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नाषान्तर सदित.
काणां नथी पडतां, तो जीव, के जे थरूपी ले तेनां तो काणां पमेज केम ? न ज पडे. राजा बोल्यो के, जो एम ले तो एवं कोई प्रत्य६ प्रमाण श्राप बतावी शकशो? गुरुमहाराजे कयु के, हे राजन् ! सांजल:
जमीननी अंदर करेला गुप्तघरमा एटले नोयरामां कोर्शक मनुष्य रह्यो उतो ते नोयरानां कमाड, जाली श्रादि बिउ विगेरे तमाम बंध करीने तेमां ढोल, नगारां, नेरी, तुंगल, सरणार्थ, मादल विगेरे विविध प्रकारनां वाजिन वजाडे तो तेनो घोष जमीन उपर रहेला मनुष्यो सांजले , के नही ? तेमज अमुक अमुक वाजित्रनो श्रा शब्द डे एम पण स्पष्ट समजी शकाय , के नही ? राजाए जणाव्युं के, ए तो सांजली शकाय अने समजी पण शकाय बे. गुरुए जणाव्यु के, ते स्थानके बिज मात्र नहोतुं, बतां पण तेमां थयेला घोषनो शब्द संजलायो अने समजायो, ए उपरथी खात्री करी लेवी के, वाजित्रो तो रूपी तेनो शब्द संजलावामां विजन पड्यु तो अरूपी जीवाव्य सर्वव्यापी ले ते जीवन बिज केम प? न ज पडे. ईत्यादि दृष्टांतो देखाडवाथी राजानी संपूर्ण खात्री थई के 'जीव' . ए वात निःसंदेहपणे तेणे मान्य करी.
त्यारपती राजाए गुरुमहाराजने कह्यु के, 'जीव' बे एम मारी खात्री थई, पण तमे पुन्य अने पाप , एम जे कहो हो ए मारा मानवामां आवतुं नथी. ए वातनो मने संदेह , पाप अने पुन्य बेज नहीं. गुरुमहाराजे तेना उत्तरमा जणाव्युं के, पाप अने पुन्य ए बन्ने , तेनां फल प्रत्यद देखाय जे. जो तुं पुन्य पापर्नु फल नथी, एम कहीश तो एक सुखी अने एक छखी; एक हाथी उपर बेसीने जाय , एक पगपालो जाय बे; एक सुखपालमां बेसीने जाय , एक तेने उपामीने चाले
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