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________________ शतपदी भाषांतर. (१३५) (३५) जिनाज्ञानुसारे शुद्ध व्यवहार अने न्यायवाद करतो थको . एक पुरुष पण भावसंघ कहेवाय. (३६) विधि पाळनार, विधिपक्षना प्रकाशक, विधिना बहुमानी अने छेल्ले विधिने दोष नहि देनार ए चारेने धन्यवाद घटे छे. (३७) विधिपर जेमने द्वेष न होय ते पण मुक्तिने आसन्न थाय छे. (३८) जिनेश्वरभाषित सर्व वचनो यथार्थ छे एवी जेना मनमा बुद्धि होय तेनुं सम्यकत्व निश्चळ छे. (३९) आज्ञा खंडनार पुरुष जो के त्रिकाळ महाविभूतिवडे वी तरागने पूजतो होय तो पण तेनुं ते बधुं निरर्थक जाणवू. (४०) जेम तुषy (छाळy) खांडबुं के मडदाने सणगार के अ रण्यमां रो, ए निरर्थक छे तेम आज्ञारहित अनुष्ठान निःफळ जाणवू. (४१) जे पुरुष गडरिप्रवाह मूंकी आज्ञाने माने ते धन्य, पवित्र, माननीयने पूजनीय जाणवो. (४२) विधि ऊपर हमेशां बहुमान धर, ए आसन्न सिद्धिगामी नुं लक्षण छ; अने विधि ऊपर द्वेष अने अविधि ऊपर राग ए अभव्य के दूरभव्यनुं लक्षण छे. (४३) आज्ञाना भंग करनारने जे मनवचन कायाए करी मदद करे तेने पण तेना सरखो दोपवंत कह्यो छे. (४४) जे परना चित्तनुं रंजन करवा आज्ञानो भंग करे, तेनुं स. म्यकत्व अने श्रमणपणुं जंतुं रहे छे. . (४५) आज्ञा भांगनारनी जे प्रशंसा करे ते तीर्थकर, श्रुत, तथा संघनो प्रत्यनीक (शत्रु) जाणवो. (४६) मुखशीलिया, स्वछंदचारी, एवा आजाभ्रष्ट घणा लोकने पण संघ नहि जाणवो.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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