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(५४) शतपदी भाषांतर. के एक तो त्यां पर्वतिथिो कही छे अने बीजं अठमभक्त कह्यु छे. हवे ए बधा पर्वो समकाळे तो कई संभवे नहि. तेथी अनागत अथवा अतिक्रांतपर्वनी कोई अपेक्षाए पर्वना अनुष्टान मेळवी अपर्वमां पण पर्वानुष्ठान करवानुं होवाथी पर्वनो उपचार करी समकाळे बधां पर्व कह्यां होय तो पण बहुश्रुत जाणे !
एरीत प्रमाणे त्रण दिन ते तेरश चौदश-पूनमरूप, अश्मा चौदश-पूनम-एकमरूप,अथवा छठ सातम-आठमरूप, अथवा आठ. म-नोम,दशमरूप आवे. कारण के जेने प्रतिपर्वे पोसह करवानो नियम होय तेनाथी कारणयोगे आठमना दिने पोसह नाहे थई शक्युं होय तो यावत् तेरशमां पण करी शकाय छे. तेमज चौदश पूनमना पोसह कारणयोगे कोई वेला अगाऊथी यावत् नोम दशमना पण करी शकाय छे.
__ आरीते ए सूत्रनुं समाधान अमे कर्यु छे.अगर बीजी कोई रीते ग्रंथांतरना अविरोधे बहुश्रुतोए व्याख्यान करी समाधान करवं.
(३) नंदमणियारना अधिकारमा ते मिथ्यात्व पाम्या पछी जेठ मासमां अठमभक्त लइने पोसहशालामा रह्यो एम कयुं छे. माटे अनियतदिनना पोसह वगर जेठ मासमां त्रण पोसह केम घटे? तेनुं ए उत्तर छे के ज्ञाता सूत्रना ए अधिकारमा पहेलु अठम भक्तज कयुं छे अने ए अक्षरोथी कंइ एम सिद्ध थातुं नथी के अठम भक्तना त्रण दिन पोसह साथेज हतां, कारण के जो तेम होत तो सुबाहुकुमारनी माफक पहेलां पोसहशाळानी प्रमार्जनादिक विधि कहेत पण तेम इहां नथी. इहांतो अठम भक्त लेवानुं पहेलुं लख्यु छे अने पोसहशालानी विधि पछी लखी छे. माटे अठम भक्त लीधा बाद अंते एक के बे दिनमां पर्व आवी जतां साथे पौषध पण लीधुं होय एम संभवे छे. अने ए रीते सू.