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शतपदी भाषांतर. ( ७९ ) ऊग्याथी आमल पण नीकलवं, अथवा अरुण फूटतां अथवा पहोर रात होय त्यारे पण नीकळg. वळी ग्लानादिकना कारणे अथवा असूर थतां वच्चे चौरादिकनुं भय रहेल होय इसादि कारणे मुनि अधरातनो पण विहार करे.
विचार ६१ मो. प्रश्नः-साधुओ लेख के संदेशो मोकले छे तेमां प्रमाण शुं छे?
उत्तरः-निशीथचूर्णिमां लख्यु छे के जे राज्यमा जवान होय त्यां रहेला साधुओने अगाउथी लेख के संदेशो मोकलावी जणावी देवू के "अमो इहांथी आवनार छीए." । __कोइ पूछे के साधुओए मुनिने लेख के संदेशो मोकलवो ते ठीक, पण श्रावकने लेख के संदेशो मोकलवो तेमां शुं प्रमाण छ? तेनुं ए उत्तर छ के तेज निशीथचूर्णिमां वीजा स्थळे लख्युं छे के "अथवा आदि शब्दथी व्रत धारी श्रावक के समकितदृष्टिने अगाउथी जणावे."
वळी दशवैकाळिकचूर्णि तथा निशीथचूर्णिमां लख्यु छ के अंबडपरिव्राजक राजगृही तरफ जतां तेना मारफत भगवाने सुलसाने कुशळवाती पूछावी. अने स्थानांगटीकामां एम छे जे पोतानी कुशळवार्ता कहेबरावी.
@ विचार ६२ मो. प्रश्नः-साधुए मोदक वगेरा वोरतां भागी जोवा के नहि? उत्तरः-भांगवानी वात साबित थती नथी केमके गौतम