SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषान्तर सदित. १६५ उपाडवा जेबा जार समान १ प्राणातिपात, १ मृषावद, ३ - दत्तादान, ४ मैथुन, अने ५ परिग्रह, ए पांच महाव्रतने वहन करे बे ( पाले बे ); जे निःसंगी बे अर्थात् कोश्नो संग करता नथी; जे ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार ने विर्याचार, ए पांच यचारना धरनारा अर्थात् पालक बे, प्रमाद करता नथी; जे दुःखना परिसाने सहन करे बे; वली जे पांचे इंडि रूप घोडाने वश करे बे ने मोक्षार्थ एटले मोक्षना साधनोनो संग्रह करे बे; एवो दुष्कर साधुनो धर्म बे, ते जेवी रीते ग्रहण करे तेवी रीते तेनो निर्वाह करे तेवा साधुने धन्य ते तेने मुनी जाएवा. ७३ ( मालीनी बंद) मयण शिर विमोडी कामिनी संग बोडी, तजिय कनक कोडी मुक्तिसूं प्रीति जोमी ॥ जव जव जय वामी शुद्ध चारित्र पामी, इद जग शिवगामी ते नमो जंबुस्वामी ॥ ७४ ॥ जावार्थ:- कंदर्पना विकारने दली नाखी जेणे स्त्रीनो संग छोड्यो, जेणे कनकनी कोडी अर्थात् कोडो सोना मोहोरोनो त्याग करीने मुक्तिरूपी स्त्रीनी साथै स्नेह बांध्यो एटले मोक्षमार्ग जेने वाहालो लाग्यो ने जेणे शुद्ध चारित्र पामी (पाली) ने जवजवनो जय दूर कर्यो, एवा या जगत्ने विषे मोक्षप्रत्ये पाम्या ते श्री जंबुस्वामीने नमस्कार करो - हुं नमस्कार करूं हुँ. ७४ ॥ श्रथ श्रावकधर्म विषे ॥ शाईल विक्रीमित बंद. जे सम्यक्त वही सदा व्रत धरे, सर्वज्ञ सेवा करे ॥ संध्यावश्यक च्यादरे गुरु नजे, दानादि धर्माचरे ॥ नित्ये सद्गुरु सेवना मन धरे, एहवो जिना धरारे ॥ जाख्यो श्रावकधर्म दोय दशधा, जे च्यादरे ते तरे ॥ ७५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 7 www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy