Book Title: Shatpadi Bhashantar
Author(s): Mahendrasinhsuri
Publisher: Ravji Devraj Shravak
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20282580 SSS शतपदी आषांतर. एटले अंचळगच्छनायक श्रीमहेंद्रसिंहमूरि विरचित वृहत्शतपदी ग्रंथर्नु साररूप भाषांतर. टेररि (श्री मेरुतुंगसूरिविरचित लघुशतपदीनी उपयोगी बिना तथा पहावळी साथे। रची प्रसिद्ध करनार, श्रावक रवजी देवरान. (कच्छ-कोडायवाला.) अमदावाद. "विजय प्रवर्तक" प्रेसमा छाप्यु. RYSEPSITE संवत १९५१. सन १८९५. किम्मत रुपीयो दोह-पोष्टेज जूदुं. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - vvvvvvvvvvvvvvvvvvvv - - ~~~~~~~~~~~ v ~~~ ~~~ ~ आ पुस्तक कायदा मुजब रजीष्टर करावी कर्ताए सर्व हक स्वाधीन राख्या छे. agananaAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAJapan AAAAAAAAAAAAAAAAAN Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्पण पत्रिका. अंचळगच्छदीपक, सुविहितमार्ग प्रकाशक, मुनिराज श्री गौतमसागरजी. महाराज, आप साहेब आवा विषमकाळमां क्रियाउद्धार करी सुविहित पक्षने आदरी अंचळगच्छने दीपाववा जे उत्तम उपदेश करो छो, तथा सदरहु गच्छनी लोपायली उत्तम पद्धतिओने पाछी प्रवृत्त कराववा जे यत्न करो छो, तेथी आनंदित थइ, आ उत्तम ग्रंथ, के जेमां गच्छनी प्राचीन पद्धति विस्ता रथी वर्णवामां आवेली छे, ते ग्रंथ आपना हस्तकमळमां अर्पण करी पोताने कृता र्थ मानुं छं. हुं हुं आपनो किंकर, भाषांतर कर्त्ता - श्रावक रवजी देवराज. Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. · " आगमवादनेज बहुमत राखनुं " एवा उत्तम उद्देशथी श्री अंचळगच्छनी स्थापना थइ छे अने तेथीज ते "विधिपक्षगच्छ" तरीके ओलखाय छे. ए गच्छनी सामाचारी आगमानुसारिज छे एवं सिद्ध करवा सं. १२६३ मां श्री धर्मघोषसूरिए प्राकृत भा - वामां शतपदी नामे ग्रंथ रच्यो. पण ते बहु कठण होवाथी सं. १२९४ मां श्री महेंद्रसिंहरिए प्राकृत शतपदी ऊपरथी केटलाक धारा सुधारा साथै संस्कृतभाषायां आ वृहत् शतपदी नामे ग्रंथ रच्यो छे. एमां कुल ११७ विचारो छे. अंचळगच्छनी सामाचारी जाणवा माटे आ ग्रंथ संपूर्ण उपयोगी छे. पण आजकाल संस्कृतभाषानो प्रचार ओछो होवाथी तेनो बधा जणो लाभ लइ शकता नथी. तेथीज हमणा हमणा गच्छनी शुद्ध आचरणाओ दिवसे दिवसे लोपाइ जइने गच्छांतरनी आचरणाओ के जे अंचळगच्छना हिशाबे आगमथी विपरीत रहेली छे ते दाखल थती चाली छे. मांटे तेवी आचरणाओ अटकावीने गच्छनी प्रथमनी शुद्ध आचरणाओ चालु कराववा सारुं सर्व लोकोने सीधी समज पडे एवी ढबमां आ वृहत् शतपदीनुं भाषांतर करी छपाववामां आवे तो बहु लाभ थाय. एम धारीने अंचळगच्छश्रृंगार सुविहितक्रियाउद्धारक संविग्नपाक्षिक मुनिराज श्री गौतमसागरजी महाराजनी प्रबळ प्रेरणाथी आ भाषांतर रचवामां आव्युं छे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) प्रस्ताबना. आ भाषांतर सर्वे वांचनाराओने तरतमां अने सरळ रीते समजवामां आवे ते सारुं शतपदीना शब्दे शब्द लइ नहि करतां कामां सारांश लइने सरळ रीते रचवामां आव्युं छे. वळी प्रांतां श्री मेरुतुंगसूरिविरचित लघुशतपदीनी उपयोit बिना तथा अंचळगच्छनी पट्टावळी पण आपवामां आवी छे. आ पुस्तकने छपावी प्रसिद्ध करवाना काममां कच्छ-दुर्गापुर निवासी सुश्रावक पासुभाइ अने आसुभाई वाघजी, तथा कच्छ - नाराणपुर निवासी सुश्रावक ठाकरसींभाइ तथा कच्छकोडा वास्तव्य सुश्रावक लाधाभाइ वगेराए सारं उत्तेजन आच्युं छे. माटे तेमनो आ जगोए उपकार मानवामां आवे छे. वळी विजयमान अंचलगच्छाचार्य पूज्य भट्टारक श्रीमान् जिनेंद्रसागरसूरि महाराजे पण आवा उत्तम ग्रंथनी योग्य कदर करी संपूर्ण आश्रय आप्यो छे तेथी तेमनो पण उपकार मानवामां आवे छे. हवे वाचक वर्ग मते मारी ए वीनति छे के आ भाषांतर सुधारवामां मे माराथी बनतो प्रयास लेवामां खामी राखी नथी, छतां नजरदोषथी के मतिभ्रमथी क्यां पण भूलचूक जणाय तो तेमणे ते सुधारी वांच, अने मने ते विषे सूचना आपवा कृपा करवी. भाषांतर कर्ता. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदीनं सारांशप्रतिमा संबंधी विचारो. (१) प्रतिमा सपरिकर तथा अपरिकर बन्ने वंदाय ( १ )* (२) प्रतिमामां वस्त्रांचळ कराव. (२) (३) प्रतिमानी प्रतिष्टा यतिए न करवी. (३) (४) दीपपूजा, फळ तथा बीजपूजा, तथा बळिपूजा न करवी. (४–६–८) (५) तंडुलपूजा, तथा पत्रपूजा थइ शके छे. (५- १) (६) पार्श्वनाथनी सात फण अने सुपार्श्वनाथनी पांच फण कराववी. (४३-४४ ) (७) पूजा उत्सर्गे त्रिसंध्याएज करवी, पण अपवादे आगल पा छल पाडी थइ शके. (६४) (८) श्रावके चैत्यवंदन देवता माफकज करखुं. (९२) (९) राते पूजा नहि करवी. (९७) (१०) निश्राकृत चैत्य पण वांद. (९८) श्रावकनी क्रिया संबंधी विचारो. (१) श्रावके वस्त्रांचळथीज क्रिया करवी. (२०) (२) थापनाचार्य नहि थापवो. (२१) (३) मुनिने वदता एक खमासमण देनुं पण चाले. (२२) (४) मिथ्यात्व त्रिविधे त्रिविधे परिहरनुं (३०-३१ ) (५) पौषध पर्वदिनेज कर. (३६) * आ आंकडा विचारांना छे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 6 ) शतपदीनुं सारांश. (६) सामायिक बेटाज करवुं ने बे घडीनुंज कर. (३९) (७) श्रावक आवश्यकनियुक्ति, चूर्णि तथा सूत्रोना लूटक आलावा भणी शके. (८७-८८) (८) श्रावक प्रायश्चित्त लइ शके छे. (९३) (९) उपधान नहि वहेवा, तथा माळारोपण न करावर्त्री. (९६) (१०) षडावश्यक, चूर्णिनी विधिए कर. (११० - १११) (११) सामान्य साधुने पण वांदणा दइ शकाय . ( ११४) (१२) स्त्रीओए मुनिने ऊभे ऊभेज वांद (११६) पर्व बाबतना विचारो. (१) कल्याणिक नहि मानवा. (३७-३८) (२) आसो तथा चैत्रनी अठाइओ न मानवी. (११७) (३) संवछरी पडिकमणुं आषाढी पूनमथी पचाशमे दहाडेज करवुं. ८१ (४) अधिकमास पौष के आषाढज थाय. (८२) (५) अधिकमासमां वीसापजूसण एटले श्रावण सुदि ५ नी पर्युषणा करवी. (८३) (६) लौकिक ठीपणुं नहि मानतुं. ( ८४ ). (७) चोमासुं तथा पाखी पूनमनाज करवा (११२ - ११३) साधुना आचार संबंधी विचारो ( सामान्य कृत्यो. ) (१) दांडो वंशनो तेम बीजा लाकडानो पण थाय. ( ९ ) (२) द्रव्यस्तव त्रिविधे त्रिविधे नहि कर. (१३) (३) पर्वदिनेन चैत्य वांदवा. (१४) (४) चैस वदतां त्रण थुइज कहेवी. कृत्रिम थुइ न कहेवी. (१५-१६) Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदीनुं सारांश. (६) साध्वी ओछामा ओछी त्रण विचरे. (२७) (६) ऋतुबद्धकाळे पीठफळक नहि वापरवा. (३५) (७) साधुना उपाश्रये गीतनृत्य न कल्पे. (४०) (८) साधुए कमाडवाळी वसतिमांज रहे. (४६) (९) मोदक वोरतां भांगवानी जरुर नथी. (६२) (१०) साध्वीने दीक्षा देतां आचार्य लोच न करवो. (६३) (११) हाथ पग न धोवा. (६८-६९) (१२) रजोहरण मोपती वेगळे न मूकवा तथा रजोहरणपर बेशर्बु नहि. (७०) (१३) भिक्षादिकनो उपयोग मिक्षार्थ जती वेलाज करवो. (७२) (१४) साधु श्रावकने योग्यसूत्र भणावी शके छे. (८५) (आपवादिक कृत्यो.) १ पुस्तक तथा तेना उपकरण राखी शकाय छे. १०-११-१२ २ पात्राने खंजन लेपन मळे तो बीजो लेप पण आपी शकाय.१७ ३ स्थिर के चळ अवष्टंभ पण लइ शकाय छे. १८-१९ ४ वृषभकल्पनावाळी वसति नमळे तो बीजीमां पण रही शकाय.२३ ५ साधु वरसाद वरसतां पण भोजनादि करी शके छे. २५ ६ सूत्रार्थपोरसीमां पण धर्मदेशना देइ शकाय. (२८) ७ कारणे सूत्रार्थपोरसीनी उलटपालट पण करी शकाय. २९ ८ मात्रक, कडाइ, टोप, नंदीपात्र, घडा, नेण, सूइ वगेरा उ पयोगी उपकरण पण राखी शकाय. २६-३२-५५ ९ चोलपट्टो पहेराय छे तथा तेनुं प्रांत गोपवाय छे. ३३-३४ . १० कारणे मासकल्पनी वधगट पण करी शकय छे. ४१ ११ बीजा पाणीथी पण वस्त्र धोवाय छे अने नेवना पाणीथी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शतपदी सारांश. पण धोवाय छे. ४५ १२ कारणे कमाड ढांकवा के ऊघाडवा पण कल्पे. ४७-४८ १३ कारणे पासत्यादिक साथे पण बोलवू चालवू तथा तेमने कां दवा कल्पे. ४९-५० १४ कारणे पासत्यादिकथी भरेला क्षेत्रमा पण प्रवेश करवोकल्पे.५१ २५ तुंबडा- कंठ पण शीवी शकाप छे. तथा त्रपणीमां दोरो रा खी शकाय छे. ५२-५३ १६ वसति सांकडी होय तो, खीटीए पण पात्राटंगाइ शकाय छे.५४ १७ वर्षाकाळे नित्य लोच न थाय तो पजूसणे तो जरुरज करवू.५६ १८ कारणे औषधादिकनी संनिधि पण करी शकाय छे. ५९ १९ लेख संदेशा मोकली शकाय छे. ६१ २० कारणे स्निग्ध मधुर आहार करवो पण कल्पे छे. ६५ २१ योग मळे तो नैऋतमांज थंडिले जq. पण योग न होय तो जूदी वात छे. ६७ २२ रजोहरणएकांगिक न मळे तो अनेकांगिक पण राखी शकाय.७० २३ तुंबाना पात्र शिवाय बीजा पात्र अलेपित पण वापरीशकाय.७५ २४ भिक्षा माटे झोली बांधी शकाय छे. ७६ २५ दसीवाळु कपडं पहेर न कल्पे, पण लइ शकाय खलं. ७७ २६ कारणे साध्वीओने पण वाचना आपी शकाय. ७९ २७ अपवादे प्रावरण ओढवू पण कल्पे. ८० २८ श्रावकना घरेथी पण भिक्षा लइ शकाय तथा बीजा कुलो माथी पण लइ शकाय. ८९-९० २९ अपवादपदे फळ पण वोरी शकाय. ९४-९५ (नीचेनी बाबतोमा एकांत नथी.) ३० त्रीजा पोरेज थंडिले ज, भिक्षा करवी, तथा विहार करवो Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातपदीनुं सारांश. एम पण एकांत नथी. २४-५७-६० ३१ विमय नज कल्पे एम एकांत नथी. ४२ ३२ गोचरीथी आगल पाणी नज वोर, एम पण एकांत नथी.५८ ३३ गोचरीए जतां बधा उपकरण साथेज लेवा एम पण एकांत नथी. ७१ ३४ साधुए दिवसमा सामान्यपणे एकवार जमवं. पण त्यां पण एकांत नथी. ७३ ३५ खरडेला हायवाला पासेथीज वोरवु एम पण एकांत नथी. ७४ ३६ साधुसाध्वीओएकक्षेत्रे सर्वथा नहि रहे एम पण एकांत नथी.७८ ३७ एक घरमा एकज संघाडाए वोर, एम पण एकांत नथी ९१ Here .. साधु श्रावक बन्नेने लागु पडता विचारो १ पर्वदिने समर्थ छतां उक्त तप न करे तो प्रायश्चित्त लागे, असमर्थने न लागे. ६६ २ नमात्थुणामां "दीवो, ताणं, सरण, गइ, पइठा, नमोजिणाणं, जियभयाणं, तथा जेय अइया सिद्धा" ए पाठ नहि कहेवो.९९ ३ नवकार मंत्रमां "होइमंगलं कहेवू. १०० ४ बीजुं वांदणुं पादपतितज देवू. ११५ । परचूरण विचारो. १ जिनाज्ञा प्रमाण करवी. १०१ २ आचरणाओ विचित्र छे. १०२ ३ अशठाचरणाना लक्षण तथा दृष्टांत. १०३ ४ हरिभद्रसूरि तथा अभयदेवमूरिनी आचरणा. १०४ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) शतपदीनुं सारांश. ५ मुनिचंद्रमूरि तथा देवसूरिनी आचरणा. १०५ ६ उपदेशमाळानी शिक्षाओ. १०६ ७ खरतरोनी आचरणाओ. १०७ ८ वडगच्छ तथा स्वगच्छनी उत्पत्ति. १०८ ९ दिगंबरो साथ चर्चा. १०९ lege लघुशतपदीनो साराश. १ शतरभेदी पूजाज करवी. ९ २ आरती मंगळदीवा न करवा. १२ ३ प्रतिमाना कंठथी माला लइ श्रावकोए नहि पहेरची. १३ ४ साधुए पडिकमणामां चैत्यवंदन तथा नित्ये क्षेत्रदेवतानी थु इओ नहि कहेवी. १९ ५ पंचपर्वी नहि पण चौपर्वी मानवी. ३५ ६ औदायक तिथि न लेवी. ३६ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : . G : : शतपदीना विचारोनी अनुक्रमणिका. विचार. पृष्टांक. मंगळाचरण तथा उपोद्घात. ... ... ... ... १ १ प्रतिमा सपरिकर तथा अपरिकर बन्ने वांदी शकाय .. २ २ प्रतिमामां वस्त्रांचळ करावq वाजबीज छे. ... ३ प्रतिमानी प्रतिष्टा यतिए नहि पण श्रावके करवी. ४ प्रदीप पूजा नहि करवी. ... ... ... ... ... ५ तंडुलवडे पूजा थइ शके छे.... ... ... ... ... ६ फळ तथा बीजवडे पूजा नहि करवी. ७ पत्रपूजा थइ शके छे. ... ८ बळि नहि चडाववी.... ... . ९ साधुने वंशनोज दांडो कल्पे एवो नियम नथी. बीजा लाकडा, पण कल्पे.... ... ... ... ... ... ११ १० साधुने पुस्तक साथ दोत, लेखण, पानामां नाखवानुं दोरु तथा खीखें, अने पोजणी पण राखवा कल्पे तथा श्रावकने पुष्पादिकथी पुस्तकपूजा करवी पण घटे छे. " ११ साधु अपवादपदे पुस्तक राखी शके छे. ... ... १२ साधु पुस्तक साथ टीपणी, कवडी, पाटलीने ठवणी प ण राखी शके छे. ... ... ... ... १३ साधुओए द्रव्यस्तव त्रिविध त्रिविधे नहि कर. ... १४ साधुओए पर्वना दिनेज चैसमां जq. ... ... ... १५ साधुओए त्रण थुइवडेज चैत्यवंदन करवू. पण इरिया___ वही, के नमोत्थुणा नहि कहेवा. ... ... ... १४ १६ संसार दावानल वगेरा कृत्रिम थुइयो नहि कहेवी. ... , १७ साधु पात्राने खंजनलेप नहि मळतां बीजा लेप पण . आपी शके छे... ... ... ... ... ... ... Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टांक. ( १४ ) अनुक्रमणिका. . विचार. . १८ साधु अपवादे स्थिर अवष्टंभ लइ शके छे. ... ... " २९ साधु अपवादे चळ अवष्टंभ पण राखी शके छे. ... १६ २० श्रावके वस्त्रांचळथीज धर्मक्रिया करवी. मोपती नहि राखवी.,, २१ श्रावके स्थापनाचार्य नाह थापवो. ... ... ... २६ २२ श्रावक मुनिने एक खमासमणे पण वांदी शके छे. ... ३० २३ साधुए उत्सर्गे वृषभ कल्पनाएज वसति लेवी.... ... ३२ २४ साधुएत्रीजा पहारेज थंडिले जq एवं कांइ एकांत नथी. ३३ २५ साधु वरसाद वरसतो पण भोजन वगेरा करी शके छे. " २६ साधुए आचार्यादिक माटे हमेशां अने पोताना माटे फक्त वर्षाकाळमांज मात्रक (माटुं) नामे वासण राखq. ३४ २७ साध्वीओ ओछामा ओछी अणज विचरी शके. ... " २८ साधु कारण जाणी सूत्रार्थ पोरसीमां पण धर्मदेशना करी शके. ... ... ... ... ... ... ... ३८ २९ साधु कारणवशे सूत्रार्थ पोरसीमां उलटपालट पण करी शके.३९ ३० श्रावके मिथ्यात्व त्रिविधे त्रिविधे परिहार करवू. ... ४० ३१ श्रावकने मिथ्याष्टिओ साथे वसतां पण मिथ्यात्वनी अनुमति न लागें. ... ... ... ... ... ... ४५ ३२ साधुए कारणे कडाइ, टोप, नंदिपात्र, नेण, सूइ तथा : कातर वगेरा औपग्रहिक उपकरण पण राखवा. ... ४७ ३३ साधुने लज्जाना कारणे चोलपट्टो पहेरवो कह्यो छे. ... ४९ ३४ साधु कारणे चलोगनुं प्रांत पण गोपवी शके छे. ... ५० ३५ साधुए ऋतुबद्ध काळमां पीठ फळकादि नहि वापरवा. ३६ श्रावके पौषध पर्वदिनेज करवं. ... ... ... ... ३७ श्रावके कल्याणिकमां पण पौषध नहि कर.... .... ३८ कल्याणिक हमेश पाळवा शास्त्रमा नथी कहा. .... " Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. (१५) विचार. पटांक. ३९ श्रावके सामायिक मात्र बे टाणेज अने बे घडीज क. र वधु नहि करवू. .... .... .... .... .... ६० ४० साधुना उपाश्रयमां गीत नृत्य नहि कल्पे. .... .... ६१ ४१ साधुने कारणवशे मासकल्पथी वधुगदु रहे पण कल्पे. ६३ ४२ साधुने विगय नज कल्पे एम एकांत नथी. .... .... ६५ ४३ पार्श्वनाथनी प्रतिमा सातफणवाळी करवी. .... .. ४४ सुपार्श्वनाथनी प्रतिमा पांचफणवाळी करवी. ४५ साधु फक्त नेवमा पाणीथीज वस्त्र धोवे एम नथी. बीजा पाणीथी पण वस्त्र धोवा कहेलं छ. ... ... ... " ४६ स्थविरकल्पि साधुए कमाडवाली वसतिमांज रहेQ.... ६८ ४७ साधुने कारणे कमाड ढांकवा तथा आगळी देवी पण कल्पे. ६९ ४८ साधुने गोचरीए फरतां कारणे कमाड, पाटिका, के आ गळी ऊघाडवी पण कल्पे.... ... ... ... ... " ४९ पासत्यादिक साथे उत्सर्गे आलापसंलाप करवो नहि, पण अपवादे करवो पण कल्पे. ... ... ... ... ७० ५० पासत्यादिकने उत्सर्गे वांदवा नाहे पण कारणे वांदवा. पण कल्पे. ... ... ... ... ... ... ... ७१ ५१ पासत्थादिकथी व्याप्त क्षेत्रमा मुनिने उत्सर्गे प्रवेश कर वो न कल्पे पण अपवादे कल्पे. ... ... ... ... ७२ ५२ साधुने तुंबडामा कंठशीवतां बाध नथी.... .... ५३ साधुने त्रपणीमा दोरो बांधवो पण कल्पे. ... ... ५४ साधुए पात्रा संथारा पासे राखवा पण वसति सांकडी होय तो खीटीए पण टांगी शकाय. ... ... ... ७४ ५५ साधुए कारणे घडा वगेरा पण लेवा. ... .. ५६ स्थविरकल्पिए वर्षाकाळमां निस लोच करवो. पण तेम Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) अनुक्रमणिका. विचार. : न थाय तोए पजूसणनो जरुर लोच करवो. अने शेष काळे चच्चार मासे लोच करवो. ... ... ... ... ७५ ५७ साधुए त्रीजा पहोरमांज भिक्षा करवी एम एकांत थइ शके नहि. ... ... ... ... ... ५८ साधुए गोचरीथी आगल पाणी नज लावq एम एकांत न .... ... ... ... ... ... ५९ साधुने औषधादिक सन्निधि राखवा उत्सर्गे न कारणे कल्पे पण खरा. ... ... ... ६० विहार बीजेज पहोरे करवो ए नियम जिनकल्पि माटेज ' छ, स्थविरकल्पि माटे नथी. ... ... ... ... ... ... ६१ साधु लेख संदेशा मोकली शके. ... ... ... ... ६२ साधुए मोदक वगेरा वोरतां भांगवा जोवानी जरुर जथी. " ६३ साध्वीने दीक्षा देता आचार्ये लोच न करवो.... ... ६४ उत्सर्गे त्रिसंध्याएज पूजा करवी पण अपवाद आगल . पाछल पण थइ शके. ... ... ... ... ... ८१ ६५ साधुने कारणे स्निग्धमधुर आहार पण करवो कल्पे.... " ६६ पर्वदिवसे समर्थ छतां भांखेल तप न करे तो तेने प्राय श्चित्त लागे बाकी असमर्थने प्रायश्चित्त नहि लागे.... ८२ ६७ साधुए योग मळे तो नैऋतकोणमांज थंडिले जq. ... ६८ साधुए हाथ पग धोवा नहि. ... ... ... ... ६९ साधुए वर्षादमा पगे लागतुं कादव पादलेखनिकावडे ऊतारवं. पण धोवू नहि. ... ... ... ... ... ८६ ७० साधुए रजोहरण उत्सर्गे एकांगिकज राखवू पण अप वादे अनेकांगिक पण राखq, रजोहरण मोपती तथा पादपोंछन वेगलां नहि मूकवां, रजोहरण एक हाथर्नु Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. ( १७ ) पृष्टांक. करवुं रजोहरणनी दसीओ जाडी नहि करवी, रजोहरण दंडना त्रीजा भाग ऊपर बांध, दंडमां खीली के दसीओनो बंध न पाडवो, रजोहरण ऊपर बेशवुं नहि, रजोहरण जमणे पडखेज राखकुं, तथा दसीओ बार आंगलनीज करवी.... ७१ साधुए गोचरी वगेरा कामे बाहेर नीकलतां बधा उपकरण साथेज लेवा एवं पण कंइ एकांत नथी. ७२ साधु भिक्षादिकनो उपयोग भिक्षादि अर्थे जती वे ... लाज करवो. ७३ साधुने सामान्यपणे एकवारज भोजन करवुं कल्पे, पण ... ... ... त्यां पण एकांत नथी. ७४ साधुए खरडेला हाथवाळा पासेथीज भिक्षा लेवी, एवो पण नियम नथी. ७५ तुंबानं पात्र अलेपित न वापरखुं. बीजा पात्रा विषे नियम नथी.... ... ७६ भिक्षा माटे झोली बांधवी शास्त्रसिद्ध छे... ७७ साधुने दसीवाळु कपडुं पहेतुं न कल्पे, बाकी लेवा बाबत एकांत निषेध नथी. ७८ साधु तथा साध्वीओ एक क्षेत्रमां सर्वथा नहि रहे एवो एकांत नथी.... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ८६ ... ૮૦ 46 "" ९३ ७९ साधु अपवादे साध्वीओने पण वाचना आपी शके. ९४ ८० यतिने उत्सर्गे प्रावरण न कल्पे, अपवादे कल्पे पण खरो. ९७ ८१ संवछरी पाडेकमणुं वगेरे पर्युषणनी क्रियाओ आषाढी पूनमे न करी शकाय. किंतु तेथी पचाशमे दहाडेज करवी. ९८ ८२ अधिकमास पौषं के आपाढज थाय. अने अधिक मास ९१ ९२ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८) अनुक्रमणिका. पृष्टांक. Je. आवे ते वेला वीसा पजूसणा करवी. ... ... ...१०० ८३ अधिकमास थतां संवछरीपडिकमणुं श्रावण मुदि पां चमेज करवू. ... ... ... ... ... ... ...१०१ ८४ लौकिक टीपणुं नहि मानवु.... ... ... ... ...१०२ ८५ साधु श्रावकने छजीवणी अध्ययन सूधी उत्सर्ग मार्गेज शीखावी शके छे. ... ... ... ... ... ...१०४ ८६ श्रावके आठ प्रवचन माताना ज्ञान माटे उत्तराध्ययन .. प्रवचनमात्र अध्ययन शीखतां कंइ बाध नथी.... ...१०७ ८ श्रावकने आवश्यकनियुक्ति तथा सिद्धांतना छूटक आ. . लावा शीखवामां कंइ बाध नथी... ... ... ... " ८८ श्रावकने आवश्यकचूर्णि वगेरानो अनुयोग आपी श- ... - काय छ. ... ... ... ... ... ... ....१०९ ८९ साधु अजाण्या घरेथीज वहोरे एवं एकांत नथी. तेथी ____ श्रावकना घरेथी पण भिक्षा लइ शकाय. ... ...११० ९० साधु श्रावकना घरो उपरांत बीजा कुलोथी पण भिक्षा । लइ शके छे. ... ... ... .... ... ... ...१११ ९१ एक घरमा एकज संघाडाए वहोर, ए नियम पण ए____ कांते पाडी शकाय नहि. .. ... ... ... ...११४ ९२ श्रावकोए देवताना माफक काव्यो अने नमोत्थुणावडे. २ ज़ चैत्यवंदन कर.... ... ... ... ... ...११५ ९३ श्रावकोने प्रायश्चित्त आपवा मूत्रसिद्धज छे. ... ...११६ ९४ साधुने फळ वोरवानी उत्सर्गे निषेध छ पण अपवादे निषेध नथी.... ... ... ... ... ... ...११७ ९५ साधुए अपवादे फळ वोरवानी शास्त्रमा अमुक विधि पण बतावी छ. .......... ........ ... ...२१९ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. ( १९) पृष्टांक. ९६ श्रावकोने उपधान नहि बहेरावबा.तथा माळारोपण नाहि करावयु. ... ... ... ... ... ... ...१२ ९७ राते पूजा नहि करवी. ... ... ..... ... ...१२७ ९८ निश्राकृत चैसमां पण वांदवा जg. ... ... ...१२८ ९९ शकस्तवमा “दीवो, ताणं, मरण, गइ, पइहा." तथा "नमोजिणाणं, जियभयाणं" तथा "जेय अईयासिद्धा" ए पाठ नहि बोलवा. ... ... ... .......१२८ १०० नोंकारमंत्रनी चूलिकामां “होइमंगळ" कहे... ...१३१ परचूरण विचारो. . १०१ जिनाज्ञाज प्रमाण करवी. .... ... ... ...१३१ · १०२ अशठाचरणा प्रमाणज छे. पण ते कोइ विशेष आ चरणाओज जाणवी. ... ... ... ... ...१३६ १०३ आजकाल आचरणाओ विचित्र छे. ... ... ...१३७ १०४ हरिभद्रसूरि तथा अभयदेवमूरिनी आचरणा. १४२ १०५ मुनिचंद्रसूरि तथा देवमूरिनी आचरणा. १०६ उपदेशमाळानी केटलीक शीखामणो.... १०७ खरतरोनी आचरणा. ... ... ૧૪૮ १०८ वडगच्छने अंचळगच्छनी उत्पत्ति. १०९ दिगंबरो विषे विचार. ... ... ... "...१५६ (२) अंगी कराववी वाजबीज छे. ... ... ... " (२) मूर्तिनो आकार जेम मनोहर लागे तेम करवो. १५७ (३) बलि नहि चडावधी. ... ... ... ... " (४) कस्तूरी वगेराने जीवांग गणी अपवित्र न गणवू. ,, (५) धर्मोपकरण राखतां बाध नथी.... ... ...१५९ १४४ ...१५४ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) अनुक्रमणिका. (६) पात्र रखवाना फायदा. ( 9 ) आजकाळ करपाशी थतां दोष लागे छे. (८) वस्त्र राखवा शास्त्रसिद्ध छे... (९) जिनकल्पीथी विरुद्ध छतां जिनकल्पी नाम घरा व अयुक्त छे... (१०) जिनकल्पिनी क्रिया... (११) दिगंबरो अर्वाचीन छे. (१२) स्त्री पण मुक्ति पामी शके.... ... "" ...१६७ (१३) अणगळ पाणी वापरनारना घरेथी पण मुनि भिक्षा करी शके. (१४) अपवित्रता के आभडछट लोकव्यवहारेज लेखवी. ११० चूर्णिमां लखेल सामायिक तथा षडावश्यकनी विधि. १७० "" १११ चूर्णिना पाठनो अर्थ... ११२ चोमासुं तथा पांखी पूनमनाज करवा ... ११३ चोमासा बाबत शंका समाधान ... ११४ सामान्य साधुने पण वांदणा दइ शकाय. ११५ बीजुं वांदणुं पादपतितज देवु. ११६ स्त्रीओए ऊभे ऊभेज वांद . ११७ आसो तथा चैत्रनी अठाइयो नहि मानवी. ग्रंथ बनवानो काळ, प्रार्थना, तथा ग्रंथमान ***04 लघुशतपदीनी उपयोगी बिना. पट्टावळी. उपयोगि इतिहास. ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... *** 06. पृष्टांक. ...१६१ ... ... " ...१६२ ... १६४ ...१६५ .... १६६ ...१७२ ... १७९ ...१८३ ....१८५ ...१८७ ... १८८ ...१८९ ...१९० ..१९३ ..२१९ ...२२४ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महेंद्रसिंहसूरि विरचित शतपदी ग्रंथतुं साररूप भाषांतर. मंगळाचरण, त्रण भुवनरूपी घरमां दीपक समान, कल्याणना निधि, सं. सारसमुद्रमां द्वीप समान, संशयरूप अंधकार हरवामां सूर्य समान श्रीमान् वीरजिन जयवंत रहो. उपोद्घात. कोइ एक सूरिए मनमां गर्व धरी सो पूर्वपक्ष ऊभा की. तेना श्री धर्मघोष मूरिए बहुधा सिद्धांतोना पुरावाथीज, अने क्यांक घटती युक्तिओ, तथा सिद्धांतानुसारि प्रकरणोना पुरावा आपी उत्तरो वाळ्यां छे. ए उत्तरो तथा बीजा थोडाक विचारो मळी इहां एकशोसत्तर विचार अनुक्रमे लखवामां आवशे. ए विचारोमांना ओगणपचाशमा तथा ओगणसाठमा आखा विचार अने त्रेवीशमा तथा पंचाणुमा विचारनो केटलोक भाग अगीतार्थने नहि जणायवो. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार १ लो. प्रश्न: - परिकर सहित प्रतिमाज वांदवी के केम ? उत्तर: - परिकर सहित कोइ प्रतिमा करावे तो ते वाजबीज छे. पण वांदवा पेढे तो सपरिकर तथा अपरिकर बन्ने प्रतिमा aiदवा योग्य छे. ( २ ) अवांतर प्रश्नः - जो सामान्यपणे अरिहंतनी प्रतिमा छे एम जाणी बधी प्रतिमाओ वांदवी एम कहो छो तो दिगंबरोनी म तिमा केम नथी वांदता ? उत्तर:- टीकामा बोटिक एटले दिगंबर परिगृहीत प्रतिमाने अन्यतीर्थिक परिगृहीतमांज गणी छे माटे नथी वांदता. - ( यादी ) वळी पंचतीर्थी तथा चोवीसवट्टां तो चैत्यवासियोज कराव्यां छे अने करावे छे. DO विचार २ जो. प्रश्नः - वस्त्रांचल एटले वज्रकछोटावाळी प्रतिमाओ सिद्धां - तानुसारी छे के केम ? तेमज वस्त्रांचल दिगंबरोना विवाद पछी चाल्युं छे के केम ? उत्तरः- दिगंबरोथी अगाउ पण वस्त्रांचल देखाय छे. केमके भरूच, नंदससमनगर, श्रीमाळ, साचोर, जंबुसर, तथा कासद are ठेकाणे दिगंबरोथी अगाउनी प्रतिमाओमां पण वस्त्रांचल छे तेमज वायडमां मुनिसुव्रतस्वामिनी अत्यंत चिरंतन जीवंतस्वामिनी प्रतिमा छे तेमां पण वनांचल छे. अवांतर प्रश्नः - सारे गिरनारनी प्रतिमामां वखांचल केम नथी ? Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ३ ) उत्तरः- अत्यंत प्राचीन अतिशयवंत प्रतिमाओनी बात क रवानी जरूर नथी. कारण के तेमां तो श्रीवत्स पण नथी. वळी श्वेतांबर दर्शन प्रमाणे दीक्षा लेती वेळा अवश्य सर्वे तीर्थंकरो सोपधिक एटले वस्त्रसहित होय छे माटे वस्त्रांचल वाजबीज छे. विचार ३ जो. ( यति प्रतिष्ठा. ) मश्नः - हमणाना घणा यतिओ जिनप्रतिमानी प्रतिष्टा करे छे, छतां तमे केम नथी करता ? - उत्तर: – सूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, अने टिपन्नक रूप आगमग्रंथोमां कोई ग्रंथकारे कोई ठेकाणे साधुने आश्री प्रतिष्ठा कही नथी. उलटुं श्रीभद्रबाहुस्वामि वगेराए कल्पादि सिद्धांत ग्रंथोमां श्रावकोनेज आसरीने प्रतिष्ठानी विधि कही छे. कल्पभाष्यना पहेला उद्देशामां लख्युं छे के साधुए ज्यां प्रतिष्टा थती होय त्यां चैत्यपूजा होतां, अथवा राजाए निमंत्रण करतां, अथवा संज्ञि एटले श्रावक तेनी भाववृद्धि करवा माटे, अथवा पोते वादी होतां, अथवा क्षपक एटले तपस्वी होतां, अथवा धर्मकार्थक होतां, अथवा शंकित एटले कोई सूत्रार्थमां शंकावंत थएल होतां, अथवा पात्र एटले शिष्यादिक मळवाना होतां, अथवा प्रभावनाना निमित्ते, अथवा प्रवृत्ति एटले समा-चार मळवाना होतां, अथवा उड्डाह टाळवाना कारणे जतुं . इहां संज्ञि तथा वादिरूप वे द्वारनी व्याख्या करतां चूर्णि - Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) शतपदी भाषांतर. कारे लख्युं छे के संज्ञि एटले श्रावकोने जिनप्रतिमानुं पहेलुं प्रतिष्ठापन करतां परवादी विघ्न मकरो एवा विचारथी वादि साधु त्यां जाय. तेमज कोई श्रावक जिनप्रतिमानुं पहेलं प्रतिष्ठापन करे, त्यां साधुओने आवेला जोइ विचारे के ज्यारे आ महात्माओ पूजा जोवा सारुं आवे छे, तो मारे पण ए कल्याणकारी छे माटे मारे नित्य पूजा करवी, एम ते श्रावकनी बुद्धि थाय. अने जो त्यां साधुओ नहि जाय तो श्रावकना मनने एम थाय के कोई महात्मा तो आवता नथी माटे शुं करवा पूजा करूं. इत्यादि. माटे इहां पहलां प्रतिष्ठापन करे एम लख्युं छे तेनो अर्थ आगला संबंध ऊपरथी पहेली पूजा करे एम थाय छे. कदाच कोई कहेशे के इहां प्रतिष्ठापन शब्द प्रेरकरूपथी सिद्ध एल छे माटे तेनो अर्थ प्रतिष्टा कराववी एवो थशे तो तेने अमे कहीए छीये के जो एम थाय तोपण साधुए प्रतिष्टा करवी एम नथी आवतं. अवांतर प्रश्नः - चूर्णिमां कां छे के साधुओ पूजा देखवा आवे छे पण कंइ प्रतिष्ठा तो देखवा नथी आवता ? उत्तरः- सिद्धांतमां ने पहेली पूजा तेज प्रतिष्टा कहेवाय छे. अंजनशलाका के आह्वानादिक क्रियाओ कई प्रतिष्ठा नथीं कही. वळी प्रभावती राणीना वृत्तांतमां पण वीरप्रभुनी मूर्त्तिनी प्रतिष्ठा विद्युन्माळी देव तथा प्रभावती शिवाय कोइए करी नथी. तेमज समुद्राचार्यकृत प्रतिष्ठाकल्पमां श्रावकप्रतिष्टाज देखाय छे. तथा पंचाशकमां प्रतिष्ठा द्रव्यस्तवमां गणी छे. अने यतिने द्रव्यस्तव करवो आवश्यक नियुक्ति तथा महानिशीथमां सर्वथा निषिद्ध कर्यो छे. माटे श्रावको पहेलां पूजे अने पछी चतुर्विध संघ वांदे ए Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) शतपदी भाषांतर. रीते चतुर्विध संघ प्रतिष्टाकारी छे एम मानीए छीए. वळी जे प्रतिष्ट्राकल्पोना आधारे सावद्यप्रतिष्टा चाले छे. तेओ पण बरोबर युक्ति सहित नथी. जुओ हरिभद्रसूरिकृत मतिष्टाकल्पमां जिननुं आह्वान करवुं कह्युं छे, ते शुं सिद्धिक्षेत्रथी जिन आवता हशे ! तेमज कोइक प्रतिष्टाकल्पमां सूरिमंत्रथी प्रतिष्टा करवी कही छे. अने उपाध्यायादिकं वर्द्धमानविद्या वगेराथी पण प्रतिष्टा करे छे. तथा पंचाशकमां नोंकारमंत्रवडे पण प्रतिष्टा करवी कही छे. वळी हरिभद्रसूरिकृत प्रतिष्ट्राकल्पमां गायना मूत्र, छाण, दूध, दहि, तथा घृतरूप पंचगव्यथी स्नान लख्युं छे. अने क्यांक पांच उदुंबरनी अंतर्छालथी स्नान कह्युं छे. तथा क्यांक पांच मृत्तिकावडे स्नान कह्युं छे. एम प्रतिष्टानी विधिओ अनेक होवाथी क्यां आस्था थाय ? कदाच कोई कहेशे के अमे फक्त अंजनशलाकारूप निरवद्य प्रतिष्टाज करशुं तो तेम तेनाथी कहीं शकाशे नहि, कारण के म तिष्टाकल्पोमां अनेक सावद्यकामो करवां कलां छे. अवांतर प्रश्नः – जो तमे यतिप्रतिष्ठा प्रमाण नथी करता तो तेमणे प्रतिष्टित करेली प्रतिमाओ केम वांदो छो ? उत्तर १ लुं: - प्रतिष्ठा करनार त्रण कहेवाय छे. एक सूत्रधार एटले शिलाट प्रतिष्टा करे छे, बीजी श्रावक करे छे, अने त्रीजी यति करे छे. तेथी अमे बचली श्रावकनी प्रतिष्टा मनमां करीने वांदीए छीए. उत्तर २ जुं: - प्रतिष्ठा करनार यति प्रतिष्ठा करती वेला - ए, साधु माटे ठेरावेला प्रमाणथी अधिक अने दशासहित कोरां वस्त्र पहेरीने तथा सोनानी वींटी, मींडोळ, अने कुसुंभना सूत्रवडे Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) शतपदी भाषांतर. अलंकार करीने वरराजा जेवो वेष करे छे, वचने करी अढार स्नान तथा सेंकडो औषधीओना मूळादिकवडे प्रतिष्ठानी सावविधिओ चलावे छे, अने कायाए करी फूल, चांखा वगेरानो तथा स्त्री अने उद्योतिका एटले अग्निप्रकाशनो स्पर्श करे छे तेथी जेम सामायिक करतां श्रावक यति जेवो कहेवाय छे तेम प्रतिष्टा वेला यति पण श्रावक जेवोज प्रतिभासे छे. ( माटे तेणे करेली प्रतिष्ठा वास्तविक श्रावक प्रतिष्टाज थाय छे.) उत्तर ३ जुं: -वळी जे केटलाक सर्वथा संयमरहित अविरत जेवा पासत्थाओ प्रतिष्ठा करे छे ते केवी यतिप्रतिष्ठा कहेवाय ? उत्तर ४ थुं :- वळी यतिए प्रतिष्टा करी एटलाथी कई प्रतिमा अवंदनीय थती नथी. कारण के कोइएक विधिए करी प्रतिमा करावे छे, थपावे छे, अने पूजे छे अने कोइ अविधिए करावे छे, थपावे छे, अने पूजे छे. परंतु त्यां विधिअविधिनुं फळ तो करनारने छे; वांदनारने तो वीतरागनी प्रतिमा जाणी शुद्ध चित्तथी वांदतां लाभज छे. शास्त्रमां पण निश्राकृत ने अनिश्राकृत चैत्यो सरखी रीते बांदवा लायक कहां छे. बळी तमोए मानेली प्रतिष्ठामां पण पेटामां श्रावकनी प्रतिष्टा रहेल छे छतां तमो के वांदो छो? इहां जे तमारुं उत्तर तेज अमारुं छे. ( यादी - वळी केटला एक सैकां थयां प्राये चैत्यवासियोनीज प्रतिष्ठा देखाय छे. तथा केटलाक अविवेकि श्रावको जिनमंदिरमां गणेश बेशाडे छे तेनी, तथा क्षेत्रपाळ, अंबिका, सरस्वती, गोमुख वगेरा यक्ष, ने चक्रेश्वरी वगेरा देवीओनी पण चैत्य वासिओ प्रतिष्टा करे छे. माटे चैत्यवासिओनां केटलां काम तपाशिए. माटे जिनप्रतिमानी प्रतिष्टा श्रावकनुंज कृत्य छे. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) शतपदी भाषांतर. विचार ४ थो. प्रश्नः-दीप पूजा करवी के नहि ? उत्तरः-शास्त्रमा नथी कहेल माटे न करवी. बाकी अंधार होय तो मूर्तिना दर्शन सारुं दीवो कराय छे, पण पूजाना अर्थे न करवो. वळी विवेकिओ तो प्राये सांजनीज पूजा करे छे, रातनी नथी करता. विचार ५ मो. प्रश्नः-रायपसेणी वगेरा सूत्रोमां देवताना अधिकारे रूपाना तंडुलज लखेल छे माटे बीजा केम चडावाय ! उत्तरः-पोतानी शक्ति प्रमाणे बीजा तंडुल चडावे ते पण रजतमय लेखवा. - इहां व्यवहारना भाष्यमां लखेल पुष्करिणी वगेरा दृष्टांतोनी बिना पुरावारूप छे. विचार ६ ठो. प्रश्नः-भगवंतना जन्म महोत्सवमां मेरु ऊपर देवो रूपा, सोना, रत्र, मणि, आभरण, पत्र, पुष्प, फळ, बीज, ने मुगंधि चूर्णनी वृष्टि करे छ एम जंबूदीवपन्नत्तिमां कहेल माटे फळपूजा अने बीजपूजा केम नथी मानता ? उत्तरः-मेरु उपर देवो महामहिमा जणाववा माटे हर्षना आवेशथी रूपावगेरानी वृष्टिज करे छ पण कंइ पूजा नथी क Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) शतपदी भाषांतर. रता. जो पूजा करता होय तो तो स्थाळवगेरामा ढगलो करीने ते चडावां जोइए, पण तेम नथी कर्यु. वळी जेम त्यां वृष्टि करे छे तेमज ते चीजो अरसपरस वेंहेचवानुं पण कहेल छे. माटे जो पूजामां चडावेल होय तो केम वेहेंची शकाय? अने ए देवकृत वृष्टि तथा वेंहेंचणना अनुसारे आजे पण रथयात्राना महोत्सवनो महिमा सूचववा पत्र, पुष्प, फळ, अक्षत, तथा मीठाइमेवानी वृष्टि अने हेचण श्रावको करे छे. विचार ७ मो. प्रश्नः-पत्रपूजा तमे मानो छो ते कया अक्षरथी ? उत्तर:-फूलोनी साथे पत्र पण लीधेल छे. केमके जंबूदीवपन्नत्तिमा फूलना नामोमां पत्रदमनक पद आवे छे तेनो मळ्यगिरि आचार्य एवो अर्थ को छे के पत्रसहित जे दमनक ते पत्रदमनक. ___ वळी केटलाक तो वर्णारोहण एटले पांचवर्णा फूलनी रचना करवी तेना अंदर पत्र गणे छे, . लोकमां पण मरुवानां पान फूळमध्येज चाले छे. ON विचार ८ मो. (बळि पूजा.) प्रश्नः-वृहत्कल्पनी नियुक्तिमां लख्युं छे के तीर्थंकर लिंग तथा प्रवचने करी बीजा साधुओना साधर्मी नथी तेथी तीर्थंकर माटे जे करेलुं होय ते यतिने कल्पे, त्यारे प्रतिमा तो अजीव छे Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ९ ) माटे तेना अर्थे करेलुं कल्पे तेमां शुं कहेतुं ? ए ऊपरथी जिनप्रति मा सारुं वळि करवी सिद्ध थाय छे माटे तमारा श्रावको बळि केम नथी चडावता ? उत्तर:- निर्युक्तिमां कहेलुं छे ते कई आहारना माटे नथी, किंतु मोघम वात छे. तेम संबंधथी पण कई आहार के नैवेद्य उपर वात लागु पडे छे तेम नथी देखातुं; तेथी एनी व्याख्या अमो एम करीये छीये के तीर्थंकर सारं करेल ते समवसरण, त्यां साधुने रहे कल्पे; तेम प्रतिमा सारुं करेल चैत्यमां पण व्याख्यान करवुं साधुने कल्पे. निर्युक्तिमां संबंध आ रीते छे के पहेला चैत्यद्वारमां चार प्रकारनां चैत्य कह्यां छे ते आ प्रमाणे केः साधर्मिचैस, मंगळचैत्य, शाश्वतचैत्य, अने भक्तिचैत्य सां साधर्मि माटे लिंग अने प्रवचन ए वे पदवडे चौभंगी करवी. तेनुं चैस ते साधर्मिचैत्य. मथुरानगरीमां घर करतां पहेलां अरिहंतनी प्रतिमा बेशाडे छे, जो नहि बेशाडे तो घर पडी जाय तेथी मंगळनिमित्ते तेम करे छे, ते मंगलचैस. देवलोकमां चैय छे ते शाश्वतचैत्य. अने भरतादिके करावेला ते भक्तिचैत्य. ते भक्तिचैत्यना वे भेदः - एक निश्राकृत एटले ज्यां साधुनी निश्रा होय ते, अने बीजा अनिश्राकृत एटले ज्यां साधुनी निश्रा नहि होय ते. ए चारे चैत्य साधुने आधाकर्मी नहि थाये कारण के आधाकर्मिनुं लक्षण इहां लागु नथी पडतुं. ते लक्षण ए छे के "लिंगथी तथा प्रवचनथी साधर्मि एवा जीवने उद्देशीने करेलं होय ते आधाकर्मी." आ संबंध पछी आवे छे के तीर्थंकरना माटे करेलुं पण साधुने कल्पे तो प्रतिमा सारुं करेलानुं शुं कहेवुं. त्यारबाद ए वात आवे छे के तीर्थकरना अर्थे करेली देवोनी पूजाने तीर्थ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) शतपदी भाषांतर. कर सेवे छे तेने आधाकर्मी केम न लागे? त्यां जणाव्यु छे के तीर्थकरनामकर्मना क्षय माटे, तथा स्वभावपणाथी, तथा जीतनी अनुवृत्तिथी, तीर्थकर सेवे छ माटे अदोषवंत छे. - माटे आ ठेकाणे समवसरण तथा चैत्य संबंधीज विचार देखाय छे आहार बाबत वात जणाती नथी. , अवांतर प्रश्ना-भरतमहाराज बळि रंधावीने लई गया छे ते केम? उ०-भरतमहाराजे बळि करी छे ते बळि अमे वगर रांधेला चोखानी मानीए छीए अने त्यां एम लखेल छे जे बळि सिद्ध करी ते सिद्धनो अर्थ रांधी एम अमे नथी मानता किंतु तैयार करी एम करीए छीए. अगर ए अक्षरोथी जो बलि चडाववी सिद्ध थाय तोपण फक्त रांधेला चोखाज चडावो, पण बीजा जातनी बलि शा माटे चडावो छो. तेमज ए अक्षरोमां स्थाळमां बलिनु ढौकन करवू कहेल नथी माटे तमारे पण ते प्रमाणे बळि उडाववी जोइये. वळी कोइ कहेशे के प्रभावती राणीना संबंधमां निशीथ चूर्णिमा बलि लखेल छे तेनुं ए उत्तर छे के त्यां प्रभावती राणीए कई प्रतिमानी पूजा करतां बळि करी नथी किंतु प्रतिमायोग्य काष्टनी शांति सारं बलि करी छे माटे त्यां कंइ पूजाने लागतुं वळगतुं नथी. वळी निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के "अशिवधाळा देशमां, अथवा तेवा देशमाथी नीकली ज्यां भक्तपान मळवा मुस्केल होय एवा देशमा साधुओए पोतानो निर्वाह नहि थतां स्थळी एटले देवद्रोणीमां भिक्षा लेवा जq. त्यां जो पासत्थाओ पोते आपे नहि तो गृहस्थो पासेथी पासत्थाओने कहेवरावg. तेम करतां नहि आपे तो साधुए पोते प्रकटपणे देवद्रोणीमांथी आहार उपाडवो" इहां देवद्रोणी ते साधर्मिचैत्यनी जणाय छे. अथवा पासत्थाओए Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (११) ग्रहण करेला चैत्यमां कदाच बळि पण थती होय तोपण तेनुं शी रीते आलंबन लेवाय ? ___ वळी निशीथचूर्णिमां रथयात्रामां फूल, फळ, तथा पकानादिक- उरिकरण लख्युं छे ते उरिकरण एटले फलादिकनां लाणां व्याख्यान काँ छे. . विचार ९ मो. प्रश्न:-ओघनियुक्तिमा एक गांठवाळो दांडो लखेल छ माटे साधुने वंशनोज दांडो कल्पे के केम? __उत्तर-वंशनोज दांडो कल्पे एवो नियम नथी; कारण के निशीथचूर्णिमा वंश, नेतर, तथा बीजा लाकडानो पण दांडो लखेल छे. अने तेमां जे वंशनो दांडो कह्यो छे ते एक गांठवाळो लेवो. . विचार १० मो. प्रश्नः-साही- पात्र, लेखण, पुस्तकना वींधमां नाखवानो दोरो तथा खीलो, अने पोंजणी ए यतिने राखवां कल्पे के नहि ? तथा पुष्पादिकथी पुस्तक पूजवू क्या कह्यु छे ? उत्तरः-पुस्तक राखवार्नु होवाथी तेनो परिकर साथेज आवे छे केमके शाश्वता पुस्तकना पाठमां साहीन पात्र तथा लेखण अने दोरो लीधेलां छे. अने दोरो लेवाथी खीलो पण आवी जाय छे. अने आगळ लख्यु छ के पोजणीथी पुस्तकने सूर्याभदेवताए पोंज्युं अने पुष्पादिकथी पूज्यु तेथी पोजणी आवे छे. तेमज पुष्पादिकथी पुस्तक पूजाय ते पण वात सिद्ध थाय छे. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ११ मो. प्रश्नः - पुस्तको राखतां सत्वनो उपघात थाय छे माटे पुस्तक केम राखो छो ? ( १२ ) उत्तरः- उत्सर्गे पुस्तक राखवानी ना पाडी छे पण अपवादे राखवां कह्यां छे; कारण के काळने अनुसरीने चरणकरणने अर्थ पुस्तक राखतां संयम रही शके छे एम दशवैकाळिकचूर्णिमां कहुं छे. +601 विचार १२ मो. प्रश्नः - निशीथनी चूर्णिमां पांच प्रकारनां पुस्तक कह्यां छे ते भले राखो पण ते उपरांत टीपणी, कवडी, पाटली, ने ठवणी व गेरा केम राखो छो ? उत्तरः- इहां टीपणी, कवड़ी, ने पाटली तो पांच प्रकारना पुस्तकमांज अंतर्भूत थाय छे. अर्ने ठवणी तो पुस्तकनी आशातना टाळवा सारुं राखीए छीए. कारण के पुस्तक भूमि ऊपर राखबुं जोइये नहि किंतु विवेकिए पाटला, ठवणी, के वस्त्र ऊपर अथवा हाथमां धरबुं जोईए. विचार १३ मो. प्रश्नः - द्रव्यस्तवमां साधुने अनुमति तथा कारापण छे के नहि ! उत्तरः- द्रव्यस्तवमां साधुने अनुमति तथा कारापण नथी. केमके रायपसेणी सूत्रमां सूर्याभे वीरखामिने वदतां प्रभुए तेने. अनुमत कर्यो छे पण नाटकनी रजा मागतां भगवान् पोते वीतराम होवाथी तथा गौतमादिकने स्वाध्यायमां विघात थवाना है ❤ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१३ ) तुथी मौन रह्या छे. माटे अनुमात नथी आपी. वळी कोइ कहेशे के भद्रबाहुस्वामिए ए द्रव्यस्तव श्रावकने युक्त छे एम कहेतां अनुमत कर्यो, तो तेणे जाणवू जोइए के ए प्रज्ञापनी भाषा छे. कारण के दरेक करवानी वस्तु ज्ञानिए कह्याथीज मालम पडे छे पण तेटलावडे कंइ तेनी अनुमति के कारापण सिद्ध थतां नथी. ___वळी जो त्रिविधे त्रिविधे प्रत्याख्यान करनार साधुओनी पण द्रव्यस्तवमां अनुमति अने कारापण सिद्ध करो छो तो त्रिविधे त्रिविधे सामायिक करनार श्रावको शा सारूं पूजादिक नथी करावता. विचार १४ मो. प्रश्न:-तमारा यतिओ दररोज चैत्यमां केम नथी जता ? उत्तरः-आगममा यतिओने व्याख्यान देवा वगेरा विशेष कारण विना पर्वदिवसमांज चैत्यमां जदूं कहेल छे जे माटे व्यवहारचूर्णिमां लखेलुं छे के आचार्ये कुळ के गच्छना अनेक प्रकारना कार्योमां वसतिथी बाहेर नीकलवु अने पाक्षिकादिक पर्वोमां चैत्यवंदन करवा अवश्य नीकलq. कोइ कहेशे के इहां अवश्य जq एम कहेल होवाथी ए अर्थ नीकळे छे के पर्वोमा अवश्य जq अने अन्यदा अनियम छे. पण तेम नथी, कारण के इहां वसतिथी आचार्य बाहेर नीकलवामां. बे कारण बताव्यां छे. एक कुळगणादिकनां कार्य, अने बीजं पदिने चैत्योमां जq. त्यां पहेलं कारण अनियमित छे अने पर्वदिने चैत्यमां जq नियत छे तेने आश्री अवश्य पद कहेल छे.. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार १५ मो. प्रश्नः - तमे चैवंदन करतां इरियावहीप्रतिक्रमण पूर्वक चा र काउसग अन वे नमोत्थुणा वगेरा विधि केम नथी करता ? उत्तरः- आगममां साधुने त्रण थुइवडेज चैत्यवंदन करवुं क हेल छे. कारण के व्यवहारभाष्यमां कहां छे के साधु मळमळन अने अस्नात होवाथी त्रण त्रण श्लोकवाळी त्रण थुइओ कला उपरांत विनाकारणे वधु वखत चैत्यमां नहि रहे. ( १४ ) विचार १६ मो. प्रश्नः - चैत्यवंदन करतां तमो संसार दावानळ वगेरा थुइओ केम नथी करता ? उत्तरः- आगममां साधुने चैत्यवंदन करवानी विधि आवी रीते छे के निश्राकृत अथवा अनिश्राकृत सर्व चैत्योमां त्रण थुइ कहेवी. कोइ कहेशे के चीसत्था वगेराने थुइ क्यां कही छे ? तो ते जाण जोइये के कार्योत्सर्गनियुक्तिनी चूर्णिमां चउवीसत्था, पुक्खरवरदीवढे, तथा सिद्धाणं बुद्धाणं, एत्रणेने थुइरूपे कां छे. कोई कहे के कल्पचूर्णिमां हीयमान स्तुतिओ कहेवी कही छे अने चवीसत्थादिक तो शाश्वती थुइओ छे माटे तेमने हीयमानपणुं केम घटे. तेनुं उत्तर ए छे के आवश्यकचूर्णिमां जेम पडिकमणानी समाप्तिमां कहेवानी थुइओ स्वरे करीने वर्द्धमान एटले लांबी करीने कवी कही छे तेम इहां पण स्वरे करीने ही - यमान एटले नानी करी कहेवी. वळी कल्पनी विशेष चूर्णि तथा वृहद्भाष्य तथा आवश्य Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. कवृत्तिमा ए हीयमान थुइओ अथवा तेना बदले अजितशांतिस्तव कहेवो एम पण का छे. विचार १७ मो. प्रश्नः-कल्पभाष्यनी चूर्णिमा साधुना पात्राओ माटे शकटलेप एटले खंजनलेप सुंदर कह्यो छ माटे तमे बीजो लेप केम करो छो? ___उत्तरः-खंजनलेप सुंदर छे; पण ते नहि मळतो होय तो बीजो लेप पण करी शकाय छे. केमके ओपनियुक्तिमा सामान्यपणे अचितपृथिवीकायथी लेप थतो कह्यो छे. तथा पिंडनियुक्तिमा लेप ए. टले नागपुरपाषाण वगेराथी नीपजेलं द्रव्य कहुं छे तेना अभिप्राय धातुलेप पण टीकाकारे कह्यो छे वळी त्यां आदि शब्द छे तेथी कीटलेप पण घटी शके छे. . माटे खंजनलेपना अभावे धातुलेप तथा कीटलेप पण थइ शके छे. @ विचार १८ मो. प्रश्नः-शास्त्रमा कयुं छे के साधुने भीत के स्तंभ वगेरानो अवष्टंभ नहि लेवो जोइये; केमके त्यां त्रसजंतुओनो प्रचार चालु होवाथी प्रतिलेखना थइ शके नहि छतां तमे अवष्टंभ केम ल्यो छो ? ___ उत्तरः-तमे कडं ते उत्सर्ग एमज छे. पण एम पण का छे के असमर्थ होय ने पासा दूखता होय तो तेणे भीत के स्तंभ व. गेरा स्थिरावष्टंभ लेवो. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार १९ मो. प्रश्नः - चंचल एटले हीलता चालता पाटीआ वगेरनो अवष्टंभ केम ल्यो छो ? ( १६ ) उत्तरः- ज्ञातासूत्रना पांचमा अध्ययननी टीकामां पीठफलकशयासंस्तारकपदोनी व्याख्यामां फलक अवष्टंभ माटे कहेल छे. तथा कल्पपीठमां सुतर तथा ऊनना अवष्टंभ पण साधुना माटे कहेल छे. +91 विचार २० मो. ( मुख वस्त्रिका . ) प्रश्नः - बीजा बधा यतिओ श्रावकोने मुखवत्रिका रखावी वांदणा देवरावे छे, छतां तमे मुखवत्रिका केम नथी रखावता ? उत्तरः- आगममां ठेकाणे ठेकाणे वस्त्रांचळथीज श्रावको वांदणा करता देखाय छे। अने क्यां पण मुखवस्त्रिकावडे वांदगा करता कह्या नथी. जुओ आवश्यकचूर्णिमां श्रीकृष्ण महाराजे अढार हजार साधु द्वादशावर्त्तवांदणाथी वांद्या त्यां मुखवस्त्रिकानी बाबत जणाती नथी. तथा आर्यरक्षितसूरिना संबंधां ढढरश्रावकनी वात आवश्यकचूर्णिमां छे त्यां पण मुखवत्रिका देखाती नथी. इहां कोई कहेशे के इहां जेम मुखवत्रिका नथी कही तेम वस्त्रांचळ पणक्यांक छे! त्यां ए उत्तर छे के उत्तरासंगवडे साधुना अपाश्रयमां प्रवेश कर्यो छे अने ते मूकवानुं के मुखवस्त्रिका ग्रहण करवानुं कां नथी माटे उत्तरासंग कायमज लागे छे. वळी वसुदेवहिडिमां शिवकुमारनी वातना पेटामां राजाए Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१७) दृढधर्मनामना श्रावकपुत्रने बोलावीने कडं के शिवकुमारने अमोए दीक्षा लेवानी रजा नहि आपतो ते मौन धरी बेठो छे अने खातो पण नथी माटे तमे समजावो. त्यारे दृढधर्मकुमारे शिवकुमार पासे जइ इरियावही पडिकमी द्वादशावर्त्तवंदन कर्यु. इहां पण मुखवस्त्रिका जणाती नथी. केमके दृढधर्मने राजाए ज्यारे बोलाव्यो त्यारे कंइ तेने प्रयोजननी खबर नहोती जेथी मुखवस्त्रिका साथे लइ जाय, अने उत्तरासंगसाहत तो आवेल होय एमां शक जणातो नथी. तथा तुंगिकानगरीना श्रावकोए स्थविरमुनिओने वांदवा जतां पांच अभिगम साचव्या छे. माटे त्यां पण उत्तरासंगज जणाय छे. वळी प्रदेशी राजाए पण पांच अभिगम साचवी केशिमुनिने चंदन करी पोतानो अपराध खमाव्यो छे. इहां वंदन शब्दथी द्वादशावर्त वंदनज जणाय छे. केमके आवश्यकनियुक्तिमां अपराध खमावतां द्वादशाववंदन देवां कह्यां छे. कोइ कहेशे के पेहेलेज दिने तेमने द्वादशावर्त्तवंदन शी रीते आवडयुं हशे? सां एम जाणवू के प्रदेशी राजा प्राज्ञ हता माटे पहले दिने पण आवडे तेमां असंभव नथी, अथवा चित्रसारथि साथे वांदणां कर्या हशे, अथवा गुरुए कराव्यां हशे, केमके गुरुओ नवा शिष्यने पहेले दिनथीन पडिकमणुं करावे छे. वळी आवश्यकचूर्णिमां अनृद्धिप्राप्त श्रावकने घरेथी पण सामायिक करी गुरु पासे के चसमां जवानुं कहुं छे. माटे ते जो उत्तरासंग टाळी फक्त मुखवस्त्रिका लई रस्ते चाले तो लोकमा पण उड्डाह थवानो संभव छे. वळी सामायिक अने पोसहवाळाए प्रमार्जन रजोहरण के वस्त्रांचले करी करवू एम शास्त्रमा कहेलुं छे. पण मुखवास्त्रिकावडे प्रमार्जन करवं कर्तुं नथी. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) शतपदी भाषांतर. वळ वांदणा देतां पचीश बोल साचववानुं कहां छे त्यांत्रीजो बोल यथाजातमुद्रा छे. ते वे प्रकारे छे - एक योनिनिष्क्रमणरूप, अने बीजी व्रतमतिपत्तिरूप त्यां पहेली मुद्रा ते ए के " खमणिजो भे किलामो" ए पाठ कहेतां मस्तके अंजळि करवी. ए मुद्रा चतुर्विध संघ समान छे. अने बीजा प्रकारनी मुद्रा दरेक वर्गने जूदी जूदी रीते छे. त्यां साधु रजोहरण, चलोटो, अने मुखवास्त्रका घरी व्रत ले, साध्वी गुरु पासेथी व्रत लेतां चौद उपकरण घरे अने गुरुणी पाथी लेतां पांच उपकरण घरे. श्रावको तथा श्राविकाओ पांच अभिगम साचवी व्रत ले. माटे चारे वर्गे पोतपोतानी यथाजातमुद्राए वांदणां देवां.' वळी बीजा पंचाशकमां गुरु पासे व्रत लेवा जवानी विधिनी व्याख्या करतां श्वेत वस्त्र पेहरीने श्रावक गुरु पासे आवे त्यारे व्रत देवां कां छे सां एम नथी जणाव्युं के उत्तरासंग ऊतारी मुखवत्रिका ले सारे देवां अने तेथी हमणा पण सर्व पक्षोमां श्रावकश्राविकाओने पोतपोतानी उत्तरासंगादिक मुद्राओ छतांज सम्यक्त्व तथा देशविरति अपाती देखाय छे. वळी बाळकधी मांडीने श्रावको उत्तरासंगे करीनेज देव वांदे छे, गुरुओने नमे छे, सम्यक्त्व तथा देशाविरति ले छे, तथा देपूजादिक धर्मकरणी करे छे तेमज इरियावहिपडिकमणुं तथा पचखाण वगेरापण उत्तरासंगथी कराय छे तेम षडावश्यक पर्ण उत्तरासंगधीज करवामां शी बाधा छे. कोइ कहेशे के कासग, चडवीसत्थो, अने पचखाण उत्तरासंगधी पण थइ शके पण प्रतिक्रमण, वांदणां, अने सामायिक तेनाथी केम थाय ? तो तेणे जाणवुं के सामायिकमां पण शीतथी रक्षण करवा पटीनुं ग्रहण कराय माटे त्यां पण वस्त्रांचळ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. छेज. तेमज इरियावहि पण साधुना पडिकमणानो एक देशज छे तथा उपधान वहेतां इरियावहिमूत्र प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध कहेवाय छे तथा खमासमणां तो उत्तरासंगथी पण देवाइ शकाय छे अने खमासमण अने वांदणामां एटलोज फेर छे के खमासमण ते नानां वांदणां अने वांदणां ते मोहोटां वांदणां. माटे वांदणां पण उत्तरासंगे दइ शकाय. माटे जेम साधुओ अनशनपर्यंत सकलक्रिया रजोहरण, मु. खवस्त्रिका, अने चोलपट्टारूप पोतानी मुद्राए करे छे तेम श्रावकोए पण सकळ क्रिया पोताना उत्तरासंगरूप मुद्राए करवी. वळी सिद्धर्षिकृत उपमितभवप्रपंचमां एक राजानी वात आवे छे त्यां राजा बोल्यो छे के देवकृत सुवर्ण कमळमां बेशीने धर्मदेशना करता मार मे दीठा त्यारे हुं पांच राजचिह्न ऊतारी उत्तरासंग करी सूरिना अवग्रहमा पेठो. त्यां मूरिने द्वादशावर्त्त वांदणाथी वांदी तथा अनुक्रमे बीजामुनिओने वांदी आशीर्वाद पामी शुद्धभूमिमां परिवार सहित बेठो. माटे इहां खुल्लो उत्तरासंग कह्यो छे. तथा कोइएक चिरंतन आचार्य आवश्यकमीमांसा नामे ग्रंथ टीका सहित कर्यो छे. त्यां श्रावकने मुखवस्त्रिका माटे खुल्लो निषेध कर्यो छे. तेमज अरहन्नकश्रावके वहाणमां उपसर्ग थतां सागारि अणसण, अने प्रदेशी राजाए अणसण कर्यो छे त्यां पण मुखवस्त्रि का तथा स्थापनाचार्य वगरज तेमणे अणसण लेवा द्वादशावर्त* वांदणां, अणसण, तथा आलोचना करी छे. वळी चित्रसारथिए केशिकुमारनुं आगमन सांभळी आसनथी उठी केशिकुमारने वंदन कयुं छे, इहां पण उत्तरासंगज छे. तथा वरुणनागनत्तुए संग्राममां जतां संथारो साथे लीधो तेम Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) शतपदी भाषांतर. स्थापनाचार्य के मुखवस्त्रिका साथे लीयां नहि. अने जेणे प्रहार नी पीडामां पण पर्यंतालोचना करी तेणे द्वादशावर्त्तवांदणां नहि दीधा होय एम तो कही शकाय नहि. . हवे कया ग्रंथोमां श्रावकने मुखवस्त्रिकानो निषेध करेल छे ते जणावीये छीये. पिंडनियुक्ति, तथा व्यवहारभाष्यमां दशमी प्रतिमा सुधी श्रावकने लिंगथी वैधर्मी गण्यो छे. अने त्यां टीकाकारे लिंग एटले रजोहरण तथा मुखवस्त्रिकारूप कर्तुं छे. कदाच कोई कहेशे के लिंगथी वैधर्मी ते एमके संपूर्ण लिंग न होय पण एकली मुखवस्त्रिका होय तेमां शी हरकत छे तो तेणे जाणवू के शास्त्रमा रजोहरण वगर एकली मुखवत्रिका क्यां पण देखाती नथी. अगर जो एकली पण होय तो जिनकल्पीने संक्षेपे पण रजोहरण ने मुखवस्त्रिकारूप बे उपकरण शा माटे कह्यां छ ? - कोई कहेशे के सारे श्रावक एकलुं रजोहरण पण केम राखे तेनुं ए उत्तर छे के लिंग ग्रहण करवानी मनाइ छ बाकी औपअहिक रजोहरण राखतां कंइ लिंग थतुं नथी. अने ए औपग्रहिक* रजोहरणथी प्रमार्जनज करे वंदनादिक नहि करे माटे तेमां हरकत नथी. ___सारे कोई कहेशे के औपग्रहिक रजोहरण माफक मुखवस्त्रिका पण औपग्रहिक श्रावक राखशे त्यां ए उत्तर छे के आवश्य. कचूणि वगेरामां जेम रजोहरण साधु पासेथी मागवानुं अथवा श्रावकना घरे होवानुं लख्युं छे तेम क्यां मुखवस्त्रिका माटे लख्यु नथी. माटे मुखवस्त्रिका औपग्रहिक नहि थइ शके. * कारणनी अपेक्षाथी संयम माटे रखाय ते. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( २१ ) (शंका समाधान.) (१) प्रश्न व्याकरणना त्रीजा संवरमां गृहस्थे अणदीधेल वस्त्र, पात्र, कंबल, दंडक, रजोहरण, निषद्या, चळोटो, मुखवत्रिका, तथा पोंछणा वगेरां उपकरण साधुए नहि लेवां एम का छे माटे श्रावकना घरे मुखवस्त्रिका सिद्ध थाय छे, एम कोइ कहे तो तेनुं ए उत्तर छे के ए स्थळे तो साधुनां बीजां पण बहु उपकरण कह्यां छे त्यारे शुं ते पण बधां श्रावक वापरे के ? माटे एथी कंइ मुखवस्त्रिका सिद्ध थइ शकती नथी. ___ (२) कोइ कहेशे के प्रश्नव्याकरणमां कह्यु छ के साधुए गृहस्थनी पूजना करीने पण आहार न लेवो. त्यां वृत्तिकारे पूजनानो अर्थ करतां लख्युं छे के पूजना एटले निर्माल्य आपवं, वासक्षेप आपवो, मुखवस्त्रिका के नोकरवाळी देवी वगेरा. माटे ए अ. र्थथी श्रावकने मुखवस्त्रिका सिद्ध थशे. इहां ए उत्तर छ के भिक्षा देनार तरफ चाटुवचन बोलवां, आसन आपq, निर्माल्य देवू, वासक्षेप नाखवो, मुखवस्त्रिका आपवी, तथा नोकरवाली देवी ए छ काम प्राचीन मुनिओएं निषेध्यां छतां आजकालना यतिओने, चलावतां जोइ अभयदेवमूरिए निषेध्यां तेमां श्रावकने मुखवस्त्रिकावडे वांदणां देवानुं शुं आव्युं ? कदाच कोइ कहेशे के त्यारे मुखवस्त्रिकावडे गृहस्थने बीजं काम होय, माटे ए युक्तिथी वांदणां आवे छे. तेणे जाणवू के ए युक्ति सारे घटे के ज्यारे बीजा ठेकाणे सिद्धांतना अक्षरोथी मुखवस्त्रिका सिद्ध थती होय; पण तेम नहि थाय तो शी रीते युक्ति घटित थाय, अने मुखवस्त्रिकावडे गृहस्थने बीजुं शुं काम होय त्यां जाणवू जोइये के मिथ्यादृष्टि भिक्षा देनारने वस्त्र सांधवा बगेरा घणां काम होय छे. (३) वळी कोइ कहे छे के आवश्यकचूर्णिमा श्रावकने सा Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) शतपदी भाषांतर. मायिक करतां कुंडळ, नाममुद्रा, पुष्पतंबोळ, अने प्रावारक वगेरां मूकवानां कहां छे, माटे मावारक एटले ऊपरनुं वस्त्र ऊतारखं सि द्ध थाय छे. ते वात पण रद छे कारण के प्रावारक शब्दे सिद्धां तमां दुःप्रत्युपक्षित एटले मुश्केलीए जोइ शकाय तेतुं वस्त्र विशेष लील छे. अने जो इहां सामान्यपणे ऊपरनुं वस्त्र लइए तो सामायिकवाळाने सर्वथा वस्त्र अग्राह्य थशे अने तेम तो कंइ छे न. हि, केमके सामायिक के पौषधवाळा पण वस्त्रनी अनुज्ञा लइ वस्त्र ग्रहण करता देखाय छे. वळी मावारक शब्दे पटी कहो छो, त्यारे तमे सर्व सामायिक करीने ते केम राखो छो तेमज ए अर्थ करतां तो श्राविकाने पण उत्तरीय वस्त्र मूकवुं पडशे. माटे प्रावारक शब्दनुं निजमतिकल्पित व्याख्यान नहि क रतां पूर्व श्रुतधरकृत व्याख्यानज करवुं जोइये. (४) कोइ कहे के कुंडकोळिक श्रावकना अधिकारमां वात आवे छे के " कुंडकोळिया श्रावक एक वेळा अशोकवनिकामां आवी पृथिवीशिळा पट्ट उपर नाममुद्रा अने उत्तरासंग मेळीने वीर भगवान्नी धर्मप्राप्ति कबूल करी विचरे छे." माटे इहां नाममुद्रा ने उत्तरासंग मेळवाथी अर्थापत्तिए मुखवस्त्रिका लइने धर्मज्ञप्ति एटले पौषध लीधो देखाय छे. तेनुं ए उत्तर छे के एम व्याख्यान थइ शकतुं नथी कारण के पौषधनुं अशोकवनिका स्थानज नथी. केमके आवश्यकचूर्णिमां तेना स्थान चैत्य, साधु मूळ, घर के पौधशाळारूप चारज बताव्या छे. वळी वृत्तिकारे पण धर्मज्ञ अर्थ पौषध नथी कर्यो. किंतु श्रुतधर्म प्ररूपणा एटले के मत के सिद्धांतविचाररूप कर्यो छे. (५) को कशे के आवश्यकचूर्णिमां सर्व पौषधमां वस्त्रा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. भरणनो साग करवो कहेल छे माटे तेथी मुखवस्त्रिका सिद्ध थशे तेनुं ए उत्तर छे के त्यां कंइ सामान्यपणे सर्वे वस्त्र त्याग करवा लखेल जणातुं नथी, किंतु भरतभरेला वगेरा बहुमूल्य माटे लागे छे कारण के अभयदेवमूरिए पण तेवुज व्याख्यान कर्यु छे. अग. र सर्व वस्त्र माटे लइये तो हेठे पहेरवानुं वस्त्र पण त्याग करवू पडे. वळी घणा स्थळे पौषधमां प्रमार्जन वस्त्रांचळादिकथी करवू लख्यु छे ते जो सर्वथा वस्त्र साग करवामां आव्यां होय तो केम संभवे? (६) कोइ कहेशे के प्रतिक्रमणभाष्य तथा आवश्यक वृत्त्यादिकमां पीआरमी प्रतिमा लेतां रजोहरणने पात्रां लेवा कह्यां छे, त्यां मुखवस्त्रिका नथी कही, माटे ते अगाउ होवी जोइए. तेनुं ए उत्तर छे के अगीआरमी प्रतिमा लेतां तो अवश्य चौदे उपकरण होवां जोइए, तेथी तेमांना बे साक्षात् कही बताव्यां छे, अने तेनो ए अर्थ थाय छे के रजोहरण शब्दे रजोहरण, मुखवस्त्रिका, वगेरा छ उपकरण, अने पात्रा शब्दे, पात्रक, पात्रकबंध वगेरा आठर्नु उपलक्षण थाय छे. ए अर्थ पंचाशक टीकामां छे. . ___(७) कोइ कहे के आवश्यकचूर्णिमां श्रावकने औपग्रहिक रजोहरण कहेल छे, माटे श्रावक साधु पासेथी रजोहरण मागी तेनावडे वांदणां आपे तेनुं ए उत्तर छे के तेम मानशो तोपण ते कदाच साधु पारी नाहि होय त्यार वस्त्रांचले वांदणां देवरावां पडशेज. माटे रजोहरणथी भूप्रमार्जनज करवू घटे छे. अने पूर्वाचार्योए पण रजोहरणथी प्रमार्जनाज कहेली छे वळी जो श्रावकने साधु पासेथी मागेला रजोहरणवडे वांदणां करवानां होय तो त्यारे साधुओने तेवां रजोहरण घणां राखवां पडशे कारण के वांदणां तो समकाले घणाने करवानां होय छे.अने प्रमाजना तो बेत्रण रजाहरण हो। पण एकबीजाने आप Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) शतपदी भाषांतर. तां अनुक्रमे सैकडा श्रावको करी शके छे. (८) कोइ कहे छे के रजोहरण न होय सारे पोतना अंतवडे प्रमार्जन कर आवश्यकचूर्णिमां कहेल छे. त्यां पोतशब्दे मुखवस्त्रिका लेशं, कारण के आवश्यकचूर्णिमा पुत्तावरिया शब्दे मुखवस्त्रिका कहेल छे. तेनुं उत्तर ए छे के पुत्तावरिया शब्दनी व्युत्पत्ति करतां पुत्ति शब्द छे, कंई पोतशब्द नथी. अने सिद्धांतमां पण सघळा स्थळे पुत्तिशब्दे मुखवस्त्रिका आवे छे पण पोतशब्दे नथी आवती. जो पोतशब्दे मुखवस्त्रिका आवती होय तो तेना अक्षर बतावो. अने पोतशब्द सामान्यवस्त्रनो पर्याय तो ठेकाणे ठेकाणे देखाय छे. (९) केटलाएक वळी आवश्यकचूर्णिना एक आलावानो खंडित भाग लइ मुखवस्त्रिका सिद्ध करे छे. ते अक्षर ए रीते छे के "विनयमूळ धर्म जाणी गुरुने वांदवा इच्छतो थको संडासा पडिलेही बेशीने मुखवस्त्रिका पडिलेहे. पछी मस्तक सहित काया प्र'मार्जीने उत्तम विनयवडे त्रिकरण शुद्ध वांदणा आपे." इहां ए उत्तर छे के ए अक्षर तो केवळ साधुना अनुष्टान बाबतना छे माटे एना पूर्वापर भाग छोडीने फक्त खंडित आलावो बताववो वाजवी नथी. अने पूर्वापर भाग तपासतां खुल्लु मालम पडशे के ते साधुना माटेज छे. कारण के त्यां कहेलं छे के बे हाथे रजोहरण लई संयतभाषाए आलोचना करवी, ते श्रावकने केम घटे? - (१०) कोई कहे के आवश्यकचूर्णिमां कृष्णना वांदणानी विधिमां पांच अभिगमन नथी त्यां ए उत्तर छे के त्यां राजा नीकल्यो ए पद तो छेज माटे ते पदनी व्याख्या करतां अतिदेशना बळे उपवाइमां कहेल कोणिकना आलावानी तमाम बिना आवी शके छे. ए माटेज चूर्णिमां पण पहेलो राजा नीकल्यो एवं कही आगळ लख्युं छे के बीजा राजाओ थाकीने बेठा.माटे Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (२५) इहां पहेलां परिवार नहि कह्यो पण वांदणावेला अतिदेशना बळे जेम परिवार लीधो छे तेम पांच भाभिगमन पण लई शकाय छे. आ अतिदेशव्याख्या टीकाकाराने संमतज छे. जे माटे भगवतीटीकामां पर्षदा नीकली ए पदे करीने उववाइसूत्रनो ते संबंधे चालेल बधो आलावो लीधो छे. (११) पूनमीया पक्षना वर्धमानमूरिए पोताना करेल कुलक. मां मुखवखिका सिद्ध करवा मंडाण करेल छे. तेमा सात युक्तिओ करी छे तेमांनी छर्नु तो ऊपर खंडन थई चूक्युं छे. सातमी द्रव्यकीतनी युक्तिनुं आगल करशुं. पण ए कुलक करनार ऊपर. आ एक मोहोटो दोष रहे छे के तेणे आवश्यकचूर्णिमा रहेला भावारकशब्दने फेरवीने तेज चूर्णिना नामे पंगुरण शब्द लख्यो छे. ए कुलकनी सातमी युक्ति ए छे के साधुए द्रव्यकीत तथा भावक्रीत आहार न लेवो एम सूत्रमा कर्तुं छे. त्यां द्रव्यकीत ते ए के मुखयस्त्रिकादिक द्रव्य श्रावकने आपीने आहार लेवो. माटे ए ऊपरथी श्रावकने मुखवस्त्रिका ठेरे छे. एर्नु उत्तर ए छे के ए गाथामां लखेल द्रव्य क्रीत आहार करवा लायक छ के नाई ? जो करवा लायक नथी तो मुखवत्रिका शाथी सिद्ध थशे? वळी जो कोई कुयति के कुश्रावक तेम करे तो तेथी मुयति सुश्रावकने शुं आव्यु ? . (१२) वळी जो कोई विवाहचूलिका के व्यवहारचूलिकाना पाठ बतावे तो तेने ठगज जाणवो केमके ते ग्रंथोज आजकाल नथी. (१३)वळी कोई पिंडनियुक्तिनी "निम्मलगंध"गाथामा रहेल पुत्ताइ शब्दे मुखवस्त्रिका जणावे तोते गेरवाजबी जाणवं.केमके मळयगिरिए पोतशब्दे नाना बाळकने लायकनां वस्त्रनां कटकां कहेलां छे. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) शतपदी भाषांतर. विचार २१ भो. प्रश्नः-विशेषावश्यकमां गुरुना विरहे स्थापना कहेल छ माटे तमे श्रावकने स्थापनाचार्य केम नथी मानता ? - उत्तरः-विशेषावश्यकमां जे कहेलुं छे ते श्रावक आश्री नथी किंतु स्थविरकल्पी साधु माटे कहेल छे. केमके तेमने हमेशा गुरुकुलमा रहेवानुं छे. तेथी जो कोई वेळा गुरुनो वियोग पडे तो तेमणे गुरुकुलवास जणाववा स्थापनाचार्य स्थापनो. ते स्थळ पू. र्वापर जोवाथी प्रगट मालम पडशे. आ स्थळे नीचे मुजब बार बाबतो सिद्ध करी बतावीए छीए. (१) जिनकल्पी वगेराने दंडादिरूप स्थापनाचार्य नथी, कारण के तेओने गुरुकुळवासनी अपेक्षा नथी, तेमज दंडादिक उपकरण होतां नथी. माटे मनमांज गुरुनो भाव थापे छे. . (२) श्रावकोने पण स्थापनाचार्य नथी कारण के गुरुकुळनिरपेक्ष जिनकल्पी मुनिओने पण ज्यारे ते नथी, त्यारे ते श्रावकने क्यांथी होय ? . कोई पूछशे के शुं त्यारे श्रावक गुरुकुलवासी नथी ? तेर्नु उत्तरं ए छे के गुरुकुलवासी ते गणाय के जे तेमनी साथेज खाए, तेमनी साथेज सूए, तेमनी साथे पडिकमणुं करे, तेमनी साथेज मामोगाम विचरे, गुरुयोग्य भातपाणी लावी आपे, रात दिवस पासे रहे, अने तेमनाज हुकममां वर्ते. माटे श्रावक कंइ गुरुकुल. वासी न गणाय. ___(३) प्रदेशिराजा, तथा शंखश्रावक वगेरानी पौषधशाळामां पण स्थापनाचार्य जणातो नथी. कारण के तेमणे पोसह तथा अणसण करतां पौषधशाळामां जेम संथारा तथा स्थंडिळभूमिनी - Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (२७) त्युपेक्षणा करी छे तेम कंइ स्थापनाचार्यनी प्रत्युपेक्षणा करी नथी. (४) स्थापनाचार्य शिवाय पण अनियतस्थानमा सामायिक थई शके छे. केमके आवश्यकचूर्णिमां अनृद्धिप्राप्त श्रावकने चारे स्थळे सामायिक कर कह्यु छे ते चार स्थान ए के चैत्यमां, साधुना पासे, पौषधशालामां, के जे कोइ स्थळे अवकाश मळे त्यां सामायिक करवू. इहां "जे कोइ स्थळे'नो ए अर्थ छे के खेतर,खळा, सभा, प्रपा, वखार, के सथवाराना पडाव वगेरा स्थळे जीवजंतुरहित शुद्ध भूमि जोइ श्रावके सामायिक करवू. माटे इहां स्थापनाचार्य शी रीते संभवी शके ? कारण के श्रावको कंइ खेतरपधरे के गामांतरे जतां स्थापनाचार्य गांठे बांधी जता आवता नथी. (५) स्थापनाचार्य शिवाय अनुष्ठान करतां कंइ शून्यवाद प. ण नथी. कारण के आवश्यकचूर्णि, तथा पंचाशक वगेरामां अ. नियतस्थाने पण सामायिक करवू कहेल छे तथा आवश्यकचूर्णि, अनुयोगद्वार, विशेषावश्यक, तथा योगशास्त्रनी टीकामां मनमां गुरुनो भाव राख्याथी पण स्थापनाचार्य थाय छे एम कहेल छे. तेमन जिनकल्पी मुनिओ दंडकादि स्थापनाचार्य विना पण अनुष्टान करे छे. तथा बळी मदेशि राजा, अने शंख श्रावक वगेरानी पौषधशालामा स्थापनाचार्य कह्यो नथी तेथी ए ग्रंथो तथा ए पूर्वपुरुषोनुं प्रमाण लइ आजकालना श्रावको पण दीठेला वांदेला गुरु महाराजने मनमा साक्षात् खडा करी चिंतवता थका तेना आलंबने अनुष्टान करे तेमां शो शून्यवाद थाय ? शून्यवाद तो सारे थाय के ज्यारे साक्षात् गुरु पासे के स्था. पनाचार्य पासे रह्या छतां पण चित्त बीजा स्थळे आपेल होय. . वळी जो बाहेरनी स्थापना शिवाय मनमां गुरुनु स्मरण छ. तां पण क्रिया नज कराय एम होय तो तमारा पक्षना पण विवेकी Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) शतपदी भाषांतर. श्रावको प्रभाते ऊठी सामे प्रतिमा नहि छतां पण मनमां कोइ चैस के तीर्थ धरीने चैत्य वांदे छे तेमज केटलाएक इरियावही पडिकमी सज्झाय करे छे, ते केम घटे ? वळी जे गामो के घरोमां न होय प्रतिमा, अने न होय स्थापनाचार्य, तेवा स्थळमां रहेनारा श्रावकोए शं अविरतज रहे के ? माटे तेवा स्थळे देवगुरुने मनमां धारीनेज चैत्यवंदन, पचखाण, इरिया वही, सज्झाय वगेरा करवां जोइए. (६) श्रावकना स्थापनाचार्यनी शास्त्रमां क्यां विधि पण जणाती नथी केमके सूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, अने टिप्पनरूप आगम ग्रंथोमां क्यां पण श्रावकने स्थापनाचार्य आत्री रीतनो अने आवी रीते प्रतिष्ठित करावेलो होय एवं कधुं नथी. तेमज श्रावके पण आ विधिए तेनी प्रत्युपेक्षणा करवी तथा गामांतरे लइ जनुं इत्यादि विधि पण क्यांए जणाती नथी. वळ तमने अमो पूछीए छीए के जिनबिंबनी माफक स्थापपनाचार्य पण मूर्त्तिरूप केम नथी करावता? चार अंगुलनो शा अभिमाये करावो छो? वळी पुरुषोए पडिलेहेला स्थापनाचार्य आगळ स्त्रीओ अनुष्टान करी शके पण स्त्रीओए पडिलेहेला आगळ पुरुषो नहि करी शके एम शा कारणे कहो छो ? तेमज चरितानुवादे पण कोई श्रावके स्थापनाचार्य स्थापेलो के पडिलेहेलो के तेना आगळ खमासमण दीघेलां जणातां नथी. (७) स्थापनाचार्य बाबत तेवी घटमान युक्तिओ पण नथी. जुओ के स्थापनाचार्यने गुरु लेखी अपूकाय तथा ऊजाळाना रूपर्शथी बचावो छो, अगर भूलेचूके ते थइ जतां श्रावकने प्रायश्चित्त आपो छो त्यारे ते करतां मोहोटा प्रायश्चित्तवाळो स्त्रीनो संघट्टो केम नथी अटकावता ? वळी आधाकर्मी स्थान, तथा पाटलां के म Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (२९) सेना माटे राखो छो? तेमज तेनाज, माटे धोएली मोपती ऊपर तेने केम स्थापो छो? तथा ते गृहस्थनां घरे केम वास करी शकशे? तथा शी रीते गामांतर जतां वाहन ऊपर लइ जइ शकाश? इत्यादि विचार करतां घटमान युक्तिओ पण. जणाती नथी. (८) वळी मनमां गुरुनो भाव राख्याथी पण स्थापनाचार्य थई शके छेज; कारण के विशेषावश्यक, आवश्यकचर्णि, अनुयोगद्वारवृत्ति, विशेषावश्यकत्ति, तथा योगशास्त्रदृत्तिमा साक्षात् गुरुना अभावे दंडकादि स्थापनाचार्य स्थापवो अथवा मनमा गुरुनो भाव धारवो एम बे प्रकारे प्रतिपादन करेल छे. (९) स्थविरकल्पमां ए स्थापनाचार्य युक्त छे. कोई कहेशे के ज्यारे स्थापनाचार्य बे प्रकारे थाय छे अने जिनकल्पिओ तथा श्रावको दंडकादिरूप स्थापनाचार्य नथी स्थापता सारे स्थविरकल्पिओने पण तेम करतां शो दोष आवशे? तेनुं उत्तर ए छे के स्थविरकल्पिओने गुरुना विरहमां गुरुकुलवासि. पणुं जणाववा माटे सिद्धांतमा ठेकाणे ठेकाणे दंडकााद स्थापनाचार्य कहेल छे माटे तेमणे तो ते स्थापवोज जोइये. इहां आवश्यकचूर्णि, योगसंग्रह, तथा ओघनियुक्तिनां प्रमाण रहेलां छे. (१०) इहां जे युक्तिओ छे ते पण शास्त्रानुगतज छे. कोई कहेशे के तमो अनेक प्रकारनी युक्तिओज बतावो छो, पण एम नथी बतावी शकता जे फलाणा सिद्धांतमां श्रावकने दं. डकादिरूप स्थापनाचार्यनी ना पाडेल छे तेनुं ए उत्तर छे के युतिओ पण सिद्धांतने अनुगनज आपेली छे, कई स्वमतिविकल्पित युक्तिओ आपी नथी. (११) कोई पूछे के स्थविरकल्पि मुनि स्थापनाचार्य राखे छे त्यारे साध्वीओ शुं स्थापे? तेनुं ए उत्तर छे के तेओ पोतानी गु. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) शतपदी भाषांतर. रुणीनी स्थापना स्थापे, कारण के गुरुणी पासेज हमेश तेओ रहे छे तथा शीखे छे. अने साध्वीओने गुरुकुलवासनां लक्षण गुरुणी साज घटमान थाय छे. (१२) कोई कहेशे के प्यारे गुरुना मुजब जिननी पण मनमां श्रावक स्थापना करशे, प्रतिमानी शी जरुर छे? तेनुं ए उत्तर छे के ए बात अयुक्त छे, कारण के जिनप्रतिमाओ तो शाश्वती तथा भरतादिके करावेली अनेक ठेकाणे वर्णवेली छे. तथा व्यवहारभाष्यमा क छे के लक्षणयुक्त, मनोहर, समस्त अळंकारशोभित प्रतिमा जेम जेम मनने आनंद ऊपजावे तेम तेम वधु निर्जरा थाय. तथा तेनी स्नपन, विलेपन, पुष्प, वस्त्राभरणरूप पूजा ठेकाणे ठेकाणे कही छे. माटे ते तो श्रावके अवश्य कराववी जोइये. अने स्थापनाचार्य तो शाश्वतो अथवा कोइ श्रावके करेलो के करावेलो कह्यो नथी. तेमज तेनी पूजाविधि पण क्यां बतावी नथी. माटे ते पेटे तो मनमां गुरुभाव लावीने " गुरुना समक्ष हुं आ सर्व अनुष्टान करूं छु” एवो विचार घरवो जोइए. अने एवो भाव दंडकादिरूप स्थापनाचार्य मां के मनमां स्थापेला गुरुमां बन्नेमां सरखो लावी शकाय छे. GK# विचार २२ मो. प्रश्नः - तमे साधुने वांदतां वे खमासमण केम नथी आपता ? उत्तरः- तमारा पक्षमां पण केटलाक अनुष्ठानमा एकज खमासमण अपाय छे. जुओ अगाडपछाडनी मंडळीमां साधुओमां एकबीजाने वांदतां, तथा सांजसवार पडिकमणामां आचार्य उपा ध्याय तथा सर्व साधुने वांदतां, तथा श्रुतनी वाचनामा काउसग Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. कर्या पछी सर्वने वांदतां, तथा वांदीने काळनिवेदन करता,तथा प्रव्रज्यानी विधिमा सामायिकारोपन प्रवेदन करतां, तथा उत्थापनामां व्रतारोपनुं प्रवेदन करतां, तथा आलोचनानुं प्रवेदन करतां, एक एक खमासमणज चाले छे... वळी बौद्ध, ब्राह्मण, भागवत, तपस्वि, तथा दिगंबरोमां पण एकजं नमस्कार चाले छे. तेमज लोकमां जुहार तथा पगेलागणां पण एकजवार कराय छे. __ कोइ कहेशे के मोटा बे वांदणानी माफक संक्षेप वंदनमा पण बे खमासमण जोइये. तेनुं ए उत्तर छे के नीचे लख्या शास्त्रो भणतां प्रारंभे तथा समाप्ति थतां द्वादशावर्त वांदणां देवां एवी मर्यादा छे, छतां वाचनाचार्य कोइवेला द्वादशावर्त्त वांदणा अने कोइ वेळा छोभ वांदणा देवरावे छे, एम बे रीते आगमसंमत छे. माटे इहां नकी देवाना द्वादशावर्त वांदणाना स्थाने जो एक ख. मासमणे करीने पण छोभ वांदणां करे तो तेमां शुं पूछी शकाशे.? जेमना प्रारंभे तथा अंते वांदणां देवाय एवा ग्रंथोनां नाम नीचे मुजब छे.. १ अंग, उपांग, मूळ, तथा छेदना श्रुतस्कंध, अध्ययन, अने उद्देशा. २ एमनी नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, तथा वृत्तिओ. ३ ओघनियुक्ति, पिंडनियुक्ति, ओघभाष्य, नंदी, तथा अनु योगद्वार. ४ उपोद्घातनियुक्ति, तथा पयन्नाओ. ५ दशाश्रुतस्कंधनी दशाओ, भगवतीना शतको, ज्ञातानी धर्म कथाओ, अंतगड-अणुत्तरउववाइ-तथा निरयावळीना वर्गों, जीवाभिगमनी प्रतिपत्तिओ, पनवणाना पदो, सूरपन्नत्ति तथा चंदपन्नत्तिना पाहुडा तथा पाहुडपाहुडा, दशवकालि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) शतपदी भाषांतर. कने आचारांगनी चूळिकाओ, आंवश्यक-निशीथ-वृहत्कल्प -व्यवहारना पीठो, निशीथन प्रलंवप्रकृत तथा ठवणाप्रकृत, वृहत्कल्पनुं मलंबप्रकृत तथा मासकल्पप्रकृत, व्यवहारर्नु आलोचनाप्रकृत तथा व्यवहारप्रकृत, तथा अतिदेशथी एटले या. वत् शब्दथी आवता शतक, वर्ग, अध्ययन के उद्देशाओ. ६ संग्रहणी, क्षेत्रसमास, तथा कर्मग्रंथ. विचार २३ मो. प्रश्नः-वृषभकल्पनाए साधुए वसति लेवी ए वात मा. नो छो के नहि. ?. उत्तरःमानीएज छीए. अने जो तेवी वसति मळी शकती होय तो शुं कोइ बीजी विरुद्ध वसतिमा रहे ? ( बाकी अपवादनी वात जूदी छे.) इहां वृषभ कल्पनानो विचार आ रीते छे के जे गाममा र. हेतुं तेना पूर्व के उत्तर दरवाजा सन्मुख ते दरवाजा ऊपर मुख आवे ए रीते डाबे पासे बेठेलो बळद कल्पवो. त्यां ज्यां शीगडां खूचे त्यां रहेतां कलह थाय, पगोमा रहेतां वळतुं स्थान न मळे, पेट नीचे रहेता रोग थाय, पुच्छ आवे त्यां रहेतां फंट पडे, स्कंध के पीठनी स्थळे रहेतां बोजो ऊचकवो पडे, तथा पेटना स्थळे रहेतां घात थाय, माटे त्यां न रहे. किंतु मुखमूळमा रहेतां खानपान मळे, तथा मस्तके अने कोटना स्थळे रहेतां पूजा सत्कार मळे माटे सां रहे. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार २४ मो. प्रश्नः - साधुए भोजन करी दिशाए जबुं कहेल होवाथी त्रीजा पहोरेज दिशाए जवं जोइये, छतां तमे आगल पाछल केम जाओ छो? उत्तर :- तमे कहो छो तेम कंइ एकांत नथी. कारण के ओघ - नियुक्तियां काळसंज्ञा तथा अकाळसंज्ञा ए बन्नेनी विधि बतात्री छे. पण कंइ एम नथी कह्युं के अकाळे बहिर्भूमिए नहि जनुं . कारण के ते ग्रंथमांज कहेल छे के आ देहमां वात, मूत्र, तथा पुरीषरूप त्रण शळ्य रहेल छे तेनो वेग अटकाववो जोइये नहि. ( ३३ ) विचार २५ मो. प्रश्नः - पेलीवर्षादमां ऋण दिन सूधी साधुने जमवुं पण न कल्पे एवी बात छे के नहि ? उत्तर:- एवी वात छेज नहि. किंतु ए तो अणसमजपनी बात छे. बाकी खरी बात तो आ प्रमाणे छे. वरशाद त्रण प्रकारनी छे: (१) जेमां बुद्बुद थाय ते बुदबुददृष्टि. ते वरसतां त्रण दिवस पछी सघळु अप्कायमय थइ जाय. (२) जेमां बुदबुद न थाय ते तद्वर्जवृष्टि. ते वरसतां पांच दिवस पछी संघळु अकायमय थइ जाय. (३) मां फुसार पडे ते फुसितवृष्टि. ते वरसतां सात दिन पछी सघळु अप्कायमय थइ जाय. माटे जो ए बुदबुद वगेरा वरशादो त्रण, पांच, के सात दिन उपरांत पण निरंतर पड्या करे त्यारे साधुए सर्व चेष्टाओ बंध ૫ . Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) शतपदी भाषांतर. करवी. पण कंइ त्रण, पांच के सात दिननी अंदर चेष्टा बंध करवी कंही नथी. तेमज आंतरो मारीने वरशाद पडे तेमां पण चेष्टा बंध करवी कही नथी. ए रीते वृष्टिमां पण साधु भोजन करी शके. . विचार २६ मो. प्रश्नः-मात्रक (माटुं) नामे पाणीनुं वासण केम वापरो छो ? उत्तरः-ए बाबत निशीथचूर्णिमां खुलासो करेल छे के स्थविरकल्पि मुनिओना औधिक उपकरणमांज जिनवरे मात्रक कहेल छे, पण ते आचार्यादिक माटे वापरवा कहेल छे. परंतु आर्यरक्षित स्वामिए वर्षाकाळमां घणा साधु भिक्षार्थे हीडतां अप्कायादिकनी वधु विराधना थती विचारी आहारपाणीनी सगवड माटे वर्षाकाळमां शेष साधुओने पण बीजूं मात्रक वापरवानी अनुज्ञा करी छे. बाकी शेषकाळमां मात्रक राखतां अतिलोभनो प्रसंग जाणी मनाई करी छे. ___ माटे आचार्यादिकना माटे एक मात्रक हमेशां राखq. अने बीजुं मात्रक शेषसाधुओए वर्षाकाळमां राखq. @ विचार २७ मो. (साध्वी विहार.) प्रश्नः-ओछामा ओछी बे साध्वीओ भिक्षा लेवा जइ शके के त्रण? उत्तरः-ओछामा ओछी त्रण जइ शके. केमके आगममां बेनी ना पाडी त्रण जवान लखेल छे. . Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ३५ ) (१) त्यां कल्पभाष्यमां लख्युं छे के त्रण साध्वीयो साथै विचारतां कूतराना के तरुण पुरुषांना पराभवथी पोतानो बचाव करी शके, परिहरवा लायक तथा नहि परिहरवा लायक घरो जाणी शके छ कान थवाथी छानुं रहस्य करतां अटकी शके, तेमज जे द्रव्य भेगुं करतां आत्म तथा संयमविरुद्ध थाय जेबुं के- दर्दि अने तेल अथवा दूध अने कांजी, ते, तथा जे देहवि - रुद्ध थाय जेवुं के शीत अने उष्ण, तेवां द्रव्य जूदां जूदां लइ शके. , (२) व्यवहारभाष्य तथा निशीथभाष्यमां त्रणथी ओछी साध्वीयाने गोचरी वगेरा कामे जतां निषेध पाड्यो छे. (३) वळी ओघनिर्मुक्तिना भाष्यमां साध्वीयोना उपाश्रयमां माहूणा साधु आवतां तेमने वांदवानी विधियां पण एकुंज लख्युं छे के जो गणिनी स्थविरा होय तो बे के ऋण जणी थइने अने तरुणी होय तो चार के पांच जणी थइने दरवाजानी बाहेरली बाजु नीकळी तेने वांदे अने बाकीनी साध्वीयो अंदर रही थकी वांदे तथा सुखसाता पूछे. ए संबंधे कल्पभाष्यमां एम लख्युं छे जे बे के ऋण जण थइ आवेला पाहूणा साधुआंने त्रणजणीयो थइने गणिनी वांदीने सुखसाता पूछे. (४) कोइ केहेशे के ज्ञातासूत्रमां तेतलिपुत्रना घरे साध्वीयोनो संघाडो आवेल कह्यो छे माटे बे पण सिद्ध थइ शके. तेनुं ए उत्तर छे के साध्वीयोनो संघाडो ऋण साध्वीयोंथीज थाय छे. जे माटे पर्युषणाकल्पनी चूर्णिमां लख्युं छे के साधु उत्सर्गे बे होय अने साध्वीयो त्रण; चार, के पांच होय. (५) कोई कहेशे के आवश्यकचूर्णिमां लख्युं छे के बाहुब - ळिने काउसगमां बारमास पूरा थतां ऋषभदेवस्वामिये ब्राह्मी Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६) शतपदी भाषातर. अने मुंदरी ए बे जणी तेने समजाववा मोकलावी, ते केम ? तेनुं ए उत्तर छे के इहां जे बे मोकलावी एम कह्यु छ ते स्वामिपणानी अपेक्षाथी कडं छे, कंइ परिवारनो अभाव बताववा नथी कडं. केमके त्रण लाख साध्वीयोनी धणीआणी ब्राह्मी अने मुंदरी परिवारराहत मात्र बेज जणी जाय ए केम घटे? माटे जेम तीर्थकर, गणधर, के मूरि समोसर्या, राजा नीकळ्यो, के अमात्य आव्यो के महत्तरा वी एवं कहेतां त्यां परिवार नहि कह्या छतां पण परिवार आवी शके छ तेम इहां पण जाणवू. (६) वळी वसुदेवहिडिमां तो खुल्लं कर्तुं छे के बाहुबळिने प्रतिबोधी कार्य सिद्ध करी सपरिवार ब्राह्मी तीर्थकर पासे आवी. माटे इहां जेम प्रतिबोधीने पाछी आवतां सपरिवार लखी छे तेम जतां पण सपरिवारज लाभे छे. . (७) कोइ पूछे के त्यारे वसुदेवहिडिमां विमलामा अने मुप्रभा नामे वे साध्वीयो अंतेउरमां केम गएली लखी छे तेनु ए उत्तर छे के ए बे साध्वीयो पूर्वभवे सौधर्मेंद्रनी इंद्राणी हती त्यांथी चवी राजकुमरी थइने जातिस्मरण पामी बाळपणमांज असं. तसंवेग पामी साध्वीयो थइ छे. माटे तेमनो परिवार अवश्य होवोज जोइये. पण कदाच कारणवशे परिवार बाहेर मूंकी ते बे जणीओ अंतेउरमां पेठी होय अथवा परिवार साथे अंदर पेशी पछी परिवारने बाहेर मोकली पोते बे जणी त्यां रही होय तो ए रीते बे साध्वीयो पण रही घटी शके छे. पण तेटला आलंबनथी कंइ बे जणीनो विहार सिद्ध थइ शके नहि. कारण के का. रणना वशे तो कदाचित् एकली पण साध्वी थइ जाय तो कारणे बे थाय तो तेमां शुं कहेवार्नु छ ? (८) कोई कहेशे के बृहत्कल्पमां कडं छे के एकली साध्वीने Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. . बाहेर जq न कल्पे बाकी बे के त्रण के चार जणी थइने बाहेर जवं कल्पे. तेनुं उत्तर ए छे के वृहत्कल्पमां एवो पाठज नथी किंतु चित्रावाळगच्छना पद्ममूरिए तेवो पाठ रचीने लखी काढ्यो छे. मूळपाठ, भाष्य तथा चूर्णिमां तो रातनी वेलाएज विचारभूमि • तथा स्वाध्यायभूमि बाबतज बेत्रण के चार जणी माटे विधि ल खी छे. कंइ दिवसमां गोचरी के साधुवसति के बहिर्भूमि के विहारादिकमां जवानुं नथी लख्यु. छतां ए सूरिए आजुबाजुना पदो छोडी सामान्यपणे "बाहेर जq" पद उमेर्यु छे ते बहु अयुक्त छे. कोइ कहेशे के त्यारे राते के विकाळे पण विचारभूमि तथा स्वाध्यायभूमिए तो बे जणी जइ शके के नहि? तेनुं ए उत्तर छे के तेम पण नहि थइ शके कारण के पाठांतरमां ते बाबत पण बे जणीनो निषेध कर्यो छे. अने ते बीजो पाठन चूर्णिकारे प्रमाण को छे. माटे दरेक कामे त्रण साध्वीयोएज जर्बु. (९) कोइ कहेशे वृहत्कल्पना पांचमा उद्देशाना भाष्यमां बीजासहित बाहेर जवू लखेल छे माटे बे जणी पण जइ शकशे तेनुं ए उत्तर छ के ए गाथानी बे चूर्णिकारोए तथा वृहद्भाष्यकारे पण व्याख्या करी नथी माटे तमेज कहो के ए गाथा उत्सर्गपदनी छे के अपवादनी, जो अपवादनी तो वांधोज नथी. अने जो कहेशो के उत्सर्गनी तो ते मोहोटी भूल छे. कारण जे भद्रबाहु. स्वामि आगल एज ग्रंथमां सर्व स्थळे बे साध्वीयो माटे प्रायश्चित्त कहे छे तेज भद्रबाहुस्वामि पाछा इहां अपवाद विना पण सामान्यपणे बे साध्वीने विचरवानी रजा आपे ए केवु गणाय ? वळी आगमनी व्याख्या तो परस्पर बीजा आगमना पण अविरोधे करवी जोइये. तो एकज ग्रंथमां कर्ताना पूर्वापर वचन बाधित केम कराय? माटे ए गाथाने यातो अपवादनी मानवी Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. शतपदी भाषांतर. जोइये अथवा तो आगला ग्रंथ साथे विरोध नहि आवे तेवी बीजी कोइ रीते व्याख्या करवी जोइये. ते रीते एम थइ शके छ के जेम "शाळ अने महाशाळनी साथे बीजा गौतम स्वामी दीधा" इहां सपरिवार गौतम त्रीजा छे छतां तेने वीजा करी कह्या छे तेम, अथवा तो लोकमां कहेवाय छे के "फलाणा मुसाफरनी साथे वीजा घणा छे" इहां बीजा शब्दे करीने सहाइया (संघातीओ) आवे छे तेम इहां पण बीजा शब्दनो अर्थ सहाय करतां, सहाय साथे बाहेर जq सिद्ध थशे. वळी आगममां पण बीजा शब्दनो अर्थ सहाय थइ शकतो जणायो छे केमके आठमा योगसंग्रहनी चूर्णिमां एक कथामां वात आवे छे के "गणिकाए कह्यं के मने सहाइया आपो सारे राजाए तेने सात बीजा दीघा." इहां बीजा एटले सहाइयाज खुल्ला देखाय छे. HO . विचार २८ मो. प्रश्नः-पहेली, बीजी, तथा चोथी पोरसीमां श्रावकोने जे मुनि धर्म कहे ते काथिक कहेवाय छे, माटे तमे ते वेला केम धर्मदेशना करो छो? उत्तरः-ए बाबत शास्त्रमांज खुलासो थएल छे. ते एवी रीते के जे साधु सूत्रपौरुषी अने अर्थपौरुषीनां काम छोडी रात दि- . वस धर्मकथा करवानुज काम कर्या करे तेने काथिक गणवो. इहां जो के धर्मकथा करवी ए काम तीर्थना अव्युच्छेद तथा प्रभावनानो हेतु होवाथी भलुज छे, छतां पण सर्वकाळ धर्मकथा कर्या करवी नहि जोइये; कारण के.तेथी बीजां सर्व काम अटके छ. किंतु गच्छने मदद करनार क्षेत्र जाणी, अथवा हीणा काळ. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ... ( ३९ ) मां आ लोको दानना श्रद्धावंत थइ मददगार थशे एवं जाणी, अथवा राजादिक महाकुलीन पुरुष के जे एक जण उपशांत थ.. तां घणा उपशांत थशे एवं जाणी धर्मकथा करवी. (इहां कारण साथे कंइ कालनियम नथी देखातो.) वळी जो सूत्रार्थ पौरुषीमा साधुओए देशना नज करवी एम होय तो पृष्टचंपामां पिठर तथा गागलि वगेरा आगळ, अने अटापद ऊपर वैश्रमण वगेरा आगळ गौतमस्वामिए, तथा चित्र अने प्रदेशि आगळ केशिकुमारे, तथा वसुभूतिना घरे आर्यसुहस्तिए, तथा पाटलिपुत्रमा वैरस्वामिये केम धर्मदेशना करी? . . वळी पडिकमणा संबंधे कहेल छे के जो कशी अटकाव न होय तो बधा मुनि भेगा पडिकमणुं थापे, पण श्रावकादिकने ध कथा कहेवानी होय तो गुरुमहाराज पाछळ थापे. माटे इहां पडिकमणा वेला पण कोइ वेला देशना करी शकाय एम जणाय छे तो बीजी वेळानुं शुं कहेवू ? किंतु एटलुं घटे छे के निरंतर नि:कारणे संयमयोगनी बाधा पूर्वक धर्मकथा नाह करवी. 15 विचार २९ मो. .. प्रश्नः-यतिओए सूत्रपौरुषीमांज सूत्र अने अर्थपौरुषीमांज अर्थ शीखवो जोइए छतां उलटपालट केम करो छो? - उत्तरः-उत्सर्गमार्ग तो एमज छे; पण कारणवशे उलटपालट पण थइ शके छे. ए वात निशीथचूर्णिमां छे. त्यां कहुं छे के जे काळे जे कर, होय ते काळे तेज करवू तेमां निःकारणे उलटपालट करे तो प्रायश्चित्त आवे पण कारणे उलटपालट पण कराय छे. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) शतपदी भाषांतर. विचार ३० मो. (श्रावके त्रिविधत्रिविधे मिथ्यात्व परिहरवू जोइये.) प्रश्न:-श्रावकने मिथ्यात्वनो परिहार त्रिविधे त्रिविधे छे के केम ? - उत्तरः-(१) श्रावकने मिथ्यात्वनो परिहार त्रिविधे त्रिविधेज छे. केमके साधु अने श्रावकने सम्यक्त्वमां कशो फरक नथी. कारण के वसुदेवहिडिमां वात आवेली छे के दृढधर्मकुमार कहेवा लाग्यो के कुमार, अर्हत्ना शासनमां साधु अने श्रावकने विनय सरखो छे तथा “जिनवचन सत्य छै" एवी दृष्टि पण मरखी छे बाकी चारित्रनी बाबतमा साधुओ महाव्रतधरनार छे अने श्रावको अणुव्रत धरनारा छे. तेमज श्रुतनी बाबतमा साधुओसमस्तश्रुत धरनार छे अने श्रावको नवतत्वमा कुशल होय छे. - उपदेशमाळानी वृत्तिमां पण ए वात एवीज रीते कही छे. (२) वळी दर्शनसत्तरिमां पण श्रावकने मिथ्यात्वनो शिविधे विविधे त्याग कह्यो छे. अने त्यां मिथ्यात्वनुं स्वरूप आ प्रमाणे लख्यु छे. "मिथ्यात्वना बे भेद छे:-लौकिक अने लोकोत्तर. ए दरेकना पाछा बे भेद छे:-देवगत अने लिंगिगत. त्यां लौकिकदेवगत ते ए के लौकिक देवोमा मुक्तिनिमित्ते पूज्यतानी बुद्धि धरी तेमनु स्मरण, स्तवन के पूजन करवं. लोकोत्तरदेवगत ते ए के लोकोत्तर देवमां पण इच्छा अने परिग्रहादिक लौकिक देवनां लिंगोनो आरोप करवो. ___ लौकिक लिंगिगत ते ए के तापस के शाक्यमती श्रमण वगेरा लिंगधारीओने वंदन पूजन के, सत्कार करवो अथवा तेमनी साथे वगर बोलावे आलाप करवो के तेमनी साथे सोबत वगेरा करवी. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ४१ ) लोकोत्तरलिंगिगत ते ए के पासत्था, उसन्ना, कुशीळ, संसक्त, तथा यथाच्छंदाओने वांदवा के तेमनी प्रशंसा करची. इहां यथाछंदा ते ए के जेओ स्वछंदमतिवडे उत्सूत्र आचरे तथा प्ररूपे, जेवू के, देरासर- द्रव्य वधारवा माटे घरो लइ भाडे आपवां, अथवा धान्यनी धीरधार करवी, तथा देरासर माटे कूवा अने वाडीयो करवी, तथा नवा कर कराववा, तथा यतिए देरासरनी सारसंभाळ करवी, इत्यादिक अनेक प्रकारचें उत्सूत्र छे. शास्त्रमा जे यतिने देरासर संबंधी खेतर, पैशा, गाम वगेरां संभारवां लख्यां छे ते एवा प्रसंगे के कोइ परधर्मी पराभव करी ए मिलकतनो लोप करतो होय तो त्यां यतिए तेनी संभाळ करवी, पण कंइ सामान्यपणे तेनी संभाळ करवी कही नथी.. एटला माटे जे ऊपर प्रमाणे उत्सूत्र प्ररूपे तथा आचरे तेने यथाछंदो जाणवा. इहां याद राखवू के जेओ संविग्नपाक्षिक छे ते तो शुद्ध प्ररूपणा करनार होवाथी यथाछंदा गणाता नथी.. एवा यथाछंदा वगेरे हीणाचारियो ज्यां रहेता होय ते अ. नायतन जाणवू. खां अकस्मात् रीते साधुओए जतां बनी शके तो तेमने उत्सूत्रप्ररूपणा करतांज भांजी नांखवा, अगर तेम न बने तो पोताना कान ढांकी लेवा. हवे ज्यारे साधु माटे पण आम कर, कहेल छे त्यारे तथाविध आगमना अजाण श्रावक माटे शु कहेवू ? अर्थात् तेणे तो दूरज रहे. __आटली वात दर्शनसत्तरीमां मिथ्यात्वना अधिकारे कही छे ते उपयोगी जाणी इहां टांकी लीधी छे (३) कोइ पूछे के साधुओ त्रिविधे त्रिविधे सम्यक्त्वनो अंगीकार क्यारे करे छे तेणे जाणवू के सर्वविरतिसामायिक लेतांज सम्यक्त्वनो अंगीकार आवी जाय छे. केमके आवश्यक चूर्णिमां Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ( ४२ ) शतपदी भाषांतर. सामायिकनो अर्थ करतां कर्तुं छे के ज्ञान, दर्शन, अने चारित्ररूप भावसम्यक्नो जे आय एटले लाभ तेज समाय अने समाय तेज सामायिक माटे सामायिक अंगीकार करतां ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रनो अंगीकार थाय छे. ___वळी एज चूर्णिमा व्याख्यांतरे “तिविहं तिविहेणं" नो अर्थ एम को छे जे तिविहं एटले ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रभेदे करी त्रण प्रकारचें सामायिक करुं छु. अने तिविहेणं एटले मिथ्यात्व, अज्ञान अने अविरितरूप त्रण भेदे करी सर्व सावधनुं पचखाण करुं . माटे आ व्याख्यामां खुल्लो अंगीकार देखाय छे. ..वळी विशेषावश्यकमां पण सामायिकनी व्याख्या करतां सम्यक्त्व, श्रुत, अने चारित्ररूप त्रण प्रकारचं सामायिक कही वोसिरामि पदनी व्याख्या करतां मिथ्यात्व, अने अविरितनो साग जणाव्यो छे. (४) कोइ पूछे के श्रावके श्राद्ध, संवच्छरी, मासी, छमासी, नवमी, तथा जलांजलि वगेरां करवां के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के ए वां अज्ञानिओनां काम छे. श्रावकनां ए काम नथी. आ बाबत जंबूस्वामी अने प्रभवनो संवाद वसुदेवहिंडिमां छे ते लखीये छीये. . "प्रभव जंबूस्वामीने कहेवा लाग्यो के स्वामिन् , लोकधर्म पण प्रमाण करवो जोइये केमके पितरोने पिंड देनार पुत्र पेदा कयाथी पितरोनी तृप्ति थाय छ एम विद्वानो कहे छे. त्यारे जंबूस्वामी तेने कहेवा. लाग्या के ए वात जूठी छे. कारण के भवांतरगत जीवो पोताना कर्मने आधीन रहेल छे. ते जीवोनुं जेम पर भवे ऊपज, कर्माधीन छे तेम आहार पण कर्माधीनज होवो जोइये. वळी विचार करो के आहार तो अचेतन छे, ते पुत्रोए आप्यो थको Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ४३ ) मुवेलाओ पासे पोची केम शके. माटे मुवेलाने उद्देशीने पुत्र जे आप ते तेनी भक्ति देखाय खरी पण कंइ मुवेलाने पहोचे नहि. वळी विचारो के कोइ बाप के वपावो कर्मयोगे मरीने कुंथ के कीडीरूपे जन्म्यो. हवे ते ठेकाणे तेनो पुत्र तेना निमित्ते त्यां पाणी आपे तो शुं उपकार थशे के अपकार ! ते विचारो." ___ आ पिंडदाननी उत्पत्ति माटे आवश्यकचूर्णिमां एवं लख्यु छे के श्रेणिक राजा मरण पामतां कोणिक राजा बहु शोकातुर थयो तेनो शोक टाळवा मंत्रिओए युक्ति रची ते एवी के जूना ताम्रपत्र ऊपर पिंडदाननी विधि कोतरावी राजाने बतावीने का के महाराज आवी रीते पिंडदान करभु तो राजानो निस्तार थशे. त्यारथी पिंडदान चालवा लाग्यं. (५) कोइ कहे के श्रावकोए पोते श्राद्ध संवछरी न करवां, पण बीजाए करेल श्राद्ध संवछरीमा जमतां शो दोष छ ? तेनुं ए उत्तर छे के जेम गौरीभक्त, गणेशना मोदक, भट्टारिकानुं नेवद, अनंतत्रतर्नु भोजन, कन्जलीनुं भोजन, दूबळी आठम वछबारश तथा शिवरातनां भोजन, संडविवाहतुं भोजन, सोमेश्वरनी यात्रा माटेर्नु देव भोजन, यज्ञर्नु भोजन, महानवमी वगेरानां लाणां, त. लाव वगेराना भर्यानुं भोजन, खेतरपाळy भोजन, उत्तरायणर्नु भोजन, अने कृष्णरात्रिनुं भोजन वगेरां भोजनो मिथ्यात्वना स्थिरीकारनां कारण होवाथी परिहरवा लायक छ तेम श्राद्ध संवच्छरीनुं भोजन पण परिहर, जोइये. इहां याद राखg जोइये के मुनिओ भिक्षाचारी होवाथी तेओ एवां भोजन ल्ये तो तेमने स्थिरीकारनो दोष थतो नथी. माटे तेमने ते कल्पे. तेथीज हरिकेशिवलमुनिए, जयघोषमुनिए, तथा विजयघोषमुनिए यज्ञमांथी आहार वोर्यो छे. तथा नदिषेणना Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) शतपदी भाषांतर. पूर्वभवमां तेना यज्ञनो बचेल आहार मुनिओए वोर्यो छे. (६) कोइ कहे के त्यारे धर्मना अर्थे करेला कूबा तळावमांथी पाणी लेतां स्थिरीकरण थाय के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के त्यां स्थिरीकरण नथी थतुं, कारण के जो सां स्थिरीकरण थतुं होय तो श्रावकने माटे एवं लखवामां आवत के तेणे पोते जूदा कूवा तळाव कराववां; पण तेम तो क्या कह्यु नथी. (७) कोइ कहेशे के यक्षयक्षणीयाने धर्मार्थे पूजतां मिथ्यात्व लागे पण सांसारिक काम माटे पूजतां केम मिथ्यात्व लागे तेनुं ए उत्तर छे के एम मानीए तो शिवादिक देवना भक्तोने पण मिथ्यात्व नहि लागशे कारण के माये .तेओ पण तेमने सांसारिक अर्थेज पूजे छे. (८) कोइ कहेशे के जेम अविरत राजा के वैद्यने नमस्कार करवामां आवे छे तेम गोत्रदेवीओने पण पूजतां शो दोष छे ? तेनुं ए उत्तर छे के राजादिकने नमस्कार करतां आरंभनी अनुमति लागे छे, पण कंइ मिथ्यात्वनी अनुमति नथी. पण गोत्रदेवतादिकने नमतां तो अदेवमां देवबुद्धिरूप मिथ्यात्वज छे. एटला माटेज आवश्यक चूर्णिमां कडं छे के पुत्र मळवा माटे ना. गरथिके घणा देवदेवी पूज्या; पण मुलसा श्राविका होवाथी तेणीए नहि पूज्या. तथा त्यांज "देवयाभियोगेणं" नी व्याख्या करतां कह्यु छ के एक गृहस्थ श्रावक थतां तेणे व्यंतरो पूजवा छोडी दीधा. त्यारे एक व्यंतरीए कोप करी तेनो गाय चारनार छोकरो गायो साथे अलोप को हवे छोकरानी शोध करवामां ते श्रावक ज्यारे आकुल थयो त्यारे व्यंतरी एक स्त्रीना शरीरमां प्रवेश करी कहेवा लागी के मने केम पूजता नथी? श्रावके विचार्य के मारा धमनी विराधना नहि थाय तेम उपाय कर वो तेथी तेणे कडं के त्यारे जिनप्रतिमानी पाछल बेशो. व्यंतरीए ते Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ४५ ) कबूल करतां तने जिनप्रतिमा पाछल वेशाडी. अने तेणीए गायो तथा छोकरो आणी आप्पो. (९) हमणाना आचार्योए पण कछं छे के जेम कुलीन स्त्रीओए वेश्याना घरे न जवू तेम मुश्रावके तीर्थमां नहि जवू. कारण के त्यां जतां बीजा विचारे के ज्यारे आ, धर्ममां कुशल श्रावक पण इहां आवे छे त्यारे आ धर्म पण सरस लागे छ, ए रीते तेना भक्तोने स्थिरीकार थाय अने ए रीते वीजा भव्य प्राणीओने जे मिथ्यात्व उत्पन्न करावे ते जिनभाषित बोधि नहि पामी शके. माटे जे पुरुष मिथ्यात्वना कारणाने दूर नहि करे ते स्व अने परने संसारमा पाडे छ, वळी ते मूढपुरुष लोकिकतीर्थोमां जइने पुन्ययोगे चिंतामणि माफक मेळवेलं सम्यक्त्व हारी नाखे छे. विचार ३१ मो. प्रश्नः-श्रावकने मिथ्यात्वी साथे वसतां अनुमति लागे के नहि? उत्तरः-श्रावकने मिथ्यात्वी लोको साथे वसतां पण मिथ्यास्वनी अनुमति नथी लागती ए बाबतनो खुलासो दर्शनसत्तरीमा जेम छे तेम लखीर छीये. . .. शास्त्रमा अनुमति त्रण प्रकारे कही छे-संवासानुमति, उपभोगानुमति, अने प्रतिश्रवणानुमति. त्यां साथे वसवू ते संवासानुमति, तेना करेलने भोगवळू ते उपभोगानुमति, अने तेणे पूछतां हा पाडवी ते प्रतिश्रवणानुमति. . इहां कोइ कहेशे के श्रावकने मिथ्यात्वनो त्रिविधे त्रिविधे परिहार मानीए तो संवासानुमति केम टळे ? तेनुं ए उत्तर छे के ए त्रण प्रकारनी अनुमति आरंभनी बावतमां कही छे. माटे आ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '( ४६ ) शतपदी भाषांतर. रंभना प्रमाणे कंइ मिथ्यात्वमां संवासानुमति जिनमतमां मानेली नथी. तेनां कारण नीये मुजब छे. - सामान्यपणे अनुमति ए कहेवाय छे के आपणे एवी अनुकूळता बतावीये के जेनावडे सामो धणी जे आरंभ के मिथ्यात्वमां प्रवर्ते छे तेना मनमां एवो विकल्प पेदा थाय के मने इहां प्रवर्ततां आ अनुमत करे छे, तो त्यां आपणी अनुमति थइ जाणवी. आ कारणथी आरंभमां संवासानुमति लागे छे अने मिथ्यात्वमा नथी लागती कारण के देश के नगरमां साथे वसता राजा, शेठ, वेपारी, खेडुत, तथा कारीगर वगेरा तमाम लोको जाणे छे के अमो एक बीजानां कामकाज करता होवाथी तेमज राजानो कर भरता होयाथी एक बीजामा मददगार छीथे. आरीले आरममा कामनी सामग्रीमा दरेक जणनी सामेलगिरी होवाथी आरंभमां संवासानुमति रहे छे. अने एथीन यतिनी आरंभना कामनी सामग्रीमा सामेलगिरी नहि होवाथी यतिने संवासानुमति नथी लागती. पण मिथ्यात्वमां संवासानुमति नथी. कारण के मिथ्यात्व तो पोताना अध्यवसायथीज थाय छे. अने ते अध्यवसाय कंइ परथी एटले सहवासिओथी पेदा थता नथी. वळी कदाच श्रावक राजादिकना उपरोधथी लौकिकमिथ्यादृष्टिदेवोनु वंदन पूजन करतो रह्यो होय तोपण त्यां सेनी अनुमति गणाती नथी. कारण के अध्यवसायनेज मिथ्यात्व कहेवाय छे. माटे मिथ्यात्त्रमा संवासानुमति नथी लागती. अगर जो इहां पण संवासानुमात मानीए तो सम्यक्त्वमां पण संवासानुमति लागशे. अने तेम मानवा मांडीए तो अभव्यने सम्यक्त्वानुमति थतां मोक्षप्राप्ति थवानो प्रसंग लागु पडशे. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (४७) विचार ३२ मो. (उपकरण बाबत.) प्रश्नः कडाइ, टोप तथा नंदीपात्र' वगेरा, अने नेण, सइ, तथा कातर वगेरां उपकरण केम राखो छो? उत्तर:- कारणे ए उपकरणो पण आगममां राखा कह्यां छे. कारण के कल्पमा कयुं छे के साधुने चौद अने साध्वीने 4चीश ते औधिक उपकरण छे, बाकी औपग्रहिक तो बनेने संथा. रपटक वगेरा अनेक प्रकारे छे. आचारांगटीकामां तिलोदग तुसोदगना प्रसंगमा टोप तथा कडाइ कहेल छे. निशीथचूर्णि तथा व्यवहारमा नंदिपात्र, विपात्र', कमठक, विमात्रक', तथा प्रस्रवणमात्रक राखवां कह्यां छे. वृहत्कल्पभाष्यमां जघन्य, मध्यम, तथा उत्कृष्ट औपग्रहिक उपधि नीचे मुजब लखेली छे. (१) काष्ट के छाणनुं पीठ, उत्तरपटसहित निषद्या, दंडक, प्रमार्जनी, घडो, कुटमुख', कातर, सूइ, नेण, कर्णशोधनिका, ने दंतशोधनिका, ए जघन्य उपधि जाणवी. (२) पांचवासत्राण' (वाळजें, सूत्रनु, मूचिकुट, शीर्षक, अने छत्र), पांच चिलिमिणी (वाळनी, सूत्रनी, वागनी, दंडनी, तथा कटकमय), वे संथारा (संथारपट्ट तथा उत्तरपट्ट), पांच दंड (दंड, १ माटुं. २ पात्रा करतां नानु. ३ मात्रक करतां नानु. ४ बेसवार्नु आसन. ५ सांकडा मुखनो घडो. ६ वरसादथी बचावनार. ७ वाहुप्रमाणवालो ते दंड. ते रिपुनो वध करतां काम लागे छे. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) शतपदी भाषांतर. विदंड', लट्ठि', विलट्ठि, ने नळिका), त्रण मात्रक (उच्चारनुं, प्रश्रवणनुं, तथा श्लेष्मनं), पादलेखनिका, त्रण चामडां (प्रावरण, उत्तरपट्ट, तथा नळिका, अथवा कर्त्तित, तळिका, अने उन्भा), बे पाटा (संथारपट्ट अने उत्तरपट्ट अथवा सन्नाहपट्ट अने पलांठीपट्ट), ए मध्यम उपधि जाणवी. (३) मध्यम उपधि उपरांत वे प्रकारनुं अक्षसंघाटक ( एकां - गिक अने अनेकांगिक), तथा पांच प्रकारनां पुस्तक, अने फलक ए उत्कृष्ट उपाधि जाणवी. इहां दंडक, विदंडक, यष्टि, अने वियष्टि ए सर्व साधुओने जूदां जूदां होय छे अने ए उपरांत चर्मकृत्ति", चर्मकोशक', चर्मच्छेद, योगपट्ट, अने चिलिमिनि ए गुरुनी उपधिओ होय छे. वळी त्यां लख्युं छे के ए उपधिओ तथा एना जेवी उपानहू वगेरा बीजी उपधिओ जे तपसंयमनी साधक होय ते औपग्रहिक उपाधि जाणवी. निशीथचूर्णिमां लांबा मार्गमां ऊतरतां नीचे मुजब औपग्रहिक उपकरण लेवां लख्यां छे. चामडानां नव उपकरण - (नळिका, पन्टीला, खल्लक, वभा, १. दंड करतां नानो ते विदंड. ए वर्षाकाळे गोचरी जतां लेवाय छे. वरशाद आवतां तेना ऊपर कपड़े नाखी तेनी हेठे चालतां अपूकायनो ओछों स्पर्श थाय छे. २ पोता करतां चार आंगल ऊणी ते लाउ. तेना वडे षडदो बंधाय छे. ३ लाठ करतां नानी ते विलहि. ते क्यांक उपाश्रयना वारणा ढांकतां काम आवे छे. ४ पोता करतां चार आंगल मोटी ते नळिका. ते पाणीमां पेसतां पाणीनी ऊंडाइ तपासवाना काममां आवे छे. ५ छवट्टिका. .६ जेमां नेण वगेरा रखाय ते. ७ वाधरनो कटको अथवा कातर. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ४९ ) अंगुलिकोशक, खपुस, वगुरि, अर्द्धसंघाडी, अने कटित्र.) ... - सीकुं तथा कावड. लोढानां ११ उपकरण-(कातर, सूइ, तूटेल पगरखां सीववा सारुं आर, कांटा काढवा तथा नख कापवा सारूं नेण, पत्थणशस्त्र, अंगुलिशस्त्र, सिरावेधनशस्त्र, कर्पणशस्त्र, लोहकंटक, अनुवेधशलाका, तथा व्रीहिमुख वगेरां.) - नंदीभाजन, धर्मकारक, परतीर्थनां उपकरण, उंबरना चूर्णनी गोळीओ, छासथी भावेलां कपडानां कटकां, तथा खोल. ए प्रमाणे उपकरण मार्गे ऊतरतां मुनिए साथे लेवां. एनां प्रयोजन सां विस्तारथी कह्यां छे. माटे झामु न लखतां एटलुंज लखिये छीये के ए उपकरणो उपरांत बीजां पण जे कोइ उपकरण आत्मसंयमना बचावना हेतु होवाथी लेवामां आवे ते सर्व “जं अन्नं एवमाइ तवसंजमसाहगं जइजणस्स" ए गाथाना वळे सिद्ध थइ शके छे. विचार ३३ मो.. प्रश्नः-चोलपट्टो पहेरवो क्या कह्यो छे ? उत्तरः-दशवैकाळिकचूर्णिमां को छे के लज्जाना कारणे चळोटो लेवाय छे. आचारांगमां पण कर्तुं छे के कोइ साधु नग्न रहेतां ते परीपह खमवा समर्थ होय छतां शरम जीतवा असमर्थ थाय तो तेने कद्विबंध एटले चोलपट्टो धरवो कल्पे. स्थानांगमां पण त्रण कारणे वस्त्र राखवां कह्यां छे-लज्जाना कारणे, प्रवचननी दुगुंछा थती अटकाववाना कारणे, तथा परी । परसा कल्प. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) पह नहि खमी शकवाना कारणे. बळी जिनकल्पिओने पण कारणे चोलपट्टक राखवो पंचकल्पमां को छे. aavat भाषांतर. 四、 विचार ३४ मो. मनः- चळोटानुं प्रांत गोपवधुं क्या कह्युं छे ? उत्तरः- छेदग्रंथोमां अपवादपदे एटले ग्लान होतां लोच करतां, आचार्यादिकना शरीरनुं वैयावृत्य करतां, ऊंचे टांगेलां भाजन ऊतारतां, सुवानो संथारो पाथरतां, उपाश्रय प्रमार्जतां, तथा मरेला साधुने ऊपाडतां इत्यादि कारणे कटिपट्टक कर, एटले चलोटो कटिमां मजबूत बांधवो को छे. माटे ए कारणोमां चलोटो पहेरतां ते दोन अथवा प्रांत गोपवाथीज रही शके छे. विचार ३५ मी प्रश्नः - ऋतुबद्धकाळमां पीठफलकादिक केम नथीचापरतान उत्तर: - ( १ ) निशीथभाष्यमां संथाराना भेद बतावी कधुं छे के गमे ते प्रकारनो संथारो ऋतुबद्धकाळमां लेतां आज्ञाभंग, अनवस्था, अने मिध्यात्व थाय छे. संथाराना भेद आ प्रमाणे पाड्या छ. संथारो वे प्रकारनो:- परिसाटी, अने अपरिसाठी. परिसाठी प्रकार :- शुषिर अने अशुषिर -सां शाळ के तृण वगेरानो शुषिर अने दर्शनो अशुषिर अपरिसाटी वे प्रकारनो:- एकांगिक -अने अनेकांगिक. एकांगिक वे प्रकारनो:- संघातिम अने असंघा - Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (५१) तिम. अनेकांगिक ते द्रुमादिकनो जाणवो. (२) व्यवहारना पीठमा कयुं छे के रुतुबद्धकाळमां निःकारण संथारा ऊपर सूए तथा पीठफलकादिक वापरे तेने अवसन्नो जाणवो. (३) “राजाए लावेला सिंहानपर बेशीने अथवा भगवान्ना पादपीठ ऊपर बेशीने गणधर देशना आपे" ए दाखलाथी पी. ठादिकनो परिभोग सिद्ध करी शकाय तेम नथी. कारण के ए. तो गणधर महाराजनो कल्प छे तथा तेओना माटे अनुज्ञा छ पण कंइ बीजा आचार्यो माटे नथी. वळी गणधरोने पण समवसरणमांज अने राजाए लावी आपेलज सिंहासन अनुज्ञात की छे. संयतोए लाथी आपेलनी वात नथी. (४) व्याख्यान अवसरे पण कंबळमय निषद्या करवी कहेल छे. जे माटे निशीथचूर्णिमां लख्यु छे के सूत्रमंडळीमां निषद्या करवानीज भजना छे एटले के कराय पण अने नहि पण कराय. जो कराय तो सां सर्व शिष्योए एकेक कांबली देवा बाबतमां पण भजना छे एटले के तेम पण कराय अने बीजी रीते पण कराय. जो निषद्या नहि कराय तो एक कपडापर बेशी गुरु वाचना आपे. . अर्थमंडळीमां नक्की निषद्या करवी अने जेटला सांभळनार होय ते बधाजणे पोतानां कपडां के कांबळीओ देवी. कदाच थो. डा सांभळनार होय तो बीजानी मागी लइ देवी. तेनावडे एक स्थापनानी अने बीजी गुरुनी निषद्या करवी. (५) वळी आचार्यनो संथारो जमीनथीत्रण हाथ ऊंचो करवो कल्पमां कह्यो छे कारण के तेथी ओछो होय तो सर्पनुं भय रहे. त्यां पण चूर्णिकारे वर्षाकाळमांज तेम करवानु जणाव्यु छे. .. (६) कोइ पूछे के दशाश्रुतस्कंधमां कह्यु छे के मासिकम: Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) शतपदी भाषांतर. तिमा धरनार साधुने पृथिवीशिला, अथवा काष्टशिला, अथवा यथासंस्तृत एटले के खपमा लागे तेवी रीते मळेलां तृणादिक, ए त्रण संथारा प्रतिलेखवा कल्पे. माटे ज्यारे प्रतिमाधरने पण त्रणे संथारा सर्वकाळमां जणान्या छे त्यारे बीजा मुनिने केम न कल्पे ? तेनुं उत्तर ए छे के ए प्रतिमाधर साधुनो कल्प जूदो छे. कारण के तेओ कंइ ए संथारा मागी लावता नथी. वळी ए मासिकप्रतिमाधर मुनि शरीर- पण प्रतिकर्म करता नथी. कारण के त्यां लख्यु छ के मासिकप्रतिमाधर मुनिना उपाश्रयमां कोई आग धुखावे तो त्यां ते मुनिने नीकळg के पेशवू कल्पे नहि. तेमज तेना पगमां कांटो के कांकरो लागे अथवा आंखमां जीवजंतु के रज पेसे तो ते तेने काढवां कल्पे नहि. माटे एवा मुनिनुं आलंबन लेवू अयुक्त छे. विचार ३६ मो. (पौषध विषे.) प्रश्नः-पौषध दरेक दिवसे केम नथी करावता? . उत्तरः-आगममां पर्व दिवसमांज पौषध करवू कहेल छे. जुओ भगवतीमां लख्युं छे के आठम, चौदस, पूनम अने उद्दिष्टाना दिने प्रतिपूर्ण पोषध पाळता थका विचरे छे. एनी टीकामां लख्युं छे के “पौषधं पर्वदिनानुष्टानं" "पौषधं च यदा यथाविधं च ते कुर्वतो विहरंति तदर्शयन्नाह चाउदस्सेत्यादि. इहोद्दिष्टा अमावास्या" एनो भावार्थ ए छे के पौषध एटले पर्वदिवसनुं अनुष्ठान. अने ते क्यारे अने शी रीते करता ते बताववा सूत्रकार कहे छे के आठम, चौदश, पूनम अने अमावास्याना दिने चउवि Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ५३ ) हार पोसह करता. माटे इहां टीकामां काळनियम खुल्लो जणाय छे. भगवतीनी वृत्ति प्रमाणे स्थानांगवृत्तिमां, उपाशकदशानी - त्तिमां, ज्ञातासूत्रनी वृत्तिमां, उत्तराध्ययननी वृत्तिमां, आवश्यकनी वृत्तिमां, पंचाशकनी वृत्तिमां, आवश्यकचूर्णिमां तथा पुष्पमाळानी वृत्तिमा पौषध ते पदिने करवानुं अनुष्टान कयुं छे. ___ योगशास्त्रनी वृत्तिमां पण आठम, चौदश, पूनम, अमावस्या रूप चउप/मां पोसह करवू का छे. वळी ए उचपीमां देवताओ पण मेरु वगेराना चैत्योमा महिमा करे छे एम गणिविद्या पयनामां लख्यं छे (१) कोई कहेशे के ऊपर प्रमाणे तो जो के पर्वमां पोसह आवे छे, छतां पण जो विरतिरूप पोसह दररोज पण करीए तो तेमां शो दोष छे ? एनुं उत्तर ए छे के जिनभाषित करतां अधिक के ऊणुं करतां शास्त्रमा दोषज प्रतिपादन कर्यो छे. जो तेम नहि होय तो तो देवसी, पाखी चगेराना काउसग्गनां प्रमाण आप्यां छे ते करतां वधु वखतना काउसग करतां, तथा प्रव्रज्या देतां त्रणवार सामायिक उच्चरवाने बदले चार वार उच्चरतां, तथा चोथी प्रदक्षिणा देतां, तथा बीजा अनेक कृत्योमा अधिकता करतां पण दोष नहि लागशे. पण तेम तो कई छे नहि, माटे पूर्वपुरुषोए जे अनुटान जे रीते अने जेटलुं कडं होय ते तेमज करवू जोइये. (२) इहां कोई पूछे के विपाकसूत्रमा लख्युं छे के सुबाहुकुमारे एकवेला आठम, चौदस, पूनम अने अमावास्याना दिनोमां पोसहशाळामां आवी अठमभक्त पोसह लीधुं माटे अठमभक्तना त्रण दाहाडा होवाथी अपर्वमां पण पौषध आवशे. तेनुं ए उत्तर छे के ए विपाकसूत्रना ए बाबतना अक्षरो अतिगंभीर छे. कारण Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) शतपदी भाषांतर. के एक तो त्यां पर्वतिथिो कही छे अने बीजं अठमभक्त कह्यु छे. हवे ए बधा पर्वो समकाळे तो कई संभवे नहि. तेथी अनागत अथवा अतिक्रांतपर्वनी कोई अपेक्षाए पर्वना अनुष्टान मेळवी अपर्वमां पण पर्वानुष्ठान करवानुं होवाथी पर्वनो उपचार करी समकाळे बधां पर्व कह्यां होय तो पण बहुश्रुत जाणे ! एरीत प्रमाणे त्रण दिन ते तेरश चौदश-पूनमरूप, अश्मा चौदश-पूनम-एकमरूप,अथवा छठ सातम-आठमरूप, अथवा आठ. म-नोम,दशमरूप आवे. कारण के जेने प्रतिपर्वे पोसह करवानो नियम होय तेनाथी कारणयोगे आठमना दिने पोसह नाहे थई शक्युं होय तो यावत् तेरशमां पण करी शकाय छे. तेमज चौदश पूनमना पोसह कारणयोगे कोई वेला अगाऊथी यावत् नोम दशमना पण करी शकाय छे. __ आरीते ए सूत्रनुं समाधान अमे कर्यु छे.अगर बीजी कोई रीते ग्रंथांतरना अविरोधे बहुश्रुतोए व्याख्यान करी समाधान करवं. (३) नंदमणियारना अधिकारमा ते मिथ्यात्व पाम्या पछी जेठ मासमां अठमभक्त लइने पोसहशालामा रह्यो एम कयुं छे. माटे अनियतदिनना पोसह वगर जेठ मासमां त्रण पोसह केम घटे? तेनुं ए उत्तर छे के ज्ञाता सूत्रना ए अधिकारमा पहेलु अठम भक्तज कयुं छे अने ए अक्षरोथी कंइ एम सिद्ध थातुं नथी के अठम भक्तना त्रण दिन पोसह साथेज हतां, कारण के जो तेम होत तो सुबाहुकुमारनी माफक पहेलां पोसहशाळानी प्रमार्जनादिक विधि कहेत पण तेम इहां नथी. इहांतो अठम भक्त लेवानुं पहेलुं लख्यु छे अने पोसहशालानी विधि पछी लखी छे. माटे अठम भक्त लीधा बाद अंते एक के बे दिनमां पर्व आवी जतां साथे पौषध पण लीधुं होय एम संभवे छे. अने ए रीते सू. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (५५) प्रना अक्षरोनो पण निर्वाह थइ शके छे. वळी इहां एक बीजो विचार करवो घटित छ के आपणमा पहेलुं पौषध लेवाय छे अने पछी पचखाणना अवसरे तप लेवाय छे, ए वात प्रसिद्धज छे. तेमज द्रव्यपोसहमां पण पहेलो पौषधनी क्रियानो अंगीकार कराय छे अने पछी अठम भक्त लेवाय छे. एम ज्ञाता सूत्रमा अभयकुमारना प्रसंगमा लखेल बिना ऊपरथी जणाय छे. छतां नंदमणियारे तेथी विपरीत कयु छे. तेथी एम जाणवाने कारण मळे छे के नंदमणियारे मिथ्यात्व पाम्या पछी ए क्रिया करी छे. अने मिथ्यात्वीनी क्रिया सम्यक् होवानी भजना छे तेथी तेमां शी आस्था करी शकाय? (४) वळी वसुदेवहिंडिमां विजयसेन राजानी वातमा लख्यु छे के राजा ऊपर वीजली पडवानी छे एम निमित्तिआए जणावतां मंत्रिए राजाना सिंहासनपर एक मूर्ति स्थापी राजाने धर्मपरायण रहेवा जिनमंदिरमा मोकलाव्यो. त्यां राजा सातदिन मूधी पोसह पाळतो थको रह्यो. सातमा दहाडे बपोरे वीजळी स्थापेल मूर्ति ऊपर पडतां राजा पोसहशाळाथी घरे आव्यो. ___इहां ए उत्तर छे के ए राजाए कंइ पौषधवत नथी कर्यु किं. तु उपसर्ग निवारवा माटे उपसर्गनी हद सूधी पोसहनी क्रियानो अंगीकार करवा रूप अभिग्रह को छे कारण के सातमा दिने बपोरेज उपसर्ग दूर थतां पोसहशाळाथी बाहेर नीकल्यो एम कडं छे माटे पौषधव्रत होय तो ते कंइ बपोरे पूरुं थाय नहि. बाकी उपसर्ग सूधी धारेलो पौषधनो अभिग्रह पूर्ण थयो छे. कोइ पूछे के त्यारे पोसह पाळतो थको एनो केम अर्थ क. रवो तेनुं ए उत्तर छे के जेम भरत वगेरा अविरतिओना अधिकारमा पौषधिक ए शब्दनो अर्थ अंगीकार करी छे पौषधक्रिया Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) सतपदी भाषांतर. जेणे, नहि के पौषधव्रतवालो एम कराय छे तेम इहां पण उपसर्ग सूधी पौषध क्रियानो अभिग्रह पाळतो थको एम व्याख्यान करी शकाय छे. . (५) वळी वसुदेवहिडिमां मेघरथराजानी कथामां लख्युं छे के मेघरथराजा एकदा अठम भक्त लइ प्रतिमामां ऊभो रह्यो. तेने इंद्रे प्रणाम करी तेनां वखाण करतां इंद्राणीओ डगाववा आवी पण ते डग्यो नहि तेथी इंद्राणीओ तेने नमी जती रही. अने सूर्य ऊगतां राजाए प्रतिमापौषध पार्यु. इहां ए उत्तर छे के ए राजाए कई अष्टमभक्तपूर्वक पौषध नथी ली, किंतु काउसग्ग करेलो छे. कोई पूछे के त्यारे अंते प्रतिमापौषध पार्यु एम लख्युं छे तेनो शो अर्थ तेनुं ए उत्तर छे के प्रतिमापौषध एटले प्रतिमारूप अनुष्टान अथवा प्रतिमारूप अभिग्रह ए अर्थ संभवे छे. . कदाच कोई पूछे के शुं अग्यारमा व्रत विना वीजा ठेकाणे पण पौषध शब्द वर्ते छे? तेनुं ए उत्तर छे के हा वर्ते छे. कारण के साधुना अधिकारे “पक्खियपोसहिअसु समाहिपत्ताणं" एनी चूर्णिमां.लख्युं छे के इहां पौषधव्रतवगर सामान्यपणे साधुना धर्म कृत्यनो वाचक पौषध शब्द छे वळी आवश्यकचूर्णिमा सामायिकना अतिचारना अधिकारमा मनदुःमणिधाननी व्याख्यामां लख्यु छ के पोसहवाळो एम चितवे जे घरे आ काम ठीक छ, आ अठीक छे, ए मनदुःप्रणिधान. इहां पोसह शब्द सामायिक. वाची छे. तथा देशावकाशिव्रतना अतिचारमां अमनोज्ञप्रयोगनी व्याख्यामां पोसह क्यारे पूर थशे एम चितवq ते अमनोज्ञप्रयोग एम लख्युं छे. इहां पौषधशब्द देशावकाशीवाचक छे. तथा एज चूर्णिमां एक कथामां एकांतर मैथुननी निवृत्तिनी वातमां Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ५७ ) लख्युं छे के “जे दिवसे एकने मोकलं ते दिने बीजानुं पौषध हतुं" एम कडं छे. इहां पौषध शब्द अभिग्रहवाची जणाय छे. ____(६) वळी कोइ कहे के भगवतीमां शंखश्रावकना अधिकारे लख्युं छे के “शंखे वीजा श्रावकोने कयु के तमे असन, पान, खादिम, स्वादिम करावो एटले आपणे ते खातापीता थका पाक्षिकपौषध पाळता विचरशं" एपरथी पोसहमा श्रावकने भोजन आवे छे के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के भोजन नथी आवतुं कारण के टीकाकारे इहां बीजी रीते व्याख्यान कर्यु छे ते एम छे के खातापीता थका" इहां वर्तमानकाळ छे तोपण अर्थ भूतकाळनो : करवो तेथी एवो अर्थ थाय छे के “खाइपी लीधा बाद." अने इहां भूतकाळनो अर्थ छतां भोजन कर्या बाद तरतज पौषध करशु एम अविलंब जणाववा वर्तमान वापर्यो छे. (७) कोइ कहेशे के "चउदस, आठम, अमावस्या अने पूर्णिमाना दिने प्रतिपूर्ण पौषध करता थका विचरे छे" ए वचनथी ए दिवसोमां तो पोषध कर, सिद्ध थशे पण पर्युषणना दहाडे अठमपोसह केम सिद्ध थशे. तेनु ए उत्तर छे के पौषध एटले शास्त्रमा पर्वदिननुं अनुष्टान कहेल छे, अने पर्युषण पण पर्व छे माटे त्यां पौषध करवू सिद्धज छे. वळी पर्युपणना दहाडे अठम नहि करे तो शास्त्रमा प्रायश्चित्त लखेल छे. तथा निशीथचूर्णिमां एक कथामां लख्युं छे के राजाए राणीयोने कह्यं के तमे अमावस्यानो उपवास करी पडवेना दिने बधां खानपान करी साधुओने उत्तर पारणे वोरावी पारणुं करो. कारण के पजोसणर्नु अठम करवानुं होवाथी पडवेना दिने उत्तर पारणुं थाय छे. इत्यादिक प्रमाणोथी पर्युषणना त्रणे दिन पर्वरूपे प्रसिद्ध छे. माटे त्रणे दिन पौषध कर, घटे छे. पपा छ. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) शतपदी भाषांतर. विचार ३७ मो. प्रश्नः-तमे कल्याणिकना दिने पौपध केम नथी मानता ? कारण के सूयगडांगनी टीकामां लख्युं छे के "चौदश आठम बगेरा तिथिओमां, उपदिष्टा एटले महाकल्याणिकना संबंधी पुण्यतिथिपणे प्रसिद्ध थएल तिथिओमां, तथा पौर्णमासी एटले चारे चोमासानी तिथिओमां, ए प्रकारना धर्मदिवसोमां सुप्रति. पूर्ण पौषधव्रत पाळता थका विचरे छे." एपरथी तो कल्याणिकना दिने पौषध सिद्ध थाय छे तथा अमावास्या अने चोमासा शिवायनी पूनमो अपर्व जणाय छे. .. उत्तरः-ए टीकाकारे कोण जाणे केवा आशये उद्दिष्टानो उपदिष्टा एवो पर्याय करी सर्व आगममां प्रसिद्ध अमावास्या अने पूर्णिमाओ मेळी दीधी छे, तथा आगम ग्रंथमां क्यां पण नहि कहेला कल्याणकोमा तपपौषध करवानुं लख्युं छे, तेमज एज आलावानी चूर्णिमां चूर्णिकारे उद्दिष्टानो अर्थ अमावास्या लख्यो छे तेनो पण शा कारणे टीकाकारे अनादर कर्यो छे ते मालम पडतुं नथी. माटे अमारे चूर्णितुं व्याख्यानज प्रमाण छे. विचार ३८ मो. प्रश्नः-कल्याणिक केम नथी साचवता ? उत्तरः-आगममां क्यां पण विधिवादे के चरितानुवादे कल्याणिक साचववां कह्यां नथी. कारण के ऋषभस्वामिना के वी. रस्वामिना दर वर्षे जन्म, दीक्षा, ज्ञान, के निर्वाणदिन देवताओए के मनुष्योए क्यां पण साचव्यां छे एम लखेलं देखातुं नथी. वळी शास्त्रमा लख्युं छे के जिनना पांच कल्याणिकोमां तथा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ५९ ) महर्षिना तपना महिमाथी, तथा जन्मांतरना स्नेहथी देवताओ इहां आवे छे. त्यां पण एम जाणवानुं छे के जे दिवसोमां जिनना कल्याणिक वर्तमान होय ते दिने आवे; बाकी कंइ प्रतिवर्ष ते दिने आवे एम नथी. कारण के जो प्रतिवर्षे पांचे जिनकल्याणिकना दिने देवताओए अवश्य महिमा करवा आवq एवो नियम होय तो ज्यारे समकाळे एकशो शित्तेर तीर्थकरो वर्त्तता होय त्यारे देवताओए शुं मनुष्य लोकमांज रहेवू के दररोज आवजाव करवी? वळी च्यवन कल्याणिकमां तो मूल दिने पण आववानो कंड नियम जणातो नथी. कारण के ऋषभदेवस्वामिना च्यवन कल्याणिकमां इंद्रो आव्या हता अने वीरस्वामिना च्यवन कल्याणिकमां इंद्रो नथी आव्या ए प्रसिद्ध वात छे. वळी उपदेशमाळामां पण श्रावकना वर्णनमां जिननी जन्म भूमि, दीक्षाभूमि, ज्ञानभूमि तथा निर्वाणभूमिओ वांदवी लखी छे पण कंइ दर वर्षे ए दिवसो आराधवाना नथी लख्या. __वळी जो कल्याणिकना दिनो पर्वरूपे गणवाना होत तो जेम आठम पांखी वगेरादिने चउथ वगेरा तप करवानुं अने ते नहि करे तो प्रायश्चित्त लागवानुं शास्त्रमा लखवामां आवेल छ तेम कल्याणिकदिनो माटे पण लखवामां आवत, पण तेम तो क्यां पण लख्युं नथी. माटे कल्याणिकदिन पर्वरूपे नथी जणाता. वळी जन्मकल्याणिकना दिने आजकाल जेम धुंसरी, मोर, औषधिओ, मोदक, मंगळकळश, तथा नाळ वगेरा जन्मसूचक चिह्नोनी नकल करवामां आवे छे तेम दीक्षा ज्ञान अने निर्वाणना दिने ते ते दिवसने योग्य वस्तुओनी पण नकल करवी पडशे, अने तेम करवू तो कंइ घटारत नथी. एथी एम जणाय छ के एकल्याणिकदिनोनी कल्पना पूर्वश्रुतधरकृत नथी. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) शंतपदी भाषांतर. विचार ३५ मो. प्रश्नः-दिवसनी अंदर वारंवार सामायिक कर, केम नथी मानता? उत्तर:-आवश्यकनियुक्तिमां अनवस्थित सामायिक करवानी ना पाडेल छे माटे सांजसवार बे टाणेज सामायिक कर, जोइये. वळी आवश्यकवृत्तिमा स्मृतिअकरणता तथा अनवस्थितता रूप अतिचारनो अर्थ एवो लख्यो छे के स्मृति अकरणता एटले कई वेलाए सामायिक कर, ते न संभारे, अने मरजी प्रमाणे (अनियत वेलाए) सामायिक करे ते अनवस्थितता. एज रीते उपासकदशानी वृत्ति, पंचाशकनी वृत्ति, श्रावकमज्ञप्तिसूत्र; तथा तेनी टीका, तथा योगशास्त्रनी टीकामां लख्युं छे.. वळी सामायिक प्रतिमामां पण वेवखतज सामायिक करबुं कर्तुं छे. कोइ कहेशे के "सामाइयंमि उ कए" तथा "जीको पमायबहुलो" ए गाथामां "बहुसो सामाइयं कुज्जा" एटले घणीवार सामायिक कर, लख्युं छे ते केम ? तेनुं ए उत्तर छे के आ बाबत आवश्यकचूर्णिमां आ प्रमाणे संबंध लख्यो छे के "देश सामायिकथी सर्वसामायिक उत्तम छे. माटे तेज करवू श्रेष्ट छे. पण ते करवा जे असमर्थ होय तेणे देशसामायिक पण बहुवार करवू. जे माटे कयुं छे के सामायिक कर्याथी श्रावक श्रमण जेवो थाय छे. माटे बहुवार सामायिक करवू तथा जीव बहुलप्रमादी अने घणी वेळा घणा कामोमां व्याकुल होय छे माटे पण बहुवार सामायिक करवू., आ चूर्णिकारना लखाण ऊपरथी एम जणाय छे के साधु पोताना जन्ममां. एक वखतेज सर्व सामायिक करे छे. अने श्रावक पोताना जन्ममों वहुवार देशसामायिक करे छे. माटे इहां Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ६१ ) is एक दिननी अपेक्षा नथी किंतु जेटला काळनी अपेक्षावाळु सर्व सामायिक छे तेटला काळनीज अपेक्षाए बहुवार देशसामायिक करयुं जणाय छे. कोइ कहेशे के आवश्यकचूर्णिमां कहां छे के “ज्यारे अवकाश मळे त्यारे सामायिक करे." तेथी अनियत सामायिक सिद्ध थशे तेनुं ए उत्तर छे के एनो अर्थ एम छे के सामायिक करवानी वेलाए कामनी अडचणथी सामायिक नहि थंई शक्युं होय तो ज्यारे अवकाश मळे त्यारे सामायिक करे. कारण के त्यां एवो संबंध छे के " अनवस्थितकरणता एटले सामायिक लइने तत्क्षण पारखं तेम कर न कल्पे माटे पुरतो वखत जाणीने सामायिक करवुं. अथवा तो धां कामकाज आटोपी ज्यारे अवकाश मळे सारे करे तोपणं भंग न थाय. " जाव कोई पूछे के देश सामायिकमां " जावनियमं " के " साहु पज्जुवासामि" एम कहेल छे माटे बे घडीना काळनुं मान केम लेवाशे ? तेनुं ए उत्तर छे के विशेषावश्यकमां लख्युं छे के गृहस्थे छिन्नकाळनं एटले बे घडी वगेरा काळनं सामायिक करं. विचार ४० मो. प्रश्नः - साधुओनी आगल गीत नृस कल्पे के नहि. उत्तर: – साधुओनी आगल गीत नृत्य नहिज कल्पे. छतां जेओ कल्पे एम माने छे तेमनी मोटी भूल छे. कारण के कल्प भाष्यमा साधुओने चैत्यमां जतां पण एवी विधि लखी छे जे सां जो नाटक तुं होय तो ऊभवुंज नहि, कदाच ऊभा रही जवाय Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) शतपदी भाषांतर. तो सांत्रीओना अंगोपांग के गीत गान तरफ ध्यान नहि देवु. वळी जे वसतिमां सहजे नृत्य गीतादिक थता होय तेवी वसतिमां पण वसतां साधुने बृहत्कल्प भाष्यमां बहु दोष बताव्या छे. वळ विचार करो के चित्रमां दीठेली स्त्री पण चित्त हरे तो तेनां गीत नृत्यादि सांभळतां के देखतां बहु दोष थायज एमां शुं कहेतुं छे. कोइ कहेशे के त्यारे युगंधराचार्य आगळ स्वयंप्रभाए केम नाटक कर्यु तेनुं ए उत्तर छे के ते आचार्य अतिशयवंत अने वीतराग हता तेथी तेमनुं आलंबन वीजाओ माटे लइ शकाय नाही. तेज स्वयंप्रभा ए देवी छे अने देवताए करेला अतिशयनुं आलंबन लइ शकाय नहि कारण के तेम आलंबन लेतां आवश्यक चूर्णिमां लख्युं छे के कूरगडूकने वांदवा राते देवता आवी तेथी मनुष्यस्त्रीओ पण राते वांदवा आवशे, पण तेम तो तमो पण नथी मानता. वळीव कादाचित्क एटले कोइवेला थती वात के विशेवातनुं आलंबन करवुं अयुक्त छे. कारण के एवा आलंबन लेतां तो करकंडूनी माता पद्मावती, क्षुद्रकुमारनी माता यशोभद्रा, तथा मणिप्रभनी माता धारणीना आलंबन लइ मुद्रा, रत्नकंबळ, तथा रत्नाभरण पण राखी शकाशे तथा स्थूळिभद्र गणिकाना घरे रह्या अने त्यां शय्यातरपिंड लीधुं ते आलंबन लइ तेम पण करी शकाशे. तथा धन्नाकाकंदी नव मासमां अगीआर अंग शीख्या तेनुं आलंबन लइ व्यवहारसूत्रमां लखेलो सूत्र भणवानो पर्या यक्रम पण रद करी शकाशे. इत्यादि अनेक अतिप्रसंग पडशे. माटे कादाचित्क के विशेष वातनुं आलंबन लेतुं न जोइये. वळी आवश्यकचूर्णिमां लख्युं छे के “ गंधर्वना निनाद Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ६३ ) साथै आकाश मार्गे वैरस्वामी - फूल लइ आव्या" ते वातनुं आलंबन पण लइ शकाय नहि कारण के इहां जेम शासननी प्रभावनाना निमित्ते वैरस्वामी फूल लाव्या तेम तेज कारणे गीतादिकनो पण निषेध नथी कर्यो. माटे आवा शासन प्रभावक महापुरुष साथे आजकालना यतिओनी स्पर्द्धा केम थइ शक्रे विचार ४१ मो. प्रश्नः - मासकल्पनुं न्यूनाधिकपणुं तथा क्षेत्रातिक्रम एटले क्षत्रनुं उल्लंघन करतुं कल्पे के नहि. उत्तरः- उत्सर्गे नहि कल्पे, पण कारणवशे कल्पे पण खरं. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के निःकारणे मासकल्प तोडतां प्रायश्चित्त लागे पण व्याघातना कारणे मासकल्प तोडी अन्यक्षेत्रे जतां दोष नथी ते कारणो ए के मरकीवाळं क्षेत्र होय, अथवा त्यां सजायध्यान करी शकातुं नहि होय, अथवा उपधि के लेप मळता न होय, अथवा नीचेना सात आगाढ कारणोमांनु कोइ कारण होय, ते सात कारणो ए के द्रव्यथी त्यां जोड़ती चीज मळती नहि होय, क्षेत्रथी बहु सांकडं क्षेत्र होय, काळथी सां कंइ उपद्रव होय, भावथी ग्लानादिकने अडचण पडती होय, पुरुषथी आचार्यादिकने त्यां सवळ पडतुं न होय, तथा सां वैद्यो नहि होय, अथवा त्यां सहायक एटले मददगारो नहि होय, ए सात कारणे मासकल्प तोडतां पण दोष नथी. पर्युषणाकल्पभाष्यमां लख्युं छे के ऋतुबद्धकाळमां प्रतिमाधर मुनि एक क्षेत्रमां एक अहोरात्र रहे, यथालंदक पांच अहोरात्र रहे, जिनकल्पी तथा परिहारिक एक मास रहे, अने स्थविरकल्पी नि: Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) शतपदी भाषांतर. कारणे एक मास अने कारणे न्यूनाधिक मास पण रहे. .... वळी त्यां लख्यं छे के स्थंडिळभूमि संसक्त एटले जंतुमय थतां अथवा पाणीथी भीजातां, संथारां जंतुमय थतां, बीजी वण वसतिओ नहि होतां अथवा. होय तो त्यां पण तेवीज अडचण थतां, राजानो प्रद्वेष थतां, सर्प कुंथु के अग्निनो उपद्रव थतां, तथा ग्लानना माटे ओसडवासड करवान होतां, इत्यादि कारणे, चोमासुं पूरुं थवा अगाउ पण विहार करी शकाय. अने रस्ता चीखलवाला होता, अशिव के दुर्भिक्ष चालतुं होतां, राजानो प्रद्वेष होतां के मांदगीना कारणे चोमासु पूरुं थया छतां पण त्यां रही शकाय छे. वळी त्यां लख्यु छे के पूनमना दहाडे आचार्यनुं नक्षत्र प्रतिकूळ पडतुं होय, अथवा बीजी कोइ अडचण पडती होय, अथवा पूनमना दिने लोकनो कोइ महोत्सव होतां पडवेना दिने साधुने नीकलता जोइ लोक अमंगळ गणशे एम जाणतां पूनमथी आगळ पाछळ पण विहार करी शकाय छे. वळी कल्पादिकमां तो विशिष्टगुणयुक्तज क्षेत्र मासकल्पयोग्य कर्जा छे. ते एई के ज्यां, सवार, बपोर, तथा अपराह्न ए त्र काळमां मागी लेतां के सहजे पण बाळग्लानादियोग्य घृतादिक वस्तु मळती होय सां मासकल्प करवो. क्षेत्रांतिक्रम माटे ओघभाष्यमां एवं लखेल छे के जे अगीतार्थ होय ते देशदेशांतर जोवा विहारक्षेत्रनु उल्लंघन करी क्षेत्रातिकम करे तो तेनी प्रवृत्ति निःकारण गणाय छे पण गीतार्थ पुरुष ज्ञानदर्शन मजबूत करवा देशदेशांतर जोवा माटे क्षेत्रातिक्रम करे तो ते सकारण प्रवृत्ति गणाय छे, एटले के गीतार्थने. तेमां बाध नथी. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ४२ मो. प्रश्नः - साधुए विकृतिओ लेवी कल्पे के नहि ? उत्तरः- नहि कल्पे एवं कंइ एकांत नथी कारण के कारणे कल्पे पण छे. कारण के पर्युषणाकल्पमां लख्युं छे के आचार्य, ग्लान, बाळ, वृद्ध तथा दुबळा सारुं विगइ लेवी कल्पे, तथा श्रावको खेंच करीने प्रशस्त विगइवडे निमंत्रणा करे तो त्यारे पण लेवी कल्पे, तथा काम पडतां गर्हित विकृतिओ पण लेवाय. त्यां दूध, दहिं, अने अवग्राहिम (मीठाई) ए प्रशस्त विकृतिओ असंचित होय तोज लेवी कल्पे अने घृत, तेल, गोळ तथा नवनीत वगेरा प्रशस्त विकृतिओ यतनाए संची राखेली पण लेवी कल्पे. अने ए रीते लील विकृतिओ स्थविर, बाळ, तथा दुबळाने देबी, तरुणीने देवी नहि. ( ६५ ) निशीथचूर्णिमां कछे के श्रावकोनी श्रद्धा, तथा विपुल विभव जोने, तथा दुर्भिक्षादिक काळ जाणीने, तथा बाळ वृद्धादिक के मुशाफरना माटे, इत्यादि कारणे निरंतर पण विकृति लेवाय, अने ते लेतां देनारनी भाव कायम होय तेटलामां तेने निवारण करवुं जोइये. दशवैकाळिकचूर्णिमां लख्युं छे के मुनिए वारंवार नींवी करवी पण मांसमदिरानी माफक विगयनो अत्यंत प्रतिषेध नथी. आवश्यकचूर्णिमां पचखाण लेवानी चिंतना करवामां लख्युं छे के शक्ति होय तो उपवास करवो, अने तेटली शक्ति न होय तो आंबिल, एगठाण के नीकी करवी, तेम पण नहि थइ शके तो विग सहित पोरसि वगेरा पचखाण लें. आ उपरांत बीजा पण केटलाक प्रमाणोथी सिद्ध थाय छे के विकृति परिहरवामां एकांत नथी. ८ . Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. हवे चरितानुवादना प्रमाण बतावीये छीये. (१) धनसार्थवाहे घृत वोरान्युं छे. (२) आषाढभूतिए आचार्य, उपाध्याय, संघाडी साधु, तथा पोताना अर्थे चार मोदक वोर्या छे. ( ६६ ) (३) देवकीए पोताना पुत्रोने सिंहकेशरीआ लाडु वोराव्या छे. ( ४ ). अइमत्तानी माता गौतमस्वामिने मोदक आप्या छे. (५) आर्यरक्षितना पिता सोमिले पहेली भिक्षामां मळेला बत्री मोदक साधुओने वेंची आप्या छे. (६) शाळिभद्रे दहि वो छे. (७) ठंढण कुमारे सिंहकेशर मोदक वोर्या छे. इत्यादिक चरितानुवादे अनेक प्रमाण छे. कोइ कदेशे के तेमणे तो कारणे वोर्या हशे तेनुं ए उत्तर छे के ज्यारे तेवा विशिष्ट संघेण धीर्य तथा श्रुतवळवाळाने पण कारण मानो छो त्यारे आजकालना अल्पसत्ववंत मुनिओने कारण केम नथी मानता ! > वळी इहां समजवानुं छे के जेम विगय अपवादे लेवानी छे ते आहार पण अपवादेज लेवानुं छे. जे माटे दशाश्रुतस्कंधमां कं छे के उत्सर्गे चारे मास निराहार रहेवुं पण तेम न थइ शके तो यावत् दररोज आहार करवो, पण योगवृद्धि करवी एटले के जे नोकारसी पाळी शके तेणे पोरिसी पाळवी. तथा ओघनिर्युक्तिमां लख्युं छे के क्षुतवेदना टाळवा अर्थे, वेयावच करवा अर्थे, ईर्ष्या शोधवा अर्थे, संयम पाळवा अर्थे, माण धारवा अर्थे, अथवा धर्मचिंता करवां अर्थे आहार करवो. माटे जेम कारणे आहार कराय छे तेम पुष्टालंबने विकृति तां पण दोष नथी. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ४३ मो. प्रश्नः - पार्श्वनाथनी सात फणो क्या अक्षरोथी मानो छो! उत्तरः- आवश्यकवृत्तिमां लख्युं छे के पार्श्वनाथस्वामिनी माताएं स्वप्नमां सात फणवाळो सर्प दीठो हतो. ए अक्षरोथी सातफण जाणवी. : 白麻 विचार ४४ मो. ( ६७ ) प्रश्नः - सुपार्श्वनाथनी पांच फण केम मानो छौ ? उत्तरः- ए बाबत वसुदेवहिंडिना बीजा खंडमां एवी वात छे के सुपार्श्वनाथ छद्मस्थ अवस्थामां काउसगमां ऊभेला जोइ ऊपर फरता पक्षिओनी आशातना टाळवा माटे इंद्रे पांच अंगओवाळो वैक्रिय हाथ धारण कर्यो. वळी पूर्वाचार्यकृत चमालीश हजारी चिरंतन कल्पवल्लीना पहेला खंडमां पण कल छे के सुपार्श्वनाथनी माता तीर्थंकर गमां होतां स्वप्नमां एक, पांच तथा नव फणोवाळा सर्पनी शय्यामां जूदा जूदा सूता ते कारणथी समोसरणमां पण एक, पांच, तथा नव रत्नमय फणाओवाळा ऋण रूप इंद्र साचवे छे विचार ४५ मो. प्रश्नः - पिंडनियुक्तिमां धोवानी विधिमां लख्युं छे के साधुए गृहस्थना भाजनोमां वरशाद बंध पडतां नेवानुं पाणी ग्रहण करी वस्त्र धोवां एम कहेल छे माटे नेवाना पाणीवडेज वस्त्र धोवा कल्पे के केम ? Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८ ) शतपदी भाषांतर. उत्तरः- ए विधि ज्यारे वर्षादना पाणीवडे कपडां धोवानां होय सारे चाले छे. बाकी कंइ सामान्यपणे एज विधी छे एम a. कारण के उत्सर्गे वर्षाथी अगाऊज वस्त्र धोवां जोइये. जे माटे ओघनियुक्तिनी टीकामां लखेलुं छे के “ वर्षाथी अगाऊज यतनाए सर्व उपधि धोइ लेवी कदाच तेटलं पाणी न होय तो आचार्यना तथा ग्लानना मेलां मेलां कपडा धोइ लेवां कारण के नहितो लोकमां गुरुनी मेला वेषथी निंदा थतां अनादेयता थाय छे तथा ग्लानने मेलां कपडां होवाथी शरदी लागी अजीर्ण थाय छे." निशीथचूर्णिना पीठमा लख्युं छे के जे देशमां वस्त्रो निरंतर उपभोगमां लीधाथी तेमां जीव जंतु पेदा थता होय सां मधुर जळ के उष्णजळादिकथी धोइ लेवां. विचार ४६ मो. प्रश्नः - उत्तराध्ययनना पांत्रीशमा अध्ययनमां कहुं छे के चित्रामणवाळु, फूलनी माळा तथा धूपथी वासित, चंदरवावा, अनेकमा सहित मनोहर घर मनथी पण इच्छवं नहि. माटे क माडवाळी वसति साधुने कल्पे के नहि ? ייי उत्तरः- ए अध्ययनमां कोइ वाक्य जिनकल्पिना माटे छे अने कोइ वाक्य जिनकल्पि तथा स्थविरकल्पि ए बेने साधारण लागु पडतुं छे कारण के उपरनी वात पछी आवता सूत्रमां ल ख्युं छे के साधुए श्मशान, सूना घर, के वृक्षना मूळमां एकला जइ वस हवे स्थविरकल्पिने तो मशाणमां वसवानी अनुज्ञा देखाती नथी किंतु तेमने तो कमाड सहित वसतिमां रहेवानुं कां छे. जे माटे ओघभाष्यमां लख्युं छे के भद्रकादिकनुं घर नहि म Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (६९) ळतां भूतादि उपद्रव रहित, मजबूत, अने कमाड सहित एवा शून्य घरमां रहे. तथा पंचकल्पचूर्णिमा लख्यु छ के ज्यां पासस्थादिक रहेता होय त्यां साधुए. रहेतां जूदी मजबूत भीतवाली कमाड सहित अने बिलरहित वसतिमा रहे. विचार ४७ मो. प्रश्नः-साधुओने वसतिमां कमाड, ढांकवा तथा आगळी वगेरा देवी कल्पे के नहि ? उत्तरः-उत्सर्गे नहि कल्पे पण कारणे कल्पे पण. आ बाबत वृहत्कल्प भाष्यमां आ रीते लखेलं छे के बारणामां गिरोळी वगेरा होवाथी ढांकतां तेनी विराधना थाय तथा नीकलता, पेशताने लागी जाय तेथी मुनिए कमाड ढांकवां नहि, पण बीजा पदे आगाढ कारणोमां एटले दुश्मन, चोर, श्वापद, सर्प, कूतरा, वगेरानो उपद्रव होतां अथवा दुःखे सही शकाय एवं शीत पडतां यतनाथी पोजीममार्जी ढांकवां पण कल्पे. एवा कारणे नहि ढांके तोप्रायश्चित्त लागे. विचार ४८ मो. प्रश्नः-साधुने गोचरीए विहरतां कमाड के पाटीयां तथा आगळी ऊघाडवी कल्पे के नहि ? . उत्तरः-उत्सर्गे न कल्पे पण कारणे कल्पे. दशवैकाळिकमां कडंछे के “अवग्रह माग्या वगर कमाड ऊघाडवां नहि" तेनो टीकामां अर्थ लख्यो छे के आगाढ कारणे Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) शतपदी भाषांतर. अवग्रह माग्या वगर एटले धर्मलाभ कर्या वगर कमाड नहि ऊघाडवा. कोई पूछे के त्यारे श्रावको सांभळवा आवतां केम कमाड उघाडो छो तेनुं ए उत्तर छे के ए बाबत पिंडनियुक्तिमां नीचे मुजब कहेल छे. . (१) जे कमाड भूमिने घसीने ऊघडे ते उघाडवो नहि कल्पे, पण जे भूमिने नहि अडके अथवा थोटो शडके ते गुरुलाघव जाणी ऊघाडवो कल्पे. . ___(२) एज रीते जे आगली आही संचारवामां आवे ते ऊघा. डवी न कल्पे, पण जे ऊपाडीने ऊंची कराय ते गुरुलाघव जाणी ऊघाडवी कल्पे. ret __ विचार ४९ मो. . प्रश्नः-पासत्थादिक साथे आलापसंलाप करवो के नहि ? उत्तरः-उत्सर्गे ते बाबत निषेध पाडेल छे पण अपवादे ए वापत नीचे मुजब विधि पण लखी छे.. . निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के गच्छनी रक्षा माटे आगळ पाछळथी विचार करनार आचार्य सुखशीळिया पासत्यादिकनी वंदन रहित सुखसातानी गवेषणा करवी. तेनी यनना ए रीते छे के जे गाम के शहरमां तेओ होय सां तेमनी पासे नहि जतां शहेर बाहेर के गोचरीए हीडतां के वनमां के देराशरमां के समोसरणमां के रस्तामा सामे मळतां सुखसाता पूछवी. कदाच एओ कहे के अमारा स्थानके केम नथी आवता तो तेमनी अनुवृत्तिथी तेमना उपाश्रय तरफ जइ बाहेर रही मुखसाता पूछवी, वधु आग्रह करे तो अंदर जइने पूछवी.. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (७१) विचार ५० मो. प्रश्नः-पासत्यादिकने वांदवानी ना पाडेल छ माटे वांदवा के नहि ? उत्तरः-उत्सर्गे नहि वांदवा किंतु कारणना वशे वांदवा. आ बाबत निशीथचूणिमा लख्यु छे के नीचेना कारणे संयमभ्रष्ट प्रगट दोषना सेवनार मळोत्तर गुणरहित फक्त लिंग धारीने पण नीचेनी विधिए वंदना करवी, जो नहि करे तो प्रायश्चित्त लागे. त्यां कारण ए के लांबो चारित्रपर्याय पाळी पासत्थो थएल होय, अथवा जेनो परिवार संयमवंत होय, अथवा ते पासत्थो राजादिक होय अथवा बहुसंमत होय अथवा प्रवचनप्रभावक होय, अथवा क्षेत्र पासत्थाए भावित होय, अथवा काळ एवो अवम होय के पासत्थानी मददथी गच्छनो निभाव थइ शकतो होय, . अथवा पासत्था पासे आगमनुं ज्ञान होय, अथवा तो चारित्रनी चोखी समजण आपतो होय, अथवा ब्रह्मचर्यवंत होय, इत्यादि कारण तथा कुलगणसंघना कारण ऊपजतां पासत्यादिकने वंदन, अभ्युत्थान, आसनदान, विश्रामण, तथा भोजनवस्त्रदानमांथी जे करवा योग्य जणाय ते कर. हवे वांदवा माटे एवी विधि लखी छे के शहेरथी बाहेर के गोचरी वगेरा स्थळे पासत्यादिक मळतां तेने ऊपर जणावेला कारणे वचनथी “वंदिए छीए" एम कहे. विशिएतर के उग्रस्वभाववाला पासत्थादिकने वचन साथे कायाथी पण हाथ ऊंचे करवो. ते करतां विशिष्टत्तर के उग्रस्वभाववाळाने वचन तथा हाथ साथे मस्तकने पण नमाव. ते करतां वधताने ए त्रणे रीतो साथे Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) शतपदी भाषांतर. भक्ति बतावता होइये तेम शरीरसुखसाता पण पूछवी. ते करतां वधतानी आगळ थोडीवार पर्युपासना करतां थकां ऊभा पण रहेवुं. अथवा पुरुषविशेष जाणी छोभवंदन के द्वादशावर्त्तवंदन पण करवुं. *© विचार ५१ मो. प्रश्नः - जे क्षेत्रमां पासत्यादिक होप त्यां मुनिए पेश के नहि ? उत्तरः- इहां पण उत्सर्ग ने अपवाद रहेला छे. एटले के उत्सर्गे नाहे पेशवं पण अपवादे पेशबुं पण छे. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के संविग्नोनो बीजे क्यां निर्वाह थतो होय तो ते पासत्यादिकना सांकडा क्षेत्रमा रह्या थका सचित्तादि लेता थका पण शुद्ध जाणवा. बळी त्यां रहेतां, पहेलां पासत्थादिक उपकरण लई ले सार बाद संविग्नोने उपकरण लेवां कल्पे. वळी उपदेशपदमां लख्युं छे के बीजे ठेकाणे रहेवानुं नहि बtai अगीतार्थ तथा पासत्यादिकयी भावेला क्षेत्रमा रहेतां कारण योगे रागद्वेष रहितपणे द्रव्यथी पासस्थादिकनी अनुकूलताए व , एटले के तेमना साथै वाद विवाद न करवो तथा नमस्कारादिके करीने तेमनुं मन साचवj. व्यवहारभाष्यमा लख्ये छे के संविनबहुलकाळमां एटले जे वेला संविनो घणा हता, त्यारे एवी मर्यादा हती के असंवि भाषित क्षेत्रमां संविश प्रवेश नहि करता, पण हमणा असंविग्र बहुलकाळमां तेणे भावित करेला क्षेत्रमां पण संविनो पेशे छे. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के विषम क्षेत्र, दुर्भिक्षादि काळ तथा ग्लानादि भाव वगेरा कारणे मुनिओए आहार वोराववा Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ७३ ) बावत अपवादनी देशना पण करवी पण ते कारणो शिवाय संविनभावित तथा असंविग्रभावित श्रावको आगल शुद्ध आहार वोराववानी देशना देवी. विचार ५२ मो. प्रश्न:-तुंबडामां कंठक एटले कांठो केम शीवो छो ? उत्तरः-केटलाक तुंबडामां तो सहज पण कांठो होय छे. अने जेमा सहजे नहि होय तेमां कांठो शीवाय छे त्यां एम जाणवानुं छे के तुंबडं कंइ औधिक उपकरण नथी किंतु भौपग्रहिक छे अने ते संयम साचववामां मददगार होवाना कारणे अपवादे रखाय छे सारे अपवादे तेनी परिकर्मणा पण थइ शकशे. केमके निशीथभाष्यमां औषि उपकरणनी पण उत्सर्गे तथा अपवादे परिकर्मणा लखेल छे त्यारे औपग्रहिक विषे शुं पूछबु. विचार ५३ मो. . प्रश्नः-घडा, त्रपणी वगेरामां दोरो केम बांधो छो? . . उत्तरः-ए उपकरणो पण अपवादे राखवाना छे अने वे जो वगरदोरे वापरी शकाता होय तो ठीकज छे. अगर तेम नहि तो दोरो पण औपग्रहिक उपकरणमा राखी शकाय छे. कारण के दरेक औपग्रहिक उपकरण माटे "वधारामां जे कंइ तप संयमने मददगार उपकरण होय ते औपग्रहिक जाणवू"ए वाक्य लागुज पडे छे. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) शतपदी भाषांतर. विचार ५४ मो. प्रश्नः-ओघनियुक्तिमां कडं छे के साधुए बे संथाराना वचे भाजन राखवा. माटे खींटी वगेरामां टांगवा जोइये नहि. ए बाबत तमे केम मानो छो? उत्तरः-विशाळ वसति माटे एज विधि छे, पण सांकडी वसति होय तो त्यां एम लखेल छे के पूरा वच्चमां पात्रां राखी ते तरफ माथां करवां अने बधी दिशाओ तरफ पग करवां अथवा संथाराना काममां नहि आवे एवी ऊंची नीची जमीनमां ऊंचा नीचा करी पात्रो गोठवी देवा अथवा दोराथी ऊंचे टांगी मेलवा. निशीथचूर्णिमां पण कडं छे के जेम आत्म, संयम, तथा पगनी विराधना नहि थाय तेम यतनाए औपग्रहिक दोरावडे पात्रा टांगवां. are . विचार ५५ मो. प्रश्नः-घडा वगेरा केम ल्यो छो? . उत्तरः-कारणयोगे घडा वगेरे लेबा ते सिद्धांतने मळताज छे. स्थानांगमा लख्युं छे के साधुने तूंबडाना, काष्टना, तथा माटीना ए त्रणे पात्र धारवा कल्पे. त्यां माटीना पात्रनी व्याख्या करतां टीकाकारे "शराव तथा घडा वगेरा" एम लख्यु छ. . निशीथचूर्णिमां पण लख्युं छे के मृत्तिकापात्र ते कुंभारनुं घडेल. वळी कल्पमां पण लख्युं छे के तुंबानुं पात्र उत्तम, लाकडानुं मध्यम, अने माटी, जघन्य, एम त्रण प्रकारे मुनिने जिनवरे पात्र कह्यां छे. माटे घटादिक सर्वथा न कल्पे एम केम कही शकाय. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ७५ ) विचार ५७ मो. प्रश्नः-साधुओए नित्य लोच करवो के केम ? उत्तरः-जिनकल्पी ऋतुबद्धकाळ तथा वर्षाकाल ए बने. काळमां नित्यलोच करे. अने स्थविरकल्पीए वर्षाकाळमां उत्सर्गे नित्यलोच करवो, पण कदि तेम सहन नहि थइ शके तो पण पर्युषणनी रात उल्लंघवी नहि, अने ऋतुबद्धकाळमां चार चार मासे लोच करवो. ए रीते निशीथचूर्णिमां लखेल छे. @ विचार ५७ मो. प्रश्नः-साधुए बीजे पहोरे भिक्षा करवी के केम ? उत्तरः-उत्सर्ग एमज छे पण एकांत थइ शके नहि. कारण के उत्तराध्ययननी टीकामां लख्युं छे के ए वात उत्सर्गनी छे. वाकी स्थविरकल्पी माटे साधारण वात तो ए छे के जे देशमा जे वखते मळे ते देशमा ते वखतेज गोचरीए जq. ___ ओघभाष्यमां कर्तुं छे के वारना हिशाबमा साधारण रीते स्थंडिल जवाना पाणी माटे तथा भिक्षा माटे एम बेवार गोचरीए नीकळg, पण आचार्यादिकना कारणे घणीवार पण जवाय छे. तेमज काळना दिशाबमां साधारण रीते अडधी पोरिसी थतां नीकळवू पण भूखतरस नहि सही शकातांलोको जागतां पण जवाय छे. वळी निशीथचूर्णिमां लख्यु छ के ज्यां प्रभातथीज भोजन - वेळा थती होय सां सूर्योदयथी मांडीने यावत् अपराह्न सूधी मुनि गोचरीए नीकले. आवश्यकचूर्णिमां श्रावके साधुने निमंत्रण करवानी विधि Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) शतपदी भाषांतर. मां लख्युछे के ज्यारे देशकाळ थाय त्यारे श्रावके पोते सणगार सजीने अथवा साधारण रीते साधुना उपाश्रये जई निमंत्रणा करवी के “भिक्षा लेवा पधारो." ए सांभळी साधुओए अंतराय दोष तथा ठवणादोष टाळवा भाजन पडिलेहवा. हवे जो ए रीते श्रावक पेहेली पोरिसीए निमंत्रणा करे अने कोई साधु नोकारसीवाळो होय तो लइ आवई. पण नोकारसीवाळो कोइ नहि होय तो नहि लावq कारण के ते राखवू पडे, पण कदाच अति आग्रह करे तो लइ आवq अने राखी मेलq ते उग्गाडापोरमी थतां पारणुं करनारने देवू. दशवैकाळिकनी टीकामां पण लख्युं छे के जे स्थळे जे योग्य भिक्षाकाळ होय त्यां ते काळे जq. वळी कल्पचूर्णिमां पण लख्युं छे के "भत्तपंथो य तइयाए" एटले भोजन तथा विहार त्रीजी पोरसीए कर, ए जिनकल्पीने आसरी छे, अने स्थविरकल्पीना माटे "भत्तपंथो य भयणाए एटले त्रीजी पोरसीए भोजन मळी शके तेमज पोताथी तेटला काळपर पोहोची शकाय तेम होय तो त्रीजी पोरसीए भोजन तथा विहार करवो पण तेम न होय तो पहेली बीजी त्रीजी के चोथीमां पण थइ शके. विचार ५८ मो. प्रश्नः-गोचरीथी अगाउ पाणी लावq के नहि ? उत्तरः-इहां पण कंइ एकांत नथी. कारण ऊपरला प्रश्नो. त्तरमा लख्यु छ के वारना हिशाबे वेवार जवाय छे. . ... कोइ कहेशे के संज्ञाना अर्थे पाणी लाववामां हरकत नथी, Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ७७ ) पण पीवाना अर्थे गोचरीथी अगाउ पाणी लाववानुं क्यां कयुं छे तेनुं उत्तर पण ऊपरलाज प्रश्नोत्तरमां छे के भूखतरस नहि सही शकाय तो लोको जागे के तरत जनुं एम ओघभाष्यमां छे. 944 विचार ५९ मो. प्रश्न:- - औषधादिकनी संनिधि करवी कल्पे के नहि ? उत्तरः- उत्सर्गे न कल्पे पण कारणे कल्पे पण खरी. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के ज्यां आठ गाऊनी अंदर गामगोठ न होय एवा स्थळमां कोइ जग्यामां रहेता त्यां उतावळं काम पडतां ओसड मळी शके नहि माटे सां मुनिए ओसडो साथै राखवां तथा कोई साधु ग्लान होतां तथा रस्तो उतरतां तथा दुर्भिक्षमां तथा अणसण करनारना माटे इत्यादि कारणे यतनाए ओसडो राखवा. तेनी यतना ए के सांकडा मुखवाळा वासणमां ओसडो नाखी तेना ऊपर चामडुं के मजबूत कपडो बांधवो, अथवा शरावळं ढांकी मीणथी, छाणथी, के माटीथी सांधा बंध करी अलग राखी मेलवा. कदाच ऊंदरनुं भय होय तो सीकुं बांधी अधर टांगवा. कदाच शीका ऊपर पण ऊंदरो ऊतरे तो बच्चे टीकरुं बांधी लें अथवा शीका ऊपर कादव लगावी कांटा चोडी मेलवा अथवा वासण ऊपर कांटा राखवा. कोई ओसड वासणमांथी गळी पढे वो संभव होय तो नीचे राख पाथरवी ए यतना जाणवी. आ ते अगीआर छेदग्रंथोमां अपवादे ओसडोनी संनिधि करवा लख्युं छे. +9144 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८ ) शतपदी भाषांतर. विचार ६० मो. प्रश्नः-विहार त्रीजा पोहोरेज करवू जोइए के केम ? , उत्तरः-जिनकल्पी माटे तेमज छ पण स्थविरकल्पी माटे 'ए नियम नथी. ___ओघनियुक्तिमा लख्युं छे के साधुओ सांजे कोइ श्रावक के भद्रप्रकृतिवंतने "अमुक वेलाए अमे विहार कर\" एम चेतवी बीजे दिने त्रीजी पोरसीए विहार करे पण जवानुं स्थळ वधारे दूर होय तो पोणो पहोर दिन चडतां अथवा सूर्य ऊगमतांज, अथवा सूर्य ऊग्या अगाऊ रातना पण नीकले. राते नीकलतां रस्तामा आगल पाछल रहेला साधुनी वाट जोइ भेगा थq, नहि तो कोइ रस्तो भूलतां पोंकार करे तो लोको जागी ऊठतां अधिकरण दोष थाय. ___ वळी कोइ खगुड जेवो साधु एम बोले के "रातना साधु ओने जज नहि जोइये" तो तेवा खगुडने रहेवा देवू अने तेनी साथ संकेत करवो के फलाणे ठेकाणे तारे आवg." आ वात पण ओघनियुक्तिमां छे. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के अंधारामां राते चालतां, साथना लीधे आडे रस्ते चालतां, श्वापद के चोरना भयथी ऊतावळे चालतां, पग मुकुमार होवाथी कांटा लागता सहन नहि थइ शकतां, अथवा शीतथी पगनी पानीओ फाटी जतां, एटला कारणे मुनिए पगमां चामडाना पड बांधवा, अने ते त्रूटतां तेने सांधवा माटे वघ्र एटले सांधवानो हथीआर साथे राखवो." इहां पण राते चालवानुं कां छे. ओघभाष्यमां लख्युं छे के लांबे छेरे जवानुं होय तो सूर्य Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ७९ ) ऊग्याथी आमल पण नीकलवं, अथवा अरुण फूटतां अथवा पहोर रात होय त्यारे पण नीकळg. वळी ग्लानादिकना कारणे अथवा असूर थतां वच्चे चौरादिकनुं भय रहेल होय इसादि कारणे मुनि अधरातनो पण विहार करे. विचार ६१ मो. प्रश्नः-साधुओ लेख के संदेशो मोकले छे तेमां प्रमाण शुं छे? उत्तरः-निशीथचूर्णिमां लख्यु छे के जे राज्यमा जवान होय त्यां रहेला साधुओने अगाउथी लेख के संदेशो मोकलावी जणावी देवू के "अमो इहांथी आवनार छीए." । __कोइ पूछे के साधुओए मुनिने लेख के संदेशो मोकलवो ते ठीक, पण श्रावकने लेख के संदेशो मोकलवो तेमां शुं प्रमाण छ? तेनुं ए उत्तर छ के तेज निशीथचूर्णिमां वीजा स्थळे लख्युं छे के "अथवा आदि शब्दथी व्रत धारी श्रावक के समकितदृष्टिने अगाउथी जणावे." वळी दशवैकाळिकचूर्णि तथा निशीथचूर्णिमां लख्यु छ के अंबडपरिव्राजक राजगृही तरफ जतां तेना मारफत भगवाने सुलसाने कुशळवाती पूछावी. अने स्थानांगटीकामां एम छे जे पोतानी कुशळवार्ता कहेबरावी. @ विचार ६२ मो. प्रश्नः-साधुए मोदक वगेरा वोरतां भागी जोवा के नहि? उत्तरः-भांगवानी वात साबित थती नथी केमके गौतम Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) . शतपदी भाषांतर. स्वामि, ढंढणकुमार, देवकीना पुत्रो, तथा आर्यरक्षितना पिताए मोदक बोरतां भांग्या जणाता नथी. केमके जो भाग्या होय तो वत्रीशनी संख्या केम घटे विचार ६३ मो. प्रश्नः-साध्वीने दीक्षा देतां पहेलो लोच आचार्यादिक पोताना हाथे करे के केम? उत्तरः-आचार्यादिक पोताना हाथे साध्वीनो लोच नहि करे कारण के स्त्रीनो संघट्टो मुनिने करवो अघटित छे. वळी पूर्वना महर्षिओए पण तेम कर्यु देखातुं नथी. कारण के भगवतीमां देवानंदाने भगवाने प्रव्रज्या देवानो अधिकार छ त्यां पोते तेने दीक्षा आपी एम कडुं छे पण "मुंडावेई" एटले लोच करे एवो पाठ नथी किंतु एवो पाठ छे जे दीक्षा आप्या बाद आर्यचंदनाने तेनी शिष्यणी तरीके सोंपी अने आर्यचंदनाए तेने मुंडित करी.. वळी व्यवहारसूत्रमा लख्यु छ के निग्रंथोने पोताना अर्थे साध्वीने दीक्षा देवी के मुंडाववी न कल्पे खां टीकामां "मुंडाववी" नो अर्थ एम कर्यो छे जे "लोच कराववो न कल्पे." इहां टीकामां प्रेरकरूप वापर्यों छे तेथी पण एम सिद्ध थाय छ जे निग्रंथ पोताना हाथे लोच न करे.. ___ माटे निग्रंथो निग्रंथीनो पोताना हाथे लोच करे ए वात दि. गंबरोनी छे. कारण के तेओ पहेला लोच उपरांत बीजा लोचो करवामां पण संघट्टानो दोष नथी गणता. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (८१) विचार ६४ मो. प्रश्नः-"प्रभावती न्हाइने त्रिसंध्य पूजा करती" एम कहेल छे, माटे त्रिसंध्यामांज पूजा करवी के आगलपाछल पण थई शके? उत्तरः-विधि एमज छे. पण कदि समय वेळाए पूजा करी नहि शकाय तो आगल पाछल पण थई शके छे. केमके पर्युषणा दिकपर्वनी क्रिया पण आगल पाछल करी शकाय छे तो दररो जना अनुष्टाननुं शुं कहे. पर्युषणा माटे आवश्यकनियुक्तिमां का छे के ते दहाडे जेने गुरु के तपस्वीनुं वैयाकृत्य करवानुं होय अथवा मांदगी होय तेणे आगल पाछल तप करी लेवु.. वळी एज मुजब सामायिक पण बेज संध्याए करवानुं छे छतां त्यां पण अपवाद छे के जो कामनी अडचण होय तो ज्यारे अवकाश मळे त्यारे करी शकाय. एज मुजब पडिलेहणा, तथा पडिकमणाना पण अपवाद जाणवा. वळी पंचाशकमां पण पूजा माटे लख्युं छे के उत्सर्गथी पूजाकाळ त्रण संध्याओ छे अने अपवादे पूजाकाळ ते पोताना धं. धामां हरकत न करे एवी वेला जाणवी. माटे पुष्टालंबने सांजथी आगल पाछल पण पूजा करवी. विचार ६५ मो. प्रश्नः-साधुने स्निग्धमधुर आहार करवो कल्पे के नहि ? उत्तर:-नि:कारणे न कल्पे, कारणे कल्पे पण खरो. ओघनियुक्तिमां लख्युं छे के मळेला आहारमाथी पित्तादिक शमाववाने स्निग्धमधुर पूर्व खावं. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) शतपदी भाषांतर. बळी स्निग्ध खावाथी बुद्धिबळ वधे छे. तेथी स्निग्ध आहार छicar मुश्केल छे. पंचकल्पमां पण कह्युं छे के स्निग्धमधुर पूर्वे खावं. विचार ६६ मो. प्रश्नः - व्यवहारभाष्यमां कां छे के “आठम, पांखी, चोमासी, तथा संवछरीना दिने चोथ, छठ, तथा अठम तप नहि करतां तथा चैत्य तथा साधुओने नाह वांदतां प्रायश्चित्त लागे" माटे ए पर्वोमां ए भांखेलुं तप नहि करतां नियमा प्रायश्चित्त लागे के केम ? उत्तर:- जे समर्थ होय छतां नहि करे तेने प्रायश्चित्तं लागे. बाकी जे असमर्थ होतां पोतानी शक्ति मुजब जे कंइ तप थइ शके ते करतो रहे ते आराधकज छे. निशीथचूर्णिमां कहां छे के अपवादपदे एटले के जे उपवास करवा असमर्थ होय, अथवा ग्लान होय, अथवा ग्लाननुं वैयाहृत्य करनार होय, इत्यादि कारणे ते पर्युषणना दहाडे आहार करतो थको पण शुद्ध जाणवो. वळी प्रकरणोमां पण कनुं छे के तप तेवुं करवुं के जे करतां मन माटुं न चींतवे, इंद्रियोने हरकत न पडे अने अपर कार्य अटके नाही. • +3€€ विचार ६७ मो. प्रश्नः - साधुए बहिर्भूमिए नैऋतकोणमांज जवं जोइये के केम? उत्तरः- आवश्यकनिर्युक्तिमां कह्युं छे के अपर दिशाओ - Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ८३ ) मां जतां हानि थती होवाथी नैर्ऋत दिशामा बहिर्भूमिए जq. माटे तेवा स्थंडिळनो योग होय तो कोण बीजी रीते करे. विचार ६८ मो. प्रश्नः-साधुओए हाथ पग पखाळवा के नहि ? उत्तरः-साधुओए हाथ पग पखाळवा नहि जोइये. (१) दश वैकालिकमां अनेक स्थळे स्नाननो निषेध कर्यो छे, तेनी चूर्णि तथा टीकामा स्नान शब्दे सर्वस्नान तथा देशस्नान बे लीधा छे. सां लख्यु छे के शौचकर्म शिवाय आंखनु पापण पखाळतां देशस्नान गणाय. (२) आवश्यकचूर्णिमा एक कथामा लख्युं छे के एकजणीए साधुना मेळनी गंध आवतां चिंतव्यु के भगवाने आवो अपवित्र धर्म केम चलाव्यो. जो प्रामुक पाणीथी न्हावा- होय तो शो दोष थाय. आम चिंतव्याथी ते राजगृहीमां वेश्या थइ. . (३) प्रकरणमां पण कयु छ के कामी पुरुष होय ते स्नान तथा विभूषा करे, ब्रह्मचारी नांहे करे. (४) निशीथमां पण साधुनुं वर्णन करतां लख्यु छे के साधु- . नो अंग मेळथी खरडेलुं होय छे तथा वस्त्र पण मळिन होय छे. (५) उत्तराध्ययनमां मुनिने यावज्जीव काया ऊपर मेळ धारवा लख्युं छे. (६) ज्ञातामां पण द्रौपदीना अधिकारमा मुकुमालिकाने हाथ 'पग वारंवार धोतां दोषित वर्णवी छे. (७) उववाइमां लख्यु छे के जे अर्थे नग्नपणुं, मुंडपणुं,स्नानसाग, दातणयाग, केशलोच, ब्रह्मचर्य, छत्रत्याय, उपानह त्याग, तृण Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) शतपदी भाषांतर. के काष्टनी शय्या, परघरभिक्षा, हीलना निंदना खिंसना गर्हणा वगेरा परिभवनुं सहन, गामोगाम फरवू, बावीश परीसह सहेवाइत्यादि कराय छे ते अर्थने तेणे आराध्यु. (८) उत्तराध्ययनचूर्णिमां लख्युं छे के मुनिए विभूषा पाछल नहि लागवं. कारण के विभूषितशरीरवालो स्त्रीयोने अभिलषणीय थाय छे. (९) निशीथचूणिमा लख्यु छे के स्नान करतां छकायनी विराधना थाय छे, स्नाननी देव पडी रहे छे, अहंकार थाय छ, प. रीसहथी बीकण थई जवाय छे, अने लोकमां अविश्वास थाय छे, माटे उत्सगै स्नान नहि करवं. बीजापदे ग्लानमुनि चिकित्सार्थे यतनाए स्नान करी शके. तथा लांबो मार्ग पसार करी आवेल मुनि पण यतनाए स्नान करी शके. तेमज अवमकाळ आवतां के ज्यारे उज्वळवेषवाळानेज भिक्षा मळी शके एम होय तो तेवा वखते पण यतनाए स्नान करी शकाय. कोइ कहे के दशाश्रुतस्कंधमां मासिकप्रतिमाघरमुनिने शीत के उष्णजळथी हाथपग वगेरा धोवा नहि कल्पे एम कहेल छे माटे हाथपग धोवानो निषेध जिनकल्पी माटे छे, स्थविरकल्पी माटे नथी. तेनुं ए उत्तर छे के ए सूत्रनो विषयविभाग ए रीते छे के हाथपग वगेरा धोवानो निषेध तो बन्ने कल्पमा छे पण तफावत एटलोज छे के जिनकल्पी माटे जे निषेध छे तेमां अपवाद नथी रहेल, अने स्थविरकल्पी माटे जे निषेध छे तेमां अपवाद रहेल छे. ए वावत पंचकल्पचूर्णिमां कडं छे के ग्लानादिक कारणे चौद . उपकरणी अधिक उपकरणो राखतां तथा शरीरनुं उद्वर्तन, ह. स्तपादादिधावन, नंखनयन, शोधन, तथा दातण करतां स्थविरकल्पीने प्रायश्चित्त नथी. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (४५) वळी आचार्य तथा वादिमुनि वगेराने उत्सर्गथी पण हाथपग वगेरा धोवानी अनुज्ञा छे. कारण के व्यवहारभाष्यमा आचार्यना नीचे मुजब पांच अतिशय कह्या छे. (१-२) आचार्यना आहार पाणी सामान्य मुनिओकरता श्रेष्ट होय. (३) आचार्यनां कपडां मेलां थतां धोवाय छे. कारण के तेथी परवादीओ डर खाए तथा अवज्ञा न करे. तेमज स्वच्छ . वस्त्रथी मंडळमां आचार्य तरत ओळखाय, (४) आचार्य. • (५) आचार्यना हाथ, पग, आंख, दांत वगेरा नियमा धोवाय छे. कारण के तेथी बुद्धि तीक्ष्ण थाय छे, वचननी पटुता थाय छे, अने शरीरनी अलज्जनीयता थाय छे. आ पांच अतिशयो केटलाक दृढशरीरवंत आचार्य नहि पण भोगवे. ___माटे सामान्य मुनिओए वगर कारणे हाथपग धोवा जोइये नहि. कारण के श्रावको पण एवा मनोरथ करेछे के क्यारे अमे मळमलिन थई जूना वस्त्र पहेरी मधुकरवृत्तिए मुनिपणुं पाळशं एम . योगशास्त्रमा कर्तुं छे. वळी प्रव्रज्याविधानमां पण कयुं छे के मुनिए यावजीव नहावु नहि, भूमिए सू, केशनो लोच करवो, अने प्रतिकर्म एट. ले शरीर तथा उपकरणने घठारवां मठारवां नहि. लौकिकमां पण कां छे के सारीशय्या, सारो आहार, सा. रां वस्त्र, तांबूळ, स्नान, सणगार, दातण, तथा सुगंधी चीजो ए शीळनां बिगाडनार छे. . Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ६९ मो. मश्नः - ज्यारे हाथ पग धोवानो निषेध करो छो त्यारे वर्षादमां पगमां कादव लागे त्यारे केम करवुं ? ( ८६ ) उत्तरः- वर्षादमां ज्यारे पगोमां कादव लागे त्यारे पादलेखानेकावडे ऊतार पण पग पखाळवां नहि. तेना पुरावा नीचे मुजब छे. १ निशीथचूर्णिमां कां छे के साधुओ वर्षादमां पग नथी धोता, पादलेखानेकार्थी लूछे छे. २ ओघनियुक्तिमा क छे के शेषकाळमां रजोहरणथी पग पोंजवा, पण वर्षादमां पादलेखनिका वापरवी. ते वड, उंबर के पीपरनी करवी, कदाच ते न मळे तो आंवळीनी करवी. ते बार आंगल लांबी, एक आंगळ पोली, बे छेडे नख जेवा आकारवाळी अने सफाइदार होवी जोइये. तेवी पादलेखनिका दरेक मुनिए जूदी जूदी राखवी. ३ पंचकल्पचूर्णिमां लख्युं छे के चीखळ लूछवा अर्थे पादलेखनिका रखाय छे ते रजोहरण के निषद्या साथे बांधीने राखवी. विचार ७० मो. प्रश्नः - यतिओने एकांगिक एटले एक कटकावाळी दसीवाळुंज रजोहरण कल्पे के केम ? उत्तरः- (१) उत्सर्गे एकांगिकज कल्पे पण अपवादे अने कांगिक तथा असंबद्धदशी ओवाळु पण लेवाय, एम निशीथचूर्णिमां खुल्लुं कथुं छे. (२) वळी रजोहरण, मोंपती, तथा पोंछणुं पोताथी बहु छेटे Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ८७ ) Taai नहि जाये. कारण के निशीथचूर्णिमां कहां छे के अवग्रहथी बाहेर रहेती चीज वोसरेली गणाय, अने वोसरेली चीज धारण करतां दोष प्राप्त थाय छे. वळी रजोहरण माटे तो एम छे जे ते एक हाथनी अंदरज राखबुं. कारण के कीडी, मंकोडा, वगेरे करडतां एक हाथथी दूर राखेल रजोहरण तरत हाथमां ना आवे तेथी वगर प्रमार्जे खरज करतां जीवविराधना थाय तथा वीछी के सर्प वगेरा शरीरपर चडतां ज्यां लगी रजोहरण ऊपाडवा जाय त्यां लगी दंशीले तेथी आत्मविराधना थाय. अपवादपदे ग्लान होतां, ग्लाननुं उद्वर्त्तनादि करतां, अग्निना संभ्रममां, अशिवादि कारणे परायुं लिंग ग्रहण करतां इत्यादि कारणे जे चीज वोसरेली होय ते पण पाछी धारी शकाय छे. तेथी ए कारणे दूर राखी शकाय ते वगर ए उपकरणों दूर. रा. खवां नाह जोइये. (३) रजोहरण एक हाथनुं करवुं. कारण के ओघवात्तमां नीचे मुजब रजोहरण करवानुं कहेल छे, मूळमां निविड कर, बच्चे स्थिर करवुं, पर्यंते सुंआलं करयुं, एकांगिक एटले एक कटकावाळी दसीओ करवी. दसीओ तथा airni गांठो नहि करवी. दसीओ ज्यां वींटाय ते ठेकाणे अंगुठा तथा प्रदेशिनी आंगळमां समाय एवं करनुं, बीटणुं मजबूत कर, अने प्रमाणमां एक हाथनुं ऊंचु तथा पहोळु करवुं. (४) वळी रजोहरणमां सूक्ष्म दसीओ नहि करवी. कारण के निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के सूक्ष्म दसीओ गुंचाई जतां ते निमित्तथी साधुओ अनाचारी अने दुर्बळ थाय. (५) रजोहरण बांधवानी विधि एवी छे के दंडना त्रीजा भाग ऊपर सरखा दोरावडे रजोहरण बांध तेमां फेरफार करे तो Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८८ ) शतपदी भाषांतर. प्रायश्चित्त लागे, एम निशीथभाष्यमां कडं छे.. (६) रजोहरणना दंडमां खीली के दसीओनो बंध पाडवो "नहि जोइये. कारण के कल्प तथा निशीथना भाष्यमां तेम करवा मनाई पाडेल छे. (७) रजोहरणना ऊपर वेश, जोइये नाह; कारण के निशी. थचूर्णिमां कह्यु छे के जो ऊंदर, चोर, छोकरा, के दुश्मननु भय होय तो रजौहरणपर बेशवू पण ते शिवाय बेशq नाह. ... (८) रजोहरण जमणे पडखेज धरवू जोईये. कारण के नि शीथचूर्णिमां कधुं छे के बेठा होतां के सूता होतां जे साधु रजोहरण ओसीसे धरे अथवा डावी बाजुए आगल के पाछल राखे तेने प्रायश्चित्त लागे. माटे बेठा होतां के सूता होतां ऊं. दरादिकना भय शिवाय जमणी बाजुएज अधोमुख करीने रजोहरण राखq. ... (९) रजोहरणनी दसीओ बार आंगलनीज जोइये. अने निशीथना भाष्य तथा चूर्णिमां जे दंड चोवीश आंगलनो होय तो दसीओ आठ आंगळनी, दंड वीशनो होय तो दसीओ बारनी अने दंड छवीशनो होय तो दसीओ छ आंगळनी एम भजना बतावी छे ते अपवादपदनी अपेक्षाए अथवा यथाकृत एटले जेवा मळे तेवा रजोहरणनी अपेक्षाए लागे छे. कारण के त्यांज लख्युं छे के बीजापदे आपेला प्रमाणवाळु रजोहरण दुर्लभ होता हीन के अधिक जे, मळे तेवू पण धरी शकाय. तथा यथाकृतना अधिकारे लख्युं छे के यथाकृतनी दसीओनी भजना छे एटले के दंडना प्रमाणनी वधगट प्रमाणे दसीओनुं प्रमाण जाणवू. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. . ( ८९ ) विचार ७१ मो. प्रश्नः-भिक्षादिक अर्थे बाहेर जतां बधां उपकरणो साथे केम नथी लेता? उत्तरः-ए वातनो पण एकांत नथी. केमके वैरस्वामिनी कथामां वात आवेली छे के बधा साधुओ बाहेर जतां तेमना वींटणाओने मंडळीमा स्थापीने वैरस्वामिए देशना देवा मांडी. वळी ओघनियुक्तिमां पण कडं छे के भिक्षार्थे जतां उत्सर्गे बधां उपकरण साथे लेवां. कदाच बर्षा उपकरण साथे लेवा असमर्थ होय अथवा नवदीक्षित, ग्लान, के वृद्ध होय तो जेटलां ऊ. पाडी शकाय एटलां ऊपाडवां. व्यवहारचूर्णिमां लख्युं छे के वर्षाऋतुमा बधां उपकरण न. हि ऊपाडवां. HOM विचार ७२ मो. प्रश्न:-भिक्षादिकनो उपयोग सवारमा करी लेवो के जती वेला करवो? उत्तरः-भिक्षादिकनो उपयोग भिक्षादिक अर्थे जती वेलाज करवो एम ओघवृत्तिमा कहेल छे. निशीथचूणिमा लख्युं छे के उपयोगनो कायोत्सर्ग करता भि- - क्षानो प्रथम लाभ थवा लगी दांडो भूमिए नहि अडकाववो. ओघभाष्यमां पण कधुं छे के अर्थपोरसी पूरी थतां उपयोग तथा कार्योत्सर्ग करी भिक्षाए नीकलबुं. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) शतपदी भाषांतर. विचार ७३ मो. मनः-साधुने बीजीवार भोजन कर, कल्पे के नहि ? उत्तरः-सामान्यपणे एकवारज भोजन करवं कल्पे पण इहाँ दिगंबरोनी माफक अवधारण घटी शके नहि. कारण के ओपनियुक्तिमा लख्यु छे के प्रमाणद्वारमा बेवार गोचरीए जवानुं कर्तुं त्यां एटलुं वधु जाणवू के आचार्य, बाळ, ने ग्लानना अर्थे बे करतां वधुवार पण जइ शकाय छे अने का. लद्वारमा बे काळे जवान कछु छ सां एटलं वधु जाणवु के ग्लान अने तपस्वीना पारणाअर्थे अतिप्रभातमा अथवा भिक्षावेळा टळी जतां पण घणीवार जवाय. वळी ओघभाष्यमां लख्यु छ के ग्रीष्मकाळगां तपस्वी के तरसेलो अथवा भूखेलो पुरुष भूखतरस सही नहि शकतां पेहेली पंक्तिए गोचरी जवानी रजा ल्ये. विचार ७४ मो. प्रश्नः-खरडेलेज हाथे भिक्षा लेवी जोइये के केम ? उत्तरः-कल्पादिक ग्रंथो प्रमाणे कंई एवो नियम देखातो नथी के खरडेलेज हाथे भिक्षा लेवी. कारण के त्यां नीचे मुजब आठ भांगा पाही लख्यु छे के जे जे भांगे सावशेष द्रव्य होय ते ते भांगे लेवु कल्पे. भांगानी विगत आ प्रमाणे छे. १ संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. २ संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ३ असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. ४ असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. ५ संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ६ संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ७ असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ८ असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ( ११ ) आ आठ भांगाम ज्यां पश्चात्कर्मना दोषनो संभव थाय ते अशुद्ध भांगा अने बाकीना शुद्ध भांगा जाणवा. एम कल्पचूर्णि मां कधुं छे. अने दशवैकालिकमा जे लख्युं छे के असंसृष्ट हाथे नहि लें त्यां पण ज्यां पश्चात्कर्म थाय एम कहेलुं होवाथी पश्चात्कर्मना संभवमांज स्थविरकल्पिना माटे निषेध पाडेल जणाय छे. 蘿金 विचार ७५ मो. प्रश्नः - अलेपित पात्रमां जमतां तेमां पनक बंधाय छे, दुर्गंध थाय छे, अने तेथी उलटी तथा जुगुप्सा आवतां आत्म, संयम, तथा प्रवचननी विराधना थवानो संभव रहेल छे माटे अलेपित पात्रमां आहार करवो नहि जोइये. ए वात विषे तमारो शो अभिप्राय छे ? उत्तरः- अमारुं एम मानवुं छे के ए दोषो तुंबाना पात्रमां - ज देखाय छे माटे तुंबानं पात्र अलेपित होय तो तेमां जमवुं नहि कल्पे बाकी लाकडाना पात्रा विषे कंइ नियम नथी. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२ ) . शतपदी भाषांतर. विचार ७६ मो. प्रश्न:-भिक्षाना माटे झोली बांधो छो तेमां शुं प्रमाण छ? उत्तरः-ओघनियुक्ति, निशीथभाष्य तथा चूर्णिमा कह्यु छ के पात्रबंधनी गांठ ए रीते वाळवी के जेम तेना चार आंगलना छेडा बाकी रहे. कोइ कहेशे के ए तो पात्रांने बांधवामां ए विधि छे पण कंइ झोली माटे नथी तेणे जाणवू जोइये के पात्रा माटे पण उत्सर्ग तो एम छे के पात्रबंधवडे गांठ नहिज देवी किंतु पा. पा उपर पात्रबंधना चारे छेडा मेळवी तेनापर पात्रकेशरिका मेळवी अने तेनापर पडला मेळवा. पण झोलीना माफक अपवादपदे खीटी वगेरामां पात्रां टांगवा माटे गांठ देवानी होतां तेनुं प्रमाण बताव्युं छे. महानिशीथमां पण लख्युं छे के पडिलेहणा करतां पात्रधनी गांठ नहि छोडे तो प्रायश्चित्त लागे. विचार ७७ मो. प्रश्नः-साधुने दसीवाळु कपडं लेवू पण नहि कल्पे के केम? ___ उत्तरः-साधुने दसीवाळु कपड़े पहेरवु नहि कल्पे. बाकी लेबु तो कोइ वेला कल्पे पण खरं. केमके ओपनियुक्तिमा मामान्यपणे निषेध नहि लखतां आशिवने उद्देशीने लख्युं छे के "ज्यारे अशिव एटले मरकी चालती होय त्यारे दसीवाळु कपडं, लोह, लूण, के विगय ए चार चीजो नहि लेवी." . Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ७८ मो. प्रश्नः - साधु तथा साध्वीओ एक क्षेत्रमां रहे के नहि ? उत्तरः- एक क्षेत्रमां सर्वथा नहि रहे एवो एकांत नथी. कारण के तीर्थंकरो साथे साध्वीओ विचरती हती, तथा जमाळि साथै हजार साध्वी ओना परिवारे प्रियदर्शना सावत्थीमां विचरेल छे, वैरस्वामि मळ्या के गुरुए तरतज साध्वीओने सोप्या छे, कीर्त्तिमतीराणी अने क्षुल्लककुमार पण साथै विचरेल छे, पटणामां स्थूलभद्रने वांदवा साते आर्याओ आवेल छे, इत्यादि घणा दाखला छे. ( ९३ ) वळी व्यवहारसूत्रमां पण कर्तुं छे के आठम, पांखी, तथा दररोजनो वाचनाकाल टाळीने शेषकाळे साध्वीओए साधुओना अपाश्रयमां नहि आववुं. तथा पर्युषणाकल्पमां लख्युं छे के वरशाद वरसतो होतां वे साधु अने बे साध्वीने एकठा रहेवुं नहि कल्पे, पण वच्चे नानुं के मोहोट्टं पांचमुं कोई होय तो एकठा रहेवुं कल्पे. माटे सर्वथा निषेध नथी जणातो, केमके कल्पसूत्रमां पण एम लखेल छे के एकज वगडा अने एकज दरवाजावाळा गामनगरमां साधुसाध्वीओए साथै नहि रहेवुं. अनें कदाच कारणवशे तेवा स्थळे साथ रहेवुं पड़े तो यतनाथी रहेवुं एटले के गोचरी तथा संज्ञाभूमिए आगलपाछल जवं. कदाच त्यां एकज वेलाए देशकाळ होय तो साधुसाध्वीओए सामसामा मळतां एकबीजाने वंदननमन के वातचीत वगेरां नहि करवां. बाकी अनेक वगडा अने अनेक दरवाजावाळा गाम के नगरम तो साधुसाध्वीने उत्सर्गे पण साथ रहेवुं कल्पे छे. कारण के त्यां गोचरी तथा स्थंडिळनी जग्या अलंगअलग मळी शके छे. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) शतपदी भाषांतर. विचार ७९ मो. प्रश्नः-साधु साध्वीओने वाचना आपी शके के नहि ? उत्तरः-उत्सर्ग तो एमज छे के साधु साधुओने वाचना आपे अने साध्वी साध्वीओने वाचना आपे. पण अपवादे उलटपालट पण करी शकाय छे. त्यां अपवाद ते ए के प्रवर्तिनीना पासे ते श्रुत न होय सारे आचार्य तेमने भणावे. अथवा प्रतिनी पासे श्रुत होवा छतां आचार्य पासेथी शीखतां विशेष मंगळ के श्रद्धा थती होय अथवा भय के गौरवथी भणवामां वधु उत्साह थवा संभव होय तो ते कारणे पण आचार्य शीखावq. तेमज साधुओ पासे अमुक श्रुत नहि होय ने कोइ साध्वी पासे ते होय तो त्यारे साध्वीए ते साधुओने शीखाव. आ रीते व्यवहारसूत्रनी वृत्तिमां वात कहेल छे. ___ वळी तेज ग्रंथमां कयु छे के जो के स्त्रीओ विषतुल्य छे तेथी तेमना साथ मुनि वातचीत करे तो महोटुं प्रायश्चित्त आवे छे तो पण कारणे एटले के ज्यारे साध्वीओ पासे श्रुत न होय सारे तेओने मुनिए भणाव. कारण के भण्या विना तेमनुं चारित्र नाश थवानो संभव रहे छे. माटे ज्ञानदर्शन अने चारित्रनुं रक्षण करवा निर्दोष रहीने भणाव. __हवे ऊपरना कारणे ज्यारे साध्वीओने भणाव, पडे त्यारे नीचेनी विधिए शीखव. त्यां आदिमां विधि ए छे के जे साध्वी प्रज्ञावंत सरळ अने आज्ञा पाळनार होवा छतां माता बहेन के पुत्रीरूपे होय तेने मुनिए शीखवq. अने तेवो योग नहि होय तो जे साध्वी तरुण होय, जे साध्वीने फरी दीक्षा दीघेल होय, जे साध्वी पूर्वे वेश्या होय, जे साध्वी पूर्वे शीखवनारनी भार्या होय, Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ९५ ) जे साध्वी साथ शीखवनारे पूर्वे कोई वेला हास्य कीधुं होय, ते मज जे साध्वी पूर्वे व्यभिचारिणी होय तेवी साध्वीओने वजने शेष साध्वीओने मुनिए शीखव. कारण के जो कदापि शीखनार शीखवनार ए बन्नेनुं चित्त वज्र जेवुं मजबूत होय तोपण बीजाने शंका आववानो संभव रहे छे. बळी मुनिओमां पण जे परिणत अने आचार्य होय तेणे शीखावj. कदाच आचार्यनो योग न होय तो बीजो पण जे परिणत होय तेणे शीखववुं. तथा आवे प्रसंगे द्रव्य, क्षेत्र, काळ, वगेरानी नीचे मुजब यतना राखवी. (१) द्रव्यनी यतना ते ए के बन्ने जणाए हलकुं भोजन लेबुं. कारण के तेथी खरचुपाणींनी शंका नहि रहे. (२) क्षेत्रनी यतना ते ए के शून्य घर, छानुं स्थान, उद्यान, देवळ, सभा, आराम, तथा ए वगेरा शंकनीयस्थळ मुंकीने खुल्ले स्थळे वाचना देवी. तेमज पोताना के आर्याओना उपाश्रयमां पण जो पोतपोतानुं मंडळ न होय तो एकांतपणे वाचना नहि देवी. (३) काळनी यतना ते ए के साधुओने सूत्रार्थनी वाचना देनार जो बीजो कोइ होय तो आचार्य प्रभातनाज साध्वी ओनी वसतिमां वाचना देवा जाय. अने जो साधुओने अर्थनो देनारज होय पण सूत्रनो देनार कोइ नहि होय तो सूत्र आपीने बीजी पोरसीए आचार्य साध्वीओनी वसतिमां जाय. कदाच सूत्रनो देनारज होय अने अर्थनो देनार कोइ नहि होय तो आचार्य पेली पोरसीमां साध्वीओनी वसतिमां जई आवी बीजी पोरसीए साधुओने अर्थ आपे अने जो सूत्र के Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९६ ) शतपदी भाषांतर. अर्थनो बीजो कोइ शीखावनार न होय तो पोतानी वसतिमांज रहीने आचार्ये साधुसाध्वी ए बन्नेने शीखाव. आवे प्रसंगे नीचे मुजब मंडळीनी यतना करवी. (४) मंडळीनी यतना ते ए के एक तरफ साधुओनी मंडळी क राववी अने एक तरफ साध्वीओनी मंडळी कराववी अने वच्चे सादरीनो के चिलिमिणी एटले कपडानो पडदो रखावी एक बीजाने जोइ शके नहि तेम करवं. अने आचार्ये पडदाने छेडे बेशवू के जेथी वे वर्गने जोइ शकाय. एम कर्याथी लोकमां पण प्रत्यय थाय के आ शुद्धशीळवंत छे तेमज वांदवा आवनाराओ पण तेवी रीते बेठेला जोइ विश्वास पामे, __ आ रीतनी मंडळीमां जे साधुओ साध्वीनी नजर साथे नजर बांधनारा होय तेमने तथा जे पूर्वे भर्तार के व्यभिचारी होय तेवाने तथा जे अल्पधीरजवंत होय तेवा साधुओने मंडलीमां नहि बेशाडतां बीजा पासेथी भणावत्रा, अथवा राते तेमने पूछयूँ कर.. _ वळी उत्सर्गे साध्वीओए ऊभा रहीने भण. पण जो शरीर दुर्बळ होय अथवा बहुकाळ ऊभा रह्याथी थाक लाग्यो होय तो वेशीने भण. तेमज ऊंचे सादे घोखवू नहि, तथा ऊपरनी साडी पग सूधी लांबी अने सादी राखवी, तथा एक बीजानुं मुख नहि जोतां नीचुं पुरन राखी शीखवू, तेमज हाथनी अंजलि पण कपडाथी ढांकीने करवी. __ आ विधि सांचव्या शिवाय जे साधु आर्याने भणावे तेने अनाचारी जाणवो. ए रीते व्यवहारसूत्रना सातमा उद्देशानी चूणिमा लखेल छे. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९७) शतपदी भाषांतर. विचार ८० मो. प्रश्नः-यतिने प्रावरण एटले ऊपर ओढवा- कपडं कल्पे के नाहि! उत्तरः-उत्सर्गे नहि कल्पे, पण अपवादे कल्पे पण खरं. कारण के कल्पचूर्णिमां नीचे लखेला प्रसंगे प्रावरण राखQ कह्यु छे. (१) क्षेत्रने आसरी मावरण रखाय जेम के सिंध देशमा प्राव रण ओढीनेज फराय छे. (२) वर्षाकाळमां प्रावरण रखाय छे. (३) अभावित एटले जे अभोमियो शिष्य होय ते ज्यां सूधी भावित एटले भोमियो थाय त्यो सूधी तेने प्रावरण रखावq. (४) शीत के ताप नहि खमी शकतां प्रावरण रखाय छे. (६) प्रभाते भिक्षादिक अर्थे जतां प्रावरण रखाय छे. (६) मुशाफरीए जता दंड शिवाय बधी उपधि खंधे बांधी तेना. पर प्रावरण राखी चलाय छे. (७) चोरना भये प्रावरण ढांकी नीकलाय छे. वळी जे ओघनियुक्तिमा प्रावरणनी ना कही छे ते विषे तेनी टीकामां खुलासो करेल छे के जेम साध्वीओ प्रावरण ओढे तेवी रीते प्रावरण नहि ओढवू. तेथी कई सामान्यपणे प्रावरणनी मनाई जणाती नथी.. बाकी नीचे प्रमाणे वस्त्र पेहेरवा बाबतनी अविधिओ गळवार्नु पंचकल्पनी चूर्णिमा लख्युं छे. (२) चोवढं के मोकलं वस्त्र करीने खंधपर नहि राखq. (२) वस्त्रथी माथापर लटकता पूछवाळु फेंटुं नहि बांधq. (३) साध्वीना माफक बे बाहु ढांकीने नहि ओढवू. (४) बे खभानी नीचेथी नाखीने बे खभापर वे छेडा राखी नहि वापरबुं. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९८ ) शतपदी भाषांतर. (५) अर्धं खभापर अने अर्ध लटकतुं उत्तरासंग माफक नहि राखq. (६) चलोटापर भेठ नहि बांधवी. (७) गृहस्थ लिंग नहि करवू. (८) अन्यतीर्थिकनुं लिंग पण नहि करवं. अने ए बावतमां नीचे मुजर अपवादो लखेल छे. (१) मांदानी वेयावच करता के पोते मांदो होता अथवा प्रा__हुणानी विश्रामणा करतां साधु भेठ बांधे. (२) लटकती पूछडीवाळु फेहूं के उत्तरासण नानो शिष्य होय ते करे अथवा अनाभोगे मुनि पण करी जाय. (३) साध्वीनी माफक मावरण वर्षाऋतुमां कराय छ, अथवा सिंध वगेरा देश पामीने पण कराय छे. इत्यादि अपवाद टाळी निःकारणे गृहिलिंग के अन्यलिंग करता मूळपायश्चित्त लागे छे. HONE विचार ८१ मो. प्रश्नः-निशीथ तथा पर्युषणाकल्पनी चूर्णिमा कयु छे के मुनि ज्यां आषाढ मुदि दशमीना रहेला होय अथवा आषाढ मासनो मासकल्प रहेला होय ते क्षेत्र जो चोमासु रहेनाने लायकहोय अने त्यां संथाराना घासनो तथा स्थंडिळभूमिनो योग ठीक होय अने मोटी वरषाद पटवा मांडी तो त्यांज आषाढ मुदि पू. नमना दिने मुनिओ पर्युषणा करे.ए उत्सर्ग मार्ग छे. अने वाकीना पंचकवृद्धिना सघळा काळ अपवादरूप छे. माटे तमे आषाढी पूनमनीज पर्युषणा केम नथी करता? उत्तर:-यहां जे “पर्युषणा करें" एवो शन्द छे तेनो एट Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ९९ ) लोज अर्थ थाय छे के पोताना चित्तमा “रहेवानो निश्चय करे." बाकी कई पडिकमणा, चैत्यपरिपाटी, तप, तथा आलोयणावाळू गृहिज्ञात पर्युषणापर्व करे एम अर्थ नथी. ___एपरथी ए तात्पर्य नीकले छे के चोमासु रहेवानो निश्चय तो उत्सर्गे आषाढ मुदि पूनमे अने अपवादे श्रावण विदि पांचम वगेर पर्वोमां करवो. पण चैत्यवंदन, तपकर्म, तथा पडिकमणा वगेर क्रियाओ तो पचासमे दिवसेज करवी. कारण के जो आषाढी पूनमनीज पर्युषणा मानीए तो जीवाभिगममा त्रण चोमासा तथा पजोसणना मळी चार अठाइ महोत्सव देवताओ करे एम लख्युं छे ते तथा निशीथने व्यवहारमां बने पर्वना तप पण जूदां जूदां लख्यां छे ते केम घटे. तेमज आवश्यक नियुक्तिमा चोमासामा अने वार्षिक वर्षमा आलोयणा देवी तथा जूना अभिग्रह तपासवा अने नवा लेवा एम लख्यु छे ते केम घटे ? वळी एकज दहाडे चोमासानां अने संवछरीना क्षा. मणा केम थइ शके ? तेमज आवश्यकचूर्णिमां लख्युं छे के चोमासानु काउसग पांचसो ऊसासानुं अने संवच्छरीनुं आठ हजारर्नु करवु तथा चोमासामा एक उपाश्रयदेवतानोज कायोत्सर्ग कराय छे अने पजोसणना दिने उपाश्रयदेवता तथा क्षेत्रदेवतानो पण काउसग कराय छे ते केम घटे ? माटे ए रीते जूदा जूदा बे पर्व नां काम एक दिनमा केम घटे? .. कोइ पूछे के "पज्जोसवंति" एनो पर्याय "रहे" एम आपो छो तेमां शुं प्रमाण छे ? तेने ए उत्तर छे के पर्युषणाकल्पना एक सूत्रनी व्याख्या करतां चूर्णिकारेज "पज्जोसवित्तए" ए पदनो पर्याय "परिवसित्तए" एम करेल छे, HO Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) शतपदी भाषांतर. विचार ८२ मो. प्रश्नः-पौष अने आषाढनेज अधिकमास केम गणो छो ? तथा अधिक मासवाला वर्षमां वीसापजूसण केम करो छो ? . उत्तरः-कल्पभाष्यमा कबु छे के पांच वर्षना युगमा पेलो, बीजो, ने चोथो, ए त्रण चंद्रवर्ष आवे छे अने बीजो ने पांचमो ए बे अभिवर्धित एटले अधिक मासवाळा वर्ष आवे छे. चंद्रमास दिन २९३३ होवाथी चंद्रवर्षमा बार मासना ३५४६३ दिन आवे छे अने अभिवर्धितमा १३ मास आवे छे. तेमां श्रीजामा पोष वधे छे अने पांचमामां आषाढ वधे छे. ए कारणथी चंद्रवर्षमा पचासमे दहाडे गृहिमात पर्युषणा करवी एटले गृहस्थोने विदित कर के अमो अत्रे चतुर्मास रह्या छीये. कारण के साधुओनो नकी निवास गृहस्थोने पचास दहाडाथी अगाऊ मालम पडे तो वरसाद ओछी थतां पण तेओ एम विचारे के साधुओ नकी निपास करी रया छे माटे बरसाद थशेज एम विचारी खेतरपधर खेडी तैयार करे एम अधिकरण दोष लागे तथा अशिवादि का. रणे त्यां सूधी साधुओने विहार करवानुं पण रहेल छे तेथी लोकमां साधुनुं मृषावादिपणुं जणाय. माटे पचास दहाडाथी अगा. ऊ गृहिज्ञात पर्युषणा नहि करवी. तेमज अभिवधितवर्षमा वीसमे दहाडे गृहिज्ञात पर्युषणा करवी. कारण के अधिक मासने गणत. रीमा लेवो ते ए रीते के ते मासने ऊनालाना भागमा गणवो. ____ आ रीते कल्पवृहद्भाष्य, कल्पसामान्यचूर्णि, पर्युषणाकल्पचूर्णि, तथा निशीथचूर्णिनो अभिमाय छे तेथी तेना अनुसारे वीसापजूसण सिद्ध थाय छे. कोइ पूछे के त्यारे पर्युषणाकल्पमां कहेलं छे के श्रमण भग. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१०१) वान महावीरे पचास दिन पूर्ण थतां पर्युषणा करी ए सूत्र केम घटे! तेनुं उत्तर ए छे के ए सूत्र चंद्रवर्षने उद्देशीने कहेल छे. एम तेनी चूर्णिमा स्पष्ट कहेल छे. विचार ८३ मो. प्रश्नः कोइ ऊपरली बिना बाबत एवी व्याख्या करे के "कल्पनिशीथादिकनी चूर्णिमा जे चंद्रवर्षमां पचाया दहाडे अने अभिवार्षितमा वीस दहाडे पर्युषणा करवी कहेल छे तेनो अर्थ एम करवो के एटले दहाडे रहेवानो नकी ठराव करवो. वा. की पडिकमणा वगेरे पर्वानुष्टान तो जे दिने थता होय तेज दिने करवा माटे अभिवदित वर्षमां पण वीसमे दहाडे पर्वानुष्टान नहि थइ पाके." तो एवी व्याख्या यइ शके के केम? .. ___ उत्तरः-एवी व्याख्या करीए तो पचासमे दहाडे भादरवामां पण रहेवाना ठरावनोज अर्थ थशे. अने पडिकमणादिक क्रिया माटे कोइ बीजोज दिवस शोधवो पडशे. कारण के चूर्णिना ग्रंथमा जे वात वीसापजूसण माटे लखी छे तेज वात पचाशा पजूसण माटे लखी छे. माटे एवी व्याख्या करवी अघटित छे. वळी विचारो के क्या पण भादरवा मुदि पांचमने उद्देशीने संवच्छरी पडिकमणा वगेरे नथी बताव्या. किंतु सामान्यपणे एम कहेल छे के पजोसणना दहाडे के संवच्छरीना दहाडे संवच्छरी प्रतिक्रमण वगेरा क्रिया करवी. माटे पजोसणना दिननो निश्चय तो एज पचाश के वीस दहाडावाला मूत्रथी थइ शके छे माटे अभिवदितमा श्रावण मुदि पांचममांज प्रतिक्रमण लोच वगेरा क्रियाओ करवी. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) शतपदी भाषांतर. कोइ कहेशे के सारे श्रावणमां पर्युषणा कर्या बाद पाछी भादरवे करतां तेर मास थवा आवे छे माटे “ बारसहं मासा " एम कैम कही शकाय ? तेनुं उत्तर ए छे के जेम पांच मासवाळा चोमासामां पण " चउएहं मासाणं" कही शकाय छे तथा जेम आगमना अभिप्राये चोथी पाखी चौद दिननी छतां पण पाक्षिक कही शकाय छे तेमज तमारा अभिप्राये तेर चौद पंदर के शोळ दिने पाखी भवतां पण " पनरसहं दिवसाणं" एम एक सरखो आलावो कही शकाय छे तेम इहां पजोसण पर्व बावत पण "बारसहं मासा" ए पाठ कही शंकाय छे तेमज तमारे पण तेर मासनो वर्ष आवतां ए बात सरखीज छे. कदाच एम कहेशो के अधिक मास काळनो चूळारूप होवाथी लेखामां नहि गणाय तो ते वात रद जशे कारण के कल्प तथा निशीथना चूर्णिकारोएज ते लेखामां गणेल छे. कारण के त्यां एम कनुं छे के "जो अधिक मास होय तो वीसे दहाडे पर्युषणा करवी कारण के इहां अधिक मासने मासज गणवो ते हिसाबे पचाश दहाडाज थया." · *+3+4 विचार ८४ मो. प्रश्नः - (परमतवाळा तरफथी):- टीपणुं केम नथी मानता ? उत्तरः- तमारा शास्त्रोथी जैन शास्त्रो जूदी तरेहनाज छे माटे अमारा साथे तमारी शी तकरार चाले. वळ तमारामां पण खंडखाड्य, शिष्यधी, तथा ब्रह्मसिद्धांत वगेरा ग्रंथो साथै वर्त्तमान टीपणां केटलीक बाबतोमां विरुद्ध पडे छे. कारण के ते ग्रंथोमां अधिक मास जूदा कला छे अने हमणा जूदा वर्त्ताय छे. माटे तमारा टीपणां शी रीते मानी शकाय ? Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १०३ ) वळी पृथ्वी पण तमारा शास्त्रमां गोळाकार अथवा पूनमना चंद्रना आकार जेवी कहेल छे. ते पण अमारा साथे केम मळे ? वळ तमारामां ग्रहो तथा श्रवण वगेरा केटलाक नक्षत्रो पण प्रथम ज्योतिश्चक्रमां नहिं हता पण पछी उत्पन्न थया एम मानेल छे तथा चंद्र पण अगाऊं न हतुं पण पछीथी अत्रि ऋषिना नेत्रमांधी के क्षीरसमुद्रमांथी उत्पन्न थयुं एम मानेल छे. माटे अमारो ने तमारो मेळ शी रीते मळी शके ? हवे कदाच कोई जैनी बोले के टीपणाना हिशाबे आठम वगेरा पर्व तथा अधिकमास केम नथी करता ? तेने उत्तर आपीए छीये के छायडा अने तडकानी माफक लोक अने जैननुं मोटुं अंतर रहेल छे. माटे ते बेनी सरखाई केम आवी शके ? कारण के लोकमां एक चंद्र ने एक सूर्य छे, जैनमां असंख्य छे. लोकमां नव ग्रह छे, जैनमां ८८ ग्रह छे, जेमां त्रीशमो भरम ग्रह छे. लोकमां मेरु एक छे, जैनमां पांच मेरु छे. लोकमां भूगोळ अवळे आंटे सूर्यादिकने फरे छे जैनमां ज्योतिश्चक्र फरे छे. लोकमां सात द्वीप समुद्र छे, जैनमां असंख्याता छे लोकमां युग, मन्वंतर, इत्यादि काळमान छे, जैनमां पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्त्त, इत्यादि काळमान छे. वळी लोकमां क्यारेक एकज वर्षमां एक अधिकमास अने एक क्षयमास आवे छे जेमके सं. १२५० मां पोष मासनो क्षय हतो अने चैत्र मास बे हता, तेथी फागण चोमासुंत्रण मासे अने आषाढ चोमासुं पांच मासे थयुं हतुं. आ बाबत धूर्त्तभटसिद्धांत - मां स्पष्ट छे. पण जैनमां तेम थतुं नथी. लोकमां राहु मस्तकमात्र छे, जैनमां महर्द्धिक देव छे. लोकमां संक्रांति, व्यतिपात, ग्रहण, तथा वैधृति वगेरा पर्व गणाय Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) . शतपदी भाषांतर. छ, जैनमा तेम गणतां मिथ्यात्व लागे छे. लोकमां लोकनुं मध्य लंका कहेवाय छे. जैनमा मेरु कह्यो छे. लोकमां ग्रह पूजाय छे, जैनमा तेमने पूजतां मिथ्यात्व कहेल छे. लोकमां अगीआरसे चोमासु बेशे छे, जैनमा चौदश के पूनमे बेशे छे. वळी पर्युषणपर्व पण जैनोनुज छे. माटे लोक साथे केम सरखाई आवे? . ____ माटे जो टीपणुं प्रमाण करवा जइये तो आपणा निशीथ, कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध, भगवती, आवश्यक, स्थानांग, चंदपन्नत्ति, सूरपन्नत्ति, जंबुदीवपन्नत्ति, गणिविद्या, ज्योतिष्करंडक, संग्रहणी, तथा क्षेत्रसमास वगेरा ग्रंथो अप्रमाण थई जाय छे. वळी विचारो के टीपणामां तो अमावास्यानो मास बदले छे छतां तमो पण जैनना हिशावे पूनमनीज माससमाप्ति लेखीने कल्याणिक तिथिओ गणो छो माटे टीपणानुं शुं प्रमाणपणुं रघु. कदाच कोई पूछे के तमे युगमां ज्यारे पौष मास अधिक गणीने लौकिक चैत्र मासनी पूनमे फागण चोमासुं करो छो सारे ते मासने आगमिक फाल्गुन मास मानी तेमां दीक्षादिक पण आपशो के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के जेम तमो पण फागणनी पूनम पछी टीपणानी फागण विदिमां पण आगमिक चैत्र मास मानी विदि आठमे श्रीऋषभस्वामिनु कल्याणिक करो छो छतां तेने चैत्र गणी तेमां दीक्षादिक वर्जता नथी तेम अमारा माटे पण जाणी लेवु. । विचार ८५ मो. प्रश्नः-श्रावकने छजीवणी अध्ययन मुनि शीखावे के नहि? उत्तर:-श्रावकने ए अध्ययन मुनि उत्सर्ग मार्गेज शीखावी शके छे. कारण के निशीथमां लख्युं छे के गृहस्थ के परपाखंडी Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १०५ ) जो प्रत्रज्या लेवा अभिमुख थाय अथवा श्रावक थाय तो तेने छजीवणी अध्ययन शीखावी शकाय एम बे विशेष्यपद अने बे विशेषण आपेलां छे. निशीथना भाष्य तथा चूर्णिमां ए वात विस्तारीने लखी छे ते आरी के जे मुनि परपाखंडीने के गृहस्थने अथवा पासत्थादिकने शीखवे के तेमना पासेथी शीखे तेने प्रायश्चित्त लागे. का रण के अन्यतीर्थिक के गृहस्थने शीखवतां ते पाछा तीर्थनी हेलना करवा मंडे, तेमज तेमना पासेथी शीखतां मिथ्यात्वनो स्थिरीकार थाय, अने पासत्थादिक पासेथी शीखतां तेमने वंदनादिक करं पडे इत्यादि दोष थाय छे. इहां परपाखंडी ते परदर्शनना वेषधारी जाणवा, अने गृहस्थ ते पण परदर्शनीज लेवा, बाकी जे गृहस्थ जिनवचन माने ते खपाखंडीज लेखवा. तेमने तो जे योग्य होय ते शीखवनुं, तेमां कंइ मनाइ नथी. वळी परपाखंडी के परदर्शनी गृहस्थ ते पण जो प्रव्रज्या लेवा अभिमुख थाय अथवा श्रावक थवा इच्छतो होय तो तेने सूत्रथी छजीवणी सूधी अने अर्थथी पिंडेपणा अध्ययन सूधी शीखावकुं तेमज पासत्यादिक पण जे सुविहितने उपसंपन्न थाय एटले गुरु तरीके अंगीकार करे अथवा संविनविहार करवा उजमाल थवानी चाहनावाळो होय तेने वाचना देवी. आ रीते निशीथना भाष्य तथा चूर्णिनो अभिप्राय तपाशतां मालम पडे छे के श्रावकने भणाववामां बाघ नथी. आवश्यकचूर्णि, विशेषावश्यक श्रावक प्रज्ञप्ति, तथा धर्मरत्न वृत्तिमां कं छे के ग्रहणशिक्षामां साधु सूत्र तथा अर्थथी जघन्यपणे आठ समितिओ शीखे अने उत्कृष्टपणे चौदमा पूर्व सूधी शीखे. अने श्रावक जघन्यपणे आठ समितिओ ने उत्कृष्टपणे छजी ૧૪ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६) शंतपदी भाषांतर. . वणी अध्ययन सूधी सूत्रार्थे अने पिंडेषणा सूधी अर्थे शीखे. ___ वळी संवेगरंगशालामा लख्युं छे के आठ समितिओ जाण्या शिवाय श्रावक सामायिक शी रीते करी शके तथा छजीवणी जाण्या शिवाय जीवरक्षा शी रीते करी शके. हैम व्याकरणमा पण श्रावकने छजीवणी सूधी भणवानुं लखेल छे. ___ इहां वळी ए जाणवानुं छे के उत्कृष्टपणे छजीवणी सूधी भणवायूँ कहेवाथी तेथी पूर्वेना द्रुमपुष्पादिक त्रण अध्ययन आवीज जाय छे. वळी अर्थथी श्रावक पिंडेषणा सूधी शीखे ते वाक्यने पण उपलक्षणरूप गणवं. कारण के तेम न मानीए तो, ऋषभदेव स्वामिए अठाणु पुत्रोने सूगडांगनुं वैतालीय नामे बीजुं अध्ययन संभळाव्युं, गौतमस्वामिए अष्टापद ऊपर वैश्रवणने ज्ञातानुं पुंड. रीकाध्ययन संभळाव्युं, सुबुद्धिमंत्रिए धर्मदेशना पूर्वक जितशत्रु राजाने प्रतिबोधी बारव्रत आपी नवे तत्वनो जाणकार करीश्रावक कर्यो, कपिलऋषिए उत्तराध्ययननी वीस गीतिओवडे पांचसे चोर प्रतिबोध्या, निग्रंथमुनिए श्रेणिकराजाने अनाथी अध्ययन कही बताव्यु, तथा स्थविरोए दसवैकाळिकनुं छठं अध्ययन राजा, अमात्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय वगेरा सर्व पर्षदा आगल कही बताव्यु, इत्यादि वातो केम घटी शके. माटे श्रावक अर्थथी पिंडेषणा सूधी शीखे ते शेष अंगउपांगना उपलक्षणरूपे जाणQ. वळी ऊपरना दृष्टांतोमां बीजी एक वात याद राखवा लायक छ के गौतमस्वामिए वैश्रवणने पुंडरीकाध्ययन संभळावतां तेणे सूत्रथी पण ते ग्रहण करेल छे. ए वात वैरस्वामीना वृत्तांतमां प्रसिद्ध छे. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतरः ( १०७) विचार ८६ मो. प्रश्न:-साधु तथा श्रावके जघन्यथी आठ समितिओ शीखवी, ते उत्तराध्ययनमा रहेल प्रवचनमात नामे अध्ययन शीखवू के बीजं कोई अध्ययन शीखवु ? उत्तरः-इहां जो के भगवतीना टीकाकारे बकुशनी व्याख्यामां कडं छे के "ए उत्तराध्ययन, अध्ययन तो मोहोटुं छे माटे जघन्यपदमां नथी संभवतुं, किंतु “अठण्हं पवयण माईणं" ए पदनुं जे विवरणसूत्र छे ते संभवे छे. अने तेथी माषतुषादिकनी वातमां पण व्यभिचार आवतो अटके छे." तोपण टीकाकारे जे विवरणसूत्र जणाब्युं छे ते हाल देखवामां नथी आवतुं, अने श्रावकने तो समितिओनुं खप अवश्य रहेल छे तेथी बीजा सूत्रनो अभाव होतां उत्तराध्ययन- प्रवचनमात नामे अध्यनयज अमेश्रावकने शीखवीए छीये. विचार ८७ मो. प्रश्न:-श्रावको आवश्यकनियुक्तिने तथा सिद्धांतोना अनेक आलावाओने केम भणी शके ? ___ उत्तरः-जो श्रावको आवश्यकनियुक्तिने तथा सिद्धांतोना अनेक आलावाओने नहि भणे तो तेमने " लद्धडा, गहियहा" इसादिक भगवतीमां कहेलां विशेषणो केम घटी शके ? वळी सुबुद्धिमंत्रीए पाणीनो दाखलो आपी "सुगंधि पुद्गलो दुर्गधि थाय छे, अने दुर्गधि पुद्गलो सुगंधि थाय छे" ए आला. वावडे जितशत्रु राजाने प्रतिबोधी धर्मदेशना पूर्वक समकितमूळ बारव्रत दीघां ए वातथी पण सिद्ध थाय के श्रावक सूत्रोना आ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) शतपदी भाषांतर. लावा भणी शके छे. . वळी स्वयंबुद्ध श्रावके महाबळने, सुजातकुमारे चंद्रयशाने, तथा मदनरेखाए युगबाहुने अणसण करावी नीजाम्या प्रभावतीए आत्मसांखे छमास सूधी व्रत पाळ्यां; दृढधर्मकुमारे शिवकुमारनी शुद्ध भातपाणीवडे पर्युपासना करी; अश्वग्रीवना जीव मृगध्वजकुमारने मांत्रए सीमंधरमूरिने मनमां धरी व्रत दीधां, तथा मृगध्वजे कापी नाखेला भद्रक नामना पाडाने आराधना करावी; कल्पक मंत्रिए पोताना कुटुंबने नीजाम्यु, चारुदत्ते बकराने नीजाम्यु; जि. नदासे कंबळसंवळने नीजाम्या, पुंडरीके पोतानी सांखे व्रत लीघां; चेडाराजा, वरुणसारथि, नंदमाणयार, मंडूक, चाणक्य, अने प्र. देशि राजा वगेराए पोतानी मेळेज आराधना करी; सुज्येष्टाए परवादी जीत्या, स्कंदकुमारे पाळकने निरुत्तर कर्यो; कुंडकोळियाए देवने निरुत्तर कर्यो; तथा आनंदादिक श्रावकोए अग्यारमी श्रमणभूत प्रतिमा पाळी; इसादिक वातो जोतां विचार थाय छे के जो तेओ अनुज्ञात करेला सूत्रो नहि भण्या होय तथा अर्थ नहि सांभल्यो होय तो एवो विवेक तैमने क्यांथी आवी शके ? .. वळी आवश्यकनो पाठ तो श्रावकने प्रगटपणे देखाय छे केमके निशीथचूर्णिमां कह्यु छे दशवैकाळिकथी आवश्यक नीचे रघु छे. तेमज पाखीसूत्रमा पण पेलं आवश्यक अने पछी दशवैकालिक का छे. तेमज यतिओ योग वहे सां पण एज क्रम छे. माटे दशवैकाळिकना चार अध्ययन श्रावक भणे त्यारे आवश्यक तो पेटामांज समायु. . ... हवे ज्यारे आवश्यक भणी शकाय सारे तेना व्याख्यानरूप नियुक्ति, चूर्णि, तथा टीकादिक भणवा आवीज गया. कारण के मूत्र भणी शके पण अर्थ नहि भणाय एम शी रीते कही शकाय? Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. - (१०९) कदाच कोइ कहेशे के योग वह्या शिवाय श्रावको आवश्यक नियुक्ति वगेरा केम शीखी शके ? तेनुं ए उत्तर छे के योग तो सूत्रोनाज वहेवाय, बाकी नियुक्त्यादिकना योग नथी. वळी सू. त्रोमां पण सामायिकादिक सूत्रो तो योग वहेराव्या वगर पण पूर्वाचार्योए लाखो श्रावकोने भणाव्या छे. विचार ८८ मो. .. प्रश्न:-आवश्यकचूर्णिनी आदिमांज लख्युं छे के जे शि ष्य गुरुकुळवासी, जाति-कुळं-रूप-श्रुत-आचार-सत्त्व-विनय -संपन्न होय इत्यादि अनेक गुणोवाळा शिष्यने अनुयोग एटले अर्थव्याख्या देवी एम कधुं छे, माटे तेपरथी जणाय छे के यति पण जे विशिष्ट गुणवंत होय तेनेज आवश्यकनो अनुयोग आपी शकाय, त्यारे श्रावकने ते केम आपवो घटे ? ___ उत्तरः-एज चूर्णिमा आगल लख्युं छे के श्रावक उत्कृष्टपणे छजीवणी सूधी सूत्रार्थे अने पिंडेषणा सूधी अर्थे शीखे. तथा कल्पपीठमा लख्युं छे के आचार्यने कोइ अन्य आचार्य, भिक्षु, के श्रावक कहे के आप आपना इच्छाकारे अमने अनुयोग आपो त्यारे आचार्ये तेमने अनुयोगनी विधिए अनुयोग देवो. ए पुरावाथी जणाय छे के श्रावकोने पण अनुज्ञात ग्रंथोनो अनुयो. ग आपी शकाय छे. - हवे जे विशिष्टगुणवाळानेज अनुयोग देवो ते बाबत एम जाणयु के जेम सर्वगुणसंपूर्ण सुधर्मास्वामिए विशिष्टगुणवंत जंबूने अनुयोग आप्यो, वळी काळांतरे भद्रबाहुस्वामिए स्थूळभद्रने आप्यो तेम बीजा पण गुणवंत गुरुओए काळानुसारे मळता गुणवंत Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) शतपदी भाषांतर. - शिष्योने आजकाल ते आपवो. तेटला माटेज चूर्णिकारे सर्वोत्कृष्ट गुरुशिष्यना गुणो जणाववा ए आलावा लखेल छे; पण कई ए-वाज गुणवाळा गुरुए एवाज गुणवाळा शिष्यने अनुयोग आपको एवो नियम बांधवा माटे ए आलावो नथी लख्यो. माटे चूर्णिमां वर्णवेला अधिक गुणवाळा गुरुशिष्य नहि मळता होय तोपण काळानुसारे गुणनी तरतमता विचारी दुःप्रसभ सूधी आवश्यकनो अनुयोग प्ररूपाशे. वळी सुधर्मास्वामि तथा भद्रबाहुस्वामिना वखतमां पण शास्त्रोक्त गुणवाळा गुरुशिष्यनो संभव विरलोज हतो, कारण के " बार प्रतिमाना धारक" इत्यादि विशेषणो सर्व आचार्योमां संभवी शके नहि. © विचार ८९ मो. प्रश्नः - शास्त्रमां कह्युं छे के मुनिए अज्ञात उंछ ( भोजन ) लेवं, माटे परिचित श्रावकोना घरे वहोखुं नहि जोइये; छतां तमे केम बहोरो छो ? उत्तरः- अजाण्या घरोथीजं वहोरखं एवं कंइ एकांत नथी. कारण के ओघभाध्यमां क छे के एक संघाडाए ठवणाकुलमां जवं अने बीजाओए बीजा घरोमां जनुं ( इहां ठवणाकुल ते श्रावकोना घर जाणवा.) वळी आगल चालतां लख्युं छे के अति उमदा चीजो जेकुलोमां मळे तेने अतिशेषी कहेवा तथा श्रद्धावाळा कुळाने श्रद्धि कवा ते कुलोमां सर्व संघादाओए नहि जवुं किंतु गीतार्थ संघाडाए जj. एज प्रमाणे निशीथचूर्णियां पण कधुं छे. वळी कल्पसूत्रमां कह्युं छे के जे कुल श्रावक थएला अने बहु Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १११ ) भक्तिवाळा होय तेवा कुलोमां साधुए जे चीज लेवी ते जोइ त - पाशीनेज लेवी. कारण के तेवा कुलो बहु प्रीतिना कारणे कदाच सदोष आहारपाणी पण करी राखे. ओघनियुक्तियां कां छे के गीतार्थीए धार्मिक श्रावकोने एपणाना दोष तथा अभिग्रहविशेष कही बताववा. ए ऊपरथी पण जणाय छे के परिचित श्रावकोना घरथी पण मुनि बहोरी शके छे. वळ विचार करो के जो श्रावकना घरेथी मुनि वहोरेज नहि एम होय तो श्रावकनुं बारमुं अतिथिसंविभागवत केम थई शके ? तेमज भवदेवे स्वजनना घरेथी वहोर्यु, शाळिभद्रे माताना घरेथी बहोर्यु, इत्यादि बातो केम घंटे ? तथा निशीथचूर्णिमां कह्युं छे के ज्यां साधुओ जतां आवतां शंकादिक नहि थाय एवा भावितकुलोमां कारणे मुनि बेवार के त्रणवार पण जाय. वळी बीजा स्थळे लख्यं छे के जे श्रावको सा घुसामाचारी जाणता होय तेमणे मुनिने कहेवुं के तमो एक शय्यातर स्थापो त्यारे मुनि तेम करीने बीजाओना घरे वहोरवा जाय. वळी भगवतीमा श्रावकोना विशेषणोमां कह्युं छे के श्रमण निर्ग्रथने शुद्ध आहार पाणी वगेरा आपता थका श्रावको विचरे छे. विचार ९० मो. प्रश्नः - तमे ऊपर कही चूक्या के यति श्रावकना घरेथी पण वोरे सारे अमो कहीये छीये के “यतिने श्रावकना घरो शिवाय बीजे भिक्षा लेवीज नहि कल्पे," एवो नियम पाडी शकाय के नहि ! उत्तरः- एवो नियम थायज नहि; कारण के मुनिओ तो गामेगाम अप्रतिबद्धविहार करनार होय छे, अने साथै आहार Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) शतपदी भाषांतरः पाणी के पैशाटकानो संग्रह राखता नथी माटे तेओए आधाकर्मी आहारने विष्टासमान, दारु समान, तथा गोमांस समान जणावीने अदुगंछनीय एटले जेमां बीजा दर्शनीओ पण जता होय तेवा ऊं. चनीच कुलोमां मधुरकर वृत्तिए शुद्ध आहार पाणी लेवो ए वाजवी छे, के दोष सहित आहार लेवो ए वाजबी छे, ते तमोज विचारो. . वळी विचारो के कोइ स्थळे श्रावकोनो अभाव होय तो सां मुनिओए शुं कंदोइ पासे पाक कराववो के देखीता दोष टाळीने एटले के भाजन, चाटुआ तथा हस्तादिकनी यथायोग शुद्धि जो. इने साधारण गृहस्थोना घरेथी स्वभावसिद्ध अंतप्रांत आहार लेवो. ए बावतमां परमतवाला एमज कहे छे के म्लेच्छ जेवा पासेथी पण मधुकर वृत्तिए थोडं थोडं लइने वर्तवू पण वृहस्पति जेवा पासेथी पण एकान्न एटले आ भोजन नहि ले. विष्णुपुराणमां पण कयुं छे के मुनिए गाममां एक रात अने शहेरमां पांच रात रहे. त्यां पण एवी रीते वर्तवू के जेथी प्रीति के द्वेष नहि बंधाय. वळी लोको जमी रह्या बाद प्रशस्त वर्णवाला लोकना घरेथी मि. क्षा लेवी. वळी विष्णुए पण पोताना सूत्रोमां कयुं छे के सात घरनी भिक्षा लेवी. माटे ए बाबत परमतवाला पण तकरार लइ शकता नथी. त्यारे जे जैनमतना थईने तकरार ले छे तेओने अमो जणावीए छीए के तेओए माधुकरी वृत्ति अथवा ग्रामानुग्राम विहार कर• वानों अनुभव करवो तथा नीचे लखेलां आगमनां वचन विचारवा. - आचारांगा कयुं छे के जुगुप्सित कुळ जे चमार वगेरा ते तथा गर्दाकुळ जे दास्यकुळ वगेरा तेवा कुळ छोडी बीजा बधा कुळोमां गोचरी करवी; सां दाखला तरीके थोडाक कुळोनां नाम आप्यां छे ते ए के उग्रकुळ, भोगकुळ, राजन्यकुळ, क्षत्रियकुळ, इ. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ११३) वाकुकुळ, हरिवंशकुळ, भोज्यकुळ, वणिक्कुळ, नापितनुंकुळ, सूतारनुकुल, ग्रामरक्षक-कुळ, वणकर-कुळ, इत्यादिक कुलोमांथी शुद्ध आहारपाणी वहोरवा. वली पूर्वपुरुषोनी कथाओमां पण घणा दाखला मळे छे, जेमके, आवश्यकचूर्णिमां वात आवे छे के बहुल तथा बळब्राह्मणे आहार वोराव्यो, वळी ग्रामना चिंतक तथा धनसार्थवाहे आहार वोराव्यो, एक ब्राह्मणना यज्ञमां एक चाकरी रहेला पुरुपने यज्ञमांथी बचेलो आहार मळतो ते तेणे साधुने वहोराव्याथी देवलोके गयो अने त्यांथी चवीने श्रेणिकनो नंदिपेण नामे पुत्र थयो. वळी एक सूतारनी पुत्रीए मुनिओने वहोरावतां तेमणे भक्त लीधुं पण मांस नहि लीधुं, तेथी तेणीए पूछयु के तमारे शं कार्तिकत्रत पूरुं नथी थयुं के जेथी मांस नथी वहोरता त्यारे साधुओए मांसना दोष बताव्या तेथी ते प्रतिबोध पामी. उत्तराध्ययनमां विजयघोषना यज्ञमां साधु भिक्षार्थे आवेल कह्या छे. . बळी नागश्री ब्राह्मणीए कडुओ तुंबो वहोराव्यो, वंकचूळ. नी पल्लीमां तथा साप्तपदिक गाम के ज्यां श्रावको न हता त्यां साधु चोमासु रहेला कह्या छे. आषाढभूतिए नटना घरेथी, उदायने गोकुळमांथी तथा मेतार्ये सोनाराना घरेथी वोर्यु छे. वळी शाळिभद्र तथा केवन्नाए पूर्वभवमां वाछरडा चारनार छतां दान दीg, तथा शाळिभद्रनी माता भद्रासार्थवाहीए शाळिभद्रने दहिं वोराव्यु. ___ उत्तराध्ययननी टीकामां वात आवे छे के एक ठेकाणे वे चोर रहेता हता. सां एक सार्थ साथे साधुओ आवी पहोचतां चोमासु आवी पडयुं तेथी साधुओ ते चोरो पासेथी त्यां वसति मागी चोमासु रह्या. त्यारे ते चोरोए कडं के तमारे आहारपा ૧૫ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) शतपदी भाषांतर. णी पण अमारे त्यांची लेवो त्यारे साधु बोल्या के अमारे एकज ठेकाणेथी भिक्षा लेवी कल्पे नहि माटे बधे ठेकाणे उचित घरोमा अमो भिक्षा लेशं. इत्यादि अनेक उदाहरणोथी सिद्ध थाय छे के मुनि श्रावकना घरेथीज भिक्षा लिए एम एकांत थइ शकतुं नथी. विचार ९१ मो. प्रश्नः — ओधनिर्युक्तिमां नियमं पाडयो छे जे एकज घरमा एकज संघाडाए जनुं, घणा संघाडाए जनुं नाह ते बात केम ? उत्तरः – ए वात स्थापनाकुलो एटले जे कुलो दानना अत्यंतश्रद्धालु होय तेना आश्री अवश्य करीने जणाय छे. कारण के तेवा कुलो साधुनी अनुकंपाना लीधे कदाचित् अशुद्धि पण करे. बाकी कुल साधारणपणे भिक्षाना देनार होवाथी जूदा जूदा संघाडाने ज़ूदी जूदी थोडी थोडी एक बे वस्तु आपता होय त्यां जो अशुद्धि थवानो संभव न होय तो कोइ वेला घणा संघाडा पण जड़ शके छे. बाकी अशुद्धिना संभव होय तो तो एक संघाडाने पण जर्बु नथी कल्पतुं माटे भावार्थ एके अशुद्धिनी गवेषणा करवी. वी एज निर्युक्तिमा आगल वात आवे छे के भिक्षा माटे बधा साधुओ फरता फरता श्रावकना घरे आवतां त्यां चैत्य होय तो ते वांदीने साधारण भिक्षा मळे तो ते ल्ये. वळी जे कछे जे “घणा साधुओना प्रवेशथी श्रावकना कुळो अंते दूमणा थईने ग्लानना माटे जोइती चीज पण आपे नहि " इहां पण ए रीते दूषण कही बताव्युं पण एम नहि कर्तुं जे बहु साधुनो प्रवेशज नहि कल्पे. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( ११५ ) माटे परमार्थ एछे के निपुणपणे बरोबर चितवतां जो दोपनो संभव जणाय तो अवश्य ते वातनो परिहार करवो, बाकी अशुद्धिना संभव नहि छतां मात्र इहां घणा अवसन्ना बहोरे छे एटला थकीज ते कुलनो परिहार करवानी जरुर नथी. विचार ९२ मो. • प्रश्नः - तमारा श्रावको प्रसिद्ध चैत्यवंदनथी चैत्य केम न थी वांदता ? उत्तरः—आगममां श्रावकना चैत्यवंदननी विधि एटलीज कही छे के एकसो आठ काव्य कहीने शक्रस्तव कहेवो. वळी चैत्यवंदनभाष्यमां कहां छे के केदलाएक आचार्य एम कहे छे जे जीवाभिगममां विजय देवताना स्थळे, रायपसेणीमां सूर्याभना स्थळे, ज्ञातामां द्रौपदींना स्थळे, तथा जंबूदीवपनतिमां शकेंद्रे शक्रस्तवथीज वंदन कर्युं छे. मादे ए आचरणाना प्रमाणथी तथा एथी अधिक विधि सूत्रोमां गणधरोए बतावेल नहि हो - वाथी श्रावक शक्रस्तवथीज चैत्यवंदन करे. आ स्थळे टीकाकारे बारी घणी उक्तियुक्तिओ बतावी छे, तोपण मूळमां जे लख्युं छे जे एथी अधिक विधि गणधरोए बतावी नथी ते वातथी भा - ष्यकारे पण एकसो आठ काव्य साथै शक्रस्तवथीज चैत्यवंदन समर्थित करेल जणाय छे. वळी आवश्यकचूर्णिकार पण एम लखे छे जे " जो चैत्य होय तो पहेलुं चैस वांदे अने पछी इरियावही पडिकमे " आ ऊपरथी जणाय छे के चूर्णिकारने पण जीवाभिगमादिकमां कहेल चैत्यवंदनविधि अभिमत लागे छे. वळी विचार करो के इहां चू Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) शतपदी भाषांतर. र्णिकारे सामायिकवंतने पण इरियावहीथी पूर्व चैसवंदन लख्यु छे, सारे वगरसामायिकवंतने ते इरियावही होयज शानी ? वळी श्रेणिक तो अविरत हता तेथी तेमने इरियावही पडिकमवानो संभव नहि छतां ते वगर देवपूजा तथा देववंदन दररोज त्रिकाळ करता हता ते वात प्रसिद्धज छे. . वळी जेम देशविरत तथा अविरतनुं सम्यक्त्व सामायिक सर्व स्थळे सरझुंज कयुं छे तेम तेनी निर्मळताना कारणो जे जिनपूजनवंदनादिक छे ते पण बन्नेना सरखाज होवा जोइये एम अटकल थई शके छे. विचार ९३ मो. प्रश्नः-निशीथना प्रकल्पादिक सूत्रोमां श्रावकोना माटे प्रायश्चित्त लखेल देखातुं नथी, माटे श्रावकोने प्रायश्चित्त आप, अर्वाचीन छे के प्राचीन छ ? उत्तरः-श्रावकोने प्रायश्चित्त आप, प्राचीनज छे. कारण के महाशतकश्रावकने संथारामां तेनी स्त्री रेवतीए उपसर्ग करतां तेणे तेणीने कटुक वचन कह्यां तेथी गौतमस्वामिए महाशतकने समजावीने प्रायश्चित्त आपेल छे. तेमज आनंदना अधिकारे पण आनंदश्रावक अने गौतमस्वामिनी वातमां प्रायश्चित्तनी वात आवे छे. तेमज चुलणीपिताने उपसर्ग थतां ते चळायमान थयाथी तेनी माताए तेने समजाव्याथी तेणे प्रायश्चित्त लीधुं छे. वळी आ स्थळे टीकाकार लखे छे के "गृहिना माटे निशीथादिकमां प्रायश्चित्त छे" एम नहि मानतां एम मानवू के गृहिना माटे प्रायश्चित्त जीतव्यवहारमा रहेल छे. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (११७ ) वळी पंचाशकटीकामां पण कडं छे के कदाच कोई कहेशे के पडावश्यक तो अतिचारशुद्धिरूप छ, अने शुद्धिना आलोचना. दिक दश प्रकार कहेला छे त्यां श्रावकने ए दशे प्रकारनी शुदिमांथी कोइ पण शुद्धि करवी निशीथादिकमां लखी देखाती नथी, कारण के श्रावकने अतिचार शी रीते घटे केमके अतिचार तो संज्वलनना उदयेज कहेल छे. आ बाबत- ए उत्तर छे के जो के निशीथादिकमां श्रावकोने माटे कशी शुद्धि देखाती नथी छतां ते श्रावकजीतकल्पादिकथी अवश्य मानवी जोइये. नहि तो उपासकदशामां आनंदना अधिकारमा वात आवे छे के गौतमस्वा. . मिए आनंदने कछु के तमे तमारी भूल माटे यथायोग्य तपःक्रियारूप प्रायश्चित्त ल्यो ते शी रीते घटी शके. अने एज दाखलाथी श्रावकोने अतिचारो पण सिद्ध थाय छे. विचार ९४ मो. प्रश्न:-कल्प अने निशीथमा कयुं छे के धान साथे धेिला, अग्निथी सेकेला, के धूणी आपी पचावेला अथवा झाडनी टोंचपर पोतानी मेले पाकी रहेला एवा चारे प्रकारना प्रलंब एटले फळ यतिए नहि लेवा कारण के तेमां अनेक दोष रहेल छे. माटे ए वात केम छे ? . उत्तरः-उत्सर्गे ए वात एमज छे; पण दुकाळ, मुशाफरी, संथारो, मांदगी, तथा पुरुषविशेषादिकना कारणवशे तेवा फळ लई शकाय पण खरा. माटे सर्वथा निषेध नथी; जे माटे दशवैकाळिकआदिमां तेनुं ग्रहण पण लख्युं देखाय छे. कारण के सां कछु छे के तीखें, कटुक, कसालुं, खाटुं, मधुर के खारं एम जेवू आ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) शतपदी भाषांतर. हार मळे तेवं मधुघृतसमान गणीने मुनिए खाई जर्बु. ए मूत्रनी टी. कामां लख्यु छे के तीखं ते एलियु वगेरा, कटुक ते आदु वगेरा, - कसालं ते वाल वगेरा, खाटुं ते छास कांजी वगेरा, मधुर ते क्षी. रमधु वगेरा, खारं ते खारं शाक अथवा वधारे लूणवाळु वगेरा जे मळे ते मीठं मानी खाई जq. तथा अरस एटले वगर वघारेखें, विरस एटले जूना धान, भोजन, सूचित एटले व्यंजनवाळु, अ. सूचित एटले व्यंजन वगर, आई एटले बहुव्यंजनवाळु, मंथु एटले बदरचूर्णादिक तथा कुल्माष वगेरा जे आहार मळे ते शांतपणे खावं. तथा आगल चालतां लख्युं छे के फळमंथु एटले बदरचूर्ण अने बीजमंथु ते यवादिकनुं चूर्ण तथा बेहेडाना फळ अने पियालना फळ अपरिणत एटले काचां होय तो वर्जवा. . ___ ओघवृत्तिमा कयुं छे क साधुए गोचरीए जतां द्रव्यादिकनो विचार करी ते प्रमाणे वहोर. ते विचार ए रीते छे के गऊ वगेरा द्रव्य इहां केटला केटला दररोज दाखल थाय छे, ते विचारी ते प्रमाणे वहोर. घी इहां केटलं आवे छे, ते विचारी ते प्रमाणे लेबु, लूणवालां कयां कयां व्यंजन इहां थाय छे तेमज लूण अने केरां केटलां रहेलां छे, ते जाणी यथायोग्य वहोरवं. वेंगण वगेरा इहां शुंशु रंधाय छे ते जाणी यथायोग्य वहोरवं. तेमज काळ तथा संघाडानो विचार पण करवो. गुरुनी आशातनाना अधिकारे आवश्यक दृत्तिमा लख्युं छे के गुरु साथे जमतां शिष्य मोटुं मोटुं के वेंगण चीभडां वगेरनुं शाक के सारं सारं के रसवाडं एटले आंबां के खीरदाडम वगेरा पोते खावा मंडी जाय तो गुरुनी आशातना थाय. वळी वैरस्वामिने देवताए फळ वहोरावतां तेमणे फळ जाणीने निषेध कर्यो नथी कह्यो, पण देवपिंड जणावी नापाडी छे. Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (११९) वळी ज्ञातामां धर्मरुचिए तुंबडं वोर्यु कयुं छे. निशीथमां कां छे के "एकला पचावेल पदार्थ बे प्रकारना छे:-एक आचीर्ण एटले आचार्यपरंपराथी लेवाता आवेल जेवा के चीभडां तुंबी वगेरा, अने बीजा अनाचीर्ण एटले आचार्यपरंपराथी वर्जाता आवेल जेवा के सूरणकंदादिक. कोइ कहेशे के ए अचित्त छतां अनाचीर्ण केम थया त्यां एम जाणवानुं छे के अग्निशस्त्रथीउपहत पवां पण अनाचीर्ण गणाय छे तो फलनी लांबी चीरेली फाळो के जे घणे भागे अशस्त्रोपहतज छे ते अनाचीर्ण थाय तेमां शुं कहे." आ स्थळे अशस्त्रोपहतनो निषेध कर्यो ते पण उत्सर्गापेक्षाए जणाय छे कारण के शरुआतमां अशस्त्रोपहत आचीर्ण पदार्थोनी तो अनुज्ञा आपी छे. विचार ९५ मो. प्रश्नः-साधु के साध्वी फल वोहोरावे ते बाबत शास्त्रमा केवी विधि कहेल छे ? उत्तरः-ज्यारे बहुफळवंत देशमां साधुने जवू पडे त्यारे, अथवा दुकाळ, मुशाफरी, अनिर्वाह, मांदगी, के तथाविधपुरुपादिकना कारणे फळ लेवां पडे त्यारे ते बाबत निशीथ अने कल्पचूर्णिमां नीचे मुजब विधि बतावी छे. साधुओने भावथी अग्निपाकादिके करी अचित्त थएल अने द्रव्यथी विधिभिन्न के अविधिभिन्न एवां सर्वे फळ लेवां कल्पी शके. त्यां विधिभिन्न ते जे आडांअवळां काप्यां होय अने अविविभिन्न ते जे केळां वगेर फळो ऊभी फालो करी सरखी रीते काप्यां होय कारण के तेवी फाळो पाछी भेगी करी शळी के Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२०) शतपदी भाषांतर. दोराथी बांधी लेतां प्रथमना फळ जेवीज थइ रहे छे. — हवे साध्वीओना माटे एवी विधि छे के साध्वीओ जे क्षेत्रमा रहेनार होय ते क्षेत्रने पहेलां साधुओए पोते जइ भावित करवं. ते ए रीते के त्यां जइ साधुओए गृहस्थोने कहेवू के अमने कापेलां फळ आपो. कदाच गृहस्थो कहे के कापेलां तैयार नथी त्यारे कहेवू के कापी करीने आपो. एम कहे छते कदाच गृहस्थ कहे के अमे एटली पंचात नथी जाणता, तमारे जोइता होय तो आखा ल्यो त्यारे गृहस्थना वासणमांज फळ रह्यां छतां साधुओए पोते फळो कापी करी पछी वोरवां. एम कर्याथी गृहस्थोने मजबूत विचार ठसाय के एमने वगर कापेला नथी खपता माटे हवे कापीने देशुं. एम ज्यारे भावित क्षेत्र थाय त्यारे साध्वीओने त्यां मोकलाववी. हवे साधुओ कदाच न होय अथवा कोई कारणमा रोकायला होय तो साध्वीओमां जे स्थविरसाध्वीओ होय तेमणे पेहेलां जइ ऊपरनी रीते क्षेत्र भावित करवं. कदाच क्षेत्र एबुं होय के जे भावितज नहि थई शके तो सारे कापेलां नहि मळतां गृहस्थ पासेथी कपाववां के छेवट पोतेज ते. मनी आगल कापीने पछी वोरवां. ___ कदाच एम करतां वेला अतिक्रम थती होय तो स्थविर आर्याओए अविधिए कापेलां के अणकापेलां फलो लेवां अने तरुण साध्वीओए तेवां फळ नहि लेतां विधिभिन्न फळ अने भातपाणीज वोर. ए विधिए गोचरी करी वसतिना दरवाजे ठेरीने त्यांजे वगर . कापेला के अविधिए कापेला फळ होय ते विधिभिन्न करी पछी वसति अंदर आवq. कदाच दरवाजे ठेरवानी जग्या न होय तो वसतिमां आवी तेवां फळ गुरुणीने सोपवा एटलें गुरुणी विधिभिन्न करे. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १२१ ) ऊपर तरुण साध्वीओने अणकापेल के अविधिभिन्न फळो लेवानी ना पाडी छे ते एटला माटे के तेनी काची बुद्धि होवाथी ते आखुं फळ कदाच पोताना कपडामां कांख वगेरा स्थळे संताडी मेळे माटे तेमने व फळ नहि लेवा देवां. . p3 विचार ९६ मो. ( उपधान बाबत. ) प्रश्नः - महानिशीथमां कहेल उपधानविधि तथा माळारोपण केम नथी मानता ? उत्तरः- जो ए वात मानीए तो घणा आचार्यो अने घणा घगा साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओने अनंत संसारिपणुं प्राप्त थाय छे. माटे अमे ए वात नथी मानता. कारण के महानिशीथमां उपधानविधि कला पछी आ प्रमाणे कां छे: "हे भगवन् आवी मोहोटी नियंत्रणा बाळजनो शी रीते करी शके ?" एना उत्तरमां भगवान् कहे छे के " हे गौतम, जे कोइ ए नियंत्रणा नहि इच्छतां वगर उपधाने नवकार मंत्र भणे, भ णावे, के भणताने अनुमत करे, ते प्रियधर्मा के दृढधर्मा न होय अने तेणे सूत्रार्थ तथा गुरुनी हीलना करी; तथा सर्व अरिहंत अने आचार्य, उपाध्याय, साधु अने ज्ञाननी पण आशातना करी; जेथी ते अनंतसंसारी थइ अनेक दुःख पामशे. वळी गौतमे पूछयुं के भगवन् उपधान वहेतां तो बहु वखत ad लामां बच्चे कदाच मरण पामे तो नवकार विनाशी रीते उत्तमार्थ साधी शके ? आना उत्तरमां भगवाने कहां के हे गौतम, जे समये तेणे उपधानना माटे कंइ पण तप मांडयुं के ते समयेज ૧૬ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) शतपदी भाषांतर. ते सूत्रार्थ भण्या समजवा. माटे ए नवकार मंत्रने अविधिए ग्रहनहि कर, किंतु एवी रीते ग्रहण कर के जेथी भवांतरमां पण नाश नहि पामे. आ सूत्रना अभिप्रायथी स्पष्ट जणाय छे के जे उपधान विधि विना नवकार भणे भणावे के अनुज्ञा आपे ते बघा अनंत संसारी थाय; अने आजकाल तो कोइ विरला आचार्यो, तथा दरेक गच्छों कोइ कोइक वे चार साधुसाध्वीओ अने एकाद वे श्रावको तथा थोडी एक श्राविकाओज उपधानविधि करता देखाय छे. त्यारे बाकीना जेओए उपधानविधि नथी करी एवा आचार्य, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका तथा नवकार भणनार भद्रकजनो महानिशीथना अभिप्राये तो अनंत संसारीज थया. वळी जेमणे उपधान वह्या छे तेओ पण शरुआतमां नानपणमां तो वगर उपधानेज नवकार शीखेला, तेमज उपधान वह्या बाद पण बाळकोने वगर उपधाने नवकार भणावता दीसे छे अने वेळी उपधानविधि वगरना श्रावक, श्राविका, भद्रकजन, के तिर्यंचोने मरण वेला नमस्कार आपता देखाय छे. तेथी एमने पण अनंतसंसारीपणं टळवं मुस्केलज छे. हवे भगवान्ना अभिप्राय प्रमाणे तो उपधानविधि विना पण नवकार वगेरा भणतां भणावतां के अनुज्ञा देतां कोइने पण अनंतसंसारीपं धतुं नथी, किंतु सकळ कल्याणमाळानीज मा प्ति थाय छे. ए बाबत नीचेना दाखला विचारो. भक्तपरिज्ञामां कं छे के गोवाळ अज्ञानी छतां, अने मिंठक्लिष्टकर्मी छतां नवकारथी सुखी थया. आवश्यकमां त्रिदंडी नवकारथी आ लोकमां सुखी थयो वगेरा कयुं छे. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का गया. शतपदी भाषांतर. ( १९३) महारविधुर युगबाहुने मदनरेखाए नवकार आप्याथी ते पांचमा देवलोके गयो. ___ जंबूखामिना पिता ऋषभदत्ते पोताना लघुभाइ जिनदासने नवकार वगेरा क्रिया कराव्याथी ते जंबूद्वीपनो अधिपति अणाढिओ नामे देवता थयो छे. तिर्यंचोमां पण केटलाएकने महर्षिओए अने केटलाएकने श्रावकोए, पर्यंतक्रिया करावतां तथा केटलाके जातिस्मरणना योगे पोते पर्यंतक्रिया करतां नमस्कारना मभावे देवपणुं तथा बोघिबीज मळ्यां छे. . दाखला तरीके पार्श्वनाथनो जीव हाथी, मुनिसुव्रतस्वामि प्रतिबोधित अश्व, सोदासबो जीव मेंडो, सहदेवीनो जीव वाघण, वैतरणीनो जीव वानर, भद्रकमाहिष, केवळ संबळ नामे बे बळद, श्रेष्टिपुत्रनो जीव मत्स्य,नंदमणियारनो जीव देडको, क्षुल्लकनो जीव शुक, बीजा क्षुल्लकनो जीव पाडो, चंडकौशिक सर्प, भरुचनी शकुनिका, सेडुकनो जीव देडको, त्रिविक्रमभट्टनो बोकडो, कमठनी पंचाग्निमां बळतो सर्प, कूरगडुकना पूर्वला भवे तेनो जीव दृष्टिविष सर्प, प्रद्युम्ननी मातानो जीव कूतरी, चारुदत्ते आराधना करावेल बोकडो, सिंहसेनराजानो जीव हाथी, इसादि अनेक उदाहरणोमां उपधान विना पण आराधकपणुं देखाय छे. वळी सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूणि, टीका, तथा टिप्पनक वगेरा वर्तमान आगमग्रंथोमां क्यां पण उपधाननी विधि बतावी नथी माटे ते केम कराय? ___ वळी आजकाळ छ उपधान वेहेरावाय छे:-पंचमंगळमहाश्रुतस्कंधना, ईर्यापथश्रुतस्कंधना, शक्रस्तवना, अरिहंतचेइयाणं इसादि दंडकना, चोवीसत्थाना, अने पुक्खरवरदीवढे इत्यादिना. पण Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४) शतपदी भाषांतर. ए घटना युक्तिरहित अने नवीकल्पित जेवी देखाय छे. कारण के पंचमंगळ कई जूदो श्रुतस्कंध नथी किंतु सर्वश्रुतस्कंधनो अभ्यंतरभूत रहेल छे, इरियावही पण प्रतिक्रमणाध्ययननो एक देश छे, शक्रस्तव ज्ञातादिकना अध्ययननो एक भाग छ, तथा अरिहंतचे. इयाणं वगेरा अने पुक्खरवरदीवढे वगेरा काउसग अध्ययनना अवयव छे. अने चोवीसत्थो ए एक अलग अध्ययन छे. आवी रीते सिद्धांतवादीओमां प्रसिद्ध वात छे, छतां उपधान चळावनाराओए नवकारना पांच अध्ययन अने ऊपर त्रण चूळिका, इरियावहीना आठ, शक्रस्तवना बत्रीश, चोवीसत्थाना पचीश, अर्हत्स्तवना त्रण अने श्रुतस्तवना पांच अध्ययन ठेरव्या छे. माटे ए बधुं कल्पितज लागे छे. कारण के एकने महाश्रुतस्कंध ठेराव्यो, बीजाने श्रुतस्कंध ठेराव्यो, अने वाकीनाने एमज रहेवा दीधा तेनुं शुं कारण छ ? वळी कया सिद्धांतमा एक एक पदनां अध्ययन कह्यां छे ते पण विचारवा लायक छे. तेमज सामायिक, वांदणा, पडिकमणुं वगेरा छ आवश्यकना उपधान नहि कहेतां जूटक उपधान कह्यां त्यां पण युक्ति नथी देखाती. - तथा उपधानना तप पेटे कहेवामां आवे छे जे पिस्ताळीश नोकारसी, अथवा चोवीस पोरसी, अथवा शोळ पुरिमढ, अथवा दश अवढ, अथवा आठ ब्यासणावडे उपवास लेखी शकाय ते पण आगमग्रंथमां क्यां पण कहेल नथी. - हवे ए बधुं महानिशीथमां कहेल छेपण ते ग्रंथ प्रमाण करी शकाय तेवो नथी कारण के तेना क एज तेज ग्रंथमां लख्युं छे के "इहां जे वधगट लखायुं होय तेनो दोष श्रुतधरोए (मने) नहि आपवो. (कारण के ) एनो जे पूर्वादर्श हतो तेमांज क्यांक श्लोक, क्यांक अर्धश्लोक, क्यांक पद के अक्षर, क्यांक पंक्तिओ, Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१२५) क्यांक पूठी, क्यांक बेबे त्रणत्रण पानां इत्यादि घणो ग्रंथ नाश पामेल हतो. ए रीते पहेला अध्ययनना पर्यते लख्युं छे. तथा त्रीजा अध्ययनमा लख्यु छे के महानिशीथना पूर्वादर्शना उदेहीए कटकेकटका कर्याथी घणां पानां सडीगयां हता. तथा चोथा अध्ययनना अंते लत्यु छे के आ चोथा अध्ययनमा घणा सैद्धांतिक (सिद्धांत माननारा पुरुषो) केटलाक आलावा सम्यक् श्रद्धता नथी. माटे हरिभद्रसूरि कहे छे के तेथी मने ते बाबत सम्यक् श्रद्धान नथी." वळी ए महानिशीथमां उपधानना माफक बीजी पण अघ.. टित वातो छे तेमांनी केटलीक इहां बतावीए छीये. (१) आउकायना परिभोगमां, तेउकायना समारंभां, अने मैथुन ए त्रणेमां बोधिधात्रज थाय छे. तेमां कई प्रायश्चित्तथी शु द्धि थई शके नहि. (२) मार्गे चालता साधुए सो सो डगले इरियावही पडिकमवी. (३) आर्याओथी तेर हाथ वेगला रहे, अने मनथी श्रुतदेवीनी माफक सर्व स्त्रीओने परिहरवी. (४) कल्प नहि वापरे तो चउत्थर्नु प्रायश्चित आवे. (५) कल्प परिठवे तो द्वादशमतपर्नु प्रायश्चित्त आवे. (६) पात्राबंधनी गांठो नहि छोडे तो चउत्थ लागे. (७) आठ साधुथी ओछा साधुओने उत्सर्गे के अपवादे साध्वी ओ साथे चालवू न कल्पे स्यां वळी साध्वीओ पण उत्सर्गे ओछामां ओछी दश अने अपवादे चार जोइये. वळी तेवी रीते चालवानुं पण सो हाथ सूधीज कल्पे ते उपरांत साथे चालवू नज कल्पे. (८) काळी जमीनथी पीळीमां जतां, पीलीथी काळीमां जतां, . जळथी स्थळमां जतां, स्थळथी जळमां जतां विधिए करी Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६) शतपदी भाषांतर. पग प्रमार्जी प्रमार्जीने दाखल थq. नहि प्रमानें तो बार .. वर्षनुं मायश्चित्त आवे. (९) रज्जासाध्वीना अधिकारे केवळिमहाराजे रजाने कड्यु के तमे बीजी साध्वीओ आगल बोल्या जे मासुकपाणीथी मारूं शरीर बगडयुं तेथी हवे एवं कोई प्रायश्चित्त नथी जे तमा री शुद्धि करे.. (१०) जे स्त्री मनथी पण शीळ खंडे ते सातवार साते नरके जाय. (११) कोइ माणस आ भवमा उपसंयमतप करी शकतो नहि होय - छतां मुमतिए जवा इच्छतो होय, तो ते जो रजोहरणनी 'एक दसी पण धारी राखे तो हे गौतम मारी बुद्धिए सि द्विक्षेत्रनी ऊपरली मांडवीमा उत्पन्न थाय. . (१२) उपानह सहित चाले तो फरी उपस्थापना लायक थाय. (१३) सोल दोष रहित छतां सावध वचन बोले तो उपस्थापना .. लायक थाय, (१४) सहसात्कारे पण जो रजोहरण खंधपर नाखे तो उपस्थाप ना लायक थाय. (१५) स्त्रीना अंगोपांगने हाथवडे, पगवडे, दंडवडे; हाथमां धरेल दर्भनी अणीवडे, के पगथी ऊडावेल रजवडे पण जे संघहो करे ते पारांचित प्रायश्चित्त पामे. (१६) चैत्यवांचा वगर सूतां, तथा गुरुना पासे उपधि, देह, त. था अशनादिकने सागारि पचखाण करी बोसराव्या वगर सूतां, तथा कानना विवरमां कपास पूर्या वगर सूतां उप स्थापना प्रायश्चित्त आवे. (१७) वातना प्रस्तावमां वात चाली छे के तेणे पूर्वला भवमा सा धुपणामां वचनदंड प्ररुप्यु हतुं तेथी ते कारणे आ भवे तेणे Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १२७) यावज्जीव मूकवत धारण कयु. (१८) स्तवस्तुतिवडे त्रिकाल जे चैत्य न वांदे तेने पेहेलीवारे तप, बीजीवारे छेद, अने त्रीजीवारे उपस्थापना आवे. (१९) अविधिए चैत्य वांदे तो पारांचित लागे. (२०) सहसात्कारे वासीभोजन लेवाइ गयुं ते जो तत्काळ निरु पद्रवस्थंडिळमां नहि परठवे तो मासखमण प्रायश्चित्त लागे. (२१) राते जे छींके के खांसी करे अथवा फळक, पीठ, के दंड थी थोडो पण अवाज करे तो मासखमण प्रायश्चित्त आवे. आवी आवी घणी वातो छ के जे तमो पण मानी शकता नथी तेथी तमोएज ए ग्रंथने अप्रमाण को देखाय छे. माटे उपधान पण एज ग्रंथमां कहेला होवाथी अमारे प्रमाण नथी. हवे ज्यारे अमो उपधान प्रमाण नथी करता त्यारे तेना ऊजमणा रूपे रहेल माळारोपण तो सहेज अप्रमाणज थयु. विचार ९७ मो. प्रश्नः-निशीथचूर्णिमा कर्जा छे के "आठम अने चौदशमा प्रभावती राणी राते प्रतिमा आगल नृत्यपूजा करता हता" माटे तमे रात्रिए पूजानो निषेध केम करो छो? उत्तरः-आवश्यकचूर्णिमां कडं छे के प्रभावती त्रिसंध्य पूजा करता तेपरथी तथा श्रेणिकराजा त्रिसंध्य सोनाना एकशो आठ यववडे पूजा करता हता तेपरथी तेना अनुरोधे इहां पण रात श. ब्दे संध्याज लेवी. वळी “रात्रि एटले संध्या अने विकाल एटले संध्या पछीनो वखत" एम निशीथचूणिमांज स्थळांतरे व्याख्या करी छ. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८) शतपदी भाषांतर. विचार ९८ मो. प्रश्नः कल्पभाष्य तथा चूर्णिमां कयु छे के "निश्राकृत नहि कल्पे किंतु ज्यां साधुनी निश्रान होय ते कल्पे," माटे निश्राकृ. वचैत्य अनायतन होवाथी त्यां वांदवा जq निषेध्युं छे, छतां तमे केम वांदो छो? ____ उत्तर:-आ प्रश्न तमे ग्रंथनो पूर्वापर संबंध विचार्या वगरज करो छो; कारण के त्यां आगल चालतां तेषां चैत्य वांदवां तो ठेराव्यांज छे. मात्र त्यां व्याख्यान करवानी मनाई करी छे ते पण उत्सर्गे मनाई छे, अपवादे तो तेनी पण रजाज छे. __आ स्थळे ते बाबतनो त्यां कहेलो विचार लखी बतावीए छीये. “स्थविरगीतार्थ गुरु, निश्राकृतचैत्यमा जता, सां हमेशांना के नवा. ऊभा करेल मंडपादिक जाणीने, पोताना शिष्योने, ते चैत्यने वांदवानी विधि, चैयमा पेठा अगाऊज बतावी घे. ते विधि ए के निश्राकृत के अनिश्राकृत सर्व चैत्योमा त्रणथुइ कहेवी. कदाच वखत थोडो होय के चैत्य घणां होय तो दरेकमां एक एक थुइ कहेवी. त्यारबाद अनिश्राकृतचैत्यमा जइ समोसरण पूरवू एटले के व्याख्यान दे. कदाच तेवू चैत्य नहि होय तो शिष्योने वसतिमां मोकलावी गुरुए निश्राकृतमां पण व्याख्या देवी, नहि तो लोकमां अपवाद थाय तथा श्रावकोनी श्रद्धा भंग थाय." विचार ९९ मो. प्रश्नः शक्रस्तवमा "जेय अईया सिद्धा" ए गाथा केम नथी कहेता. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १२९ ) उत्तरः - - शाश्वता शक्रस्तव साथे नवी थएल गाथा मेळ - ववी वाजबी नथी लागती. कदाच कोई पूछे के त्यारे ए गाथा कोणे चलावी छे, तेने उत्तर आपवामां आवे छे के गणधर सप्ततिकामां ३३२ मां पाने क छे के त्रिभुवनागेरिवाळा महेंद्रसूरिए " जेय अईया सिद्धा” ए चैसवंदननो बीजो अधिकार तथा उ जंत सेलसिहरे, चत्तारि अहदसदोवि, वेयावच्चगराणं, ए दशमा अगीआरमा तथा बारमा अधिकार चलाव्या छे. प्रश्न – “नमोजिणाणं जियभयाणं" ए पाठ तो सूत्रमांज छे माटे केम नथी कहेता . ? उत्तर:- ए पाठ प्राये कल्पसूत्रनीज कोइ कोइ विरली म तोमा देखाय छे. वळी क्यांक तो "नमोजिणाण" ए एकज पद देखाय छे पण " ठाणं संपत्ताणं" सूधीनो पाठ अंग, उपांग, कल्पसूत्रनी घणी तो, आवश्यकचूर्णि उपदेशमाळावृत्ति वगेरा घणा स्थळे देखाय छे. माटे तेज अमो प्रमाण करीये छीये. 4 1 वळी विचारो के जो एकाद प्रतमां देखा तो पाठ पण प्रमा ण करशो तो तो "दीवो, ताणं, सरण, गइ, पठ्ठा" ए पाठ पण केम नथी कहेता. कारण के ए पाठ पण केटली केटलीक मतोमां देखायज छे. कोई पूछे के त्यारे चालता शक्रस्तवनो पाठ क्या ग्रंथमां छे तेणे जाणवुं के एज पाठ जीवाभिगम तथा रायपसेणीमां शक्रस्तवनी व्याख्या करतां मळयगिरिए वर्णव्यो छे. कोइ बोले के वृत्तिकारनी वातं केम प्रमाण थाय तो तेणे जाणवुं जोइये के वृत्तिकार ज्यां प्रासंगिक वात चलावे यांम माण अप्रमाणनो विचार चाले, पण ज्यां सूत्रना ऊपरज व्याख्या चलावतां यावत् शब्दनी तथा " वन्नओ, राया निग्गओ, १७ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) शतपदी भाषांतर. म कहिओ, उक्खेवो, निक्खेवो, समोसरणं, एवमाइ, इच्चेवमाइ, " इत्यादिक अतिदेशसूत्रोनी व्याख्या करता थका बीजा स्थळे देharat अनेक आलावा वर्णवी बतावे ते तो तेमज प्रमाण करवा जोइये. माटे वृत्तिका यावत् शब्दे करीने लीवेल शक्रस्तवनो आ लाव सर्व ठेका सरखोज वर्णवेल छे. अने मूळमां पण समवायगनी वृहद्वाचनामांत्रीजी विभक्तिना एकवचने एज क्रमे पाठ रहेल छे. आ स्थळमां "दीवो ताणं सरण गइ पट्टा" नो पाठ मूळ के 'टीका बनेमा नथी लख्यो. माटे एज क्रमनो पाठ प्रमाण करवो. प्रश्नः - " जेयअईया " ए पाठ आगममां नथी कहेल, छतां पण पोतानी भक्तिए करेला स्तुतिस्तोत्र माफक बोलतां तेमां शो दोष छे. ? उत्तरः- शक्रस्तव शाश्वतो छे; अने ते देवलोक वगेरामां पण चाले छे. अने वर्त्तमान आगमोमां " ठाणं संपत्ताणं" सुधीज ते देखाय छे; माटे तेमां नवी गाथा सांघवी अयुक्तज छे. आ स्थळे थोडी हितशिक्षा टांकीये छीये. (१) हीनाधिक करतां कुणाळकवि तथा विद्याधरना दृष्टांते दोष थाय छे. (२) तेज सत्य के जे जिने भाख्युं. (३) दरेक काम जिनाज्ञाए करतांज मोक्षहेतु थाय, बाकी स्वबुद्धिए सारं काम करीए तोए भवनो हेतु थाय. वळी परसमयमां पण कनुं छे के " पुराण, मानवधर्म, वेद, अने वैद्यक एटला जेम छे तेमज मानवा. एमां जे अक्षर के पद फेरवे तेने तेना कर्त्तानुं खून करवा जेटलं पाप लागे. " माटे जे सूत्र के जे अनुष्ठान पूर्वपुरुषोए जेम कहेल होय ते तेमज प्रमाण करबुं. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर: (१३१) अगर जो इहां भक्तिनी वात कबूल करिए तो कोइ वधारे मंगळ करवा. नवकारमां पण “ नमो चउविहस्स संघस्स, नमो केवलिपन्नत्तस्स धम्मस्स" एम बे पद वधु वोलशे के इरियावही वगेराना काउसगमां पण विशेष धर्मध्यान सारूं कहेलाथी अधिक चिंतवशे तो तेने कोण अटकावी शकशे ? विचार १०० मो. प्रश्नः-भगवती वगेरामां नोंकारना पांच पदज देखाय छे. माटे ऊपरनी चूळिका आचरणाथी चाले छे के केम ? उत्तरः-चूलिका आचरणार्थी आवेल नथी किंतु सूयगडांगचूर्णि अने कल्पचूर्णिनी बधी प्रतोमां तथा आवश्यकचूर्णिनी पण घणी प्रतोमां आखं नवकार तेमज तेना अंते “पढमं होइमगलं" एवो पाठ देखाय छे. वळी भगवतीनी संक्षिप्तवाचनामा पण "पढम होइमंगलं" सूधीनो पाठ छे. ए संक्षिप्तवाचनानी प्रत जालोरवाला मोटी पोंशाळना साधु हरिश्चंद्र पासे छे. विचार १०१ मो. (आज्ञाप्रमाण विचार.) प्रश्नः-पूर्वाचार्योनी आचरणाओ केम नथी मानता? उत्तरः-सत्पुरुषने जिनाज्ञान प्रमाण छे. ए बाबत घणी हितशिक्षाओ छे. (२) जिनेंद्रनी आज्ञा पाळवी एज मोक्षy साधन. छे, माटे सांज यत्न करवो. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२) शतपदी भाषांतर. (२) जे जिनप्रणीत ज्ञानदर्शन चारित्र अने तपY आराधन ते नेज आज्ञाआराधन कहे छे. . (भक्तपरिज्ञा.) (३) राजाने माटे झुपडं अने गामधणीना माटे चित्रशाळा करवी विरुद्ध गणाय, तेम तीर्थकर अने आचार्य माटे समजवु. (४) जेम प्रमाददोषे करी राजानी आज्ञा तोडतां वधबंधादि थाय छे तेमज प्रमाददोषे करी जिनाज्ञा तोडतां पण दु र्गतिनां दुःख थशेन. . (५) तीर्थकरतुं वचन पाळतां आचार्य- वचन पाळ्युंज थाय छे. (ओपनियुक्ति.) (६) जेम कोइ राजानी कोइ जाणी जोइने आण भांजे तो तेने सखत शिक्षा थाय छे अने अणजाणे भांजे तो माफी मळे छे तेमज जिनाज्ञा विषे पण जाणq. (७) जे लुब्ध थाय छे ते सर्वजिननी आज्ञा तोडे छ; अने जेणे आज्ञा तोडी तेनुं सर्व रद गणाय छे. (८) एक जण अकार्य करे तो पछी तेने जोइ बीजो पण करे. एम सुखशीळता थतां थतां अंते तपसंयमनो नाश थाय. . (पिंडनियुक्ति.) (९) चरणकरणमां शिथिळ थतां सस व्यवहार पण नाश पामे छे. रिण ज्यान जान पोताना ज्ञानदर्शन चारित्रने सूकी आप, ते वेळा जाणवू के तेने परजीवोपर अनुकंपा नथी. (११) जिनवचन मूंकतां जेने दुःख न थयुं, तेने बीजानुं दुःख दे. खी दुःख नहिज थाय.... (१२) आचारमा वर्तनार शुद्ध आचारनी निःशंकपणे प्ररूपणा , करी शके छे; पण आचारहीन होय ते शुद्ध आचारनी प्ररूपणा कोइकन करे छे. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१३३) (१३) ने तीर्थकरभगवान्ने प्रमाण न करे ते श्रुतधरोने प्रमाण नथीज. (१४) संघ रागद्वेषहीन, सर्व जीवोपर सरखो, अने गुणनो नि. धान होय छे. (१५) शिष्य के आचार्य कंइ सुगति पोचाडता नथी किंतु सत्य व्यवहारज सुगतिए पोचाडे छे. . . (१६) उलटो मार्ग बतावतां अने मुलटो मार्ग छुपावतां अनंत संसार थाय छे. (१७) जे जीत शोधिकारक अने संविन पुरुष आचर्यु ते भळे तेणे एक जणेज आचर्यु तोए तेथी व्यवहार चाले. (१.८) जे जीत अशोधिकारक अने पासत्थादिके आचर्यु ते भळे घणे जणे आचर्यु होय तोए तेथी व्यवहार न चळाववो. (१९) तीर्थकरे कर्यु, पछी गणधरोए कर्यु अने तेमनी शिष्य प.. रंपराए चाल्युं ते जीत जाणवू. (२०) जिनाज्ञा विना जे व्यवहार चलावे तेनी इहां अपकीर्ति ... अने परभवे नक्की दुर्गति थाय. (व्यवहार.) (२१) “जे जिने भाष्यु तेज सत्य" ए परिणामवंत जिमाज्ञामां छे. (२२) दुर्लभ मनुष्यभव तथा संयम पामीने पण जे आज्ञामां नथी ___ वर्त्तता ते दुर्गतिपथ वधारे छे. . (२३) जिनेंद्रनी आज्ञाथी आचार्यनी आज्ञा बलवान् नथी; माटे जिनाज्ञाने हलकी ठेराववी ते गर्व अने अविनय जाणवो. (२४) आज्ञा भांगतां अज्ञान, अनवस्था, मिथ्यादृष्टिपणुं, तथा चारित्र विराधना थाय छेमाटे आज्ञासहित होय तेना पासेज ज्ञानदर्शन चारित्र ठेरे छे. (निशीथ.) (२५) अपराध थतां नानुं प्रायश्चित्त आवे छे पण आज्ञा भंग य तां मोहोढुं मायश्चित्त आवे कारण के आज्ञा ऊपरज चा . Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४) शतपदी भाषांतर: रित्र छे, माटे ते भांगतां शुं नहि भाग्यु ? (निशीथ.) (२६) अधिक करतां कुणालकवि माफक दोष थाय छ हीन 'करतां विद्याधरना दृष्टांते दोष थाय छे तथा हीनाधिक करतां बाळकने जेम भोजन हीनाधिक देवाय अथवा रोगीने औषध हीनाधिक देवाय तो दोष थाय तेम दोष थाय छे. (विशेषावश्यक.) (२७) जिनराज रागद्वेषमोहरहित होय छे, माटे अन्यथावादी · न होय. (आवश्यक नियुक्ति.) (२८) "जिनराजे भाष्यं तेज सत्य छ " एम मनमां धरतो थको आज्ञानो आराधक थाय छे. (भगवती.) (प्रकरणोना प्रमाण.) (२१) आज्ञाथीज चारित्र रहे छे, माटे तेने भांगतां शुं नाह भंगायुं? . अने आज्ञाने भांगी एटले सर्व काममां यथेच्छपणुंज थाय छे. (३०) उत्सूत्रभाषी आचार्य शरणे आवेला जीवोना माथां का. पे छे. . (उपदेशमाळा.) (३१) पुण्यहीनजनो तीर्थकरने प्रमाण करवा बदले सूत्रविरुद्ध आचरण करनार लोकने प्रमाण करे छे. (पयन्ना) (३२) दरेक काम जिनाज्ञाए करतां मोक्षहेतु थाय छे; बाकी पोतानी बुद्धिए सारं काम करतां थकां पण भवहेतु थाय छे. (३३) जे आगम प्रमाणे आचरे तेणे तीर्थकर गुरु तथा धर्म ए सर्वेने मान्या. (स्थानक.) (३४) एक साधु, एक साध्वी, एक श्रावक अने एक श्राविका - छतां आज्ञायुक्त होय ते संघ जाणवो. बाकी आज्ञारहित ... होय तेमने तो हाडकांनो संघ कहेवो. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१३५) (३५) जिनाज्ञानुसारे शुद्ध व्यवहार अने न्यायवाद करतो थको . एक पुरुष पण भावसंघ कहेवाय. (३६) विधि पाळनार, विधिपक्षना प्रकाशक, विधिना बहुमानी अने छेल्ले विधिने दोष नहि देनार ए चारेने धन्यवाद घटे छे. (३७) विधिपर जेमने द्वेष न होय ते पण मुक्तिने आसन्न थाय छे. (३८) जिनेश्वरभाषित सर्व वचनो यथार्थ छे एवी जेना मनमा बुद्धि होय तेनुं सम्यकत्व निश्चळ छे. (३९) आज्ञा खंडनार पुरुष जो के त्रिकाळ महाविभूतिवडे वी तरागने पूजतो होय तो पण तेनुं ते बधुं निरर्थक जाणवू. (४०) जेम तुषy (छाळy) खांडबुं के मडदाने सणगार के अ रण्यमां रो, ए निरर्थक छे तेम आज्ञारहित अनुष्ठान निःफळ जाणवू. (४१) जे पुरुष गडरिप्रवाह मूंकी आज्ञाने माने ते धन्य, पवित्र, माननीयने पूजनीय जाणवो. (४२) विधि ऊपर हमेशां बहुमान धर, ए आसन्न सिद्धिगामी नुं लक्षण छ; अने विधि ऊपर द्वेष अने अविधि ऊपर राग ए अभव्य के दूरभव्यनुं लक्षण छे. (४३) आज्ञाना भंग करनारने जे मनवचन कायाए करी मदद करे तेने पण तेना सरखो दोपवंत कह्यो छे. (४४) जे परना चित्तनुं रंजन करवा आज्ञानो भंग करे, तेनुं स. म्यकत्व अने श्रमणपणुं जंतुं रहे छे. . (४५) आज्ञा भांगनारनी जे प्रशंसा करे ते तीर्थकर, श्रुत, तथा संघनो प्रत्यनीक (शत्रु) जाणवो. (४६) मुखशीलिया, स्वछंदचारी, एवा आजाभ्रष्ट घणा लोकने पण संघ नहि जाणवो. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६) शतपदी भाषांतर. (४७) जो घणा लोकनी प्रवृत्तिने मानीए तो तो लौकिक धर्ममा घणा लोकनी प्रवृत्ति होवाथी ते पण मूंक, नहि जोइये. माटे आज्ञाज प्रमाण करवी उचित छे. HOME विचार १०२ मो. ( अशठाचरणा विचार.) ... प्रश्नः वृहत्कल्पमां कयुं छे के जे काइ अशठ पुरुषोए कोइ स्थळे कारण विशेष निरवद्य आचरण आचर्यु अने बीजाओए ते निवारण न करतां कबूल राख्युं ते आचरणा प्रमाणभूत जा. णवी, छतां तमे पूर्वाचार्योनी आचरणा केम प्रमाण नथी करता. ___ उत्तरः-आचरणानुं लक्षण सिद्धांतोमां आ रीते छे. . वृहत्कल्पमां तथा निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के वृहत्कल्पना १९ उद्देशाओवडे उत्सर्ग अने अपवादना पूर्वापरबाधित थनारा सूत्रोने अनुसरी उत्सर्गस्थाने उत्सर्ग अने अपवादस्थाने अपवाद आचरवो ते आचरणाकल्प... __ व्यवहारमा का छे के जे जीत शुद्धिकर्ता अने संविग्न पुरुषे आचरेल होय तेणे करी व्यवहार चाले; पण अशुद्धिकर्ता अने असंविग्ने आचरेल जीतथी व्यवहार नहि चाले. ... आ ऊपरथी जणाय छे के वृहत्कल्पमां कहेल अशठाचरणानी बाबतमा अशष्ठ ते कोइक विशिष्ट पुरुषो (खास पुरुषोज ) त्यां समजवा. अने ते पुरुषोनी आचरणा तो प्रमाणज छे. (१) दाखला तरीके वडनगरमां पुत्रना मरणथी शोकात थएला ध्रुवसेन राजा आगळे कोइ आचार्य कल्पसूत्र सभासमक्ष वांचवानी आचरणा करी. (कल्पवृत्ति.) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शतपदी भाषांतर. (१३७ ) (२) आर्यरक्षित आचार्य आर्याओने वडी दीक्षा, तथा प्रायश्चित्त आपवा बंध कर्या. (व्यवहार.) (३) एज आर्यरक्षित सूरिए चारे अनुयोग सूत्रोमांथी जूदा क__ हाडी जूदु अनुयोगद्वारसूत्र कयु. (आवश्यक.) (४) वळी पूर्वे शस्त्रपरिज्ञा भण्या वाद वडी दीक्षा थती; हमणां छजीवणी शीखी रहेतां वडी दीक्षा देवाय छे. पूर्वे लोकविजय अध्ययनमांना “ सव्वामगंधं " ए सूत्र आवहे त्यारे पिंडकल्पिक (गोचरी करवानो अधिकारी) थतो; अने हमणां दशवैकाळिकना पिंडेषणाध्ययनवडेज थाय छे पूर्व उत्तराध्ययन आचारांग पछी भणातुं; हमणा दशकालिक पछी भणावाय छे. पूर्वे छ मासी तपथी जे शुद्धि थती ते हमणां नीवी वगेराथी थाय छे. . (व्यवहार.) (५) बुद्धिनी हानि जाणीने पुस्तको राखवानी आचरणा थई छ. (निशीथचूर्णि.) (६) गुरुना अर्थे मात्रक (मोटो घडो) प्रथमथीज रखातो, पण आर्यरक्षितसूरिए जीवदयादि कारणे वर्षाकाळमां पोताना अर्थे पण बीजो मात्रक राखवानी अनुज्ञा आपी. (नि.चू.) आ तथा आवी रीतनी बीजी बाबतो पण अशठाचरणामां आवे छे अने ते अमोने प्रमाणज छे. विचार १०३ मो. (आचरणाओनी विचित्रतानो विचार.) प्रश्न:-आजकाळनी आचरणाओ केम प्रमाण नथी करता? उत्तर:-आजकाळनी आचरणाओ विचित्र रहेली छे, जेना १८ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८) शतपदी भाषांतर. दाखला नीचे आपीये छीये. (१) एक चैसवास करे छे बीजा वसतिवास करे छे. (२) एक "हवइमंगळं" कहे छे वीजा "होइमंगलं" कहे छे. (३) चैत्यवंदनमा एक "नमः श्रीवर्द्धमानाय, नमस्तीर्थकरेभ्यः, नमः प्रवचनाय, नमः सिद्धेभ्यः," एम चार पद कहे छे बीजा “नमः सिद्धेभ्यः" ए एकज पद कहे छे; त्रीजा एक पण नथी कहेता. (४) एक नवकार वगेराना उपधान माने छेबीजा नथी मानता. (५) एक पोताना हाथे माळारोपण माने छे बीजा परने हाथे माने छे; (त्रीजा मुद्दल मथी मानता.) (६) पडिकमणामां एक "आयरियउवज्झाए" इसादि गाथा___ओ कहे छे बीजा नथी कहेता. (७) इहां पुस्तकमा ओली पड़ी गई छे माटे आ वे कलम पु(८) स्तकारथी जाणी लेवी. (९) एक, साध्वीनो पेहेलो लोच गुरु करे एम माने छे; वीजा गुरुणी करे एम माने छे. (१०) एक पंचामृतनुं स्नान माने छे; बीजा गंधोदकनु स्नान माने छे. (११) एक, श्रावकोने शिखाबंध करवो तथा कळशाभिमंत्र क रखो माने छे बीजा नथी मानता. (१२) एक छत्र तथा प्रतिमा रथमां फेरवे छे, दिग्पाळ पूजे छे, - तथा बळि उडावे छे बीजा कंई पण नथी करता. (१३) एक दरेक पचखाणमां “वोसिरामि" कहे छे, बीजा बधा __ पचखाणना अंते “वोसिरामि" कहे छे. (१४) एक "विगईओ पच्चक्खामि" कहे छे, बीजा “विगईओ सेसियाओ पच्चक्खामि" एम कहे छे. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १३९) (१५) एक,एक परिकरमांज त्रिबिंब,पंचतीर्थी,चोवीसवटुं,तथा स तरिसयवटुं माने छेवीजा एक परिकरमा एकज बिंब माने छे. (१६) एक गूढमंडपना त्रण द्वार करवा माने छे बीजा एक द्वार करवू माने छे. (१७) एक, देरासरमा एकज प्रतिमा थापवी माने छ; बीजा घणी थापवी पण माने छे. . . (१८) एक सामायिक लीधाथी मोरे श्रावकने इरियावही माने छे बीजा सामायिक लीधा पछी माने छे. (१९) एक देरासर माटे कूवा, बगीचा, गाम, गोकुळ, तथा क्षे त्रादिक देवा वाजबी माने छे केमके स्थानकप्रकरणामां कछु छे के देरासरमां नवा गामगोचर आपवां, जूनां सूनां थयां होय ते सुधारवां तथा नष्टभ्रष्ट थयां होय ते पाछा मेळववां. एम कर्याथी महाफळ थाय छे. बीजा ए वातने उत्सूत्र मानेछे. (२०) एक फेंटा, पाघडी, के टोपी पहेरे छते पण देवपूजा तथा इरियावही माने छे बीजा एक साडी उत्तरासंगथीज ते क रवां माने छे. (२१) एक, श्रावको तथा सोहागण श्राविकाओने वांदणापडि कमणुं माने छे; वीजा नथी मानता. (२२) एक मुख ऊघाडवू माने छे; वीजा नथी मानता. (२३) एक एकवडी मोपती माने छेबीजा बेवडी माने छे. (२४) एक आरतीने निर्माल्य गणी दरेक बिंबदीठ जूदी जूदी आरती करे छे बीजा तेज आरतीवडे बधा बिंबनी आ रती ऊतारे छे. (२५) एक उत्तरसाडी पांच हाथनी, बीजा चार हाथनी, त्रीजा छ हाथनी, अने चोथा जेवी मळे तेवी माने छे. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४०) शतपदी भाषांतर. (२६) एक स्नात्रकाळे पर्वतिथि ले छे, बीजा सूरज ऊगती वेला ले छे अने त्रीजा सांजना पडिकमणे आवती तिथि ले ले. (२७) एक चौदश क्षय थतां तेरसे पडिकमेछे,बीजा पूनमे पडिकमेछे. (२८) एक एक पटलक (पडलं) राखे छे, बीजा मुद्दल नथी राखता. (२९) एक श्रावण के भादरवो अधिकमास थतां ओगणपचास दहाडे पजूसण करे छे बीजा ओगणोतर दहाडे करे छे. (३०) एकना गच्छे एकज आचार्य तथा एकज महत्तरा होय छे, बीजाना गच्छे सगवड प्रमाणे एक के अनेक होय छे. वळी पूनमिया गच्छमां तो आचार्य गमे तेटला थाय छे, पण म. हत्तरा एकज थाय छे. (३१) एक सूत्रानुसारे आठम, चौदश, पूनम अने अमावासरूप चउपर्वी माने छे बीजा बीज, पांचम, आठम, अग्यारस, अने चौदशरूप पांचपर्वी माने छे. (३२) एक यक्ष, भट्टारिका, खेतरपाळ, अने गोत्रदेवतादिकनी पूजा तथा श्राद्ध मान्य राखे छे बीजा नथी राखता. (३३) एक जूनां कपडां पहेरवां माने छे बीजा नवांज पहेरवां मानेछे. (३४) एक ग्रहण वेळाए स्नात्र भणावईं माने छे बीजा नथी मानता. (३५) एक वर्षमा बेवार लोच करे छे बीजा प्रणवार करे छे. (३६) एक श्रावकोए ऊपाडेल वाहिका (पालखी) मां चडे छे बीजा नथी चडता. (३७) एक पोताना पगो ऊपर चंदनपूजा स्वीकारे छे बीजा नथी स्वीकारता. (३८) एक प्रणिधानदंडकनी बे गाथाज बोले छे बीजा चारे . गाथा बोले छे. (३९) एक शेषकाळे पण पीठफलक वापरे छे बीजा नथी वापरता. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १४१ ) (४०) एक रजोहरणनी दशीओ झीणी अने लांबी करे छे; बीजा तेम नथी करता. ( ४१ ) एक रजोहरणमां एकज बंध दे छे; बीजा वे दे छे. (४२) एक माथामां कपूर नाखवं माने छे; बीजा नथी मानता. (४३) एक महानिशीथ प्रमाण राखे छे; बीजा नथी राखता. (४४) एक नेपाळना कंबल ले छे; बीजा नथी लेता. (४५) एक आचार्य जिनबिंबनी पूजा करे छे; बीजा नथी करता. (४६) एक अक्षसमवसरणमां पूजा करे छे; बीजा नथी करता. (४७) एक गुरुक्रमागत मंत्रपटनी पूजा करे छे; बीजा नथी करता. (४८) एक श्रावकना छोकराने नाम पाडतां के विवाह थांबा - सक्षेप करे छे; बीजा नथी करता. (४९) एक गादीपर बेशे छे; बीजा नथी बेशता. (५०) एक एम माने छे जे (नंदिमां) वेदिकाना मांहे जे द्रव्य राखेल होय ते बधुं गुरुनुं थाय; बीजा तेम नथी मानता. (५१) एक श्रावकने एकलुं वासखेप नाखे छे; बीजा चोखा सहित वासखेप नाखे छे. (५२) एक दिवसेज बळि करे छे; बीजा रात्रे पण करे छे. (५३) एक संघ साथे चाली तीर्थयात्रा करे छे; बीजा स्वतंत्र विहार करीने करे छे. (५४) एकना- गच्छे आर्याओ श्रावकना हाथे वस्त्र ले छे; बीजाना गच्छे नथी लेती. (५५) एक हरिभद्रसूरिए रचेल लग्नशुद्धिना हिशाबे राते पण दीक्षा के प्रतिष्ठा करे छे; बीजा दिवसेज करे छे. (५६) एकना गच्छे साधु के साध्वी एकला पण विचरी शके छे; एकना गच्छे एकला नज विचरी शके. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) शतपदी भाषांतर. _ इत्यादि अनेक जूदी जूदी आचरणाओ चाले छे. माटे तेमां कइ प्रमाण करवी ? माटे इहां एज समाधि छे के जे आगमसाथ मळती थाय तेज मानवी.... विचार १०४ मो. (हारिभद्रसरि तथा अभयदेवसरिंनी आचरणानो विचार. ... प्रश्नः यादृच्छिक (मरजी मुजब चालेली) आचरणा अमे पण प्रमाण नथी करता, पण हरिभद्रसूरि तथा अभयदेवमूरि वगेरानी आचरणा तो प्रमाण करवीज जोइये. ____उत्तरः-जो तमे एमज मानो छो तो तेमनी बधी आचरणाओ तमे पण कां नथी आचरता? ए बाबतना थोडाक दाखला आपीये छीये. . (१) एमणे आवश्यक तथा समवायांगनी वृत्तिमां पादपतित वां दणा कह्या छे ते तमे केम नथी करता? (२) एमणे पंचाशकमां नीवीथी मांडी छमासी सूधीना तपवडे. ज आलोचना करवी कही छे, पण सजायवडें नथी कही, - छतां तमे सजायवडे पण कां मानो छो? (३) एमणे नोकारसी वगेरा पचसाणोमां जूदु जूहूँ "वोसिरामि" पद कबुं छे छतां का नथी कहेता ? (४) एमणे पंचाशकमां, तथा हेमाचार्य योगशास्त्रमां, पोरसी पुरिमट्ठ एकासणा के उपवास त्रेविहार लेवामां आवे तो पाणीना छ आगार कह्या छे. अने आवश्यकचूर्णिमां पण ते वात छे, छतां तमे तेम कां करता नथी? (६) प्रतिष्टापंचाशकमां अंजनशलाका, सो मूळना स्नान, नंदा Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १४३) चर्चा, पूजा, के सिद्धार्नु आह्वान वगेरा कशुं नथी कयुं, किंतु प्रतिष्टानी प्रस्तावना लख्या पछी तेनी विधिमां कडं छे के "चैत्यवंदन, वधती स्तवस्तुति, तथा शासन देवीनो काउसग करी नवकार मंत्र के बीजा कोइ मंगळांतरवडे प्रतिमानी स्थापना करवी" एटलुंज लख्युं छे; छतां हमणा तमे नवकारमंत्रे :तिष्टा न करता सूरिमंत्रे करवी का मानो छो, तथा तेमणे त्यां नहि कहेला अंजनशलाकादिक पांचे काम कां करो छो? (६) समरादित्यचरित्रमा हरिभद्रसूरिए साध्वीओना उपाश्रय मों जिनप्रतिमाओ हती एम लख्युं छे. तेना आधारे हमणा पण जालोर, खंडेरकना सीमाडे आवेल वरकाणा, नागोर, आघाटपुर (आगरा), खुमाणोर, तथा भरतपुर वगेरामां चैत्यवासि साध्वीओना उपाश्रयोमां पत्थरना मोटा मोटा वि. व प्रत्यक्ष देखाय छे छतां तमे कां तेम नथी मानता. (७) पंचाशकमां कह्या प्रमाणे श्रावकने समकित के व्रत देतां ते. नी आंखो ढंकावी समवसरणमां पुष्पादिक नखावी शुभाशुभनी परीक्षा केम नथी करता, तथा राते देव केम नथी वंदा. वता, तथा दीवा अने चंद्र वगेराना निमित्त केम नथी जोता? (१) वळी तिहां कहुं छे के "श्रावक पोताना गुरुने पोता. नी सघळी मालमिल्कत अर्पण करे. (अने गुरु जो के मिल्कतनो कबजो तो नथी करता छतां) तेना चित्तनी समाधिना अर्थे ते वात अनुमत करे." ए वात पण शी रीते घटमान थाय. (२) तेमज छठा पंचाशकमां द्रव्यस्तवमा साधुने अनुमति अने कारापण ठेराव्या छे. ते पण केम घटे कारण के तेमणे त्रिविधे त्रिविधे सामायिक करेल छे. . Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) शतपदी भाषांतर. (८) उमास्वातिवाचके श्रावकप्रज्ञप्तिमां श्रावकने छजीवणी अ. ध्ययन सूधी भणाववा कघुं छे; छतां केम नथी भणावता. ( ९ ) हरिभद्रसूरिए समरादित्य चरित्रमां कं छे के "पारणानी वेला आवतां समरादित्य तथा बीजा साधुओ तेनी माताना घरेज जमवा बेठा. त्यां माताए तेमने वासण आपी पिरसीने जमाड्या " ए ऊपरथी एम अर्थ नीकली शके छे के श्राविकाओ पिरसे ने साधुओ जमे. माटे ए आलंबनथी चैत्यवासी श्रावको गुरुने जमाडे छे तेओने केम निषेधो छो? 014 विचार १०५ मो. ( मुनिचंद्रसूरि तथा देवसूरिनी आचरणा . ) प्रश्नः - मुनिचंद्रसूरि तथा देवसूरिनी आचरणा केम प्रमाण निधी करता ? उत्तरः- तमे पोते पण हमणा तेमनी आचरणा पूरेपूरी बधा नथी पाळता, त्यारे अमने केम पूछी शकशो. हवे इहां तेमनी आचरणाना थोडा दाखला लखीये छीये. (१) मुनिचंद्रसूरि साधुना अर्थे करावेल वसतिमां नहि रहेता, किंतु दरेक वेला पाटणमांज जूदा जूदा पाडामां जूदी जूदी जग्याए रहेता हता. (२) देवसूरिने सं. १२१९ ना वर्षे कुमारपाळनी तीर्थयात्रामां मसूरि तथा वाडदेवमंत्रि वगेराए बहु आग्रह कर्या छतां पण ते संघ साथै तीर्थयात्रा नहि करी, तथा कहेवरावी मोकल्युं के " महानिशीथ वगेरा सिद्धांतोमां संघ साथे तीर्थयात्रा करवानी ना पाडी छे. " Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १४५ ) (३) वळी तेओ एवी देशना करता के " वीतराग शिवाय बीजो देव के कुळदेवी पूजवा नहि. कारण के सूत्रमां सम्यक्त्व उच्चरवाना अधिकारे बीजा देवने वांदवा पूजवा ना पाडी छे तथा उपदेशमाळामां पण ना पाडी छे." (४) वळी तेओए साधुओने पैशोटको राखवानो सर्व प्रकारे निषेध कर्यो छे. छतां हमणा तो खुल्ली रीते पाटणमां सं. १२५७ ना चोमासामां आभडशाए दरेक आचार्यदीठ कोइने हजार, कोइने पांचसो, कोइने शो, कोइने पचाश, तथा छेवट कोइने बत्रीशद्रम (रूपीआ) आप्या; अने ते तेमणे हाथमां मोपती राखी तेमां लीधा. ए वो गोटालो ! ए तो एवं थयुं के तेनेज पूजवुं ने तेनेज उल्लं घ) तेज कांजिकिनी (कुंडी) पूजवी ने तेमांज ओसामण रेडवुं, तथा तेज चुल्ली पूजवी ने तेमांज आग बाळवी. (५) वळी (एमणे) तथा वीजा पण सर्व सुविहितोए मुनिओने स्त्रपवविधि, कुसुमांजाळ, लवणजळावतारण, आरती, तथा मंगळदीवाना काव्यो श्रावकोने भणाववानो निषेध कर्यो छे. तेना कारणमां तेओए एम जणान्युं छे के सिद्धांतमां ए काम करवां कह्यां नथी माटे चैत्यवासिओज ए काव्यो भणावे छे, सुविहितो नथी भणावता. छतां हमणा तो ए पण वात उलटाई गई देखाय छे. माटे अमो तो जूदी जूदी तरेहनी आचरणाओ प्रमाण नहि करतां एकरूपे रहेल सिद्धांतज प्रमाण करीये छीये. विचार १०६ मो. हवे असे तमने प्रश्न करिये छीये के तमे हरिभद्रसूरि वगेरा - थी पण जुना थला धर्मदासगणिए उपदेशमाळामां कहेली नीचे ૧૯ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) शतपदी भाषांतर. खेल बातो के जे सिद्धांत साधे पण मळती रहेल छे ते केम नथी आचरता ? हवे ते वातो लखीये छीये. (१) सो वर्षनी दीक्षित आर्या पण आजना दीक्षित साधुने वंदन करे. गा. १५. इहां वंदन शब्दे टीकामां द्वादशावर्त्तवंदनादि लख्युं छे. छतां एम केम मानो छो के द्वादशावर्त्तवांदणा तो आचार्यादिकज देवाय, साधुने नहि देवाय. (२) वळी उपदेशमाळामांनी नीचे लखेल शिक्षाओथी पण हाल विपरीत वर्त्ताय छे. (१) जे मुनि ज्योतिषनिमित्तादि कहे तेना तपनो क्षय थाय. गा. ११५ (२) जे मुनि उपाश्रयादिकनी सारसंभाळ करे तथा परिग्रह राखे ते पासत्था जाणवा. गा. २२२ (३) हीनाचारि साधे आलापसंलापादि नहि करवो. गा. २२३ (४) हीनाचारिने पण कारणयोगे मुनिओ वांदे, माटे ते जो समज होय तो तेमने वारे छे. २२८ (५) आसु प्राणीओ संघयणादिकना आलंबन लई बधी नियमधुरा छोडी दे छे. २१३ (६) कालनी जो के परिहानि रहेली छे तेमज संयमयोग्य क्षे त्रो पण नथी, छतां पण (संयम की नहि आपतां) यतनाथी वर्त्तं. केमके यतनाथी चारित्र भांगतुं नथी. २९४ (७) सुविहितोए समिति तथा ब्रह्मचर्यनी गुप्तिओ पाळवामां, कषाय, गौरव, इंद्रियपोषण अने मद टाळवामां, तथा यथाशक्ति सजाय, विनय, ने तप करवामां यतना करवी. २९५ (८) जे मुनि आहारना सडतालीश दोष नहि टाले ते पेटभरु जाणवो. २९८ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १४७ ) (९) रोगादिकमां मुनि कांइक सावद्य सेवे तो संयम रहे छे, पण पाछो नीरोगी थतां पण शिथिल रहे तो संयम क्याथी रहे ? ३४५ (१०) सचित पाणी, फूल फळ, तथा अशुद्ध आहार सेवनार अने गृहस्थना काम करनारने वेषविडंबक जाणवो. ३४९ (११) सुविहितो पासत्यादिकनो परिचय सर्व प्रयत्ने टाळतो. ३५३ (१२) बेतालीश दोष सेवे, छोकरां रमाडी आहार ले, शय्यातर पिंड ले, निरंतर विगई वावरे तथा वधेलं राते पासे राखी बीजे दिने खाय, लोच न करे, काउसग न करे, मेल क तारे, पगरखा पहेरे, वगर कारणे केड बांधे, पांखी चोमासी संवछरीमां चोथ, छठ, अठम नाह करे, मासकल्पथी नहि विचरे, ऊंचेथी गान करे, हास्य करे, कामचेष्टा करे, गृहस्थना काम संभाळे, शिथिलो साथै ले दे, (लोकना चि रंजवा ) धर्मकथाओ भणे अने घरोघर कहेतो फरे, अविक उपकरण राखे, तथा उपाश्रयना अंदरनी तथा बाहेरनी थंडिलभूमिओ नहि पडिलेहे, इत्यादिक शिथिलाचार सेवे ते पासत्थो जाणवो. गा. ३५४-३६६-३७०३७३-३७४-३७५. (१३) जे यति थइ छकायनी दया नाहे पाळे ते गृहिधर्म तथा यतिधर्म ए बेथी भ्रष्ट थाय छे. ४३० (१४) जेम कोइ मंत्रि राजानों सर्व कारभार चलाववो कबूली तेनी आज्ञानुं उल्लंघन करे तो वध बंधादि पामे तेम छकायनी रक्षा अने पांच महाव्रतनो सर्व कारभार धारण कने पछी तेमांथी एकनी पण जो विराधना करे तो बोधिबीज नाश पमाडे, ४३१-३२ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८) शतपदी भाषांतर. (१५) सोना अने मणिर्नु जिनमंदिर कराव्या करतां पण तपसं यम अधिक छे. ४९४ (१६) जो मूळगुण तथा उत्तरगुण धारी शकाता न होय तो सुश्रावकपणुं धर, वधारे श्रेष्ट छे. कारण के मुश्रावक जिनचैत्य तथा सुसाधुनी पूजा करतो थको पोताना आचारमां दृढ रहे ते उत्तम गणायछे पण आचारभ्रष्ट वेषधारी उत्तम गणातो नथी. जे माटे जे सर्व सावधनो पचखाण उच्चारी सर्वविरति नहि पाळे ते सर्वविरति तथा देशविर ति ए बन्नेथी भ्रष्ट थाय छे. ५०१-२-३ (१७) शिथिल छतां पण संविग्नपाक्षिकपदमां रहे तो ते कर्म ख पावी शके छे. त्यां संविग्नपाक्षिकना लक्षण ए छे के शुद्ध मुसाधुनो आचार कही बतावे, पोताना आचारने निंदे, महामुनिओथी नीचो थइ वर्ते, पोते तेमने वांदे, पोताने (तेमना पासेथी) नहि वंदावे, कोइने प्रतिबोधीने पोताना अर्थे दीक्षा नहि आपे, किंतु मुसाधु पासे मोकलावे ते सं विग्नपाक्षिक जाणयो. (१८) जे शिथिळ छतां पोताना अर्थे बीजाने दीक्षा आपे ते पो ताने तथा शिष्यने बन्नेने दुर्गतिए पोचाडे. ५१७ विचार १०७ मो. ( खरतरोनी आचरणानो विचार. ) हवे जो खरतरवाळा आचरणा प्रमाण करवानी वात ऊठावे तो तेमने नीचेनी वातो कही बताववी. Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१४९) ( जिनवल्लभनी नवी आचरणाओ. ) (१) हरिभद्रसारिए पंचाशकमां वीरना पांचज कल्याणिक कह्या ___ छ; अने अभयदेवमूरिए पण सां तेटलाज चा छे. छतां जिनवल्लभे छठं कल्याणिक प्ररूप्यु. (२) जिनेश्वरसूरि वगेराए एकवडी मोपती नोती करावी. (छतां जिनवल्लभे तेम करावी). (३) अभयदेवसूरिए चैत्यवासिओनी निंदा नथी करी; उलटा चैत्यवासि नितिगच्छवाळा द्रोणाचार्य पासे पोताना करेल ग्रंथो शोधाव्या छे. छतां जिनवल्लभे संघपटकमां तेमनी खू ब निंदा चलावी. (४) जिनवल्लभे संघपटकमां जिनबिंबने बिडिशपिशित एटले कां टामा राखेल मांसनी अत्यंत निंदवा लायक उपमा आपी छे तथा संघने वाघनी उपमा आपी छे तेवी उपमा तेमनी अगाउ कोइए नथी आपी. (५) वळी मुविहिताए पोतानी प्रशस्ति के पोताना ग्रंथो शिळाओमां कोतराववानो पृथ्वीकायनी विराधनाना भयथी निषेध कर्यो छे. छतां जिनवल्लभे चितोडमां वीरस्वामिना चैत्यमां छाजानी नीचेना बधा प्रस्तारोमा पोताना करेला चित्रबंध काव्यो तथा चैत्यना द्वारनी बे बाजुए एक शिलामां धर्मशिक्षा ग्रंथ अने बीजीमां संघपट्टक कोतराववानुं काम कबूल राख्यु. (६) वांदणाना आवतॊमां करपरावर्त्त पण अभयदेवसूरिए नथी कराव्यो, किंतु जिनवल्लभे कराव्यो. (जिनदत्तनी नवी आचरणाओ.) जिनदत्तमूरिए तो पूर्वाचार्योनी आचरणा तथा जिनवल्लभ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५०) शतपदी भाषांतर. नी आचरणा पण उथलावी नाखी छे. कारण के नीचे लखेली वातो जिनवल्लभगणि के अभयदेवसूरि के कोई पण पूर्वाचार्योए चलावी नथी. छतां जिनदत्ताचार्ये नवी चलावी. (१) जिनचैसो बाबत अनायतननी प्ररूपणा चलावी. (२) श्राविकाने पूजानो निषेध कर्यो. (३) सोपारीना फडसिया ग्रहण करवा ठेराव्या. (४) लवणजळ अग्निमां नाखवू ठेरव्युं. (५) आरती अवळे आंटे ऊतारवी ठेरावी. (६) मंगळदीवामां घी, राती वाट, तथा कोडी नाखवी तथा ते ऊतारवु नहि एम ठेरव्यु. (७) देरासरमा युवानवेश्या नहि नचाववी किंतु जे नानी के वृद्धवेश्या होय ते नचाववी एवी देशना करी. (८) गोत्रदेवी, तथा क्षेत्रपाळादिकनी पूजाथी सम्यक्त्व भांगे नहि एम ठेराव्यु. . (९) श्रावकने प्रतिमाओ वहेवानो निषेध कर्यो. (१०) अमेज युगप्रधान छीये एम मानवा मांडयु. (११) वळी एवी देशना करवा मांडी के एक साधारणखातानुं बाजोट रखाव, तेने आचार्यनो हुकम लई ऊघाडवू, तेमां. ना पैशामांथी आचार्यादिकना अग्निसंस्कारस्थाने थूभादिक कराववी, तथा त्यां यात्रा अने उजाणीओ करवी. (१२) आचार्योनी मूर्तिओ कराववी. (१३) उत्तराध्ययनना बावीशमा अध्ययनमां सूत्र, चूर्णि, तथा वृत्तिमां नेमिनाथना विरहनी प्रगुणता (वर्णना) लखेली देखाय छे. छतां तेनो (नेमिविरहनी वर्णना गावानो) निषेध करवा मांडयो. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १५१ ) (१४) पार्श्वनाथनी नत्र फणा कराववा मांडी. पण जिनवल्लभे तो चीतोडमा सातज करावेल छे. (१५) बेटाबेटी परणाववां ते समानधर्मवंतना घरेज परणाववा; विषमधर्मीने घरे परणावतां खचित समकित बाधा पामे. एवी सावद्यदेशना करवा मांडी. (१६) धर्मी पुरुष धर्मकार्य साधतो थको कोइ साथै युद्ध करतां तेने जीवथी मारी नाखे तो पण तेनो धर्म नाश नहि पामे अने अंते ते पुरुष मुक्तिए पहोचे छे. एम कहेवा मांडयुं. (१) चक्रेश्वरीनी स्तुतिमां जिनदत्तसूरिए कहुं छे के वि धिमार्गना शत्रुओना गळा कापी नाखनार चक्रेश्वरी मोक्षार्थीजनना विघ्न निवारो. (२) चर्चरीमा लख्युं छे के विधि चैत्यमां फूळ निर्माल्य गणाय छे पण अखंडित फळ निर्माल्य नथी गणाता. (१७) श्रावकने त्रण नोकारपूर्वक त्रणवार सामायिक उच्चारवानी प्ररूपणा करवा मांडी. (१८) गौतमादि अग्यार गणधरोनी प्रतिमाओं कराववा मांडी. (१९) अजमेरमां पार्श्वनाथना देरामां तथा पोसहशाळामां सरस्वतीनी प्रतिमा थपावी. (२०) एज देरामां जेमने मांस पण चडे छे एवी शीतला वगेरा देवीओ थपावी. (२१) देरासरमां छानापणे पण प्रतिमा तथा रथिकाओ (नाना रथो) फेरववा ठराव्या. (२२) " रावण समारूढः " इसादिक बाळ ऊडावी दिकूपाळीनी पूजा करवाना श्लोको तथा “सद्वेद्यांभद्रपीठे" इत्यादि काव्यो चैत्यवासि वादिवेताल शांतिसूरिना करेल होवा Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) शतपदी भाषांतर. थी सुविहितो निषेध कर्या छतां जिनदत्तसूरिए चलाव्या. (२३) आचार्यादिक साथे श्रावकोने दररोज बहिर्भूमिए जवा आववानुं ठेराव्यं. (२४) एक खमासमण दइ सुखराइ पूछी पछी बीजं खमासमण देवं ठेराव्यं. अने पूर्वाचार्योए तो बे खमासमण पछीज सुखराइ पूछवी कट्टेल छे. (२५) साधुनी उत्तरसाडी छ हाथनी ठेरावी. ( जिनचंद्रसूरिनी आचरणाओ . ) जिनचंद्रसूरिए वळी जिनदत्तमूरिए पण नहि कहेल वातो चलावी तेना दाखला. " ( १ ) एक पट्टमां नवग्रह, पांच लोकपाळ, यक्ष, यक्षणी क्षेत्रदे वता, चैत्यदेवता, शासनदेवता, साधर्मिक देवता, भद्रकदेवता, आगंतुकदेवता, तथा ज्ञान-दर्शन-अने चारित्रनादेवता एम पचीश देवतानी कुलकूटी ऊभी करी. (२) जिनदत्तसूरिए चैसमां नानी के वृद्ध वेश्याने नचाववानुं ठेरावी युवान् वेश्या तथा गानारी स्त्रियोनो निषेध कर्यो; पण जिनचंद्रसूरिए बधी वेश्याओनो निषेध कर्यो. (३) जिनदत्तसूरिए श्राविकाने मूळप्रतिमाने अडकवुं निषेध्युं छे, पण जिनचंद्रसूरिए तो एम ठेराव्यं के श्राविकाओ सर्वथा शुचि नहिज होय माटे तेमणे कोई पण प्रतिमाने नहि अडकवुं. ( जिनपत्तिसूरिनी आचरणाओ.) (१) महानिशीथसूत्र, सघळा पूर्वाचार्यनी समाचारी, तथा जिनदत्तसूरिनी अनायतनदेशना ए बधाने उल्लंघी जिनपत्तिसुरिए संघमा तीर्थयात्रा करी. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १५३ ) (२) " पचवीशमा तीर्थंकर", तथा "त्रिभुवनगुरु" एवा पोताना अनुचित बिरुद बोलाता जिनपत्तिसूरि कबूल राखे छे. (३) पंचाशकमां मासकल्पविहार तीर्थपर्यंत चालु को छे छत जिनपत्ति कहे छे के मासकल्प विहार विच्छेद गयो. (४) सिद्धांतमां तथा पंचवस्तुकमां साधुना चौद अने साध्वीनां पचीश उपकरण कहां छे, छतां जिनपत्ति कहे छे के ते वात विच्छेद गई. (५) सिद्धांतमां तिलोदक तुषोदकादिक अनेक प्रकारनां पाणी साधुने माटे कां छे. छतां तेने उल्लंघी जिनपत्तिसूरि कहे छे के फक्त (चोखुं ) प्राशुक पाणीज लेवुं, बाकी धोवणना पाणी न लेवा. अने ओसामण तथा सौवीर ( छाशनुं पाणी ) लेतां तो छूति लागे एम कहे छे. (६) वळी सिद्धांतोमां अनेक स्थळे साधुने स्नान करवानी मनाई करी छे तथा मेलां ने जूनां वस्त्र पहेरवां कहां छे, ते उल्लंघी जिनपत्तिसूरि कहे छे के साधुओए मेलुं शरीर नहि राखकुं तथा मेलां कपडां नहि पहेरवां. (७) माशुकजळनुं जीवाणी ( संखारुं) जिनपत्तिमूरि सांजे श्राविकाओने हाथे अपावे छे ए पण अयुक्त वात छे, केमके एथी त्रसजीवनी विराधना थवानो संभव रहे छे तेमज पूर्वसुविहितो ते आचर्य नथी. · ए रीते खरतरना दरेक आचार्योंए जूदी जूदी समाचारी चलावी छे माटे तेमां कइमां आस्था रही शके. हवे आ स्थळे जिनवल्लभसूरिना शिष्य रामदेवगणिए पडशीतिनामा ग्रंथनी प्राकृत टीकामां एक चर्चा चलावी छे ते (उपयोगी जाणी) इहां टांकीये छीये. २० Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) शतपदी भाषांतर. मंदिरमां पूजा करवा जतां जेना मनमां एम आवे के "ए मंदिर के प्रतिमा कई में के मारा पूर्वजोए नथी करावेल किंतु पाकुं छे माटे तेमां आदर नहि राखतां हुं तो में के मारा पूर्वजोए करावेलमाज वधु आदर राखीश" एवा पुरुषने सर्वज्ञमां भक्ति नहि जाणवी. जे माटे सर्वे बिंबोमां अरिहंतज वसे छे. ते अरिहंत ज्यारे पारका थया त्यारे पत्थरपीतलज पोताना रह्या वळी पत्थरादिक वांदतां तो कई कर्मक्षय थतो नथी, किंतु तीर्थंकरना गुणना पक्षपातथीज कर्मक्षय थाय छे. वळी जे मच्छर लावी बीजाना करावेल चैत्यमां विघ्न पाडे तेने महामिध्यात्व लागे छे, अने तेणे ग्रंथिभेद कर्यो नहि संभवे. तेमज जे पासत्यादिकनी उस्केरणीथी उस्केराई सुविहितने हरकत पाडनारा थाय तेमने पण महामिथ्यात्व लागे. विचार १०८ मो. (वडगच्छ ने अंचळगच्छनी उत्पत्ति. ) नाणकगाममां नाणकगच्छमां सर्वदेव नामे सूरि थया. तेओ दशवैकाळिक भणता थका नानपणमांज वैराग्यवंत थया हवे एगुरुपोते जो के चैत्यवासीज हता तथा बीजा चैत्यवासीओ तेमने एम समजावता के तमे सर्वदेवमूरिने वधु भणावशो तो आपण बधाने ऊडावशे तेम छतां गुरुए महासत्त्वं धारी विशेषे सर्व सिद्धांत भणाव्या. आ वेळा चैत्यवासिओनो एटलो जोर हतो के कोई गामडामां तो तेमने सूरिपदे थापवाज मुस्केल हता तेथी आ बुगिरिनी नजीकमां, “आवि" अने "हातली” नामना बे गामोनी बच्चे वडनी हेठे छाणनो वासखेप नाखी सर्वदेवसूरिने सूरिपदे Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १५५ ) थाप्या. तेथी तेमना गच्छनुं " वडगच्छ" एवं नाम पडयुं अने हमणा ए गच्छमां घणा आचार्य होवाथी बृहद्गच्छ कहेवाय छे. सर्वदेवसूरिना वंशमां यशोदेव उपाध्याय थया. तेमना शिष्यः जयसिंहसूरिने गच्छना आचार्योए मळी सूरिषदे थाप्या. ए जयसिंहरिए चंद्रावतीमां महावीरस्वामिना देरामां एकज नांद आगल नव शिष्योने सूरिपद दीधुं. ते नवमांथी शांतिसूरिथी पीपळिया गच्छ चाल्यो, देवेंद्रमूरिथी संगमखेडिया गच्छ चाल्यो, चंद्रप्रभसूरि, शीळगणसूरि, पद्मदेवसूरि तथा भद्रेश्वर सूरिथी पूनमिया गच्छनी चार शाखाओ चाली, मुनिचंद्रसूरिथी देवसूरि वगेरानी परंपरा चाली, बुद्धिसागरसूरिथी श्री माळिया गच्छ चाल्यो, अने मळयचंद्रसूरिथी आशापल्लिया गच्छ चाल्यो. एज जयसिंहसूरिना शिष्य विजयचंद्र उपाध्याय तेमना मामा शीळगुणसूरिए पूनमिया गच्छ स्वीकारतां तेमनी साथेज नीकल्या. यां वेमणे तेमने समस्त सिद्धांतना पारंगामी करी आचार्यपद देवा मांडयुं, पण विजयचंद्र उपाध्याये माळारोपण वगेरा सावधना भयथी ते लेवा ना पाडतां उपाध्यायपदमांज थाप्या. आ रीते मुनिचंद्रसूरि अने विजयचंद्रउपाध्याय ए बने एकज गुरुना शिष्य होवाथी गुरुभाई लेखाय. (ए विजयचंद्र उपाध्यायथी विधिपक्षगच्छ चाल्यो . ) हवे विजयचंद्र उपाध्यायना शिष्य यशश्चंद्रगणि थया. तेमने मुनिचंद्रसूरिनाज सांभोगिक रामदेवसूरिए पावागढ पासे मंदारपुरमां पार्श्वनाथना देरामां यांना रावत श्रीचंद्रश्रावक वगेरा, तथा वडोदरा, खंभात, वगेरा शेहेरोना संघने एकठा करी सं. १२०२ मां आचार्यपदे थाप्या. अने यशश्चंद्र नाम बदलावी जयसिंहसूरि एवं नाम आप्यं. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) शतपदी भाषांतर. ( ए रीते वडगच्छ अने अंचळगच्छनी उत्पत्ति बतावी. ) हवे इहां जो वडगच्छवाळा एम बोले के अमे कई चैत्यवासीओमांथी नीकल्या नथी किंतु परंपराथीज वसतिवासी छीये, तो तेमने पूछ के त्यारे जेम चैत्यवासिओना हजार हजार वर्षना देरासरो, मठो, प्रतिष्टाओ, तथा श्रावकना वंशो देखाय छे तेम वसतिवासी ओना देरासरो, पोषहशाळाओ, प्रतिष्टाओ के श्रावकना वंश केम देखवामां नथी आवता ! अगर तमने देखवामां आ व्या होय तो ते बतावी सिद्ध करी आपो. ( हवे आ विचार पूरुं करतां इहां उपयोगी संवत्-शाल टांकीये छीये.) (१) सं. १९४९ मां चंद्रप्रभसूरिए पूनमिया गच्छ प्रकाश्यो. (२) सं. १९६९ मां विजयचंद्र उपाध्याये विधिपक्ष प्रकाश्यो. ( पट्टावळी. ) (१) विजयचंद्र उपाध्याय. सं. ११३६ जन्म, सं. ११४२ दीक्षा, सं. १२२६ परलोक. सर्वायुवर्ष ९१. (२) जयसिंहमूरि. सं. ११७९ जन्म, ११९७ दीक्षा, १२०२ आचार्यपद १२५८ परलोक. सर्वायुवर्ष ८०. (३) धर्मघोषसूरि. सं. १२०८ जन्म, १२१६ दीक्षा, १२३४ आचार्यपद १२६८ देवलोक. सर्वायुवर्ष ६१. विचार १०९ मो. दिगंबरमतनो विचार. ( अंगी ) . दिगंबरोने नीचे प्रमाणे प्रश्नो पूछवा. (१) तमे भगवंतने नग्न मानी अंगी निरवद्य छतां पण नथीं करता Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१५७ ) त्यारे स्नात्र, विलेपन, पुष्प, तथा धूपादिक सावधपूजा की करो छो? वळी चैत्यमां भगवान्ने कां बेशाडो छो, कारण के भगवान् कई चैत्यवासी न हता. (मूर्तिनो आकार,) (२) तमे भगवान्ना जेवुज बिंब करावq मानो छो, त्यारे दाढी मूछ का नथी करावता ? अमे तो एम मानीये छीये जे बिंब जेम रमणीय लागे तेवाज आकार- करावq घटित छे... (३) ज्यारे तमे व्रतनी अवस्था लइने बळि वस्त्राभरण निषेधो छो त्यारे बिंबने स्त्रीओ का अडके छ ? तेमज बळि कां चडावो छो, केमके तमारा मते तो केवळिने कवलाहार होयज नहि. अगर जो तमे छअस्थावस्था गणी बळि चडाववी मानशो, तो पण ते थाळमां कां चडावो छो, केमके भगवान् तो करपात्री हता, माटे हाथमांज बलि चडाववी जोइये. वळी तमारा मतमां तो भगवान् ऊभा रहीनेज भोजन करे एम कयुं छे, त्यारे पलांठी आ. सने बेठेली प्रतिमा आगल का बलि चडावो छो? एज रीते तमारा मते भगवान् दिवसमा एकवारज आहारपाणी करे छे, त्यारे वारंवार वळि कां चहावो छो ? हवे जो कहेशो के भगवान् तो सिद्ध थया बाकी ए तो फक्त भक्ति सारुंज करीये छीये, तो त्यारे वधारे भक्तिसूचक वस्त्राभरणादिकनो का इनकार करो छो ? (पवित्रापवित्र जीवांग.) (४) जो कस्तूरी वगेराने जीवना अंग गणी अपवित्र मानो छो तो चामडाथी मडेला मृदंग, वीणा वगेर वाजींत्रो का वगाडो छो, गोपुच्छनी दांडीसहित रहेला चामरो का फेरवो छो, छा: Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) शतपदी भाषांतर. यी देरानुं गणुं कां लींपो छो, तथा दूध, दहि अने घी ए पण पंचेद्रिय जीवनाज अंग छे सारे तेवडे स्नात्र कां करावो छो! हवे ज्यारे तमे बहु डाह्या बनी व्यवहारथी पवित्र वस्तुनी पण उत्पत्ति तपाशवा मांडो छो, तो बोलो, सारे केशर कपूर पण शाना पवित्र गणो छो ? कारण के केशरना क्यारामां कूतरानी विष्टा पूराय छे अने कपूरना झाड नीचे कूतरानुं मडदुं दटाय छे. वळी ए रीते पाणी पण मच्छादिकना अवयव अने मळमूत्रथी बगडेलुं अने पशुपंखीओए एवं करेलज होय छे, माटे ते पण tarai पवित्र केम गणी शकशी ? माटे दरेक वस्तुनी व्यवहारथीज पवित्रता कल्पवी जोइये. बळी तमे चामडाने पंचेंद्रिय जीवनुं अंग गणी पगरखा सूत्रना करावो छो तथा चोपडाओमां पण चामडानां पूठां नथी नखाबता, त्यारे मोरपीछ अने चमरीगायना वाळनी पिच्छिकाने धर्मध्वज तरीके कां वापरो छो ? कारण के ए पण पंचेंद्रियजीवनाज अंग छे. वळी ज्यारे चामडाना दबामां आवेलुं घी के पाणी नथी वापरता, सारे गायना थानमांथी खेंची काढेलुं दूध कां वापरो छो ? बळी तमे वाल वगेरा अचेतन अवयव देखी के सांभळी जेवा भडकी ऊठो छो तेवा छकायनी हिंसा करी नीपजावेला आधाकवडे नथी भडकता ए केवी डहापण !!! वळी चामडांथी मडेल पालखी तथा म्यानामां कां चडो छो? योगपट्टक. जो तमे दिगंवरपणुंज कबूल करो छो, त्यारे सादरी, तथा योगपट्ट (आवरणवस्त्र) कां ल्यो छो ? कदाच कद्देशो के पंचमकाळ होवाथी लज्जापरीषहना लीधे आवरण तो लेवाय, त्यारे तेने प Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१५९) हेरता का नथी. केमके आवरण रखाय पण पहेराय नहि एम तो क्यां कछु नथी. वळी ए पावरण पण माशुक वस्त्र लई का नथी करता, तथा रजकादिकना हाथे को धोवरावो रंगावो छो ? वळी जो दिगंबरपणुंज खरुं छे तो तमारी आर्याओ का थो. डांक कपडां पहेरे छे ? धर्मोपकरण, निग्रंथमुनिए पायाभ्यंतर परिग्रह छांडवो पण धर्मोपकरण छोडवा न जोइये कारण के धर्मोपकरण छांडतां तो संयम तथा आत्मा ए बेनी विराधना थाय छे. तेना दाखला. (१) मोपती विना मोंमां मछर, माख, पाणीना बिंदु के धूल पडे छे; देशना देतां के छीकतां मोंना गरमवायुवडे बाहेरना वायुनी विराधना थाय छे, तथा आपणी थूको ऊडीने बीजाने स्पर्शे छे. __(२) रजोहरण वगर भूमि शरीर, उपकरण, थंडिल वगेरा केम प्रमार्जी शकाय? वळी राते सामे आवता वीछी-सर्पने केम अटकावी शकाय तथा शरीरपर चडता कीडी-माकण केम निवारी शकाय? (३) कपडं राख्या वगर (तमारामांना केटलाक आजकाल) शीआळामां कांतो अग्निनो पडखो ले छे अथवा तो शुषिर अने सबीज पलालमां मूए छे, अथवा तो शास्त्रमा निषेधेल छतां तैलमर्दन करावे छे, अथवा शीतना भये देरासरना गूढमंडपमा जइ सूइ आशातना करे छ, के छेवट गृहस्थना लांबा मोटा वगर तपासेल पटु, धुपटा, बूरी, के खेश वापरे छे. (४) वळी कांबळी वगर (तमारामांना केटलाक) वर्षाकाळमां कांतो जेनी पडिलेहणा नहि थई शके एवं क्रीतादिदोषदुष्ट छत्र धरावे छे, अथवा तो गरमशरीरवडे अपकाय विराधे छे. पण Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 १६०) शतपदी भाषांतर. जो कंबळ लेवामां आवे तो ओचिंती वर्षाद पडतां के वाळ, वृद्ध, मांदा, सुकुमाल, तपसी, विद्यार्थी वगेरा साधु सारूं वर्षती वरसादमां पण भिक्षा लेवा जतां, के खरचुपाणीएं जतां शरीर का. बळीथी ढांकेलं होवाथी तेवी विराधना नहि थशे. _ (५) वळी तुंबा के लकडाना, सेज मळता, निरवद्य, अल्पमूल्य पात्रां छोडीने जुओ तमे एक पछी एक केटला अनर्थ कबूल्या छे:(१) पहेलां तो सर्वदर्शनमां मनाएली मधुकरवृत्ति छोडी एक घ- रेज भोजन करवा मांडयुं छे. (२). बीजुं आधार्मिक सेवो छो, के में माटे प्रायश्चित्तना ग्रंथोमां मूळप्रायश्चित्त आवतुं कहेल छे.. (३) त्रीचं पाणी त्रसजीवसहित छे के रहित छे ते नकी नहि जा णता पोते अकेवळि होई "केवलिए दीहुँ"कही खोटुं बोलो छो. (४) चोथु पगमा चोपडवा सारूं जोइता तेलने माथामां घाली टपकता तेले मठमां आवो छो. (५) पांचमु पोताना मठ के दानशाळामां रहेल व्रतवाळी आर्या_ओ पासे रसोइ करावो छो? (६) छठं आहार माटे पैशा राखो लो. (७) सातमुं फळ, धान, घी, तेल, हिंग, खांड, दहि, दूध वगेरा खरीद करो छो. (८) आठमुं, थाली, घडा, लोटा, कुंडी, घीतेलनां वासण, वाद का, कथरोट, दर्वी, कडली, तावडी, लोढी, सूप, सुंडा वगेरा ___ अनेक भाजन राखो छो. - ए रीते अनेक दोष तमे कबूल्या छे. वळी तमारी व्रतधारी आर्याओ अनेक पात्रां राखी अनेक घरोमां भिक्षा करे अने तमे पोते नहि करो तेनुं शुं कारण छे ? Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१६१) पात्र राखवाना फायदा. (१) अजाणपणे अशुद्ध आहार लेवाई जतां खबर पड्याथी ते परठाई शकाय. (२) अन्नपाणीमां कई जीवजंतु होय तो ते जूदा पाडी शकाय. (३) भूलथी पूरांवाळू चोखानुं धोवण वगेरा लेवाई जतां ते प रठी शकाय. (४) पात्रावंडे गुरु, ग्लान, पाहुणा, तपसी, विद्यार्थी, बाळ, वृद्ध वगेरा सारं आहार लावी आपी तेमनुं वेयावच्च थई शके. तेमज जेमने आहारपाणी नहि मळ्या होय तेमने पण मंडलीमां जमाड्याथी एकबीजाने टेको थाय. (पाणिपात्रना दोषो.) तमे जिनकल्पिना विचारथी पाणिपात्रपणुं कबूलो छो, छताए तमोने जमाडतां पात्र तो घणा वपराय छे. कारण के पहेलां तो थाल कचोला के दूनामां पिरसीने चमचावडे कोळिया दीठ शाक, वडां वगेर भेळी, साटां, लाडु, खाजां वगेरा जूदा जूदा अपाय छ; अंतराय नहि पडे ते सारं भाण वगाडवामां आवे छे अने नीचे पण पाटीऊ राखवामां आवे छे. आम आटलां पात्र वपरातां छतां पण पाणिपात्रपणुं यतुं होय तो तो पछी घणाए पाणिपात्रवाळा कहेवाशे. केमके सौ कोई घणुं करीने अन्न तो थालमाथी हाथवडे ऊपाडीनेज मोमां नाखे छे तथा पाणी पण प्राये हाथनी अंजळिमां ढोली पीवाय छे अने वनफळ, मेवा तथा तांबूल तो हाथवडेज खवाय छे. . वळी तमे जेम जमतां जमता हाथ, भमर, के हुंकारावडे वारंवार मागणी करो छो तथा रायण, आंबा, चीभडां, के बोर ૨૧ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६२) शतपदी भाषांतर. बगेरा खाई जाओ छो तेम कई तीर्थकर करता न हता. वळी तीर्थकरना हाथमां तो पाणीना हजार घडा ढोल्या होय तोपण एक टीपु नहि गळे एवो तेमनो अतिशय छे; पण तमारा हाथथी तो छोकराओने पण हासी आवे एटली गलतर थाय छे ने तेथी हेठे कीडीकुंथुआ विराधाय छे तेमज पडता भोजनथी खरडाता शरीरने घोवानी पंचात ऊभी थाय छे. (वस्त्रादि देवानां फळ.) .. कोइ पूछे के शास्त्रमा जेम आहारपाणीना दातार वर्णव्या छे तेम वस्त्रादिकना दातार क्यां वर्णव्या छे, तेने ए उत्तर छे के भगवती तथा आवश्यकचूर्णि वगेरा अनेक स्थळे कयु छ के "श्रावको श्रमणनिर्ग्रथने प्रासुक अन्नपाणी, वस्त्र, औषध, पीठफलक तथा सय्यासंथारा आपे." माटे वस्त्रो पण संयमना उपकारक होवाथी साधुने देवामां लाभज छे. (अचेल शब्दनो अर्थ.) स्थानांगना नवमा अध्ययनमा कयुं छे के आक्ती चोवीसीना पद्मनाभस्वामी पार्छ अचेलकधर्म प्ररूपशे. तेनी टीकामां ते पदनो एवो अर्थ कर्यो छे के जिनकल्पिनी अपेक्षाए अचेलकधर्म एटले जेमां वस्त्र तदन नहि होय एवों धर्म, अने स्थविरकल्पिनी अपेक्षाए अचेलक शब्दे जूनां, मेला, अल्पमूल्य धोळां कपडां समजवां. कोइ कहेशे के कपडां छतां अचेल केम कहेवाय तेने एम जणाव के जेम घणां कपडां ऊतारी अल्प कपडां तथा फेंटो वींटी पाणीमां पेशनार पुरुष अचेल के नमज कहेवाय छे तेम इहां पण अल्पमूल्यवाळां कपडां ते कपडांना लेखामांज नहि लेवां. माटे वस्त्र छतां पण मूर्छारहित मुनि अचेल कही शकाय छे. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १६३ ) वळी वस्त्रो जूलीख तथा रागना हेतु गणीने कई चारित्रना घातक लेखाय नहि. कारण के एम तो शरीरमां पण जूलीख तथा राग थवानो संभव रहेल छे छतां अध्यात्मशुद्धि होय तो चारित्रनो घात नथी थतो तेम वस्त्रो विषे पण जाणवुं. अने अध्यात्मशुद्धि नहि होय तो तो नग्न छतां पण चारित्र नहि टकशे. वळ तीर्थंकर नग्न हता एम कही तेमनी नकल करवी पण वाजवी नथी केमके बधी वाते जो तेमनी नकल करवी मानशो तो तेओ तो जेम गुरूपदेश विना स्वयंबुद्ध थया हता, छद्मस्थप णामां उपदेश के दीक्षा न होता आपता, तेम तमोने करवुं पडशे. वळी उचित वस्त्रो छतां पण चारित्रधर्म रही शकेज छे. कारण के वस्त्रो पण शरीर तथा आहारना मुजब चारित्रना मददगार थई शके छे. कोइ बोलशे के तीर्थंकर ज्यारे वस्त्रपात्र नहि राखता सारे तेमना शिष्योए शा माटे राखवा, कारण के गुरुनुं जेवुं लिंग होय तेवुंज चेलाए पण करवुं ए न्यायसिद्ध छे; तेनुं ए उत्तर छे के तीर्थकरनी वात जूदी छे केमके तीर्थंकरोनी अंजलि अछिद्र, अने तेमां पाणीनी कदाच चंद्रसूर्य लगी शिखा करवामां आवे तोपण एक टीपुं पण नीचे नहि पडे एवी हती तथा तेओ चतुर्ज्ञानी होवाथी त्रसहित तथा त्रसरहित आहारपाणी जाणीने निर्दोषज लेता माटे तेमने पात्रानी जरुर न हती. अने वस्त्र बाबत तो एम वात छे के सर्वे तीर्थंकरो " अमारे सोपधिधर्म एटले उपकरण राखी थतो धर्म चलाववो ले. " एम धारी दीक्षा लेती बेला एक वस्त्र लेज छे; अने दीक्षा लीघा पछी तो तीर्थंकर सर्वपरीषद समर्थन होय छे एटले कपडानी जरुर नथी रहेती तेथी ते वस्त्र गमे त्यां जतुं रहे छे. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४) शतपदी भाषांतर. हवे तमे गुरुनी नकल करवा चेलाने उस्केयु ते तो ऐरावणनी नकल करवा साधारण हाथीने उस्केरवा जेवू छे. छतां तमे तीर्थकरनीज नकल करवी इच्छो छो तो मठमां रहे, आधाकर्मी सेवई, तृणनी लंगोटी बांधवी, मोरपीछ कमंडलु राखवा, तथा छद्मस्थ छतां धर्मदेशना के दीक्षा देवी, इत्यादिक सर्व तमारे मूंकी देवा जोइये. दिगंबरो जिनकल्पिथी विरुद्ध छतां जिनकल्पिनाम धरेछे. ज्यारे तमे जिनकल्पिनीज नकल करो छो सारे कमंडलु, पिछिका, कपडानी मोजडीओ, पुस्तक, चोपडीओ, कवडीठवणी, पुस्तकपट; योगपट्टक, आसनपट्ट, तृणपटी (लंगोटी) वगेरा अनेक उपकरणो कां राखो छो, तथा गुंदर, नाळिएर वगेरा अनेक औषधो का संघरी राखो छो? कदाच कहेशो के पंचमकाळ होवाथी एटलो परिग्रह राखीये छीये; त्यारे संयमने मंददगार, लज्जा तथा शीतथी बचावनार, वस्त्रादिक उपकरणोए तमारी शी गुन्हेगारी करी छे ? वळी ज्यारे पोताने जिनकल्पिनीज नकल करवा मानो छो त्यारे स्त्रीओने पग पखालवा कां आपो छो? आर्याओ साथे एक ठेकाणे कां रहो छो? चैत्यमां कां रहो छो? आर्याओ पासे थी रसोई का करावो छो? पालखी वगेरापर कां चडो छो? ज्योतिष निमित्तादि विद्याओ कां चलावो छो? सचित्त फूलपत्र, जळ, चंदनकेशर, सोनारूपा तथा दूध घी वगेराथी पग कां पूजावो मनावो छो? सभामां बेशी व्याख्यान कां करो छो? दीक्षा कां आपो छो? घणा साधुओमां कां रहो छो? तथा हमेशां एकज ठेकाणे कां रहो छो? Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१६५) (जिनकल्पिनी क्रिया.) जिनकल्पिनी क्रिया आ प्रमाणे छे. (१) जिनकल्पि एकलाज रहे. (२) मसाणमां पण जई काउसग करे. (३) नवकल्पेज विचरे. (४) आंखमां पडेल तणखलं वगेरा पण नहि कहाडे. (६) पगमां लागेल कांटुं वगेरा पण नहि कहाडे. (६) शरीरे खरज न करे. . (७) त्रीजे पहोरेज आहार नीहार तथा विहार करे. (८) बीजा कोई साधुओ साथे पण आलापसंलाप नहि करे. ९) लेप न लागे एवो तुच्छनीरसज आहार करे. (१०) ज्यां त्रीजो प्रहर पूरो थयो के साते पहोर सांज ऊभा रहे. (११) कूतरा, बळद, हाथी, सिंह के चित्राथी नाशे नहि. (१२) मांदा पडतां पण चिकित्सा न करावे. (१३) ध्रुवलोच करे.. (१४) निःप्रतिबंध होवाथी कोइने धर्मोपदेश पण न करे. (१५) सूत्रना बळथीज सर्व कलाओ जाणे. (१६) छ मास लगी आहार नहि मळे तोपण नहि शीदाय. (१७) समुद्र माफक क्षोभ नहि पामे. (१८) सूर्य माफक तेजस्वी होय. (१९) जघन्यथी पण नवमापूर्वनी आचारनामे त्रीजी वस्तु सूत्रार्थे . शीखेला अने उत्कृष्टा दशपूर्वथी कंइक जणुं शीखेला होय. (२० वज्रऋषभनाराच संघेणवाळा होय. ए जिनकल्पिओमा केटलाक एवा होय छे के जेमना हाथमा हजार घडा पाणी रोडिए तोए माई जाय छे तथा कई घा लागे Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) शतपदी भाषांतर. तो सही नहि पडतां एमज मूकाई जाय छे. एवा पुरुषो साथै तमो स्पर्धा करो ते शा कामनी? . ____ अगर शेषक्रियारहित फक्त नग्नपणाथीज जिनकल्पिपणुं थतुं होय तो तो माछला, काचवा, बळद, घोडा तथा नागां बाळको पण जिनकल्पि जेवा कही शकाशे. (दिगंबरो अर्वाचीन छे.) कदाच दिगंबरो बोले के अमे प्राचीन छीये तो तेमने पूछ के तमारा ग्रंथोमां पण जेनां नाम आवे छे एवा तमारा आचारांगादि सिद्धांतो बतावो. वळी सिद्धांत सर्वे विछेद थया अने दर्शन वर्ते छे ए पण नहि मानी शकाय तेवी वात छे. ___ए उपरांत नगर, भरुच, श्रीमाळ, वाडव (वडनगर) वगेरा प्राचीन शेहेरोमां ब्राह्मणोना महास्थानको जेम रहेलां के तेम तमारा प्राचीन चैत्य बतावो. वळी जो तमारो मार्ग सर्वज्ञप्रणीतन होय तो पूरती रीते छकाय राखवाना उपाय, निग्रंथपणेज व्रतनिर्वाह, बेतालीश दोषरहित पिंडविशुद्धि, तथा वसतिनी शुद्धि क्यां छे ते बतावो. [स्त्री पण मुक्ति पामी शके छे.] ___ स्त्री पण तेज भवे मुक्ति पामी शके छ केमके यापनीयतंत्र नामना ग्रंथमां आ प्रमाणे कयुं छे: "स्त्री अजीव नथी, अभव्य नथी, दर्शनविरोधिनी नथी, अ. मानुष्य छ एम पण नथी, अनार्य देशमांज ऊपजेली छे एम पण नथी, असंख्यात आयुवाली पण नथी, अतिक्रूर मतिवाळी पण नथी, उपशांतमोह गुणठाणे नहिज आवे एम पण नथी, शुद्धाचारवाळी नहिज होय एम पण नथी, अशुद्धबुद्धिवाळीज होय एम Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १६७) पण नथी, क्रियारहितज छे एम पण नथी, अपूर्वकरण न करी शके एम पण नथी, नवगुणठाणा पण नज पामी शके एम पण नथी, अयोगलब्धिवाळी छे एम पण नथी, अकल्याणचेंज भाजन छे एम पण नथी, माटे ते उत्तमधर्मनी साधक शा माटे नहि थाय?" ए लखाणथी सिद्ध थाय छे के ज्यारे स्त्री उत्तमधर्मनी साधक थई शके छे त्यारे तेज भवे मुक्ति पण पामी शकती सिद्ध थई शकशेज. पाणी नहि गाळनार घरोमां पण मुनिने भिक्षा कल्पी शके छे. कोई प्रश्न करे के तमोने जे घरोमां पाणीनुं गळg के भाजनशुद्धि नथी होतां सां भिक्षा लेवी केम कल्पे छे, तेनुं ए उत्तर छे के यतिने सामे देखातो दोषज परिहार करवो घटे. बाकी "तमारा घरे पाणी गळेल वपराय छे के नहि, धान सोवाय छे के नहि, शाकमां कुंथुवगेरा जुओ छो के नहि, माखण तरत तपावो छो के मोहूं, तेल चोखा तलनु छे के सडेलानु, दहि दूध घरनां छे के वेचातां लीधेल छे, रसोइनां वासण बरोबर पोंज्यां हतां के नहि, आ हाथवडे पहेलो शुं कर्यु छ, आ चमचावडे पूर्वे शुं पीरसेल छे" इत्यादि सवालो पूछवानी यतिओने कशी जरुर नथी. किंतु हाथ, चाटुआ, अने वासण देखीता शुद्ध होय अने बेतालीश दोष रहित शुद्ध आहार होय तो यतिओने ते लेवो कल्पी शके छे. (पवित्रता के अपवित्रता लोकव्यवहारे लेखवी.) कइ वस्तु पवित्र गणवी ने कइ अपवित्र गणवी ए बाबत लोकव्यवहारनोज आधार लेवो घटे छे. बाकी एमां मूळउत्पत्ति तपाशी ते ऊपर आधार राखवो नथी घटतो. कारण के तेम करशो तो जे तमे पवित्र चीजो मानो छो ते पण अपवित्र देखाशे. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६८ ) शतपदी भाषांतर. दाखला तरीके पाणीमां माछलां तथा काचवाना अवयवो होय छे, दूध वाउरडाए एवं करेल होय छे, फूलो भमराओए चूसेला होय छे, शाक रसोइयाए चाखी एवं करेल होय छे, घी मांसमदिरा वापरनार भरवाड, भील, कोळी वगेराना हाथनुं अने घणा दिवसना सडेला माखणमांथी नीपजावेल होय छे, तेल पण घं करीने जीवजंतुवाळा तलमां अणगळपाणी नाखी कहाडेल होय छे, वेचतां दहिदूध पण अणगळ पाणीवाळांज होय छे, खजूरमां पण नोडकोए (नोधा सीधीओए) खाइने कुळियां नाखेल होय छे, हिंग पण काचा चर्ममां बांधेल होय छे, लूणमां अनेक जीवना कलेवर भळेला होय छे, तथा शाक, पत्र, फूल, फळ, मशाला, धान अने मीठाइमेवा पण मांसमदिरा खाऊना हाथना स्पfet अपवित्र थला होय छे. माटे पवित्रता के अपवित्रता लोकाचार तथा देशाचार ऊपरथीज लेखत्री जोइये. ए बाबतना थोडाक दाखला टांकीये छीये. (१) शंख, छीप, मोती, चामर, दांत, कस्तूरी वगेरा जीवांग छतां पवित्र गणाय छे. (२) धनुष, बाण, सींगडी, म्यानानी दंडिका, श्रीकरी ( पालखी), तरवारनुं म्यान, सूप, सुंडा, पगरखां, गादी, वायराना वींजणा, तथा चोपडीओ वगेरा चामडाथी जडेल छतi पवित्र गणाय छे. (३) वाजां काचा चामडाथी मडेल छतां पवित्र लेखाय छे. (४) धूपमां नख तथा चरबी भेळवातां छतां पवित्र गणाय छे. (५) कपडां पेणवाळां छतां पवित्र गणाय छे. (६) नदी तळाव वगेरामां लोको हाथपग धूए छे, स्नान करे छे, कोळा नाखे छे, तथा पशुपंखी वटाल करे छे, तथा तेना Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १६९) कळेवर होय छे छतां तेनुं पाणी पवित्र गणाय छे.. (७) नदीमां तो काचुं चर्म धोवामां आवे छे, तथा मडदानी भ इम पण भळेली होय छे तोए तेनुं पाणी पवित्र गणाय छे. (८) एकज तलावमांथी ढेड वगेरा पाणी पीए भरे छे छतां अ. पवित्र नथी गणातुं. (९) राजमार्गमां ढेडचांडाळ वगेरा सर्वे चाले छे छतां ते नथी ___ अभडातुं. (१०) माखो एक ऊपरथी बीजा ऊपर बेशे छे. तेथी पण छूती नथी लागती. (११) अणतूटेली धारथी कोइने जमाडतां पण छूती नथी लागती. (१२) लडाइमां, आगमां, विवाहमां, यात्राओमां, बजारमां, तथा एवी रीतनी बीजी अनेक भीडमां तथा प्रवहण वगेरामां शूद्र साथे स्पर्शास्पर्शी थतां पण छूती नथी लागती. (१३) नाना बाळको कोइने अडकी जाय तेपण छूतीमां नहि गणवं. (१४) कोइ देशमा लाकडां नथी अभडातां, कोइ देशमा पैशा नथी अभडाता; वळी शुद्धि माटे पण कोइ देशमां पाणी. नी छांट नाखे छे, कोइ देशमा धूळनी चपटी नाखे छे ने कोइ देशमां लोढुं अडकावे छे एम छूती बाबत देशाचार पण तरेहवार चाले छे. आवी रीतना लोकव्यवहारमा अनेक दाखला मळे छे. वळी ए बाबत ऊपर मनुस्मृतिमां पण आ प्रमाणे लख्यु छे. (१) माखीओ, अणतूटेली धार, राजमार्ग, अग्नि, स्त्री, मुख, तथा बाळक ने वृद्ध ए अभडाय नहि. (२) देवनी यात्रामां,विवाह वगेरामां,ऊतावळमां,राजदर्शन करवा मां,लडाइमां,तथा बजारमा स्पर्शास्पर्शीथतां छूती नहि लागे. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) शतपदी भाषांतर. (३) लोट, गोरस, छाश, तेल, तथा घी क्यारे पण अभडाय नहि. (४) पांदडा, फळ, लोट, गोरस, तथा पक्कानमा रहेल पाणी नथी अभडातुं. (५) अटवीमां, निर्जळदेशमां, तथा चोर के वाघना भयमां शौच न करे तोए दूषाय नहि. (६) कांजी, दूध, दहि, छाश, शत्तु, घीतेलमा पकावेल रसोइ, तथा लाडवा अभडाय नहि. विचार ११० मो. (सामाथिक बाबत चूर्णिनो पाठ.) सामायिक बाबत आवश्यकचूर्णिमां आ प्रमाणे अधिकार छे. "अणुव्रत ने गुणव्रत एकवार लीधा तेज लीधा पण शिक्षाव्रत विद्याभ्यास माफक वारंवार अभ्यासाय छे. ए शिक्षाव्रत चार छे तेमां पहेलं सामायिकवत छे. ते करवानी विधि आ प्रमाणे छे. (१) सामान्यश्रावके देरासरमां, साधु पासे, घरमां, पोसहशाळामां, के ज्यां नवरास मळे त्यां सामायिक करवं. तेमां पेला चार स्थळे सामायिक करतां तो अवश्य सर्व (आवश्यक)ज करवू. (२) ए आवश्यक जो साधु पासे करवान होय तो जो को. इना वेडझघडा के करजनी पंचात नहि होय तो घरेथीज सामायिक लई ऊघाडे पगे साधुना मुजब समितिगुप्ति सांचवी साधु पासे जइ त्यां बीजीवार सामायिकनो पाठ उच्चरवो. अने तेमां “जाव साहू पज्जुवासामि" एवं पद कहेवू. अने त्यां जो चैत्य होय तो प्रथम वांदी लेवां. (३) पछी साधु पासेथी (वधारान) रजोहरण के निषद्या मागी Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १७१ ) लेवा अने घरे करवानुं होय त्यारे तो त्यां औपग्रहिक ( काम पडतां खप लागतुं) रजोहरण होय तो तेनावडे अथवा छेवट पोतना ( कपडाना ) छेडावंडे पण काम चलाववुं. (४) पछी इरियावही पडिकमी, आलोयणा लड़, आचार्यादिकने अनुक्रमे वांदवा. त्यारबाद फेर गुरुने वांदीने बेशी करी भणवं गणवं. (५) एम चैत्यमां पण एज विधि करवी. (६) साधु के चैत्य नहि होय तो पोसहशाळामां के पोताना घेर पण एज विधिए सामायिक वा पडिकमणुं करवुं आ स्थळे " जाव नियमं समाणेमि" एवो पाठ बोलवो. (७) हवे जे ऋद्धिपात्र श्रावक होय तेणे साधुना पासे आवतां घरेथी सामायिक करी नहि आववुं, किंतु आडंबरथी त्यां आवी सामायिक करवुं. केमके एम कर्याथी लोकनी आस्था बेशे तथा साधुओनुं बहुमान रहे. वळी घेरथी सामायिक करी आवतां जो तेना पाछळ हाथीघोडा वगेरा आवे तो अधिकरणदोष लागे माटे तेम नहि करतां तेणे साधु पासे आवीनेज सामायिक करवुं. (८) ए ऋद्धिपात्र पुरुष जो श्रावक होय तो उपाश्रयमां आ वतां त्यां कोइए ऊठी ऊभा नहि थवुं. पण जो ते हजु भद्रकपरिणामीज होय तो आचार्य माटे आसन रची बधा जणे ऊभा थइ जवं. आ बन्ने व्यवस्था नहि साचववामां आवे तो दोष लागे छे. (९) पछी ते ऋद्धिपात्र श्रावके सामायिक करी प्रतिक्रांत थई आचार्यादिकने वांदीने भणवुं. (१०) आ ऋद्धिपात्र श्रावके सामायिकमां मुगट नहि ऊताखुं. बाकी कुंडळ, वींटी, फूल, तंबोल, तथा प्रावारक (ओढणनुं Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२) शतपदी भाषांतर. कपडं) ए ऊतारवा. बीजा आचार्य एम कहे छे के मुगट पण ऊतारवं. ए सामायिकनी विधि. . . Here विचार १११ मो. (ऊपरला पाठनो अर्थ). ऊपरला पाठमां कलम पेलीमां चार स्थळे "सर्व" करवानुं कमु छे त्यां सर्व एवा मोघम पदथी सर्व आवश्यक समजवा, का. रण सर्व ए सामायिकनुं विशेषण करीये तो ते घटी शके नहि. तेमज अनंतरनी बीजी कलमथी आवश्यकनी विधि कहेवानी रहेल छे तथा सर्व ए आवश्यकनुंज विशेषण घटे छे. कलम बीजीथी “आवश्यक"नी प्रस्तावना करी छे. सां आवश्यक शब्दे फक्त सामायिकज लेवू एम थाय नहि, केमके ए मोघमशब्द वपरातां छए अध्ययन आवे छे. जे माटे अनुयोगद्वारमां आवश्यकने माटे "छ अध्ययननो वर्ग'' एवो पर्याय आपेल छे. - वळी इहां चूर्णिमां “आवस्सयं करेंतो ति" एम लख्युं छे त्यां इति शब्द प्रस्तावना अर्थेज वापरेल देखाय छे. अने पंचाशकनी टीकामां अभयदेवमूरिए पण आ बाबत एवी पदरचना करी छे के "आवश्यक करतो थको जो साधु पासे ते करे तो त्यां आ विधि छे." आ वाक्यमा आवश्यकने प्रस्तुत करेल होवाथी जणाय छे के अभयदेवसूरिना विचारमा पण चूर्णिमां वपरायेल इति शब्द प्रस्तावनार्थीज लाग्यो होवो जाइये. कोइ एम बोले के आ दंडकमां शरुआतथीज सामायिक प्रस्तुत करेल छे अने अंते पण “ए सामायिकनी विधि" एम कहेलुं छे. छतां वच्चे षडावश्यक केम आवी पडयुं तेनुं ए उत्तर छे Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १७३ ) के " चार स्थळे सामायिक करतां तो अवश्य सर्व करवुं. ए आवश्यक जो साधु पासे करवानुं होय तो" ए वाक्यथीज षडाव - श्यक आवे छे. जो फक्त सामायिकनीज विधि कहेवी होत तो ए वाक्य न लखत. वळी सामायिकनी प्रस्तावना तो शरुआतमांज " ते करवानी विधि आ प्रमाणे छे" ए वाक्यथी करेल छे. छतां कलम बीजीथी तेनी तेज प्रस्तावना बीजीवार कां करे मांटे कलम बीजीथी षडावश्यकनीज प्रस्तावना जणाय छे. aft जो इहां सामायिकनीज विधि होय तो कछु के "घरेथीज सामायिक लई साधु पासे जाय" इहां सामायिक लइ एम कहेतां तेनी विधि पूरी थइ चूकी, त्यारे ऊपरनी विधिशा माटे चलावी. कोइ कहेशे के ऊपरनी विधि गुरुनी भक्ति साचववा सारं कही छे; पण तेम पण नथी केमके कलम ५-६ मां चैत्य तथा पोसहशाळामां पण एज विधि जणावी छे। अने सां तो कांइ गुरु छे नहि. हवे अंते "ए सामायिकनी विधि एम निगमन कर्यु छे ते पण कई पडावश्यकने बाघ करतुं नथी. कारण के आवश्यक निर्युक्तिम पण काउसगनिर्युक्तिथी काउसगनी प्रस्तावना करी वच्चे साधुना आवश्यकनी विधि कही छेल्ले सामायिकनुंज निगमन कर्तुं छे. " वळी इहां "घरेथीज सामायिक लइ एम कनुं छे ते ए आशये के उपाश्रये जवा जेटलो काळ पण सामायिक वगर पसार करवो न जोइये तेथी घरेथी फक्त सामायिकसूत्र उच्चरी शेष अनुष्ठान साधु पासे जइ करवु. कोइ एम पूछे के घरेज बधुं अनुष्ठान करीने साधु पासे जाय तो शुं ? तेनुं ए उत्तर छे के इहां साधु पासे करवाना अनुष्ठाननी Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( १७४ ) . शतपदी भाषांतर. ज प्रस्तावना छे. बाकी घरना अनुष्ठान माटे तो कलम ६ हीमां वात आवशे. माटे इहां तो घरे फक्त एक सामायिकज उच्चरवं. वळी कलंम वीजीना अंते लख्युं छे जे "त्यां जो चैत्य होय तो प्रथम वांदी लेवा." इहां प्रथम शब्द कहेवाथी एम जणाय छे के सामायिक कर्या पछी पण चैत्यवंदन थइ शके छे. कारण के तेम न होय तो मोघममां एमज लखत के "चैत्य होय तो वांदी लेवा" पण प्रथम पद न लखत. कलम त्रीजीमां लख्युं छे जे "रजोहरण के निषद्या साधु पासेथी मागी लेवा" ते जे साधु पासे वधाराना होय तेज मागवा. कारण के पोतापूरता उपकरण जो बीजाने आपे तो तेने प्रायश्चित्त आवे. ( रजोहरणथी प्रमार्जना आवे छे,) केटलाक एम माने छे के साधु पासेथी मागेला रजोहरणवडे श्रावके वांदणा देवा. तेमने पण रजोहरण नहि होतां निषद्यावडे अने ते पण नहि होतां वस्त्रांचळवडे पण वांदणा देवा कबूल करवा पडशेज. त्यारे एमज मानवामां शी हरकत छे के रजोहरणथी प्रमार्जनाज करवी; पण वांदणा साथे रजोहरणनो संबंध नथी. - पूर्वाचार्योए पण दरेक ठेकाणे रजोहरणथी प्रमार्जनाज बतावी छे. दाखला तरीके पंचाशकचूर्णिमां आ प्रमाणे लख्युं छे. "कोइ पूछे के शुं पोसहवाळाने रजोहरण होय? तेनु ए उत्तर छे के हा, होय. जे माटे आवश्यकचूर्णिकारे सामायिकनी सामाचारी कहेतां थकां कडं छे के साधु पासे रहेलं वधारानुं रजोहरण मागीने श्रावक प्रमार्जना करे. कदाच ते न होय तो पोतना (वस्त्रना) छेडावडेज प्रमार्जे." Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१७५) __ कोइ बोलशे के त्यारे तमारा मानवा प्रमाणे पण वस्त्रांचळथी प्रमार्जनाज करवी ठेरशे पण हवे वांदणा शावडे देवा ठेरावशो तेने ए उत्तर छे के सूत्रमा कयु छे के “पांच अभिगमे करीने सामा जइने वांदे" तेथी वांदणा उत्तरासंगवडेज सिद्ध थाय छे. ___ इहां कोई कहेशे के चूर्णिमां जे पोत शब्द छे तेनो अर्थ अमे मोपतीं करशुं. तेणे जाणवानुं छे के आगममा बधे स्थळे मोपती माटे पुत्ति शब्दज वापरेल देखाय छे, पण पोत शब्द वापरेल नथी. किंतु सिद्धांतमां ठेकाणे ठेकाणे पोत शब्द सामान्य कपडाना अर्थेज वापरेल छे माटे पोत शब्दनो अर्थ मोपती थई शके नहि. (वांदणा.) कलम ४ थीमां आलोयणा लइ वांदवानुं लखेल छे . त्यां "वांदवा" एटले “द्वादशावर्त्तवांदणावडे वांदवा" एमन समजवू. केमके एज ग्रंथमां तथा ग्रंथांतरे द्वादशावर्त वांदणाना स्थळे स्पष्ट रीते "वंदई" शब्द वापरेल देखाय छे. . (वा शब्दनो अर्थ.) । कोई पूछे के कलम ६ ठीमां लख्यु छे के “साधु के चैत्यना अभावे पोसहशालामां के घरेज सामायिक वा आवश्यक करे." इहां वा शब्दनो अर्थ रॉ करवो? तेने ए उत्तर छे के साधु पासे के चैत्यमां जइ आवश्यक करवानी विधिमां मुख्य तफावत एज देखाय छे के साधु के चैत्यनायोगे घरेथी सामायिक उच्चरी यां जइ शेष आवश्यक करे अने पोसहशाळा के घरे एकज ठेकाणे रही सामायिक तथा आवश्यक करे. आ रीतनो संबंध विचारतां वा शब्द विकल्पार्थी नहि पण समुच्चयार्थीज रहेल छे, तेथी तेनो "तथा" एवो अर्थ थाय छे. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) शतपदी भाषांतर. आगममां वीजा पण घणा स्थळे वा शब्द समुच्चयार्थी प्रसि द्ध छे. जेमके छए व्रतना उच्चारमां आवे छे के “ सूक्ष वा बादर, त्रस वा स्थावर. " इहां वापरेलो वा शब्द समुच्चर्यार्थीज छे. बळी ए छठी कलम पेटे ए विचारवानुं छे के ए कलममां आगल बतावेल विधिनोज अतिदेश करवामां आव्यो छे. अने आगल बतावेल विधिमा तो सामायिक तथा आवश्यक ए बन्नेनी भेगी एकज विधिवर्णवी छे, जूदी जूदी विधि कहीं नथी. त्यारे वा शब्द विकल्पार्थी गणिये तो अतिदेशवडे जूदी विधि कइ आवे. माटे इहां वा शब्द विकल्पार्थी घटेज नहि. ( पडिकमणुं ते शुं . ) कलम नवमीमां " ऋद्धिपात्रश्रावक सामायिक करी प्रतिक्रांत थइ वांदीने भणे" एम लखेल होवाथी केटलाक बोले छे के इहां प्रतिक्रांत शब्द होवाथी " वंदित्तु" सूत्रवडे पडिकमणुं कर साबित थाय छे. पण ए कथन पण अयुक्त छे. केमके चूर्णिकारे पहेलां साधारण श्रावकने आसरी जे पडिकमणुं लख्युं छे तेज इहां ऋद्धिपात्र माटे पण घटे. हवे साधारण श्रावकना माटे एम लख्युं छे जे "आलोइने वांदे'' (एटले के इरियावदीथी आलोवीने वांदे ) एथी इहां प्रतिक्रांत शब्दनी पण एवीज व्याख्या करवी के इरियावही पडिकमे. आ अर्थ अमारी मतिकल्पनाएं करीये छीएम पण नथी, केमके अभयदेवसूरिए पंचाशकनी टीकामां ए बाबत एवोज अर्थ कर्यो छे. ( प्रावारक शब्दनो अर्थ. ) कलम १० मीमां सामायिकमां कुंडलादिकना साथे मावारक पण ऊतारवानुं लख्युं छे त्यां प्रावारक शब्दे . सामान्यपणे वस्त्र Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१७७) मात्र नहि लेवं किंतु जे मुश्केलीए पडिलेही शकाय एबुं वस्त्र होय तेज समजवु. केमके निशीथचूर्णिमा पल्हवि, कोयव, मावारक, नवतक, तथा दढगालि ए पांच वस्त्रो दुप्पडिलेह तरीके लख्यां छे. ___अगर मावारक शब्दे सामान्यपणे वस्त्र मात्रज लेशो तो कुंडलादिकनी माफक सामायिकवंतने कोइ पण वस्त्र लेवू घटशे नहि, पण तेम तो छे नहि. केमके सामायिकवाळा पण अनुज्ञा मागी जोइतुं वस्त्र लइ शके छे. . वळी चूर्णिमां पाठांतरें प्रावारकादि शब्द छे सां प्रावार शब्दे उत्तरसाडी लेशो तो आदिशब्दे पहेरण- बस्त्र मूकबुं पडशे. परंतु प्रावारक शब्दे दुप्पडिलेह वस्त्रनी व्याख्या करीये तो चूर्णिमां प्रा. वारक वगेरा पांच प्रकारना दुप्पपडिलेह वस्त्र कहेल होवाथी आदि शब्द पण घटी शके छे. . वळी तमे श्रावकने देश सामायिक करतां पण उत्तरवस्त्र निषेधो छो तो पोते सर्वसामायिक कर्या छतां ते कां राखो छो? तेमज प्रावारक शब्दे जो उत्तरवस्त्रज लेशो तो कुंडलादिना मुजब श्राविकाए पण सामायिकमां ते ऊतार, पडशे. कारण के एम तो क्या कहेलं नथी के "श्रावके भावारक ऊतार, पण श्राविकाए नहि ऊतारवं." माटे पावारक शब्दे दुप्पडिलेह वस्त्रनीज व्याख्या करवी जोइये केमके ते श्रावक श्राविका ए बन्नेमा सरखी रीते घटी शके छे. (पचरवाण.) वळी चूर्णिना पाठमां पचखाणनी वात जो के खुल्ली नथी जणावी, तोपण विधिवादे तथा चरितानुवादे श्रावक पचखाण करवानो अधिकारी देखातो होवाथी, तथा चूर्णिमां पण आवश्यक शब्दे प्रस्तावना करतां छए आवश्यक प्रस्तुत थयाथी श्रावके प Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८) शतपदी भाषांतर. चखाण पण कर, जोइये. जुओ एज चूर्णिमां अन्यस्थळे कह्यु छ के केत एवं घरनुं नाम होवाथी संकेत पचखाण ते गृहस्थमा पचखाण जाणवा. अथवा पचखाण पूरुं थतां पण ज्यां लगी अमुक चिह्न कायम होय त्यां सूधी नहि जq एम संकेत करवो ते संकेत पखखाण. — अंगुष्टश्रावक पोरसी लइ खेतरे जतो हतो. त्यांथी पाछु आवतां रसोइने तैयार थतां वार होय तो अपचखाणी नहि रहेवा सारं तेटलो वखत अंगुठो बाली बेशतो. एलकाक्षनी उत्पत्तिमा वात आवे छे के एक श्राविका मिध्यादृष्टिने परणाववामां आवी ते त्यां सांजे आवश्यक करती अने पचखाण लेती. . माटे इहां विधिमा जो के पचखाण नथी तोपण स्थळांतरथी ते आवेज छे. [अल्पविधि छे तो शुं थयुं ?] ___ इहां कोइ बोलशे के आ आवश्यकनी विधि तो बहु थोडीज छ माटे तेमां केम आस्था आवे. तेने ए उत्तर छे के ए विधि थोडी छतां पण जेटली छे तेटली श्रुतधरोए कहेल होवाथी प्रमाणभूतज छे. ___ वळी तमे जो ए करतां अधिक विधि सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति तथा टिप्पनकना अक्षरे श्रावक माटे सिद्ध करी आपो तो ते पण अमे मान्य करीशुं. इहां कंइ अमने खोटो हठ नथी. वळी इहां थोडाझाझानी चिंता करवी घटेज नहि. किंतु पूर्वश्रुतधरोए जे जेटलुं भांख्यु होय ते आगम प्रमाणे तेटलुंज निःशं. कपणे करतां थकां छमस्थ आराधक थाय छे. बाकी स्वबुद्धिए हीन के अधिक करतां तो दोषज थाय. माटे सिद्धांतमां कहेली क्रियाज श्रद्धवी तथा करवी घटे छे. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १७१ ) चूर्णिना पाठनी कलम पेलीमां चार ठेकाणे सामायिक करतां नियमा आवश्यक करवानुं लख्युं छे अने पांचमा नवराशवाळा खेतरखळा वगेरा स्थळ माटे एम छे जे त्यां कोइ वेला संपूर्ण पBrass पण थई शके ने कोइ वेला केवल सामायिक पण थाय. वे एवी रीते के त्यां पोताने वधु वखत रहेवानुं होय ने भूमि पण जीवजंतुरहित, गरबडरहित, स्त्री वगेरानी आवजाव रहित मोक कासवाळी, अग्निनी जोतथी रहित, तथा मिथ्यादृष्टि गृहस्थथी मोकळी होय तो त्यां षडावश्यक पण थइ शके. वळी कोइ कारण विशेषे सामायिक नहि लेतां फक्त शेष आवश्यक पण कराय छे. अने जो त्यां मिथ्यादृष्टि गृहस्थों हाजर होय तो केवल सामायिक लड़ नोकरवाळीज फेरवाय छे. कोइ पूछशे के इरियावही पडिकम्या विना नोकार केम ज़पाय ? तेने ए उत्तर छे के शास्त्रमां कधुं छे के एक अजाण गोवाल नोकार गणतो थको तेनां प्रभावे चंपानगरीमा सुदर्शन शेठ थयो तथा निशीथचूर्णिमां कहां छे के अनुप्रेक्षा ( चिंतना ) सर्व ठेकाणे अविरुद्ध छे. विचार ११२ मो. ( चोमासी तथा पांखी पूनमनीज छे. ) प्रश्नः - पांखी तथा चोमासी चौदशनी कां नथी करता ? उत्तरः- आगममां पांखी अने चोमासी पूनमनीज कहेली छे. तेना दाखला. (१) पर्युषण कल्पमां कहां छे के आषाढी पूनमे चोमासुं क रवा लायक क्षेत्रमां जइ चोमासी पडिकमणुं करवुं. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८०) शतपदी भाषांतर. - (२) कल्पचूर्णिमां पाने १४२ मध्ये कह्यु के के व्याघात न होय तो कार्तिक चोमासु पूरुं करीने मागशरनी पडवेना दिने विहार करवो अने व्याघात होय तो तो आगल के पाछल पण विहार करी शकाय. .. (३) निशीथचूर्णिमा कह्यं छे के उत्सर्गे एक क्षेत्रमा आषाढी पूनमे चोमासु थापी कात्तिकी पूनमे चोमासु पूरूं करी मागशरनी पडवेनो विहार करवो. अने अपवादे मागसर विदि दशम सूधी पण रही शकाय छे. (४) वळी सांज लख्यु छे के कार्तिकी पूनमे चोमासु पूरुं करी मागशरनी पडवेना दहाडे विहार करवो एटले के चार मास पूरा थतां पगे विहार थइ शके तेम होय तो चोथी पडवे आवतां अवश्य विहार करवो. (६) सांज त्रीजे स्थळे लख्यु छ जे वर्षाकाल योग्य क्षेत्रमा आषाढी पूनमे चोमासु पडिकमी पार्छ कात्तिकी पूनमे पण पडिकमीने पडवेना दहाडे बीजे क्षेत्रे जइ पारणुं करवू. (६) त्यांज चोथे स्थळे लख्युं छे जे आषाढी पूनमे चोमासु पडिकमी योग्य क्षेत्रमा चोमासु रहे. अने कार्तिकी पूनमे चोमासु पडिकमी पडवेना बीजा स्थळे पारणुं करे. (७) पांचमे स्थळे कयु छ जे वर्षाकाळ एक क्षेत्र रहेता का. तिक चोमासानी पडवेना दिने अवश्य विहार करवो.. (८) छठे स्थळे कह्यु छ जे वर्षाक्षेत्रमा चार मास निर्विघ्नपणे रही कार्तिक चोमासु पडिकमी मागशरनी पडवेना दिने विहार करवो. तेम न करे तो प्रायश्चित्त आवे. - एम पूनमना दिने चोमासु करवानी आठ हुंडीओ लखी छे तथा ए बाबतमां बीजी पण घणी हुंडीओ रहेल छे. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( पाक्षिक.) " पाक्षिकचूर्णिमां क छे के “ दररोज विशुद्धि करतां छतां पण पक्षांत आवतां विशेष पडिकमणुं करवुं." ए वचनथी पाखीपडिकमणुं पक्षना अंतेज कर सिद्ध थाय छे. हवे पक्षनो अंत ज्योतिष्करंडादिकमां पनरमी तिथिएज क छें. माटे पाक्षिक पण तेज दहाडे करवुं घंटे छे. ( १८१ ) वळी दशाश्रुतस्कंध चूर्णि, व्यवहारचूर्णि, पाक्षिकचूर्णि, पाक्षिकवृत्ति, तथा आवश्यक टिप्पनक ए पांचे ग्रंथोमां पाखीथी चौदश जूदीज कही छे. तेना दाखला. (१ - २) दशाश्रुतस्कंध तथा व्यवहारचूर्णिमां "पाक्षिक तथा पौपधिक दिनोमां तप करतुं करावबुं " ए वाक्यनी व्याख्यामां लख्युं छे के पाक्षिक एटले अर्धमासपर्व, अने पौषधिक एटले आठम वगेरा पर्व. (३) पाक्षिकसूत्री चूर्णिमां पण "दिवस, पौषध, तथा पक्ष व्यतिक्रम्यो" ए सूत्र ऊपर व्याख्या करतां चूर्णिकारें " पौषध एटले आठमचउदशनो उपवास करवो" एवो अर्थ लखतां पोसह शब्दथीज चौदश लीधी छे, पण पक्ष शब्दथी नथी लीधी. ( ४ - ५ ) पाक्षिकसूत्रनी टीका तथा आवश्यकना टिप्पनकमां पण एवी व्याख्या करीछे के “पौषध ते पर्वरूप दिवस अने पक्ष ते अर्धमासरूप. " बळी मासनी समाप्ति पण पूनमेज थाय छे. कारण के निशीथचूर्णिमां कह्युं छे के साधुओ चोमासुं पूरुं थतां पण कारणवशे वधु मुदत सां रहे तो त्यां वे महिनानी मुदतना दरम्यान कोइ वस्त्र वोरावे तो ते नहि लेतां बे मास पूरा थया केडे चोरवा. हवे Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. बे मास पोसनी. पूनमे पूरा थाय छे. माटे ज्यां चोमासुं कर्यु होय त्यां माघविदि एकमथी वस्त्र ग्रहण करवा. . वळी त्यांज स्थळांतरे लख्युं छे के चंद्रमासनो दाखलो ते ए के श्रावण विदि १ थी श्रावण मुदि १५ सूधी एक मास थाय. . वळी एक हुंडीमां “दिवस, पोसह, तथा पक्ष व्यतिक्रम्यो" ए वाक्य ऊपर लख्युं छे के दिवस ते दिन, पोसह ते आठम चौदशनो उपवास करवो, अने पक्ष ते अर्धमास." ए हुंडी पण त. पाशवा लायक छे. हमणाना आचार्योए पण आगमना अभिप्राये पाखी पूनमनीज मानी छे. जुओ ठाणाप्रकरणनी वृत्तिमां कां छे के “काळिकाचार्य कारणे करीने चोथनी पजूसणा चलावी अने समस्तसंघे ते मान्य करी. तेना लीधे पाखी पण चौदशनी आचराइ. नहि तो आगममां तो पूनमनी छे." हवे कोइ कहेशे के जे वेलाए कालिकाचार्ये पांचमथी चोथनी पर्युषणा करी ते वेलाएज पूनमथी चौदशे पाखी थइ छे. तेने ए उत्तर छ के ए वात एम नथी. कारण के पर्युषणाकल्पमां कडं छ के “आर्य काळिकाचार्ये कारणिया चोथ चलावी, (तेथी) तेज बधा साधुओमां ख्याति पामी." एम पर्युषणा बाबतज इहां चर्चा छे. बाकी पांखीनी कंई पण वात नथी. वळी ठाणाप्रकरणना टीकाकारे पण एमज कयुं छे के “तेना लीधे पांखी चौदशनी आचराइ पण एम नथी कह्यु के “कालिकाचार्ये पांखी पण चौदशनी आणी." वळी लोकमां पण पक्षनुं अंत पूनमेज थाय छे. कारण के एक काव्यमां कयुं छे के "हे कांता, तुं पक्षना अंते खुल्ली अगासीपर सूइश मा. केमके नहि तो कदाच तारा मनोहर, गोळ, Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १८३ ) अने पूर्ण मुखचंद्रने आमतेम भटकतो भूखेलो राहु राते ग्रास करी जशे. माटे तारे घरना अंदर अंधारामां एकांते शय्या करवी. " विचार ११३ मो. ( चोमासा बाबत शंका समाधान. ) प्रश्नः - कल्पभाष्यनी सामान्य तथा विशेषचूर्णिमां त्रीजा उद्देशमां कह्युं छे के "जो चीखल कायम होय, अथवा वर्षाद पड्या करतो होय तो ते कारणे मागशर विदि दशम सूधी पण साधुओ एक क्षेत्र स्थिर रहे छे. पण ते कारण नहि होय तो तो कार्तिकी पूनमेज नीकलबुं." आ ऊपरथी चोमासीपडिकमणुं चौदशनुं केम नहि आवे ? उत्तरः- एज चूर्णिकारोए ए पाठ पछी तरतज पांचमी तथा सातमी गाथामां, तथा पहेला उद्देशामां पूनमनुंज चोमासी पडिकमणुं कहुं छे. तेना दाखला : पांचमी गाथामा ए वात छे के (भाद्रवा सुदि पांचम पछी ) मुनिनो स्थिरवास जघन्यपदे सित्तेर दहाडा, मध्यमपदे असी, ने के एकसोदश दिन, अने मागसर आवतां पण दृष्टि वरस्याज करती होय तो उत्कृष्टुं एकसोवीस दिन पण थाय छे. आ प्रसंगे सामान्यचूर्णिमां सित्तेर दिन बाबत खुलासों क रतां एम लख्युं छे जे पचास दहाडे पजूसण करी कार्त्तिक पूनमे पकिमी बीजे दिवसे विहार करतां सित्तेर दिवस थाय छे. विशेषचूर्णिमां वधु खुलासो कर्यो छे जे पचाश दहाडा हींडता रही मळेला क्षेत्रमां भादरवा सुदि पांचमे पजोसण करी कार्त्ति - की पूनमे पकिमीने वीजे दिने विहार करतां मित्तेर दहाडा थया. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४ ) शतपदी भाषांतर. " सातमी गाथानी व्याख्यामां सामान्यचूर्णिमां एम लख्युं छे जे " जो पगे विहार थइ शके तेम होय तो मागसरनी पडवेनाज नीकलवं. अने विशेषचूर्णिमां वळी ते साथ चार मास पूरा थतां " एटलुं वधु लख्युं छे. बळी पहेला उद्देशानी सामान्य तथा विशेष बन्ने चूर्णिमां लख्युं छे जे ज्यां चोमासुं कर्यु होय त्यां व्याघात न होय तो चोमासुं पूरुं थतां मामसरनी पडवेनाज नीकलबुं अने बाहेर हीडीने पारणं करवुं. अने व्याघात होय तो चोमासुं पूरुं थया अगाऊ पण, अथवा वीत्या केडे पण नीकली शकाय. ए रीते ए छ ग्रंथनी हुंडीओ तथा गया विचारमां चोमासा बाबत लखेली आठ हुंडीओमां चोमासी पडिकमणुं पूनमनुंज कहेल छे. माटे कल्पचूर्णिना त्रीजा उद्देशामां लखेल वातनी व्याख्या पण बीजी हुंडीओना अनुसारेज करवी घंटे के कारण के सर्वे आगमग्रंथोनी परस्पर विसंवाद नहि आवे तेम व्याख्या करवी जोइये, त्यारे तेज ग्रंथनी ऊपर लखेल छ हुंडी आथी विरुद्ध व्याया केम करी शकाय ते माटे "कार्तिकी पूनमेज नीकलकुं" एवाक्यनो अर्थ एम करो के "कार्तिकी पूनमना अनंतरज नीकलवं." वळी तमे जो "कार्तिकी पूनमेज नीकलं" ए वचननी युक्ति लगावी चौदशनुं पडिकमणुं करवुं ठेरावशो तो वीजा वळी एम ठेरावशे के पर्युषणाकल्पनी नियुक्तियां कां छे जे " कारणयोगे साधु वगर पडिकमे पण विहार करे" तेथी पूनमनो पण वगर पडिकमेज विहार करवो अने बाहेर आवी पडिकमणुं कर. तेमने शी रीते उत्तर वालशो ? * e< Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. विचार ११४ मो. ( सर्व साधुओने वांदणां दइ शकाय . ) प्रश्नः - सर्व साधुओ भणी वांदणा कां देवरावो छो? (कारण के वांदणां तो आचार्यादिकनेज देवाय. उत्तरः- सिद्धांतमां साधुने वांदवाना पण अक्षर देखाय छे. तेना दाखला. ( १८५ ) आवश्यकचूर्णिमां "कृतिकर्म (वंदन) कोने कर" ए प्रश्नना उत्तरमां " श्रमणने वांदवुं" एम कही तेनो विशेष खुलासा करतां लख्युं छे के मेधावी पुरुषे मेधावी एटले मर्यादाथी चालनार अने विज्ञानवंत, तथा सम्यक् रीते पापथी निवर्त्तेला, ज्ञानदर्शनचारित्रमां उजमाल, समितिगुप्ति साचवनार, अने असंयमने धिक्कारनार एवा श्रमण - साधुने वांदवुं. बाकी जे उक्तगुणोथी रहित देखाता निवश्रमणो जेवा के आजीविक तापस, परिव्राजक, तद्वर्णिक, तथा बोटिक ए वधा श्रमणशब्देज ओलखाय छे, छतां तेमने नहि वांदवा. तथा जे बळी जिनशासनमा रहेला पांच पासत्यादिक छे ते पण नहि वांदवा. ए रीते मेधावीए मेधावी श्र मण वांदवा. अने ते ऊपर जे चौभंगी थाय तेमां पण एज भांगो सफळ छे. शेष भांगामां फळनी भजना छे. , एवी रीते चूर्णिमां योग्यायोग्यनो विभाग पाडेल छे. पण एम विभाग नथी पाडेल के सामान्ययतिने वर्जीने आचार्यादिकनेज वांदणां देवां 44 वळी स्थळांतरे त्यांज लख्युं छे के “ प्राहूणा थइ आवेलाने वांदणां देवां तेनी विधि ए छे के जो ते संभोगी होय तो पोताना आचार्यने (फक्त) पूछीनेज वांदवुं. अने असंभोगी होय तो पोताना आचार्यने वांदी संदिसावीने पछी तेने वांदबुं." इहां पण ૨૪ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) शतपदी भाषांतर. सामान्यपणे पाहूणाने वांदणा कह्या छे. ___ "सर्व साध्वीओए साधुओने कृतिकर्म करवं. केमके सर्व जि. नोना तीर्थमा पुरुष प्रधान गणाय छे.'' (पंचकल्प) कृतिकर्म बे प्रकार- थाय छे, एक अभ्युत्थान तथा बीजूं वंदन. ए बन्ने प्रकारनुं कृतिकर्म साधुए यथायोग्यपणे कर. तथा साध्वीओए आजना दीक्षित साधुने पण कृतिकर्म करवू."(नि.चू.) "साधु तथा साध्वीओए पोतामां जे रत्नाधिक होय तेने कृ. तिकर्म कर, कल्पे.'' (वृहत्कल्प.) "संयमश्रेणिनी मांहे जे रहेला होय तेमने कृतिकर्म करवू, बाकी श्रेणि बाहेर रहेलाने नहि करवं. त्यां पासत्थो, उसनो, कुशीलो, तथा गृहस्थ ए चार नियमा श्रेणि बहार समजवा." (हत्कल्पभाष्य.) “सो वर्षनी दीक्षित आर्याए आजना दीक्षित साधुने अभिगमन, वंदन, तथा नमन करवू. इहां वंदन ते द्वादशावर्त्तवंदन वगेरा लेवू." (उपदेशमाळा तथा तेनी टीका.) (चरितानुवादना दारवला.) चरितानुवादे पण सर्वयतिओने वांदणादेवाना दाखला पुष्कल छे. ___आवश्यकचूर्णिमां लख्युं छे के नेमिनाथ समोसरतां अढारे हजार साधुओने वांदवानो इरादो राखी वासुदेव पूछवा लाग्यो के हे स्वामिन् , हुं साधुओने कये वांदणे वांदूं? भगवान् बोल्या के शुं तुं एम पूछे छे के द्रव्यवंदनथी वांदु के भाववंदनथी ? त्यारे वासुदेव बोल्या के जेनावडे तमे वंदाओ ते हुं पूछ छ. भगवान् बोल्या के ते तो भाववंदन छे. ते सांभळी वासुदेवे सर्व साधुओ द्वादशावर्त्तवांदणे वांद्या. ___ वळी एज चूर्णिमां ढडरश्रावकनी वातमां पण सर्व साधुना वांदणा कहेला छे. तथा शीतळाचार्ये पाहूणा तरीके आवेल चारे Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ( १८७) भाणेजाने वांदणा कर्या छे. (शंका समाधान.) कोइ बोलशे के आवश्यकनियुक्तिमां लख्युं छे जे "आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, तथा गणावच्छेदकने वांदणा देवा." माटे ए पांचनेज वांदणा दइ शकाय. तेने ए उत्तर छे के ए गाथा कंइ सामान्यपणे वांदवा योग्य एटलाज छे एवो नियम पाडवा नथी, किंतु आचार्यादिक पांच जो अल्पपर्यायवाला होय तोपण तेओ वांदवा योग्य छ एम बताववा अर्थे रहेली छे. का. रण के ए गाथा ऊपर चूर्णिकार तथा टीकाकार व्याख्या चलावतां लखे छे के ए आचार्यादिक पांच अवमरानिक होय एटले के पोताथी हीनपर्यायवाला होय तोपण तेमने वांदवा. ___ माटे ऊपरना अनेक पुरावाथी सिद्ध थाय छे के सर्व साधुओने पण द्वादशावर्त्तवांदणा आपवा. विचार ११५ मो. ( बीजं वांदणुं पादपतितज देवू. ) वांदणामां बीजं वांदणुं पादपतित रहीनेज देवु. तेना पुरावा . नीचे मुजब छे. ___“पेलुं वांदणुं दइ त्यांज ऊभी अर्धी काया नमावीने वांदणा सूत्र उच्चरवं. मात्र इहां एटलो विशेष छे के “आवस्सियाए" ए पद नाहि बोलतां "खामेमि खमासमणो" इसादि सूत्र पादपतित रहीनेज बोलवा. . (पडावश्यकत्ति.) .. "एम वांदीने ऊठी बे हाथे रजोहरण राखी अर्धी काया नमावीने पोताना दोष आलोवे." (आवश्यक नियुक्ति.) "परम विनयी त्रिकरण शुद्ध कृतिकर्म करीने वांदी ऊठी Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८८) शतपदी भाषांतर. 'ने बे हाथे रजोहरण राखी अर्धी काया नमावी जे रत्नाधिक होय ते संयत भाषाए जेम गुरु सांभळे तेम, वधते संवेगे, मायामद छोडीने पोतानी विशुद्विना निमित्ते पूर्वचिंतित दोष आलोवे छे. (पांखीसूत्र टीका.) ए रीते विनय सांचवी ऊठीने जे रत्नाधिक होय ते बे हाथे रजोहरण लइ काया नमावेल राखी जेम गुरु सांभळे तेम स्पष्टपणे संयत भाषाए पूर्व रचित दोष आलोवे. (आव-चूणि.) द्वादशावर्त कृतिकर्म करी पादपतित रह्यो थको मस्तके अं. जलि थापी वीनवे. (जीतकल्प लघुचूर्णि.) विचार ११६ मो. ( स्त्रीओए ऊभा रहीनेज वांदवू. ) प्रश्नः-साध्वी तथा श्राविकाओ ऊभा रही केम वांदे छे.? उत्तरः-सिद्धांतमां साध्वी तथा श्राविकाओने ऊभा रही. नेज वांदवानुं लखेल छे. तेना पुरावा लखीये छीये. . निशीथचूर्णिमां कडं छे के ज्यां साध्वीओ साधुने वांदणा आपे त्यां बधी ऊभी रहीनेज आवर्त करे, पण जमीनपर राखेला रजोहरण ऊपर माथु नहि पाडे. केटलाक आचार्य कहे छे के उभी रही थकीज रजोहरणमां माथु नमाने. (निशीथचूर्णि.) निरयावलीमां काळीदेवीए तथा भगवती सूत्रमा मृगावती देवी, तथा देवानंदा ब्राह्मणीए पण वीर प्रभुनी सामे परिवार सहित ऊभा रहीनेज पर्युपासना करेली देखाय छे.अने देवानंदाना अधिकारे टीकामां पण एवोज अर्थ करेल छे के " ऊभा थका एटले बेशवा वगर ऊभा थका." Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. (१८१ ) विचार ११७ मो. (अठाइ बाबत.) प्रश्नः-उपदेशमाळामां कडं छे जे “संवच्छरी, चोमासा, तथा अठाइ तिथिओमां विशेष आदरथी जिनपूजादि धर्मकरणी करवी." एम त्यां अठाइनी तिथिओ जूदी लीधी छे, छतां तमे आसु अने चैत्रनी शाश्वती अठाइयो केम नथी मानता.? ___ उत्तरः-ए अठाइयो सूत्रमा शाश्वतीपणे तो दूर रही पण नाम मात्रे पण नथी देखाती; माटे केम मानीए वळी उपदेशमाळानी टीकामां पण एगाथानो एवो अर्थ करेल छे के "अष्टाह्निका एटले चैत्रादिकनी यात्राओ तथा तिथि ओ ते चौदश वगेरा" एम टीकाकारे पण अष्टाह्निका एटले चैत्रादिकनी यात्राओ एटलुंन कह्यु छ पण आठमथी मांडीने पूनम सुधी एम नथी कह्य तथा आसुनी अठाइनुं तो नामज नथी लीधुं. अने जे चैत्रादिकनी यात्राओ कही ते ए कारणे के लौकिक तथा लोकोत्तरमा चैत्र अने वैशाखमांज यात्राओ प्रवर्ते छे. वळी शाश्वती अठाइयो तो आगममां चारज कही छे. तेनो पुरावो. ___ जीवाभिगममा लख्युं छे जे “ते सिद्धायतनोमां घणा भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, तथा वैमानिक देवो चोमासानी पडवेना दिवसोमां तथा संवछरीमां तथा बीजा अनेक जिनकल्याणिक वगेरा कार्योमां एकठा मळी आनंदथी रमता थका अठाइ रूप महामहिमाओ करता रही मुखचेनथी विचरे छे." आ रीते केटलाक विषम विचारोना प्रश्नोत्तरनी पद्धतिरूप शतपदिका नामे ग्रंथ पूर्ण थयो. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतपदी भाषांतर. ग्रंथ बनवानो काल. शरुआतमां श्री आर्यरक्षितसूरिना शिष्य श्री जयसिंहमूरि तेमना शिष्य श्री धर्मघोषसूरिए विक्रम सं. १२६३ ना वर्षे प्राकृत शतपदी रची. तेने बहु कठिन जाणी तेमनाज अंतवासी अने तेमनेज पाटे बेठेला महेंद्रसिंहरिए विक्रम सं. १२९४ ना वर्षे तेज ग्रंथमां केटलीक वधगट तथा सुधारोवधारो करी तथा केटलाक अधिक प्रश्नोत्तर दाखल करी सुगमपणे समजवा सारुं कांइक विस्तार करीने आ शतपदी रची. प्रार्थना. ( १९० ) (१) आ ग्रंथ भणावनार, भणनार, वांचनार तथा सांभळनारने कल्याण थाओ. (२) चतुर्विधसंघने कल्याण रहो. (३) भरत क्षेत्रमां ज्यां लगी वीरजिननुं शासन विजयवंत रहे त्यां लगी आ ग्रंथ पण पंडितोथी वंचातो रहो. ग्रंथमान. आ शतपदीनो असल ग्रंथ बरोबर ५३४२ श्लोकनो छे एम गणतरी करवामां आवी छे. बृहत् शतपदीनुं साररूप भाषांतर JAVA सहि. अधिकार एटले बेशवा समाप्त. OMG TO US ON TRATANE Page #211 --------------------------------------------------------------------------  Page #212 --------------------------------------------------------------------------  Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९३) लघुशतपदी. लघुशतपदी. (प्रस्तावना.) परमार्हत कुमारपाळ राजाए नमेला, कळिकाल सर्वज्ञ, प्रभु, श्री हेमाचार्य अंचळगच्छने विधिपक्ष नाम आप्यु. वळी सिद्धांतपणीत समाचारी अने शुद्ध तपक्रिया देखी ए गच्छने चक्रेश्वरी नामे शासन देवी सान्निध्य करे छे तेथी ते अनेक शाखाए वधे छे. ए अंचळगच्छना नायक प्रभु श्री धर्मघोषमूरिए बावनसो श्लोक प्रमाणनो वृहत् शतपदी नामे ग्रंथ (प्राकृतमा) रच्यो छे. तेमां एकसो वीश प्रश्नोत्तरना विचार छे. ते ग्रंथमाथी नीचे लखेला केटलाक विशेष उपयोगी विचारो आ लघु शंतपदीमां लीधेला छे. विचारो. (१) परिकरवालीज प्रतिमा वांदवी एम एकांत नथी.(पृ. १) (२) प्रतिमामां वस्त्रांचळ करबुं घटित छे..... .... (वृ. (३) प्रतिष्टा यतिए नहि पण श्रावके करवी. .... (वृ. ३) (४) दीपपूजा न करवी. .... .... (५) अक्षतपूजा थइ शके छे. .... (६) फळपूजा न करवी. ..... (७) पत्रपूजा थइ शके छे. .... (८) बळि नहि चडाववी. .. ... (९) सतरभेदी पूजाज करवी. ... (१०) पुस्तकपूजा थइ शके छे. .... :: .Geetee Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९४ ) लघुशतपदी. ( ११ ) संध्याकाळथी आगळ पाछळ पण पूजा थइ शके. (बृ. ६४) ( १२ ) आरती के मंगळ दीवो न करवो. (१३) माळोद्घाटन न करवुं. (१४) त्रण थुइथीज चैस साधुए वांदवा. ( १५ ) कृत्रिम थुइ नहि कवी. (बृ. १६) (१६) श्रावके चैत्यवंदन देवता माफक करवुं .... (बृ. ९२) (बृ. १५) .... .... . ( १७ ) शक्रस्तवना पदोनो विचार... (१८) साधुए पर्वदिनेज चैत्यमां जनुं. ( १९ ) साधुना प्रतिक्रमणनो विचार. ( २० ) साधुनुं सम्यक्त्व. (२१) श्रावके स्थापनाचार्य न करवो. - ( २२ ) नोकारमां होइमंगलं कहेवु. ( २३ ) साधुने एक खमासमणेज वांदर्बु. (२४) श्रावके वस्त्रांचळ राखनुं. ( २५ ) वे संध्यामांज सामायिक करवुं. (२६) श्रावना षठावश्यक दंडकनी अवचूरि. (२७) श्रावकने आलोचना दइ शकाय. ( २८ ) श्रावक छजीवणी सूधी भणे. ( २९ ) श्रावक आवश्यक नियुक्ति तथा आलावा ( ३० ) श्रावक आवश्यक चूर्णि वगेरा भणे. (३१) वांदा सर्व साधुने दइ शकाय . (३२) बीजुं वांदणुं पादपतित देवु. ( ३३ ) स्त्रीओए ऊभे ऊभे वांदवुं. (३४) पोसह पर्वदिनेज करवो अने सर्वपौषध न करवो. (बृ. ३६) (३५) चौपवनो विचार. (बृ. ११५) (बृ. ११६) ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... .... ... ... ... ... 800 ... ... ... ... (बृ. ३०) (बृ. २१) (बृ. १०० ) (बृ. २२) (बृ. २०) ... ... ... ... (बृ. ३९) (बृ. १११) (बृ. ९३) (बृ. ८५) भणे. (बृ. ८७) ... ... ... (बृ. ९९ ) (वृ. १४) (वृ. ८८) (बृ. ११४) Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( ३६ ) उदयिकतिथि नहि लेवी. (३७) संवच्छरी आषाढी पूनमे नहि पण भादरवेज करवी (वृ ८१) ( ३८ ) अधिक मासे वीसापजूसण करवी. ( ३९ ) पांखी पूनमनी करवी. (बृ. ८३) (बृ. ११२) (बृ. ७२) (बृ. २४) ( ४२ ) मुनिए पग न पखालवा. (बृ. ६८) (४३) कादवथी खरडेला पग पादलेखनीथी शाफ करवा. ( वृ. ६१) ( ४४ ) पात्रानो विचार. (बृ. ३२-५५) ( ४० ) भिक्षाए जतांज उपयोग करवो. ( ४१ ) बहिर्भूमिए गमे त्यारे जइ शकाय छे. ... 4. ... .... .... ( ४५ ) मलंब (फळ) लेवानो विचार. ( ४६ ) कारणे ओसडनी संनिधि करी शकाय छे. ००० ( ४७ ) कल्याणिकतप नहि कर. ( ४८ ) उपधान के मालारोपण न करवुं. ( ४९ ) अशठाचरणानो विचार. ... .... .... ... 10.3 .... ... ... ( ५० ) जिनाज्ञा प्रमाण करवी. (५१) आसु चैत्रनी अठाइ न करवी. (५२) पोताना गच्छनो संप्रदाय. POK ( आ बावन विचारोमां ४५ विचारो तो वृहत शतपदीनाज लीला छे. बाकी ७ विचार नवा छे ते आ प्रमाणे:-) शतरभेदी पूजा विचार. .... पुस्तक पूजा विचार. आरती मंगळ दीवा विचार. माळोद्घाटन विचार. ... ... ... (बृ. ९४ - ९५ ) (बृ. ५९ ) (बृ. ३७) (बृ. ९६) (बृ. १०२) (बृ. १०१ ) (बृ. ११७) (बृ. १०६) ... ... ... .... २०० ... ... ..... ... ... ( १९५ ) .. ..... ...go .... (९) (१०) (१२) (१३) Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६ ) साधु प्रतिक्रमण विचार..... .... (१९) (३५) चउपर्वी विचार. औदयिकतिथि विचार... (३६) * ( हवे ए बावन विचारोमां जे जे बिना वृहत् शतपदी मां आवेली बिनाथी अधिक देखवामां आवी छे ते ते इहां लखवा - मां आवशे.) ..... लघुशतपदी. ... .... ... " .... .... ... विचार १ लो. (१) साहूयालकम मोटी वसहीमां सपरिकर प्रतिमा हती. ( २ ) " सबलोए अरिहंत चेहयाणं" ए वचनथी सपरिकर अपरिकर बने प्रतिमा वांदवी. (३) प्रभावतीए गोशीर्ष चंदननी प्रतिमा वांदी ते अपरिकरज हती. Up+3+4 विचार १२ मो. .... विचार ४ थो. ( १ ) अंधारामां अजवाळा सारुं दीवो करवो. अने अंधारुं न होय त्यारे शोभा के मंगळार्थे दीवो करवानो निषेध नथी. विचार ९ मो. (१) अष्टप्रकारी पूजा न मानवी केमके सूर्याभ तथा द्रौपदीना अधिकारे ते नथी कही. किंतु त्यां सत्तरभेदीज कही छे माटे तेज करवी, (१) आरती के मंगळदीवो नहि करवो. केमके सिद्धांतमां पूजाना सविस्तर वर्णनमां पण ते चालेल नथी. Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघु शतपदी. ( १९७ ) (२) वळी जे " मेरुनी चूळिका ऊपर पांचे वर्णना फूलोथी अंजळि भरी लाख दीवानी आरती इंद्रे करी " एवो आलावो बोलाय छे ते सिद्धांतमां क्यांए देखा तो नथी माटे मानी शकाय नाही. (३) खरतरगच्छवाळा पण मंगळदीवाना अवसरे एवं बोले छे के " जो के जिनना जन्ममहोत्सवमां मेरु ऊपर इंद्रे ए दीवो करेल नथी, तोपण ए मांगळिक छे मादे श्रावको करे कारण के ए अशठाचरणा छे. " (४) ए ऊपरथी जणाय छे के चैयवासिओएज पोताना निर्वाह वगेरा माटे बळि नैवेद्य, तथा आरती वगेरा सर्वे चलाव्या छे. विचार १३ मो. (१) जिनना अंगथी ऊतारेल माळा श्रावके पोताना कंठे पहेरतां तो घणा दोष लागे छे.. (१) देवद्रव्यनो उपभोग थाय छे. (२) जिनपर चड्याथी अमूल्य थएला फूलोनुं मूल्य कराय छे. (३) कंठथी खरता फूलो पगथी डबातां आशातना थाय छे. (४) माळा वेचाती लीधी एटले नकडुं देतां पुण्य पण नथी थतुं. ( २ ) अगर जो देवद्रव्य वधारवानोज आशय होय तो एम करवुं घटे छे के माळी पाथी माळा लइ कळशमां धरी " आ माळा भगवानने चडशे माटे जे वधु मूल्य आपे तेने मळशे" एम बोलतां श्रावको पोतानी शक्ति प्रमाणे द्रव्य आपीने माळा लइ महोत्सवपूर्वक देवना कंठे चडावे तो पूर्वोक्त दोष न लागे, पुण्य थाय अने देवद्रव्यनी पण वृद्धि थाय. *+91€ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९८ ) लघु शतपदी. विचार १९ मो. (१) साधुना पडिकमणामां आदिमां चैत्यवंदन तथा अंते नित्ये क्षेत्रदेवतादिकना काउसग करवा एम आवश्यचूर्णि तथा वीजा आगमोमां कहेल देखातुं नथी माटे तेम नथी करता. बाकी शेषविधि जेम लखी छे तेमज कराय छे. (२) व्यवहारचूर्णिमां लख्युं छे जे " जो चैत्यगृहमा रहेला होय तो सांजे आवश्यकथी पहेलां अने सवारमां आवश्यक कर्याी पछी जो चैत्य न वांदे तो प्रायश्चित्त आवे" इहां चैत्यमां रहेला माटेज चैत्यवंदना कही छे पण सर्व स्थळना माटे नथी कही. वळी आवश्यकचूर्णिमां पण एम कधुं छे जे "जो चैस होय तो वांदे. " (३) आवश्यक निर्युक्तिमा पडिकमणाने अंते सिद्धस्तुति पछी वांदणाज का छे. अने चूर्णिमां पण कहुं छे जे त्रीजी थुइ कही एटले पछी पडिलेहणा करवी. (४) वळी मुनिए अंगुष्ठ, मुष्टि, तथा गंठी वगेरा संकेतपचखाण विशेषे कर. केमके आवश्यकचूर्णिमां कां छे के सर्व संकेतपचखाण मुनिए पण करवा. विचार २० मो. आ प्रश्नोत्तर " साधु सम्यक्त्व क्यारे अंगीकार करे छे" ए बाबतपर छे ते मोटी शतपदीमां श्रावकना सम्यक्तना विचारमां अंतर्भूत लख्यो छे. 麻 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९९ ) लघुशतपदी. विचार २१ मो. स्थापनाचार्य बाबत ए तत्व छे के सिद्धांतमां स्थापनाचार्य तथा भावाचार्य बने प्रगटपणे कहेला छे. माटे जेवो योग मळे ते प्रमाणे गुरुनी सामग्रीमां सर्वे क्रियाओ करवी. (यां भावाचार्य ते ए के मनमां गुरुनो भाव आणवो.) वळी जो मनमां बेशाडेल गुरुभावरूप आचार्यने सर्वथा अस्वीकार करशो तो तमारा अभिप्राये पंचपरमेष्टिओनी पण सामे रहेंली पांच मूर्त्तिओ शिवाय नोकार गणवुं पण निरालंबन थइ पडशे. माटे जो भावथी अरिहंतादिकनी थापना कबूल राखीये तो ग्रामांरे के खलाखेतर वगेरा स्थळे पण कराती क्रिया सफळ थायछे. बळी साक्षाद्गुरु के स्थापनाचार्य आगल क्रिया करतां वच्चे अग्नि वगेराथी छेदणी थाय छे. पण भावस्थापनाचार्य सांखे क्रिया करता ते पण नथी थती. विचार २२ मो. ए बहु चिंतनीय वात छे के केटलाक सुविहितो पण नोकारनिर्युक्तिमा छ वार " होइ मंगलं " एवो उच्चार करी पाछा "हवइ मंगलं "ज लखता रहे छे. विचार २४ मो. कोइ कदाच एम कहे छे के श्रावकने रजोहरण तथा मुखव स्त्रिकारूप संपूर्ण लिंग न थाओ. पण एकली मोपती होय तो. शुं छे? तेणे जाणवुं घटे छे के रजोहरण विनानी एकली मोपतीथी Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२००) लघुशतपदी. तो कंइ पग के भूमि प्रमार्जी शकाय नहि. अने तेम न थतां संपूर्ण संयम रहे नहि. ए कारणेज अल्प उपधिवाळा जिनकल्पिने पण ऊपरनी काया प्रमार्जवा तथा मुख ढांकवा अर्थे मोपती अने नीचेनी काया प्रमार्जवा माटे रजोहरण राख कहेल छे. इहां कोइ कहेशे के दारुदंड एटले पादपोंछणुं एटले के हमणा जेने चळवळु कहे छे तेनावडे संपूर्ण संयम रही शकशे. तेने ए उत्तर छे के ए चळवळु तो थोडा वखतथीज अने थोडाक गच्छमांज मवयु छे. केमके मळधारियच्छ, ऊकेशमच्छ, संडेरगच्छ तथा खर• सर वगेरा घणा महोटा गच्छोमा चळवळु नथी मानता. अने तेओ कहे छे के "मोपती सहित चळवळो राखतां रजोहरणनी नकल थयाथी संपूर्ण साधुलिंगनी विडंबना थाय छे माटे तेम करवू श्रा. वकने अत्यंत अयुक्त छे" ए ऊपर तो केटलाक पोताने "चळवळाकंदकुद्दाल" एवं विरुद बोलावे छे. __वळी जे केटलाके चळवळु स्वीकारेल छे ते पण फक्त श्रावकोने माटेज स्वीकार्य छ, पण श्राविकाओने स्वीकार्य नथी; त्यारे शुं श्राविकाओने प्रमार्जना नथी करवी के ? कदाच श्राविकाओने पण चळवळ ठेरावशो तो छेदग्रंथोमां जे दोषो माटे साध्वीओने रजोहरणनी गोळ दांडी राखवी निषे. धी छे ते दोषो लागशे. वळी सं. १२९५ वर्षे प्रभु महेंद्रसिंहमूरिए शतपदी ग्रंथ कों तेथी ते काले जो चळवळु प्रवर्त्ततुं होत तो तेनी त्यां चर्चा लखवामां आवत, तथा ते समयना बीजा ग्रंथोमां पण तेनी चर्चा थात, पण ते तो क्या देखाती नथी. माटे. जणाय छे के चळवळु थोडा काळथीज चाल्युं छे. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( २०१ ) अने शतपदीमां जे चूर्णिना वचनथी श्रावकने औपग्रहिक रजोहरण ठेराव्युं छे ते चळवळु नहि पण मोरपीछनुं दंडासण संभवे छे. केमके निशीथसूत्र तथा तेना भाष्यमां साधुने दारुदंडमय पादपोछणुंज राखवानी मनाइ पाडी छे. माटे चळवळु साधु पासे होवुं घटे नहि. अने मुख्य रजोहरण तो मुनि अवग्रहथी बाहेर ' करे नहि. माटे श्रावक जे साधु पासेथी रजोहरण मागे ते मोरपीछनुं समजबुं. कारण के ओघनियुक्ति वगेरामां साधु ने मोरपीछ राखवी पण कहेल छे. अगर एम न होय तो कहो कया गच्छमां साधुओ चळवळां राखे छे, अने धर्मध्यान वेळा श्रावकोने आपे छे, ते जणावो. वळी प्रश्नव्याकरणमां जे कधुं छे के अदत्त रजोहरण, शय्या, चलोटा, मोपती तथा पादपोंछणा मुनिए नहि लेवा. त्यां वळी वृद्धो एवो विशेष जणावे छे जे गीतार्थ श्रावकना घरे साधुनो वेष पूजाय छे, तेथी तेना घरे साधुना उपकरण संभवे छे. वळी एज प्रश्नव्याकरणमां “नवि पूयणाए " पदनी टीकामां लख्युं छे के पूजना करीने एटले मोती के नोकरवाळी दइने आहार न लेवो. ते टीकानुं वचन वार्त्तमानिक आचार्यनुं छे. ( एटले के ते टीका आधुनिक आचार्य अभयदेवसूरिनी करेल छे माटे प्रमाण नहि थाय ' . ) महानिशीथमां पण कां छे के गृहस्थ यतिलिंगने पूजे, पण धारे नहि. १ आ वाक्यार्थ पर्यायमां स्पष्ट लखेल छे. ૨૬ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०३) लघुशतपदी. विचार ३४ मो. ___आवश्यकचूर्णिमा जे देशपोसह वर्णव्यो छे तेनो भावार्थ ए छे के आगममां थोडा पण धर्मकृत्यमां पौषध शब्द वपराइ शके छे. तेथी आहारादिक बाबत जे थोडी पण विरति करे तेने पौषध कही शकाय छे. तेनी विधि चूर्णिमां ए छे के “जे देशपोसह करे ते सामायिक करे के नहि करे अने जे सर्वपौषध करे ते नियमा सामायिक करे." आगल चालतां लख्यु छे के "देशावगासीमां के सामायिकमां रही नोकारसी वगेरा तप कर." एनुं एवं मतलब जणाय छे के देशावगासीयुक्त थइ देशपोसहर्नु तप करवू अने सामायिकयुक्त थइ सर्व पोसहनुं तप करवं. कोइ कहेशे के देशपोसहमां पण सामायिक करे के न करे एम कहेल छे माटे सामायिकयुक्तपणुं पण आवशे तेने ए उत्तर छे के सां पण सामायिक करवू एम छे पण युक्त-पणुं नथी. तेथी करवू तो सांज सवार सामायिक कर्याथी घटी शके छे. जो एम मानीये के सामायिकंयुक्त छतां सर्व तप करी शके तो तो सामायिकमां पण भोजन करवू घटी शकशे. पण तेम तो कोइ मानतुं नथी. माटे देश पौषधमां पण सामायिक छते भोजन करवू घटतुं नथी माटे सामायिक पाळीनेज भोजन करे अने सर्व पौषध तो सामायिकसहितज होय छे तेथी तेमां भोजन नज घटे. ___ कदाच कोइ कहेशे के सामायिकमां तो घरे जमवा जतां घरना काम जोइ धर्म ध्याननो नाश थवा संभव छे तेथी चूर्णिमां कह्यु छ जे पडिलेहणा करी वेशीने भणे गणे, तेणे विचार, घटे छे के एज कारणे पोसहवाळाने पण तेमज करवू घटे छे. अने ते माटे चूर्णिमां पोसहनी विधिमां पण भण, गणकुंज लख्यु छे. Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ . लघुशतपदी. ( २०३) वळी विवेकी श्रावको धर्मस्थानमां वेशी कंइ पण आहार नथी करता. अने सामायिक कर्या बाद सचित्तवस्तुवाळा स्था. नोमां पण नथी जता एवी अनादि व्यवस्था चालती आवी छे. माटे पोसहमा सामायिकवंत छतां आहार करवो मानशो तो साधुना अवग्रहमां रहीने पण पाणी पीतां तथा अप्रमार्जित घरमां जतां आवतां शो दोष गण शकाशे. वळी विचारो के आवश्यकनियुक्तिमा जे वातोने पोसहना अतिचाररूप ठेरावी खुल्ली निषेधेल छे तेज वातो पोसहव्रतरूपे केम कही शकाशे ? कदाच कहेशो के चूर्णिकरि पोतेज देशपोसह तथा सर्वपोसह एम बे प्रकारे पौषध कडं छे, माटे देशपौषध पण व्रतज थशे. तेने ए उत्तर छे के सिद्धांतनी शैली एवी छे के पहेलां बधे ठेकाणे जेटला भेद संभवी शके तेटला प्ररूपी तेमांथी उपयोगी भेदवडे वातनो निर्वाह करे छे. दाखला तरीके “ नमो आयारयाणं" ए पदनी व्याख्या करतां चारे निखेपा बतावी भावाचायेनेज नमाय छे. तेम इहां पण पौषधना संभवता भेद बतावीने सर्वपौषधनेज व्रत मानी तेना अतिचार चूर्णिकारे प्ररूप्या छे. आ मतलबथी योगशास्त्रनी टीकामां पण एवीज व्याख्या करी छे के पौषधवत ते सर्वपोसह जाणवू. कदाच कोइ कहेशे के जेम चोथा व्रतमा स्वदारसंतोषीने त्रण अतिचार अने परदारवर्नकने पांच अतिसार संभवे छे तेम इहां पण सर्वपोसहवाळाने पांचे अतिचार घटाववा अने देशपोसहवालाने चार अथवा कोइ पण नहि घटे एम घटाव, ए पण वात वाजवी नथी. कारण के जे जे व्रतमा जे जे अतिचार नथी संभवता ते चूर्णिकार तथा वृत्तिकार पोतेज निर्णय करी चूक्या ले. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०४ ) लघुशतपदी. माटे तेणे ज्यारे ए बात नथी करी त्यारे जणाय छे के सूत्रमां देशपौषधने व्रत तरीके नथी गण्यं. दि कहेशो के देशपोसहने पण पोसहना दंडक प्रमाणे उचार करवाथी पौषधत्रत थशे पण तेम पण घटतुं नथी कारण के त्या चौदे नियम देशपोसहरूप रहेला छे तेथी श्रावकोने सर्वदा देशपोसह उच्चरवो सिद्ध थशे अने तेम तो कोइ मानतुं नथी. कारण के नियमो जो के देशपोसहरूप छे छतां देशावगासीना दंडकथी उच्चराय छे. तेथी ते दशमात्रतमांज अंतर्भूत थाय छे. अने चूर्णिमां पण देसावगासीना अधिकारे लख्युं छे जे " सर्वे व्रतोना जे प्रमाण राखेला छे ते देशावगा सीमां संकोची शकाय छे." माटे सामायिकसहित जे सर्वपोसह कराय तेज अगीयारमुं व्रत गणवुं. ए आम छतां जेओ पोसहव्रत लइने यथेच्छ खायपीये छे ते महा साहसी जाणवा कारण के पोसहमां भोजननी चिंतना करतां पण अतिचार लागे छे तो खावाथी शुं थशे ते अमे नथी जाणता. " पोसहना पारणे अतिथिसंविभागवत अवश्य ग्रहण करवुं. कारण के चूर्णिमां कहुं छे के “ पोसह पारतां साधुने दीधा वगर पारखं न कल्पे माटे पहेलां साधुओने वोरावी पछी पारखं." विचार ३५ मो. शीळाचार्ये उद्दिष्टाशब्दे कल्याणिकतिथि कही छे. पण सूयगडांगनी चूर्णिमां तथा दशाश्रुतस्कंधनी चूर्णिमां तथा भगवती अने स्थानांगादिकनी वृत्तिमां ते शब्दे अमावास्याज कही छे. (वळी जेओ डाह्या थइ उद्दिष्टाशब्दे सर्वागमप्रसिद्ध अमावास्यारूप मूळ अर्थ छोडी कल्याणिकरूप अर्थ प्ररूपे छे, तेमणे वि Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( २०५ ) चार घटे छे के ज्ञातासूत्रमां भद्रासार्थवाहीना अधिकारे पण चौदश, आठम, पूनम अने उद्दिष्टा एवोज पाठ छे त्यां उद्दिष्टा शब्दे शो अर्थ लेवो. कारण के भद्रासार्थवाही कल्याणिकनुं तो नाम पण जाणती न हती. ) कोइ पूछे के पंचपर्वी कां नथी मानता ? तेने ए उत्तर छे के भगवती तथा स्थानांगादिकनी व्याख्याना भागे चऊपर्वीज प्रतिपादित करेल छे. वळी कल्पसूत्रमां "अमासना दिने पोसह थाप्यं" एम लखेल छे अने पोसह ए पर्वदिननुं अनुष्टान छे माटे अमावास्या स्पष्ट रीते पर्व थइ चूकी. आवश्यकचूर्णिमां पण कधुं छे के " आठम अने पंचदशीनुं नियमा पोसह करवुं . " श्राद्धदिनकृत्यमां पण लख्युं छे के " छ तिथिमांथी आजे कइ तिथि छे ते विचारखुं " तेनी टीकामां छ तिथि ते बे आठम बे चौदश अने पूनम तथा अमावास एम लखी छ. योगशास्त्रवृत्तिमां पण आठम चौदश पूनम अमावासरूप चौपर्वी कही छे. हवे महानिशीथमां त्रिभागे आयुबंध पडवानी युक्ति आपी पंचपर्वी वर्णवी छे पण ते युक्ति बीजा सिद्धांत साथे विरुद्ध पडे छे. कारण के सिद्धांतमां एम कधुं छे के सोपक्रम आयुवाळा पोताना आयुनो त्रीजो भाग वगेरा शेष रहेतां आयु बांधे छे पण is पंचपर्वीमां आयुबंध नथी कह्यो. वळी पंचपर्वी आराधतां सिद्धांतमां अनेक वार कट्टेल पंचदशीरूप मुख्य पर्व तो वेघळोज रही जाय छे. कदाच ते पण आराधवी मानशो तो पंचपवना बदले छप Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) लघुशतपदी. वीं बोलवी पडशे. ____ वळी लोकमां पण रूढिभाषाए पंचपर्वी बोले छे पण सां पण पर्व तो एना ए चारज कह्या छे. कारण के विष्णुपुराणमां कह्यु छे के चौदश, आठम, अमावास ने पूनम ए पर्व जाणवा. एथीज ब्राह्मणो ए चौप-मां अनाध्याय करी देवपूजादि करे छे. विचार ३६ मो. कोइ पूछे के औदायिक तिथि एकांते केम नथी मानता? तेने ए उत्तर छे के तेम मानीये तो सिद्धांत साथे बहु विसंवाद आवे छे. तेनां कारण नीचे मुजब छे. जैनना हिशाबे दर वर्षे छ दिन वधे ने छ घटे ते ए प्रमाणे के आषाढ, भादरवा, कार्तिक, पोस, फागण, अने वैशाख ए छ मासना अंधारा पक्षे अनुक्रमे बीज, चोथ, छठ, आठम, दशम, बारस अने चौदश ए तिथि घटे. अने शेष श्रावणादि छ मासना शुक्लपक्षे अनुक्रमे पडवे, त्रीज, पांचम, सातम, नवम, अग्यारस, तेरस तथा पूनम ए तिथिओ वधे छे. हवे लौकिक हिशाब मानीए तो एक मासमा एक पक्षे सोल दिने पाखी आवे अने बीजा पक्षे चौद दिने आवे. ____वळी ज्यारे चौदशनो क्षय होय त्यारे ते दिने औदयिकी तो तेरस होय अने बीजे दिने औदयिकी पूनम आवे छे माटे औदयिकी चौदश केम थशे? वळी तमारो एवो व्यवहार छे के ज्यारे तिथि बंधे छे त्यारे साह घडीनी तिथि पडती मूकी बीजे दिने अडधी घडीनी तिथि कथूल राखो छो, सारे हवे कोइ वेला एवो योग आवे के पेले Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( २०७) दिने चौदश घडी ५९ नी होय, बीजे दिने पूनम घडी ६०नी होय अने त्रीने दिने पूनम घडी ३नी होय तो औदायिक तिथिना व्यवहारे जेने छठ तप कर होय ते केम करी शकशे? वळी जेओ केवळ पडिकमणा टाणेज वर्त्तती तिथि ले छे तेमने पण केटलोक वांधो पडे छे. - ते माटे उत्तम पक्ष ए छे के सूत्रोक्त तिथिपातने बहुमत करी टीपणाना अनुसारे सात के आठ दिने आठम, अने चौद के पं. दर दिवसे पाखी कराय तो सूत्र पण प्रमाण रहे अने पूर्वोक्त विसंस्थुलता पण नहि आवे. कदाच कोइ कहेशे के एम करतां पण कोइ वेला सातममा आठम, अने तेरसमां चौदश आवी जवाथी विसंस्थुलता रहेज के तेने ए उत्तर छे के सूत्रने प्रमाण करतां अमने टीपणा साथे वि. संस्थुलता आवे तेमां शो दोष छे ? . __ वळी ए अर्थे “आरओ कप्पइ" एटले आगल कल्पे ए युक्ति पण छे. वळी तमो पोते विष्टि तथा दिकशूलादि अन्यदिने गणो को अने आठमना धर्मकृत्य नोमना दिने करो छो. अने तेम छा ओलंबो अपने आपो छो के तमो लग्नादिक कार्य टीपणाथी करो छो अने पर्वतिथिओ तेम नथी करता. ए ओलंभो शा कामनो? विचार ३८ मो. . कोइ बोले के अभिवर्द्धित वर्षे अवस्थान निश्चय वीसदाडे करवो पण पडिकमणुं तो भादरवा सुदि पांचमेज कर. तेणे जाणq घटे छे के जे गृहिज्ञात अवस्थान निश्चय छे तेज मुख्य वृत्तिए Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०८ ) .. . लघुशतपदी. पर्युषणानो अर्थ छे अने प्रतिक्रमणादिक तेना अनुयायि होवाथी ते सायेज थाय छे. तेथीज गीतार्थो बोलता देखाय छे के संबछरी पडिकमणुं कर्यु एटले विहार करवो न कल्पे. वळी पाटणमां मोटी शाळावाळा पण कल्पसूत्र वांची पडिकमणाटाणे बीजी शाळामां पडिकमी त्यां रहे छे. बळी जेओ अॅशीया पजूसण करे के तेनो एवो आशय के के भधिक मास काळनी चूला होवाथी गणतरीमा न लेवो, पण चूर्णिमां खुल्लु लखेल छे के अधिक मासने पण मासमां गणबुं. माटे चूर्णि साथे विरुद्ध बोल्याथी भविष्यमा शुं फळ थशे ते विचारवा लायक वात छे. कदाच एम कहो के गच्छनी रीतिए अमे एम करीये छीये बाकी सूत्रमा तो जेम कहेल के तेमज छे तो हजु तमारी काइक निर्दोषता रही शकशे. ___वळी विचारो के पचास दहाडाने उल्लंघq तो सर्वथा नहिज कल्पे, एथीज काळिकाचार्ये चोथनी पर्युषणा करी पण छठनी न करी त्यारे अॅशी दहाडे पर्युषणा करवी केम घटे.. ___ कदाच कहेशो के हमणा जैनटीपणुं छे नहि तेथी लौकिक टीपणावडे व्यवहार करवो; त्यां ए उत्तर छे के सारे कल्याणको पण लौकिक टीपणाना मेळे कां नथी करता? ___ मारे मतलब ए दीशे छे के जेटलो सिद्धांतना अभिप्राये व्यवहार थइ शके तेटलो तेमज करवो. बाकी ज्यां सर्वथा ते न मळी शके त्यांनी वात जूदी छे पण त्यां पण मूत्रने विशेष बहुमत राखg. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. विचार ३९ मो. कोइ बोलशे के ज्यारे कालिकाचार्ये चोथ करी सारे ते साथज पांखी चौदशनी थापी. पण ते वात तेम नथी कारण के चूर्णिमां पर्युषणाबाबतज बात लखी छे, पण पाखीनी बात लखी नथी. ( २०९ ) गच्छोत्पत्ति प्रकरणमां एम लख्युं छे के सं. ५२३ वर्षे चोथ थइ. त्यारबाद २५७ वर्षे एटले सं. ७८० वर्षे स्वातिमुरिए चौदशनी पांखी करी. पाक्षिकशब्दनो अन्वर्थ पण पूनमनेज लागु पडे छे. केलाएक पाक्षिकचूर्णिमां आठम चौदशनो उपवास करवो लखेल होवाथी ते वचने पांखी चौदशनी स्वीकारे छे. तेमने पूछवानुं छे के जो चौदशना दिने उपवास होवाथी तेने पांखी मानो छो तो शालिवाहन राजाए काळिकाचार्यने एम कां क के चोथनी पर्युषणा करतां मारी अंतेउरने पडवेनुं पक्षोपवासनुं पारणं थशे. माटे भावार्थ ए रहेल छे के आठम, चौदश, ने पूनम ए त्रणे पर्वोमां प्राये उपवास करवो. पण सां आठम के पूनमे उपवास न करे तो प्रायश्चित्त आवे. पण चौदशे नहि करतां प्रायवित्त नहि आवे. केटलाक वळी उद्दिष्टा शब्दने पूनमनुं विशेषण करी एवी व्याख्या करे छे के उद्दिष्ट एटले कहेली पूनमो एटले के चोमासानी पूनमो. पण ए व्याख्या चूर्णि तथा टीका बन्नेथी विरुद्ध होवाथी उवेखवीज घटे छे. बळी व्यवहारवृत्तिकारे " पक्षनुं मध्य आठम अने मासतुं मध्य पाक्षिक ए भाष्यना वाक्यनी व्याख्यामां लख्युं छे के मासनुं मध्य पाक्षिक ते काळी चौदश जाणवी. एवी व्याख्या २७ "" Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१०) लघुशतपदी. करी छे ते तदन अघटित छे केमके खुल्लुं देखाय छे के जेम प. . क्षनुं मध्य आठम तेम मासनुं मध्य पूनमज छे. NBCN विचार ४५ मो. ___ प्रलंब लेवा आगममा निषेष छे खरो पण ते सम्यक् जाणवो जोइये. "त्यां प्रलंब दश प्रकारे छे:-मूळ, कंद, खंध, त्वचा, शाखा, प्रवाळ, पत्र, पुष्प, फळ, अने बीज. ___ए दशेनुं द्रव्यभावथी मासुक शाक लेतां प्रसंग दोष लागे छे ते एम के शाकनी टेव पडी जतां शाक वगर भोजन भावे न. हि अने तेम थतां छेवटे भिन्नाभिन्न के सचित्त शाक पण लेवा मंडाय तथा शाकना माटे बहु रखडवू पडतां एषणा शुद्धि पण काची पडे. वळी मग वगेरानी काची फळी घणीए खातां पण तृप्ति नहि वळे माटे पुरुषना माटे बत्रीश कवळ आहार गणाय छे तेमांनुं एक कवल पण ज्यां लगी मळे अथवा छेवटे उपवास पडे तोये पण छमास पर्यंत तेटला ऊपरज रहेQ वानबी छे, पण प्रलंब लेवो नहि." वळी स्थळांतरे कयुं छे के जेटलुं शुद्ध अन्न स्वग्राममां मळे तेटलं सांथी लेवु ने बाकी जोइतुं शुद्ध अन्न ग्रामांतरथी लावबुं. कदाच शुद्ध अन मळेज नहि तो मिश्र एटले काचरीरूप के पलीधा रूप जेमां कांइक अन्न अने काइक फळो होय ते लेवू." ___ आ रीते आगममा सामान्यपणे सर्वे शाकनो निषेध छतां केटलाक एम बके छे के फळ शाक लेवू साधुने न कल्पे बाकी वडां, पापड, वडी, वाळ तथा चणादिक धान्यशाक लेबु कल्पे ते वृथा बकबकाट छे. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( २११ ) कदाच कशी के धान्यशाकथी फळशाक वधारे स्वादिष्ट छे माटे ते तज, तो अमे एम कहिये छीये के सर्व शाकमां वडांज वधु स्वादिष्ट प्रसिद्ध छे. केमके विवाहादिकमां ते वगर सघळां शाक रद जेवा गणाय छे. माटे वडा विशेषे परिहरवा जोइये. वळी सुस्वादुपणानो दोष लेतां तो दूधपाक, इक्षुरस, शाकर, खांड तथा लाडु वगेराने पण अकल्पनीय कही शकाशे. कदाच कदेशो के आचीर्ण शाक लेवानी अनुज्ञा होवाथी धान्यशाक कल्पे तो त्यां जाणवुं घटे छे के जेम धान्यशाकने शास्त्रमां आचीर्ण गण्युं छे तेम फळशाकने विषे पण आचीर्णता बसावी छे. ए बाबत निशीथ तथा वृहत्कल्पमां आ प्रमाणे छे. " आचीर्ण एटले जैन साधुओ दुर्भिक्षादि कारण विना पण लइ शके ते. जेमके धानमां अडद चणा वगेरा अने फळोमां त्रिफळा वगेरा जे आचीर्ण छे ते लेवु. अथवा मिश्रपणे रांधेलं नियमा आचीर्ण छे. अने एकलां रांधेल मलंबमां वालुक वगेरा फळशाक आचार्य-परंपराए आचीर्ण छे अने वज्रकंद सूरणकंदादिक अनाचीर्ण छे. कोइ बोली ऊशे के सर्वे प्रलंब जिन तथा गणधरे वर्जेला छे माटे लोकोत्तरधर्म गुरूने अनुसरी चालवाथी थतो होवाथी बीजाए पण ते वर्जवा जाइये माटे फळशाक आचीर्ण शी रीते थाय ? ते जाणं जोइये के ए रीते त्यारे धान्यशाक लेवा पण निषेधवाज पडशे केमके मलंगमां ते पण आवी जाय छे. वळी हरताल, मणसिल, पीपळी, खजूर वगेरामां पण आचीर्णता अनाचीर्णता रहेल छे. ( माटे लंबमां आचीर्णतानु शुं कहेतुं . ) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१२ ) लघुशतपदी. माटे भावार्थ ए रहेल छे के पूर्वे अगीतार्थादिकने मसंग दोष टालवा सामान्यपणे सर्व प्रलंब लेतां दोषो तथा प्रायश्चित्त बतावी पछी यथावस्थित आचीर्णता तथा अनाचीर्णता प्ररूपी छे. कारण के त्यांज कहां छे के ए प्रायश्चित्त अगीतार्थ आचार्य के जे गच्छनी सारसंभाळ न करे तेने अथवा अगीतार्थ भिक्षु के जे विषयलोलुप होय तेने लागे छे. अने ए वात एमज मानवी घटे छे, नहि तो धर्मरुचि वगेरा मुनिओ कटुक तुंब शा माटे लेत ? कदाच कहेशो के तेमणे तो मासखमणना पारणे भोजनरूपे ते लीधुं छे, कंइ शाकरूपे नथी लीधुं; पण ते पण घंटे नहि केमके मूले लख्युं छे के छमास पर्यंत निराहार रहेवं, पण प्रलंब न लेवा. माटे जो ए निषेध सर्व साधु साधारण होत तो ते गीतार्थ पण ते नहि लेतां वीजा घरेथी बीजुं भोजन लेत. माटे अगीतार्थ आसरीनेज सर्व प्रलंबन निषेध छे बाकी गीतार्थने तो वगर कारणे पण आचीर्णप्रलंब लेतां दोष नथी. वळ पाकेली केलाफरी, खजूर तथा द्राक्षादिक पण अगीतार्थने लेवी निषेधी छे केमके ते प्रसंगदोषे छेवट बगीचामांथी पोतेज तोडवा जवा मांडे; पण गीतार्थने तथाविध पुरुषविशेष, देशविशेष, के ग्लान, बाळादि कारणे अथवा दुर्भिक्ष के मुशाफरीना कारणे विधिए लैतां दोष नथी. (वळी पांखीसूत्रनी वृहद्वृत्तिमां गुरुनी तेत्रीश आशातनाना अधिकारे शाक तथा आंबाना फळादिकनुं ग्रहण स्पष्ट रीते कहेल छे. ) माठे सचिव साधुने लेवो न कल्पे एवोज उपदेश देवो पण सर्व प्रलंबन निषेध छे एम न बोलवं. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. . ( २१३ ) विचार ५२ मो. ( स्वगच्छनी उत्पत्ति.) (विजयचंद्र उपाध्याय के आर्यरक्षितसूरिनु चरित्र.) नाणकगच्छमांथी सर्वदेवमूरिथी वडगच्छ थयो. तेमां अनुक्रमे श्री जयसिंहमूरिना शिष्य श्री विजयचंद्र उपाध्याय थया. तेमने पूनमिया गच्छ स्वीकारनार तेमना मामा शीळगणमूरिए सर्व सिद्धांतो भणावीने आचार्यपद देवा मांडयुं पण विजयचंद्रे. मालारोपण वगेरा सावधना भये ते पद लेवा नहि इच्छवाथी ते मने उपाध्यायपदे स्थाप्या. __पछी तेओ पोताना बीजा त्रण शिष्यो साथे विचरवा ला. ग्या, पण ए वेला पासत्थाओनी बाहुल्यता होवाथी लोकोने मिः। क्षाना दोषोनुं ज्ञान न हतुं, तेथी शुद्ध भिक्षा नहि मळवाथी विजयचंद्र उपाध्याये पावागढ ऊपर संलेखणा करवा मांडी. त्यां एक मासना उपवास थतां चक्रेश्वरीदेवीए प्रत्यक्ष थई नमीने वीनति करी के महाराज, आपना प्रसादथी जगत्मा महा लाभ थशे, माटे आवती प्रभाते तमने आहार मळशे तेनावडे पारणुं करो. ए ऊपरथी गुरु ते प्रमाणे पार करीने तेज वेलाए आवेला संघवी यशोधनना संघ साथे भालेज नगर आव्या. - त्यां यशोधने आदिदेवनुं देरासर करावी गुरुना उपदेशथी पोते प्रतिष्टा करवा मांडी. ते जोइ तेने निवारण करवा सां हेमाचार्यना गुरु संगमखेडीया देवेंद्रसरि, आशापल्लीया मलयचंद्रसूरि, तथा पीपलिया शांतिसूरि वगेरा महान् आचार्यो एकठा थइ जोरथी कहेवा लाग्या के “आ वळी नवु डामाडोल शुं ऊभुं करो छो" अने तेथी खां उत्सवार्थे एकठा मळेला मंदोर, वडोदरा, Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४ ) लघुशतपदी. खंभात, तथा नाहपा वगेरा स्थळोना संघो विचारमां पड्या के हवे शुं थशे ? ते वेला नीचे प्रमाणे त्रणवार आकाशवाणी थइ. “ अहो लोको, आ विधिमार्ग सिद्धांतोक्त छे, सर्वज्ञोक्त छे, अने शाश्वतो छे, माटे एमां कोइये संदेह न करवो. अने एमां ब्रह्मा पण विघ्न करी शके तेम नथी. " ए ऊपरथी त्यां विघ्न शांत थतां प्रतिष्टामहोत्सव पूर्ण थयो. अनेए स्थळे सं. ११६० वर्षे अंचळगच्छनी स्थापना थइ. पछी त्यांथी गुरु महाराज बिउणपबंदरना बँकाशेठना पुत्र कउडि वगेराने पोताना श्रावको करी तथा तेनी पुत्रीने दीक्षा आपी थराद आव्या. ( जय सिंह सूरिनुं चरित्र ) 9 आ समये सोपारपाटणना शेठ दाहडना पुत्र जासिगकुमारे जंबुचरित्र सांभळी प्रतिबोध पामीने पोताना मित्र आसधरनी साथै जयसिंहदेवराजानी महेरबानी मेळवी पाटणमां आवीने गुरु पासेथी पहेलेज दहाडे आखं दशवैकाळिक शीखी लइ दीक्षा ली. धी. ए वेला तेमनुं नाम यशश्चंद्रगणि राखवामां आव्युं तेओ पांच वर्षमां स्वपरसमयना पारंगामी थतां मंदोरपुरना संघे तेमने आचार्य पद दइ जयसिंहसूर एवं नाम आप्युं. आ ऊपरथी गुरुनी आशातना निवारवा जयसिंहमूरिए पोताना गुरु विजयचंद्र उपाध्यायने आर्यरक्षितसूरि एवं नाम आपीने सूरिपदे थाप्या. एवामां कुमारपाळ राजा राजगादीए आव्या. तेमणे कउडिश्रावकने उत्तरासंगवडे वांदणा देतो जोइ हेमाचार्यने पूछ युं के आशुं ? त्यारे माचार्य बोल्या के ए मुख्य विधिपक्ष छे. तथा पूर्वे आकाशवागी पण एवीज थल होवाथी गच्छनुं विधिपक्ष एवं नाम चाल्युं. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. ( २१५ ) त्यार बाद हेमाचार्ये वाहकगणिनी प्रेरणाथी जयसिंहमूरिने क के तमो विउणपतटथी सघळु संघ बोलावी एक सामाचारी करो. त्यारे गुरुए उत्तर आप्युं के जो सर्व गच्छ एक थइने अमने कहेशे तो अमे पण तेमज करशुं. सारे वाहकगणि वगेरा विचारवा लाग्या जे ए तो आपणामांज विरोध पडावे छे तेथी सर्व संघ समक्ष " अंचळगच्छवाळा संघबाहेर छे" एवी उदूघोषणा कराववा एक माणस कभी क पण ते उद्घोषणा करनारे त्रणवार एम उद्घोषणा करी के “विविपक्ष विना बीजा सर्वे संघबाहेर छे. " त्यारे उदघोषणा करनारने लांच आपवामां आवी छे एम ठेरावी जूदा जूदा उद्घोषणा करनार ऊभा कर्या पण ते बधाए पण तेवीज उद्घोषणा करवाथी विचारवा लाग्या जे आ गच्छवाळा कपटी छे माटे एमना गुरुनेज शिक्षा करवी जोइये. तेथी वाहक गणिए जयसिंहसूरिने मारवा सारुं बिउणप बंदरे दंडूकावाळा माणसो मोकलाव्या. तेओ त्यां जइ गुरुने जीवरक्षा माटे रजोहरणथी पृठ प्रमार्जता जोइ पोतेज एक बीजामां मारामारी करी जमीनपर पड्या. अने गुरुनुं चरणामृत छांटवाथी बचवा पाम्या. ए दरम्यान पाटणमां वाहक गणिने तत्काळ शूळ थवा माँयं ते जोइ हेमाचार्ये तेमने पूछयुं के तमे कोनो अपराध कर्यो छे ! त्यारे वाहक गणिए यथास्थित वृत्तांत कही आपतां हेमाचार्य बोल्या के ए व्याधि बीजा कोइथी मटे तेम नथी किंतु आर्यरक्षितमूरिना चरणोदकथीज मटशे. तेथी ते पाणी मगावीने तेने स्वस्थ कर्यो. धर्मघोषसूरि. जयसिंहसूरिना पाटे धर्मघोषसूरि थया. तेओनुं "वादिसिंह शार्दूल" एवं बिरुद बोलातुं हतुं. एमणे शाकंभरी ( सांभर ) ना Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१६) लघुशतपदी. पेला राजाने प्रतिबोधी अर्हतपूजा करावी. . वळी एमणे खीमलि गामवाळा संघवी वोहडिने प्रतिबोध आप्यो. ए बोहडिने आगल चालतां वस्तुपालमंत्रिए “संघनरेंद्र" एq बिरुद आप्युं. ... वळी कणयगिरिवाला सा. देदाना आग्रहथी गुरु महाराज चितोडमा रह्या. त्यां तेनी बेने उत्सवमां भोजनमां विष भेन्यु. ते गुरुराजे ध्यानना बळथी जाणी लइने ३२ साधुओ मोतथी बचाव्या. . वळी एओ ध्यानमां एवं चिंतववा लाग्या जे "आवा विषम काळमां साधुओनो निर्वाह केम थइ शकशे" तेवामां ध्यानना बळे चक्रेश्वरी देवीए प्रगट थइ प्रतिज्ञा लीधी जे हुं आजथी मांडीने वीरमभुर्नु ज्यां सूधी शासन चालशे त्यां लगी विषम वेलाए गच्छने सहाय करीश. एक वेला एमना सोल साधुओने कवाडि वगेरा भार ऊपरडी रस्ते चालता जोइ एक दिगंबरे मस्करी करी के "आ लश्कर कोना ऊपर जाय छे." गुरुए जवाप आप्यो के "कोइ संगोत्रिओ नागो थएल सांभल्यो छे तेना ऊपर जाय छे." ए रीते ते सहजमां जीताइ जइ पगे पडयो. महेंद्रसिंहसूरि. . धर्मघोषसरिना पाटे महेंद्रसिंहमार थया.तेओ सर्वे सिद्धांत मुखपाठेज भणावता हता.तेथी तेओने “आगमडाला" एवं विरुद मल्यु. ___एमणे तिमिर वाटकमां मांदगीना लीधे रहेतां त्यां वांदवा आवनार जालोरना संघना व्यासी संदेह वगर पूछवे एकज वखाणमां भांग्या अने बे संदेह एकांते भांग्या. ___ एमनुं सं. १२२८. जन्म, १२३७. दीक्षा, १२६३. मूरिपद, १३०९. स्वर्ग, सर्वायु वर्ष ८२.. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. सिंहप्रभसूरि. एमना मोटा भाइए दीक्षा लेवा मनसूबो कर्यो, पण लेती बेला लगार ढीला थतां सिंहप्रभसूरिएज सिंह माफक तैयार थर दीक्षा लीधी. एओए सूत्र भणतां दरेक सूत्रनी उलटी आवृत्ति करीने दखणनो वादी जीत्यो. एमनुं सं. १२८३ जन्म. १२९१ दीक्षा. १३०९ सूरिपदं . १३१३ स्वर्ग. सर्वायु वर्ष ३१. अजित सिंह सूरि. ( २१७ ) एमने झालोरमां नवा नवा संघ वांदवा आवता ते राजा पासे भेटणुं धरता ते जोइ राउल समरसिंहे पूछा करतां गुरुना छठ अटम वगेरा उग्र तप सांभली राजा पोते वांदवा आव्यो. त्यां प्रतिबोध पामीने तेणे बधे अमारी प्रवर्त्तावी. ए रीते राजा धर्मी थयाथी तेन सर्वे प्रजा पण जैनधर्मनो आचार पाळवा लागी तेथी आज सूधी शाण वगेरा गामो धर्मक्षेत्र कहेवाय छे. एमनुं सं. १२८३ जन्म. १२९१ दीक्षा. १३१४ सूरिपद. १३३९ स्वर्ग. सर्वायु ५७ वर्ष देवेंद्र सिंह सूरि. एमनुं व्याख्यान सांभळवा अनेक देशोथी आवेला आचार्य ' उपाध्यायोथीज सभा भराइ जती हती. त्यां बीजा सांभळनाराने जग्या पण न मळती. एमनुं सं. १२९९ जन्म, १३०६ दीक्षा. १३२३ सूस्पिद. १३७१ स्वर्ग. सर्वायु ७३ वर्ष. २८ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुशतपदी. धर्मप्रभसूरि. एओ समय करतां पण वधु तप क्रियावाळा हता तेथी एमना चरणोदकथीज सर्व व्याधिओनी शांति थती. तथा प्रसन्नपणे वचन बोलता तेथीज सर्वार्थनी सिद्धि थती. एमनुं सं. १३३१ जन्म. १३४१ दीक्षा. १३५८ सूरिपद. १३९३ स्वर्ग. सर्वायु ६३ वर्ष. सिंहतिलकसूरि. (२१८) एमनुं सं. १३४५ जन्म, १३५२ दीक्षा, १३७१ सूरिपद, १३९५ स्वर्ग. सर्वायु ५१ वर्ष. महेंद्रप्रभसूरि. एमनुं सं. १३६३ जन्म, १३७५ दीक्षा, १३९३ सूरिपद, १४४३ स्वर्ग. सर्वायु ८१ वर्ष. एमणे सं. १४०९ मां नाणी गामे चोमासुं रहेतां भविष्यकामां चालीशमे दहाडे विघ्न थशे एम अगाऊथीज जाण्युं. तेथी हमेशां ध्यानमा रहेता. हवे ते प्रमाणे आसोविदि ८ ना दिने राते काळा सर्पे दंश दीघो. पण सूरिमंत्रना प्रभावे दश पहोर थतां ते विष मुखथीज वमी कहाडयुं. पछी वळती प्रभाते हजारो लोक भेगा थइ भावना भाववा लाग्या जे " अहो, कळिकाळमां पण हजु सम्यक् ध्याननो मताप रहेल छे" अने घणा जणोए शीळवतादिक लीघा. • ए सूरिए सहसात्कारे कहेल वचन पण बधाने फळतो. मेरुतुंगसूरि. महेंद्रप्रभसूरिना पाटे मेरुतुंगसूरि थया. तेमणे संवत १४५० ना वर्षे आ लघुशतपदी रची. एनुं ग्रंथमान पंदरसो सित्तेर श्लोक छे. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१९) पट्टावळी. श्री महावीरस्वामिथी अंचळगच्छनी उत्पत्ति सूधी. १ मुधर्मस्वामि. . २२ वीराचार्य. २ जंबूस्वामि. २३ जयदेवमूरि. ३ प्रभवस्वामि. २४ देवानंदसूरि. ४ शय्यंभवस्वामि. २५ विक्रमसूरि. ५ यशोभद्रस्वामि. २६ नरसिंहमूरि. ६ संभूतिविजयस्वामि. २७ समुद्रसूरि. ७ भद्रबाहुस्वामि. २८ मानदेवसूरि, तथा हरि८ स्थूळिभद्रस्वामि. भद्रमूरि. ९ महागिरि, सुहस्ति. २९ विबुधप्रभार. १० मुस्थित, मुप्रतिबद्ध. ३० जयानंदमूरि. ११ इंद्रदिनसरि. ३१ रविप्रभसूरि. १२ दिनमार. ३२ यशोदेवमूरि. १३ सिंहगिरिसूरि. ३३ विमळचंद्रसूरि. १४ वज्रस्वामि (वीरात्.५८४ ३४ उद्योतनसूरि. दिवंगत). ३५ सर्वदेवमूरि. १५ वज्रसेनरि. ३६ पद्मदेवसूरि. १६ श्रीचंद्रसूरि. ३७ उदयमभनार. १७ सामंतभद्रमूरि. ३८ प्रमानंदमूरि. १८ (द्ध) देवमूरि. ३९ धर्मचंद्रमूरि. १९ प्रद्योतनसूरि. ४० सुगणचंद्रमूरि. २० मानदेवमूरि. ४१ गुणसमुद्रमूरि. २१ मानतुंगसूरि. ४२ विजयप्रभसूरि. Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्टावळी. (२२०) ४३ नरचंद्रसूरि. ४४ वीरचंद्रमूरि. ४५ मुनितिलकसूरि. ४६ जयसिंहमूरि. (सं. ११६९ मां अंचळगच्छनी स्थापना थइ त्यारथी वर्तमान सूधी.) ४.७ आर्यरक्षितसूरि. ६१ भावसागरसूरि. ४८ जयसिंहमूरि. ६२ गुणनिधानसूरि. ४९ धर्मघोषसूरि. ६३धर्ममूर्ति।१६०२क्रियोद्धार ५० महेंद्रसिंहमूरि (शतपदी- सूरि. १६७० दिवंगत कर्ता.) ६४ कल्याणसागरसूरि. ५१ सिंहप्रभमूरि. ६५ अमरसागरसूरि. ५२ अजितसिंहमूरि. ६६ विद्यासागरसार. ५३ देवेंद्रसिंहमूरि. ६७ उदयसागरसूरि. ५४ धर्मप्रभसूरि. ६८ कीत्तिसागरसूार. ५५ सिंहतिलकसरि. ६९ पुण्यसागरसूरि. ५६ महेंद्रप्रभसूरि. ७० राजेंद्रसागरसूरि. ५७ मेरुतुंगमूरि (१४७१ दि. ७१ मुक्तिसागरसूरि. वंगत.) ७२ रत्नसागरसूरि. ५८ जयकीर्तिसूरि. ७३ विवेकसागरसूरि. ५९ जयकेशारिसूरि. ७४ जिनेंद्रसागरसूरिवर्तमान.) ६० सिद्धांतसागरसूरि. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहावळी. (२२१) कल्याणसागरसूरिथी उपाध्यायशाखाए आवेली वर्त मानकाळ सूधीनी शाखापटावळी. १. रत्नसागरगणि (महोपाध्याय). ७ रंगसागरगणि. २ मेघसागरगणि. ८ नेमसागरगणि. ३ वृद्धसागरगणि. ९ फतेहसागरगणि. ४ हीरसागरगणि. १० देवसागरगणि. ५ सहजसागरगणि. ११ सरूपसागरगणि. ६ मानसागरगणि. १२ गौतमसागरगणि.* * आ श्री गौतमसागरजी महाराज उपाध्यायशाखाए आवेला छे. तेमणे गच्छमां क्रियानी शिथिलता देखी वैराग्यरंगे रंगित थइने वर्तमानकाळे क्रियाउद्धार कर्यो छे. अने संविनपाक्षिक पदमा रही शुद्ध संयममार्ग पाळवानी इच्छा धरता थका विचरे छे. Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सं. ११६९ थी अंचळगच्छना आचार्यो. (२२२) गछनायक - माता | जन्म दीक्षा | गछशमानि. जन्मदेश जन्म नगर. वंश नाम. पिता नामानि नामानिमिवाणि पदव. श्रीआर्यरक्षितसू.आबू दंताणीग्राम माग्वाटवंश व्यवहारीद्रोणादेदीमाता ११३६११४२/११६९/१२२६/९१ श्रीजयसिंहमूरि. कुंकुण सोपारनगर उपकेशवंश श्रे० दाहड. नेढीमाता २१७९११९७१२०२१२५८८० श्रीधर्मघोषमूरि. मरुदेश.माहवपुर. श्रीमाली. सा० श्रीचंद. राजलदे १२०८१२१६/१२३४१२६८६१ श्रीमहेंद्रसिंहमूरि.मरुदेश.सरनगर. श्रीमाली. सा. देवप्रसाद वीरदेवी १२२८१२३७१२६९१३०९ ८२ श्रीसिंहप्रभसूरि. बहुसरिवीजापुर. श्रीमाली. महं. अमरसी. प्रीतिमती १२८३ १२९१ १३०९/१३१३ ३१ श्रीअजितसिंहसू.मरुदेश डोडग्राम. श्रीमाली. महं. जिनदेव. जिनमती १२८३ १२९११३१७१३३९ ५४ श्रीदेवेंद्रसिंहमूरि.मरुदेश. पालणपुर. श्रीमाली. व्य० सोनू. संतोषश्री १२९९१३०६१३३९१३७१ ७३ श्रीधर्मप्रभसूरि. मरुदेश.श्रीमालपुर श्रीमाली. श्रे० लींबा. वीझलदे १३३११३४११३७११३९३ ६३ श्रीसिंहतिलकसू. मरुदेश आरूवपुर. श्रीमाली. सा०आसधर.चांपलदे १३४५ १३५२१३९३१३९५ ५१ श्रीमहेंद्रप्रभसूरि. जीराउ.वडग्राम. उपकेशवंश सा० आना. लीबिणि २३६३ १३७५ १३९५१४४३ ८१ श्रीमेरुतुंगसूरि मरुदेश. जीर्णपुर. प्राग्वाटवंश व्यव०वयरसी नाणदे १४०३१४१०१४४५१४७१ ६८ श्रीजयकीर्तिसूरि मरुदेश. तिमिरपुर. श्रीमाली. अ० भूपाल. भरमादे १४३३१४४४१४७३१५०० ६७ श्रीजयकेशरिसूरि पंचाल.थाननगर. श्रीमाली. श्रेष्टि देवसी. लाषणदे १४७११४७५ १५०१ १५४२ ७१ श्रीसिद्धांतसागर गूर्जरदे. अणहिलपुर उपकेश. सोनी जावड. पूरादे. १५०६/१५१२/१५४११५६० ५४ । पट्टावळीनुं यंत्र. ० Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीभावसागर सू. मरुदेश नरसाणनग श्रीमाली वुहरा सांगा. | शृंगारदे. १५१६/१५२०/१५६० १५८३ | ६८ श्रीगुणनिधानसू. गुर्जरदे. पत्तन. श्रीमाली. सा० नगराज. ल लादे १५४८१५५२ १५८४१६०२ ५४ श्रीधर्ममूर्ति सूरि. गूर्जरदे. स्थंततीर्थ श्रीमाली. सा० हंसराज हांसलदे १५८५ १५९९ १६०२ १६७० ८५ श्रीकल्याणसागर गूर्जरदे. लोलाडापुर श्रीमाली. कोठा. नानिग नामलदे १६३३ १६४२ १६७० १७१८८५ श्री अमरसागरसू. मेदपाट करहटपुर उपकेश. चोधरी यांधा. सोनलद. १६९४ १७०५ १७१८ १६६२ ६८ श्रीविद्या सागरसू कच्छ खीरसरा. उपकेश. सा० करसना. कमलादे. १७४७ १७५६१७६२ १७९७ ५१ श्री उदयसागरसू हालार नवानगर, उपकेश. साकल्याणजी जयवंती. १७५३ १७७७१७९७ १८२६ ७३ श्रीकीर्त्तिसागर. कच्छ देशलपुर. उपकेश. सा. मालसीं. आशाबाई १७९६ १८०९ १८२६ १८४३ ४८ श्री पुण्यसागरसू. गुजरात वडोदरा. सा. रायसी मीठीबाई १८१७ १८३३१८४३ १८७० ५३ |१८९२ | श्रीराजेंद्र सागर. गुजरात सुरत. श्रीमुक्तिसागरसू. माळव. उजेणी. ओशवाळ. सा. खीमचंद. उमेदबाई १८५७ १८६७१८९२ १९१४ ५७ श्रीरत्नसागरसूरि कच्छ मोथारा ओशवाळ. सा. लाडण. जुमाबाई १८९२ १९०५ १९१४ १९२८ ३६ श्री विवेक सागर कच्छ. आशंबिया. ओशवाळ सा. टोकरसी. ૧૮૧૦ १९२८|१९४७ ३७ श्रीजिनेंद्रसागर. कच्छ. गोधरा. ओशवाळ साकल्याणजी पोरवाळ. .. वर्त्त मान. ❤❤ .. .. .. पट्टावळीनुं यंत्र. ( २२३ ) Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२४.) उपयोगी इतिहास. उपयोगी इतिहास. (शार्दूल विक्रीडित.) श्रीमद् विक्रमतः ख-बाण हुत भुक् काले मुनींद्र रथो आचीर्णा च चतुर्दशी, रवि युगे काले च चैत्यस्थितिः वस्वभ्राभ्रकुभिश्च पौषधभवो, वेदाग्निरुदै स्तथा राकांकः, शशि-शून्य-भास्करभव श्चामुंडिको नैष्टिकः १ हुनंदेद्रियरुद्रकालजनितः पक्षोस्ति राकांकितो, वेदाभ्रारुणकाळ औष्ट्रिकभवो, नंद कालेचलः, पद्व्यर्केषुच साधुपूर्णिम इति, व्योमेंद्रियार्के पुनः वर्षे त्रिस्तुतिको, क्षमंगळरवौ गाढक्रिय स्तापसः O १ वीरात् १६४ वर्षे चंद्रगुप्त राजा थयो. २ , ४७० वर्षे विक्रम संवत् चाल्यो , ६०५ वर्षे शालिवाहन राजानो शक चाल्यो. . ,, ६०९ वर्षे दिगंबर नीकल्या. ५ , ६७० वर्षे साचोरमां वीरस्वामिनी प्रतिमा स्थपाइ. ६, ८२० वर्षे चौदशनी पांखी चाली. (शतपदीमा चोथ थया केडे केटलेक काले चौदश थइ कही छे.) ७ वीरात् ८८२ वर्षे चैत्यवास मंडायो. ,, ९८० वर्षे देवद्धि गणिये सूत्रो पुस्तके लख्यां. , ९९३ वर्षे काळिकाचार्ये चोथनी पर्युषणा करी. ,, १००० वर्षे देवद्धिगणि दिवंगत थतां पूर्व विच्छेद थया. , १००८ वर्षे पौषधशाळामां वास मंडायो. م ه Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपयोगी इतिहास. ( विक्रमात् . ) सं. ९२१ मां वडगच्छ चाल्यो. ( सर्वदेवसूरिथी. ) सं. १९५९ मां पूनमिया गच्छ स्थपायो. (चंद्रप्रभसूरिथी . ) सं. १९६९ मां अंचळगच्छ स्थपायो. ( आर्यरक्षित सूरिथी. ) ( २२५ ) • सं. १२०४ मां खरतरगच्छ चाल्यो ( जिनदत्तसूरिथी. ) सं. १२३६ मां साधुपूनमियागच्छ नीकल्यो, सं. १२५० मां आगमिया (त्रिस्तुतिक) गच्छ नीकल्यो. सं. १२८५ मां तपगच्छ कहेवायो. ( जंगतु चंद्रसूरिथी. ) सं. १५३२ मां लोंकाए प्रतिमानो निषेधः करवा मांख्यो. सं. १५६५ मां पार्श्वचंद्र गच्छ नीकल्यो. प्रख्यात आचार्यो. बीरात्.. ३७६ मां श्यामाचार्य थया. तेमणे पनवणासूत्र रच्यु. ६८४ मां गंधहस्त थंया. तेमणे पहेली टीकाओ करी. ९८० मां देवर्द्धिगणि थया. तेमणे सूत्रो पुस्तके लख्यां.. १०५५ मां हरिभद्रसूरि थया तेमणे १४४४ प्रकरणो कर्यो. ११५० मां जिनभद्रगणि थया तेमणे भाष्यो कर्या. विक्रमात्. ७०० मां शीळाचार्य थथा. (आचारांग टीकाकार. ) ८९६ मां बप्पभट्टि दिवंगत थया. ( आमराजा प्रतिबोध्यो . ) १०९६ मां वादिवेताळ शांतिसूरि दिवंगत थया. १९३५ मां अभयदेवसूरि दिवंगत थया. नवांगी टीकाकार. ) १२२६ मां वादिदेवसूरि स्वर्गे गया: एमणे स्याद्वादरवाकर रच्यो. १२२९ मां हेमाचार्य स्वर्गे गया. ( कुमारपाळ प्रतिबोधक. ) ( कुमारपाळ राज्य ११९९ थी १२२९ सुधी. ) Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२६ ) आ पुस्तकना अगाउथी थएला ग्राहकोना मुबारक नामो. मुंबई. (१०१) १०१ अंचळगच्छनायक विजयमान पूज्य भट्टारक श्री जिनेंद्रसागरमूरि महाराज. कच्छ - दुर्गापुर. (१९२) ६ शा. रणधीर थोभण. १०० शा. पासुभाई वाघजी. २५ शा. पुनशीं आसु. २५ शा. पदमशीं रायसीं.. ५ शा. गोवर करमण. १ नानी धर्मशाळा. ३० परचूरण. कच्छ - कोडाय. (५७) ५० शा. लाधाभाइ मूळजी. २ वकील हीराचंद नाराणजी. ५ मोहोटी धर्मशाळा हस्ते शा. भवानजी रामजी. कच्छ - भुज. (२५) २५ शी. रुपचंद मागजी. कच्छ - नळिया (५५) १७ शा. लालजी शामजी. ४ शा. शामजी मालसीं. ४ शा. रतनशीं वेलजी खेतशीं. ४ शा. हंसराज आशारिया. ३ शा. पाशवीर शांगण. २ शा. शिवजी पुनश. १ शा. वीदाश देरु ६. पुंजाबाई. १ शा. नरशीं शोजपाळ. १ शा. चतुर्भुज खेतशीं. १ शा. देवजी शोजपाळ. १ शा. मेघजी कल्याणजी हा. चांपुबाइ. Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. शा. विशनजी वेलजी. २ शा. ठाकरशीं परवत ह. खेतबाइ १. शा. भींअशीं मूळजी. १ शा. पुंजा भारु. ह. शोनबाइ १ शा. मादण कल्याण. १ शा. चांपाशीं मादण ह. मूळबाई. १ शा. देरु दामजी. २ शा. मादण आशारिया २ श्री देराशर खाते. १ शा. मणशी माणेक. १. शा. देवशीं भीमजी. १ शा. खीमशी जेतशी. कच्छ - सांधाण (१५) १ शा. वीरपाळ देवशी. १ शा. बेलजी पुंजा: ( 2219) १ शा. गणशीं खीअशीं ह. कोरबा. १. शा. शामजी पसाइआ. ह. कच्छ - दुमरा (४) ५. शा. ठाकरशी डुंगरशी. धनबाइ. १ शा. वेरशीं माणेक. १ शा शामजी वीरजी. १ शा. कानजी लालजी गणर्शी.. १. शा. भाणजी लाधा ह . हीरबाइ १ नानी धर्मशाळा हस्ते मालशीभाइ. ५ शा. कोरशी मालजी. ५ यति गौतमलाभ कुशळलाभजी. १. शा. शामजी कानजी परबत. १ शा. घेला देशर. १ शा. वेलजी धनजी ह. मेघबाइ. कच्छ - नाराणपुर. (६) १ शा. कोरशी पाळण. १ शा. नरशी कचरा. १ शा. नरशी मावजी. १. शा. कानजी विजा. कच्छ - खारुआ (५) कच्छ - देवपुर. (४) १ शा. देशर खेतसी. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (228 ) 1 था. वेलजी तिलकशी. 1 शा. खेराज पचाण. कच्छ-गहशीशा. (10) 10 शा. देवराज टोकरशी. कच्छ-नरेडी. (2) 2 शा. उका धोरसी.. कच्छ-कोटडो. (1) 1 शा. कुंअरजी लालजी. कच्छ-चांग्रेचा. (1) 1 शा. हीरजी देशळ. कच्छ-राधणजर. (15) ५.शा. आसु उका ह. खीमइवाइ. 2 शा. लीलाधर माणेक. 2 शा. कुरपार लखु. 2 शा. कानजी तेजा. 2 शा भोजाना माताजी पूरबाइ. 2 शा. आणेद गंगाजर. . कच्छ, सुथरी. (16) 5 मुथरी शानभंडार. .5 शा. माळजी फलेचंद. 5 शा. खीअशी करमण. 1 शा. हभु मूरजी. __ अमदावाद. (2) 1 श्री शांतिसागरजीना मकाने. 1 शा. जमनादास घेलाभाइ. मुंबइ. (4) 1 शा. जेवत तेजपाल. 1 शा. तेजशी कुरपार. 1 शा. पुंजा वरजांग. 1 शा. सामत वणवीर. 1 शा. दामजी आशकरण. 1 शा. खीमनी रायशी. 1 शा. हीरा वरजांग,