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सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग पुज्युं जे, एम थवानुं कारण शुंने ? मगरे का के, आज महारे मगरी साथे राड थई बे. में तेने घणुंए समजावी पण ए महारूं कहेवं मानती नथी अने महारी साथे बोलती पण नथी, तेथी घणो दीलगीर थयो बु. अहीं श्राववा जेवो समय पण नहोतो परंतु तमारा स्नेहने लीधे तमारो श्राववानो वखत थयो बे एम जाणी फक्त तमारा दर्शन माटे ज हुँ आव्योढुं. ज्यांसुधी अमो स्त्री नार वच्चे थयेली राड जागशे नहीं त्यांसुधी महारा जीवने निरांत थशे नहीं, तेमज खावू पीवू पण नावशे नहीं. हुं धारूं बु के, तमारा सीवाय महारूं ए फुःख दूर करनार बीजो कोई नथी. तमे महारा दीलोजान दोस्त बो, माटे महारी साये आवीने तमारी जानीने मनावी अमारी राड जागी आपो. वांदराए मगरनां वचन सांजली विचार्यु जे, कोई जीव पुःख न पामे अने कोईनी राम मटे, एम करवु ए उत्तम प्राणीनुं लक्षण दे. पडी तेणे मगरप्रत्ये कह्यु के, महारा बनता प्रयत्ने हुं तमारी राड जागी आपीश, तमे चिंता न करो. परंतु महाराथी तमारे त्यां पाणीमां शी रीते आवी शकाय ? मगरे कडं के, तेनी फीर करशो नहीं. तमे महारा वांसा (पीठ ) उपर बेसो, हुं तमने सुखरूप लेडी जश. वांदरो मगरना कहेवा मुजब तेना वांसा उपर बेगे. एटले ते पाणीमां तरतो चाल्यो. केटलेक र नीकली गया पठी वात चीत करतां मगरे वांदराने का के, हे जाई ! महारी स्त्रीने तदारूं कालगँ जोईये बीये. ते सांजली वांदरो पोताना मनमां विचारवा लाग्यो के, आतो महारो उपाय करवा मांड्यो दीसे डे अर्थात् मने मारवो धार्यो बे. माटे हवे हुं बुद्धि केलQ तोज उगरीश. पबी तेणे मगरने कह्यु के, अरे लाई ! अरे तुंमा ! ए वात तें
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