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(५२) शतपदी भाषांतर. तिमा धरनार साधुने पृथिवीशिला, अथवा काष्टशिला, अथवा यथासंस्तृत एटले के खपमा लागे तेवी रीते मळेलां तृणादिक, ए त्रण संथारा प्रतिलेखवा कल्पे. माटे ज्यारे प्रतिमाधरने पण त्रणे संथारा सर्वकाळमां जणान्या छे त्यारे बीजा मुनिने केम न कल्पे ? तेनुं उत्तर ए छे के ए प्रतिमाधर साधुनो कल्प जूदो छे. कारण के तेओ कंइ ए संथारा मागी लावता नथी. वळी ए मासिकप्रतिमाधर मुनि शरीर- पण प्रतिकर्म करता नथी. कारण के त्यां लख्यु छ के मासिकप्रतिमाधर मुनिना उपाश्रयमां कोई आग धुखावे तो त्यां ते मुनिने नीकळg के पेशवू कल्पे नहि. तेमज तेना पगमां कांटो के कांकरो लागे अथवा आंखमां जीवजंतु के रज पेसे तो ते तेने काढवां कल्पे नहि. माटे एवा मुनिनुं आलंबन लेवू अयुक्त छे.
विचार ३६ मो.
(पौषध विषे.) प्रश्नः-पौषध दरेक दिवसे केम नथी करावता? . उत्तरः-आगममां पर्व दिवसमांज पौषध करवू कहेल छे.
जुओ भगवतीमां लख्युं छे के आठम, चौदस, पूनम अने उद्दिष्टाना दिने प्रतिपूर्ण पोषध पाळता थका विचरे छे. एनी टीकामां लख्युं छे के “पौषधं पर्वदिनानुष्टानं" "पौषधं च यदा यथाविधं च ते कुर्वतो विहरंति तदर्शयन्नाह चाउदस्सेत्यादि. इहोद्दिष्टा अमावास्या" एनो भावार्थ ए छे के पौषध एटले पर्वदिवसनुं अनुष्ठान. अने ते क्यारे अने शी रीते करता ते बताववा सूत्रकार कहे छे के आठम, चौदश, पूनम अने अमावास्याना दिने चउवि