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नाषान्तर सहित.
४७ अजयकुमारे तेनां आवां वचन सोनटयां तेथी मन साथे निश्चय कों के मारां चरित्र (मारी करेली युक्ति) ते समजी गयो अने हाथ पण न आव्यो अर्थात् एने चोर कही शकुं एवं बोलवानुं कां पण साधन मली व्युं नही.
वट अजयकुमार रोहिणीयाने उत्तरासण करी पगे लाग्या. त्यारे रोहिणीयाए कडं के स्वामी! तुमप्रत्ये कोनी बीक ने के मने पगे लागो डो? प्रधाने कयु के- राजानी बीक . रोहिणीयो कहेवा लाग्यो के, स्वामी! तमेज ज्यारे बीहीशो त्यारे मारी शी वलेह? ते वखते प्रधाने वचन श्राप्यु. पठी तेने तेडीने प्रधान राजा पासे श्राव्या. राजा बोल्यो के, ए रोहिसाने केम लाव्या डो? अजयकुमारे कयु के-महाराजाधिराज! तमे हुकम को हतो तेने हुं तेमी श्राव्यो बुं, ए तमारा मुजराने अर्थे श्राव्या डे माटे एमनो मुजरो यो अने मुजरो आपो तथा साबासी द्यो; केमके तमारी नगरी थने तमारा सरीखा सिंह समान राजा बतां तमारा मुखमांथी जक्षण लश् जाय डे अने ते ज पोते वली तमारे चरणे हालीचालीने आव्या , आप पराक्रमे करी पण आपणे पराक्रमे नहीं, ते माटे मुजरा योग्य . राजाए कह्यु जे साबास ले तुजने ! ते वखते रोहिणीयो उठीने प्रणाम करी बोल्यो के, हे महाराजाधिराज ! हुं तो तमारो खिजमतगार बुं, खानाजात , माटे जे हुकम करो ते मस्तके चढाववा हाजर बु. राजाए कडं के, तमने तो अमे शाह जाणता हता पण तमे तो मोटा पराक्रमवंत दीसो बो ! एम हसीने राजाए कडं जे, जार्ज अजयकुमार! तमे तमारे मांहोमांहे समजो. पड़ी ते बन्ने (अजयकुमार अने रोहिणीयो) त्यांथी उठी ए. कांते बेग. त्यां रोहिणीयाए पोतानो मूलथी मांडीने सर्व पराक्रमनो वृत्तांत कह्यो. त्यारे प्रधाने पुब्युं के, तमे देवतानां लक्षण
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