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________________ शतपदी भाषांतर. ( १०३ ) वळी पृथ्वी पण तमारा शास्त्रमां गोळाकार अथवा पूनमना चंद्रना आकार जेवी कहेल छे. ते पण अमारा साथे केम मळे ? वळ तमारामां ग्रहो तथा श्रवण वगेरा केटलाक नक्षत्रो पण प्रथम ज्योतिश्चक्रमां नहिं हता पण पछी उत्पन्न थया एम मानेल छे तथा चंद्र पण अगाऊं न हतुं पण पछीथी अत्रि ऋषिना नेत्रमांधी के क्षीरसमुद्रमांथी उत्पन्न थयुं एम मानेल छे. माटे अमारो ने तमारो मेळ शी रीते मळी शके ? हवे कदाच कोई जैनी बोले के टीपणाना हिशाबे आठम वगेरा पर्व तथा अधिकमास केम नथी करता ? तेने उत्तर आपीए छीये के छायडा अने तडकानी माफक लोक अने जैननुं मोटुं अंतर रहेल छे. माटे ते बेनी सरखाई केम आवी शके ? कारण के लोकमां एक चंद्र ने एक सूर्य छे, जैनमां असंख्य छे. लोकमां नव ग्रह छे, जैनमां ८८ ग्रह छे, जेमां त्रीशमो भरम ग्रह छे. लोकमां मेरु एक छे, जैनमां पांच मेरु छे. लोकमां भूगोळ अवळे आंटे सूर्यादिकने फरे छे जैनमां ज्योतिश्चक्र फरे छे. लोकमां सात द्वीप समुद्र छे, जैनमां असंख्याता छे लोकमां युग, मन्वंतर, इत्यादि काळमान छे, जैनमां पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्त्त, इत्यादि काळमान छे. वळी लोकमां क्यारेक एकज वर्षमां एक अधिकमास अने एक क्षयमास आवे छे जेमके सं. १२५० मां पोष मासनो क्षय हतो अने चैत्र मास बे हता, तेथी फागण चोमासुंत्रण मासे अने आषाढ चोमासुं पांच मासे थयुं हतुं. आ बाबत धूर्त्तभटसिद्धांत - मां स्पष्ट छे. पण जैनमां तेम थतुं नथी. लोकमां राहु मस्तकमात्र छे, जैनमां महर्द्धिक देव छे. लोकमां संक्रांति, व्यतिपात, ग्रहण, तथा वैधृति वगेरा पर्व गणाय
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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