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(८०) . शतपदी भाषांतर. स्वामि, ढंढणकुमार, देवकीना पुत्रो, तथा आर्यरक्षितना पिताए मोदक बोरतां भांग्या जणाता नथी. केमके जो भाग्या होय तो वत्रीशनी संख्या केम घटे
विचार ६३ मो. प्रश्नः-साध्वीने दीक्षा देतां पहेलो लोच आचार्यादिक पोताना हाथे करे के केम?
उत्तरः-आचार्यादिक पोताना हाथे साध्वीनो लोच नहि करे कारण के स्त्रीनो संघट्टो मुनिने करवो अघटित छे.
वळी पूर्वना महर्षिओए पण तेम कर्यु देखातुं नथी. कारण के भगवतीमां देवानंदाने भगवाने प्रव्रज्या देवानो अधिकार छ त्यां पोते तेने दीक्षा आपी एम कडुं छे पण "मुंडावेई" एटले लोच करे एवो पाठ नथी किंतु एवो पाठ छे जे दीक्षा आप्या बाद आर्यचंदनाने तेनी शिष्यणी तरीके सोंपी अने आर्यचंदनाए तेने मुंडित करी..
वळी व्यवहारसूत्रमा लख्यु छ के निग्रंथोने पोताना अर्थे साध्वीने दीक्षा देवी के मुंडाववी न कल्पे खां टीकामां "मुंडाववी" नो अर्थ एम कर्यो छे जे "लोच कराववो न कल्पे." इहां टीकामां प्रेरकरूप वापर्यों छे तेथी पण एम सिद्ध थाय छ जे निग्रंथ पोताना हाथे लोच न करे.. ___ माटे निग्रंथो निग्रंथीनो पोताना हाथे लोच करे ए वात दि. गंबरोनी छे. कारण के तेओ पहेला लोच उपरांत बीजा लोचो करवामां पण संघट्टानो दोष नथी गणता.