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शतपदी भाषांतर. ( १६७) पण नथी, क्रियारहितज छे एम पण नथी, अपूर्वकरण न करी शके एम पण नथी, नवगुणठाणा पण नज पामी शके एम पण नथी, अयोगलब्धिवाळी छे एम पण नथी, अकल्याणचेंज भाजन छे एम पण नथी, माटे ते उत्तमधर्मनी साधक शा माटे नहि थाय?"
ए लखाणथी सिद्ध थाय छे के ज्यारे स्त्री उत्तमधर्मनी साधक थई शके छे त्यारे तेज भवे मुक्ति पण पामी शकती सिद्ध थई शकशेज. पाणी नहि गाळनार घरोमां पण मुनिने भिक्षा
कल्पी शके छे. कोई प्रश्न करे के तमोने जे घरोमां पाणीनुं गळg के भाजनशुद्धि नथी होतां सां भिक्षा लेवी केम कल्पे छे, तेनुं ए उत्तर छे के यतिने सामे देखातो दोषज परिहार करवो घटे. बाकी "तमारा घरे पाणी गळेल वपराय छे के नहि, धान सोवाय छे के नहि, शाकमां कुंथुवगेरा जुओ छो के नहि, माखण तरत तपावो छो के मोहूं, तेल चोखा तलनु छे के सडेलानु, दहि दूध घरनां छे के वेचातां लीधेल छे, रसोइनां वासण बरोबर पोंज्यां हतां के नहि, आ हाथवडे पहेलो शुं कर्यु छ, आ चमचावडे पूर्वे शुं पीरसेल छे" इत्यादि सवालो पूछवानी यतिओने कशी जरुर नथी. किंतु हाथ, चाटुआ, अने वासण देखीता शुद्ध होय अने बेतालीश दोष रहित शुद्ध आहार होय तो यतिओने ते लेवो कल्पी शके छे. (पवित्रता के अपवित्रता लोकव्यवहारे लेखवी.)
कइ वस्तु पवित्र गणवी ने कइ अपवित्र गणवी ए बाबत लोकव्यवहारनोज आधार लेवो घटे छे. बाकी एमां मूळउत्पत्ति तपाशी ते ऊपर आधार राखवो नथी घटतो. कारण के तेम करशो तो जे तमे पवित्र चीजो मानो छो ते पण अपवित्र देखाशे.