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________________ ( ७२ ) शतपदी भाषांतर. भक्ति बतावता होइये तेम शरीरसुखसाता पण पूछवी. ते करतां वधतानी आगळ थोडीवार पर्युपासना करतां थकां ऊभा पण रहेवुं. अथवा पुरुषविशेष जाणी छोभवंदन के द्वादशावर्त्तवंदन पण करवुं. *© विचार ५१ मो. प्रश्नः - जे क्षेत्रमां पासत्यादिक होप त्यां मुनिए पेश के नहि ? उत्तरः- इहां पण उत्सर्ग ने अपवाद रहेला छे. एटले के उत्सर्गे नाहे पेशवं पण अपवादे पेशबुं पण छे. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के संविग्नोनो बीजे क्यां निर्वाह थतो होय तो ते पासत्यादिकना सांकडा क्षेत्रमा रह्या थका सचित्तादि लेता थका पण शुद्ध जाणवा. बळी त्यां रहेतां, पहेलां पासत्थादिक उपकरण लई ले सार बाद संविग्नोने उपकरण लेवां कल्पे. वळी उपदेशपदमां लख्युं छे के बीजे ठेकाणे रहेवानुं नहि बtai अगीतार्थ तथा पासत्यादिकयी भावेला क्षेत्रमा रहेतां कारण योगे रागद्वेष रहितपणे द्रव्यथी पासस्थादिकनी अनुकूलताए व , एटले के तेमना साथै वाद विवाद न करवो तथा नमस्कारादिके करीने तेमनुं मन साचवj. व्यवहारभाष्यमा लख्ये छे के संविनबहुलकाळमां एटले जे वेला संविनो घणा हता, त्यारे एवी मर्यादा हती के असंवि भाषित क्षेत्रमां संविश प्रवेश नहि करता, पण हमणा असंविग्र बहुलकाळमां तेणे भावित करेला क्षेत्रमां पण संविनो पेशे छे. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के विषम क्षेत्र, दुर्भिक्षादि काळ तथा ग्लानादि भाव वगेरा कारणे मुनिओए आहार वोराववा
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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