________________
( १९८ )
लघु शतपदी. विचार १९ मो.
(१) साधुना पडिकमणामां आदिमां चैत्यवंदन तथा अंते नित्ये क्षेत्रदेवतादिकना काउसग करवा एम आवश्यचूर्णि तथा वीजा आगमोमां कहेल देखातुं नथी माटे तेम नथी करता. बाकी शेषविधि जेम लखी छे तेमज कराय छे. (२) व्यवहारचूर्णिमां लख्युं छे जे " जो चैत्यगृहमा रहेला होय तो सांजे आवश्यकथी पहेलां अने सवारमां आवश्यक कर्याी पछी जो चैत्य न वांदे तो प्रायश्चित्त आवे" इहां चैत्यमां रहेला माटेज चैत्यवंदना कही छे पण सर्व स्थळना माटे नथी कही. वळी आवश्यकचूर्णिमां पण एम कधुं छे जे "जो चैस होय तो वांदे. "
(३) आवश्यक निर्युक्तिमा पडिकमणाने अंते सिद्धस्तुति पछी वांदणाज का छे. अने चूर्णिमां पण कहुं छे जे त्रीजी थुइ कही एटले पछी पडिलेहणा करवी.
(४) वळी मुनिए अंगुष्ठ, मुष्टि, तथा गंठी वगेरा संकेतपचखाण विशेषे कर. केमके आवश्यकचूर्णिमां कां छे के सर्व संकेतपचखाण मुनिए पण करवा.
विचार २० मो.
आ प्रश्नोत्तर " साधु सम्यक्त्व क्यारे अंगीकार करे छे" ए
बाबतपर छे ते मोटी शतपदीमां श्रावकना सम्यक्तना विचारमां अंतर्भूत लख्यो छे.
麻