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नाषान्तर सदित. दीसे दे अने पंच नूतने मीलाणे करी मीलाण (जीव) दीसे बे. जीव नथी तेथी पुन्य अने पाप पण नथी, एवो ते नास्तिक थयेलो होवाने लीधे सर्व लोकोने एम कहेतो हतो के अवतार (पंचनूतथी उत्पन्न थयेलो जीव ) पाम्या बो तो खाउँ पीयो, पहेरो श्रोटो, मोज शोख करो, जे कांई सुख जोगव्यु ते आपणुं बे; जे लोको मरजीमुजब मोज शोखादि करवानी मना करे ने ते तो फक्त बालकनी बीवडामणी सरखं बे. आवो अयोग्य-खोटो उपदेश करनारा अधर्मी प्रदेशी राजाने आ प्रमाणे वर्त्ततां केटलोक काल व्यतित थया पड़ी एक वखत तेणे पोताना चित्रसारथी नामना प्रधानने काईक दरबारना कार्य प्रसंगे कोसंबी नामे नगरमां मोकल्यो. __ श्री पार्श्वनाथ जगवानना शिष्य-महापुरुष चार (मति, श्रुत, अवधी, मनःपर्यव ) झानना धरणहार केसीकुमार गणधर श्रा वखते कोसंबी नगरीमा बीराजेला हता. नविक जीवने धर्मनी देशना देवामां अहोनिश तत्पर एवा ए केसीकुमार गणधर महाराज पर्षदा आगल धर्म प्रकाशता हता ते वखत प्रदेशी राजानोप्रधान चित्रसारथी सांजलवा श्राव्यो. गणधर महाराजनी देशना सांजलतांज हलुओकर्मी होवाथी चित्रसारथी प्रतिबोध पाम्यो, पढी तेणे पर्षदामाथी उज्या बाद बे हाथ जोडी विनय सहित गुरुमहाराजने विनती कीधी के, “हे खामी! श्वेताविका नगरीए पधारजो, थापना आगमनथी धर्मना उद्यमनो घणो लाज थशे." गणधर महाराजे तेने जणाव्यु के-"तमारो राजा तो पुष्ट बे.” चित्रसारथीए कह्यु के- " श्रापसाहेबना पधारवाथी कल्याण थशे.” गुरुए जणाव्यु के-“अवसरे जणाशे." या प्रमाणे गुरुमहाराज साथे प्रश्नोत्तर थया पडी चित्रसारथी तेमने वंदनादि करी त्यांची चाली नीकल्यो. कोसंबीनगरीमा
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