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________________ ( १३४) शतपदी भाषांतर: रित्र छे, माटे ते भांगतां शुं नहि भाग्यु ? (निशीथ.) (२६) अधिक करतां कुणालकवि माफक दोष थाय छ हीन 'करतां विद्याधरना दृष्टांते दोष थाय छे तथा हीनाधिक करतां बाळकने जेम भोजन हीनाधिक देवाय अथवा रोगीने औषध हीनाधिक देवाय तो दोष थाय तेम दोष थाय छे. (विशेषावश्यक.) (२७) जिनराज रागद्वेषमोहरहित होय छे, माटे अन्यथावादी · न होय. (आवश्यक नियुक्ति.) (२८) "जिनराजे भाष्यं तेज सत्य छ " एम मनमां धरतो थको आज्ञानो आराधक थाय छे. (भगवती.) (प्रकरणोना प्रमाण.) (२१) आज्ञाथीज चारित्र रहे छे, माटे तेने भांगतां शुं नाह भंगायुं? . अने आज्ञाने भांगी एटले सर्व काममां यथेच्छपणुंज थाय छे. (३०) उत्सूत्रभाषी आचार्य शरणे आवेला जीवोना माथां का. पे छे. . (उपदेशमाळा.) (३१) पुण्यहीनजनो तीर्थकरने प्रमाण करवा बदले सूत्रविरुद्ध आचरण करनार लोकने प्रमाण करे छे. (पयन्ना) (३२) दरेक काम जिनाज्ञाए करतां मोक्षहेतु थाय छे; बाकी पोतानी बुद्धिए सारं काम करतां थकां पण भवहेतु थाय छे. (३३) जे आगम प्रमाणे आचरे तेणे तीर्थकर गुरु तथा धर्म ए सर्वेने मान्या. (स्थानक.) (३४) एक साधु, एक साध्वी, एक श्रावक अने एक श्राविका - छतां आज्ञायुक्त होय ते संघ जाणवो. बाकी आज्ञारहित ... होय तेमने तो हाडकांनो संघ कहेवो.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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