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________________ लघु शतपदी. ( १९७ ) (२) वळी जे " मेरुनी चूळिका ऊपर पांचे वर्णना फूलोथी अंजळि भरी लाख दीवानी आरती इंद्रे करी " एवो आलावो बोलाय छे ते सिद्धांतमां क्यांए देखा तो नथी माटे मानी शकाय नाही. (३) खरतरगच्छवाळा पण मंगळदीवाना अवसरे एवं बोले छे के " जो के जिनना जन्ममहोत्सवमां मेरु ऊपर इंद्रे ए दीवो करेल नथी, तोपण ए मांगळिक छे मादे श्रावको करे कारण के ए अशठाचरणा छे. " (४) ए ऊपरथी जणाय छे के चैयवासिओएज पोताना निर्वाह वगेरा माटे बळि नैवेद्य, तथा आरती वगेरा सर्वे चलाव्या छे. विचार १३ मो. (१) जिनना अंगथी ऊतारेल माळा श्रावके पोताना कंठे पहेरतां तो घणा दोष लागे छे.. (१) देवद्रव्यनो उपभोग थाय छे. (२) जिनपर चड्याथी अमूल्य थएला फूलोनुं मूल्य कराय छे. (३) कंठथी खरता फूलो पगथी डबातां आशातना थाय छे. (४) माळा वेचाती लीधी एटले नकडुं देतां पुण्य पण नथी थतुं. ( २ ) अगर जो देवद्रव्य वधारवानोज आशय होय तो एम करवुं घटे छे के माळी पाथी माळा लइ कळशमां धरी " आ माळा भगवानने चडशे माटे जे वधु मूल्य आपे तेने मळशे" एम बोलतां श्रावको पोतानी शक्ति प्रमाणे द्रव्य आपीने माळा लइ महोत्सवपूर्वक देवना कंठे चडावे तो पूर्वोक्त दोष न लागे, पुण्य थाय अने देवद्रव्यनी पण वृद्धि थाय. *+91€
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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