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(१०४) . शतपदी भाषांतर. छ, जैनमा तेम गणतां मिथ्यात्व लागे छे. लोकमां लोकनुं मध्य लंका कहेवाय छे. जैनमा मेरु कह्यो छे. लोकमां ग्रह पूजाय छे, जैनमा तेमने पूजतां मिथ्यात्व कहेल छे. लोकमां अगीआरसे चोमासु बेशे छे, जैनमा चौदश के पूनमे बेशे छे. वळी पर्युषणपर्व पण जैनोनुज छे. माटे लोक साथे केम सरखाई आवे? . ____ माटे जो टीपणुं प्रमाण करवा जइये तो आपणा निशीथ, कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध, भगवती, आवश्यक, स्थानांग, चंदपन्नत्ति, सूरपन्नत्ति, जंबुदीवपन्नत्ति, गणिविद्या, ज्योतिष्करंडक, संग्रहणी, तथा क्षेत्रसमास वगेरा ग्रंथो अप्रमाण थई जाय छे.
वळी विचारो के टीपणामां तो अमावास्यानो मास बदले छे छतां तमो पण जैनना हिशावे पूनमनीज माससमाप्ति लेखीने कल्याणिक तिथिओ गणो छो माटे टीपणानुं शुं प्रमाणपणुं रघु.
कदाच कोई पूछे के तमे युगमां ज्यारे पौष मास अधिक गणीने लौकिक चैत्र मासनी पूनमे फागण चोमासुं करो छो सारे ते मासने आगमिक फाल्गुन मास मानी तेमां दीक्षादिक पण आपशो के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के जेम तमो पण फागणनी पूनम पछी टीपणानी फागण विदिमां पण आगमिक चैत्र मास मानी विदि आठमे श्रीऋषभस्वामिनु कल्याणिक करो छो छतां तेने चैत्र गणी तेमां दीक्षादिक वर्जता नथी तेम अमारा माटे पण जाणी लेवु.
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विचार ८५ मो. प्रश्नः-श्रावकने छजीवणी अध्ययन मुनि शीखावे के नहि?
उत्तर:-श्रावकने ए अध्ययन मुनि उत्सर्ग मार्गेज शीखावी शके छे. कारण के निशीथमां लख्युं छे के गृहस्थ के परपाखंडी