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शतपदी भाषांतर. (१३३) (१३) ने तीर्थकरभगवान्ने प्रमाण न करे ते श्रुतधरोने प्रमाण नथीज. (१४) संघ रागद्वेषहीन, सर्व जीवोपर सरखो, अने गुणनो नि.
धान होय छे. (१५) शिष्य के आचार्य कंइ सुगति पोचाडता नथी किंतु सत्य
व्यवहारज सुगतिए पोचाडे छे. . . (१६) उलटो मार्ग बतावतां अने मुलटो मार्ग छुपावतां अनंत
संसार थाय छे. (१७) जे जीत शोधिकारक अने संविन पुरुष आचर्यु ते भळे
तेणे एक जणेज आचर्यु तोए तेथी व्यवहार चाले. (१.८) जे जीत अशोधिकारक अने पासत्थादिके आचर्यु ते भळे
घणे जणे आचर्यु होय तोए तेथी व्यवहार न चळाववो. (१९) तीर्थकरे कर्यु, पछी गणधरोए कर्यु अने तेमनी शिष्य प.. रंपराए चाल्युं ते जीत जाणवू. (२०) जिनाज्ञा विना जे व्यवहार चलावे तेनी इहां अपकीर्ति ... अने परभवे नक्की दुर्गति थाय. (व्यवहार.) (२१) “जे जिने भाष्यु तेज सत्य" ए परिणामवंत जिमाज्ञामां छे. (२२) दुर्लभ मनुष्यभव तथा संयम पामीने पण जे आज्ञामां नथी ___ वर्त्तता ते दुर्गतिपथ वधारे छे. . (२३) जिनेंद्रनी आज्ञाथी आचार्यनी आज्ञा बलवान् नथी; माटे
जिनाज्ञाने हलकी ठेराववी ते गर्व अने अविनय जाणवो. (२४) आज्ञा भांगतां अज्ञान, अनवस्था, मिथ्यादृष्टिपणुं, तथा
चारित्र विराधना थाय छेमाटे आज्ञासहित होय तेना
पासेज ज्ञानदर्शन चारित्र ठेरे छे. (निशीथ.) (२५) अपराध थतां नानुं प्रायश्चित्त आवे छे पण आज्ञा भंग य
तां मोहोढुं मायश्चित्त आवे कारण के आज्ञा ऊपरज चा
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