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________________ भाषान्तर सहित. कुलविषे ॥ ॥ ॥ सहज गुण वसे ज्यूं शंखमां श्वेतताई, अमृत मधुरताई चंद्रमां शीतलाई ॥ कुवलय सुरसाई इकुमां ज्यं मिठाई, कुल मणुजढकेरी सजावे जलाई ॥२७॥ जावार्थ जेम शंखमां उजलाशपणुं, अमृतमां मधुरपएं एटले मीठास साथै स्वादिष्टपणुं, चंद्रमामां शीतलपणुं, कमलमां नरमाशपणुं श्रने शेलडीमां मीठासपएं, ए तेना सहज गुणे करी अर्थात् तेना मूल खनावेज होय बे, तेम उत्तम कुलना माणसोमां स्वावेज जलमणसाईपणं होय बे, एटले कुलवान माएसो जला - सारा गुणवान होय बे ॥ २७ ॥ जिए घर वर विद्या जो हुवे तो न शद्धि, जिए घर य लाने तो न सौजन्य वृद्धि ॥ सुकुल जनम योगे ते त्रणे जो लहीजे, अजय कुमर ज्यूं तो जन्म साफल्य कीजे २० जावार्थ - जेने घणी विद्या होय तो तेने घेर लक्ष्मी न हाय, जेना घरने विषे विद्या अने लक्ष्मी ए बने होय तो तेने घेर कुटुंब परिवारनी वृद्धि न होय, सारा कुलना योगे ए त्रणे ( विद्या, लक्ष्मी ने कुटुंब परिवार ) जो मले तो अजयकु मारनीपेठे जन्म सफल थाय. एटले ए सघला योग अजयकुमारने मया ने एमना जन्मनुं सार्थक ययुं, तेम जे माणसने एत्रणे जोग उत्तम कुलसहित मले तो जन्मनी सफलता थाय. २० ॥ विवेकविषे ॥ श् हृदय घर विवेके प्राणि जो दीप वासे, सकल जव तपो तो मोद अंधार नाशे ॥ परम धरम वस्तु तत्व प्रत्यक्ष नासे, करम नरम पतंगा स्वांग तेता विध्वंसे ॥ २९ ॥ १४ Jain Educationa International १०५ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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