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________________ २४७ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग परिहरे एटले तेनो जे त्याग करे तेने धन्य , र्योधन राजाए मान परिहयुं नही अने अहंपद (मान) राख्युं तेथी तेना सर्व कुटुंबनो विनाश थयो. ५० ॥ मान करवाथी नाश पामनार पुर्योधननो प्रबंध ॥ पूर्वे पांच पांमव अने फुर्योधनादिक कुरु देशनुं राज्य करता हता. कपट करी जुवटामा हरावि र्योधने पांमवोने वनवास दीधो. ते वनवासनी प्रतिज्ञा पूर्ण करी पांमवो द्वारिकाये श्राव्या. कृष्णे तेमने श्रादर देई राख्या. पली कृष्णे फुर्योधनप्रत्ये कहेवराव्युं के, पांमवो प्रतिज्ञा पूर्ण करीने आव्या ने माटे तेमने जाग श्रापो. नहीं तो युद्ध करवाने सज था. फुर्योधने कुतने जणाव्युं जे-ए पांव ते कोण मात्र! अर्थात् ते शा लेखामां ? जो तेमने नाग लेवो होय तो कहेजे के युद्ध करवाने सज थई आवज्यो. इते छारिकामा श्रावी ते हकीकत निवेदन करतां तत्काल कृष्णने सायेलेई पांडवो हस्तीनापुरे गया. उर्योधन माने जर्यो थको पोताना नाई प्रमुख सैन्य खेई सामो आव्यो. मांदोमांहे दारूण युद्ध थयु. पांडवोए तेना जा सहित छर्योधनने हणी जय करी पोतार्नु राज्य लीधुं. श्रा प्रबंधथी सार ए ग्रहण करवानो ने जे-र्योधने मान कर्यु तो पोताना कुलनो नाश कर्यो. तेमज मानी (अनिमानी) पुरूष काई विचारता नथी अने अनिमानना पूरमां तणाई मरजी माफक आचरण करे ने तेथी पारकुं अने पोतानुं सर्वेनो विणसामनारो थाय . माटे सर्वे मनुष्ये माननो त्याग करवो. ५० ॥ अथ माया विषे ॥ नितुरपणु निवारी दीयडे देज धारी, परिदर बल माया जे असंतोषकारी ॥मयुर मधुर बोले तोदि विश्वास नाणे, अदिगलण प्रमाणे मायिने लोक जाणे ॥५१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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