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________________ भाषान्तर सहित, २२७ पडी गयो. पढी बोल्यो जे, महाराज ! ए काम केम थाय ? कहो तो द्रव्य पुं. ते द्रव्य यापीने वीजा पासेथी ल्यो. अजयकुमारे धुंके, मांसनुं काम ठे वली ते तमारा कदेवा प्रमाणे सोंधुं बे तो आपवामां शी हानी बे ? उमराव लाचारी करी बोल्यो के, साहेब ! लाख बे लाख द्रव्य ब्यो, पण मांस तो बीजानुं लेवा महेरबानी करो. अजयकुमार तेनी पासेश्री द्रव्य लेईने तेनी वानो हाजीयो पुरनार बीजा उमरावने त्यां गया. तेनी पासे सवा टांक मांस माग्युं. ते पण मांस श्रापवानी ना कहीने द्रव्य याप्यं तेनुं द्रव्य लइने वली त्रीजा पासे गया. ते पण द्रव्य खाप्युं. एम जे जे उमरावादि मांस सोंधुं मलवानुं कहता हता तेने त्यां श्राखी रात्रि सुधीमां फर्या. कोईये पण मांस प्राप्यं नही. लाचारी जणावी सघलाए द्रव्य आयु. एम लाखो गमे द्रव्य नेगुं करीने प्रजाते अजयकुमार दरबारमा व्या. सघला सामंत उमरावो यावी राजाने कुशल खेम पुढवा लाग्या. राजा विस्मय थया. एमणे अजयकुमार सामुं जोयुं. अजयकुमार बे हाथ जोडी बोल्यो जे, - महाराज ! गई काले राजसज्जामां आपना उमरावो कहता हता जे, (( आज काल मांस सोंधुं मले बे. " तेनी खात्री करवा माटे गई रात्रे मांस लेवाने अर्थे हुं गयो हतो. सघला सामंत उमरावे मुजने द्रव्य श्राप्यं, पण कोईए तमने सुख करवा माटे फक्त कालजानुं सवा टांक मांस माग्युं ते पण न आप्यु. माटे कहो महाराज ! " ए ते मांस सोंधुं ययुं के मोंघुं ययुं ? जो सोंधुं होय तो सवा टांक माटे कोई लाख वे लाख द्रव्य आपे ? " अजयकुमारनां एवां वचन सांजली त्यां श्रावेला सर्वे सामंत उमरावो नीचुं घाली रह्या. पण कोई कांई प्रत्युत्तर देई शक्या नही. सघला वचमां वंधाणा अर्थात् सांकडे श्राव्या; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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