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श्री महेंद्रसिंहसूरि विरचित शतपदी ग्रंथतुं साररूप भाषांतर.
मंगळाचरण, त्रण भुवनरूपी घरमां दीपक समान, कल्याणना निधि, सं. सारसमुद्रमां द्वीप समान, संशयरूप अंधकार हरवामां सूर्य समान श्रीमान् वीरजिन जयवंत रहो.
उपोद्घात. कोइ एक सूरिए मनमां गर्व धरी सो पूर्वपक्ष ऊभा की. तेना श्री धर्मघोष मूरिए बहुधा सिद्धांतोना पुरावाथीज, अने क्यांक घटती युक्तिओ, तथा सिद्धांतानुसारि प्रकरणोना पुरावा आपी उत्तरो वाळ्यां छे. ए उत्तरो तथा बीजा थोडाक विचारो मळी इहां एकशोसत्तर विचार अनुक्रमे लखवामां आवशे.
ए विचारोमांना ओगणपचाशमा तथा ओगणसाठमा आखा विचार अने त्रेवीशमा तथा पंचाणुमा विचारनो केटलोक भाग अगीतार्थने नहि जणायवो.