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________________ नाषान्तर सहित. जय लेई तेना उपर फूल मुकीने रामचंद्रजीने देखाड्यो; अने कह्यु के, जुर्ज-तमे तो कहोडोने ! जे महारी सीता जेवी कोईये गुणवंती नथी. पण एतो नित्ये श्रावी रीते रावणनां पगलां श्रालेखी आलेखीने पूजे जे ! ते सांजली तथा रावणनां पगलां जोईने रामचंदजीने शंका उपनी. वली एकदा रामचंदजी पोते रात्रे नष्टचर्याये नगरमां नीकल्या हता. बारे बारे (घेरे घेर) जोता जाय अने त्यां जो कांई वात थती होय तोते सांजलता जायजे. ते फरता फरता घांचीना महोदामां आव्या. एवामा कोई एक घांचण कामने अर्थे बाहार गई हती, तेने घणी वेला थश् गया बतां ते घेर नहीं श्राव्याथी तेनो धणी घांची घर जीमीने बेगे हतो. त्यारपती घांचण श्रावी. तेणीए पोताना खामीने घांटो पाडी कर्वा जे, बार उघाडो. बारणां केम दीधा ? घांचीए कह्यु जे, “ तुं क्यां गई हती? तने आवडी ( आटली बधी) वार केम थर ? ते मने कहे. तुं तहारा मनमां एम जापती हशे जे न र मने शुं करनार ? पण ते हुँ नहीं ! ते तो रामचंजी एम करे. हुं कांई तेनी पेठे मूर्ख नथी, जे तुजने संग्रहुं. एतो मास लगी जे सीता रावणने घेर रही तेने देखी पेखीने एज रामचंद्रजी संग्रहे ! हमणां बाहार पमी रहे ! वाहाणुं वासे एटले तेनी तजवीज करीने पड़ी हुँ तने घरमां पेसवा देश.” घांचीनां श्रा सघलां वचनो रामचंद्रजीए सांनटयां, अने घेर श्राव्या. पनी सीता, सतीत्व जोवा सारू अने लोकापवाद पूर करवा माटे रामचंअजीए त्रणसें गज लांवी पोहोली खाई खोदावीने तेमां खेरना धगधगता अंगारा जरावी तेमध्ये सीताने खुखे पगे चाली जवाने कयु. श्रा धीरज करवा माटे सीताजी पोताना लव अने अंकुश नामना बे पुत्रने साथे लेई खाई पासे आव्या. लो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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