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________________ २५० सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥अथ प्रधान विषे॥ ॥ सकल व्यसन वारे स्वामितूं नक्तिधारे, स्वपरदित वधारे राज्यना काज सारे ॥ अनय नय विचारे क्षुता दूर वारे, निजसुत जिम धारे राज्य लक्ष्मीवधारे.३१ जावार्थः-प्रधान केवो होय ? तो के-जे सघलां व्यसनथी वेगलो रहे तथा पोताना स्वामी (राजा) नी जक्ति करे, वली पोतानुं तेमज परनुं हित वधारे अर्थात् जेम बन्नेनुं परस्पर हित वधे एवं कार्य करे अने राज्य- जे काम होय ते साधीले, अन्याय करतां विचारे, अर्थात् अन्याय न करे, अने कुप्रताने पूर वारे एटले खोटुं काम करवाथी वेगलो रहे, अने पोताना पुत्रना जेम धारीने राज्यलक्ष्मीनो वधारो करे. अर्थात् पिता जेम रात दीवस व्यापारादिक करी पोताना पुत्रने लदमीनो वधारो करी आपे तेम प्रधान अहोनिश राजकाजमां सावधान रही राज्यलमीनो वधारो करी आपे. वली जे पारकुं ध्यान पोताना चित्तमां धारीने प्रजानुं रखोपुं करे तेने प्रधान कहीये. ३१॥ एवा कोण थया ? तो के-अजय कुमारादिक थया ले ते अत्रे जाणवा माटे अजयकुमारनो संक्षिप्त प्रबंध लखीये बीये. ॥ प्रधान पद उपर अनयकुमार मंत्रीनो प्रबंध ॥ राजगृहि नगरने विषे राजकर्ता प्रसेनजित राजाए पोताना सो बेटामांथी राज्य करवाने योग्य कोण ? तेनी परिक्षा करी श्रेणिकने योग्य जाणीने तेनी कोई ईर्ष्या करी तेने पराजव न करे माटे तेने देशवट्टो देई पोताना राज्यनी हद बाहार रदेवानो हुकम कयों. श्रेणिक पितानी श्राझा मस्तके चढावी राजगृहीथी नीकली केटलेक दीवसे सोशंगाममां श्रावी धनावह नामे श्रेष्ठिना हाट आगल बेठो. एवामां धनावह शेठे श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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