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________________ शतपदी भाषांतर. ( १०५ ) जो प्रत्रज्या लेवा अभिमुख थाय अथवा श्रावक थाय तो तेने छजीवणी अध्ययन शीखावी शकाय एम बे विशेष्यपद अने बे विशेषण आपेलां छे. निशीथना भाष्य तथा चूर्णिमां ए वात विस्तारीने लखी छे ते आरी के जे मुनि परपाखंडीने के गृहस्थने अथवा पासत्थादिकने शीखवे के तेमना पासेथी शीखे तेने प्रायश्चित्त लागे. का रण के अन्यतीर्थिक के गृहस्थने शीखवतां ते पाछा तीर्थनी हेलना करवा मंडे, तेमज तेमना पासेथी शीखतां मिथ्यात्वनो स्थिरीकार थाय, अने पासत्थादिक पासेथी शीखतां तेमने वंदनादिक करं पडे इत्यादि दोष थाय छे. इहां परपाखंडी ते परदर्शनना वेषधारी जाणवा, अने गृहस्थ ते पण परदर्शनीज लेवा, बाकी जे गृहस्थ जिनवचन माने ते खपाखंडीज लेखवा. तेमने तो जे योग्य होय ते शीखवनुं, तेमां कंइ मनाइ नथी. वळी परपाखंडी के परदर्शनी गृहस्थ ते पण जो प्रव्रज्या लेवा अभिमुख थाय अथवा श्रावक थवा इच्छतो होय तो तेने सूत्रथी छजीवणी सूधी अने अर्थथी पिंडेपणा अध्ययन सूधी शीखावकुं तेमज पासत्यादिक पण जे सुविहितने उपसंपन्न थाय एटले गुरु तरीके अंगीकार करे अथवा संविनविहार करवा उजमाल थवानी चाहनावाळो होय तेने वाचना देवी. आ रीते निशीथना भाष्य तथा चूर्णिनो अभिप्राय तपाशतां मालम पडे छे के श्रावकने भणाववामां बाघ नथी. आवश्यकचूर्णि, विशेषावश्यक श्रावक प्रज्ञप्ति, तथा धर्मरत्न वृत्तिमां कं छे के ग्रहणशिक्षामां साधु सूत्र तथा अर्थथी जघन्यपणे आठ समितिओ शीखे अने उत्कृष्टपणे चौदमा पूर्व सूधी शीखे. अने श्रावक जघन्यपणे आठ समितिओ ने उत्कृष्टपणे छजी ૧૪
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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