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शतपदी भाषांतर. ( ५३ ) हार पोसह करता. माटे इहां टीकामां काळनियम खुल्लो जणाय छे.
भगवतीनी वृत्ति प्रमाणे स्थानांगवृत्तिमां, उपाशकदशानी - त्तिमां, ज्ञातासूत्रनी वृत्तिमां, उत्तराध्ययननी वृत्तिमां, आवश्यकनी वृत्तिमां, पंचाशकनी वृत्तिमां, आवश्यकचूर्णिमां तथा पुष्पमाळानी वृत्तिमा पौषध ते पदिने करवानुं अनुष्टान कयुं छे. ___ योगशास्त्रनी वृत्तिमां पण आठम, चौदश, पूनम, अमावस्या रूप चउप/मां पोसह करवू का छे.
वळी ए उचपीमां देवताओ पण मेरु वगेराना चैत्योमा महिमा करे छे एम गणिविद्या पयनामां लख्यं छे
(१) कोई कहेशे के ऊपर प्रमाणे तो जो के पर्वमां पोसह आवे छे, छतां पण जो विरतिरूप पोसह दररोज पण करीए तो तेमां शो दोष छे ?
एनुं उत्तर ए छे के जिनभाषित करतां अधिक के ऊणुं करतां शास्त्रमा दोषज प्रतिपादन कर्यो छे. जो तेम नहि होय तो तो देवसी, पाखी चगेराना काउसग्गनां प्रमाण आप्यां छे ते करतां वधु वखतना काउसग करतां, तथा प्रव्रज्या देतां त्रणवार सामायिक उच्चरवाने बदले चार वार उच्चरतां, तथा चोथी प्रदक्षिणा देतां, तथा बीजा अनेक कृत्योमा अधिकता करतां पण दोष नहि लागशे. पण तेम तो कई छे नहि, माटे पूर्वपुरुषोए जे अनुटान जे रीते अने जेटलुं कडं होय ते तेमज करवू जोइये.
(२) इहां कोई पूछे के विपाकसूत्रमा लख्युं छे के सुबाहुकुमारे एकवेला आठम, चौदस, पूनम अने अमावास्याना दिनोमां पोसहशाळामां आवी अठमभक्त पोसह लीधुं माटे अठमभक्तना त्रण दाहाडा होवाथी अपर्वमां पण पौषध आवशे. तेनुं ए उत्तर छे के ए विपाकसूत्रना ए बाबतना अक्षरो अतिगंभीर छे. कारण