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________________ शतपदी भाषांतर. (८१) विचार ६४ मो. प्रश्नः-"प्रभावती न्हाइने त्रिसंध्य पूजा करती" एम कहेल छे, माटे त्रिसंध्यामांज पूजा करवी के आगलपाछल पण थई शके? उत्तरः-विधि एमज छे. पण कदि समय वेळाए पूजा करी नहि शकाय तो आगल पाछल पण थई शके छे. केमके पर्युषणा दिकपर्वनी क्रिया पण आगल पाछल करी शकाय छे तो दररो जना अनुष्टाननुं शुं कहे. पर्युषणा माटे आवश्यकनियुक्तिमां का छे के ते दहाडे जेने गुरु के तपस्वीनुं वैयाकृत्य करवानुं होय अथवा मांदगी होय तेणे आगल पाछल तप करी लेवु.. वळी एज मुजब सामायिक पण बेज संध्याए करवानुं छे छतां त्यां पण अपवाद छे के जो कामनी अडचण होय तो ज्यारे अवकाश मळे त्यारे करी शकाय. एज मुजब पडिलेहणा, तथा पडिकमणाना पण अपवाद जाणवा. वळी पंचाशकमां पण पूजा माटे लख्युं छे के उत्सर्गथी पूजाकाळ त्रण संध्याओ छे अने अपवादे पूजाकाळ ते पोताना धं. धामां हरकत न करे एवी वेला जाणवी. माटे पुष्टालंबने सांजथी आगल पाछल पण पूजा करवी. विचार ६५ मो. प्रश्नः-साधुने स्निग्धमधुर आहार करवो कल्पे के नहि ? उत्तर:-नि:कारणे न कल्पे, कारणे कल्पे पण खरो. ओघनियुक्तिमां लख्युं छे के मळेला आहारमाथी पित्तादिक शमाववाने स्निग्धमधुर पूर्व खावं.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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