. कालावाला करी तेनी पासेथी बुट्या, त्यारे तेणे कडं के, बपी रहीये नही. पण 'सुधंनवतु सुधंनवतु' कहीये. ए बोल ध्यानमा राखी बागल चालतां एक गामनी नोगोले श्राव्यो. ते वखते करसणी लोको पहेल वहेलाज हलोतरा करवाने काजे मुहूर्त माटे जताहता. त्यां ते बोल्यो जे, 'सुधंजवतु सुधंनवतु.' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. श्याए ते वचन सांजलीने करसणीलोकोए तेने मार्यो. जेम तेम तेमनी पासेश्री बुटी नीकल्यो त्यारे तेमणे सीखव्यु के, “ बहुलवतु, बहुलवतु" एम बोलीये. वली तेज मार्गे श्रागल जतां गाममांथी ममई बेच्ने केटलाक पुरुषो श्रावता हता. तेमने देखीने बोल्यो जे, “ बहुलवतु बहुलवतु.” आवा शब्दो सांजली स्मसानीआए तेने खूब मार्यो. बोलवा चालवानी ढब उपरथी ज्यारे ते मूर्ख मालम पड्यो त्यारे तेने “ एवं मनवतुं, ए, म नवतु” बोलवान सीखवीने जवा दीधो. त्यांथी वली आगल चालतां नगरमां कोईक वणिकने घेर विवाहनां धवल मंगलनां गीत गवाय त्यां थ नीकट्यो. एटले 'एवं म नवतु, एवं म नवतु” बोल्यो. ते सांजलतांवेंतज वाणीयाए मलीने तेने मार्यो मूर्ख मालम पड्यो एटले “आवं दमेश जवतु, श्राहमेश जवतु" एबोलवानुं बतावी तेने जवा दीधो. पली तेमूर्यो रस्ते चालतां चालतां पण 'आई हमेश नवतु श्रावं हमेश नवतु' एम बोलतो बोलतो अथमातो अथडातो राज्यहारे आवी उत्तो रह्यो. श्रा वेला कोई कार्य प्रसंगे राजा राणीने मांहोमांहे विवाद थतो हतो. तेमणे मूर्खना बोल सांजल्या. तेश्री नित्यप्रते तमारे एवं चालजो एटले हमेशां तमे विवाद कर्यां करजो, एवो परमार्थ समजीने राजाए तेने पकमी म. गावी मराव्यो. पडी मूर्ख मालम पडतां राणीए तेने “बगनामाना उजा रहीये," एवी सीखामण आपी दया श्राववाथी तेने पोतानी पासे राख्यो. पली एक दीवस राजा राज्यसनामां बेग हता, एवामां राज्य महेलमां आग लागी. राजाने खबर क रवा माटे मूर्खने मोकल्यो. ते राज्यसनामां आवीने नोमानो उनो रह्यो. राजाए मूर्खाने दीठो. तेने पोतानी पासे तेड्यो. एटले डेक नजीकमां जई कानमां कडं जे-घरमां आग लाग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग वाथी ते प्रजले बे. राजाए कह्युं के, अरे मूर्ख ! बानोमानो त्यारनो जो शुं भई रह्यो हतो ? सोर पाडीनेज कहेने, जे घर बले बे. तेना उपर धूल नाखवी हतीने ! " ज्यां धूमामो देखीये त्यां धूल नाखीये." एवी सीखामण देई राजाए घेर यावीने श्राग होली नखावी. हवे एकदा समये राजानी राणी स्नान मजन करीने पोताना माथानी वेणीने धूपे धूपती हती. मूर्खे तेनी धू देखीने धूलनी पोश्य जरी लावी राणीना मस्तक उपर नाखी. या बनावथी राजाए तेने काढी मुक्यो . माटे एवं मूर्खपशुं कोई कामनुं नही कोई पण हकीकत सांजलवामां थावे अगर कोई कहे तेनो परमार्थ समजीने दरेक काम कर. परमार्थ समज्या विना कार्य करवुं, अगर बोलवु के कहेतुं, ए मूर्खाईनुं लक्षण बे. तेथी महा हानी पोहोंचे बे माटे एवीते मूर्ख बनवुं नही. ३३ ॥ मूर्खता उपर वांद ने सुग्रीनो दृष्टांत ॥ वनमा रहेनारो एक वांदरो ताढने लीधे भुजतो हतो. तेने देखीने सुग्री, के जेणे पोताने रहेवा माटे गुंथीने एवो मालो बांध्यो हतो के, गमे तेवो वर्षाद वर्षे तोपण तेमां बींडु मात्र न पडे; तेमां बेठी थकी वांदराने उदेशी बोली जे || दो हत्या दो पारा, दो लोयण दो कन्न; थरथर कंपे देहडी, कर घर राखवा तन्न. ॥ १ ॥ वली ते (सुग्री) बोली जे श्लोक ॥ द्वहस्तौ द्वौ पादौच, दृश्यते पुरुषाकृति ॥ गृहं कर्त्तुं न शक्तो पि, समर्थो गृह जंजने ॥ १ ॥ रेरे! वानर मूर्खोपी, गृहं किंनकरिष्यति ॥ १ ॥ ते वचन सांजली, ए रांडे मुजने मूर्ख कह्यो, एम विचारी वांदराए रीस चढावीने उबली (कुदको मारी ) सुग्रीनो मालो चुंथी नाख्यो. सुग्री बीचारी नासवा लागी. एटले वांदरो बोल्यो जे, - सुचिमुखी डू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. २६१ राचारी, रे रे ! पंमित वादनी ॥ असमर्थो गृहारंने, समर्थो गृ. इनंजनं ॥ १॥ रांड कहे डे के, घर करवाने तो समर्थ नथी, तो तुं लेती जा. एम कही वांदराए सुग्रीवें घर (मालो ) जागी नाख्यु. मूर्खने सारूं कहे तोपण ते तेने मुटुं जजे. माटे कडं ले जे ॥ उपदेशो न दातव्यो, जादृशेतादृशेनरे ॥ पश्वां वानरमूक्ष्ण, सुग्रही नीगृहीकृतं ॥१॥ एटले जेवा तेवाने जपदेश देवो नही, जेवी रीते मूर्ख एवा वानर पशुए सुग्रीने घर विनानी करी. माटे मूर्खने उपदेश न लागे. उलटो वांदरानी पेठे ते अवगुणनो करणहार थाय.ए दृष्टांतमूर्ख उपर जाणवो. ३३ ॥अथ लझा विषे॥ ॥ निज वचन निवादे वाजिज्यूं वाजि चाले, व्रत नय कुलरीते मातज्यूं लाजपाले ॥ सकल गुण सुहावे लाजथीनावदेवे,व्रत नियमो जेनाइलका प्रनावे॥३४ नावार्थः-पोतानुं जे वचन एटले बोलतुं तेने निर्वाहे अर्थात् पोतानो बोल पाले अने वाजि एटले घोडानी परे सुपंथे चाले वली कुलनी मर्यादा मुजब व्रत नीयम करे श्रने मातानी परे लाज पाले; कोनी पेठे ? तो के-जावदेवे लजाने लीधे पोताना जाई लवदेवनी साथे दीदा लेई सकल गुण सुहावे कहेतां सर्व गुण दीपाव्या. अर्थात् व्रत नियमादि पाल्या एम लझाये करी काम सिक पाय . माटे लगा राखवी. ३४ लगाये करी दिदा लेनार नावदेव तथा तेना नाई नवदेवनो प्रबंध. सुग्रीव नामना ग्रामने विषे लवदेव अने जावदेव नामे बे नाइ १ बीजी प्रतमा “ वाजिज्यूं वाजि चाले' ने बदले “लाज ग्युं राज वाले " एवा शब्दो चे. तेनो अर्थ एवो थाय ने के, लाज ए गयेखें राज पाळ मेलवी आपे. अने २" नों" शब्दने ठेकाणे “लह्यो" शब्द जे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग. हता. तेमां नवदेवे दीक्षा लीधी हती. ते लवदेव विचरता विचरता एकदा एज सुग्रीवग्रामे आल्या. त्यां वहोरवा गया तो पोताना नाश्नो विवाह मंमाएलो दीगे. लवदेव साधुने श्राव्या देखी जावदेव नाइ सामो श्राव्यो. तेणे वोहोराव्युं तेथी जार घणो थयो. एटले ते उपाडी लेवाने जावदेवे विनती करवायी जवदेव साधुए पोताना नाश्ने पातरां आप्यां. ते बन्ने नाइ ज्यां वनखंडमां बीजा साधु रह्या हता त्यां थाव्या. तेमने जो साधु सामा आव्या अने बोल्या जे-साबाश नाईने ! जे पोताना नाश्ने पण प्रतिबोधीने लाव्या. ते वचन नावदेवे सांजव्यु. तेथी तेणे विचार्यु जे, रखेने ! महाराजाश्र्नु महात्म घटे. रखेने जानुं वचन खोटुं पडे. एम धारी ते वचन प्रतिबोध समान जाणी नावदेवे दीक्षा लीधी. साधु थया. नवदेव चारित्र पाली आयु दय थये देवता थया. त्यारे नावदेवे विचार्यु जे-नाश्नी खजाये करी घेर जवातुं नहोतुं, ते तो मर्ण पाम्यो.माटे घरे नव परणीत स्त्रीने मुकीने श्राव्यो बुं ते वाट जोती हशे तेथीघेर जाऊं, अने स्त्रीने मढुं. चारित्र बोमीने जावदेव पालो पोताने घेर जवा माटे नगर पासे प्रासाद डे त्यां श्रावीने बेठो. एवामां तेनी स्त्री नागीला त्यां श्रावी. तेणीये अंगीत आकारे पोताना नर्त्तारने ओलख्यो. पडी तेनुं चित्त संत्रात जाणी प्रतिबोध देईने ते स्त्रीए तेने संयममां स्थिर को. ए नावदेव ते जंबुस्वामीनो जीव जाणवो. एणे लजाये करी दीक्षा लीधी, अने श्राखरे स्त्रीना वचनथी स्थिर थई पोतानो आत्मार्थ साध्यो. माटे लगा राखवी.३४ ॥शालिनी बंद ॥ एवा जे जे रुयडा नाव राजे, एणे विश्वे अर्थथी तेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. गजें ॥ एवं जाणीने सार ए सौख्य केरो, नलो धीर ते अर्थ अर्जे नलेरो॥ ३५॥ नावार्थः- एवा जे जे समा जाव राजे कहेतां देखाय-शोजा पामे, ते सर्व था जगतमां अर्थ एटले परिग्रह ( लक्ष्मी) संपत्तिथी थाय डे; माटे हे प्राणी ! सुखनो सार एटले ए अर्थश्री सकल सुख थाय ने एवं जाणीने जलो धीर होय ते अर्थ जोडे, अर्थात् धीरवीर प्राणी अर्थ जोडे बे. अने अर्थ जोडे तेने जलो धीरवीर कहेवाय. माटे अर्थ उपार्जवो. वली अर्थ एटले संपत्ति - लक्ष्मी विना रामचंउजीने पंथीये पारधी कह्या तेम कहेवाय. माटे अर्थ ए म्होटी वात जे. ३५. ॥ लक्ष्मी विनाना देखी पंथीए रामचंछने पारधी कह्यानो प्रबंध ॥ रामचंडने राज्यासने बेसमवाने अवसरे वनवासनो हुकम थयो. त्यारे श्राझा मागीने रामचंद्रजी पोतानी पत्नी सीता तथा बांधव लक्ष्मणने साथे लेई त्रणे जणा नीकल्या. वाटे जतां एक पंथीए तेमने दीग. तेणे बीजा पंथीने पुब्युं जे ए कोण हशे ? त्यारे एक पंथी बोल्यो जे-कोई पारधी हशे. एवं वचन रामचंद्रजीए सांजदयु. तेवारे बोल्या जे- “ लखमण लखमी बाहिरा, नर लह श्रादिसंत ॥ तुक सरीसा धणुहर धरे, पंथी पारधी नणंत ॥१॥ लक्ष्मीविना नर एम शोना पामतो नथी. माटे अर्थ उपार्जन करवो. ३५, ( इति श्री सूक्तमुक्तावल्या अर्थवर्गो द्वितीयः सह नाषान्तर समाप्तः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग ॥ अथ कामवर्ग प्रारंनः॥ ॥ उपजाति बंदः ॥ ग्राह्याः कियंतः किल कामवर्गे, कामार्जनादि (पागं तरे-कामो नृनार्यो ) गुणदोषनाजो ॥ सुलदाणीर्योग वियोग युक्तैः, समातृपितृप्रमुखाः प्रसंगाः ॥१॥ नावार्थः-काम एटले कंदर्प ते महा पूर्जय बे, ते जीतवो जगत्ने विषे महाफूर्लन , ते कामे अश्या बे. ते कोने ? तो के-हरि हरा दिक देव, ते सरखाने पण ए कामे विषयने विषे वश्य करवाथी ते परवश्य पड्या जीव महा मुखी थाय . १ श्लोक-केचित्प्रचंड गजराज वधे पिदक्षा, कंदर्पदर्प दलने विरखा मनुष्या ॥ श्री थुलीना मुनीराज शील उवंगे, व्रताधीराज धरतो रंगे ॥१॥ अर्थ-केश्क पुरुष बलवंत हाथीना वधने विषे डाह्या बे, पण कंदर्प दलवाने मनुष्य ते तो कोई वीरला होय; ए थूलीना मुनीराज जेवा जाणवा, के जेमणे उमंग श्राणीने सील पाट्युं अने उबरंग सहित व्रत अंगीकार कया. ॥१॥ वली कामना वश्ये करी नंदीखेण बार वर्ष सुधी गणिकाने घेर रह्या, विषय सुख नोगवी पाना संयमने विषे थीर थया. काम जीतवो ए महामूर्खन . जे प्राणीये कामने वश्य कर्यो अर्थात् काम जीत्यो तेनुं सर्व कार्य सफल थाय बे. का. मथी ग्रशाया अने वली ते कामने वश्य करी आत्मसाधन करनार नंदीखेण मुनीनो दृष्टांत उपयोगी होवाथी ते अहीं बतावे . ॥ कामथी प्रशाश् गणिकाने त्यां रहेनार अने वली तेनो त्याग ॥ करी संयमाराधन करनार नंदीखेण मुनीनो प्रबंध ॥ मगध देशने विषे श्रेणिक राजा राज्य करता हता. तेमने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. नंदीखेण नामे पुत्र हतो तेने उत्तम कुलवंतनी पांचसें पुत्रीयो परणावी हती. तेनी साथे विषय सुख जोगवे . देवतानी परे विलास करे . एवामां मगध देशनी राजधानी राजगृही नगरीना उद्यानने विषे गुणशील नामा चैत्य जे त्यां श्रीमहावीर प्रज्जु पधार्या. त्यां जुवनपति १, व्यंतर २, ज्योतषी ३, अने वै. मानीक ४, ए चार नीकायना देवताये समोवसरण नीपजाव्युं. ते जूंथी अढी गाउ ऊंचुं अने तेना उपर चढवाने चारे दि. शाये हाथ हाथने बेटे वीस वीस हजार पगथीयां बनाव्या. ते समोवसरणमां पूर्व दिशे सिंहासनना उपर “ नमो तीथस्स" कहीने श्री वीर नगवान विराजे , अने बीजीत्रण दिशाये प्र. जुजीना स्वरूप सरखं प्रतिबिंब करीने व्यंतर देवता स्थापन करे बे. एम तादृश चिह्र मुखे करी श्री प्रजुजी देशना प्रकाशे . ए चारे दान, शीयल, तप अने लावनारूप मुक्तिमार्गना चारे दरवाजा वखाएया . वनपालके श्री वीर प्रनु समोसर्यानी वधामणी श्रेणीक राजाने दीधी. हर्षवंत थई राजाये वधामणीमां तेने घणुंज धन आप्यु. प्रजुनुं आगमन सांजली राजाना उठ क्रोम रोमकूप उना थयां. हर्षोत्कर्षे करी प्रीतिदान थापीने नंदीखेण पुत्र तथा अनयकुमार प्रधान प्रमुखने संघाते लेई श्रेणीक राजा प्रजुने वांदवा गया. बेटेथी समोवसरण देखतां राजाये खड्ग १, बत्र २, चामर ३, उपानह ४, अने मुकुट ५, ए पांच राज्यचिन्ह अलगां मुक्यां. पठी समोवसरणमां श्रावी प्रजुजीने त्रण प्रदक्षणा देई वांदी, एक हजारने आठ काव्ये स्तवी उचित स्थानके बेग. सर्व परखदा पण बेठी. श्रीवीर प्रजुजीए धर्मदेशना प्रकाशी. ते नंदीखेणने परगमी. पडी प्रजुने वांदी घेर श्रावीने मातपितादिक तथा स्त्रीयोनी थाज्ञा लेईनंदीखेण श्रीवीर नगवान पासे चारित्र लेवाश्राव्या. आवखते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग आकाश वाणी यई जे, हे नंदीखेण ! तहारे जोगकर्म बाकी छे, माटे ते जोगव्या पछी चारित्र लेजे. एवं सांजल्या बतां पण जोगकर्म मुजने शुं करशे ? एम विचारी नंदी खेणे दीक्षा लीधी. (त्यारपठीनो विशेष अधिकार या पुस्तकमा गाउ लब्धा विषयमां नंदी खेलनाज प्रबंधमां लखाई गयो बे त्यांथी जोई लेवो. तोपण हीं या विषयनो जावार्थ समजवा माटे ट्रंक लखवामां श्राव्यो बे. ) पढी अजाणतां गणिकाने त्यां वहो - रवा गया. जोगावलीना उदयथी बार वर्ष तेने त्यां रह्या. पबी तेनो त्याग करी संयम आराधी श्रात्महित साध्युं. एवा साहसिक पुरुषने पण काम कंदर्पे एकवार पाडी दीधा तो सामान्य मनुष्यनो शो आशरो ? माटे तेथी अलगा रहेवु. १ ॥ अथ काम विषे ॥ कंदर्प पंचानन तेज आगे, कुरंग जेवा जगजीव लाँगे ॥ स्त्रीशस्त्र लेई जग जे वदीता, जेएण देवा जनवृंद जीता ॥ ॥ २ ॥ जावार्थ:- कंदर्प जे विषय ते पंचानन सिंह समान जावो. ( जेम सिंह ने पांच थानन कहेतां मुख वे एटले चार हाथ अने एक मुख ए पांच जणवां. ) तेना एटले सिंहना तेज थागल जेम हरण लागे बे तेम कामना तेज थांगल संसारी जीवने जाणवा; अर्थात् सिंहथी जेम हरण दबाई जायवे तेम संसारी प्राणी कामथी दबाई जाय वे एटले तेने वश्य - जाय. ए कंदर्पनुं शस्त्र स्त्री ने तेणे देवता जेवाने तेमज मनुष्यना वृंदने पण जीत्या, परंतु ए स्त्रीशस्त्र प्रत्ये कोई रीते वीजी प्रतमां ' लागे ' ने बदले ' जागे, ' तथा ' बदले ' तिएण ' शब्द छे * Jain Educationa International For Personal and Private Use Only , + ' जेएए' ने Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ भाषान्तर सहित. कांई न चाट्यु. ए तो जे बलीया थया तेमणेज स्त्रीरूपीया पासने जीत्यो, काह्यरनो काई श्राशरो नही; अर्थात् आत्मा बलीयो न करे ते कंदर्पना स्त्रीरूपी शस्त्रने जीती शकतो नश्री. एतो शूरवीरनुं काम बे.२ ॥ मालिनी बंद मनमथ जगमांहे उर्जयी जे अद्यापी, त्रिजुवन सुरराजी जासशस्त्रे सतापी॥ जलज विधि नपासे वादिजा विष्णु सेवे, दर हिम गिरिजाने जेण अर्शग देवे॥३ नावार्थः-मनमथ एटले कंदर्प जे जगत्मा हजु सुधी उर्जयी कहेतां जीताएलो नथी अर्थात् काम जीती शकाय तेवो नथी, केमके त्रण जुवनमां सुरनी जे श्रेणी तेने पण ए कंदर्पदेवना शस्त्रे संताप्या बे; कोनी परे ? तो के-विधि जे विधाता ते मज श्रीकृष्णे समुनी उपासना करी अने महादेवे अांगने विषे पारवती नारी राखी.३ ॥ शार्दूलविक्रीमित बंद ॥ निल्लीनाव ल्यो मदेश नमया, जे काम रागे करी ॥ पुत्री देखि चल्यो चतुर्मुख दरी, आहेरिका आदरी ॥ इंडे गोतमनी त्रिया विलसिने, संनोग ते उलव्या ॥ कामे एम महंत देव जग जे, ते नोलव्या रोलव्या॥४॥ जावार्थः-महेश एटले महादेवने उमयाए जीलमी थईने बट्या, अर्थात् नीलमी देखीने कामना वश थया थका महादेव चली गया, चतुर्मुख कहेतां ब्रह्मा पोतानी पुत्रीनुरूप देखीने चल्या, अने श्रीकृष्ण आहिरणी एटले नरवामणने देखीने चट्या, * बढ्यो' शब्दनी जगोए वीजी प्रतमां ' चट्योः' शब्द जे. ए बेनो नावार्थ उपर दशाव्यो बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ខ្ញុំនុច सूक्तमुक्तावली कामवर्ग वली इंजे गौतमनी नार्याने देखी ( तेना उपर मोह पामी ) तेनी साथे संजोग कर्यो, एम कामे (कुचेष्टाये ) जगतने विषे एवा म्होटा देव जेवाने पण नोलव्या अने रोलव्या एटले नोलवीने रोली नाख्या.४ ॥ नीलमीने देखी विषयनी प्रार्थना करनार महादेवनो प्रबंध ॥ ___ एक वखत महादेव तपश्चर्या करवा माटे वनमां गया हता. तेमना सीलनी परीक्षा करवा सारू तेमनी अर्भागना पारवती नीलमीनो स्वांग पहेरी ते वनमां गई. तेणीने महादेवे दीठी. तेनुं रूप जोई तथा तेना कटाद बाणे अने हाव नावे करी महादेव मोहपासमां पड्या. तेनी पासे विषयनी प्रार्थना करी. नीलमीए कह्यु जे-हे शीवजी ! जो तमे एक हाथ मस्तके अने एक हाथ पवाडे मुकीने नाचो तो हुँ तमारी साथे काम से. चित चलित थया थका महादेवे नीलडीनुं एवं वचन पण मान्य कर्यु. तपश्चर्या तपश्चर्याने ठेकाणे रही. एम कंद महादेव जे. वाने पण जोलवी रोली नाख्या तो बीजा साधारण मनुष्यनो तो तेना आगल शो श्राशरो ? माटे कामने जीतवो ए महा कठिन बे. तेने जीते एज खरो शूरवीर समजवो, थने तेज पोताना आ. स्माने तारी शके . ४ ॥ कंदर्पना उन्माद विषे ॥ मालिनी बंद ॥ नल नृप दवदंती देखि चारित्र चाले, अरहन रदनेमी ते तपस्या विटाले ॥ चरम जिन मुनी जे चिलणारूप मोहे, मयण रस व्यथाना एद उन्माद सोदे ॥५॥ नावार्थः-चारित्र लीधा पली नल राजानुं चित्त दमयंती साधीने देखी चलायमान थयु, श्रीनेमीनाथना लाई रथनेमी काउ सग्ग ध्याने रहेला ते राजीमतीनुं वस्त्र रहित अंग जोश्ने ध्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने देखी नल Aषधराजा राज्यायवैराग पामी नाच नाषान्तर सहित. नथी चुक्या, वली वीर लगवानना एक मुनी श्रेणीकराजानी स्त्री चिबणानुं रूप देखीने व्यामोह पाम्या, एटले ए गुण जेने उपजे ते सघला अर्थात् स्त्रीने देखीने चित्त चलित थाय ते सघलो ए कामनी पीमाना रसनो उन्माद जाणवो. ५ ॥दमयंती साधवीने देखी नल राजर्षिनुं चित्त चलित थयानो प्रबंध॥ नैषध नामा नगरने विषे नैषधराजा राज्य करता हता. तेमने नल अने कुबेर नामे बे पुत्र हता. नैषधराजाये वैराग पामी नलने राज्यगादीये अने कुबेरने यौवराज्यपदे स्थापीने चारित्र लीधुं. पली नलराजाने कुबेर नाईये जुवटे रमामी राज्य लीधुं. नलराजा पोतानी पत्नि दमयंतीने साथे लेई वनवासे गया. रस्तामां तेनो त्याग करी एकला चाली नीकल्या. कुबडं रूप थयु. दमयंतीने शीर खोटी चोरी चढी. फरी स्वयंवरे गया. दमयंतीनो मेलाप थयो. अनुक्रमे वनवास जोगवी श्रावी फरीने पोतानुं राज्य पाम्या. ते राज्यसुख जोगवीने वैराग पामी नलराजा तथा दमयंतीये चारित्र लीधुं. चारित्र पालतां थकां एकदा समये दमयंती साधवीने देखी नलराजर्षिनुं चित्त चलायमान थयुं. दमयंती उपर राग उपन्यो. पण दमयंती साधवीये तेमने प्रतिबोधीने ठेकाणे आण्या. अर्थात् चारित्रमा स्थिर कर्या. ५ ॥ राजिमतीने वस्त्र रहित देखी काउसग्ग ध्यानथी चूकी काम ॥ ॥ सेववानी प्रार्थना करनार रथनेमीनो प्रबंध ॥ श्रीनेमीनाथ नगवानना नाई रथनेमीये नेमी प्रजुनी देशना सांजली प्रतिबोध पामीने दीदा लीधी. पडी ते पर्वतमांहे काउसग्ग ध्याने रहे बे. एकदा श्री नेमीनाथने वांदी मार्गे पाग श्रावतां पर्वत उपर वर्षाद वरश्यो तेथी राजिमतीनां * नवराजानो कथा संबंध घणो ने पण अहीं कंदर्प संबंधमां लेशमात्र जाणवा योग्य लख्यो . विस्तार कथा तेमना चरित्रादिक ग्रंथोथी जाणी लेवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० सूक्तमुक्तावलीकामवर्ग वस्त्र जीजाणा. ते सुकववा सारु साधवी गुफामांहे गया. त्यां वस्त्र उतारी सुकव्यां. तेवारे वस्त्र रहित राजिमतिनां अंगोपांग रूप अवयव देखीने रहनेमी काउसग्ग थकी कामे विह्वल थया. जे ध्यान हतुं ते तो विसरी गयु. अशुजध्यानने विषे तेमनो आत्मा मग्न थयो. ते विषयरुप मदिरानी कमां चढ्यो थको मुखथकी काम सेववानी प्रार्थना करवा लाग्यो. वली तेणे कडं के, अरे राजिमती ! था, तहारं अद्भुत रुप बतां तुं तहारो नकामो जन्म अफल करे . अकस्मात् आवां वचन सांजली राजिमतीये पोतानां अंगोपांग गोपव्यां. पड़ी रथनेमीने खानादिकनां केटलांक दृष्टांत देई बेवटे का के, अहो अंगधकुलना जात थकी शुं निपट थश्ने बोलतां लाजतो पण नथी? अर्थात् अंगधकुल जातिनो सर्प वम्युं विष जीव जतां सुधी फरी चूसतो नथी तेम उतां तुं उत्तम कुलमा उत्पन्न थयेलो संसार रुपी विष अर्थात् विषयरुपी वमेला विषनी वांछना करतां तुं केम लाजतो एटले शरमातो नथी. ? सतीना मुखथी एवां वचन सांजली रथनेमी मनने विषे विचारवा लाग्यो जे- श्रावी यौवन मदमाती स्त्रीए पण पोतानो परिणाम लगार मात्र न मगाव्यो; तो मुजने धिःकार हो ? जे नाश्नी नार्या, तेनो में अनिलाष कीधो. एम प्रतिबोध पामी श्रीनेमीश्वर नगवान पासे जई प्रायश्चित्त बेई फरी चारित्र ग्रहण करीने ते बाराधन करी सद्गति पाम्या. एवा वीर पुरुषने पण ए कामदेवे चलाव्या तो बीजानो शो श्राशरो. ? माटे तेनाथी दूर रहे. तेना पासमां न पम, ए मनुष्य नवनुं सार्थक , अने तेवाज नर अक्षय सुखने सुखरुप मेलवे . ६ वीर नगवानना साधु चेलणा राणीने जोई चलित थया हता तेनो संबंध ग्रंथांतरे जाणी लेवो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ॥ अथ गुणदोषोनावन विषे ॥ रथोडता बंद ॥ नत्तमा पण नरा न संनवे, मध्यमा तिम न योषिता हुवे ॥ एद उत्तमिक मध्यमी पणो, बेहुमांदि गुण दोषनो गिणो ॥६॥ नावार्थः- उत्तम ते जे पोताने गुणे शोने, मध्यम ते बापने नामे करी जे उलखाय; ए बेमां एटले एक जे पोताने प्राक्रमे करी उलखाय अने बीजो जे बापना नामश्री उलखाय तेमां जेम घणो अंतर २ तेम उत्तम मध्यमनो पण एमज अंतर जाणवो. एटले जे मनुष्यमां जेवो गुण अथवा दोष होय तेवी रीते ते उलखाय. ६ ॥ अथ पुरुष गुण विषे ॥ शार्दूलविक्रीमित बंद ॥ जे नित्ये गुण छंद ले परतणा, दोषां जे न दाखवे॥ जे विश्वे उपगारीने उपगरे, वाणी सुधा जे लवे ॥ पूरा पूनिम चंद जेम सुगुणा, जे धीर मेरु समा ॥ जेद गंजीर सायर जिस्या, ते मानवा उत्तमा ॥ ७ ॥ नावार्थ:- जे पुरुष हमेशां पारकाना गुणना समूह ग्रहण करे, अर्थात् परनो थोमो थोमो पण गुण होय ते ले थने अवगुण होय ते ढांके, जगत्ने विषे जे उपकार करे अने बीजानो उपकार माने तथा अमृत समान मीठी वाणी बोले, जे उत्तम होय तेना मुखमांथी अशुन्न वासना न नीकले, वली उत्तम केवा होय ? तो के, सोल कलाये संपूर्ण चंडमा सरखा सारा गुणवान तथा मेरु पर्वत कदापि चलाव्यो चले नही एवा एटले मेरु सरखा धैर्यवान होय, वली समुज जेवा गंजीर होय, अ * ' न संजवे' ने बदले बीजी प्रतमा ‘स संजवे' एवो पाउने. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग थात् हजारो नदीउनुं पाणी समुजमां मलवा उतां पण ते पोतानी मर्यादा मुकी बलकाई जतो नथी तेम सत्पुरुष कोई पण वाते बलकाई जाय नही-गंजीरता मुके नही, तेवा मनुष्यने उत्तम जाणवा. ७॥ परनो थोडो पण गुण ग्रहण करी अवगुण ढांकनार श्रीकृष्णनोप्रबधं. सौधर्म इंजे एक वखत पोतानी सनामां बेग थका वखाण कर्यु के मृत्युलोकमां श्रा समयने विषे श्रीकृश्न जेवो गुणग्राहि कोई नथी. ते वातने अणसदहतो एक मिथ्यात्वी देवता तेनी परिदा जोवा सारू मृत्युलोकमां आव्यो. श्रा वखत श्रीकृश्नजी. रयवामीथी पाना फरी पोताना नगर जणी श्रावता हता. तेमना मार्गने विषे देवताये एक पुगंधमय सडेलो, के जेमां क्रोम गमे कीमा तरवरी रह्या डे एवो कुतरो विकुर्वीने मुक्यो. तेनी पुगंधे करी हाथी घोडा सर्वे रस्तामां थंच्या. मनुष्यो नासिकाये वस्त्र देई उन्ना रह्या. परंतु कोई मनुष्य के पशु मात्र ए मार्गे जवाने शक्तिमान न थया, एटली बधी पूर्गंध उबलती हती. सर्व खारीने टटस्थ स्थंनी रहेली जोई श्रीकृश्ने तेनुं का. रण पुलवाथी सेवके कडं जे-महाराज ! मार्ग वच्चे एक सड्यो कोह्यो कुतरो पड्यो ने तेनी पूर्गंधता अतिशे उठले . तेणेकरी कोई आगल जई शकतो नथी. ते सांजलीने पोते हाथी हलकारी आगल आवीने हेठि दृष्टीये करी विलोकीने कहेवा लाग्या जे-बरे नाईयो ! एनो गुण तमे केम लेता नथी ? सेवक कहे जे-वामी ! एमांहे शो गुण जे ? श्रीकृश्ने कडं जे, जुडने ! तेना दांतनी श्रेणि केवी ? जाणे हीरानी अथवा मुक्ताफलनी पंक्ति ज होयनी ! एनाथी पण उजली केवी ते सुंदर दीपेने ? श्रीकृश्ने कुतरानो कोई पण अवगुण जोयो प्रकाश्यों नही. परंतु तेनामां जे कांई थोडो पण वखाणवा योग्य गुण हतो ते कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. २०३ देखाड्यो. गुणग्राहक ते कदी पण दोष जोता नथी, ए तो गुणज प्रगट करे जे. पठी देवता प्रगट थई श्रीकृश्नने पगे लागी इंड पासे गयो. त्यां तेणे श्रीकृश्नजीनो जेवो गुण हतो तेवोज वर्णन कयों. माटे उत्तम पुरूषे गुणग्राही थ. ॥अनुष्टुप बंद ॥ जे रुप सौन्नाग्य संपन्नाः, सत्वादिगुण शोननाः॥ ते लोके विरला धीराः, श्रीराम सदृशा नराः॥७॥ जावार्थः- रुप ने सौलाग्ये करी संपूर्ण तथा प्राक्रमादि गुणे करी शोना पामनारा एवा धीर पुरुष आ लोकने विषे थोमा होय; ते कोनी परे ? तो के-श्री रामचंजना जेवा उत्तम पुरुष थोमा होय, घणा न होय. ७ ॥ अथ पुरुष दोष विषे ॥ शार्दूलविक्रीमित बंद ॥ लंकासामि दरंति राम तजि जे, शीतातणी एवकी ॥ स्त्रीवेची हरिचंद पांडव नृपे, कृष्णा न राखी सकी। रात्रे गंडि निज प्रिया नल नृपे, ए दोष मोटा नणी॥ जोवो उत्तम मांदि दोषगणना, का वात बीजा तणी॥ए॥ नावार्थः-लंकाना स्वामी प्रतिवासुदेव रावणे रामचंनी शिलवंत स्त्री सीतार्नु हरण कयु, तेथी रावणे राज्य अने जीव, ए बन्ने खोयां. वली हरीश्चंड राजाये पोतानी स्त्रीने वेची अने डंबने घरे पाणी वह्यु,वली जुर्ज-पांमव जेवा माह्या पुरूष पोतानी सती स्त्री प्रौपदीने जुगारमा हार्या, कृश्न जेवालाई पण तेने राखी शक्या नही, अने नलराजा दमयंती सरखी स्त्रीने वनमा एकली मुकीने रात्रे नासी गया. तो जुर्म एवा महान उत्तम राजामां पण एवा उपर जणाव्या मुजब दोष पड्या तो सामान्यनी शी वात करवी. ए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ली स्त्री होय मानवे, एकी नही, वली ना २०४ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग ॥अथ स्त्रीना गुण विषे ॥ उपजाति बंद ॥ सुसीख आले प्रिय चित्त चाले, जे शील पाले गेंद चिंत टाले ॥ दानादि जेणे गृहधर्म होई, ते गेदि नित्ये घर लछि सोई॥१०॥ नावार्थ:- जे स्त्री नली होय ते पोताना नर्तारने रुडी रीतनी सीखामण श्रापे अने तेना मननी ईछा पूर्वक चाले, तथा शुरू सीलनो गुण पाले भने गृहस्थधर्म पालतां घरनी चिंता टाले, अर्थात् कोई जातनुं कुषण लगाडे नही, वली दानादिके करी गृहस्थनो धर्म साचवे, एवी स्त्री ते लक्ष्मी कहीये, अर्थात् एवी जली स्त्री होय ए घरमां लक्ष्मीनो वासो ३ एम जाणवू.१० ॥अथ स्त्रीना दोष विषे ॥ उपजाति बंद ॥ जर्ता दण्यो जे पति मारकायें, नाख्यो नदिमां शुक मालिकायें ॥ सुदर्शन श्रेष्टि सुशील राख्यो, ते आल देई अन्नयाय दाख्यो ॥१२॥ नावार्थः- जे स्त्रीये पोतानो जार हएयो, शुकमालिकाये पोताना पति जितशत्रु राजाने गंगा नदीमां नाख्यो ( ए संबंध पूर्वे श्रावी गयो ने तेथी अहीं पण एमज जाणवो); वली सु. दर्शन शेठे शील गुण राख्यो तेने श्रनयाराणीए कलंक चढाव्यु.११ ॥ सुदर्शन शेग्ने अनयाराणीए कलंक चढाव्या संबंधी प्रबंध ॥ __पाडलीपुर नगरमा सुदर्शन नामे शेठ रहेता हता. ते महा रुपवान हता. ए नगरना राजानी अनयानामा राणी तेने जोश मोह पाम्याथी तेणीए पोतानी मनोवृति तृप्त करवा माटे कुड काविठे करी सुदर्शन शेग्ने पोताने महेले बोलावी मगाव्या. * " गृह चिंत टाले ने बदले बीजी प्रतमां " गृही दोष टाले " एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. घणा हाव नाव सहित तेने अत्नयाराणीए पोतानी साथे नोग जोगववानी प्रार्थना करी. सांकडे श्रावेल होवाश्री पोतानुं सील साचववा माटे सुदर्शन शेठे “ हुं पुरुषातनमां नथी " एम जणाव्यु. तेथी अजयाए शेठने काढी मुक्या. पनी केटलेक दीवसे ए नगरनी बाहार म्होटो मेलो हतो. त्यां जवा सारु सुदर्शन शेठना देवकुमार सरखा उ पुत्र राज्यमलने रस्ते थई जता हता, तेमने अनया राणीए दीग. ते वखत प्रधाननी स्त्री तथा कपीला दासी त्यां हाजर हता. तेमने राणीए आ कोना पुत्र डे ? एम पुरवायी कपीला दासीए जणाव्युं जे “ ए बए पुत्र सुदर्शन शेग्ना डे”. अजयाए कह्यु के, ए तो पुरुषातनमा नथी, तेम उतां एने पुत्र केवा ? कपीला बोली जे, एणे तुजने तरी. पठी कपट कला केलवी श्रनया तथा कपीलाए मली शेग्ने खोटुं कलंक चढाव्यु, जे राणीनी लाज लुटवाने अर्थे सुदर्शन शेष महेलमां श्राव्यो हतो. तेने महा मुश्केलीए काट्यो. एवं राजाने नीमावाथी तेणे कोपायमान थई सुदर्शन शेग्ने शूलीए चढाव्यो. शेठना शीलना प्रनावथी शासना दे. वीए तत्काल श्रावीने शूली मिटावी सोनानुं सिंहासन कयु. सर्व नगरजनोने तथा राजाने ए वातनी खबर थई. पली सुदर्शन शेग्ने हाथी उपर बेसारी म्होटा श्राबर उब सहित वाजते गाजते नगरमां तेमी लाव्या. सुदर्शन शेठना शीलनो महिमा घणो विस्तार पाम्यो. अनया नोंठी पडीगइ. राजाए तेने दूर करी. माटे नूमिने विषे एवं कृत्य करनारी उष्ट स्त्री जाणवी. ११. ॥ वसंततिलका बंद ॥ मायो प्रदेशि सुरिकांति विषयावलीए, राजा यशोधर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग दण्यो नंयनावलीए ॥ःखी कस्यो स्वसुर नूपुर पंमिताए, दोषी त्रिया श्म नणी इण दोषताए ॥ १२॥ नावार्थः-विषयने वश थके सुरीकांता नामे स्त्रीए पोताना पति प्रदेशी राजाने विष देई मार्यो, वली नयनावली ( घना वली) नामे राणीए पण विषय वासनाये करी पोताना जर्तार यशोधर राजाने गले फांसो देई मार्यो; एक नूपुर पंडिता सोनारणे पोतानुं पुश्चरित्र बुपाववा माटे जारने नोलवी ससराने मुःखी कर्यो, ते माटे एवा दोषोए करी स्त्री ने दोषीत कही बे. अर्थात एवा पुष्कृत्यथी स्त्रीउने दोषीत जाणवी. १२ - ॥ यशोधर राजाने मारनार नयनावलीनो प्रबंध ॥ यशोधर राजाने नयनावली नामेराणी हती. ते स्त्री पोताना ज र साथे सुखे विलास जोगवतां उतां राजाना सुणेर बाहिर चरवादारथी दुब्ध थई तेनी साथे विषयसुख जोगवती हती. एम करतां केटलाक दीवस गया पली एकदा नयनावली राजाने निझावश थयेलो जोई चरवादारनी पासे गई. ते वखत एक वणीक पुत्र, के जेने चोरी करवानुं व्यसन पड्यु हतुं ते रात्रे नगरमां चोरी करवा नीकलेलो हतो. परंतु कोई स्थले तेनो लाग फावेलो नही तेथी या नयनावली जे मार्गेथी गई हती ते मार्गे थर ते राजमहेलमां श्रावी राजानी सैय्या तले पेठो. दीवानी ज्योत जगजगी रही हती. राजा निजामा हतो. पठी नयनावली चरवादार साथे विषय सेवीने सैय्याए आवी. ए. टले राजा जागी उध्यो. तेणे स्त्रीने पुब्युं के क्यां गई हती ? स्त्रीए जणाव्युं जे, लघुबाधा टाली आवी. फरी राजा जंघी गयो. स्त्रीए पोताना मनमां विचार कर्यो के, महारां चरित्र राजाए जाण्यां. ए अत्यारे बोल्या नथी पण प्रजाते खरा · + “ नयनावलीए” एने बदले बीजी प्रतमां " घनावलीए” एवो पाग्ने. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित งงง खरी करशे. माटे ते पहेलांज हुं एनो घाट घर्मी नाखुं तो जावट जाय ने मनमानती मोज मराय एवं चिंतवी निद्रावश थयेला पोताना पति (राजा) ने गले फांसो देइ तेना प्राण लीधा. पी सोर बकोर पामी उठी रोवा ककलवा लागी. ते सांजली सर्व चोकीदार त्यां श्राव्या. शुं बे ? एम पुढवाथी तेलीये कह्युंजे, कस्मात् चूंक श्राववाथी राजाजी मर्ण पाम्या. हाय हवे हुं शुं करूं ? वीगेरे घणा विलाप करी बाती कुटी स्त्री चरित्रवडे लोकोने पोतानुं निर्दोषपणुं जणाव्युं. प्रधानादि राजपुरुषो तथा नगरजनोए मली राजाने संस्कार की धो. पेलो जे वीक पुत्र चोर सैय्या तले हतो तेणे स्त्रीनुं अघोर कर्म जोयुं हतुं तेने जयाने लालच देश काढी मुक्यो. माटे स्त्रीनो विश्वास न राखवो. स्त्रीमां एवा अनेक अवगुण होवाथी तेने पुष्ट जावी. ॥ ससरानी लाज पाडी फजेत करनार || ॥ नुपुर पंकिता सोनारणनो प्रबंध || राजगृही नगरीने विषे एक जर्जर सोनार रहेतो हतो. तेणे पोताना एक दीकराने परणाव्यो. तेनी स्त्री घणीज व्यजिचारणी बे. एक वखत रात्रे तेनो नर्त्तार घरमां उध्यो हतो. त्यारे तेीये पोताना जर पुरुषने बोलावी घरनी वामीमां अवल ( घणो रुडो ) पलंग बीबावी तेनी साथे विषयनी वार्त्ता करी. पीते बेह जणां निद्रावंत थयां. या वेला पेलो जर्जर सोनार जागतो हतो. तेणे या असमंजस देखी त्यां श्रावीने हलुयेसेक कल बल करी वहुना पगथकी नेजर काढ | लीधुं. ते गुप्त मुकीने पाटो पोतानी सैय्याये श्रावि सुतो. पढी सातेके सोनारण जागी. पगने विषे जुए तो नेजर न दीव्रं. तेणीए विचार्य जे, एससरानुं काम ! श्रीं बीजं कोइ नथी. एणे कांइक महारुं चरित्र जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 996 सूक्तमुक्तावली कामवर्ग एयुं. तेथी एणेज महारुं नेजर लीधुं जणाय बे ! एना सिवाय बीजानुं ए काम नथीज ! माटे हवे हुं स्त्रीचरित्र करूं तोज महारी थाबरु रहे. एम विचार करी पेला जार पुरुषने कलवकल करी बारी येथे काढी मूकी पोते पतिनी पासे श्रावी सुइ रही. थोडीक वार पढी जर्त्तारने जगामी वाडीमध्ये तेडी गइ. त्यां जारपुरुषने पलंगे बन्ने सुतां नर्त्तार जंघालु हतो तेथी ते तत्काल उंध्यो. एटले स्त्रीच रित्र करी ते बुम पाडती उठी के, हे खामी ! जुर्ज ! जुर्ज ! श्रा तमारो बाप, यहीं आपणा लज्याना स्थानके यावी या महारा माबा पगनुं नेजर लेई नासी गयो. जर्त्तार ऊबकीने याकल वीकल थयो को उठ्यो ने पितानी पधारी पासे जइ तेने कुट्यो. वली कहेवा लाग्यो के, अरे पापीष्ट ! तुं त्यां वेज केम ? मोसाए कयुंके, तुं तो नहोतो. बीजो पुरुष हतो. बोकरो कहे के, हुं हतो. बीजो कोण होय ? या कोलाहल थवाथी पाडोसीओ जागी उल्या. ते त्यां यव्यां अने सर्वे हकीकत सांजली कोसाने उपको देवा लाग्यां सौए तेने घेडेलामां गएयो. कोसो मनमा विचारवा लाग्यो जे, महारी खरी बात बतां बधाए महारो दोष काट्यो. या ते शुं कद्देवाय ? ए चिंताये करीने डोसानी निद्रा गई. जूख पण गया जेवी थइ. पी प्रजाते जीने स्त्रीए पोतानां पीहरीयांने तेडाव्यां. दात पण कर्यु नहीं. पीहरीयां श्राव्यां एटले गदगद रोती थकी तेमने रात्रिनी बात कही. ते सर्वे डोसाने वढवा लाग्यां जे अमारी पुत्रीने तुं कलंक केम आपे बे ? पढी ते स्त्री कहे के हुं तो सौना देखतां धीरज ( धीज ) करीश लोको कहे जे, तुं शी धीरज करीश ? स्त्री बोली जे, आपणा नगरनी वामीमध्ये साचवाइ जवानीनी मूर्त्ति बे, ते साच जूग्नी परिक्षा तत्काल देखाडशे. ते सांजली सौ लोके ठीक ! बहु सारुं ! एम कही ने जणाव्युं > Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. བབུལ जे, जो साची हशे तो वाडीमध्ये जवानीनी उनी मूर्ति ने तेना पग वच्चे सूंसरी नीकली जशे अने जूठी हशे तो जरा रहेशे. एवो निश्चय कर्यो. हवे स्त्रीए मनमा विचार करी पोताना जीवन प्राण जार पुरुषने कोईक कन्हे कहेवराव्यु के, सौ लोक जोवाने अर्थे मले एटले तेनी नीडमां तुं घेहेलो थश्ने मुजने आवी वलगजे. ए. टले देवी पागल हुँ धीरज करीश. श्रावो प्रपंच साधीने ते धी. रज करवाने तैयार थ. घरवालाए तेणीने घणीए नाकही. त्यारे ते कहेवा लागी के, महारे ए कर्या विना बूटको नथी, केमके खोटो पण लोकापवाद हुँ सहन करी शकुं तेम नथी. तमेज विचार करीने जु ! जे पहेलां पण उत्तम स्त्रीने माथे जुगं जुगं आल आव्यां बे त्यारे तेणीए पण लोकापवाद घर करवा माटे धीरज करेला . तेथी महारे पण कर्या विना बुटको नश्री. माटे हुँ तो करीश. पठी सर्व सगां संबंधीने तेडीने ते चौटामां श्रावी. लोकोनी व ते जोवाने जामी गई बे. एटले एनो यार संकेत प्रमाणे घेहेलो थर आवीने तेणी ( स्त्री) ने गले वलगी पड्यो. लोकोए तेने बोडावी हांकी काढ्यो. पोतानुं धार्यु थवाथी मनमां महा हर्ष पामती ते वाडीमध्ये देवी पासे श्रावी. पगे लागीने सघलां लोकना सांजलतां ते एम कहेवा ला. गीजे, हे माता ! आ महारे ससरे महारा उपर जुलु बाल चढाव्युं चे; पण ते लोको अ॒ जाणे जे खरूं के खोटुं ? तेनी धीरज ( खात्री ) करवा सारू हुं आवी बु. ते माटे जेवं हशे तेवू तहारा मों पागल कहुं बुं. जे मार्गे श्रावतां एक घेहेलो अने परण्यो; ए बे विना मुजने कोई अड्यो होय तो हे माताजी मने दाबज्यो,” एवं सांजली देवी तो विचारमां पडी. एटले ते स्त्री मातानी मूर्त्तिना पग वच्चे थश्ने नीकली गई. लोकोए ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० सूक्तमुक्तावली कामवर्ग णीने साची साची कही. मोसो तो माननंग थयो. घेर श्राव्यो. पण तेनी जंघ गई. थोडेक दीवसे श्रेणिक राजाये सांजदयु के, माननंग थयेलो जर्जर सोनी रात्र दहामो जागृतनो जागृत रहे बे. बीलकुल ऊंघतोज नथी. तेश्री तेने तेमावीने राजाए भंडार उपर चोकी करवा सारू राख्यो. ते महेले महेले नंमारनीचोकी करे . एकदा समये एक महेलमा राणीनुं श्चरित्र तेना देखवामां श्राव्यु. डोसो विचारवा लाग्यो जे, " सर्वनुं नरण पोषण अने संजाल करनार महा प्रतापी राजाज जेनो पति बे. तेनीज राणी ज्यारे महावत साये लोग जोगवे त्यारे सोनीनी जे स्त्री ते तो शा लेखामां ? एटले ते कोण मात्र? ते कोण गणतिमां? अर्थात् सोनीनी स्त्री परपुरुष नोगवे तेमां नवाई जेवं मने तो राजानी राणीनुं करतव्य जोई कांज लागतुंनथी." एम विचार करता करतां ते वात विसारे पडी, एटले ते डोसाने महीने जंघ श्रावी गई.ते केवी श्रावी के, जेम मुनीराज मोक्षपद साधवाने काजे पांच निखाने तजे तेम ए सोनी मोसे पोतानी वहुनुं अकार्य देखी निझा परिहरी हती, तेज कार्य पालु राजाना आवासमध्ये देखीने ते डोसाने जंघ श्रावी. ते जाणे एणे राणीने माटे उ महीनानो अनिग्रह न धार्यो होय ! ते अनिग्रह पूरो थयो जाणी आहट दोहट गंमीने ते निचिंतपणे सुतो. अर्थात् उ महीनानी सामटी जंघ करतो होयनी ! एम लसलसाट घोरवा लाग्यो. पनी मोमी रात्रिये नगरचर्चा जोतो जातो राजा मोसानी पासे श्राव्यो, तो तेने जंघतो दीगे. राजा पाने गयो. बीजे दीवसे राजाए प्रधानने कडं जे,-सोनी डोसो बीलकुल ऊंघतो नथी एवं तमे कहेता हता पण रात्रे हुँ तेनी पासे गयो त्यारे ते जंघतो हतो; ते हजुसुधी जु उठ्यो नथी. तेनुं कारण शुं ? पढी राजा तथा प्रधाने मोसो जंघतो हतो त्यां श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. २०१ वीने तेने जगामवा मांड्यो छाने कयुं के, हे डोसा ! तुं आज त्या सुधी दोढ पोहोर दीवस चढ्यो तो पण उठतो केम नथी ? तोहे पण ते जाग्यो नही. पढी तेने घणो घणो धूणाव्यो ( ढंढोल्यो ) त्यारे ते जाग्यो. तेने पुब्धुं जे आज श्रम केम थावडी घमां घेराई गयो ? डोसो बोल्यो जे-तमने ते शुं कहुं ? कांई कहेवा जेवुं नथी ! पठी वारंवार बलात्कारे करी पुढवाथी मोसाए जणाव्युंजे, " हे राजाजी ! आज रात्रिने समये तमारो हाथी गोख तले श्राव्यो, राणीने सुंढे करीने लीधी, त्यां तेनी साथे महावते जोग जोगव्यो, पाठी वली हाथीये सुंढवडे मामीने गोखमां मुकी. " एवं कारण देखीने में मनमां विचार्य जे, राजार्जुना घरमा आावा घोटाला बे, तो हुं सोनी ते शा हीसावमा ? ए धारणा धारतां धारतां मने आज केटलेक दीवसे फीकर ( सोच ) मटवाथी निर्चितपणे उंघ घ्यावी; तेणे करीने हे राजाजी ! करारे करीने उंघ काढी. ते वात सांजलीने राजाए ते राणी, महावत ने हाथी, ए त्रणने वैजार गिरि पर्वत उपर चढावीने ढोली पारुवानो सेवकोने आदेश (हुकम ) थाप्यो. ते सांजलीने नगरना महाजन लोकोए राजा पासे वी विनती करी के, महाराज ! एमां हाथीनो शो वांक ? ते तो तमे तमारा दिलयकी विचारी जुर्छ ? ए तो तिर्यच बे. एने आपले जेम सिखवीये तेम ते सिखे. माटे एनो वांक नथी. राजाए महाजननी वात मन उपर लेइने हाश्रीनो गुन्हो माफ कर्यो. हाथीने पर्वत उपरथी देगे उतारवानुं क. ते वखते महावते राजाने कर्तुं जे अमे बेहुने अजयदान आपो तो हाथीने देगे उतारुं. राजा त्रणेने अजयदान थाप्यं. पर्वत पर त्रणे उतयां हाथीने पाठो आलान बालान स्थानके बांध्यो. महावत तथा राणीने काढी मुक्यां (देशपारकर्यां). ते " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्न सूक्तमुक्तावली कामवर्ग त्यांथी चाली नीकल्यां. रात्रि पमतां एक देहेरं श्राव्युं तेमां ते सुतां. महावत जंघी गयो. तेवामां त्यां चोर श्राव्या. ते चोरना नायकने देरामां तापणी करतां धुंकतां थकां स्त्रीए दीगे. तेना रुप उपर मोही थकी ते तेने कहेवा लागी के, हुं तो तमारी साथे श्रावीश. पली महावत शा कामनो ? एम विचारी राणीए चोर पासे तेने हणाव्यो. ते महावत मरीने व्यंतरो थयो. स्त्रीने शृंगार सजेली जोश् चोर मनमां विचारवा लाग्यो जे, या स्त्रीए पागल रहीने पुरुष प्रत्ये हणाव्यो. ते कोण जाणे एनो जर्त्तार हशे अथवा को जार पुरुष हशे ? बेमांथी गमे ते हो. पण ए एनी थर नही, ने मुजश्री लुब्ध थर, तो ए महारो शो उघाड करशे ? ए स्त्रीथी आपण काई नफो न पामीये ! शामाटे जे एनी वले ते आपणी पण एक वखत एज वले समजवी. श्रावं धारीने चोरे स्त्री प्रत्ये कडं जे, श्रा थापणा रस्ता आगल नदी आवे ने तेमां घणुं पाणी ने माटे जे कांश तहारी पासे होय ते मने श्राप, के ते हुं पेले पार मुकी श्रावीने तने तेमी जश. ( मनने विषे एम कहे जे लेश्ने हुं हीडतो थश्श. तहारुं महारे कांई काम नथी.) पड़ी ते स्त्रीए वस्त्राजरण प्रमुख जे तेनी पासे हतुं ते बधुं चोरने स्वाधीन कर्यु. एटले ते लेश्ने चोर चाल्यो गयो. स्त्री तेनी वाट जोतीने जोती रही. एवामां महावत के जे व्यंतरो श्रयो ने तेणे एक सीयाल अने तेना मुख पागल एक मल विकुयों. जद माटे मल उपर सीयाल ताके जे. एटलामा तो आकाशमांथी एक गीध पंखी श्रावीने ऊपट मारी मबने ले गयो. सीयाल त्यां जोताने जोतो रह्यो. एटले पेली स्त्री (राणी) ए हसीने कयु के, अरे चूंमा ! सीयाल, तुं तो लूट्यो तो. ते सांजली राणी प्रत्ये उत्तर वालतां सीयाले कयुं के, हुं तो एकधी चुक्यो, पण तुं तो त्रणथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. शन्३ चूकी, ते तो विचार ! जंबुकना मुखथी एवं वचन सांजली राणी बोली के, तुं तिर्यंचपणे ए केम जाणे ? पढी सीयाले राणी प्रत्ये सर्व संबंध मांडीने कह्यो. तेथी बोध पामीने राणीये विषयवासना तजी दीधी. तेणेकरी पठी ते सुखणी थश्. तेम बीजी स्त्रीये पण विषयने गंवो. ए नेपूर पंमितानो ह. ष्टांत कह्यो. जुर्म नारीनां एवां एवां चरित्र . १५ ॥ अथ सुलक्षणी स्त्री विषे ॥ शार्दूलविक्रीमित बंद ॥ ॥ रुडी रुपवती सुशील सुगुणी, लावण्य अंगे लसे ॥ ॥ लजालु प्रियवादिनी प्रियतणे, चित्ते सदा जे वसे॥ ॥लीला यौवनं जलसे नरवसी, जाणे नलोके वसी ॥ ॥ एवी पुण्यतणे पसाय लहिये, रामा रमा सारसी॥१३॥ नावार्थः- रुडी एटले सारी रुपवंत, जला शीलगुणे करी सहित, सद्गुणी, लावण्य गुणेकरी जेनुं अंग शोजी रह्यं ने एवी, लज्यावंत, मीठाबोली, जर्त्तारना चित्त केडे चालनारी, श्रर्थात् पोताना पतिनी अनुजाइ ( मरजी ) मुजब वर्तनारी, अने हमेशां जरिना मनमां वास करे एवी, वली लीलाए करी उबसायमान थता यौवनवाली, जाणे देवलोकमां वसनारी नवंशी देवांगनाज होयनी शुं ! एवी लक्ष्मी सरखी स्त्री पुन्यने जोगे करी पामीये. एवा गुणवाली होय तेने सुलहणी स्त्री जाणवी. १३ ॥ अथ उत्तम सुलक्षणी स्त्रीनां थोडां नाम ॥ उपजाति बंद ॥ सीता सुनना नलराय राणी, जे सौपदी शीलवती वखाणी ॥ जे एहवी सीलगुणे संराणी, सुलक्षणा ते जगमांदी जाण ॥१४॥ " यौवन" ने बदले बीजी प्रतमां " लावण्य" शब्द बे. * “ सराणी" ने बदले " समाणी" शब्द . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग . नावार्थः- रामचंदनी स्त्री सीता, के जेने दस मस्तकवाला रावणे अपहरीने लंकामां ले जश् मास राखी पण सीयल खड्यु नही अने खेरना अंगारा नरेली खाश्मां पडतां तुरत ते तेनासीलना प्रजावधी पाणी थ गयु, लोकापवाद टाल्यो, ए महासती सीता; सुजना सती के जेणे काचे तांतणे चालणी बांधीने कुथामांथी जल काढीने चंपानगरीनी पोलो ( दरवाजा) उघामी पोतानुं सतीपणुं सिक करी आप्यु; नलराजानी स्त्री दमयंती, के जेने अटवीमा एकली मुकी पति चाट्यो गयो, घj कुःख पड्यु, कष्टमां आवी पड्या बतां पण सीयलथी न चली अर्थात् पोतानुं सीयल साचव्यु; वली पांमवनी स्त्री प्रौपदी, के जेनां चीर नरसनामां पूर्योधने खेंचाव्यां, ते तेना सीयलना प्र. जाव थकी पूराणां; वली शीलवतीए पण पोतानुं शील राख्युं. एवी जे जे स्त्री शीलगुणे करी वखणाएली ने तेने(तेना जेवीने) जगत्मां सुलदली एटले उत्तम जला गुण लक्षणवाली जाणवी. १४ ॥अथ खेरना धगधगता अंगारा नरेली खाइ ॥ ॥सीताना सीलगुणे पाणी थयानो प्रबंध ॥ . .. सीतार्नु हरण करीने रावण तेने लंकामां लेई गयो. त्यां तेना मकानमा ते उ मास सुधी रह्यां. तेना पति रामचंद्रजी रावण साथे युद्ध करी तेने मारी सीताने पोताने घेर लाव्या. ते अंतेउरमां रहे . त्यां तेमने बीजी सोक्ये पुब्युं जे, हे बहेन ! ते रावणर्नु रूप केर्बु हतुं ? सीताए जणाव्युं जे, में तेना सामु चुंए जोडे नथी, तो हुँ तेना रूपनी वात शी जाणुं ? हुँ तो महारा अने एना पग सामुं जोई रहेती हती. एवं वचन सांजलीने सोक्ये पाटलो लावी ते उपर जीकालो (ढेखालानो जीणो चालेलो लूको) पाथरी तेनी आगल मुक्यो. ते उपर सीताए रावणना पग श्रालेख्या. ते पाटलो एमनो एम हाथो हाथ सोक्ये आघो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. जय लेई तेना उपर फूल मुकीने रामचंद्रजीने देखाड्यो; अने कह्यु के, जुर्ज-तमे तो कहोडोने ! जे महारी सीता जेवी कोईये गुणवंती नथी. पण एतो नित्ये श्रावी रीते रावणनां पगलां श्रालेखी आलेखीने पूजे जे ! ते सांजली तथा रावणनां पगलां जोईने रामचंदजीने शंका उपनी. वली एकदा रामचंदजी पोते रात्रे नष्टचर्याये नगरमां नीकल्या हता. बारे बारे (घेरे घेर) जोता जाय अने त्यां जो कांई वात थती होय तोते सांजलता जायजे. ते फरता फरता घांचीना महोदामां आव्या. एवामा कोई एक घांचण कामने अर्थे बाहार गई हती, तेने घणी वेला थश् गया बतां ते घेर नहीं श्राव्याथी तेनो धणी घांची घर जीमीने बेगे हतो. त्यारपती घांचण श्रावी. तेणीए पोताना खामीने घांटो पाडी कर्वा जे, बार उघाडो. बारणां केम दीधा ? घांचीए कह्यु जे, “ तुं क्यां गई हती? तने आवडी ( आटली बधी) वार केम थर ? ते मने कहे. तुं तहारा मनमां एम जापती हशे जे न र मने शुं करनार ? पण ते हुँ नहीं ! ते तो रामचंजी एम करे. हुं कांई तेनी पेठे मूर्ख नथी, जे तुजने संग्रहुं. एतो मास लगी जे सीता रावणने घेर रही तेने देखी पेखीने एज रामचंद्रजी संग्रहे ! हमणां बाहार पमी रहे ! वाहाणुं वासे एटले तेनी तजवीज करीने पड़ी हुँ तने घरमां पेसवा देश.” घांचीनां श्रा सघलां वचनो रामचंद्रजीए सांनटयां, अने घेर श्राव्या. पनी सीता, सतीत्व जोवा सारू अने लोकापवाद पूर करवा माटे रामचंअजीए त्रणसें गज लांवी पोहोली खाई खोदावीने तेमां खेरना धगधगता अंगारा जरावी तेमध्ये सीताने खुखे पगे चाली जवाने कयु. श्रा धीरज करवा माटे सीताजी पोताना लव अने अंकुश नामना बे पुत्रने साथे लेई खाई पासे आव्या. लो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श६ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग कोनी म्होटी मेदनी ( टोलांटोला ) चारे बाजु जोवासारू मली डे. आकाशने विषे देवता पण पोतपोताना विमानमां बेसी जोवा आव्या . ते वखत सीताजी मुख थकी बोल्यां जे-॥ यतः ॥ " मनसी वचसी काए जागरे स्वप्न मार्गे, जदी मम पतीनावो राघवादन्यपुंसी ॥ तदपी दहसरिरं मामकं पावकत्वं, सुकृत विकृत नाजां तुंही लोकेत्र सादी ॥१॥ अर्थः-मने, वचने अने कायाए करी जांगतां अथवा ऊंघतां स्वप्नने विषे पण रामचंद्रजी विना जो में अन्य पुरूषने चिंतव्यो होय तो, हे आग देवता! तुं मुजने बालीने जस्म करजे. एटले राख क रजे." एबुं कहीने सीताजी खाईमां पेगं एटले तत्काल ( तेज व खते, तेना सीलना प्रनावे करी अनिटलीने पाणीना प्रवाह थया. तेमां नाहीने नीतरते चीरे सीताजी नीकल्या. लोके अने देव. ताए जय जय शब्द करीने वधाव्यां. फूलनी वृष्टी थ. आ प्र. माणे लोकापवाद घर करीने सीताजी वैराग्यवंत थया थकां चारित्र लेवा उत्सुक थयां. रामचंद्रजीए घरमा रहेवामाटे घ. गुंए कडं. पण न रह्यां पड़ी रामचंद्रजीने बन्ने पुत्र जलावी (सोंपी नलामण करीने) सीताजीए जयनूषण मुनीपासे जई चारित्र लीधुं. सुप्रजा साध्वीना संगाडामा रह्यां. समाधीपणे संयम श्राराधीने ते बारमे देवलोके बावीस सागरोपमने आउखे इंजपणे उपन्यां. त्यांथी चवी महाविदेह देत्रे मनुष्यपणुं पामीने चारित्र पाली मोक्षपद पामशे. एवी उत्तम सुलदाणी स्त्री पुन्ये पामीये. १५ ॥ अथ (संयोगीनी यथा ) संयोग विषे ॥ मालिनी बंद ॥ प्रियसखि प्रिययोगे नल्लसे नेत्र रंगे, दसित मुख शशीज्युं सर्व रोमांच अंगे ॥ कुच इक मुऊ वैरी नम्रता जे न दाखे, प्रिय मिलण समे जे अंतरो तेह राखे ॥२५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाषान्तर सहित. नावार्थः- जे स्त्रीनां नेत्र जरिने देखी आनंदे सहित उबसायमान थाय अने जेनुं चंजना जेवं हसतुं मुख होय अने जेनां अंगने विषे सर्व रोमराजी ( रुवाडी ) उनां थयां होय, एवी स्त्री कहे (जाणे) जे जे हे प्रियसखी ! एक कुच महारां वैरीबे, के जे नम्रता बतावता नथी अने जरिने मलवानी व. खते ते अंतरो राखे बे. अर्थात् वचमां श्राडा आवे . ( अंतरो देखाडे बे.) १५. ॥अथ ( वियोगीनी यथा) वियोग विषे ॥ दिन वरस समाणे रैणि कल्पांत जाणे, दिम कर कदली जे तेद काला प्रमाणे ॥ रसिक कर शशि जे सूरस्यो सोई लागे, प्रिय विरद प्रियाने उख स्यां ते न जागे॥१६॥ नावार्थः- पतिथी विरहणी स्त्रीने दीवस वर्ष बराबर अने रात्रि कल्पांत सरखी जणाय बे, अने हिम कर एटले ताठक करनार जे कदली वन, ते तो काला एटले सलगता जाज्वल्यमान श्रग्नि सर लागे बे; वली श्रानंदने आपनारो चंड ते सूर्य समान तापकारी लागे . अर्थात् क्रोध उपजावनारो थर पडे बे. माटे पतिथी वियोग पामेली ( विरहणी) स्त्रीने \ \ न थाय ? अर्थात् सर्व पुःखकारी थर पडे. १६ ॥अथ माता विषे ॥ अवजा बंद ॥ जे मातनो बोल कदा न लोपे, ते विश्वमा सूरज जेम उपे॥ज्यां धर्म चर्या बहुधा परीखी, त्यां मातपूजा सहुमां सरीखी ॥१७॥ बीजी प्रतमां " कर" ने बदले “ रज" अने* रशिक कर शशि" ने बदखे " शशिरसिकरसो" एवा शब्द . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शन सूक्तमुक्तावली कामवर्ग - नावार्थ:- जे उत्तम मनुष्य होय ते पोतानी माता (मा.)नुं वचन लगार मात्र कोइ पण दीवस न लोपे एटले उलंघन न करे, (माताना कहेवा प्रमाणे सर्व कार्य करे ) ते मनुष्य जगतने विषे सूर्य समान दीपे एटले सर्व स्थवे उलखाय- तेनी यश कीर्ति गवाय; विशेषे करीने वली ज्यां धर्म चर्या अर्थात् धर्म नाम मनाय ने त्यां सर्व जगोए ( शास्त्रमां) मातानी पूजा एक सरखी वर्णवेली . अर्थात् सर्व दर्शन वालाए मातानी सेवा करवायूँ कहे . १७ जे मात मोहें जिन एम कीधो, गर्ने वसंतां व्रत नेम लीधो॥ जे मात नज्ञ वयणे प्रबुझो, शीला तपते अरदन्न सिद्धो ॥१७॥ . जावार्थः- माताना मोहे करीने गर्नमा रह्या थकां वीर जिनवरे एवो नियम लीधो एटले निश्चय कर्यो जे मावित्र जीवतां होय त्यां सुधी महारे व्रत एटले चारित्र न लेवु, नसा माताना पुत्र अरहन्नके माताना कहेवाथी धखधखती शीला उपर अणसण कयुं अने मोक्ष पाम्यो. १७ ॥ माताना कदेवाथी शीला उपर अणसण ॥ ॥ करनार अरहन्नकनो प्रबंध ॥ . . तगरपुरी नगरीमा दत्त नामे शेठ रहेतो हतो. तेने नमा नामनी नार्या अने अरहन्नक नामनो पुत्र हतो. एकदा गुरु पासे देशना सांजलीने शेठे, पत्नि तथा पुत्र सहित दीक्षा लीधी. चोखुं चारित्र पालवा लाग्या. परंतु दत्त साधुने पुत्र जपर घणो मोह होवाथी तेने बेसामी मुकता हता. आहार पाणी पण पोते पुरू पाडता इता. मूलगो बाहार काढता नहीं. ताढे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. G बांडे रखता हता. एम करतां केटलेक दीवसे दत्त मुनी ( पिता ) - ये काल कर्यो. ने साधवी ( माता ) नो खाएयो आहार तो कल्पे नही. तेथी रहन्नक मुनी दुखीया थया. वोहोरवानी वेला थर त्यारे बीजा साधुए पात्रां करीने रहन्नकने कयुं के वोहोरवा सारू चालो. अरहन्नक तेमनी साथे गया. बीजा साधु आगल चालता हता ते आगल (दूर) नीकली गया. अरहनक पढवाडे रही गया. तेमने तरुको लागवाथी माखपनी परे जंगल्या. एवामां मार्गनेविषे एक म्होटुं मंदिर श्राव्यं तेनी नीचे बांडे यावी उमा रह्या. ते वेलाये एक विरहणी स्त्री गोखमां बेठी हती. तेणी रूपे करी काम कंदर्प जेवा श्रा रहन्नक मुनीने जोई मोहित थ तेथी तेमने तेरुवा सारू दासी मोकली. तेनी साथे ते घरमा गया. एटले स्त्रीए कर्तुं के, आ कंचनवर्णि काया शा सारू बालो हो ? श्रहीं सुखरूप रहो. स्त्रीनुं कहेण मानीने ते त्यां रह्या. पण उग्यो श्राथम्यो न जाणे. अर्थात् घरमां ताडे बांडे रहे. हवे पेला वोहोरवा गयेला जे साधु श्रगल नीकली गया हता ते वोहोरीने उपाश्रये श्राव्या. जया साधवीए तेमने पुत्र्यं जे महारो पुत्र क्यों ? साधुए कह्युं जे, महारे पढवाडे तो हतो, पपीते क्यां गयो तेनी मने खबर न रही. ए सांजली साधवी मातानी मागली चली गई. ए रहन्नक रहन्नक करती आखा नगरमा फरवा लागी. केटलाक लोको अने बालको कौतुक जेवुं देख तेनी पुंठे पडवा लाग्या. एम फरतां फरतां जे मंदिरमां अरदन्नक इतो तेना गोख तले घणा लोकना वृंदे परवरी थकी श्री. रहन्नके माताने दीठी. महारा वियोगे एम घेली थईने फरे वे एम जाणी तरत ते गोखथी उतरी माताने पगे लाग्यो. एटले मानुं मन पालुं ठेकाणे आयुं. माता बोली- हे ३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए सूक्तमुक्तावलीकामवर्ग पुत्र ! तुजने ए वधु वरवी न घटे. ए चारित्र चिंतामणी रत्न समान ले. माटे हे पुत्र! तुजने हुं शुं कहुँ ? ते सांजली पुत्र बोल्यो जे-हे माता ! निरंतर परिसहनी फोज साथे वढवू, ए महाराथी न थाय ( बनी शके एवं नथी), अने तुं कहे तो आ शीबा पमी तेना उपर हुं अणसण करूं. माताए कह्यु जे- हे पुत्र ! ए वातनी महारे हा बे. पली अरहन्नके मातानी आज्ञा मस्तके चढावी एटले प्रमाण करीने धख धखती शीला उपर अणसण कयु. तेना प्रनावथी ते काल करी सुरपदवी पाम्या. माटे एवा पुत्रने पण धन्य अने माताने पण धन्य ! जुङ - पुत्र उपर वहालपण हतुं तेथी तेने पूर्गतिए जतां रोकीने सन्मार्गे चढावी सुखी कर्यो. १७ ॥अथ पिता विषे ॥ जे बाल नावे सुतने रमाडे, विद्या नणावे सरसुं जमाडे ॥ ते तातनो प्रत्युपकार एदी, जे तेहनी नक्ति दिये वही ॥ २॥ जावार्थ:- जे पिता पुत्रने न्हानपणे रमाडे, केडे तेडे, उत्तम सार वस्तु खवरावे, वली विद्यानो अभ्यास करावे; ते तातनो प्रत्युपकार एटले पिताए करेला तेवा उपकारनो बदलो तो हृदयनेविषे तेनी नक्ति करवाने तत्पर थई रहे-पितानी नक्ति करे त्यारे तेनो गुण उसीगल थाय, अपितु न थायः ॥ १५ ॥ ॥ मालिनी बंद ॥ निषध सगर राया जे हरीन चंज्ञ, तिम दशरथ राया जे प्रसन्ना मुनिश॥ मनक जनक जे ते पुत्रने मोठ जाख्या, स्वसुत दित करीने तेदना काज साया. ॥॥ नावार्थः- निषध राजाने, सगर चक्रवर्तिने, हरीनाने, चं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित २०१ इने, तेमज वली दशरथ राजाने, घने प्रसन्नचंद्रने, पुत्र उपर मोह घणो हतो; वली मनकना पिता सिय्यंजव सुरी ब्राह्मणने पण पुत्र उपर घणोज मोह हतो, तेमणे पोताना पुत्रनुं हित चिंतवीने तेमनां काम सुधार्या बे. २० ॥ सगर चक्रवर्त्ति ने तेमना साठ हजार पुत्रनो प्रबंध ॥ सगर चक्रवर्त्तिने साठ हजार पुत्र हता. तेर्जए श्रष्टापद तीना रखोपा माटे खाई खोदवा मांगी. ते वखत तेमने ज्वलन - प्र नागदेवताये कयुं के, महारा जुवनमां रजना अंबार पडे बे, माटे हवे ए कामथी निवर्त्तो. ते सांजलीने ते वेलाये ते उसर्या अर्थात् नागदेवताना कड़ेवाथी तेर्जए ते काम बंध राख्यं पठी केटलेक दीवसे तेर्जनो विचार एवो थयो के, खोदाएली खाई कोइक काले बुराई जवानो संभव बे, माटे ते खाईमां जल जरीये तो अगल कोई तीर्थनी आशातना न करे. एवं धारी खाईमां पाणी वाल्युं. वली कोईक प्रकारना फीट काले ते साठे हजार पुत्रनी मती एक थवाथी तेर्जए दंमरले करी साढीवासव जोजननो गंगानो प्रवाह आयो. तेणे करी केईक मुलक तणावा मांड्या. एवी रीते पाणीना प्रवाहे खाई पूरी - र्थात् पाणीथी ग्लोबल खाई जराणी एटले ते ( पाणीना प्रवाह ) ज्वलनप्रन नागदेवताना भुवन मांहे पडवा लाग्या. तेथी ते देवताए कषायने वश थया थका मनने विषे विचायुं जे, पूर्वे में एमने वार्या हता. तेम बतां वायुं न कर्यु. अर्थात् महारु कहे मन्युं नही ने पोतानुं धार्यु कर्यु. माटे हवे एमने जीवता न मुकुं. एवं धारी कोधातुर थई त्यां घावीने तेणे तेर्जना सामुं जोई दृष्टिविष वीकुर्वि तेने योगे करी साठ हजारना समु · + नीशानवालोनी कथार्ज ग्रंथांतरथी जाणी लेवी. ग्रंथगौरवताना कारणे हीं लखी नथी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग दायने वाली जस्म कर्या. ते सर्वेनो राखनो ढगलो थयो. पड़ी ते राजपुत्रोनी साथे श्रावेला बत्रीस हजार राजा श्रने प्रधाने रात्रिने विषे विचार्यु जे,अहीं तो ा कारण (आवो योग) बन्युं, तो हवे आपणे महाराजा ( सगर चक्रवर्ति ) पासे जईने शो जवाब देश्शुं ? ते एम कहेशे जे अमारा सघला पुत्रने मर्ण पमाड्या अने तमे केम जीवता आव्या ? एवो सोच करता करता ते सर्वे सेना सहित त्यांश्री नीकलीने नगर थकी अलगा श्रावीने उतर्या, ए वेलाये सौधर्म इंश ब्राह्मणने रुपे ए नगरना चौटामा एक बालकनुं रुप वीकुर्विने तेने पोताना खंधोले नाखी रुदन करतो अने मुखथी 'श्रा महारा एकनाएक ( फक्त एकज ने ते ) पुत्रने सर्प मसवाथी ते मर्ण पाम्यो ' एवं कहेतो कहेतो श्राव्यो. लोको तेने क्या ? कई वेलाये अने केवी रीते करड्यो ? एम पुबवा लाग्या. तेड़ने कहे जे अरे नाश्यो ! महारे तो ए म्होटुं पुःख बे, तमे वारंवार शुं भने पुठो बो ? तुम थकी कांई जगरे एवं ले ? लोक कहे जे, तुं रो मां, चक्रवर्ति पासे जा. केम जे तेमनी सत्नामध्ये साठ हजार वैद्य . गमे ते उपाय करशे. पली ते (ब्राह्मण रुपे बनेलो इंज) दरबारनी पासे आवी रोवा लाग्यो. चक्रवर्तिए तेने तेमावीने पुरवाथी तेणे सुखनी वात कही. चक्रवर्तिये वैद्यने बालाव्या, अने का जे, तमे महारो मुसारो खाउँ बो, माटे ए ब्राह्मणना बालकने जीवाडो. वैद्यो हवे शो उपाय करवो? एवा विचारमा पड। गया. केमके मर्ण पामेलो बालक जीवामी शकायज केम ? पठी तर्क बुद्धि वापरी तेए कह्यु के, महाराज ! जेना घरनो कोई न मुढ होय तेना चूलानी राख आवे तो हमणां जीवे. चक्रवर्तिये तेवी राख सारु सघले तपास करावी पण ए जोग तो न मल्यो. एटले त्यांथी उठी तेणे पोतानी मा पासे आवीने राख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साठ हजार शीतल उपचार करपेलो ब्राह्मण य पाना गया भाषान्तर सहित. ए३ मागी. मा कहे जे तमारो बाप मु . चक्रवर्तिये विचायु जे ए वात पण खरी. पडी सनामां श्रावी ब्राह्मणने सिखामण देवा मांमी, जे जावी आगल सर्वे निरुपाय . कोई पण प्रकारे मर्ण पामेलो जीवतो नथी,तो एनो सोच करवाथी शुं वले ? फोकट कर्मबंधन थाय . माटे हवे एनो शोक तजी, रमता रहो. एवो प्रतिबोध पमामी चक्रवर्तिये ब्राह्मणने गनो राख्यो. तेने ब्राह्मणे कडं जे, महाराज ! जेवू कहो बो तेवू पालज्यो. “तमारा साठ हजार पुत्र अष्टापदे बली मुआ.” ते सांजली चक्रवर्ति मुबंगत थया. शीतल उपचार करवाथी सङ थया एटले विलाप करवा लाग्या. तेवारे इंछ ( पेलो ब्राह्मण ) मूलरुपे थई सिखामण देई चक्रवर्तिने बगना राखी देवलोक प्रत्ये पाला गया. पली चक्रवर्त्तिए पोताना पुत्र जनुनो पुत्र जगीरथ घेर हतो तेने सर्व सैन्य सोंप्यू. ए पुत्रमोहनो अधिकार कह्यो. २० : ॥ अथ सिय्यंजव सूरी अने तेमना पुत्र मनकनो प्रबंध ॥ . श्री महावीर स्वामीना पाटे श्री सुधर्मा स्वामी थया. तेमना पाटे श्री जंबुस्खामी अने तेमना पाटे श्री प्रनवा स्वामी थया. तेमणे पोताना पाट योग्य शासनमां कोई न देखवाथी यज्ञ करता सिव्यंजव ब्राह्मणने योग्य जाणी तेमने प्रतीबोधवा माटे बे साधुने मोकली कहेवराव्युं जे- “ अहोकष्टं महोकष्टं तत्वं न ज्ञायते.” साधुनां आवां वचन सांजली सिय्यंजवे पुज्युं जे तमे शुं कहो हो ? साधु बोल्या जे, बीजूं तो अमने कोई कर्वा नथी. पत्री यज्ञस्थंन उपाड्यो. ते तले जोयुं तो श्रीजिनेश्वर नगवाननो बिंब दीठो; तेथी प्रतिबोध पामी घरे स्त्रीने गर्नवती मुकी सिय्यंजवे चारित्र लीधुं. निरतिचारे चारित्र पाले बे. आचार विचार सिख्या. अनुक्रमे आचार्यपद पाम्या. घरे मुकी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शएन सूक्तमुक्तावली कामवर्ग श्रावेली गर्भवती स्त्रीए नव मसवाडे पुत्र जएयो. तेनुं “ मनक " नाम स्थाप्यु. लोको कहेवा लाग्या जे आज ए बालकनो बाप घरे होय तो घणो उबव करे. अनुक्रमे ते पुत्र म्होटो थयो. तेणे पोतानी माने पुबवाथी तेणीए तेना बाप संबंधी सर्व बीना कही. ते सांजलीने मानी श्राज्ञा मागी जे नगरें सिय्यंजव सूरी हता त्यां ते तेमनेज थंडीले जतां पगे लाग्यो. आचार्ये आगम उपयोगे (झाने करी) उलख्यो. पुज्युं जे तुं कोण ? तेणे पोतानी वात जणावी. श्राचार्ये कर्वा जे - तुं कोईने बतावे (कहे ) नही तो कहीये. मनके कडं जे, हुं नही कहूं. श्राचार्य बोल्या जे, तुं पुत्र अने हुँ पिता, बन्ने मल्या. पठी तेने उपाश्रये तेडी गया. श्रागम उपयोगे तेनुं थोडं आयुष्य जाणीने सूरी महाराजे विचायु जे एटला (थोमा) वखतमा एनाथी बधुं जणाय नही. माटे एने उकरवा सारु सवारमा करवा मांडी सांजे दश वैकालिक सूत्र दश अध्ययननुं रची पूरु कयु. मनक ते महीने पूरं नएया. श्राजवू पूरु थवाथी काल कर्यो. श्रा. वके अग्निसंस्कार कर्यो. पडी उपाश्रये श्राव्या. श्लोक कहेतां गुरु सूरी महाराजनीअांखे आंसुश्राव्यां. संघे पुज्यु-हे खामी! तुम सरखा चौद पूर्वधारीने आ मोह शो ? गुरु बोल्या जे-हे महानुनाव ! अमारे पुत्रने संबंधे करी एह साये स्नेह हतो. साधुउए ते सांजल्यु, तेथी कहेवा लाग्या जे- स्वामी, जो अमे पहेला जाण्युं होत तो एमनी पासे मल मात्रा परउवा देवामत नही. गुरु बोल्या जे- ए साधुनुं वैयावच्च विनय न करत तो एनो अर्थ केम सरत! जू एवा महापुरुषने पण पुत्रनो मोह सांजों, तो बीजा बद्मस्थ जीवने सांजरे तेमां तो शुं श्राश्चर्य ! माटे मोहने तजवो. ए मोह तजेज सुख थाय. पितानो प्यार पुत्र उपर केवो होय , ए श्रा प्रबंधथी जाणी लेवं. २० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ॥ पुत्र विषे ॥ स्वागता बंद ॥ माय ताय पद पंकज सेवा, जे करे तस सुपुत्र कदेवा ॥ जेह कीर्त्ति कुललाज वधारे, सूर्य जेम जगिं तेज सधारे ॥ २१ ॥ जावार्थ:- जे पुत्र सुविनित होय ते नित्ये माता पिताना पगने पूजे, छाने कुलनी लाज तथा कीर्त्ति ( सुजस ) वधारे, वली जगतने विषे सूर्यनी परे तप तेज सुधारे एटले दीपावे. एवा होय तेने सुपुत्र कहीये. २१. शल्य ॥ अथ सुपुत्र कोण यया ते विषे ॥ शालीनी बंद ॥ गंगापुत्रे विश्वमां कीर्त्ति रोपी, आज्ञा जेणे तात केरी न लोपी ॥ ते धन्या जे अंजनापुत्र जेवा, जेणे कीधी जानकी नाथ सेवा ॥ २२ ॥ जावार्थ:- गंगाना पुत्र गांगेये ( जीष्म पिताए ) पोताना पितानी थाज्ञा उत्थापि नही, विश्व एटले संसारमां पोतानी कीर्त्ति रोपी - वधारी, वली अंजनाना पुत्र हनुमंत के जेणे जानकी नाथ एटले सीताना स्वामी रामचंद्रजीनी सेवा करी, ज्यारे रावणे सीताने अपदस्यां त्यारे हनुमंते लंकानगरी प्रजाली, रामचंद्रजीना दूत थया. एवा हनुमान कुमार मुक्तिगामी जाणवा. एवा सुविनित पुत्र पूर्ण पुन्याईये पामीये. अने तेवाज सुपुत्रने धन्य बे. ( अंजना ने हनुमंत तथा तेना पितानो विशेष वृत्तांत या पुस्तकना ८० मा पृष्टने विषे सजनता उपर अंजनाना प्रबंधमां श्रावी गयो ने त्यांथी जाणी लेवो.) २२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग ॥ गंगाना सुपुत्र गांगेय कुमारनो प्रबंध ॥ शांतनुराजानी गंगा नामे स्त्रीनो गांगेयकुमार नामनो पुत्र हतो. एक वखत शांतनुराजा वनक्रीमा करवाने गंगानदीने कांठे श्राव्या. त्यां एक माबीनुं वाहाण हतुं तेमां एक वमा माठीनी रत्नवती नामे पुत्री हती. तेने राजाए दीठी तेना रुप उपर ते मोह पाम्यो. पठी घेर श्रववाने पाठो फरी आगल चाले बे तथापि मन त्यां वलगी रह्युं हतुं. जेम तेम पराणे घरे . वीने राजा मंत्री ने बोलावी कयुं जे- गंगा कांठे रहेला वाहावाला माहीनी कन्यानुं मागु करो. मंत्रीए माबी पासे जई तेनी कन्या मागी. माठीए कयुं जे ए कन्या श्रपुं तो खरो ! पण गंगानो पुत्र बलवान बे माटे महारी पुत्री दुखणी थाय. जो ए राजा महारी पुत्रीना पुत्रने राज्य आपवा कबुल याय तो हुं ए कन्या श्रापुं नहिंतर न देजं. ते वात मंत्रीए राजाने कही राजा ते सांजली खेद पाम्यो जे, गंगापुत्रने ए वात केम थाय ? एम मनमां उदासी पाम्यो. गांगेये राजाने उदासी चहेरे बेठेला जोया तेथी पुब्धुं जे, हे पिताजी ! श्रज उद्वेग चित्त केम हो ? पिताए सर्व बात कही. ते सांगली गांगेय बोल्या जे, हे तात! एमां शुं डुक्कर बे. ए राज्य एना पुत्रने थापजो. महारे तो राज्यनो खप नथी. पुत्रे या प्रमाणे कयुं, परंतु पिताने प्रतित न यावी. तेवारे गांगेय कुमारे पिताने प्रतित उपजाववाने सारु. पोताने दाथे लिंग बेयुं. सर्व लोक श्रा बनाव जोई आश्चर्य चकित था. पबी माबीए शांतनु राजाने कन्या दीधी, तेने बे पुत्र था. तेमने राज्य याप्युं. ते जगत्मां जसवाद पाम्या. श्रवा श्राज्ञांकित सुविनित सुपुत्र पूर्ण जाग्योदयेज प्राप्त या बेने एवाज पिताना मननी धारणा परिपूर्ण करनार जगतने विषे खरेखरा सुपुत्र कहेवाय बे. २२ २०६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श नाषान्तर सहित. ॥ तोटक बंद ॥ इम काम विलास नलास तए, रसरीति हृदे अनुनावतए ॥ जिमचंदन अंग विलेप तए, हिय होय सदा सुख संपतए ॥२३॥ नावार्थः- एम कामनो विलास उसासे करी हृदयने विषे रसरीतिए करी अनुनव्यो कदेतां आचर्यो प्राणीने केवो थाय ? तो के- जेम अंगने विषे चंदननुं विलेपन करवाथी ताढक उपजे जे तेम प्राणीने एनाथी (कामविलासथी) सुख संपत्ति थाय. इति श्री सूक्त मुक्तावल्यां काम वर्गस्तृतीयः सह नाषान्तर समाप्तः ॥ PEOPORE Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एन सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग ॥ अथ मोदवर्ग प्रारंनः॥ ॥ उपजाति बंद ॥ ग्राह्याः कियंतः किल मोदवर्गे, कर्मदयासंयम नावनाद्याः॥ विवेकनिर्वेद निज प्रबोधा, इत्येवमेते प्रवर प्रसंगाः ॥१॥ नावार्थः- मोक्षमार्गे शुं ग्राह्य ने ? तो के- पहेली तो दमा, पनी संयम पालवू, वली नावना, विवेक गुण, सद् अने असदनो विवरो करवो, वली विवेक एटले श्रा करवा योग्य काम डे अने आ न करवानुं बे एवं जाणपणुं, निर्वेद एटले संसार उपर खेद उपजे, इत्येव कहेतां ए श्रादि मोदनां कारण जाणवां ॥१॥ ॥अथ मोदार्थ विषे ॥ मालिनी बंद ॥ इह नव सुख देते के प्रवर्ते जलेरा, परनव सुखदेते जे प्रवर्ते अनेरा ॥ अवर अरथ बंडी मुक्ति पंथा अराधे, परम पुरुष सोई जेद मोदार्थ साधे ॥३॥ नावार्थः-श्रा जवना सुखना वांचक जीव तो घणा मे, अने केटलाएक परजवना सुखना वांछक एवा जीव पण घणा बे; परंतु उत्तम कोण ? तो के- सघलाये अर्थ बांडीने मोदना अर्थने साधे, ते उत्तम पुरुष जाणवा. जे आ लोकने वांछता नथी, तेमज परलोकने पण वांडता नथी, ए बेनी ईचा तजीने मोद मार्गे प्रवर्त्या ते उत्तम डाह्या (जंबूस्वामी जेवा ) जाणवा. २ तजिय नरत केरी जेण बे खंड नमी, शिव पथ जिण साध्यो सोलमे सांति सामी॥गजमुनि सुप्रसिधा जेम प्रत्येक बुझा, अवर अर्थ बंडी धन्य ते मोद बुधा ॥३॥ ___ बीजी प्रतमा १ " किल" ने बदले " प्पथ " अने २ " द्याः " ने बदले " यां"शब्द . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. ୨୯୯ जावार्थ:- था जरत क्षेत्र मध्येनी व खं पृथ्वी बोमीने जेणे मोक्षमार्ग साध्यो एवा सोलमा तीर्थंकर श्रीशांतिनाथ जगवान तथा गजसुकमाल छाने प्रत्येक बुद्ध जे जगतने विषे सुप्रसिद्ध अर्थात् घणा जाणीता वे तेर्ज बीजा अर्थ बंडी कढेतां त जीने मोक्षमार्गने विषे लुब्ध थया एटले मोक्ष मार्ग साध्यो, तेउने धन्य जाणवा. ॥ ३ ॥ ॥ अथ कर्म विषे ॥ करम नृपति कोपे डुःख आपे घणेरा, नरय तिरय केरा जन्म जन्मे नेरा ॥ शुभ परिणति होवे जीवने कर्म तेवे, सुरनरपति केरी संपदा सोइ देवे ॥ ४ ॥ जावार्थ:- कर्मरूप राजा कोपे वारे ए जीवने दुःखनी परंपरा प्रत्ये पे, शां दुःख आपे ? तो के- नर्कनां अने तियंचना जवो जवने विषे जूदां जूदां घणां जे दुःख कहेवाय बे, ते ए जीव पामे; अने एज जीव ज्यारे शुन परिणते परणमे एटले जीवनी शुभ परिणति थाय त्यारे ते देवपणानी तथा मनुष्यपणानी ( इंद्र अगर राजार्जुना जेवी ) संपदा प्रत्ये पामे. अर्थात् कर्मरूप राजा ज्यारे रीजे त्यारे सुख संपती आपे बे. ४ करम शशि कलंकी कर्म निक्षू पिनाकी, करम बलि नरेंश प्रार्थना विष्णुराकी ॥ करम वश विधाता इंद्र सूर्यादिहोई, सबल करम सोई कर्म जेवो न कोई ॥ ५ ॥ जावार्थ:- कर्म ते प्रधान तडुप मुख्य बे, कर्मे करी शशि जे चंद्रमा तेमां पण कलंक बे, वली कर्मे करी पिनाकी जीखारीपणुं पाम्यो, छाने कर्मे करी रांकपणे विष्णुए बलिराजानी प्रार्थना करी; ( वली आ चरणनो बीजो एवो जावार्थ पण नीकले " देवे " ने बदले " पावे "" बीजी प्रतमां १ Jain Educationa International शब्द वे. For Personal and Private Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग. बे के- कर्मे करी जीखारीपणुं पामे, कर्मे करी पिनाकी कहेतां देवतापणुं पामे, वली कर्मे करी बलवंतपणुं पामे, नरेजा कहेतां राजापणुंपामे, विष्णुपणुं पामे, अने रांकपणुं पण पामे ) वली कर्मना वश थकी एटले कर्मने योगे करी विधात्रापणुं पामें, अपणुं पामे, सूर्या दिपणुं पामे, ए एटलो बधो कर्मनो सबल जोरो जाणवो, एटले ए कर्म समान को बलवंत नथी. ॥५॥ ॥अथ दमा विषे॥ उरित जर निवारे जे दमा कर्म वारे, सकल सुखं सुधारे पुन्य लक्ष्मी वधारे ॥श्रुत सकल आराधे जे दमा मोद साधे, जिण निज गुण वाधे ते दमा कां न साधे ॥६॥ जावार्थः- पुरित कहेतां मागं जे कर्म तेना समुहने टाले एवी जे दमा ते कर्मने वारे कहेतां रोके, वली ते सकल एटले समस्त - सघलां सुख सुधारी श्रापे अने पुन्यरुप लक्ष्मी वधारे; वली श्रुतज्ञान प्रत्ये आराधे अने मोद मार्गने साधे अने जे निज एटले पोताना गुण अर्थात् श्रात्माना गुण जे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र तेने वधारे, एवी जे दमा तेने हे जाई ! तुं केम साधतो नथी ? अर्थात् तुं दमागुण केम धारण करतो नथी ? ए क्षमागुणवडेज सर्व कार्यनी सिकि थाय , माटे दमा गुण श्रादर. ॥ ६॥ ॥ दमागुण आदरनार विषे ॥ सुगति लहि खिमाए ( दमायां ) खंध सुरीस सीसा, सुगति दृढ प्रदारी कुरगडु मुनीसा ॥ गज मुनिस खिमाए मूक्ति पंथा आराधे, तिम सुगति खिमाए साधु मैतार्य साधे॥७॥ १ बीजी प्रतमां " सुख सुधारे" ने बदले “ तप सधारे " ने. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३०१ जावार्थ:- खंधक सूरीना पांचवें शिष्य दमागुणे करी मुक्ति पद पाम्या, अने खंधक सूरी पोते दमा नही धरवाथी फुःखनी परंपरा पाम्या, वली दृढप्रहारी अने कूरग मुनी पण दमागुणे करी केवलज्ञान पामी मोक्षप्रत्ये पाम्या; तेमज गजसुकमाल अने मेतार्य मुनिवर दमा गुणे करी अंतगड केवली थई सिवसुख पाम्या. ( गजसुकमाल मुनिवरनो प्रबंध था पुस्तकमां प्रथम आवी गयो डे त्यांथी जाणीलेवो अने खंधकसूरी तथा तेमना शिष्य, दृढप्रहारी, कूरगडु अने मेतार्य मुनीना प्रबंध जाणवा योग्य अहीं लख्या में ) ॥ अथ कमागुणे करी मोक्षपद पामनार खंधकसूरिना पांचसे शिष्य अने दमा नही धरवाथी पुःखनी परंपरा पामनार खंधकसूरीनो प्रबंध ॥ . कांतिपुर नगरना जितशत्रु राजाने खंधककुमार नामे पुत्र अने पुरंदरयशा नामे पुत्री हतां. ते कन्या दंमक राजाने परणावी इती. एकदा ते दंडकराजानो नास्तिकवादी पालक नामे प्रधान कोई कार्य प्रसंगे जितशत्रु राजा पासे आव्यो. ते वखते खंधककुमार राज्यसनामां बेग हता. त्यां धर्म चर्चा चालतां नास्तिकवादी पालक प्रधानने खंधक कुमारे हराव्यो. ते समय तो ते मंत्री, कांई न चाट्युं पण तेना मनमां ए हास्या संबंधी सत्य घणो सालतो रह्यो. पठी काम करीने ते पोताने मूलके गयो. त्यारपली कांतिपुर नगरना उद्यानने विषे वीसमा तीर्थंकर श्री मुनीसुव्रत स्वामी समोसर्या. वनपालके जितशत्रु राजाने वधामणी दीधी. तेने घणुं अव्य आपी खुशी को. पड़ी चतुरंगी सेना अने सर्व परिवार साथे खंधककुमारने लेई जितशत्रु राजा जगवानने वांदवा आव्या. वांदीने यथोचित ठेकाणे बेग. प्रजुना मुखनी देशना सांजली खंधककुमार प्रति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग बोध पाम्या. घेर श्रावीने तेमणे मात पितानी आज्ञा मागी पांचसे कुमरो संघाते चारित्र लीधुं. निरतीचारपणे चारित्र पालतां एक वखत खंधक मुनीये प्रन्नु पासे दंमक राजाना देश जणी विहार करवानी आज्ञा मागी. प्रजुए कह्यु जे, त्यां तने मरणांत कष्ट उपजशे. खंधके पुब्यु के, स्वामी ! हुं श्राराधक बुं के विराधक बुं ? उत्तर भापतां नगवाने जणाव्युं जे, तुज टाली (तहारा विना ) सघला साधु आराधक . हवे नवितव्यताये करी खंधक मुनी विहार करतां पांचसो मुनीनो परिवार लेई दमक देशे श्राव्या. ते खबर पालक प्रधानने थई. तेणे ए ( साधु ) वनमां ऊतरशे एवी पोताना मनमा धारणा बांधीने ते मुनीना श्राव्या पहेलांज त्यां केटलांक शस्त्र जमीनमां दटाव्यां. साधु एज वनमां श्रावी उतर्या. राजादिक तेमने वांदवा श्राव्या. देशना सांजली सौ पोताने घेर गया. पली पालके दंमक राजा पासे श्रावीने कडं जे – “ खंधक, मुनीनो वेष धारण करी पांचसे योहाने साथे लेई तमने हणवा अने तमारं राज्य लेवाने श्राव्यो , शस्त्र पण पूरा लाग्यो ." राजाए कह्यु के, शस्त्र क्यां ? पालके जणाव्युं जे, ज्यां ए उ. तर्या ने त्यां ते वनमां . राजा कहे के, जो ते मने देखामो तो हुं मानु. पडी पालक पापीए मुनी ज्यां वनमां बेग हता त्यांधी तेउने खसेडावीने पोते जे शस्त्र नूमीमां घाट्यां हतां ते काढी राजाने देखाड्यां. ते देखीने राजानुं मन फयु तेणे पालक प्रत्ये कडं के हवे जे तहारा मनमां आवे ते कर. राजाए अधिकार आप्यो एटले ए अजव्ये मनुष्य पीलवानो यंत्र मंगाव्यो. पेला पांचसो साधु सुधां खंधकाचार्यने बोलावी तेमां एक एकने पीलवा मांड्या. एम चारसे नवाणु मुनीने घाणीमां पीलतां ते दरेक साधु चार श्राहार पचरकी समाधीपणे क्षमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सहित. ३०३ जावतां अंतगम केवली थई मोक्ष प्रत्ये पाम्या. त्यांसुधी तो खंधकाचार्यने कमा रही. पण पछी फक्त एक न्हानो चेलो अने पोते रह्या त्यारे तेमणे पालकने कयुं जे- हवे तुं मने प्रथम पील, पढी जेम तने फावे तेम करजे. दुष्ट पालके कयुं जे - गलथी ( प्रथम ) ए ढोकराने खने पछी तने पीलीश. एवं कठोर वचन सांजलवाथी खंधकाचार्यने क्षमा न रही. वली पूर्वे पण श्रीमुनिसुव्रत स्वामीए कहेलुं हतुं ते वचन वृथा केम थाय ? नज थाय. तेथी तेमणे ( खंधकाचार्ये ) नीयाएं कयुं जे, “ ए दंमक नृपना देशनो हुं बालनार थज्यो. " पालके लघुमुनीने पील्या, ते पण अंतगड केवली थई मोक्ष पाम्या ने खंधकाचार्यने पील्या ते मरीने अग्निकुमार देवता थया. एवामां एक गीध पंखी मांसनी चान्तिए करी तेमनो लोहीथी खरडाएलो घो त्यांथी लेईने उड्यो. ते अकस्मात् दंडक राजानी राणी अने खंधकाचार्यनी संसारीपणानी बढेन पुरंदरयशाना श्रांगणामां पड्या. उघो देखी राणीए राजाने पुब्धुं जे आवडो उपसर्ग मुनीने कोणे कर्यो ? बरोबर प्रत्युतर नही मलवाथी राणीए नगरम खबर कढावी तेथी मुनीने पालक पापीए पील्यानुं जावामां यावतां ते घणुं दुख पामी ने राजाने कथं जे हवे तहारं मुख महारे जोवुं योग्य नथी. पठी वैरागवंत थई पुरंदरयशाए चारित्र लेई विहार कर्यो खंधकाचार्य जे अग्निकु मार देवता यया हता तेमणे उपयोग दीधो तेश्री द्वेष जाग्यो. तेमणे दमक राजानो बधो देश बाली दीधो. ते हजी सुधी दंडकारण नामे लखाय बे. त्यां किरीयातु घाय बे समेत शिखर जणी जताँ ए अरण्य आवे बे. · कथाथी सार ए ग्रहण करवानो ने के, खंधकाचार्यना चेला पांचसो साधुए क्षमा करी तो अक्षय सुख पाम्या अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग आचार्य पोते क्रमा न करवायी दुःखनी परंपरा पाम्या. माटे मागुण दरवो ए श्रेयस्कर बे. ॥ अथ क्षमा यादवायी मोक्षपद पामनार हारीनो प्रबंध ॥ दृढप्रहारी जाते ब्राह्मणनो एक साते व्यसनमां पूरो पुत्र हतो. तेने मावि घरमांथी काढी मुक्यो त्यारे ते चोरनी पाले गयो. चोरना नायके तेने कामनो जाणी पोतानो पुत्र करी राख्यो. ते केटलोक वखत वित्या पछी पालनो स्वामी थयो. ते तीनो काठ मावा कर्मनो करणहार हतो. तेणे घणा जीव मार्या. एकदा धाम लेई ते कुशस्थलपूर जागवा माटे गयो, नगर लुट्युं दृढप्रहारी एक ब्राह्मणना घरमां पेवो. त्यां ते ब्राह्मणना घरमा घणे मनोरथे खीरनुं हांडलुं चूले चढाव्युं हतुं. ब्राह्मणनां बोकरां तेने वीटाई वत्यां हतां दृढप्रहारी दांडले वलगवा गयो. एटले ब्राह्मणी बोली जे- दांमलां अनडाव्यामां घ्याव शे तो पी मारे काम नही यावे. तेवारे ते पुष्टे ब्राह्मपीने मारी. ए वेला ब्राह्मण न्हातो हतो ते बंडुक लेई धायो. तेने पण मार्यो एवामां तेना घरमां एक गाय हती ते सींगडां मारवा आवी, एटले ते कुष्टे तेने पण मारी. ए गाय गर्जवती होवाने लीधे तेना पेटमाथी बच्चु निकली पड्युं. ते त्रमफरुवा लाग्युं. ते देखीने दृढप्रहारीना मनमां पस्तावो थयो जे, धिःकार बे मुजने ! में ब्राह्मण थके घणी हिंसा करी. वली आ चार हत्या म्होटी करी. तो हवे महारो क्यांई पण बुटकबारो नथी. एवी जावनाए दृढप्रहारीए पंचमुष्टी लोच कर्यो. पी जागोले श्रावी का सग्गे रह्यो. त्यां थई जता श्रावता लोकोएतेने देखी था लूटनारो बे एम तेना उपर द्वेष लावी प स्थरे, ईटाले, धूले, लाकमीए, बंडुकनी मोहरी विगेरेए तेने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३०५ घणो परानव कॉ. एम दोढ मास थयो. पडी लोको थाकीने सामुं जोवा न लाग्या. ते वेला काउसग्ग पारी बीजी नागोले (पोले ) जश्ने काउसग्गे रह्या. त्यां पण ते दिसीना लोकोए एमज दोढ मास परानव को. ते पण थाकीने बेटे रह्या. एटले त्रीजी नागोले जई रह्या. त्यां लोकोए घणा घणा परिसह कर्या; ते सघला दोढ मास सुधी त्यां रहीने सहन कर्या. ते तरफना लोकोए केम मुकी, तेवारे चोथी नागोले गया. त्यां पण दोढ माससुधी एमज परानव खम्यो. एम करतां दमाए करी बठे महीने केवलज्ञान पाम्या. आ कथायी सार ए ग्रहण करवानो ने जे, दृढप्रहारी जेवा चोरी, धामपामु अने लुटारानो धंधो करनार तेमज म्होटी गाय, ब्राह्मण, स्त्री अने बाल गर्न विगेरेनी हत्या करनार एज नवमां दमा गुणे करी आठे कर्म खपावी मोद सुख पाम्या, माटे दमा ए म्होटामां म्होटी गुणकर. जेथी कमा श्रादरवी. ॥ श्रद दमा गुणे सिव सुख मेलवनार कूरगम् साधुनो प्रबंध ॥ कूरगमु साधुने निरंतर गामु जरी कूर ( नात ) जोईतो हतो. बीजा सर्व साधु तेमने कहेता हता के तपनो म्होटो लाल . पण तेमनाथी तप थतो नही. परंतु ते नित्ये तपीया साधुनी नावना जावता इता. एम करतां ज्यारे संवबरीनो श्रागलो दिवस श्राव्यो त्यारे सर्व साधुए तप कर्या इता, त्यां शासन देवीए आवी प्रथम कूरगसाधुने वाद्यां. ते देखीने मास खमणवाला साधुने क्रोध उपन्यो. एमना मनमा एम आव्यु जे-“ अमने मुकी ए पेट नराने केम वांदे ? अमे मास खमणना करवावालाने प्रथम केम न वांद्या ? एवो कषाय लावी ते बोल्या जे - हे श्राविका ! तुममा विवेक कोई नथी, गावी मामा श्राद मित्र ) जारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग जे तपीयाने मुकीने तमे नित्ये पेट जराने वांदो बो. तेवारे शासनदेवी बोल्या जे, एमनामां घणा गुण बे. हे साधुजी ! तमने तपीयाउने एम बोलवु घटमान (योग्य) नथी. वली कां जे "काले एमने केवलज्ञान उपजवानुं बे तेथी घणा घणा जीव, सुर, असुर, किन्नर, विद्याधरादि एमने वांदवा श्रावशे. तेणेकरी घणीज जीमाजीक थशे, माटे मुजथी वांदी नहीं शकाय एम विचारीने एमने में आज वांद्या.” ते सांजलीने साधु बोल्या जे "एमने न केम उपजे ?" त्यारे तमेज कहोने जे कोने उपजशे ? एम कहीने देवी त्यांथी गयां बीजे दिवसे एटले संवबरीने दिवसे वेला इत्यारे कूरगऊ साधु कूरनो गाडु बहोरीने श्राव्या. तेमणे सर्व साधु निमंत्रणा करी. तेवारे जे साधु क्रोधी हतो ते घ्यावीने ते दारमां थुंक्यो. थुथुकार कर्यो. कूरगकुए विचार्य जे श्राज लुखो आहार हतो तेमां घीरूप साधुनुं थुंक पड्युं, ए घणुं सारुं ययुं. एवी शुज जावना जावतां जावतां कूरगमुजीने केवल ज्ञान उपन्युं देवतादिनां वृंद तेमने वांदवा श्राव्या. ते जोई सघला साधुए विचार्य जे, ए एटले गई काले जे स्त्री यावी ती ते सामान्य स्त्री नही, पण कोई देवरुप खरी. पठी सर्व साधु पोते करेला तेमना तिरस्कारनो पश्चात्ताप करता तेमने नम्या. मतां सर्वने केवलज्ञान उपन्युं. " या कथार्थ ए सार ग्रहण करवानो बे के समजावथी वर्तयुं, कोई उपर क्रोध न करवो ने जो तपस्यादि व्रत अनुष्टान पोताथी न बनी शकतुं होय तो ते करनारनी अनुमोदना करवी ने एवी जावना जाववी तथा तपखी ने मुनीना कार्यने मस्तके चढावी तेमनो अवगुण न विचारतां क्षमा यादवी. तेथी जेम कूरगऊ मुनी केवली थई मोक्ष पाम्या तेम सर्व सुखसंपत्ति मले. क्षमा ए म्होटामां म्होटी लाजदायिनी बे. माटे क्षमा यादरवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. ३०० ॥ अथ दमागुण वडे मेतार्य मुनीए मोद मेलव्यानो प्रबंध ॥ पहेला जवने विषे बे गोवालीया गायो चरावतां कामतले बेग हता. एवा अवसरने विषे त्यां थईने साधु जता हता. तेमने तमकाने लीधे घणी धख लागी हती. गोवालीयाए साधुने गायन दुध पाई तृषामटाडी. साधुए धर्मदेशना प्रकाशी. गोवालीयाउँने धर्म रुच्यो, तेथी तेमणे ( बन्ने जणे ) दीक्षा लीधी. ते बे जण चारित्र पालता थका विचरे बे. तेमांथी एक गोवालीया साधुए पुगंगा करीजे, साधुपणामां हाथ पग धोवाय तो सारा.एवं चिंतव्युं. पण नाह्या धोया नही, तेम खमाव्युं पण नही. हवे ते बे गोवालीया साधुए एवो संकेत कर्यो के, आपण बे देवतानी गति पाम्या पली त्यांथी जे पहेलो चवे तेने देवगतिमा रहेला देवताए प्रतिबोध पमाडवो. ते बे साधु श्रायु क्षय थये कालधर्म पामीने देवता थया. त्यां सुख विलास जोगवतां थकां स्थिति पूर्ण थये एक गोवालिया साधुनो जीव के जेणे चारित्रनी उगंबा चिंतवी हती ते चवीने राजगृह नगरने विषे मेहरने घरे मेती चंडालणीनी कुखे पुत्रपणे उपन्यो. तेनी पमोशमा एक व्यवहारीयो रहेतो हतो. तेनी स्त्रीने मृतवंगा दोष होवाथी ते मुश्रां ( मरीगयेलां ) बालकने जणती हती. ते स्त्रीने अने मेती चंडालणीने बहेनपणां हता. एकदा ते बे जणी माहोमांहे ( गर्नसंबंधी) वात करती हती. ते वखते व्यवहारीयानी स्त्रीए नीसासो नाख्यो. ते जोई चंडालणी बोली जे, हे बहेन ! आशुं ? व्यवहारणीए जणाव्यु जे, महारे तो नारनूत , कांई एमज (फोकट ) नारे मरु बुं. ते सांजली चंडालणीए कडं जे, चिंता शी करे ! महारो पुत्र तुं लेजे. तहारो मुटु बालक ढुं राखीश. महारे पुत्र घणा ने. हुं काईने नहीं कहूं. पण नाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग महारु राखवू. या प्रमाणे बन्ने स्त्रीए निश्चय कर्या पछी केटलेक दिवसे ते बन्नेने साथे (एकज दीवसे) प्रसव थयो. चंडालणीए पोताना पुत्रने बानो व्यवहारणीने सोंप्यो, ने तेनो मृत बालक पोते लीधो. एम प्रबन्नपणे ते बन्ने स्त्रीउए पोताना बालक उलटपुलट कर्या. व्यवहारीयाए पुत्रनुं नाम “ मेतार्य " स्थाप्यु. उंडव कर्यो. जणवा योग उम्मर थतां तेने निशाले मुक्यो. ते सारी रीते नण्यो, बार वर्षनी उम्मर थई त्यारे आठ व्यवहारीयाए पोतानी एकेक कन्या मली आठ कन्यानो तेनी साथे विवाह को. त्यां परणाव्यानो उबव मंमाणो दे. नोबतो गडगमी रही .धवल मंगल गवाय जे. सर्व स्थले आनंद वर्ताई रह्यो बे. एवा समयने विषे पूर्वना संकेतीक देवताए विचार्यु जे, ए जो संसारनी मोह जालमां बंधाशे, तो पठी ते एनाथी मुकाशे नही. माटे पाणीग्रहण थया पहेलांज तेनी पासे जईने प्रतिबोधुं तो ठीक ! पली देवताए श्रावीने मेतार्यने का, पण तेणे मान्युं नही. ते वेला देवता मेतार्यना शरीरमां सं. कम्यो. मेती चंडालणी रोवा लागी अने व्यवहारीयाने घेर आवी पुत्र ( मेतार्य ) ने पोताने घेर लेई गई. तेणीए पोताना जर्तारने कडं जे, ए आपणो पुत्र बे, माटे ए व्यवहारीयो श्यानो परणावे ? श्रा वात बधे फेलातां पेला कन्याउँना बाप आठ व्यवहारीया फांखा थया. फरी देवताए ावी मेतायेने कडं जे, कां शुं थयुं ? मेतार्य बोल्यो जे, तमे ए शुंकयु ? देवताए जणाव्युं जे- ते महारूं कहे, केम न मान्युं ? मेतार्ये कडं जे- तमे कहेशो तेम हुं करीश. पण महारी लाज वधारी राजा श्रेणीकनी पुत्री मने परणावी आपो. हुं चारित्र खेश. देवताए ए वातनी हा जणीने तेने एक बोकमोआपीने जणाव्यु जे, एबोकमोरन हगशे तेनो थाल जरी तहारा बाप साथे राजाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. ३०ए जेट मोकलजे. ते वखत राजा तेने कार्यप्रसंग पुढे त्यारे ते एवं कहे जे, तमारी पुत्री महारा पुत्रने परणावो. आ प्रमाणे कही देवता निजस्थानके गयो. मेतार्ये ए सघली वातथी पोताना बापने वाकेफ को. हवे बीजे दीवसे रत्ने जो थाल बेच्ने मे. तार्यनो बाप राजा पासे श्राव्यो. सर्व विनय साचवी ते रत्न जरेलो थाल राजा आगल मुक्यो.राजादिक सर्वे सजनोए ते रत्न जोयां. राजाए पुब्युं जे, तुं हुं कहे ? चंडाल बोल्यो जे-महारा पुत्रने तमारी पुत्री परणावो. ते सांजली राजाए अजयकुमार ( पोताना मुख्य मंत्री अने पुत्र ) सामुं जोयु. अनयकुमारे चंडालने पुब्युं जे, तहारे घेर एवां रत्न क्याथी ? चंडाले जणाव्युं जे, महारे घेर बोकडो लींमीने गमे रत्न बाहीर जाय (हगे ) . अजयकुमारे कडं जे, महाराज ! ए मनुष्यनुं कतव्य नही. ए देव प्रकार जाणवो. जोश्ये तो खरा ! एम विचारी चंमालने कडं के एकवार ए बोकमो अहीं लावो. चंमाले ते लेई श्रावी तेमनी पासे बांध्यो. त्यां ते बोकडे पुगंध विष्टा करी. अजयकुमारे निर्धार कयों के, देवमाया तो खरी ! नहिंतर चंडालथी राजकन्या मगाय नहीं. तेम उतां एणे मागी, तो ए उस्तर काम कहीये. एम विचारी अजयकुमारे कडंसांजल रे चंडाल ! तहारा पुत्रने राजकन्या तो ज आपे, के जो तुं एक रातमां हुं जणाएं एटलां कार्य करे. ते ए केः- एक तो वैनारगिरिए पाज बांधे, के जे उपर छोकरां दोडतां चढे; बीजं ए के- आ राजगृह नगरनो कोट सुवर्णमय करे; त्रीजें ए के - खीर समुज्नुं पाणी आणे; अने गंगा सरस्वतिने जले न्हवरावे; तो पली एने (तहारा पुत्रने ) राजकन्या परणावीये. चंडाल ते सांजलीने गयो. रात्रे अनयकुमारना कहेवा प्रमाणे देवताए सघg कयु. चंडालने न्हवरावी चोको को. बीजे दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० सूक्तमुक्तावली कामवर्ग • वसे राजानी बेटी तथा श्राव व्यवहारीयानी पुत्री मली नवकन्या साधे व सहित मेतार्यने पाणीग्रहण कराव्युं. ते वेला देवता यावीने ऊजो रह्यो ने कयुं - कां दवे शुं कहे वे ? मेतार्य बोल्यो- जाई ! हुं तमने नमीने कहुं हुं के ताजो परण्यो बुं, माटे मने सुख जोगववा द्यो. देवताए बार वर्ष प्राप्यां. ते पण पूरा थयां एटले देवता आव्यो. ते वखते नवे स्त्री ऊठीने पगे लागी तेर्जने बार वर्ष प्यां ते पण सुखविलासमां पूरां थयां. तेवारे वली देवता आव्यो. एटले मेतायें स्त्री पासे श्राज्ञा मागीने श्रीवीर प्रभु पासे जई चारित्र लीधुं. हवे ते मेतार्य मुनीराज जिनकल्पीपणे मास मासखमण करतां एकदा पारणाने दीवसे राजगृह नगरे सोनीने पाडे गोचरीये व्या. त्यां एक सोनीए सोनाना एकसो स्राव जव घडीने मेहेल्या हता. तेने बारणे मेतार्य मुनी ऊना रह्या. एटले सोनी ऊठीने घरमा गयो. ते वखते त्यां यावी चढेलो क्रौंच पंखी ( पेला जवने ) सी कणीया जाणीने गली गयो. त्यांथी ते उड्यो, पण पेटमां जार घणो थवाश्री आगल वधारे जवाएं नहीं; जेथी त्यां नजीकमां काम हतुं तेना उपर बेठो मेतार्य मुनीए श्री सघलो बनाव त्यां ऊनां ऊनां जोयो. हवे घरमाथी सोनी आव्यो. तेणे मुकेला स्थानके जब न दीवा. तेथी साधुने पुब्धुं जे - या स्थानके जव मुक्या हता ते क्यां गया ? तमारा याव्या पछी बीजो तो कोई आव्यो नथी. माटे तमेज लीधा बे. जेथी ते मुजने आप ए जब तुजने नही पचे. राजा श्रेणीकना बे. माटे वारंवार कहुं हुं जे थाप. ते सांजली साधुए विचार्य जे, जो हुं पंखीनुं नाम देश तो ए विचाराने मारशे. माटे ते तो न कहे. एवं धारीने मुनि मौन करी रह्या वली सोनी बोल्यो जे- लाव, लाव, अल्या मुंड ! वारंवार कही ये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. ३१२ बीये तेम बतां तुं केम नथी मानतो ? केम नथी सांजलतो ? आपीदे, लाव. केटली वार कहीये ! जो हवे नहीं श्रापे तो हुँ तने मारीश. एवं सांजलीने वली साधुए विचार्यु जे, थतां थाय ते खरं ! पण पंखी तो उगरशे, एज लान. परना प्राण नगारवा ए महा लानदायी बे. पोतानो जीव परजीवने माटे खुरबान करे ए उत्तमनुं लदण जाणवू. एवं विचारीने वली ते मौनपणे रह्या. पली सोनीने अति क्रोध चढ्यो. तेणे नीलो वाधर मुनीने माथे बांधी तमके उना राख्या. वाधर खेंचाणो. ते वेदनाए करी मुनीनी आंखो नीकली पडी. समता नावे दमा सहित ते सहन करतां मेतार्य मुनी अंतगड केवली थई मोक्ष पद पाम्या. ते वेलाए त्यां एक कठीयारे माथा उपरथी काष्टनो जारो नाख्यो. तेना धबकारे करी कौंच पंखीए जव गल्या हता तेम पाला वम्या. सोनी, पंखीए जव वम्या ते देखी नयन्त्रांत थयो थको विचारमा पड्यो के, ए राजा श्रेणिकनो जमाई अने वली साधु, तेने 'मार' शब्द कहेवा कोश् न पामे; तेम बतां में पुष्ट काम कयु. तो हवे साधुवेषना शरण विना जगरवानो एके श्रारो नथी. एम विचारी तेना घरना सर्वे माणसो साधुनो वेष पहेरीने बेगा. त्यारपडी मेतार्य मुनीने दुःख देई मार्या संबंधीनी वात राजाए जाणी. एटले सोनीने घेर धुंस श्रावी. अर्थात् राजपुरुषो सोनीना घरना संघला माणसोने पकडवा आव्या. तेए त्यां आगल सघला साधु बेठेला दीग. पळी राजा पासे जई सेवके जणाव्यु जे, महाराज ! त्यां तो सर्व साधु जे. मुनी सीवाय बीजं कोई देखातुं नथी. ते सांजली राजा पोते त्यांाव्या. ते सघलाने साधुवेषे जोई बोल्या जे- अरे सोनी ! तमे सबल काम कयु. साधुना शरण विना तमे बुटत नही. ते वेष वांदीने राजा घेर श्राव्यो. ते सोनी मुनीपणुं लेई चारित्र पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग. लीने सुखी थया. ए मेतार्य मुनीनो अधिकार क्षमा उपर कह्यो. उपदेश मालामां कडं ने जेः- शीसा वेढेनसीरंसी, वेढए निगाया। अषिणीमेअजस्स जगवर्ड, नियसोमणसाविपरिकुवि ॥ श्रा कथाथी सार ए ग्रहण करवानो ने के चारित्रनी पुगंबा मनश्री पण चिंतववाने लीधे गोवालीया साधु चंमाल कुले उपन्या. माटे कोशए कदीपण चरित्रनी कोई पण प्रकारनी पुगंबा मात्र चिंतववी नहि. वली मेतार्य मुनीए परजीवनी दया चिंतवीने पोताना प्राण जतांसुधी क्षमा धारण करी तेथी मोक्ष मेलव्यु. माटे सर्व प्राणी जपर दयाजाव लाववो श्रने क्षमा श्रादरवी. के जेथी करीने मेतार्य मुनीनी पेठे सिकनां सुख पण तत्काल मेलववाने जाग्यशाली थई शके दे. ॥७॥ ॥अथ संयम विषे ॥ स्वागता बंद ॥ पूर्व कर्म सवि संयम वारे, जन्म वारिनिधि पार उतारे ॥तेद संयम न केम धरीजे, जेण मुक्ति रमणी वश कीजे ॥७॥ नावार्थः- चारित्र ते शुं कहीये ? चय जे श्राप कर्म तेने रिक्त कहेतां खाली करे ते चारीत्र कहीये. ते चारित्र पूर्वे करेला सर्व मागं कर्मने वारे, एटले मागं कर्मनो नाश करे, अने संसारसमुपथी पार उतारे; एवा संयम एटले चारित्रने केम न श्रादरीये ? अर्थात् संयम आदर. केमके, ते संयमथी तो मुक्तिरूपी नारिने वश करीये एटले वरीये. ॥ ७॥ __ हवे संयम एटले जे चारित्रथी लब्धि उपजी ते अने ते वडे पंखी जनावर चतुष्पद वाघ, सिंह जेवा हिंसक प्राणी पण मांस बगंमी समकित पाम्या तेवा चारित्रवंत बलदेव साधुनो दृष्टांत कहे . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३१३ तुंग शैल बलदेव सुहायो, जेण सिंह मृग बोध बतायो॥ तेम संयम लदीय अरायो, जेण पंचम सुरालय पायो । ए॥ नावार्थः- तुंग नामे पर्वत उपर बलदेव साधु रह्या, तेमणे सिंह अने मृग विगेरेने प्रतिबोधी समकीत पमाड्या; तेए संयम पामीने आराध्यो, जेश्री करीने पांचमा देवलोकना सुखप्रत्ये पाम्या. ॥ ए॥ ॥ चारित्रनी लब्धिए करी सिंहादिक पशुने ___ बोध पमामनार बलदेवमुनीनो प्रबंध ॥ कृष्णे काल कर्या पली बलदेवजीए चारित्र लीधुं. ते अतिरुपाला हता. एक वखत मध्याने नगरमां गोचरीए आवतां कुआने कांठे उन्नेली स्त्रीए तेमने दीग. तेमना रुप पर मोही थकी ते स्त्रीए नान जूलीने घडाने बदले त्यां गेकरो बेठेलो इतो तेना गलामा दोरमानो गालो घाली तेने कुशामां फांसवा मांड्यो. साधु ते जोई बोल्या जे, ए शुं करो डो ? तेवारे स्त्रीने जान श्राव्यु, अने बोकराना कंठमांथी गालो काढी घमो फांस्यो. बलदेवजीए आ बनाव पोताने लीधे बन्यो एम जाणी पोताना मन साथे निश्चय कर्यो जे, “ आज पठी नगरमां न आवq. वनमां श्राहार मले तो लेवो. नहिंतर तपनी वृद्धि थशे." त्यारथी ते वननेविषे सर्वदा रहेवा लाग्या. त्यां तेमने तपशक्ते लब्धि उपनी. तेणे करी तेमनी देशना सांजलतां मृगलां, ससला, सूअर, वाघ, सिंह विगेरे पशुओए मांसनां पञ्चरकाण कर्या. ते पश्वा दिकने देशना देता हता. एम करतां एक दीवस काष्ट छेदक बीजी प्रतमा 'अरायो' ने काणे 'आराधे' अने * “ पायो ' ने ठेकाणे ' साध्यो' शब्द : Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग श्राव्यो. तेणे कामनी अर्ध माली कापी तेवारे नूख्यो थयो. एटले रसोई करवा मांमी. तेनो धूआडो मृगले दीगे. मृगे मुनी आगल श्रावी पुंबडी हलावी. साधु पात्र पडीलेहि मृगनी केडे केडे गया. ते ज्यां सुत्रधार अध कापी डाली आगल रसोई करतो हतो त्यां आव्या. सुत्रधार उठी साधुना सामो आव्यो अने पगे लागी बोल्यो जे - खामी पधारो, हुं पावन थयो, कृतपुण्य थयो. मृगलो पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो जे, हुं मानव अवतार पाम्यो होत तो लोहो लेत. धन्य माणसना अवतारने ! में शुं कयु जे तिर्यंचपणुं पाम्यो बुं. एवी नावनाए वासीत थयो . एवे समये उदंड वायरो वायो. तेथी अधकापेली डाल त्रणे (मुनी, सूत्रधार अने मृगला) ने माथे पडी. त्रणे ते नीचे चंपाणा. ते मरीने पांचमे देवलोके देवता थया. ॥अथ छादश नावना विषे ॥ ॥ तत्र ॥ प्रथम अनित्य नावना विषे ॥ मालिनी बंद ॥ पल पल तनु जीवी वीज जात्कार जेवी, सुजन तरुण मैत्री स्वप्न जेवी गणेवी॥ अहव मगनताए मूढता काई माचे, अथिर अरथ जाणी एणशुं कोण राचे ॥१०॥ जावार्थः- संसार खरुप केQ ? पले पले बाउ घटे बे; श्राउखु केवु ? जाणे वीजलीनो जबकार होयनी शुं ! अर्थात् जेम वीजली अल्प समय मात्र देखवामां आवे तेवू पाउने तेम वजन सगां संबंधीनो मित्रपणो पण तेवो स्वन्न समान जाणवो; पण चेतननी गुढताए मग्नपणे अथीरने श्रीर करी जाणे, एवा कारमा उपर मूर्ख होय ते राचे पण पंडित होय ते न राचे. बीजी प्रतमा १ " पल पल " ने बदले “ धण कण; २ "सुजन" ने बदले "स्वजन" ३ "अहव मगनताए" ने बदले "अहमत ममताएं" एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३१५ अर्थात् एवा वीजलीना जबकार जेवा आयुष्य अने स्वप्नवत् सगां संबंधी अने मित्रो तथा कारमा धनादिक,के जे अथीर डे, तेना उपर मूर्ख होय तेज मग्न थईने राची माची रहे, डाह्या-पंडित होय ते तेमां राचे नहीं. ॥ १० ॥ ॥ अनित्य नावना- संसार स्वरुप उपर जीखारीनो दृष्टांत ॥ __ कोई एक कलबणने घेर दहींनुं नाजन उघाउँ रही गयेनुं हतुं. ते खातां जीव न चाल्यो, तेम नाखी देवानुं बन्यु नहीं. तेवामां एक नीखारी आव्यो. तेने बोलावीने दहींए खप्पर नराव्यु. नीखारीए खुशाल थई गाममांथी टुकमा मागीने नेला कर्या. पली तलावनी पाले जई टुकडा साथे दहीं खाधुं. तेनो मेणो चढवाथी ते त्यांज जंघी गयो. ते नीखारी जंघमां राज्य पाम्यो. ते राज्यमा रंना जेवी स्त्री पग चांपे , घणा अरजदार अरज करे . घणा हाथी, घणा घोमा, पार विनानुं पायदल, एम अनेक राज छिनो धणी थईने बेठो . एवामां आकाशने विषे काटको थयो तेत्री ते नीखारी नमकीने जाग्यो. जुए तो राज्ये नही, लक्ष्मीए नही अने स्त्री आदि कांश पण नही. फक्त फूट्युशुं तीकरुं अने जागीशी लाकडी पडेली दीठी. तेम था संसारनुं स्वरुप पण एवं जाणवू. ॥ १० ॥ धरणि तरु गिरिंदा देखिए नाव जेई, सुर धनुष्य परे ते नंगुरा नाव तेई॥इम हृदय विमासी कारमी देह माया, तजिय भरतराया चित्त योगे लगाया ॥ ११ ॥ जावार्थः- जे जे वस्तु दृष्टीए देखीए, शुं देखीये ? तो केपृथ्वी, काड, अने पर्वत एसर्वना नाव केवा ? तो के-धनुप्यना जेवा कणभंगुर सायतवारमा जागतां वार लागे नही एवा १" माया " ने बदले “ गया "; एवो शब्दो बीजी प्रतमां ने. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग बे; एम हृदयमां विचारीने जे कारमी देहनी माया के तेने तजवी, कोनी परे ? तो के-जरत चक्रवर्त्तिए जेम कायानी माया मुकीने योगथी मन लगाव्युं; तेनी परे कायानी माया तजवी. ११ ॥ अथ अनित्य जावना कायानी माया तजनार जरत चक्रवर्त्तिनो प्रबंध ॥ जरत चक्रवर्त्तिने राज्य जोगवतां चक्ररत्न उपन्युं अने - दिश्वरजीने केवलज्ञान उपन्युं, ए वे बाबतना वधामणीया जरतराय पासे एकी वखते याव्या. एके चक्ररत्तनी ने बीजे केवल ज्ञाननी वधामणी थापी चक्रिए वन्नेने घणुं द्रव्य यापी सन्मान्या पठी विचाखुं जे चक्र तो श्रालोके समर्थ छे, परंतु तातजी रूपनदेवजी तो लोके ने परलोके एम उजय लोके समर्थ बे; माटे प्रथम तातजीनी जक्ति करवी. एम. निर्धार करी मरुदेवा माताने हाथीए बेसारी प्रजुने वांदवा गया. मरुदेवाजीनी खेरुपदेवजी ना विरहे वर्ष दीवस सुधी रोइ रोईने पमल वयां हतां. एमणे देवकुंडुनिना जय जयारव शब्द सांजली पुब्धुं जे, हे जरत ! वो मधुर वाजानो शब्द शानो वागे वे ? जरत बोल्या जे - हे माताजी ! तमे मने उलंजो देतां हतां के तुं राज्यनो लोलपी थयो थको महारा रुपजनी खबर मंगावतो नयी, ते तमारा पुत्रनी या संपदा जुर्ज एवं सांजलतां हर्षोत्कर्षे मरुदेवा मातानां परुल वेराणां ( फाटी गयां ). पी माता प्रगटपणे रत्नमय, सुवर्णमय अने रुपामय, एवा त्रण गढ तेजे फलामल देखीने विस्मय थतां विचार्यु जे, कोना बेटा ? सर्व कारमुं बे. कोई कोईनुं नथी. हुं रोई रोईने अंधमय aई. पण ए पुत्रे संदेशो मात्र कहेवराव्यो नही, तो धिःकार वे संसारने अने ए एक पखा रागने. एवी जावना जावतां हाथी उपर बेठेलां मरुदेवी माता अंतगड केवली यई मुक्ति पद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३१० पाम्यां. जे आवीने तेमनी काया कीर समुअमां न्हवरावी. पनी इंज महाराज जरतेसरजीने तेडी समवसरणमां आव्या. प्रजुनी देशना सांजली गतशोक थई श्रावकनां बार व्रत उचरी जरतराये पोताना नगरमा आवी चक्रनो अहाईमहोत्सव कर्यो. चक्रनी पूजा थया पली ते ( चक्र) पूर्व दिशाए आकाशे चाल्यु. चक्रवर्तिए पूर्व दिसीने दरीये आवी लश्कर सहित मुकाम को. त्यां अहम तप करी मागध तीर्थना देवनुं ध्यान धरी रथे बेसी समुज्ना रथनी नानि सुधी रथ राखी बाण महेव्यु. ते महा नामांकित बाण अमतालीस गाउ सुधी जई सिंहासने लाग्यु. मांहे थी अग्निना कणीया खस्यो. ते बाण देखी देवताने क्रोध उपन्यो. प्रधाने कह्यु जे, महाराज ! कषायनुं काम नही. बाण जोश्यो. जुर्म तमाराधी बलीए वाण नाख्युं हशे. तेणे नाम वांच्यु. जरत चक्रि थया जाण्या. तेनो क्रोध शम्यो.सार नेटणुं लेई श्रावी पगे लाग्यो.देवता कहे-महाराज,एटला दीवस अनाथ हतो, हवे हुँ सनाथ थयो ढुं.चक्रवर्तिए तेने वांसे हाथ मुक्यो. देवता पागे गयो. चक्रिए अहमनुं पारणुं कर्यु. त्यारपठी उत्तर दक्षिण तिमिश्रा गुफानां छार उघाडी तेने पेली दीसे त्रण खंड म्लेबना साधी बार वर्ष सुधी लडाई करी तेने जीती गंगा नदीए श्राव्या. त्यां हजार वर्ष सुधी रही पाग वलतां नव निधान प्रगट थयां. तेनो उंडव कर्यो. ते निधान बार योजन लांबां अने नव योजन पहोलां नूमीमांहे चाले. ते नवे निधान पेटीने श्राकारे चक्रवर्तिना घरमां वारणा पागल होय. पण कोई चक्रवर्तिना निधानमां पेगं नथी, अने पेससे नहीं. पण ते मूळ रुप . ए चक्रवर्त्तिने वीस हजार तो सोनाना, रुपाना, अने रत्नना आगर जाणवा. उ खंडनी साम्राज्य घणी, एवी प्रजुता कोईने नही. अमतालीस हजार पाटण, बहोतेर हजार म्होटांनगर,वीस हजार खेडा, कर्बट,मंगप, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग द्रोण प्रमूख बन्नु क्रोम गाम, चोरासी लाख हाथी, चोरासी लाख घोमा, चोरासी लाख रथ, बन्नु कोड पायदल, साठ हजार पंडित, दश कोडी धजाधारी, पांच लाख दीवीधरा, एक लाख बाणु हजार स्त्री परिवार, बत्रीश हजार देश, वत्रीश हजार मुगटवऊ राजा जेने सेवेबे एव समृद्धि मेलवी संपदा लेई जरत चक्रवर्त्ति अ योध्याए व्या. त्यां बार वर्ष सुधी उठत्र कर्यो. एवी साम्राज्य लक्ष्मी घणा काल सुधी जोगवी. एकदा यारीमा जुवनमां बेठां rai पोतानुं अंग जुए बे. त्यां श्रांगुली अमवी देखी सकल शणगार उतार्या. ते पर पुली माया देखी नित्य जावना जावतां जरत चक्रवर्त्तिने केवल ज्ञान उपन्युं शासन देवताए मुहुपति ( साधु वेष ) आप्यां. राज्य बांडीने दश हजार राजा साथे नीकल्या. भूमीतल पावन करता जव्य जीवोने प्र तिबोधी था पूर्ण थये मुक्ति वधु वर्या ध्वनित्य जावनाये जरत चक्रवर्त्तिए पोतानुं कार्य साध्युं. तेम बीजाए पण ए अनित्य जावना जावी, के जेश्री श्रात्महित अवश्य थाय बे ॥ ११ ॥ ॥ अथ द्वितीय शरण जावना विषे ॥ " परम पुरुष जेवा संदर्या जे कृतांते, व्यवर शरण केनुं लीजिये ते ते || प्रिय सुहृद कुटंबा पास बेठा जिकोई, मरण समय राखे जीवने ते न कोई ॥ १२ ॥ जावार्थ:- परम पुरुष जे उत्तम तीर्थंकर चक्रवर्त्ति जेवाने पण कृतांते संदर्या, तो अंत समये बीजुं एवं कोण बे के तेनुं शरण करीये; अर्थात् शरण करवा लायक तेनुं बीजुं कोई नथी; वली यंत काले माता, पिता, जाई, मित्र, सग संबंधी जे पासे ari होय ते एम एम बेठां रहे छाने ते संसारी जीव हींगतो याय, अर्थात् जीव चाल्यो जाय, एमां कोईनुं कांई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३२ए चाले नही. माटे अंतकाले धर्म विना बीजं कोई शरण नही. १५ सुर गण नर कोडी जे करे जास सेवा, मरण नय न बूटा ते, इंसादि देवा ॥ जगत जन हरंतो एम जाणी अनाथी, टत ग्रदिय विटो जेद संसारमाथी॥१३॥ नावार्थः- देवतानां वृंद अने मानवीनां वृंद (कोडो माणस) पण एवानी (जेनी) सेवा करे, (तेवा)इंसादिक देवता जेवा पण मरण नयथी बूट्या नही; एवो जगतजीवने हणतो फरतो मरणजय जाणी अनाथी मुनि संसार मुकी पंच महाव्रत ग्रहण करीने संसार समुज्थी तर्याः ॥ १३ ॥ ॥ अथ अशरण जावना- धर्मनुं शरण करनार अनाथी मुनीनो प्रबंध ॥ कोसंबी नगरीना राजानो पुत्र जर योवनमां रोगे पीमातो हतो. राजाए घणा वैद्य तेडाव्या. उसड उपाय घणा कर्या, पण कोस्थी करार न थयो. तेनी माता घणा विलाप करे, तेनी स्त्री पण जरिने मुखे फुःखणी थई फरे, तेनी बहेन पासे बेठी थकी कहे के, वीरा तहारी वेदना मने श्रावो. नयणे आंसु चाले, पण कोनुं जोर न चाले. अर्थात् माता, पिता, बहेन, स्त्री श्रादिक सर्वे सगां संबंधीए बनता सघला उपाय कर्या पण कोश प्रकारे तेनो रोग मट्यो नही. सर्व वैये हाथ खंखेर्या. एकदा ते राजपुत्रे विचार्यु जे धर्म विना कोई शरण कामर्नु नथी. माटे धर्मनुं शरण करुं. एवं चिंतवी रात्रे सुतो. एटले तेने शरीरे करार थयो. प्रनाते मंगलीकनां वाजां वाग्यां परिवार सर्वे खुशी बीजी प्रतमां १ " जास” ने बदले “ तास” २ " तेह इंसादि" ने बदले “जे सुरेंजादि " ३ " विबूटो जेह संसारमांश्री" ने बदले “तरंतो जेह संसार साथी” एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग थयो. एहवे नाथीजी ( राजपुत्र ) पंचमुष्टी लोच करी नीकल्या. मातपितादि परिवारे घरमा रहेवाने घणुं कनुं. त्यारे ते . मणे कधुंके, हे मात पितादि ! मुज नाथीने नाथ ते धर्म बे. माटे ते धर्मनुं शरण में श्रादयुं. त्यांथी नीकलीने विहार करतां ते एक जाड नीचे यावीने बेवावे. एवामां श्रेणीक राजा वीर प्रजुने वांदवा जता दता तेमणे मार्गे यवतां काम तले अनाथी मुनीने दीवा. तेथी हाथी उपरथी उतरी त्रण प्रदक्षिणा दे वांदीने तेमनी सन्मुख बेसी पुत्र्यं के, तमे काचीवये केम नीकल्या? नूक्त जोगी थई संसारनो लाहो लेई पठी अंत समये दीक्षा लेज्यो. महारुं वचन मानो. ते सांजली साधु बोल्या - हे मगध देशना धणी ! हुं अनाथ होवाथी साधु थयो बुं. राजा श्रेणीक समज्या जे ए बीचारो बापडो दीसे बे, एने कोई सगो संबंधी जातो नथी. एम जाणी बोल्या जे, हे साधुजी ! हुं तमारो नाथ बुं. साधुए जणाव्युंजे, हे राजा ! तुंज अनाथ बे, तो महारो नाथ केम यश ? राजा कहे - हे मुनी ! हुं अनाथ केम ? हुं मगध देशनो राजा, श्रेणिक महारुं नाम बे, रुद्धिवंत तुं, तेम बतां तमे मने श्रनाथ केम कहो वो ? तमने मृषावादनो दोष लागे बे. साधुए जणाव्युं जे, एवं नाथपएं तो अमारे घरे पण हतुं जुर्ज, सांजलो- "कोसंबी नगरीना राजानो हुं पुत्र, महारे घरे घणा हाथी, घणा घोमा, पायदल, नारी विलास, जला संयोगादि दता. जरयोवनमां मुजने रोग थयो. घणा वैद्ये उपाय कर्या. पण ते न मट्यो. वली कोईये महारी वेदना न सीधी. तेवारे मनमां वैराग्य उपन्यो. याखी रात्री सुतां दुःख गयुं, अने शरीरे सुख थयुं. प्रजाते चारित्रनुं शरण लेई नीकल्यो बुं. " मुनीनां श्रवां वचन सांजली श्रेणीक राजा उनो थई मुनीने नमी, खमावी, स्वामी माफ करज्यो, में तमने पूर्वचन कह्यां ते खमज्यो. एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३२१ कही वली वांद्या. समकीत पाम्यो पढी त्यांथी श्री वीर परमात्मापासेज‍ तेमने वांदी दृढ समकीती थयो. अनाश्री मुनी कर्म खपावी मुक्ते गया. शरण जावनाए नीकलवाथी नाथी मुनी अक्षय सुख पाम्या. माटे अशरण जावना जावी धर्मनुं शरण कर, के जेथी कर्म दय थतां शीव सुख मले बे ॥ १३ ॥ ॥ अथ तृतीय संसार जावना विषे ॥ शार्दुलविक्री मित बंद ॥ ॥ तिर्यंचादि निगोद नार किती, जे योनि योनी रह्यां ॥ ॥ जीवे दुःख अनेक दुर्गतितयां, कर्म प्रजावे लह्यां ॥ || ज्यां संयोग वियोग रोग बहुधा, ज्यां जन्म जन्मे खी ॥ ते संसार प्रसार जाणी एढवो, जे ए तजे सो सुखी ॥ १४॥ जावार्थ:- कर्मना प्रजाव थकी श्र जीवे दुःख परंपरा - नंत काल सुधी जोगव्यां, तिर्यंच थयो, नारकी थयो, निगोदमां गयो, वली जे जे योनीमां गयो त्यां त्यां अनेक प्रकारनां 5गतिना कर्म विलासथी, संयोगथी ने वियोगथी बहुधा कहेतां घणीवार दुःख जोगव्यां, एवं जाणीने जेणे ए संसार स्वरूपनं लखाण करी संसारने असार जाणी तज्यो ने धर्म कर्यो ते सुखी था. अर्थात् योनी योनीने विषे अनंत काल सुधी कर्मना प्रजावे करीघणां दुःख जोगव्यां एवा था संसारने असार जाणी जे प्राणी तजशे अने धर्मनुं शरण करशे ते सुखी थशे. ॥१४॥ इंद्रवजाबंद ) जे दीन ते उत्तम जाति जाए, जे उच्च ते मध्यम जाति थाए ॥ ज्यू मोक्षमेतार्य मुनीं जाए, त्युं मंगु सरी पुरयक्ष थाए ॥ १५ ॥ जावार्थ:- जे हीन जाति होय ते मरीने रह्यां " ने ठेकाणे " सह्यां " बीजी प्रतमां या " शब्दो बे ४१ वेकाणे “ * 66 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only उत्तम जातिमां " + ने "" ज्यां ने Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग जाय, अने जे जंच होय ते मध्यमजाति थाय; जेम हीन जातिमा उत्पन्न श्रयेला मेतार्यमुनीवर मोदे गया, तेम मुंगु आचार्य नगरयदनो अवतार पाम्या, १५ ( मेतार्य मुनीनो प्रबंध प्रथम श्रावी गयो ने त्यांथी जाणी लेवो) ॥अर्थ मंगु आचार्यनो प्रबंध ॥ मंगु नामे आचार्य पांचसे शिष्यना गुरु, ज्ञानना दरीया, शुफ मुनीमार्गना पालणहार, पंच सुमति सुमता, त्रण गुप्तिए गुप्ता, एवा परिवारे परवर्या थका एकदा मथुरा नगरीये श्राव्या. त्यांनो घणो संघ तेमने वांदवा आव्यो. सूरी महाराजे देशना दीधी. ते सकल संघने मन जावी. संघे याग्रह करी गुरुने नगरमां आणी शुरू स्थानमा राख्या. संघे सेवा नक्ति युक्ति सारी करी. सरस आहार वोहोराववा लाग्या. तेथी रस लोलपीपणुं थयुं. एटले रसगारव थयो जे अमारा जेवो सरस थाहार कोईने मलतो नथी. वली पाथरणां, उढणां, करमर, चंदुआ, पाट, पाटलादिनो शकिगारव थयो. अने इंजिजनित सुखनु वेदवू थयुं. ते शाता गारव कहीये. ए त्रणे गारवमां वर्त्ततां विहार पण न करे. त्यां ने त्यां तेज नगरमा रह्या. एम करतां आयु पूर्ण थतां मंगु आचार्य चवीने नगरने खाले यददेवता थया, यदे झाने जोयु. तेणे पूर्वनव जाएयो, जे में संयमयोग विराध्यो तेथी देव पुर्गतिपणुं पाम्यो. तेणे वीचार्यु जे, रखेने ! ते चेलाजैनी गति बिगडे. एवं 'जाणीने तेणे साधुने स्थंमील नूमी जतां देखी पोतानी जीन बाहार काढी साधुने देखाडवा मामी साधुए पुग्युं जे, हे यददेवता! एम केम करो हो ? यदा बोल्यो जे, हुं तमारो मंगू नामे श्राचार्य हतो ते रसेजियनो लालची थयो हतो तेथी देवताउनी गतिमांहे हीन देवगतिये उपज्यो. नगरने खाले अपवित्रमा उपन्यो. माटे तमने हुँ कहुं जे, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३२३ रखे तमे लालचमां पमता. साधुए समजीने त्यांथी विहार को. ॥ यतः ॥ पुरनिछमणेयषो, महरामंगुतहेवसोनीहसो ॥ बोहे ईसुविहीयणं, दसूर बहुतहायएणं ॥१॥ वली कडं जेनीगाऽणघणघराउँ, नकधम्मोमए जिणका ॥ इहिरसमाय गुरु, अतणेननयसोहीअप्पा ॥ १ ॥ १५ ॥ ॥ अथ चतुर्थ एकत्व नावना विषे ॥ पुण्ये अकेलो जिव स्वर्ग जाए, पापे अकेलो जिव नर्क जाए॥ए जीव जा आव करे अकेलो, ए जाणिने ते ममता मदेलो ॥१६॥ नावार्थः- एक जीव पुन्याईनो धणी अहीं सुख जोगवीने देवतापणुं पामे, अने एहीज जीव अहीं पाप प्रकृतिने पण जोगवी मरीने माठी गति पामे; अर्थात् पुन्ये करी जीव एकलो वर्गे जाय डे अने पापे करी एकलो नर्के जाय . एज एटले ए जीव श्राप कर्मनी जे एकसो हावन प्रकृति के तेनो संचय करवे करीने सुख दुःखनो नोक्ता थाय बे. माटे हे नव्य जीवो! धर्म वस्तुनी अवहेलना न करशो,धर्मने श्रादरज्यो. जे ए धर्मश्री सकल कर्मनी उपाधी टालीने मुक्तिए जाय, ज्यां अनंत चतुष्टयी पामे. अनंत चतुष्टय ते शुं ? तो के-अनंतु ज्ञान, अनंतु दर्शन, अनंतु चारित्र अने अनंतु विरज, एवा सुखप्रत्ये पामशो. ए जीव एकलो जाय जे अने एकलो आवे एवं जाणीने एनो मोह मुकी द्यो. एटले उपर जणाव्या प्रमाणे धर्म श्रादरी मुक्ति महोलमां वीराजशो. ॥ १६ ॥ (उपजाति बंद) ए एकलो जीव कुटंब योगे, सुखी खी ते तस विप्रयोगे॥ स्त्री हाथ देखी वलयो अकेलो, नमी प्रबुछो तिणथी वहेलो ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग. जावार्थ:- ए सर्व कुटुंब समां संबंधी मध्यां वे पण चेतन एकलो तेहीज विप्रयोगे सुखी ने दुःखी थाय बे. कोनी परे ? तो के- नमीराजानी परे, ते नमी राजा त्रीजा प्रत्येक बुद्ध या के जे स्त्रीना हाथनी वलयो कहेतां चुमीना निमीत्तथी एकला आपोआप तुरत प्रतिबोध पाम्या ॥ १७ ॥ ॥ अथ एकत्व जावना उपर नमीराजानो प्रबंध ॥ विदेही देशमां सुदर्शन पुरनो मणीरथ नामे राजा हतो. तेनो न्हानो जाई युगवा हतो. तेने मयणरेहा नामे उत्तम शीलगुणे सहित महा स्वरूपवान स्त्री हती. तेना उपर मणीरथ राजा मोह्यो थको दासी साथे उत्तम उत्तम सार सार वस्तु नित्ये मोकलतो हतो. ते वडेराए मोकली जाणीने तेना मान खातर मयणरेहा लेती हती. मणीरथ तेथी खुशी तो हतो. एकदा मणीरथे दासी साथे जागुवचने कडेवराव्यं. ते सांजलीने सती बोली जे, हूं एमना नाईनी स्त्री तुं, राज्यनी खावन तुं, तेम बतां वली एमणे कदेवरायुं जे तुने हुं घणुं मानीश. या वडेराना मुखयी नीकलेलुं घटीत वचन नही सांखी शकाय ते बे. पण खेर ! हवेथ महारे माटे तहारे कांई पण लाववुं नही. वली कहे जे के, सूर्य पूर्व दिशा मुकीने पश्चिमे उगे नही, चंद्रमामां थी अंगारा वर्षे नदी, समुद्र मर्यादा मुके नहीं, तेम सती वरने वांछे नही था हकीकत दासीए मणीरथराजाने कही . तेथी ते दुष्ट विषई मणीरथे पोताना मनमां विचार कर्यो जे, जाने वो एने एया विनाए स्त्री महारे हाथ नहीं खावे. त्यापी केलेक दिवसे मयणरेहा तथा तेनो स्वामी युगबाहु बन्ने जण कारण प्रसंगे वामीमध्ये केलधरमां गयां हृतां. त्यां रात्रे सुई रह्यां. मणीरथ, के जे मयणरेहाने मेलववा माटे युगवाहुने वानुं विचारी रह्यो हतो ते आवो अवसर फरी १ योग्य कहे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३३५ फरी नही मले एम चितवी नगरमाथी अंधारी रात्रे एकाकी नीकली वामीए श्राव्यो, त्यां रहेला चोकीदाराए टोकतां मपीरथे पोतानुं नाम जणाव्युं अने कह्यु के, रात्रिने विषे केली. वनमा दोषी पूष्मननो जय जाणी आव्या बीये. सेवके धार्यु जे एमज हशे. पड़ी मणीरथ केलना वनमां आव्यो, तेने जोई मयणरेहा वमा जेठनी लाज करी अलगी जई उनी रही. एहवे सृष्टे खड्ग काढी नाश्ना कंधरामां नाख्यो. अने सोर पामी उठ्यो जे महारा हाथश्री खड्ड पड्यो ते नाश्ने वाग्यो. सेवक सौ समज्या जे आतो एज गमारनुं काम ! आ विना अवर कोई एनो दूष्मन नथी. पडी सेवके तेने केलना घरमांश्री बोहार काढ्यो. हवे मणीरथने वामीनी बारीनी वाटे जातां थकां पापना जोगथकी कालो नाग डस्यो. तेथी मर्ण पामी ते न गयो. नगरमांते वात फेलाई. एटवे युगबाहुनो पुत्र चंद्रजसा राजकु. मार पोताना पिताने साजा करवा सारु वैद्योने तेमी वाटीकाए आव्यो. घणा उपाय कर्या. पण ते कश्याए काम नाव्या. तेथी हवे एमने धर्मनो उपाय करवो योग्य डे एम विचारी मयणरेहा नारनी पासे श्रावी. तेणीए पोतानुं हैयुं दृढ करी पोतानो पति सांजले तेम तेना कान आगल मुख राखी ते सारी रीते सदहे तेम तेने अरिहंत, सिझ, साधु अने धर्म, ए चार शरण कराव्यां. व्रत पञ्चरकाण कराव्यां. पंचपरमेष्टीनुं ध्यान कराव्यु. अने वली अढार पापस्थानक वोसराव्यां. ते सर्वे युगबाहुए सांजलीने सदह्यां. वली मयणरेहाए कडं जे-हे खामी ! तमे कोई उपर वेष न करशो, शासाटे जे कोई कोईनुं संसारमांहे नथी. तमारूं कोई नथी. तेम तमे पण कोश्ना नश्री. एवं मनने विषे समाधीपणे वर्त्ततां श्रायु पूर्ण थवाथी ते युगबाहु १ उद्देशीने पुण्वाश्री. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग " मरीने पांचमे देवलोके देवतापणे उपन्या हवे ते मयारेहाए विचार्य जे ए जर्तारिनुं महारे माटे मर्ण थयुं; तेम बतां इं पाठी घरमां रहुं तो वली महारा पुत्र चंद्रजसानी पण खोटी वले थाय एवं विचारी मयणरेहा घेर न जतां बारोबार केलधरमाथी गर्जवंता बतां पण एकलां चाली नीकल्यां. साथे पुन्य सखाई बे. ते वनमां चालतां चालतां एक सरोवरनी पाले श्राव्यां. त्यां केलनुं वन बे. ते स्थले पेटमां वेदना थई, घने बालक प्रसव्यो. ते पुत्रने हाये मुद्रीका घालीतेने रत्नकंबले वीटीने मय रेहा सरोवरमां यंग सुश्रुषा करवा गई. त्यांथी तेणीने वनदस्तिए सूंढमां घालीने उठाली. एटले शीलना प्रजावर्थी विद्याधरे अधर विमानमां जीली लीधी. तेपीना रुपने मोहे करी विद्याधर कामनी प्रार्थना करवा लाग्यो. सतीए पुग्यं जे तमे क्यां जार्ज हो ? विद्याधरे जणाव्युं जे, महारो बाप विद्याधर बे, ते नंदीश्वर द्वीपे चारित्र पाले बे, तेमने वांदवा माटे हुं जाउं तुं. ते सांजली सतीए, थाना योगे करी सावता चैत्यनी जात्रा थई शकशे माटे एतो अवश्य करवी योग्य वे एम विचारीने वर्ल। कथं के, एक बार महारा पुत्रने मेलो. विद्याधर बोल्या जे- मिथुलो नगरीनो पद्मरथराजा घो पाथी ते वनमां श्राव्यो हतो. ते तहारा पुत्रने पोताने घेर लेई गयो अने पोतानी स्त्री प्रत्ये तेने सोप्यो बे. ते पोताना पुत्रनी परे तेने पाले बे. एवं सांजली मयणरेहा दर्पवंत थई जे, जलुं, कुशल तो बे. हवे ते विद्याधर बोल्यो जे- महारो कहे मानो. तेवारे सती बोली जे- एक वार आपण नंदीश्वर द्वीपे तो जईये ! पढे तमे कदेशों ते क रीश. तमारी वात जे हशे ते हुं सांजलीश. विद्याधरे मन साथे विचार कयों जे हवे ए स्त्री क्यां जशे ! पछी ते विमान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जापान्तर सहित. ३२७ लेई नंदीश्वर नामे थामो जे द्वीप ने त्यां गयो. त्यांना देशसर मध्येना सर्वे सास्वता विंबने जुहायां पठी देरासरनी बाहार साधु बेठा हता त्यां विद्याधर मुनीने वांदी यथोचित स्थानके ari. साधुए अवधीज्ञान वडे ए खोटा ईरादाथी स्त्रीने लाव्यो बे एम जाणीने एने प्रतिबोध उपजे एवी देशना प्रकाशी. सांजलीने विद्याधर प्रतिबोध पाम्यो पनी मयणरेहाए पोताना पुत्रनो संबंध पुग्यो. साधुए कनुं के, एतहारा पुत्र उपर पद्मरथने पूर्व जवना संबंधे करी मोह उपन्यो तेथी तेने लेई जइने स्त्रीने सोंप्यो. तेी तेने हर्षवंत थईने पुत्रनी पेरे पाले बे. एवा सरने विषे मयारेहानो पति युगबाहु म पामीने पांचमा देवलोकने विषे उत्पन्न थयो हतो तेने त्यांनी देवीए जय जय शब्दे करी वधावीने कह्युं के, तमे एवी शी पुन्याई करी के जेथी देवलोकमां उपन्या. ते सांगलतां युगबाहुदेवे पूर्वजव संजार्यो. तेवारे मयणरेहाने नंदिसर द्वीपे दीगं. तेथी ते देवता त्यां श्राव्यो. प्रथम ते स्त्रीनी पासे जई तेबीने पगे लाग्यो. पठी गुरु महाराजने वांदी उचित स्थानके वेवो. ते विपरीत देखीने विद्याधरे मनमां विचायुं जे था शुं ? देवता तो भूले नही, तेम बतां था मूल्यो केम ? पठी तेणे देवताने पुब्धुं जे श्रम अनुचित केम कर्यु ? प्रथम गुरुने वांदवा घंटे छाने तमे स्त्रीने केम वांयां ? देवताए उत्तरमां जणाव्यं के, म हारे धर्मगुरु ए बे. माटे हुं जाणीने पगे लाग्यो ढुं. धर्मगुरुने तो प्रथम वांदवा योग्य ते पठी देवताए मयणरेहाने कथं जे तमे मुजने जे कहो ते हुं तमने हीत करुं. स्त्रीएकन्धुं जे मुजने पुत्र पासे मुको. पनी ते सती स्त्रीए साधुने नमन वंदन करीने विद्याधरनी शिख मागी त्यारपवी देवताए तेणीने उपामी मिथुला नगरीए लावी मुकी. देवता तेणीनी शिख मार्गी > Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग --- देवलोक प्रत्ये गयो. मयणरेहाए साधवी पासे यावीने चारित्र लीधुं. पंच महाव्रत पाले बे. पद्मरथराजाए पुत्रनुं " नमी कुमार" नाम स्थापन कर्यु. ते नमी कुमार यौवन अवस्था पाम्यो. पद्मरथ राजा पिताए तेने राज्यानिषेक करी गादीए बेसामी सर्व राज्यनधिकारी कर्यो. एकदा ते नमी राजानो पटहाथी थालानथंज थकी बूटीने नागे. ते नासतां नासतां विदेह देशमां सुदर्शन पुरे थाव्यो. त्यां तेने मणीरथ राजानी गादीए मयणरेहानो पुत्र जे चंद्रजसा वेगे हतो तेने दरवारे बांध्यो. ते खबर नमी राजाने थई. एटले त्यां डूत मोकली तेने मुखे पटहस्तिनी हकीकत करावी ते पोताने स्वाधिन करवानुं जगावराव्यं. ते सांजलीने चंद्रजसाए इतने कधुं के क्यां अमे तमारे त्यां वा श्राव्या हता ? माटे वीरजोग्या वसुंधरा, ए न्याय बे. एवं वचन सांजलीने दूत त्यांथी पाठो नमीराजा पासे आव्यो. चंद्रजसा राजाए कहेलां वचन तेथे नमीराजाना मुख यागल कही संजलाव्यां. तेथी क्रोधवंत थई नृकुटी च ढावी नमीराजा पोतानुं विकट सैन्य लेई दर्शनपुरे चढी श्राव्यो. चंद्रजसा तेना सामो आव्यो. बन्ने राजानां दल सामासामी घ्यावीने प्रड्यां. युद्धनो आरंभ थयो. आा वात मयणरेहा साधवीए जाणी तेथी विचार्य जे युद्धमां घणां मनुष्योनो संहार यई जशे माटे जईने प्रतिबोधुं तो संग्राम न थाय. एम धारी त्यां जवा माटे गुरुणीनी आज्ञा मागी. गुरुणीए कनुं जे तमाराथी ते केम नीपजशे ? पठी मयणरेहा साधवीए सर्व वात मांडीने गुरुणीने कही. गुरुणीए जवानी थाज्ञा श्रापी. साधवी प्रथम नमीराजा पासे श्राव्यां नमीराजाए ऊना थईने वांयां, अनेकां जे गुरुणीए उपकार केम कर्यो ? साधवी कहे जे - कोनाथी लढो हो ? नमी कहे- वयरीथी. साधवी · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. ३२‍ बोल्यां जे- वयरी नथी, तमारो जाई . पछी सघली वात मांडीने कवाथी समज्यो. पण मान न मुकाय ! पढी साधवी aaीने नगरमां श्राव्यां. त्यां तेमने सघलांए उलख्यां. पगे लाग्यां. पढी गर्न संबंधी हकीकत पुढतां साधवी बोट्यां जे तमो लडो बो ते. चंद्रजसाए ए वात सांजली एटले दरवाजा ऊधामा मुकाव्या ने पोते तुरत ऊतीने जाईने मलवा चाल्यो. नमी ते वात सांजली तेथी ते पए बुटी चाले यावी जाईने पगे लाग्यो. बन्ने नाई मल्या. सकल वात विचार करी उत्सव सहित नगर प्रवेश कर्यो. नमीराजाने राज्य प्राप्युं. हजार स्त्री परणावी. त्यारपवी नमीराजाने दाघज्वर उपन्यो. वैद्ये बावनाचंदननो उपाय को. हजारे स्त्री बावनाचंदन घसवा लागी. तेर्जुनी चुडीजनो कोलाहल नमीराजाने सुहाय ( खमाय ) नही. तेथे तेणे कीधुं के तमे गुण करो तो पण ते मने वगुणकर्ता थाय बे. पठी सघली स्त्रीउए चुडी उतारी एकेक चुमी पहेरी राखीने चंदन घसवा मांड्यं. त्यारे राजाए कयुं के, चंदन के घसतां नयी ? स्त्री बोली जे- घसीए बीए. राजाए कह्युं के जो घसो बो तो शब्द केम यतो नथी ? स्त्रीर्ड कहे - तमने सुहायो नही माटे एकेक वलय ( चुमी ) राखी बीजी उतारी नाखी बे. श्रा हकीकत सांजली नमीराजा चिंतवा लाग्यो के एकाकीपणामां सार दीसे बे. घणा मले घणी उपाधी बे. एवी एकत्व जावना जावतां सुतां बतां तेमनो रोग गयो. प्रजाते मंगलीकनां वाजां वाग्यां नमीराजाए चारित्र लीधुं वनमां व्या. त्यां ब्राह्मणरूपे इंद्र याव्या. घणुंए पारखं जोयुं. शुद्ध जावना जोई ते सुधर्मदेवलोके गया, पढी नमीराजरुपी चारित्र पाली अनेक जव्य जीवोने उपकार करी ● ४२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग मोदे पधार्या. ए प्रकारे एकत्व नावनाए नमीराजा प्रतिबोध पामी परम पद पाम्या ते संबंध कह्यो. १७ ॥अथ पंचम अन्यत्व नावना विषे ॥ जो आपणो देहज ए न होई, तो अन्य क्युं आपणो मित्त कोई ॥ जे सर्व ते अन्य ईहां नणीजे, केहो तिहां हर्ष विषाद कीजे ॥१७॥ - नावार्थः- पोतानी काया ते पण पोतानी नही, तो अन्य वस्तु आपणी केम थाय ? तेमज कुल कुटुंब आपणो केम गणाय? अने तुं कोईनो नही, तेम तहानं पण कोई नहीं; जे सर्व एटले बधुं अहीं ते बीजुं जुडुंज , तो तेमां वर्ष अने शोक शामाटे करवो जोश्ये. १७ देवादि जे जीवथकी अनेरां, स्यां जुःख कीजे तस नासकेरां ॥ एम जाणीने वाघीणी प्रबोधी, सुकोसले स्वाःयतें सार कीधी॥ १॥ लावार्थः- काया अने जीव ए बन्ने जुदां, अर्थात् काया विगेरे जीवथी जुदां जे तेना नाशथी एटले वियोगे पुःख कमु झुं कामर्नु; एवं जाणीने वाघणने प्रतिबोधीने सुकोसल साधुए खायतपणुं एटले आत्माने हित कयु. १ए. ॥ अथ षष्ट अशुचि नावना विषे ॥ काया महा एद अशुचिताई, जिहां नव धार वदे सदाई॥ कस्तूरि कर्पूर सुज्व्य सोई, ते काय संयोग मलीन होई॥२०॥ बीजी प्रतमां १ " स्वायतें” ने बदले " स्वांगन" अने २ " महा " ने बदले " माया " शब्द के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तर सहित. ३३२ जावार्थ:- ए काया महा अशुचिए जरेली बे, पुरुषने नव द्वार स्त्रीने द्वार बार सदाई एटले हमेशां वह्यां करे बे; ए कायानी संगते गमे तेवी कस्तुरी, उत्तम कपुर, बरास जेवी सार सार वस्तु वावये ते सर्वे मल रुप थाय, एवी ए अशुचिनरी काया बे.२० शूचि देही नर नारि केरी, म राचजे ए मलमूत्र सेरी ॥ ए कारमी देह प्रसार देखी, चतुर्थ चक्रिय प ते वेखी ॥ २१ ॥ जावार्थ:- ए अशुचिए जरेली अपवित्र स्त्री अने पुरुषनी काया बे, वली ए मल मूत्रनी सेरी एटले अशुचीने वसवानो मोहोलो माटे तेथे तुं म राचजे एटले खुशी श्रईश नहीं; जे माह्यो मनुष्य होय ते एने विषे राचेनही. ए कारमी मल मूत्रीनी सेरी जेवी प्रसार काया जाणीने चोथा चक्रवर्ति सनत्कुमारे तेने ऊवेखी अर्थात् ए कायामां कांईये माल दीठो नहीं तेथी तेनो मोह बोमी चक्रि चाली नीकल्या. २१ ॥ कायानी अशुचिताई जाणी तेनो मोह बोमी चारित्र लेनार सनत्कुमार चक्रवर्त्तिनो प्रबंध चोथा चक्रवर्त्ति सनत्कुमारनुं महा मनोहर रूप हतुं. ते पाठला धर्म नामा शेठना जवने विषे शुद्ध संयम धराधी अर्थात् रुमी रीते चारीत्र पाली आयु पूर्ण थये देवतापणे उपन्या हता. त्यांनां अपार सुख जोगवी चवीने चक्रवर्त्तिपणुं पाम्या. एकदा सौधर्मेंद्रे सजानी अंदर बेठा थकां चक्रवर्त्तिनुं रुप ने कांतिनां घणां वखाण कर्या. इंद्रे कयुं जे-या जंबुद्धीपने विषे हा - लना समये सनत्कुमार चक्रिना जेवुं अवर कोईनुं पण रूप नथी. ते वात एक देवताए न सदही पढी वे देवता विचार करीने त्यांची ऊव्या. ते बेदु देवता ब्राह्मणनां रूप करीने चक्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग वर्ति पासे आव्या. ते वखते चक्रवर्ति न्हावा बेग हता. खेले नरी काया हती. पोती पहेयु हतुं. तो पण तेमने अनुतपणे जोई जोईने ते ए माथु धुणाव्यु, अने विचार करवा लाग्या. तेमने जोई चक्रवर्त्तिए पुज्युं जे तमे शुं जुर्म हो ? ब्राह्मणरुपे श्रावेला देवताए कडं जे- अमे महाराजनुं रुप सांजव्युं इतुं तेवू दी. चक्रवर्ति बोल्या जे-हवणां शुं जुन बो! ज्यारे हुं मुगट, हारादि पहेरी बत्र, चामर सहित सिंहासने बेसुं त्यारे तमे महारं रुप जोज्यो. ते सांजलीने ब्राह्मण विचार करवा लाग्या जे- म्होटा पुरुष पोतानुं वखाण न करे, तेम बतां ए करे जे ए विपरीत . पली ते वारु महाराज ! पठी आवीशु, एम कही त्यांथी गया, त्यार पनी स्नान करी आजुषणादि सर्व पहेरीने चक्रवर्ति सिंहासन उपर आवीने बेग. ते वेला वली ब्राह्मण फरीने आव्या, अने चक्रवर्तिने जोई माथु धूणाव्युं. चक्रवर्त्तिए ते जोई ब्राह्मणने पुब्युं जे- पहेला पण तमे माथु धूणाव्युं हतुं अने हवणां पण तमे माथु धूणाव्यु तेनुं शुं कारण? ते तमे अमने जेतुं होय तेवू कहो. ब्राह्मण बोल्या जे-हे महाराज! ते रुप अने आ रुपमां तो घणो तफावत पड्यो. चक्रि कहेते केम ? ब्राह्मणे कडं जे- पहेलां तमारं शरीर अमृतपणे हतुं अने हवणां तो फेर रुप थयु - चकि कहे-ते केम जणाय ? विप्रे कत्यु के-तमे तंबोल खाईने धुंकी जुर्ड, एटले एना उपर माखी बेससे ते तत्काल मर्ण पामशे. जेथी तमने खात्री थशे जे ए वात खरी. अने अमे ब्राह्मण जोसी देवता पण त्यारेज खरा, एम श्रापना समजवामां आवशे. अमे ए वात कही ते चले नही. अर्थात् आधी पाली थाय नही, खोटी पडे नही. वली बोल्या जे, अमो देवता सत्य कहुं बुं. तमे खात्री पूर्वक मानजो के काया बगडी. ते वात सांजलीने चक्रवर्त्तिए तेमज (ब्राह्मणोए कडं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३३३ तेवीरीते ) परीक्षा करी जोई. एटले जेम कहुं हतुं तेमज वात मली. ते मांही एटले पान खाईने धुंकी जोतां ते उपर बेसतां तुरत माखी मुई. एवं कारण देखीने चक्रवर्तिए तत्काल खट खमनी प्रजुता ठकुराई मुकीने दीक्षा लीधी. ते केनी परे ? तो केजेम अही कंचुकी तजी जाय तेम चक्रवर्ति राज्य रुकि तजीने नीकट्या. बत्रीस हजार राजा तथा सुनंदा स्त्री रत्नादिके घणा विलाप कर्या पण चक्रि साधुए सामु सर पण न जोयु. पली के मासे सघला पाला वव्या. ते मुनि महाराजने सातसें वर्ष सुधी म्होटा म्होटा रोग उपन्या. ते वखत देवता तेमनी परिदा करवाने कारणे वैद्य थईने साधु समीपे श्राव्या. तेमने जोई साधुए पुज्युं जे- हे देवाणुपीया ! तमे कोण बो ? ते. मणे कडं जे- महाराज! अमो वैद्य बुं. अने अमे अमारा मन थकी जाणुं हुं जे, तमारा शरीरमा रोग अत्यंत उत्पन्न थयो . ते माटे तमे कहो तो वैयुं करीये. साधु बोल्या जे, कर्मरोग टालवानी सामर्थाई होय तो उपचार करो. देवता बोल्या जे, ते तो सामर्थाई अमारामां नथी, पनी साधुए पोताना चारित्रे करी पोतानी टचली आंगलीए थुक चोपड़ी तेने देखामी. ते जोतां सादात् कुंदन सरखी साव सुवर्णमय मालम पड़ी. साधुए कह्यु जे- एटली सामर्थाई अमारामां बे, पण बाह्य थकी कांई आत्माना रोग नथी मटता, ए कीधाथी झुं थाय ? ते सांजलीने देवता साधुने वांदी देवलोके गया. साधु चारित्र पाली न्याल थया. या अशूचि काया उपर सनत् चक्रवर्त्तिनो दृष्टांत कह्यो. तेवी रीते जे कोई कायानी माया तजशे तेनुं कार्य सिक थशे. १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग ॥ अथ सप्तमी आश्रव जावना विषे ॥ मालिनी बंद ॥ इद अविरति मिथ्या योगे पापादि साधे, इण नण नव जीवा आश्रवे कर्म बांधे ॥करम जनन जे ते - श्रवा कर्म रुंधे,समर समय आत्मा संवरी सो प्रबुद्धे शश नावार्थः- अविरती १५, कषाय १६, मिथ्यात्व ५, अने योग १५, ए सर्व श्राश्रव छार कहीये, ते थावे जीव कर्म बांधे; अने एज श्रात्मा बलीयो थाय तो श्राश्रवने रोके, आत्मा समतावंत थाय, तेवारे ए हित थात्मा संवरी कहीये, ए चेतन बोधी बीज पामे. २२ ॥इंडवजा बंद ॥ जे कुंडरीके व्रत गमि दीg, लाईतणुं ते वलि राज्य लीधुं ॥ ते उःख पाम्या नरके घणेरा, ते हेतु ए आ. श्रव दोष केरा ॥ २३ ॥ . नावार्थः- कुंमरीके व्रत बमीने नानु राज्य लीधुं; ते नर्कने विषे घणां पुःख पाम्या, ए आश्रव दोषनो हेतु जाणवो, अर्थात् श्राश्रव दोषे करी कुंडरीक नर्कना फुःख पाम्या. २३ ॥ ॥ श्राश्रव दोषे करी नर्कनां पुःख पामनार . कुंमरीकनो प्रबंध ॥ - महाविदेह देत्रने विषे पुंडरीगीणी नयरीए कुंडरीक अने पुंभरीक नामे बे नाई राज्य जोगवता हता. एवा अवसरने विषे त्यां ज्ञानी गुरु श्राव्या. तेमनी देशना सांजली कुंडरीक प्रतिबोध पाम्यो. घेर आवी कुंमरीके पोताना लाई पुंडरीकने पोतानो - बीजी प्रतमां १ " योग पापादि " ने बदले " जोगकोपधि” अने २ "करम जनन जे ते आश्रवा कर्म रुंधे," ने बदले “करम जनक जेने आश्रवा जे न रुंधे," एवा शब्दो के. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सदित. ३३५ राज्य जाग आपी चारित्र लीधुं. एमणे सरस नरस आहार कर्या तेथी रोगाक्रांत काया थई. तेणे करी परिणाम जाग्या. हजार वर्ष सुधी दीक्षा पाली पण पतित थवाने लीधे ते काम नावी. संयम मुकी घरने पवाडे अशोकवामीमां श्रावी उघो मुहपती काडे वलगामी गलहत्थो देई विचारे ने जे- नाई मुजने राज्य थापशे के नही आपे ! ए वखते कोई काम प्रसंगे तेनी धाव त्यां आगल श्रावी. तेणीए कुंडरीकने उलख्या. तेथी पुंडरीक राजा पासे जश्ने तेणीए जणाव्युं जे तमारा नाई कुंडरीक जे साधु थया हता ते वाडीमा आवी थाहट दोहट ध्याय . ते सांजलीने पुंडरीक राजा प्रोडीने नाई पासे श्राव्यो भने कारण पुज्यु. कुंमरीके सकल मननी वात कही. ते सांजली पुंमरीके कुंडरीकने राज्य आप्यु. घेर श्राव्यो. पण पटावत सामंतादिक चाकर वर्ग कोईए तेने मान्यो नही. कडं जे, धिकार पडो ! जे हजार वर्ष सुधी व्रत पाली पतित थयो. माटे कोई एनी पासे जशो मां. एम सघलाए विचार करी नकी कयु. कुंडरीके राज्य लेई पेट जरी थाकंठ लगण खाधुं. तेथी रात्रे महा मुखीयो थयो. तेने वमन थयु. पासे कोई आवे नही. तेथी मनमां विचारे जे जे-मुजने करार थाय तो प्रनाते प्रत्येक प्रत्येकने पुर्बु, 'अर्थात् सर्वनी खबर लेलं. ते एवा ाने मरी सातमी नर्के गयो. अपश्चगाण नामा नर्क पाथडे जईने तेत्रीस सागरोपमने श्राऊखे आश्रव हारने प्रनावे करी पहोंच्यो. ए लवणने योगे कुंडरीकनी महा माठी गति थई. माटे आश्रव हारने रंधवं. अने संवर आदर, ॥ २३ ॥ ॥ अथ अष्टमी संवर नावना विषे ॥ जे सर्वथा आश्रवने निरुंधे, ते संवरी संवर जाव सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग धे॥ ते भाववंदो गुरु वज्र स्वामी, जेणे त्रिया कंचन कोमि वामी ॥२४॥ नावार्थः- सर्व प्रकारे जे आश्रवने रोके अने संवरजावने आदरे ते जीव सुखी, अर्थात् सुखनो नजनार थाय; एवा कोण थया ? तो के- वज्रस्वामी, के जेणे स्त्री अने कंचननी कोडी एटले कोड सोना महोरो रुप आश्रवनो त्याग करीने संवर नाव आदर्यो, एमने नाव सहित हे प्राणी तमो वंदो- नमस्कार करो. २४ ॥ क्रोम सोनामदोर अने रूपवती कन्यानो अनादर करी संवरना सेवणहार श्री वज्रखामीनो प्रबंध ॥ पामलीपुर नगरने विष वसनार धनावह नामना शेउनी रुकमणी नामे महा रुपवंती कन्या श्री वयर ( वज्र) स्वामीनी देशना सांजली, तथा तेमनुं रुप देखी मोह पामी. तेणीए घेर श्रावी पोताना पिताने कयु जे, आ जवने विषे जो परणुं तो वयर स्वामीने. नहि तर अन्य पुरुषनो महारे नियम. अर्थात् वयर स्वामी विना बीजा कोई पण पुरुष साथे हुं पाणीग्रहण नहीं करूं एवं रुकमणीए पोताना माबापने जणाव्युं. माबापे कडं जे, ए साधु होवाथी परणे नही. एमणे तो आश्रव हारनां पञ्चरकाण कर्या . या प्रमाणे घणुं घणुं कहीने समजावी, पण ते रुकमणीए मान्युं नही. वयर स्वामीनेज परणवानी हठ लेई बेठी. मेवट धनावह शेठ कंचननी कोडी अने रुकमणी पुत्रीने लेई उपाश्रये आव्या, अने वयरस्वामीने कडं के, हे महाराज ! आ महारी पुत्रीने परणो, अने आ धन वावरो. एम जणावी धनावह शेठ पोतानी पुत्री तथा धन मुकीने घेर चाट्या गया. पली ते रुकमणीए वयर स्वामीने चलाववाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाषान्तरसदित. ३३७ घणा उपाय कर्या. पण लोहनी परे ते गल्या नही. कदापि लोह तो गले पण श्रव द्वारनो सर्वथा रोध करनार वयर स्वामी न चल्या. पढी थाकीने बोध पामी रुकमणीए पोताना बापे पेलुं कंचन कोमी धन सात क्षेत्रने विषे वावरी चारित्र लेई श्रात्मानुं साधन साध्युं. एं संवर जावना जाणवी. २४ वली वारने विषे कुंमरीकनो जे प्रबंध कह्यो बे तेमां जपावेला तेना जाई पुंकरीके संवरद्वार यादी सर्वार्थसिद्ध विमाननां सुख अनुजवी एकावतारीपणुं मेलव्यं तेनो टुंक प्रबंध नीचे प्रमाणे बे. ॥ अथ संवर द्वार श्रादरनार पुंमरीकनो प्रबंध ॥ कुंडरीके संयमथी पतित थई घो मुहपति काडे वलगाडी हती ते पुंकरीके त्यां श्रावीने कुंमरीकनी वात सांजली तेने राज्य स्वाधिन क ते वखते उघो मुहपति लेई धार्यु जे गुरु पासे जाउं तेवारे अन्न जल लेनं. पछी ते ( पुंडरीक ) गुरु पासे जवा माटे त्यांथी चाली नीकल्या. रस्तामां संवर जावथी अलुया पगे चालतां कांकरादि खुंचे थाने वागे, तेने योगे करें। पगमांथी लोहीनी धारा चाली, पण लेश मात्र संवरमां दोष गाड्यो नही. एम चालतां चालतां त्रीजे दीवसे ते पुंडरीक साधु चवीने सर्वार्थ सिद्ध विमाने तेत्रीस सागरोपमने याऊखे उपन्या. माटे संवरमां माल घणो वे तेथी ते आदरवो. या प्रबंधनो प्रथमनो संबंध कुंमरीकना प्रबंधथी मेलवी जाणी लेवो. २४ ॥ अथम नवमी निर्जरा जावना विषे | मालिनी बंद दस तपने कर्म ए निर्जराए, उतपति थिति नाशे लोक जावा नराए ॥ डुरलन जग बोधि डर्लना धर्मबुद्धी, जब दरणि विजावो जावना एद शुद्धी ॥ २५ ॥ ४३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३७ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग जावार्थः- निर्जरा नाव ते शुं कहीये ? जे उयदस एटले ब प्रकारनो बाह्य श्रने उ प्रकारनो अन्यंतर एम बारे नेदे तप कों, अर्थात् बार नेदे तप ते निर्जरा नावना कहीये. तपना प्रकार विषे गाथा ॥ अणसणउणोअरिया, वित्तिसंखेवणं रसचा ॥ काय किलेसो सलीणयाय, बजोतवोहोई ॥ १ ॥ बार नेदे तप करवे करीने कर्मनी निर्जरा थाय, उतपति अने स्थिती नाश पामे अने लोक नाव नराय; वली जगत्ने विषे बोधीपणुं अने धर्मबुद्धि जे पूर्वज तेनी शुकि करनार ए जवनो निस्तार करनारी निर्जरा नावना जे तेने नावो. २५. उपजाति बंद ॥बे निर्जरा अकाम सकाम तेही, अकाम जे ते मरुदेवी जेदी॥जे झानथी कर्मद निर्जरीजे, दृढप्रदारी परि ते तरीजे ॥ २६ ॥ जावार्थः- निर्जरा बे प्रकारनी बे, एक सकाम निर्जरा अने बीजी अकाम निर्जरा, ते अकाम निर्जरा कई कहीये? तो केमरुदेवी मातानी परे जे ज्ञानथी कर्म निर्जस्या ते, वली दृढप्रहारी जे कर्म खपावी तरी पार पाम्या, ए निर्जरा नावना कही.२६ ॥ अथ दशमी लोक नावना विषे ॥ मालिनी बंद ॥ जिम पुरुष विलोये ए अधो लोक तेवो, तिरिय पण विराजे थाल स्योटत जेवो॥जरधमुरध जेवो लोक नालि प्रकास्यो, तिम त्रिजुवन जानु केवली ग्याननास्यो॥३॥ लावार्थ:- जेम पुरुष केडे बे हाथ देई पग पहोला करी उन्नो रहे तेम लोकनालि जाणवी. तिरहुं वाटला आकारे कहेतां थालने आकारे जे; उंचं नूमि उपरे मुक्युं जे मादल ते सरुपे बे; नीचे जुवनपति, व्यंतर श्रने साते नर्क भने त्रिg अढी छीपने अने उंचुं बार देवलोक, नव ग्रैवेयक, पांच अनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३३ए त्तर, ते उपरे सिकशिला बे. ए बधुं कोणे प्रकाश्युं ? तो केत्रिजुवन नानु एटले स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल ए त्रणे जगतने विषे प्रकाश करनार सूर्य समान केवली जगवान डे, तेणे ए धर्म प्रकाश्यो एटले कह्यो . २७ ॥अथ एकादश बोधि श्रने छादश धर्म नावना विषे ॥ स्वागता बंद ॥ बोधि बीज लहि जेह अराधे तेढ ईलासुत परे शिव साधे॥ धर्म नावन लही नवि नावो,राय संप्रति परेसुख पावोशन नावार्थः- बोधि बीज एटले समकित पामीने जे तेने श्राराधे अर्थात् समकितने जे आराधे ते श्लासुत एटले एलाची कुमारनी पेरे मोद मार्ग प्रत्ये पामे; वली धर्मनी नावना पामीने तेने हे जव्य लोको तमे नावो, के जेथी संप्रति राजानी पेठे सुख पामो. पाबला जीखारीना जवने विषे धर्मनी नावना जाववाथी ते संप्रतिराजा थया अने सुख पाम्या; तेम धर्मनी जावना नाववाथी हे जव्यजनो तमे सुख संपदा पामशो. माटे समकित श्राराधq अने धर्मनी नावना नाववी. ए काव्यनो परमार्थ . २७. ( एलाचीकुमारनो प्रबंध था पुस्तकमां प्रथम बापेलो डे त्यांथी जोवो.) ॥ अथ धर्म नावनाथी सुख संपदा पामनार संप्रति राजानो प्रबंध ॥ संप्रतिराजा पाडला जवनेविषे सुमक हता, ते नीख मागतो हतो. तेना मुख तथा शरीर उपर माखी बणबणाट करती हती. तेने कोई पोताने बारणे उन्नो रहेवा देतुं नही. एक दीवस मार्गे जतां गृहस्थना घरमांधी एक मुनिने वोहारी श्रावतां तेणे दीग. साधु पासे तेणे खावानुं माग्युं. तेमणे कडं के, अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग माराथी यापी शकाय नही. तेम बतां ते डुमक मागतो मागतो तेमनी पाबल उपाश्रय सुधी गयो. त्यां गुरु महाराज बेवा हता. तेमनी पासे याचना करी. गुरु महाराजे जणाव्यं जे साधु सिवाय वीजा कोईने मारो आपेलो आहार व्यापी शकाय नही. डुमके धुं के एमवे तो मने साधु करो, पण खावानुं आपो. गुरु महाराजे चिकीत्सा करी योग जाणी तेने साधु बनाव्यो. पठी सरस आहार हतो ते खूब पेट तणाय त्यांसुधी तेणे खाधो, तेथी रात्रे विशुचिका ई. पी तेनुं उसक वेसड करवाने जाग्यवान गृहस्थो श्राव्या. तेमनी सेवा चाकरी रुडे प्रकारे करवा लाग्या तेजोई एडुमक साधुए विचार्य जे, पहेलां पण हुंज हतो ने हवणां पण हुंज तुं. परंतु ए सर्वे शेती आदि साधु वेषने प्रजावे सेवा करे बे. माटे वेष म्होटो. धन्य वे ए वेषने ! एवी धर्मनी जावना जावतां जावतां आयु पूर्ण थवाथी मरीने ते संप्रति राजा थयो. एकदा समये संप्रति राजा गोखमां बेठो हतो. त्यां धार्यसुदस्ती सूरिने चौटामांहे जातां संघे पूज्या मान्या तेना दीवामां व्या. एवं कारण जोई पोतानी जात संजारतां तेणे पोतानो पाठलो डुमकनो जव दीवो, अर्थात् तेने जाति स्मरण ज्ञान थवाथी पोतानो पूर्वनो डुमकनो जव सांजय. एटले ते गोख थकी देवा उतर्या. सूरि महाराजनी पासे यावी तेमने पगे लाग्या, ने सविनय बोल्या जे, स्वामी, तमे मने लखो बो ? गुरु महाराजे कथं के, तमने सर्वे उलखे बे, जे तमे राजा बो. राजाए कयुं के, स्वामी ! हुं तमारो चेलो इतो. तमने में महारा खरा गुरु जाण्या. स्वामी, तमे मने उपकारी बो. माटे हुं तमने शी नेट करूं ! या राज्य तमारुं बे, तेनो स्वीकार करो. गुरु महाराजे ज्ञानदृष्टीए करी तेने डुमक शिष्य जाएयो. पठी कर्तुं के, तहारुं राज्य अखंग रहो. मे ए राज्यने शुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३४१ करीए ! तमे तमारुं राज्य पालो - जोगवो, अने धर्मनां काम करो. ते सांजली धर्ममां दृढता करी ते धर्मनां घणां घणां काम कर्या. नेवा जिन प्रासाद कराव्या. जीर्णोद्धार कराव्या. जिन परिमार्ज जरावी. घणी दानशालाई मंडावी. ज्यां परमेश्वरनो धर्म नहोतो त्यां टले नार्य देशमां सेवकोने मोकली त्यां धर्मनो प्रचार कराव्या. साधुने श्राहारादिक मली शके एटले सुधी अनार्य लोकोने सिक्षण पाठ्युं विगेरे विगेरे साते क्षेत्रने विषे धर्म जावनाएं करी संप्रति राजाए संपदा वावरी ने उत्तम गति पाया. माटे धर्म जावना जाववी. २८ ॥ अथ राग विषे ॥ इंद्रवज्रा बंद || रागे मराचे जव बंध जाणी, जे जाण ते राग वशे नाणी || गौरी तणे राग मदेस रागी, अर्धांग देवा निजबुद्धी जागी ॥ २९ ॥ जावार्थ:- राग ते जव बंधना हेतु रूप संसारनो संबंध बे एम जालीने तुं तेनाथी राचीश नही, जे जाण होय ते पण रागने वश थया तो तेने ज्ञानी जावा;जु रागने वश थवाथी महादेवे पारवती ने पोताना गने विषे राख्यां, रागने लीधे कहेवातुं पण जाणपणुं चाल्युं गयुं. माटे राग एटले मोह कोइए न करवो. मोहने महा दुःखदाई जावो. ॥ अथ द्वेष विषे ॥ रे जीव तुं द्वेष मने न आणे, विद्वेष संसार विकार जाणे ॥ द्वेषथी तो सुख दोए जेतुं, विद्वेषयी तो डुःख होए तेतुं ॥ (पाठांतर) रे जीव विद्वेष मने म खाणे, १ संप्रतिराजाए नवा प्रासाद तथा जीर्णोद्धार मली सवा लाख देरासर कराव्यां तथा सवा क्रोड प्रतिमार्ज जरावी हती. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग. विद्वेष संसार निदान जाणे ॥ सासू नणंदे मिलि कूड कीधूं, जूनूं सुना शिर आल दीधूं ॥ ३० ॥ जावार्थ :- हे जीव ! तुं कोईना उपर मननेविषे द्वेष लावीश नही, द्वेषने संसारनो विकार एटले रोग - संसारनुं मूल जाणजे, द्वेष एटले कोईना उपर द्वेष न होय तेने जेटलुं सुख होय तेथी उलटुं द्वेषनो जे करनारो होय तेने तेटलुं दुःख थाय. अर्थात् द्वेष न करनारने जे सुख होय ते वर्णवी न शकाय, तेम द्वेष करनारने वर्णवी न शकाय एटलुं दुःख होय. ( पाठांतर ) हे जीव ! तुं कोईना उपर मनने विषे द्वेष लावीश नही, निश्चे करीने तुं द्वेषने संसारनो वधारनार - संसारनुं मूल जाणजे जुर्ज, सासु ने नणंदे मलीने द्वेषने लीधे सुना सतीना उपर खोटुं याल ( कलंक ) चडाव्युं. पण सुनद्रा काचे तांतणे चालणी बांधीने कुवामांथी जल काढी चंपा नगरीना देवाई गयेला दरवाजा ते पाणी बांटीने उघाड़ी साची सती तरी सुखी घई, अने तेना उपर द्वेष लावनार तेनी सासु तथा नणंद सर्व लोकमां जोंठी पडीने दुःखी थई. माटे कोई उपर द्वेष न करवो. ३० यतः - रागद्वेषोय दिस्यातां । तपसाकिंप्रयोजनं ॥ तामेवयदिनस्यातां । तपसाकिंप्रयोजनं ॥ १ ॥ नावार्थ:- जो राग द्वेष मांहि जर्या ने तप करे बे, तो ते मांग खोटी थाय बे; अने राग द्वेष अग्याने एटले जाणवे जे तप करे बे ते पण मांग महाडुःखी या. अर्थात् राग द्वेष करनार अने तेने नही समजनारने तप करवानुं कांई फल मलतुं नयी. ॥ अथ संतोष विषे ॥ वसंततिलका बंद | संतोष तृप्ते जनने सुख दोय जेवुं, ते व्य लुब्ध ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३४३ नने सुख नाहि तेवु ॥संतोषवंत जनने सहु लोक सेवे, राजेंज रंक सरिखा करि तेहै जोवे ॥ ३१॥ नावार्थः- संतोष पामेला माणसने जेतुं सुख होय, तेवू सुख अव्यना लालची माणसने न होय; संतोषवंत माणसने सर्व लोकना बंद सेवे - माने, के जे म्होटा राजा श्रने रंकने सरखा जाणे ; अर्थात् संतोषवंत माणस महाराजा अने रांक ए बनेने सम दृष्टीए जुवे ने एटले सरखा गणे . जे आकरा अव्यना लालची प्राणी जे तेने मुखीया जाणवा. यतः॥ सुवन्नरूपसयपत्थया॥जवेसेहावोकेलाससमाअसंखया॥ नरस्सदुधस्सकिंचि ॥ श्छाहूयागाससमाअनंतया ॥ १ ॥ अर्थ- जो सोनाना अने रुपाना बधा पर्वत घरे आवे तो पण लोजीयानो लोन पूरो न थाय ॥ १ ॥ यतः ॥ तनकी तृश्ना सहेल हे, सवा सेर के सेर॥मनकी तृश्ना नहं मिटे, जो घर थाणे मेर ॥१॥ ते माटे संतोष ए सुखनुं भूल . ॥ श्लोक ॥ सर्पाःपिबंतिपवनंचर्बलास्ते ॥ सुकैत्वणैवनगजावलीनोनवंति ॥ कंदैफलैः मुनिवरागमयंत्यकालं ॥ संतोषएवपुरुषस्यपरंनिधानं ॥१॥३१॥ ॥अथ विवेक विषे ॥ उपजाति बंद ॥ जो जेद चित्ते सुविवेक नासे, तो मोह अंधार विकार नासे ॥ विवेक विज्ञानतणे प्रमाणे, जीवादि जे वस्तु खन्नाव जाणे ॥३२॥ जावार्थ:- जेना चितमां विवेक आवे तेनो मोहरूपी अंधकारनो विकार नाश पामे; विवेकाईए करी विज्ञान चतुराई सर्व प्रमाण थाय अने तेजीवादिक वस्तु स्वजावने पण जाणे ॥३॥ बीजी प्रतमा १ " संतोष तृप्त ” ने बदले " संतोषवंत" जे. अने ५ "तेह" ने बदले " जेह" . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली मोक्षवर्ग ( इंद्रवज्रा बंद ) बालापणे संयम योग धारी, वर्षारुते काचलि जेण तारी ॥ प्रयमत्त तेई, सुज्ञान पाम्यो सुविवेक लेई. ३३ श्रीवीर जावार्थ:- जे महापुरुष बालकपणामां संयम योग धारी थया एटले बाल्यावस्थामां जेथे चारित्र लीधुं, थने वर्षारुते एटले चोमासामां जेणे पाणी उपर काचली तारी; ए श्रीमहावीर स्वामी जगवानना श्रईमत्ता नामे शिष्य उत्तम विवेकपणाए करी ईरियावदी पकिमतां " पणगदग महिमकमा " ए पद जावतां केवलज्ञान पाम्या ॥ ३३ ॥ माटे विवेक ते वमी वात बे. ३४४ ॥ अथ निर्वेद विषे ॥ शार्दूलविक्रीडित बंद ॥ जे बंधूजन कर्म बंधन जिसा, जोगा जुजंगा गिणे ॥ जाणतो विषसारिखी विषयता, संसारता तें द ॥ जे संसारद राग देतु जनने, संसार जावा हुवे ॥ जावो ते विरागवंत जनने, वैराग्यता दाखवे ॥ ३४ ॥ जावार्थ:- जे प्राणी ए कुटुंबने कर्मबंध जेवा माने, अने ए संसारिक जोगने सर्प तुल्य गणे; तथा विषयने विष एटले केर समान जाणे, ए प्राणी संसारताने हृणे एटले संसारने बोडे, संसारिक रागहेतु जे लोक बे ते संसार जावने नजे, 'जे वैराग्यवंत प्राणी बे ते तो वैराग्यता बतावे. माटे तेवां वैराग्यवंत प्राणीने जावो. ३४ " ( वसंततिलका बंद ) निर्वेद ते प्रबल उर्भर बंदिखाणो, जे बोडवा मनधरे बुध तेद जाणो ॥ निर्वेदथी तजिय राज विवेक कीधो, योगींद जर्तृहरि संयम योग लीधो ॥ ३५ ॥ बीजी प्रतमां १ " सुज्ञान " ने बदले " सुस्थान " बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तर सहित. ३४५ भावार्थ:- निर्वेद ते संसार उपर खेद उपजे - संसारने बंदिखानारूप जाणे, जेम बंदिखानामांथी बुढ्यो ते पातुं बंदिखाना सामुं न जुवे एवो खेद उपजे, तेम ए संसारने बंदीखाना जेवो जाणीने विवेक लावी तेमांथी बूट्या ते कोण ? तो के, ज र्तृहरी राजा, के जेणे राज्य विलास मुकीने योगेंद्र मार्ग लीधो, अर्थात् जर्तृहरी राजाए संयम जोग लीधो. ३५ ॥ अथ निर्वेदे करी] संयम लेनार जर्तृहरी राजानो प्रबंध ॥ नर्तृहरी राजा राज्य करता हता एवा व्यवसरने विषे एक परदेशी वाणीया श्रावी मृत फल जेट मुक्युं राजाए ते फलना गुण पुण्या. तेवारे ते व्यापारी वाणीयाए तेना गुण कहेतां जपाव्यं के- जो कोई गरढो माणस ए फल खाय तो ते नवयौवनवत थाय. ते वात लक्षमां लेई राजाए ए फल पोतानी राीने खावा याप्यं. एवो विचार करीने के, जो ए फल खाय तो सदा काल युवानपणे रहे, एटले ए कीशोरी अर्थात् सोल वर्षेनी नवयौवना रहे. राणीए ए फल लेईने विचार्य जे, हुँ खाउं ते शा कामनुं ! जो महारो प्राणवान प्राणजीवन जार पुरुष जे महावत बे ते खाय तो ज्यां सुधी जीवीये त्यां सुधी ते हमेशां यौवनवंत रहे. पी राणीए ए फल पोताना जार महावतने आयुं. ते विचार कर्यो के, ए फलने हुं खाईने शुं करूँ ! जो ए महारे प्रीतिवंत जे गणिका वे ते खाय तो सदा जुवाननी जुवान रहे माटे तेने श्राप सारुं छे. एम धारीने महावते ते फल गणिकाने याप्यं गणिका ए फलनो गुण जाणी विचा रखा लागी जे, हुं खाईने शुं सारुं करनारी बुं! महाराथी तो नारुं थाय बे, ने एथी पण वल्ली विशेष नकारुं ए फल खावाने सीधे नवयुवान थवाथी थवानो संभव बे, माटे ए फल ४४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ सूक्तमुक्तावली मोदवर्ग -राजाने नेट करूं. केमके, ए जीव घणा जीवोनो पालणहार बे, माटे ए खाय तो सारं. एम धारीने ए फल गणिकाए लावीने राजाना मोंगल नेट मुक्युं. ते फल देखी राजाए उलख्युं. पी राणी पासे जई राजाए पुब्धुं जे, कहो राणी ! तमने जे अमे फल युं हतुं तेने तमे शुं कर्यु ? जे कर्यु होय ते साधुं कहो, ते तमे कोने त्राप्युं ? तेवारे राणीए विचार्य जे, हवे श्रींयां खोटं बोले सिद्धि नथी. एमने कांई पगेरुं लाभ्यं दीसे बे. माटे मुजने पुj. नहींतर कदापि मने न पुढे. एमने कोई डू मल्यो जणाय बे. माटे हवे अहींयां जतुं नहीं चाले, तेथी साधुं करूं. पी मनमां करेला मनसुवा प्रमाणे राणी बोली जे, महाराज ! गुन्हो माफ करो तो कहूं. राजाए कीधुं के, गुन्दो माफ कर्यो. राणीए जणाव्युंजे, में तो महावतने च्याप्युं. तरतज राजाए मदावतने तेडाव्यो, छाने कह्युं के, रे ! राणीए आपेलुं फल तें कोने आयुं. ते कयुंके, में गणिकाने याप्यं. गणिकाने ते - वने पुयं के, तें मुजने ए फल केम याप्युं ? ते कहे जेहुं जगत्रनो उतार ए फल खाईने शुं करूं ! एम विचारीने जगजीवना पालणदार एवा तमो महाराजाने में ए फल श्रप्यं. कारण के, तमे जगतने उपकार करो तो तेथी वली विशेष उपकार चिरकाल करशो. एम विचारीने श्राप्युं. ए निमित्ते राजाने वैराग्यनी वासना थई ॥ काव्य ॥ याचंतयामि सततं मयिसानुरक्ता ॥ साप्पन्न मिबतितम स्वजनोनुंसक्त ॥ अस्मत् कृतेच परितुष्यतिकाचदन्या ॥ धिकतांचतांचमदनां चंद्रमाचमच ॥ १ ॥ एवं विचारीने राजा भर्तृहरी योग लेई नीकल्या. एमनुं गायन कानफट्टा गाय बे. ते संसार उपर निर्वेद एटले खेद पामीने नीकल्या. माटे संसार ए खेद श्राणवा योग्य बे. तेने तजी देनारा सुखी थाय बे. ३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित. ३४७ ॥ अथ श्रात्मबोध विषे॥ जे मोदनिंद तजि (पागंतर - जयी) केवल बोधि देते, ते ध्यान शुद्धि हृदी नावना एक चित्ते ॥ ज्यूं निःप्रपंच निज ज्योति स्वरूप पावे, निर्बोधथी (पागंतर - निर्वाध जे) अखय मोद सुखार्थ आवे.३६ जावार्थः-जे मोहनिंबाने तजे ( मोह निडानो जय करे ) ते केवल बोधबीज पामे, ते ध्याननी शुद्धिए करी हृदयनेविषे एक चित्ते नावना (नावे जेथी करी) ते निःप्रपंचपणे एटले प्रपंच रहितपणे ज्योतिस्वरुपीपणुं पामे, अने ए निर्बोध एटले निर्वेद ते संसार उपर खेद तेहिज अदय सुख जे मोदसुख ते प्रत्ये पामे. अर्थात् मोहरुपी निंदानो त्याग करवे करीने बोध बीज पामी हृदयने विषे एक चित्तथी तेनी नावना नावतां अने संसार उपर खेद थवाथी तेनो त्याग करतां मोक्षसुख मले. ३६ ॥ (मालीनी बंद ॥) नव विषय तणां जे चंचला सौख्य जाणी, प्रियतम प्रिय लोगों नंगुरा चित्त आणी॥ करमदल खपेई केवल ज्ञान लेई, धन धन नर तेई मोद साधे जिकई३७ नावार्थः- जव एटले संसार तेना जे विषय शब्द, रुप, रस, गंध, अने फरस, एवां पांचे इंजिना त्रेवीस विषय बने सुख तेने चंचलपणे जाणे , प्रियतम प्रिय जोग ते घणाज वहाला, एवा जे लोग ते केवा ? तो के, जेने कणेकमां बगडतां वार न लागे एवं चित्तमां जाणे, ते प्राणी कर्मनां दल एटले कर्मोनो समूह खपावीने केवल ज्ञान प्रत्ये पामे, अने धन्य धन्य ए नर एटले एवा उत्तम मनुष्यने के जे मोद पदने साधे. अर्थात् संसारनी असारता जाणी सुखादिकनुं चंचलपणुं चिंतवी, तथा जे नो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४न सूक्तमुक्तावली कामवर्ग गादि वहाला प्रिय लागे जे ते क्षणवारमा नाश पामशे - बगडशे एवो संसार उपर निर्वेद लावीने जे मनुष्य बोधी बीज नपार्जि संसारनो त्याग करी संयमाराधी केवलकमला वरीने मोद सुख मेलवे तेने धन्य धन्य .॥ ३७॥ इति मोद वर्ग समाप्तम् ॥ हवे धर्म, अर्थ, काम अने मोद, ए चारे वर्ग टुंकामां वर्णन करे ॥ ॥ तत्र ॥ ॥प्रथम धर्म वर्ग॥ मुर्गतीमां पडतां सर्व जंतुने, धरणीथी धरमी कहो तेदने ॥ संजम आदि कह्यो ते दश विध नलो, सुगुरुथी नवि धर्म ते सांनलो॥३०॥ नावार्थः- पुर्गतिने विषे पमतां एवां जे जंतु जीवने धरण कहेतां धरे, नामने उधरे ते धर्म कह्यो, ते संयम श्रादे दश प्रकारनो घणो रुडो कह्यो , तेने हे नविप्राणी ! तमे सद्गुरुना मुखनी वाणीए करी सांजलो. ए प्रकारे जेणे धर्म सांजव्यो ते हर्ष भने संतोष पाम्या. ३७ ॥अथ धर्मना दश नेद ॥ गाथा॥ खंति मद्दव अजव ॥ मुत्ति तव संजमेय बोधवे ॥ सच्च सोयं अकिंचणंच ॥ बंनंच जई धम्मो॥१॥ अर्थः- क्षमा १, कोमलपणुंश, सरलपणुं ३, निसंग पणुं ४, तप ५, संजम ६, जाणवो; सत्य 9, सोच ते अंतर सोच छ, निर्लोजपणुं ए, ब्रह्मचर्य धरवू १० (ए दश प्रकारनो धर्म गुरुमुखथी सांजलीने आदरवो.)॥१॥ ए धर्म वर्ग कह्यो..: Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाषान्तर सहित ३४ए ॥ श्रथ रितीय अर्थ वर्ग। अरथ अरथ जेथी धर्म अर्थथी सिद्दीथावे, धरम करम सिही अरथ विणुं किं न पावे ॥ सकल विनव केरो अर्थ ए सार जाणी, सपत प्रवर केरो वावरो सोख्य खाणी ॥३॥ जावार्थः- धर्म जो कर्यो होय, सेव्यो होय, आदर्यो होय, तो अर्थ जे संपदापरिग्रह ते पामतां वार नही, ते परिग्रह विना धर्मनां काम ते एके बंध न बेसे; सकल विनव जे संपदा, तेनुं सार ते सुख निरवाण, ते अर्थ- सारपणुं शुंने ? तो के-प्रवर कहेतां प्रधान एवां सपत कहेतां जे सात देत्र, ते कीयां ? तो केजिनजुवन कहेतां देरासर १, प्रजुनुं बिंब २, पुस्तक ३, साधु ४, साधवी,५, श्रावक ६, श्राविका उ, ए साते क्षेत्रनेविषे वित्त वावरवं, ए अर्थ एटले संपदा लक्ष्मी पाम्यानुं सार जाणवू, के जे सुखनी खाणरुप . ३५॥ ॥अथ तृतीय काम वर्ग ॥ धरम अरथथी काम न वेगलो, धरम काम करे जगे ते नलो॥ सकल जीवने सौख्य ए काम,परम अरथमां काम निदान ॥४०॥ नावार्थः- धर्मश्री श्रने अर्थथी कांई काम वेगलो नथी, धर्मनां काम करे ते प्राणीने जगतने विषे नलो एटले रुमो जाणवो; सकल एटले बधा जगतजीवने सौख्यर्नु करणहार ते काम , अने परम कहेतां उत्कृष्टा आकरा अर्थमां ते कामज निदान कहेतां निश्चे बे. अर्थात् धर्म करवे करीने अर्थ पाम्या पडी तेनो व्यय धर्मनां रुडां काम करवे करीनेज थाय . (था जगोए काम शब्दनो अर्थ कार्यरुपे वर्णवेलो)४० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग ॥ श्रथ चतुर्थ मोक्ष वर्ग ॥ प्रथमो वर्गे प्रवरे प्रवरो जवत्वं, येतोपदेशे विधीनां जव शंभवत्वं ॥ मोदार्थ साधन फलं प्रवरं वदति, संतः स्वत्तो जगति तेपि चिरंजयंति ॥ ४१ ॥ ३५० जावार्थ :- हे नवी जीव ! एवो जे प्रधान मोक्षपद तेनेविषे प्रवर कहेतां प्रधान एटले मुख्यपणे ध्याउ, के जे जवनो नाश विधे करीने करे, उत्तम पुरुष तीर्थंकर प्रभुजी मोक्षार्थ साधन फल तेहीज प्रवर कहेतां मुख्य कडे बे, मोहना साधक एवा जे संत जला प्राणी ते श्चिरंजयति कहेतां घणा काल लगे चिरंजीवी रहो. ॥४१॥ ॥ अथ ग्रंथ समाप्ति विषे ॥ इति धर्म अर्थ वर काम मोद मार्गे, किंचित् मया प्रगटितो उपदेश लेशः ॥ सन्मार्ग गामिनिनरेः रुपदेश धार्य ॥ तत्व स्वरुप मिति गम्यविचारणीयं ॥ ४२ ॥ जावार्थ:- ए धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष वर्ग, ते किंचित् कहेतां लवलेश मात्र मया कहेतां में प्रगटपणे उपदेशरूप थोडो को बे; तेने सन्मार्गगामिनिःनर कहेतां उत्तम मार्गगामिना जाणनहार एटले रुमा मार्गने जाणवावाला - जजवावाला मनुयो हृदयने विषे सद्य उपाय धारीने तत्वस्वरुप तेही तेहीज एटले एज बे एवं विचारणीयं कहेतां विचारखं. ॥ ४२ ॥ इति श्रीसुक्तमुक्तावली मालायां चतुर्थ वर्गसजाषान्तर संपूर्णम् ॥ ॥ अथ प्रशस्ति काव्य ॥ उपजाति वृतं ॥ इत्येवमुक्ता किल सूक्तमाला, विभूषिता वर्गचतुष्टयेन ॥ तनोतु शोजा मधिकं जनानां, कंठ स्थिता मौक्तिकमालिकेव१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषान्तरसदित ३५१ अर्थः- चार (धर्म, अर्थ, काम छाने मोक्ष) वर्गथी शोनेली श्री प्रकारे खरेखरी सूक्तमाला जनोनी शोजाने अधिक करो; जनोना कंठमां रहेली मोतीनी मालानी पेठे शोजाने वीस्तारो ॥ १ ॥ ॥ शार्दूलविक्री मितं वृत्तं ॥ यासीत्सद्गुणासिंधुपार्वणशशी श्रीमत्तपागच्छपः || सूरिः श्री विजयप्रनानिधगुरुर्बुध्याजित स्वर्गुरुः ॥ तत्पद्योदयधरो विजयते नास्वानिवोद्यत्प्रनः ॥ सुरिश्रीविजयादिरत्नसुगुरुर्विद्वाजनानंदनूः ॥ २ ॥ अर्थः- सणरुप समुद्रने उल्लास करवामां पुनमना चंद्र जेवा ने शोजावाला तपागछने पालनारा तथा बुद्धिथी जीयो ने बृहस्पति ते जेणे एवा श्री विजयप्रन नामे सूरी थया; ए विजयप्रन सूरीना पहरूप उदयाचल पर्वतने विषे चलकती बे कांति जेनी एवा सूर्य समान अने वली पंडित जनने श्रानं दना उत्पन्न करनार सुगुरु श्री विजयरत्नसूरी जे जय पामे बे. २ ॥ श्रार्या वृत्तं ॥ विख्यातास्ताज्ये, प्राज्ञाः श्रीशांतिविमलनामानः ॥ तत्सोदरा बभूवुः, प्राज्ञाः श्रीकनक विमलाब्दाः ॥३ र्थ:- ते विजयरत्न सूरीना राज्यने विषे प्रख्यात श्रने बुद्धिमान् एवा श्री शांतिविमल नामे सुगुरु थया; तेमना गुरुनाई श्री कनक विमल नामे (बुद्धि निधान ) थया. ॥ ३ ॥ तेषामु विनेयौ, विद्वान् कल्याणविमल इत्यादः ॥ तत्सोदरो द्वितीयः, केसर विमलानिधो ऽवरजः ॥ ४ ॥ अर्थ:- ते कनक विमलने वे शिष्य थया, प्रथम शिष्य विद्वान् कल्याण विमलजी नामे थया; ते कल्याण विमलजीना न्हाना गुरुनाई बीजा शिष्य केसर विमल नामे थया. ॥ ४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 352 सूक्तमुक्तावली कामवर्ग तेन चतनिर्वर्गे, रचिता जापानिबाचिरेयं // सूक्तानामिह माला, मनोविनोदाय बालानां // 5 // अर्थः-ते केसर विमलजीए चार वर्ग वडे श्रने सुंदर नाषावडे बांधली एवीथा सूक्तमाला बाल जीवोना मनना विनोदने माटे रचेली बे. वेज्यिर्षि चं, प्रमिते श्रीविक्रमाते वर्षे // अग्रंथि सूक्तमाला, केसरविमलेन विबुधेन // 6 // अर्थः- विक्रम संवत 1754 नी साले केसरवीमल पंडिते श्रा सूक्तमाला गुंथि एटले रची. // 6 // __ (प्रशस्ति काव्योनो अक्षरार्थ उपर प्रमाणे जे तेनो टुंक जावार्थ समजवा माटे श्रा नीचे लख्यो बे.) ___ लोकोना कंठने विषे रहेली मोतीनी मालानी पेठे चार वगथी शोलाएलो एवो आ सूक्तमाला नामनो ग्रंथ लोकोनी शोनाने अधिक करो. बुद्धि वडे जीत्यो ने बृहस्पति एवा पुनमचंड सरखा अने तपागबने पालण करनार एवा श्री विजयप्रन नामे सुगुरु थया. उदयाचलने विषे सूर्यनी कान्तिनी माफक तेमना पाटने शोजावनारा श्रने सर्व विद्यानोने थानंद करनारा एवा श्री विजयरत्न नामना सूरि थया, तेमना राज्यने विषे प्रख्यात अने बुद्धिमान श्रीशांति विमल नामे सुगुरु थया, अने तेमना न्हाना गुरुनाई कनकविमल विछत्तामा प्रख्यात थया. तेऊना बे शिष्य एक कल्याण विमल अने बीजा केसरविमल नामे हता. तेमांना केसरविमलजीए बालजीवोना विनोदने अर्थे धर्म, अर्थ, काम अने मोद ए चार वर्गवडे अने रुमी नापाथी श्रा सूक्तमाला नामना ग्रंथ विक्रम संवत् 1754 नी सालमां रच्यो . // इति श्री सूक्तमुक्तावली ग्रंथ सह नाषान्तर समाप्तः // இலைலைலைலைலைலைலைலை Jain Educationa International For Personal and Private Use Only