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नाषान्तर सदित. नावार्थः- परस्त्रीनी संगतथी जगतने विषे अपजसनो पमह वागे तथा लोकमांथी नार वकर जाय, लजा पामे, दोषी कुश्मन जागे, कुलमां पण कलंक लागे अने सजान माणस तेनाश्री विरागे एटले पूर रहेवा श्छ, माटे तुं एनो संग करीश नहीं, केमके परस्त्रीना रसने रागे करीअवगुणनी कोडि जागे अर्थात् परस्त्रीनो प्रसंग करवाथी अनेक अवगुण थाय . ६१ परतिय रसरागे नाश लंकेश पायो, परतिय रस त्यागे शील गंगेव गायो॥ पद जनक पुत्री विश्व विश्व विदीती, सुर नर मिलि सेवी शीलने जे धरती॥६॥
नावार्थः- परस्त्रीना रसने रागे करी लंकापति रावण नाश पाम्यो अर्थात् रामचंनी स्त्री सीता उपर मोहीत थई तेनुं हरण करी जवाथी रावणनां दस मस्तक रणने विषे रमवड्यां, अने परस्त्रीना विरमणथी गंगाना पुत्र गांगेयकुमारे ( नीष्मपिता ) के जेमणे बाल्यावस्थामांथीज शील पाव्यु तेथी जगत्नेविषे गवराणा एटले जशवाद पाम्या, वली सुपद राजानी पुत्री ते पांमवनी नार्या ौपदी तथा जनक राजानी पुत्री ते रामचंनी पनि सीता त्रण जगतने विषे प्रसिकिने पामी अने एवा शीलवंत प्राणीउनी देवता तथा मनुष्य सेवा करे . शीलगुणनुं म्होटुं महात्म्य . माटे परस्त्रीनो त्याग करवो अने शील पालवू. ६२
॥अथ परिग्रह विषे ॥ शशिउदय वधे ज्यूं सिंधु वेला नलेरी, धनकरि मन साए तेम वाधे घणेरी॥ उरित नगर सेरी तूं करे ए परेरी, ममकर अधिकरी प्रीति ए अर्थकेरी ॥६३ ॥ नावार्थः- चंजमाना उदयथी जेम समुजना प्राणीनी वेल
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