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सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग वधे, तेम मूर्गए परिग्रहनी ममता वधे, वली ए परिग्रहनी ममता ते नर्क गतिनी शेरी कहेतां वाट डे अर्थात् ए नर्के लेई जनारी बे, माटे ए परिग्रहनी अधिक प्रीति तुं न कर. ६३ मणुअ जनम दारे फुःखनी कोमि धारे, परिग्रद ममता ए स्वर्गनां सौख्य वारे ॥ अधिक धरणी लेवा धातकी खंड केररी, सुन्नुम कुगति पामी चक्रिराये घणेरी॥६४ ॥
जावार्थः- ए परिग्रह थकी पोतानो मनुष्यनव हारी जाय अने कोडी गमे पुःखनी परंपराने पामे, वली ए परिग्रहनी ममताथी देवलोकनां सुख पण खोई बेसे, कोनी परे ? तो केजेम सुजुम चक्रवर्तिये सुख खोयां अने कुगति पाम्यो तेनी पेठे थाय. माटे परिग्रहनो ममत्व करवो नही. ६३ । ॥ परिग्रहनी ममताथी नर्के जनार सुजुम चक्रवर्तिनो प्रबंध ॥
सुजुम चक्रवर्तिए उ खंड साध्या. पनी बीजा कोई चक्रवर्ति साधता नथी एवा धातकी खंडमांहेला उ खंम साधु तो हुं खरो ! एवी परिग्रह उपर ममता थवाथी तेणे धातकी खंडमां जवा माटे बे लाख जोजनना लवण समअमां चरमरत्न मूक्यु. तेमां सैन्यादि सर्व परिवार बेगे. ए वेला चरमरत्नना हजार देवता सेवक बे तेमांना एके विचार्यु जे आ ब खंम साधतां केटलांएक वर्ष वही गयां तो वली श्रा बीजा उ साधतां तो केटलाए वर्ष वीती जशे ? माटे गानोमानो हुं महारी देवीने मली आवं. एम धारीने एक देवता गयो. एम बीजो, एम त्रीजो. एवी रीते हजारे देवता. चरमरत्न मुकीने हीडता थया - चाल्या गया. एटले चरमरत्न ड्यु. हाथी घोमा सहित सर्व लश्करनो नाश थयो भने सुन्नुम चक्रवर्ति मरीने सातमी
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